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अध्ययन लेख 7

ऐसे बाइबल पढ़ें कि आपको पूरा-पूरा फायदा हो

ऐसे बाइबल पढ़ें कि आपको पूरा-पूरा फायदा हो

“कानून में क्या लिखा है? तूने क्या पढ़ा है?”​—लूका 10:26.

गीत 97 ज़िंदगी टिकी याह के वचनों पे

एक झलक a

1. हम क्यों कह सकते हैं कि यीशु के लिए शास्त्र में लिखी बातें बहुत मायने रखती थीं?

 सोचिए जब यीशु कुछ सिखाता होगा, तो कैसा लगता होगा! कैसे वह बार-बार शास्त्र की बातें बताता होगा! उसे वे सारी बातें मुँह-ज़ुबानी याद थीं। गौर कीजिए कि उसके बपतिस्मे के बाद उसकी कही जो सबसे पहली बात लिखी है, वे सीधे-सीधे शास्त्र से थी। और अपनी मौत से पहले भी उसने जो बातें कहीं, उनमें से कुछ हू-ब-हू शास्त्र में लिखी बातें थीं। b (व्यव. 8:3; भज. 31:5; लूका 4:4; 23:46) देखा जाए तो धरती पर साढ़े तीन साल सेवा करते वक्‍त यीशु ने अकसर लोगों को शास्त्र की बातें बतायीं और खर्रों से भी पढ़कर सुनाया और उनका मतलब समझाया।​—मत्ती 5:17, 18, 21, 22, 27, 28; लूका 4:16-20.

यीशु की पूरी ज़िंदगी से पता चलता है कि उसे शास्त्र से बहुत लगाव था और वह उसमें लिखी बातों के मुताबिक काम भी करता था (पैराग्राफ 2)

2. जब यीशु छोटा था, तो किस वजह से वह शास्त्र की बातें अच्छे-से जान पाया? (बाहर दी तसवीर देखें।)

2 प्रचार सेवा शुरू करने से सालों पहले भी यीशु ने कई बार परमेश्‍वर का वचन पढ़ा और सुना था। जब वह छोटा था, तो घर पर उसके माता-पिता यूसुफ और मरियम अकसर शास्त्र की बातें बताते होंगे और यीशु ध्यान से उनकी सुनता होगा। c (व्यव. 6:6, 7) यीशु हर सब्त के दिन अपने परिवार के साथ सभा-घर भी जाता होगा। (लूका 4:16) वहाँ जब शास्त्र की बातें पढ़कर सुनायी जाती होंगी, तो वह बड़े ध्यान से सुनता होगा। कुछ समय बाद उसने खर्रों में लिखी बातें खुद भी पढ़ना सीख लिया। इस वजह से वह शास्त्र में लिखी बातें अच्छे-से समझने लगा, उसे उनसे लगाव हो गया और वह उनके मुताबिक काम भी करने लगा। यह हमें मंदिर में हुई उस घटना से भी पता चलता है जो तब हुई थी जब यीशु सिर्फ 12 साल का था। वह ऐसे शिक्षकों के बीच बैठा हुआ था जो मूसा के कानून के जानकार थे। लेकिन वे सभी शिक्षक “उसकी समझ और उसके जवाबों से रह-रहकर दंग हो रहे थे।”​—लूका 2:46, 47, 52.

3. इस लेख में हम क्या जानेंगे?

3 जब हम हर दिन परमेश्‍वर का वचन पढ़ते हैं, तो हम भी उसे अच्छी तरह समझ पाते हैं और हमें उससे लगाव हो जाता है। लेकिन हम जो पढ़ते हैं उससे पूरी तरह फायदा कैसे पा सकते हैं? इस मामले में हम यीशु की बातों से काफी कुछ सीख सकते हैं। उसके दिनों में जो लोग कानून के जानकार थे, जैसे शास्त्री, फरीसी और सदूकी, वे परमेश्‍वर का वचन अकसर पढ़ते तो थे, पर उसमें लिखी बातों का मतलब नहीं समझते थे। यीशु ने उनसे जो कहा उससे ऐसी तीन बातें पता चलती हैं जो शास्त्र से पूरा फायदा पाने के लिए उन्हें करनी थीं, पर उन्होंने नहीं कीं। अगर हम यीशु की उन बातों पर ध्यान दें, तो (1) हम जो पढ़ते हैं, उसे समझ पाएँगे, (2) अनमोल सच्चाइयाँ या रत्न ढूँढ़ पाएँगे और (3) परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक खुद को ढाल पाएँगे। इस लेख में हम एक-एक करके इन बातों पर ध्यान देंगे।

