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अध्ययन लेख 18

लक्ष्य रखिए और उन्हें हासिल कीजिए

लक्ष्य रखिए और उन्हें हासिल कीजिए

“इन बातों के बारे में गहराई से सोचता रह और इन्हीं में लगा रह ताकि तेरी तरक्की सब लोगों को साफ दिखायी दे।”​—1 तीमु. 4:15.

गीत 84 यहोवा की सेवा में आगे बढ़ना

एक झलक a

1. हम कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं?

 सच्चे मसीही होने के नाते हम यहोवा से बहुत प्यार करते हैं और जी-जान से उसकी सेवा करना चाहते हैं। लेकिन हम ऐसा तभी कर पाएँगे जब हम कुछ लक्ष्य रखेंगे, जैसे अपने अंदर अच्छे गुण बढ़ाना, कोई हुनर सीखना और अलग-अलग तरीकों से भाई-बहनों की मदद करना।

2. हमें क्यों लक्ष्य रखने चाहिए और उन्हें हासिल करना चाहिए?

2 लक्ष्य रखने और उन्हें हासिल करने की सबसे बड़ी वजह है कि हम अपने पिता यहोवा को खुश करना चाहते हैं। जब हम उसकी सेवा करने में अपनी काबिलीयतों का इस्तेमाल करते हैं, तो यहोवा बहुत खुश होता है। हमें इसलिए भी लक्ष्य रखने चाहिए क्योंकि ऐसा करके हम अपने भाई-बहनों की और मदद कर पाएँगे। (1 थिस्स. 4:9, 10) हमें चाहे यहोवा की सेवा करते हुए कितने भी साल हो गए हों, फिर भी हमें लक्ष्य रखने हैं और उन्हें हासिल करना है। आइए जानें कि हम यह कैसे कर सकते हैं।

3. पौलुस ने तीमुथियुस को क्या करने का बढ़ावा दिया? (1 तीमुथियुस 4:12-16)

3 जब प्रेषित पौलुस ने तीमुथियुस को पहली चिट्ठी लिखी, तब तक तीमुथियुस को प्राचीन बने कुछ वक्‍त हो चुका था। फिर भी पौलुस ने उसे बढ़ावा दिया कि वह तरक्की करता रहे। (1 तीमुथियुस 4:12-16 पढ़िए।) पौलुस के शब्दों पर गौर करने से पता चलता है कि तीमुथियुस को तरक्की करने के लिए दो बातों पर ध्यान देना था। एक, उसे अपने अंदर अच्छे गुण बढ़ाने थे, जैसे प्यार, विश्‍वास और शुद्ध चरित्र। और दूसरी बात, उसे कुछ हुनर बढ़ाने थे, जैसे दूसरों को पढ़कर सुनाने, उन्हें बढ़ावा देने और सिखाने का हुनर। आइए तीमुथियुस की मिसाल पर गौर करें और सीखें कि लक्ष्य रखने से हम यहोवा की और अच्छी तरह सेवा कैसे कर पाएँगे। हम यह भी जानेंगे कि हम किन तरीकों से दूसरों की मदद कर सकते हैं।

अच्छे गुण बढ़ाइए

4. फिलिप्पियों 2:19-22 के मुताबिक, तीमुथियुस यहोवा का एक काबिल सेवक क्यों बन पाया?

4 तीमुथियुस यहोवा का एक काबिल सेवक था, क्योंकि उसने खुद में कई अच्छे गुण बढ़ाए थे। (फिलिप्पियों 2:19-22 पढ़िए।) पौलुस ने जो लिखा उससे पता चलता है कि तीमुथियुस नम्र, वफादार, मेहनती और भरोसेमंद था। वह भाई-बहनों से प्यार करता था और उसे उनकी सच्ची परवाह थी। इसी वजह से पौलुस उससे प्यार करता था। उसे तीमुथियुस पर पूरा भरोसा था, इसलिए उसने उसे कुछ भारी ज़िम्मेदारियाँ दीं। (1 कुरिं. 4:17) तीमुथियुस की तरह जब हम अपने अंदर अच्छे गुण बढ़ाएँगे, तो यहोवा हमसे प्यार करेगा और हम भाई-बहनों की और ज़्यादा सेवा कर पाएँगे।​—भज. 25:9; 138:6.

चुनिए कि आप कौन-सा गुण बढ़ाना चाहते हैं (पैराग्राफ 5-6)

5. (क) आप कैसे तय कर सकते हैं कि आपको खुद में कौन-सा गुण बढ़ाना है? (ख) जैसे तसवीर में दिखाया गया है, एक जवान बहन ने क्या लक्ष्य रखा है और वह उसे पाने के लिए क्या कर रही है?

