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अध्ययन लेख 17

माँओ, यूनीके से सीखिए

माँओ, यूनीके से सीखिए

‘अपनी माँ से मिलनेवाली सीख को मत ठुकरा। वह तेरे सिर पर खूबसूरत ताज और तेरे गले का कीमती हार बनेगी।’​—नीति. 1:8, 9.

गीत 137 वफादार स्त्रियाँ, मसीही बहनें

एक झलक a

तीमुथियुस बपतिस्मा ले रहा है और यह देखकर उसकी माँ यूनीके और नानी लोइस खुशी से फूली नहीं समा रही हैं (पैराग्राफ 1)

1-2. (क) यूनीके कौन थी और उसके लिए अपने बेटे को सिखाना क्यों मुश्‍किल रहा होगा? (ख) बाहर दी तसवीर में आप क्या देख सकते हैं?

 बाइबल में तीमुथियुस के बपतिस्मे के बारे में कुछ नहीं बताया गया है, फिर भी हम सोच सकते हैं कि उसके बपतिस्मे के दिन उसकी माँ यूनीके को कितनी खुशी हुई होगी। (नीति. 23:25) ज़रा कल्पना कीजिए, तीमुथियुस पानी में खड़ा है और पास ही में उसकी माँ और नानी लोइस खड़ी हैं और उसे देखकर मुस्कुरा रही हैं। जैसे ही उसे पानी में डुबोकर निकाला जाता है, उसके चेहरे पर एक बड़ी-सी मुस्कान आ जाती है। यह देखकर यूनीके अपने आँसू रोक नहीं पाती। उसे अपने बेटे पर बहुत गर्व हो रहा है। सालों की उसकी मेहनत आखिरकार रंग लायी! पर यूनीके के लिए अपने बेटे को यहोवा और यीशु के बारे में सिखाना आसान नहीं था। उसके सामने कई मुश्‍किलें आयीं।

2 तीमुथियुस के माता-पिता अलग-अलग धर्म मानते थे। उसका पिता यूनानी था और उसकी माँ और नानी यहूदी थीं। (प्रेषि. 16:1) ऐसा मालूम पड़ता है कि जब वह नौजवान हुआ तो यूनीके और लोइस मसीही बन गयीं, पर उसका पिता मसीही नहीं बना। अब तीमुथियुस को फैसला करना था कि वह कौन-सा धर्म मानेगा। क्या वह यहूदी धर्म मानता रहेगा, जिसे वह बचपन से मानता आया था? या क्या वह अपने पिता का धर्म अपनाएगा? या फिर क्या वह अपनी माँ की तरह मसीही बनेगा?

3. नीतिवचन 1:8, 9 के मुताबिक, माँएँ अपने बच्चों को सिखाने के लिए जो मेहनत करती हैं, उस बारे में यहोवा क्या सोचता है?

3 आज भी मसीही माँएँ अपने परिवार से बहुत प्यार करती हैं। उनका यही अरमान होता है कि उनके बच्चे सबसे बढ़कर यहोवा के दोस्त बनें। इसलिए वे अपने बच्चों को सिखाने में खूब मेहनत करती हैं और यहोवा उनकी मेहनत की बहुत कदर करता है। (नीतिवचन 1:8, 9 पढ़िए।) यही नहीं, यहोवा ने बहुत-सी माँओं की मदद की है ताकि वे अपने बच्चों को उससे प्यार करना और उसकी सेवा करना सिखा सकें।

4. माँओं को कौन-सी मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है?

4 आज शैतान की दुनिया में रहते वक्‍त बच्चों पर कई दबाव आते हैं। (1 पत. 5:8) इसलिए एक माँ को चिंता हो सकती है कि क्या उसके बच्चे तीमुथियुस की तरह यहोवा की सेवा करने का फैसला करेंगे। कुछ माँओं के सामने एक और मुश्‍किल आती है। उन्हें अकेले ही अपने बच्चों की परवरिश करनी पड़ती है या उनके पति यहोवा की उपासना नहीं करते। क्रिस्टीन b नाम की एक बहन बताती है, “मेरे पति एक अच्छे इंसान थे और एक अच्छे पिता भी। पर उन्हें यह ज़रा भी पसंद नहीं था कि मैं बच्चों को यहोवा के बारे में कुछ भी सिखाऊँ। इसलिए मैं कई सालों तक यह सोच-सोचकर रोती थी कि क्या मेरे बच्चे बड़े होकर यहोवा की सेवा करेंगे।”

5. इस लेख में हम क्या जानेंगे?