बाइबल में जो पढ़ें, उसे समझें भी

4. लूका 10:25-29 से हम बाइबल पढ़ने के बारे में क्या सीखते हैं?

4 हम बाइबल में जो पढ़ते हैं उसका मतलब भी समझना है, नहीं तो हमें उससे पूरा फायदा नहीं होगा। ज़रा ध्यान दीजिए कि जब “एक आदमी जो कानून का अच्छा जानकार था,” यीशु के पास आया, तो उनके बीच क्या बातचीत हुई। (लूका 10:25-29 पढ़िए।) उसने यीशु से पूछा कि हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए उसे क्या करना होगा। तब यीशु ने परमेश्‍वर के वचन की तरफ ध्यान दिलाते हुए उससे पूछा, “कानून में क्या लिखा है? तूने क्या पढ़ा है?”  उस आदमी ने शास्त्र से एकदम सही जवाब दिया। उसने कहा कि हमें परमेश्‍वर और अपने पड़ोसी से प्यार करना है। (लैव्य. 19:18; व्यव. 6:5) लेकिन गौर कीजिए कि इसके बाद उसने क्या पूछा, “असल में मेरा पड़ोसी कौन है?” उसके सवाल से पता चलता है कि उसने जो पढ़ा था, उसका मतलब नहीं समझा था। इसी वजह से वह शास्त्र में लिखी उन बातों के मुताबिक चल नहीं पाया।

हम जो पढ़ते हैं, उसे समझना ऐसी काबिलीयत है जिसे हम बढ़ा सकते हैं

5. प्रार्थना करने और धीरे-धीरे बाइबल पढ़ने से आपको कैसे फायदा हो सकता है?

5 अगर हम बाइबल पढ़ने के मामले में कुछ अच्छी आदतें डालें, तो हम इसमें लिखी बातें और अच्छी तरह समझ पाएँगे। आप क्या कर सकते हैं? पढ़ने से पहले प्रार्थना  कीजिए। शास्त्र में लिखी बातें हम यहोवा की मदद से ही समझ सकते हैं, इसलिए उससे पवित्र शक्‍ति माँगिए ताकि आप ध्यान से पढ़ सकें। फिर धीरे-धीरे पढ़िए।  तब आप जो पढ़ रहे हैं उसे अच्छे-से समझ पाएँगे। आप चाहे तो बोल-बोलकर पढ़ सकते हैं या फिर बाइबल की ऑडियो रिकॉर्डिंग चला सकते हैं और उसके साथ-साथ पढ़ सकते हैं। जब आप बाइबल पढ़ने के साथ-साथ इसे सुनेंगे भी, तो इसकी बातें आपके दिलो-दिमाग में अच्छी तरह बैठ जाएँगी। (यहो. 1:8) पढ़ने के बाद एक बार फिर प्रार्थना  कीजिए। यहोवा का धन्यवाद कीजिए कि उसने आपको यह बढ़िया तोहफा दिया। और उससे बिनती कीजिए कि आपने जो पढ़ा है, उसके मुताबिक आप काम कर सकें।

आप जो पढ़ते हैं, उस बारे में छोटे-छोटे नोट्‌स लेने से आप कैसे उन बातों को अच्छे-से समझ पाएँगे और याद रख पाएँगे? (पैराग्राफ 6)

6. पढ़ते वक्‍त खुद से सवाल करने और छोटे-छोटे नोट्‌स लेने से आपको क्या फायदा होगा? (तसवीर भी देखें।)