5 लक्ष्य रखिए।  प्रार्थना कीजिए और सोचिए कि आपको खुद में क्या सुधार करना है। फिर एक गुण चुनिए जिसे आप अपने अंदर बढ़ाना चाहते हैं। उदाहरण के लिए आप सोच सकते हैं, ‘क्या मैं अपने अंदर हमदर्दी का गुण बढ़ा सकता हूँ? क्या मैं भाई-बहनों की मदद करने की इच्छा बढ़ा सकता हूँ? क्या मैं शांति कायम करने और दूसरों को माफ करने को तैयार रहता हूँ?’ इस बारे में आप किसी दोस्त से भी पूछ सकते हैं और उससे सुझाव ले सकते हैं।​—नीति. 27:6.

6. खुद में कोई गुण बढ़ाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

6 लक्ष्य हासिल करने के लिए मेहनत कीजिए।  इसका एक तरीका है कि जो गुण आप अपने अंदर बढ़ाना चाहते हैं, उसके बारे में अध्ययन कीजिए। मान लीजिए कि आप दूसरों को माफ करने का गुण बढ़ाना चाहते हैं। इसके लिए आप बाइबल में बताए ऐसे लोगों के बारे में पढ़ सकते हैं और मनन कर सकते हैं, जिन्होंने दूसरों को माफ किया और जिन्होंने ऐसा नहीं किया। उदाहरण के लिए, आप यीशु के बारे में पढ़ सकते हैं। वह दिल खोलकर दूसरों को माफ करता था। (लूका 7:47, 48) वह उनकी कमियों पर ध्यान नहीं देता था बल्कि यह देखता था कि वे आगे चलकर कितना कुछ कर सकते हैं। पर उसके दिनों के फरीसी “दूसरों को कुछ नहीं समझते थे।” (लूका 18:9) इन उदाहरणों पर मनन करने के बाद आप खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं दूसरों में अच्छाइयाँ ढूँढ़ता हूँ? क्या मैं देखता हूँ कि उनमें कौन-कौन-से अच्छे गुण हैं?’ अगर आपको किसी को माफ करना मुश्‍किल लगता है, तो आप उसके अच्छे गुणों के बारे में लिख सकते हैं। फिर आप खुद से पूछ सकते हैं, ‘अगर यीशु मेरी जगह होता तो वह उसके बारे में क्या सोचता? क्या वह उसे माफ करता?’ इस तरह जब हम माफ करने के बारे में अध्ययन करेंगे तो हम अपनी सोच बदल पाएँगे। शुरू-शुरू में हमें शायद ऐसा करना मुश्‍किल लगे, लेकिन अगर हम मेहनत करते रहें तो दूसरों को माफ करना हमारे लिए आसान हो जाएगा।

हुनर बढ़ाइए

राज-घर का रख-रखाव करना सीखिए (पैराग्राफ 7) d

7. आज यहोवा काबिल भाई-बहनों से क्या-क्या काम करवा रहा है? (नीतिवचन 22:29)

7 हम कोई हुनर बढ़ाने का लक्ष्य भी रख सकते हैं, जैसे निर्माण काम से जुड़ा कोई हुनर। ज़रा सोचिए, बेथेल की इमारतें, सम्मेलन भवन और राज-घर बनाने के लिए कितने सारे लोगों की ज़रूरत है! अगर आप निर्माण का कोई हुनर नहीं जानते, तो चिंता मत कीजिए। बहुत-से लोगों ने अनुभवी भाइयों के साथ काम करके अलग-अलग हुनर सीखे हैं। और जैसा तसवीर में दिखाया गया है, न सिर्फ भाई बल्कि बहनें भी सम्मेलन भवन और राज-घर का रख-रखाव करना सीख रही हैं। “युग-युग का राजा” यहोवा और “राजाओं का राजा” यीशु, हुनरमंद भाई-बहनों के ज़रिए निर्माण काम के अलावा और भी बहुत-से काम करवा रहे हैं। (1 तीमु. 1:17; 6:15; नीतिवचन 22:29 पढ़िए।) इसलिए कितना अच्छा होगा कि हम खुद की वाह-वाही के लिए नहीं बल्कि यहोवा की महिमा करने के लिए कड़ी मेहनत करें और अपना हुनर लगाएँ।​—यूह. 8:54.

8. आप कैसे चुन सकते हैं कि आपको कौन-सा हुनर बढ़ाना है?