5 अगर आप एक माँ हैं, तो यूनीके की तरह आप भी बच्चों को यहोवा के बारे में अच्छी तरह सिखा सकती हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि आप उसकी तरह अपनी बातों  और कामों  से अपने बच्चों को कैसे सिखा सकती हैं। हम यह भी जानेंगे कि ऐसा करने में यहोवा किस तरह आपकी मदद करेगा।

अपनी बातों  से बच्चों को सिखाइए

6. दूसरा तीमुथियुस 3:14, 15 के मुताबिक, किन बातों से तीमुथियुस को मसीही बनने में मदद मिली होगी?

6 जब तीमुथियुस छोटा था, तो यूनीके उसे “पवित्र शास्त्र” यानी इब्रानी शास्त्र से सिखाने में खूब मेहनत करती थी। हालाँकि वह यीशु मसीह के बारे में कुछ नहीं जानती थी, पर एक यहूदी होने के नाते वह जितना जानती थी वह सब उसने तीमुथियुस को सिखाया। तीमुथियुस ने बचपन में अपनी माँ से जो बातें सीखी थीं और जिन बातों का उसे ‘दलीलें देकर यकीन दिलाया गया था,’ उनके आधार पर वह समझ पाया कि यीशु ही मसीहा है। इसी वजह से उसने भी मसीही बनने का फैसला किया। (2 तीमुथियुस 3:14, 15 पढ़िए।) उसके इस फैसले से यूनीके को बहुत खुशी हुई होगी। यूनीके का नाम जिस शब्द से निकला है उसका मतलब है, “जीत हासिल करना।” और वह वाकई अपने नाम पर खरी उतरी। उसके सामने कई मुश्‍किलें थीं, फिर भी उसने उन सब पर जीत हासिल करते हुए अपने बेटे को अच्छी तरह सिखाया।

7. तीमुथियुस के बपतिस्मे के बाद, यूनीके उसकी मदद करने के लिए क्या कर सकती थी?

7 तीमुथियुस ने बपतिस्मा लेकर एक बड़ा कदम उठाया, पर यूनीके की चिंताएँ वहीं खत्म नहीं हुईं। वह सोचती होगी, ‘मेरा बेटा आगे चलकर क्या करेगा? कहीं वह बुरी संगत में तो नहीं पड़ जाएगा? क्या वह एथेन्स जाकर पढ़ाई करेगा और दुनियावी फलसफों को अपना लेगा? क्या वह पैसा कमाने के चक्कर में पड़कर अपना समय, अपनी ताकत और अपनी पूरी जवानी बरबाद कर देगा?’ हालाँकि यूनीके तीमुथियुस के लिए फैसले तो नहीं ले सकती थी, पर वह उसकी मदद ज़रूर कर सकती थी। वह उसे सिखाते रह सकती थी ताकि उसके दिल में यहोवा के लिए प्यार बढ़ता रहे और वह यीशु का एहसान माने। आज भी अगर माता-पिता में से कोई एक ही साक्षी हो, तो उसके लिए अकेले ही अपने बच्चों को यहोवा के बारे में सिखाना मुश्‍किल होता है। लेकिन अगर दोनों माता-पिता साक्षी हों, तो उनके लिए भी बच्चों के दिल में यहोवा के लिए प्यार बढ़ाना मुश्‍किल हो सकता है। ऐसे में माता-पिता यूनीके से क्या सीख सकते हैं?

8. बच्चों को सिखाने में बहनें अपने पति की मदद कैसे कर सकती हैं?