6 बाइबल को अच्छी तरह समझने के लिए आप दो और काम कर सकते हैं। कोई किस्सा पढ़ते वक्‍त खुद से कुछ सवाल कीजिए।  जैसे, ‘इसमें मुख्य किरदार कौन हैं? कौन बात कर रहा है? किससे बात कर रहा है? वह यह बात क्यों कह रहा है? यह बातचीत कहाँ और कब हो रही है?’ इस तरह के सवाल करने से आप उस किस्से के बारे में सोच पाएँगे और उसकी खास बातें समझ पाएँगे। इसके अलावा, पढ़ते वक्‍त छोटे-छोटे नोट्‌स लीजिए।  कुछ लिखने के लिए हमें थोड़ा सोचना पड़ता है। इस तरह वे बातें हमें और अच्छी तरह समझ में आ जाती हैं। लिखने से हमें वे बातें लंबे समय तक याद भी रहती हैं। आप कुछ सवाल लिख सकते हैं, आपने जो खोजबीन की है उसकी कुछ बातें लिख सकते हैं या उन आयतों से आपने जो खास बातें सीखीं उन्हें लिख सकते हैं। या यह लिख सकते हैं कि आप कोई आयत कहाँ और कैसे इस्तेमाल करेंगे। आपने जो किस्सा पढ़ा है, वह आपको कैसा लगा, यह भी लिख सकते हैं। इस तरह की बातें लिखने से आपको ऐसा लगेगा मानो परमेश्‍वर का वचन आपके लिए ही लिखा गया है।

7. बाइबल में लिखी बातें समझने के लिए और क्या ज़रूरी है? और क्यों? (मत्ती 24:15)

7 मत्ती 24:15 पढ़िए। यहाँ यीशु की कही बात से हमें बाइबल पढ़ने के बारे में एक और ज़रूरी बात पता चलती है। उसने कहा, “पढ़नेवाला समझ इस्तेमाल करे।” यीशु असल में “पैनी समझ” की बात कर रहा था। लेकिन पैनी समझ का मतलब क्या है? इसका मतलब है, यह समझना कि किसी एक बात का दूसरी बात से क्या नाता है या वह उससे कैसे अलग है और उन बातों को समझने की कोशिश करना जो सीधे-सीधे ना बतायी गयी हों। इस तरह पैनी समझ होने से हम बाइबल की बातें और अच्छे-से समझ पाएँगे। और जैसे यीशु की बात से पता चलता है, जब हमें यह समझना हो कि बाइबल की कोई भविष्यवाणी कैसे पूरी हो रही है, तो उसके लिए भी हमें पैनी समझ चाहिए। देखा जाए तो हम बाइबल में जो भी पढ़ते हैं, उससे पूरा-पूरा फायदा पाने के लिए हमें पैनी समझ चाहिए।

8. हम बाइबल में जो पढ़ते हैं, उसे और अच्छी तरह कैसे समझ सकते हैं?

8 यहोवा अपने सेवकों को पैनी समझ देता है, इसलिए उससे बिनती कीजिए कि वह आपको भी पैनी समझ दे। (नीति. 2:6) लेकिन अपनी प्रार्थना के मुताबिक आपको भी कुछ करना होगा। जब आप बाइबल का कोई भाग पढ़ते हैं, तो गहराई से सोचिए कि आप जो बातें पहले से जानते हैं, उनसे इसका क्या नाता है। इसके लिए आप चाहें तो यहोवा के साक्षियों के लिए खोजबीन गाइड  जैसे प्रकाशनों की मदद से खोजबीन कर सकते हैं। ऐसा करने से आप बाइबल के किस्से अच्छी तरह समझ पाएँगे और जान पाएँगे कि आप उसमें दी बातों के मुताबिक कैसे चल सकते हैं। (इब्रा. 5:14) इस तरह जब आप बाइबल पढ़ते वक्‍त पैनी समझ इस्तेमाल करेंगे, तो उसके बारे में आपकी समझ बढ़ती जाएगी।

बाइबल में जो पढ़ें, उसमें अनमोल रत्न ढूँढ़ें

9. सदूकियों ने शास्त्र की कौन-सी अहम सच्चाई को नज़रअंदाज़ कर दिया था?

