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अध्ययन लेख 27

यहोवा पर आशा रखिए

यहोवा पर आशा रखिए

“यहोवा पर आशा रख, हिम्मत से काम ले, अपना दिल मज़बूत रख।”​—भज. 27:14.

गीत 128 हमें अंत तक धीरज रखना है

एक झलक *

1. (क) यहोवा से हमें क्या आशा मिली है? (ख) “यहोवा पर आशा” रखने का क्या मतलब है? (“इसका क्या मतलब है?” देखें।)

 हमारे पास कितनी बढ़िया आशा है! यहोवा ने वादा किया है कि बहुत जल्द वह दुख-तकलीफों, बीमारियों और मौत को खत्म कर देगा। (प्रका. 21:3, 4) और धरती को दोबारा फिरदौस बनाने में ‘दीन लोगों’ की मदद करेगा। (भज. 37:9-11) यही नहीं, उस वक्‍त हम यहोवा के और भी करीब महसूस करेंगे। पर हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा के ये वादे पूरे होंगे? क्योंकि आज तक उसने जो भी कहा है, वह सब पूरा हुआ है। इसी वजह से हम “यहोवा पर आशा” रख सकते हैं। * (भज. 27:14) पर हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें यहोवा पर आशा है? हमें सब्र रखना होगा और खुशी-खुशी उस दिन का इंतजार करना होगा जब यहोवा अपने वादे पूरे करेगा।​—यशा. 55:10, 11.

2. यहोवा क्या साबित कर चुका है?

2 यहोवा ने साबित किया है कि वह अपना हर वादा पूरा करता है। आइए इसका एक उदाहरण देखें। प्रकाशितवाक्य की किताब में यहोवा ने लिखवाया था कि हमारे दिनों में सब राष्ट्रों, गोत्रों और भाषाओं के लोग एक-साथ मिलकर उसकी उपासना करेंगे। इस खास समूह को “बड़ी भीड़” कहा गया है। (प्रका. 7:9, 10) आज यहोवा का यह वादा पूरा हो रहा है। इस भीड़ में आदमी, औरत, बच्चे सभी हैं। ये लोग अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं, अलग-अलग देश से हैं और इनका रहन-सहन भी अलग है। फिर भी एक परिवार की तरह इनके बीच प्यार और एकता है। (भज. 133:1; यूह. 10:16) ये जोश से लोगों को अपनी आशा के बारे में भी बताते हैं कि बहुत जल्द सबकुछ ठीक हो जाएगा। (मत्ती 28:19, 20; प्रका. 14:6, 7; 22:17) अगर आप भी इस बड़ी भीड़ का हिस्सा हैं, तो आपके लिए भी यह आशा बहुत अनमोल होगी और आप बेसब्री से उस वक्‍त का इंतजार कर रहे होंगे जब यह पूरी होगी।

3. शैतान क्या चाहता है?

3 शैतान पूरी कोशिश करता है कि हम अपनी आशा खो दें। वह चाहता है कि हम सोचें कि यहोवा को हमारी कोई परवाह नहीं है और वह अपने वादे पूरे नहीं करेगा। लेकिन अगर हम अपनी आशा खो बैठें, तो हम हिम्मत हार जाएँगे और शायद यहोवा की सेवा करना भी छोड़ दें। शैतान ने अय्यूब के साथ भी ऐसा ही करने की कोशिश की थी।

4. इस लेख में हम क्या जानेंगे? (अय्यूब 1:9-12)

4 इस लेख में हम जानेंगे कि शैतान ने क्या-क्या किया ताकि अय्यूब यहोवा का वफादार न रहे। (अय्यूब 1:9-12 पढ़िए।) हम यह भी जानेंगे कि अय्यूब से हम क्या सीख सकते हैं और हमें क्यों याद रखना चाहिए कि यहोवा हमसे प्यार करता है और वह अपने वादे पूरे करेगा।

शैतान ने कोशिश की कि अय्यूब अपनी आशा खो दे

5-6. एक-के-बाद-एक अय्यूब के साथ क्या हुआ?