8 अपने बच्चों को बाइबल से सिखाइए।  बहनो, अगर आपके पति साक्षी हैं तो यहोवा चाहता है कि बच्चों को सिखाने में आप अपने पति की मदद करें। हर हफ्ते पारिवारिक उपासना करने के लिए अपने पति का साथ दीजिए। पारिवारिक उपासना के बारे में ऐसी बातें कहिए कि बच्चों का उसमें हिस्सा लेने का मन करे। सोचिए कि आप क्या कर सकती हैं ताकि पारिवारिक उपासना में बच्चों को मज़ा आए। आप अपने पति के साथ मिलकर यह भी सोच सकती हैं कि पारिवारिक उपासना के दौरान सब कौन-सा प्रोजेक्ट करेंगे। इसके अलावा, अगर आपका बच्चा खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!  किताब से अध्ययन कर सकता है, तो उसका अध्ययन कराने में आप अपने पति की मदद कर सकती हैं।

9. जिन बहनों को अकेले ही अपने बच्चों को यहोवा के बारे में सिखाना पड़ता है, वे किनसे मदद ले सकती हैं?

9 कुछ बहनों को अकेले ही अपने बच्चों की परवरिश करनी पड़ती है या उनके पति साक्षी नहीं हैं। ऐसे में माँओं की ज़िम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को यहोवा के बारे में सिखाएँ। अगर आपके हालात ऐसे हैं, तो परेशान मत होइए। यहोवा आपकी मदद करेगा। उसने अपने संगठन के ज़रिए कई प्रकाशन और वीडियो दिए हैं, जिनसे आप अपने बच्चों को अच्छी तरह सिखा सकती हैं। c आप चाहें तो इस बारे में दूसरे अनुभवी माता-पिताओं से भी सुझाव माँग सकती हैं और पूछ सकती हैं कि पारिवारिक उपासना मज़ेदार बनाने के लिए वे क्या करते हैं। (नीति. 11:14) अगर आपको बच्चों से खुलकर बात करना मुश्‍किल लगता है, तो इस मामले में भी यहोवा आपकी मदद कर सकता है। इसलिए उससे प्रार्थना कीजिए ताकि बच्चों के मन की बात जानने के लिए आप सही तरह के सवाल कर सकें। (नीति. 20:5) बात शुरू करने के लिए आप बस उनसे इतना पूछ सकते हैं, “स्कूल में तुम्हारे लिए सबसे बड़ी मुश्‍किल क्या है?” इस तरह के सवाल करने से बच्चे खुलकर आपसे बात कर पाएँगे।

10. माँएँ अपने बच्चों को सिखाने के लिए और क्या कर सकती हैं?

10 अलग-अलग मौकों पर बच्चों से यहोवा के बारे में बात कीजिए।  उन्हें यहोवा के गुणों के बारे में बताइए और यह भी कि उसने आपके लिए क्या-क्या किया है। (व्यव. 6:6, 7; यशा. 63:7) ऐसा करना तब और भी ज़रूरी है जब आप घर पर बच्चों का अध्ययन नहीं करा सकतीं। क्रिस्टीन, जिसका ज़िक्र पहले किया गया था, कहती है, “मैं घर पर बच्चों को खुलकर नहीं सिखा सकती थी। इसलिए जब भी हम कहीं बाहर घूमने जाते थे, जैसे टहलने के लिए या नाव की सवारी करने के लिए, तो हम यहोवा की सृष्टि और बाइबल के दूसरे विषयों के बारे में बात करते थे। इस तरह मैं उनकी मदद करती थी ताकि वे भी यहोवा के दोस्त बन सकें। जब मेरे बच्चे थोड़े बड़े हो गए, तो मैंने उन्हें बढ़ावा दिया कि वे खुद बाइबल पढ़कर सीखें।” इसके अलावा, यहोवा के संगठन और भाई-बहनों के बारे में अच्छी बातें कहिए। प्राचीनों की बुराई मत कीजिए, वरना मुश्‍किलें आने पर बच्चे शायद प्राचीनों की मदद ना लें।

11. याकूब 3:18 के मुताबिक, घर में शांति कायम करना क्यों ज़रूरी है?