8 लक्ष्य रखिए।  आपको कौन-सा हुनर बढ़ाना है या सीखना है, इस बारे में सबसे पहले आप खुद सोचिए और अपनी मंडली के प्राचीनों से पूछिए। आप चाहें तो अपने सर्किट निगरान से भी पूछ सकते हैं। हो सकता है कि वे आपको बोलने और सिखाने की कला बढ़ाने को कहें। ऐसे में उनसे पूछिए कि आपको सिखाने के किस पहलू में सुधार करना है। फिर सुधार करने के लिए मेहनत कीजिए।

9. कोई हुनर बढ़ाने के लिए आपको क्या करना होगा?

9 लक्ष्य हासिल करने के लिए मेहनत कीजिए।  मान लीजिए कि आप अपनी सिखाने की कला बढ़ाना चाहते हैं। इसके लिए आप पढ़ने और सिखाने में जी-जान लगाएँ  ब्रोशर का अध्ययन कर सकते हैं। जब आपको हफ्ते के बीच होनेवाली सभा में कोई भाग दिया जाता है, तो आप किसी काबिल भाई की मदद ले सकते हैं। आप उसे पहले से अपना भाग सुना सकते हैं और उससे सुझाव माँग सकते हैं। अगर आप अपने भाग अच्छे-से पेश करने के लिए पहले से तैयारी करेंगे, तो दूसरे देख पाएँगे कि आप मेहनती और भरोसेमंद हैं।​—नीति. 21:5; 2 कुरिं. 8:22.

10. एक उदाहरण देकर बताइए कि अगर हमें कोई हुनर बढ़ाना मुश्‍किल लगे, तो हमें क्या करना चाहिए।

10 अगर आपको कोई हुनर बढ़ाना मुश्‍किल लगता है, तो आप क्या कर सकते हैं? हार मत मानिए और मेहनत करते रहिए। गैरी नाम के भाई का उदाहरण लीजिए। वह ठीक से पढ़ नहीं पाता था। जब उसे सभाओं में पढ़ने को कहा जाता था तो उसे खुद पर बहुत शर्म आती थी। पर वह मेहनत करता रहा और पढ़ने का हुनर बढ़ाने में लगा रहा। उसने दूसरे भाइयों से सीखा और प्रकाशनों में दिए सुझाव माने। इस वजह से अब वह न सिर्फ सभाओं में बल्कि सर्किट सम्मेलनों और अधिवेशनों में भी भाषण दे पाता है!

11. तीमुथियुस की तरह हम क्या कर सकते हैं?

11 पौलुस की सलाह मानकर क्या तीमुथियुस एक दमदार वक्‍ता और बेहतरीन शिक्षक बन पाया? बाइबल में इस बारे में कुछ नहीं बताया गया है। पर हम यह ज़रूर जानते हैं कि पौलुस की सलाह मानकर वह अपनी ज़िम्मेदारियाँ और अच्छे-से निभा पाया। (2 तीमु. 3:10) तीमुथियुस की तरह अगर हम भी अपना हुनर बढ़ाएँगे, तो हम और भी ज़िम्मेदारियाँ उठाने के काबिल बन पाएँगे।

अलग-अलग तरीकों से दूसरों की मदद कीजिए

12. बताइए कि दूसरों ने किस तरह आपकी मदद की है।

12 जब दूसरे हमारी मदद करते हैं तो हमें बहुत अच्छा लगता है। जैसे, अगर हम अस्पताल में भर्ती होते हैं और अस्पताल संपर्क समिति या मरीज़ मुलाकात दल के प्राचीन हमसे मिलने आते हैं, तो हमें बहुत अच्छा लगता है। या जब हम किसी मुश्‍किल में होते हैं और एक प्राचीन वक्‍त निकालकर हमारी बात सुनता है और हमें दिलासा देता है, तो हमें बहुत हिम्मत मिलती है। या जब हमें किसी बाइबल विद्यार्थी को सिखाने में मदद चाहिए होती है और ऐसे में कोई पायनियर हमारे साथ चलता है और अध्ययन के बाद कोई सुझाव देता है, तो हम उसके बहुत एहसानमंद होते हैं। इन सभी भाई-बहनों को हमारी मदद करके बहुत खुशी मिलती है। हमें भी यह खुशी मिलेगी जब हम आगे बढ़कर दूसरों की मदद करेंगे। यीशु ने कहा था, “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।” (प्रेषि. 20:35) इसलिए आप भी दूसरों की मदद करने का लक्ष्य रख सकते हैं।

13. लक्ष्य रखते वक्‍त हमें क्या ध्यान रखना चाहिए?