5 अय्यूब की ज़िंदगी में सबकुछ अच्छा चल रहा था। उसका यहोवा के साथ एक बहुत अच्छा रिश्‍ता था, भरा-पूरा परिवार था और वह बहुत अमीर था। (अय्यू. 1:1-5) पर एक दिन सबकुछ बदल गया। उसकी सारी संपत्ति लुट गयी। (अय्यू. 1:13-17) और फिर उसके सारे बच्चों की मौत हो गयी। ज़रा सोचिए, उस वक्‍त अय्यूब पर क्या बीती होगी। जब माँ-बाप के सामने उनके किसी बच्चे की मौत हो जाती है, तो उनकी पूरी दुनिया उजड़ जाती है। पर अय्यूब के तो दस-के-दस बच्चों की मौत हो गयी थी और वह भी एक घर के नीचे दबकर। अय्यूब और उसकी पत्नी को बहुत गहरा सदमा लगा होगा, वे गम में डूब गए होंगे और उन्होंने कितना बेबस और लाचार महसूस किया होगा। तभी अय्यूब ने दुख के मारे अपने कपड़े फाड़े और ज़मीन पर गिर पड़ा।​—अय्यू. 1:18-20.

6 फिर शैतान ने खुद अय्यूब को एक दर्दनाक बीमारी से पीड़ित कर दिया और उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी। (अय्यू. 2:6-8; 7:5) एक वक्‍त पर लोग उसका बहुत मान-सम्मान करते थे और उससे सलाह-मशविरा करने आते थे। (अय्यू. 29:7, 8, 21) पर अब कोई उसे नहीं पूछ रहा था। उसके भाइयों ने उससे किनारा कर लिया था, उसके करीबी साथी उसे छोड़कर चले गए थे और उसके नौकर तक उसकी सुन नहीं रहे थे।​—अय्यू. 19:13, 14, 16.

अय्यूब ने जैसी तकलीफें झेली थीं, वैसी ही तकलीफें आज कई भाई-बहन झेल रहे हैं और वे समझ सकते हैं कि उस पर क्या बीती होगी (पैराग्राफ 7) *

7. (क) अय्यूब को क्या लगा कि कौन उस पर तकलीफें ला रहा है? पर उसने क्या नहीं किया? (ख) आज हम भी शायद किस तरह की मुश्‍किलों का सामना करें? (तसवीर देखें)

7 शैतान चाहता था कि अय्यूब सोचे कि यहोवा उससे नाराज़ है, तभी उस पर इतनी तकलीफें आ रही हैं। इसलिए शैतान ने पहले तो स्वर्ग से आग गिरायी जिस वजह से अय्यूब की भेड़ें और जो सेवक उनकी देखभाल कर रहे थे, वे सब मर गए। (अय्यू. 1:16) फिर उसने ज़ोरदार आँधी चलायी जिस वजह से वह घर गिर गया जहाँ अय्यूब के बच्चे खाना खा रहे थे। (अय्यू. 1:18, 19) जिस तरह आँधी आयी और आसमान से आग बरसी, उससे अय्यूब ने सोचा कि ज़रूर इसके पीछे यहोवा का हाथ होगा। उसे लगने लगा कि उसी ने कुछ ऐसा किया होगा जिस वजह से यहोवा नाराज़ हो गया है। फिर भी उसने यहोवा को बुरा-भला नहीं कहा। उसने याद किया कि यहोवा ने अब तक उसे कितनी आशीषें दी हैं और सोचा कि जब उसने ‘यहोवा से सुख लिया है, तो उसे दुख भी लेना चाहिए।’ इसलिए उसने कहा, “यहोवा के नाम की बड़ाई होती रहे।” (अय्यू. 1:20, 21; 2:10) अब तक अय्यूब की संपत्ति लुट चुकी थी, उसके बच्चे मर गए थे और उसे एक बड़ी बीमारी हो गयी थी। फिर भी वह यहोवा का वफादार बना हुआ था। पर अब शैतान कुछ और करता है।

8. शैतान अब कौन-सी चाल चलता है?

8 शैतान अपनी अगली चाल चलता है। वह अय्यूब के तीन साथियों के ज़रिए उसे यह महसूस कराने की कोशिश करता है कि वह बिलकुल बेकार है, किसी काम का नहीं है। वे उससे कहते हैं कि उसने ज़रूर बहुत पाप किए होंगे, तभी उसके साथ इतना कुछ हो रहा है। (अय्यू. 22:5-9) और अगर उसने कुछ अच्छे काम किए भी होंगे, तो भी यहोवा को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। (अय्यू. 4:18; 22:2, 3; 25:4) वह उसे यकीन दिलाना चाहते थे कि परमेश्‍वर उससे प्यार नहीं करता, न ही उसे उसकी कोई परवाह है और उसकी सेवा करने का भी कोई फायदा नहीं। उनकी बातें सुनकर अय्यूब बहुत निराश हो सकता था।

9. अय्यूब क्यों हिम्मत रख पाया और यहोवा का वफादार रह पाया?