11 अपनी तरफ से कोशिश कीजिए कि घर में शांति रहे।  अपनी बातों और कामों से अपने पति और बच्चों के लिए प्यार ज़ाहिर कीजिए। अपने पति से आदर से बात कीजिए और बच्चों को भी ऐसा करना सिखाइए। इससे घर में शांति होगी और बच्चों के लिए यहोवा के बारे में सीखना आसान होगा। (याकूब 3:18 पढ़िए।) रोमानिया में सेवा करनेवाले खास पायनियर जोसफ का उदाहरण लीजिए। जब वह छोटा था तो वह, उसकी माँ और उसके भाई-बहन यहोवा की उपासना करते थे, पर उसका पिता उन सबका बहुत विरोध करता था। जोसफ कहता है, “मम्मी पूरी कोशिश करती थीं कि घर में शांति हो। पापा जितनी कठोरता से पेश आते थे, मम्मी उनसे उतने ही प्यार से पेश आती थीं। जब वे देखती थीं कि हम पापा की बात नहीं मान रहे हैं या उनका आदर नहीं कर रहे हैं, तो वे हमारे साथ इफिसियों 6:1-3 में दिए सिद्धांत पर चर्चा करती थीं। वे हमें याद दिलाती थीं कि पापा में कितनी खूबियाँ हैं और समझाती थीं कि हमें क्यों उनकी इज़्ज़त करनी चाहिए। इस तरह जब भी घर का माहौल गरम होता था, मम्मी उसे शांत कर देती थीं।”

अपने कामों  से बच्चों को सिखाइए

12. दूसरा तीमुथियुस 1:5 के मुताबिक, यूनीके की अच्छी मिसाल का तीमुथियुस पर क्या असर हुआ होगा?

12 दूसरा तीमुथियुस 1:5 पढ़िए। यूनीके ने तीमुथियुस के लिए अच्छी मिसाल रखी। उसने ज़रूर तीमुथियुस को सिखाया होगा कि विश्‍वास कामों से ज़ाहिर होता है। (याकू. 2:26) यूनीके ने जो भी किया उसे देखकर तीमुथियुस अच्छी तरह समझ पाया होगा कि उसकी माँ यहोवा से बहुत प्यार करती है और उसकी सेवा करने से उसे कितनी खुशी मिल रही है। यूनीके की अच्छी मिसाल का तीमुथियुस पर क्या असर हुआ? प्रेषित पौलुस ने लिखा कि तीमुथियुस में भी अपनी माँ के जैसा विश्‍वास है। ऐसा नहीं था कि यूनीके का विश्‍वास मज़बूत था, तो तीमुथियुस का विश्‍वास भी खुद-ब-खुद मज़बूत हो गया होगा। इसके बजाय, उसने अपनी माँ से सीखा होगा कि अपना विश्‍वास बढ़ाने के लिए उसे क्या करना चाहिए और उसने ऐसा किया भी। उसी तरह, आज बहुत-सी माँएँ “कुछ बोले बिना ही” अपने परिवारवालों का दिल जीत लेती हैं। (1 पत. 3:1, 2) आप भी अपनी अच्छी मिसाल से बच्चों को सिखा सकती हैं। आइए देखें कैसे।

13. माँओं को अपनी ज़िंदगी में यहोवा को पहली जगह क्यों देनी चाहिए?

13 अपनी ज़िंदगी में यहोवा को पहली जगह दीजिए।  (व्यव. 6:5, 6) आप अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए बहुत-से त्याग करती हैं, जैसे समय, नींद और दूसरी चीज़ों का। लेकिन आपको बच्चों की देखभाल करने में इतना व्यस्त नहीं हो जाना चाहिए कि आपके पास यहोवा के लिए समय ही ना बचे। इसलिए हर रोज़ प्रार्थना करने के लिए वक्‍त निकालिए। हर हफ्ते निजी अध्ययन कीजिए और सभी सभाओं में जाइए। ऐसा करने से यहोवा के साथ आपका रिश्‍ता मज़बूत होगा और आप अपने परिवार के साथ-साथ दूसरों के लिए भी एक अच्छी मिसाल रख पाएँगी।

14-15. लीना, मारिया और जीयाओ से आप क्या सीखते हैं?