13 अगर हम बस यह सोचें कि मैं मंडली के भाई-बहनों की और मदद करना चाहता हूँ, तो यह काफी नहीं है। इसके बजाय यह सोचिए कि आप किन खास तरीकों से भाई-बहनों की मदद कर सकते हैं। इस तरह लक्ष्य रखने से आप उसे हासिल करने के लिए कदम उठा पाएँगे और ठीक-ठीक जान पाएँगे कि आप अपने लक्ष्य तक पहुँच पाए हैं या नहीं। आप अपने लक्ष्य लिखकर रख सकते हैं और यह भी कि उसे पाने के लिए आप क्या-क्या करेंगे।

14. हमें अपने लक्ष्य बदलने के लिए क्यों तैयार रहना चाहिए?

14 कई बार हमारे हालात बदल जाते हैं। इसलिए हमें अपने लक्ष्य बदलने के लिए तैयार रहना चाहिए। पौलुस ने भी ऐसा ही किया। उसने थिस्सलुनीके शहर में मंडली शुरू करने में मदद की थी। उसका ज़रूर यह लक्ष्य रहा होगा कि वह वहीं रहकर नए भाई-बहनों का हौसला बढ़ाए। पर कुछ समय बाद लोगों ने विरोध किया और पौलुस को वहाँ से भागना पड़ा। (प्रेषि. 17:1-5, 10) अगर वह वहीं रुकता, तो भाई-बहनों की जान को भी खतरा होता। अब वह खुद वहाँ के भाई-बहनों की मदद नहीं कर सकता था। इसलिए उसने तीमुथियुस को उनके पास भेजा ताकि वह उनका हौसला बढ़ाए। (1 थिस्स. 3:1-3) ज़रा सोचिए जब थिस्सलुनीके के मसीहियों ने देखा होगा कि तीमुथियुस उनकी मदद करने आया है, तो उन्हें कितनी खुशी हुई होगी!

15. हालात बदलने पर हमें क्या करने को तैयार रहना चाहिए? एक उदाहरण दीजिए।

15 हो सकता है हमारे भी हालात अचानक बदल जाएँ और हम अपना लक्ष्य हासिल ना कर पाएँ। (सभो. 9:11) ऐसे में हम पौलुस की तरह अपना लक्ष्य बदल सकते हैं और कोई ऐसा लक्ष्य रख सकते हैं, जिसे पाना हमारे बस में हो। टेड और उसकी पत्नी हाइडी के अनुभव पर गौर कीजिए। वे दोनों बेथेल में सेवा कर रहे थे, पर उनमें से एक की खराब सेहत की वजह से उन्हें बेथेल छोड़ना पड़ा। वे यहोवा से बहुत प्यार करते थे, इसलिए उन्होंने दूसरे तरीकों से उसकी सेवा करने की सोची। उन्होंने पायनियर सेवा शुरू कर दी। कुछ समय बाद उन्हें खास पायनियर बनाया गया और टेड को सबस्टिट्‌यूट सर्किट निगरान बनने की ट्रेनिंग दी गयी। फिर एक बदलाव हुआ और संगठन ने बताया कि सर्किट निगरान एक उम्र तक ही सेवा कर सकते हैं। इस वजह से टेड अब सर्किट निगरान के तौर पर सेवा नहीं कर पाता। यह जानकर उन दोनों को दुख हुआ, पर उन्होंने सोचा कि वे दूसरे तरीकों से यहोवा की सेवा करेंगे। टेड कहता है, “हमने सीखा कि हमें एक ही तरह से सेवा करने पर अड़े नहीं रहना चाहिए बल्कि दूसरे तरीकों से सेवा करने के लिए तैयार रहना चाहिए।”

16. गलातियों 6:4 से हम क्या सीख सकते हैं?

16 कई बार हमारी ज़िंदगी में जो होता है, उस पर हमारा कोई बस नहीं होता। जैसे हो सकता है हम आज कोई ज़िम्मेदारी निभा रहे हों, पर कल वह ज़िम्मेदारी हमारे पास ना हो। ऐसे में हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा हमारी ज़िम्मेदारियों की वजह से हमसे प्यार नहीं करता। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हम खुद की तुलना दूसरों से ना करें। हाइडी कहती है, “अगर हम यह सोचेंगे कि दूसरों के मुकाबले हम कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं, तो हमारी खुशी छिन जाएगी।” (गलातियों 6:4 पढ़िए।) इसलिए अच्छा यही होगा कि हम यह सोचें कि हम अपने हालात में यहोवा और दूसरों की सेवा कैसे कर सकते हैं। b