9 ज़रा सोचकर देखिए, अय्यूब राख पर बैठा है और दर्द से कराह रहा है। (अय्यू. 2:8) उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है और रह-रहकर उसे अपने बच्चों के जाने का गम भी सता रहा है। पर वह चुप है। (अय्यू. 2:13–3:1) उसकी खामोशी देखकर शायद उसके साथियों ने सोचा होगा कि अब वह यहोवा से मुँह मोड़ लेगा और उसकी निंदा करेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता। उसके साथी उस पर लगातार ताने कसते हैं और उसे बुरा-भला कहते हैं। आखिरकार अय्यूब उन्हें जवाब देता है। कल्पना कीजिए कि वह अपना सिर उठाता है और अपने साथियों की आँखों-में-आँखें डालकर कहता है, “मैं मरते दम तक निर्दोष बना रहूँगा।” (अय्यू. 27:5) इतना सबकुछ होने के बाद भी अय्यूब क्यों हिम्मत रख पाया और यहोवा का वफादार रह पाया? मुश्‍किल-से-मुश्‍किल वक्‍त में भी उसने उम्मीद नहीं छोड़ी। वह आशा करता रहा कि एक दिन यहोवा उसकी सारी तकलीफें दूर कर देगा। उसे यकीन था कि अगर उसकी मौत भी हो जाए, तो भी यहोवा उसे ज़िंदा कर देगा।​—अय्यू. 14:13-15.

अय्यूब से सीखिए

10. अय्यूब के किस्से से हम क्या-क्या सीखते हैं?

10 अय्यूब के किस्से से हम सीखते हैं कि शैतान यहोवा को छोड़ने के लिए हमें मजबूर नहीं कर सकता और यहोवा अच्छी तरह जानता है कि हम पर क्या बीत रही है। हम यह भी सीखते हैं कि शैतान कौन-सी चालें चलता है ताकि हम यहोवा के वफादार न रहें। आइए इस बारे में और जानें।

11. अगर हमें यहोवा पर भरोसा हो, तो हम किस बात का यकीन रख सकते हैं? (याकूब 4:7)

11 अय्यूब की तरह जब हमें भी यहोवा पर भरोसा होगा, तो हम मुश्‍किलों का सामना कर पाएँगे और शैतान का विरोध कर पाएँगे। बाइबल में यकीन दिलाया गया है कि अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, तो शैतान हमारे पास से भाग जाएगा।​—याकूब 4:7 पढ़िए।

12. मरे हुए ज़िंदा होंगे, इस आशा से अय्यूब को कैसे हिम्मत मिली?

12 हमें पक्का विश्‍वास होना चाहिए कि अगर हम मर भी गए, तब भी यहोवा हमें ज़िंदा कर सकता है। आपको याद होगा, पिछले लेख में हमने सीखा था कि शैतान चाहता है कि हम मौत से डर जाएँ और अपनी जान बचाने के लिए बाइबल के सिद्धांत तोड़ दें। शैतान ने अय्यूब के साथ भी कुछ ऐसा ही किया। उसने उस पर इलज़ाम लगाया कि वह अपनी जान बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाएगा, यहोवा तक को छोड़ देगा। लेकिन अय्यूब ने शैतान को झूठा साबित किया। जब उसे उम्मीद की कोई किरण नज़र नहीं आ रही थी और उसे लग रहा था कि अब तो वह मर ही जाएगा, तब भी वह यहोवा का वफादार रहा। उसे यकीन था कि यहोवा भला है और वह एक दिन सबकुछ ठीक कर देगा। और अगर उसके जीते-जी ऐसा नहीं होता, तो भी उसे पक्की आशा थी कि यहोवा भविष्य में उसे ज़िंदा कर देगा और तब सबकुछ ठीक हो जाएगा। अय्यूब को पूरा भरोसा था कि यहोवा मरे हुओं को ज़िंदा कर सकता है। अगर हमें भी इस बात पर पूरा यकीन होगा और हमारी आशा पक्की होगी, तो कोई भी बात हमें यहोवा के वफादार रहने से रोक नहीं पाएगी, मौत भी नहीं।

13. शैतान ने अय्यूब के समय में जो चालें चली थीं, हमें उन पर क्यों ध्यान देना चाहिए?