14 बहुत-से बच्चों ने अपनी माँ की अच्छी मिसाल देखकर यहोवा से प्यार करना और उस पर भरोसा करना सीखा है। आइए इसके कुछ उदाहरण देखें। क्रिस्टीन की बेटी लीना कहती है, “जब पापा घर पर होते थे, तो हम बाइबल नहीं पढ़ पाते थे। पर मम्मी सभाओं में जाना कभी नहीं छोड़ती थीं। हालाँकि हमें बाइबल के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं पता था, लेकिन मम्मी को देखकर हमारा विश्‍वास बढ़ने लगा। हम बच्चों ने बहुत बाद में सभाओं में जाना शुरू किया, पर हम पहले ही समझ गए थे कि यहोवा के साक्षी ही सच्चाई सिखाते हैं।”

15 मारिया के साथ भी ऐसा ही हुआ। जब उसकी माँ सभी बच्चों को लेकर सभाओं से घर लौटती थी, तो कई बार उसका पिता उन्हें मारता-पीटता और गाली-गलौज करता था। वह कहती है, “मुझे याद है कि जब मैं छोटी थी तो कई बार मैं लोगों के डर से बाइबल के सिद्धांत नहीं मानती थी। लेकिन मेरी मम्मी बहुत हिम्मतवाली थीं। वे सबसे बढ़कर यहोवा से प्यार करती थीं। उन्हें देखकर मैं अपने मन से इंसान का डर निकाल पायी।” जीयाओ नाम का एक भाई बताता है कि उसके पिता ने उसकी माँ और सभी बच्चों से कहा था कि वे घर पर यहोवा और बाइबल के बारे में कोई बात न करें। वह कहता है, “पापा को खुश करने के लिए मम्मी सबकुछ छोड़ने को तैयार थीं, सिवा यहोवा के। यह बात मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा।”

16. एक माँ की अच्छी मिसाल का दूसरों पर क्या असर हो सकता है?

16 माँओ, आपकी अच्छी मिसाल का असर मंडली के भाई-बहनों पर भी होता है। इसे समझने के लिए आइए एक बार फिर यूनीके की बात करें। उसकी अच्छी मिसाल का पौलुस पर गहरा असर हुआ। ऐसा मालूम पड़ता है कि पौलुस पहली बार यूनीके और लोइस से तब मिला जब वह अपने पहले मिशनरी दौरे पर लुस्त्रा आया। हो सकता है कि उसी ने मसीही बनने में उनकी मदद की। (प्रेषि. 14:4-18) शायद तभी पौलुस ने गौर किया होगा कि यूनीके में कितना विश्‍वास है। करीब 15 साल बाद जब उसने लिखा कि तीमुथियुस के विश्‍वास में कोई कपट नहीं है, तो उसने कहा कि ‘ऐसा ही विश्‍वास पहले उसकी माँ यूनीके में था।’ (2 तीमु. 1:5) ज़रा सोचिए, इतने साल बाद भी पौलुस यूनीके के विश्‍वास को नहीं भूला था और उसने अपनी चिट्ठी में उसकी मिसाल दी। यूनीके की अच्छी मिसाल का न सिर्फ पौलुस पर बल्कि पहली सदी के कई मसीहियों पर भी असर हुआ होगा। बहनो, अगर आप अकेले ही अपने बच्चों की परवरिश कर रही हैं या आपके पति साक्षी नहीं हैं, तो यकीन रखिए कि आपकी अच्छी मिसाल से मंडली के भाई-बहनों को बहुत हौसला मिलता है।

बच्चों के दिल में यहोवा के लिए प्यार बढ़ाने में वक्‍त लगता है। इसलिए हार मत मानिए! (पैराग्राफ 17)

17. अगर आपको लगे कि आपका बच्चा यहोवा की सेवा नहीं करना चाहता, तो आप क्या कर सकते हैं?