9 यीशु के ज़माने के सदूकी लोग इब्रानी शास्त्र की पहली पाँच किताबों से अच्छी तरह वाकिफ थे। लेकिन उन किताबों में लिखी कुछ अहम सच्चाइयाँ को उन्होंने नहीं समझा। ऐसा हम क्यों कह सकते हैं? गौर कीजिए कि एक बार जब उन्होंने मरे हुओं के ज़िंदा होने के बारे में यीशु से सवाल किया, तो उसने उन्हें क्या जवाब दिया। उसने कहा, “क्या तुमने मूसा की किताब में नहीं पढ़ा  कि परमेश्‍वर ने झाड़ी के पास क्या कहा था, ‘मैं अब्राहम का परमेश्‍वर, इसहाक का परमेश्‍वर और याकूब का परमेश्‍वर हूँ?’” (मर. 12:18, 26) इसमें कोई शक नहीं कि उन सदूकियों ने यह किस्सा कई बार पढ़ा होगा। पर यीशु ने उनसे जो सवाल किया, उससे पता चलता है कि उन्होंने शास्त्र की एक अहम सच्चाई को नज़रअंदाज़ कर दिया था। वह यह कि जिन लोगों की मौत हो गयी है, उन्हें परमेश्‍वर ज़िंदा करेगा।​—मर. 12:27; लूका 20:38. d

10. बाइबल पढ़ते वक्‍त हमें किस बात पर ध्यान देना चाहिए?

10 इस घटना से हम क्या सीखते हैं? जब हम बाइबल पढ़ते हैं, तो हमें ध्यान देना है कि किसी आयत या किस्से से हम कौन-कौन-सी बातें सीख सकते हैं। हमें बाइबल में लिखी बुनियादी सच्चाइयाँ तो समझनी ही हैं, पर साथ ही इसमें दी दूसरी ज़रूरी बातों और सिद्धांतों पर भी ध्यान देना है जो शायद सीधे-सीधे ना लिखे हों। ये बातें मानो शास्त्र की गहराई में छिपे अनमोल रत्नों जैसी हैं।

11. 2 तीमुथियुस 3:16, 17 को ध्यान में रखते हुए आप बाइबल में अनमोल रत्न कैसे ढूँढ़ सकते हैं?

11 बाइबल पढ़ते वक्‍त आप ये अनमोल रत्न कैसे ढूँढ़ सकते हैं? गौर कीजिए कि 2 तीमुथियुस 3:16, 17 में क्या लिखा है। (पढ़िए।) वहाँ बताया गया है कि पूरा  शास्त्र (1) सिखाने, (2) समझाने, (3) टेढ़ी बातों को सीध में लाने और (4) सोच ढालने के लिए फायदेमंद है। जब आप बाइबल का कोई किस्सा पढ़ते हैं, तो सोचिए कि उससे आप यहोवा और उसके मकसद के बारे में क्या सीख सकते हैं  या कौन-से सिद्धांत सीख सकते हैं। यह भी ध्यान दीजिए कि बाइबल के उस किस्से से यहोवा आपको क्या समझाना  चाहता है। आप यह कैसे जान सकते हैं? सोचिए कि उससे आपको क्या पता चलता है। कहीं आपके अंदर कोई बुरी इच्छा तो नहीं? या आपका रवैया कैसा है? फिर सोचिए कि आप वह गलत इच्छा अपने मन से कैसे निकाल सकते हैं और कैसे यहोवा के वफादार रह सकते हैं। यह भी सोचिए कि आप इस किस्से से कैसे टेढ़ी बातों को सीध में ला सकते हैं,  जैसे प्रचार करते वक्‍त आप किसी की गलत सोच कैसे सुधार सकते हैं। यह भी जानने की कोशिश कीजिए कि क्या उस किस्से में कोई ऐसी बात लिखी है जिससे आप अपनी सोच ढाल सकते हैं  और यहोवा की तरह सोच सकते हैं। जब आप बाइबल पढ़ते वक्‍त इन चार बातों पर ध्यान देंगे, तो आप बहुत-से अनमोल रत्न ढूँढ़ पाएँगे, यहाँ तक कि उन किताबों में भी जिन्हें शायद आप इतना ज़्यादा नहीं पढ़ते। यह तरीका आज़माने से आपको बहुत फायदा होगा!