13 शैतान आज भी वही चालें चलता है जो उसने अय्यूब के समय में चली थीं। ध्यान दीजिए कि उसने सिर्फ अय्यूब पर इलज़ाम नहीं लगाया, बल्कि उसने सभी इंसानों के बारे में कहा, “इंसान अपनी जान बचाने के लिए अपना सबकुछ दे सकता है।” (अय्यू. 2:4, 5) ऐसा कहकर शैतान यह दावा कर रहा था कि हम यहोवा से सच में प्यार नहीं करते और अगर हमारी जान पर बन आए, तो हम उसे छोड़ देंगे। शैतान मानो यह भी कह रहा था कि यहोवा हमसे प्यार नहीं करता और हम उसे खुश करने के लिए चाहे कुछ भी कर लें, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। हम शैतान की चालों से अनजान नहीं हैं, इसलिए हम उसकी बातों में नहीं आएँगे और यहोवा पर आशा रखेंगे।

14. जब हम पर मुश्‍किलें आती हैं, तो हम क्या देख पाते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।

14 जब हम पर मुश्‍किलें आती हैं, तो हम देख पाते हैं कि हममें कौन-सी कमज़ोरियाँ हैं। जब अय्यूब पर भी मुश्‍किलें आयीं, तो वह देख पाया कि उसमें कुछ कमज़ोरियाँ हैं और फिर उसने अपने अंदर सुधार किया। जैसे, उसे एहसास हुआ कि उसे और भी नम्र बनना है। (अय्यू. 42:3) भाई निकोलाय * के उदाहरण पर भी ध्यान दीजिए। वे बहुत बीमार थे, फिर भी उन्हें जेल में डाल दिया गया। वे कहते हैं, “जेल जाना एक्स-रे करवाने जैसा है। हमें पता चल जाता है कि हम अंदर से कैसे हैं, हममें क्या खूबियाँ हैं और क्या खामियाँ।” और जब हमें पता चल जाएगा कि हममें क्या कमज़ोरियाँ हैं, तो हम खुद में सुधार कर पाएँगे।

15. अय्यूब की तरह हमें किसकी सुननी चाहिए और क्यों?

15 हमें अपने दुश्‍मनों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि यहोवा की सुननी चाहिए। अय्यूब ने भी ऐसा ही किया। उसकी सोच सुधारने के लिए यहोवा ने उसे बहुत-सी बातें याद दिलायीं। उसने मानो अय्यूब से कहा, ‘क्या तू देख नहीं सकता कि मैंने क्या-क्या बनाया है? क्या तुझे नहीं लगता कि मैं तेरा खयाल रख सकता हूँ? मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तुझ पर क्या-क्या बीती है।’ यहोवा की बात सुनकर अय्यूब को यकीन हो गया कि वह उसकी परवाह करता है। उसका दिल यहोवा के लिए एहसान से भर गया और उसने कहा, “आज तक मैंने तेरे बारे में सुना था, पर अब तुझे देख भी लिया है।” (अय्यू. 42:5) अय्यूब ने शायद यह बात तब कही थी जब वह राख पर बैठा हुआ था। अभी-भी उसके पूरे शरीर पर फोड़े थे और वह अपने बच्चों की मौत की वजह से बहुत दुखी था। ऐसे में भी यहोवा ने उसे यकीन दिलाया कि वह उससे प्यार करता है और उससे बहुत खुश है और अय्यूब ने ध्यान से उसकी सुनी।​—अय्यू. 42:7, 8.

16. यशायाह 49:15, 16 के मुताबिक, मुश्‍किलें आने पर हमें कौन-सी बात ध्यान में रखनी चाहिए?

16 हो सकता है, आज लोग हमें भी बुरा-भला कहें, हमें ताने मारें और हमें नीचा दिखाएँ या हमारे संगठन के बारे में “तरह-तरह की झूठी और बुरी बातें कहें।” (मत्ती 5:11) पर अय्यूब के किस्से से पता चलता है कि यहोवा को पूरा यकीन है कि हम मुश्‍किलों के बावजूद उसके वफादार रहेंगे। वह हमसे बहुत प्यार करता है और जो उस पर आशा रखते हैं, उन्हें कभी नहीं छोड़ता। (यशायाह 49:15, 16 पढ़िए।) इसलिए जब लोग आपको या संगठन को बदनाम करते हैं, तो उनकी बातों पर कोई ध्यान मत दीजिए। तुर्की में रहनेवाले जेम्स के अनुभव पर गौर कीजिए। उसके परिवार ने कई मुश्‍किलों का सामना किया था। वह उस बारे में बताता है, “लोग यहोवा के संगठन के बारे में झूठी बातें कहते थे। हमें एहसास हुआ कि अगर हम उनकी बातों पर ध्यान देते रहेंगे, तो निराश हो जाएँगे और हिम्मत हार बैठेंगे। इसलिए हम अपनी आशा के बारे में सोचते रहे और जोश से यहोवा की सेवा करते रहे। इस वजह से हम मुश्‍किलें आने पर भी खुश रह पाए।” तो आइए हम भी दुश्‍मनों को अपनी आशा कमज़ोर करने का मौका न दें और अय्यूब की तरह यहोवा की सुनते रहें।