17 शायद कभी-कभी आपको लगे कि आपका बच्चा यहोवा की सेवा नहीं करना चाहता। ऐसे में आप याद रख सकते हैं कि बच्चों को सिखाने में वक्‍त लगता है। जैसे तसवीर में दिखाया गया है, बीज बोने के बाद हम सोचते हैं कि क्या इससे एक पौधा निकलेगा जो आगे चलकर फल देगा। लेकिन बीज बढ़ेगा या नहीं, यह हमारे हाथ में नहीं है। फिर भी हम पानी ज़रूर डाल सकते हैं ताकि वह बढ़ सके। (मर. 4:26-29) बच्चों को सिखाना भी कुछ ऐसा ही है। वे यहोवा की सेवा करेंगे या नहीं, यह फैसला आपके हाथ में नहीं है। लेकिन आप उनकी मदद ज़रूर कर सकती हैं ताकि वे यहोवा के दोस्त बनें। इसलिए उन्हें यहोवा के बारे में सिखाने के लिए मेहनत करते रहिए।​—नीति. 22:6.

यहोवा पर भरोसा रखिए

18. यहोवा कैसे आपके बच्चों की मदद कर सकता है?

18 पुराने ज़माने से लेकर आज तक, यहोवा ने बहुत-से बच्चों की मदद की है ताकि वे उसके दोस्त बन सकें। (भज. 22:9, 10) अगर आपके बच्चे यहोवा के दोस्त बनना चाहते हैं, तो वह उनकी भी मदद करेगा। (1 कुरिं. 3:6, 7) अगर कभी आपका बच्चा सच्चाई की राह से भटकने लगे, तब भी यहोवा उससे प्यार करता रहेगा और उस पर नज़र रखेगा। (भज. 11:4) जैसे ही उसे थोड़ा भी इशारा मिलेगा कि वह ‘अच्छे मन’ का है और उसकी सेवा करना चाहता है, तो वह तुरंत उसकी मदद करेगा। (प्रेषि. 13:48; 1 इति. 16:9) यहोवा शायद आपको उभारेगा कि आप उससे सही वक्‍त पर सही बात कहें। (नीति. 15:23) या हो सकता है वह किसी भाई या बहन को उभारेगा ताकि वह उस पर ध्यान दे और उसका हौसला बढ़ाए। अगर आपका बच्चा अभी यहोवा की सेवा नहीं करता, तो हिम्मत मत हारिए। सालों बाद भी यहोवा उसे वे सारी बातें याद दिला सकता है, जो आपने उसे बचपन में सिखायी थीं। (यूह. 14:26) इसलिए अपनी बातों और कामों से अपने बच्चों को सिखाते रहिए, तो यहोवा आपकी मेहनत पर ज़रूर आशीष देगा।

19. माँओ, आप क्यों यकीन रख सकती हैं कि यहोवा आपसे खुश है?

19 यहोवा आपसे प्यार करता है क्योंकि आप  उससे प्यार करती हैं। आपके बच्चे यहोवा की सेवा करें या न करें, फिर भी यहोवा आपसे प्यार करता रहेगा। अगर आप अकेले बच्चों की परवरिश कर रही हैं, तो यहोवा वादा करता है कि वह आपके बच्चों का पिता होगा और आपका खयाल रखेगा। (भज. 68:5) आपके बच्चों को खुद फैसला करना होगा कि वे यहोवा की सेवा करेंगे या नहीं। यह फैसला आप नहीं ले सकतीं। लेकिन अगर आप यहोवा पर भरोसा रखें और अपने बच्चों को सिखाने के लिए मेहनत करती रहें, तो वह आपसे खुश होगा और आपको आशीष देगा।

गीत 134 बच्चे यहोवा की अमानत

a इस लेख में बताया जाएगा कि माँएँ, तीमुथियुस की माँ यूनीके से क्या सीख सकती हैं और किस तरह अपने बच्चों को यहोवा के बारे में सिखा सकती हैं।

b कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

c उदाहरण के लिए, खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!  किताब का पाठ 50 और 15 अगस्त, 2011 की प्रहरीदुर्ग  के पेज 6-7 पर दिया लेख, “पारिवारिक उपासना और निजी अध्ययन करने के सुझाव” पढ़ें।