बाइबल में जो पढ़ें, उसके मुताबिक खुद को ढालें

12. यीशु ने फरीसियों से यह सवाल क्यों किया कि “क्या तुमने नहीं पढ़ा?”

12 एक और मौके पर यीशु ने फरीसियों से सवाल किया, “क्या तुमने नहीं पढ़ा?”  (मत्ती 12:1-7) e उसने यह सवाल इसलिए किया क्योंकि फरीसी शास्त्र को सही इरादे से नहीं पढ़ते थे। उस मौके पर उन्होंने यीशु के चेलों पर यह इलज़ाम लगाया कि वे सब्त का नियम नहीं मानते। तब यीशु ने उन्हें शास्त्र से दो उदाहरण बताए और होशे की किताब में लिखी एक बात बतायी। इस तरह उसने बताया कि फरीसी यह समझ ही नहीं पाए थे कि सब्त का कानून क्यों दिया गया है, इसलिए वे लोगों पर दया भी नहीं करते थे। फरीसी परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक खुद को क्यों नहीं ढाल पाए? क्योंकि वे पढ़ते तो थे, पर सही इरादे से नहीं। वे खुद को कुछ ज़्यादा ही समझते थे और सिर्फ दूसरों में नुक्स निकालने के इरादे से पढ़ते थे। अपने इसी रवैए की वजह से वे शास्त्र में जो पढ़ते थे, उसका असल मतलब नहीं समझ पाते थे।​—मत्ती 23:23; यूह. 5:39, 40.

13. हमें किस इरादे से बाइबल पढ़नी चाहिए और क्यों?

13 यीशु ने फरीसियों से जो कहा, उससे हम सीखते हैं कि हमें सही इरादे से बाइबल पढ़नी चाहिए। अगर हम फरीसियों की तरह खुद को बहुत ज़्यादा समझेंगे या इस इरादे से बाइबल पढ़ेंगे कि हम दूसरों में नुक्स निकाल सकें, तो हम जो पढ़ते हैं उससे हमें कोई फायदा नहीं होगा। इसलिए हमें नम्र होना चाहिए और सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए। याकूब 1:21 में लिखा है, “जब तुम्हारे अंदर वचन बोया जाता है, तो उसे कोमलता से स्वीकार करो।”  अगर हम कोमल या नम्र होंगे और सही इरादे से परमेश्‍वर का वचन पढ़ेंगे, तभी यह हमारे दिल पर असर करेगा। और फिर जब हम बाइबल में दया, करुणा या प्यार के बारे में कोई किस्सा पढ़ेंगे, तो हम खुद को उस हिसाब से ढाल पाएँगे और अपने अंदर ये गुण बढ़ा पाएँगे।

हम कैसे जान सकते हैं कि हम परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक खुद को ढाल रहे हैं या नहीं? (पैराग्राफ 14) f

14. हम कैसे जान सकते हैं कि हम बाइबल के मुताबिक खुद को ढाल रहे हैं या नहीं? (तसवीरें भी देखें।)