आशा होगी तो हम वफादार रह पाएँगे

अय्यूब वफादार रहा, इसलिए यहोवा ने उसे कई आशीषें दीं। उसने और उसकी पत्नी ने एक लंबी और खुशहाल ज़िंदगी जी (पैराग्राफ 17) *

17. इब्रानियों अध्याय 11 में बताए वफादार लोगों से हम क्या सीख सकते हैं?

17 अय्यूब अकेला ऐसा नहीं था जिसने हिम्मत से मुश्‍किलों का सामना किया और जो यहोवा का वफादार रहा। पौलुस ने इब्रानियों को लिखी चिट्ठी में ऐसे ही कई वफादार लोगों का ज़िक्र किया और उन्हें ‘गवाहों का घना बादल’ कहा। (इब्रा. 12:1) उन सबने बड़ी-बड़ी मुश्‍किलों का सामना किया था, फिर भी वे आखिरी साँस तक यहोवा के वफादार रहे। (इब्रा. 11:36-40) हालाँकि वे यहोवा के सारे वादों को पूरा होते हुए नहीं देख पाए, पर उन्हें यहोवा पर आशा थी। वे जानते थे कि यहोवा उनसे खुश है, इसलिए उन्हें यकीन था कि भविष्य में वे उसके वादों को पूरा होते हुए देखेंगे। (इब्रा. 11:4, 5) तो क्यों न हम उनसे सीखें और चाहे जो हो जाए यहोवा पर आशा रखें!

18. आपने क्या करने की ठान ली है? (इब्रानियों 11:6)

18 यह दुनिया बद-से-बदतर होती जा रही है। (2 तीमु. 3:13) और शैतान एक-के-बाद-एक यहोवा के लोगों पर मुश्‍किलें लाता जा रहा है। पर चाहे कितनी ही मुश्‍किलें क्यों ना आएँ, हमें ठान लेना चाहिए कि हम जी-जान से यहोवा की सेवा करते रहेंगे क्योंकि हमने “एक जीवित परमेश्‍वर पर आशा रखी है।” (1 तीमु. 4:10) अय्यूब यहोवा का वफादार रहा, इसलिए यहोवा ने उसे इनाम दिया और साबित किया कि वह लगाव रखनेवाला और दयालु परमेश्‍वर है। (याकू. 5:11) आइए हम भी यहोवा के वफादार रहें और यकीन रखें कि “वह उन लोगों को इनाम देता है जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।”​इब्रानियों 11:6 पढ़िए।

गीत 150 अपने बचाव के लिए यहोवा की खोज करें

^ जब आप किसी ऐसे व्यक्‍ति के बारे में सोचते हैं जिस पर बहुत तकलीफें आयीं, तो शायद आपके मन में अय्यूब का खयाल आए। वह मुश्‍किलों के बावजूद वफादार बना रहा। पर हम उसके किस्से से और क्या सीख सकते हैं? (1) शैतान हमें यहोवा को छोड़ने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। (2) यहोवा अच्छे से जानता है कि हम पर क्या बीत रही है। (3) जैसे यहोवा ने अय्यूब की मुश्‍किलें दूर कर दीं, वैसे ही वह एक दिन हमारी तकलीफें भी पूरी तरह मिटा देगा। जब हमें इन बातों पर पक्का यकीन होगा और हम इनके मुताबिक काम करेंगे, तब हम दिखाएँगे कि हम “यहोवा पर आशा” रखते हैं।

^ इसका क्या मतलब है? जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “आशा” किया गया है, उसका मतलब है किसी चीज़ का बेसब्री से इंतजार करना। इसका मतलब किसी पर भरोसा करना या उस पर निर्भर रहना भी हो सकता है।​—भज. 25:2, 3; 62:5.

^ इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।

^ तसवीर के बारे में: अय्यूब और उसकी पत्नी ने एक दर्दनाक हादसे में अपने बच्चों को खो दिया।

^ तसवीर के बारे में: अय्यूब मुश्‍किलों के बावजूद वफादार बना रहा। वह और उसकी पत्नी इस बारे में सोच रहे हैं कि यहोवा ने उन्हें कितनी आशीषें दी हैं।