17. यहोवा की ज़्यादा सेवा करने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

17 अगर आप यहोवा की और ज़्यादा सेवा करना चाहते हैं, तो अच्छा होगा कि आप कम चीज़ों में गुज़ारा करने के लिए तैयार रहें। यह भी अच्छा होगा कि आप बेवजह उधार ना लें। अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए आप छोटे-छोटे लक्ष्य रख सकते हैं। जैसे, अगर आप पायनियर बनना चाहते हैं, तो क्या आप कुछ महीनों तक लगातार सहयोगी पायनियर सेवा कर सकते हैं? अगर आप सहायक सेवक बनना चाहते हैं, तो क्या आप प्रचार करने में और ज़्यादा वक्‍त बिता सकते हैं और मंडली के बीमार और बुज़ुर्ग भाई-बहनों से मिलने जा सकते हैं? जब आप अपने छोटे-छोटे लक्ष्य हासिल करेंगे, तो आप और काबिल बन पाएँगे और आगे चलकर और ज़िम्मेदारियाँ ले पाएँगे। इसलिए आपको जो भी ज़िम्मेदारी दी जाती है, उसे अच्छी तरह निभाने की पूरी कोशिश कीजिए।​—रोमि. 12:11.

ऐसा लक्ष्य रखिए जिसे आप हासिल कर सकते हैं (पैराग्राफ 18) e

18. बहन बैवर्ली के उदाहरण से आप क्या सीखते हैं? (तसवीर भी देखें।)

18 लक्ष्य रखने की कोई उम्र नहीं होती। इसलिए चाहे हम बुज़ुर्ग हों, तब भी हम लक्ष्य रख सकते हैं और उन्हें हासिल कर सकते हैं। बैवर्ली नाम की बहन का उदाहरण लीजिए। वे 75 साल की हैं और खराब सेहत की वजह से ज़्यादा चल-फिर नहीं पातीं। लेकिन उनकी बड़ी इच्छा थी कि वे स्मारक के अभियान में पूरा-पूरा हिस्सा लें। इसके लिए उन्होंने छोटे-छोटे लक्ष्य रखें। जब उन्होंने अपने लक्ष्य हासिल किए, तो उन्हें बहुत खुशी हुई। उन्हें देखकर दूसरों को बढ़ावा मिला कि वे भी जोश से प्रचार करें। हालाँकि हमारे बुज़ुर्ग भाई-बहन ज़्यादा नहीं कर पाते, फिर भी यहोवा उनकी मेहनत की बहुत कदर करता है।​—भज. 71:17, 18.

19. हम कौन-कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं?

19 इस लेख से हमने सीखा कि हमें ऐसे लक्ष्य रखने चाहिए जिन्हें हम हासिल कर सकते हैं। हमें खुद में ऐसे गुण बढ़ाने चाहिए जिनसे यहोवा खुश हो। हमें कुछ हुनर सीखने चाहिए ताकि हम यहोवा और उसके संगठन के और काम आ सकें। हमें सोचना चाहिए कि हम भाई-बहनों की और ज़्यादा मदद कैसे कर सकते हैं। c जब हम ऐसा करेंगे तो यहोवा हमें आशीष देगा और ‘हमारी तरक्की सब लोगों को साफ दिखायी देगी।’​—1 तीमु. 4:15.

गीत 38 वह तुम्हें मज़बूत करेगा

a तीमुथियुस बहुत अच्छी तरह प्रचार करता था। फिर भी प्रेषित पौलुस ने उसे सलाह दी कि वह तरक्की करता रहे। यह सलाह मानने की वजह से वह यहोवा की सेवा और अच्छी तरह कर पाया और अपने भाई-बहनों की मदद कर पाया। तीमुथियुस की तरह आप भी ज़रूर यहोवा और भाई-बहनों की और सेवा करना चाहते होंगे। इसके लिए आप कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं और उन्हें हासिल करने के लिए आपको क्या करना होगा?

b यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए संगठित किताब, अध्याय 10, उपशीर्षक “ज़्यादा ज़रूरतवाली जगह सेवा” में पैरा. 6-9 पढ़ें।

d तसवीर के बारे में: एक भाई दो बहनों को रख-रखाव करना सिखा रहा है। फिर नया हुनर सीखने के बाद वे खुद-ब-खुद काम कर रही हैं।

e तसवीर के बारे में: एक बुज़ुर्ग बहन ज़्यादा चल-फिर नहीं पातीं, फिर भी वे फोन के ज़रिए लोगों को स्मारक के लिए बुला रही हैं।