14 हम दूसरों के साथ जिस तरह व्यवहार करते हैं, उससे पता चलेगा कि हम परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक खुद को ढाल रहे हैं या नहीं। फरीसियों ने परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक खुद को नहीं ढाला। इस वजह से वे ‘निर्दोष लोगों को दोषी ठहराते थे।’ (मत्ती 12:7) हमें ध्यान देना चाहिए कि हम दूसरों के बारे में क्या सोचते हैं और उनके साथ कैसा व्यवहार करते हैं। इस तरह हम जान पाएँगे कि परमेश्‍वर का वचन हम पर असर कर रहा है या नहीं। जैसे हम सोच सकते हैं, ‘क्या मैं दूसरों की अच्छाइयों पर ध्यान देता हूँ और उनकी तारीफ करता हूँ? या जब देखो तब उन्हें उनकी कमियाँ बताता रहता हूँ? जब दूसरों से गलती हो जाती है, तो क्या मैं उन्हें माफ करने को तैयार रहता हूँ या उनके बारे में बुरा-भला कहता हूँ और नाराज़गी पाले रहता हूँ?’ इस तरह के सवाल करने से हम खुद को जान पाएँगे। हम जिस तरह सोचते हैं, जैसा महसूस करते हैं और जिस तरह के काम करते हैं, उससे पता चलेगा कि हमने परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक खुद को ढाला है या नहीं।​—1 तीमु. 4:12, 15; इब्रा. 4:12.

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15. यीशु पवित्र शास्त्र के बारे में कैसा महसूस करता था?

15 यीशु को पवित्र शास्त्र से गहरा लगाव था। और इस बारे में भजन 40:8 में भविष्यवाणी भी की गयी थी। वहाँ लिखा है, “हे मेरे परमेश्‍वर, तेरी मरज़ी पूरी करने में ही मेरी खुशी है, तेरा कानून मेरे दिल की गहराई में बसा है।” इसी वजह से यीशु खुशी से यहोवा की सेवा कर पाया और अपने हर काम में कामयाब हो पाया। हम भी अगर परमेश्‍वर का वचन पढ़ेंगे और हमें उससे लगाव होगा, तो हम खुश रह पाएँगे और कामयाब हो पाएँगे।​—भज. 1:1-3.

16. आप बाइबल में जो पढ़ते हैं, उससे पूरा-पूरा फायदा पाने के लिए आप क्या करेंगे? (“ यीशु की कही बातों पर ध्यान देने से आप जो पढ़ते हैं, उसे समझ पाएँगे” नाम का बक्स देखें।)

16 यीशु के उदाहरण से और उसकी बातों से हमने जो सीखा, उसे ध्यान में रखते हुए आइए हम और अच्छी तरह बाइबल पढ़ने की कोशिश करें। बाइबल का कोई किस्सा अच्छी तरह समझने के लिए हम प्रार्थना कर सकते हैं, धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं, सवाल कर सकते हैं, और छोटे-छोटे नोट्‌स ले सकते हैं। इसके अलावा, हमें उन बातों के बारे में भी गहराई से सोचना चाहिए जो सीधे-सीधे नहीं लिखी हैं। इसके लिए हम अपने प्रकाशनों में खोजबीन भी कर सकते हैं। बाइबल को सरसरी तौर पर पढ़ने के बजाय हम इसमें छिपे अनमोल रत्न ढूँढ़ने की भी कोशिश कर सकते हैं, यहाँ तक कि उन हिस्सों में भी जिनके बारे में हम ज़्यादा नहीं जानते। इस तरह हम बाइबल से बहुत कुछ सीख पाएँगे। और सही इरादे से पढ़ना भी ज़रूरी है, तभी हम परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक खुद को ढाल पाएँगे। जब हम ये सब बातें ध्यान में रखकर बाइबल पढ़ेंगे, तो हमें इससे पूरा-पूरा फायदा होगा और हम यहोवा के और करीब आते जाएँगे।​—भज. 119:17, 18; याकू. 4:8.

गीत 95 बढ़ती है रौशनी सच्चाई की

a यहोवा के सभी सेवक हर दिन बाइबल पढ़ने की कोशिश करते हैं। दूसरे कई लोग भी बाइबल पढ़ते हैं, पर वे जो पढ़ते हैं उसका मतलब नहीं समझ पाते। यीशु के दिनों में भी कुछ लोग ऐसे ही थे। अगर हम ध्यान दें कि यीशु ने उनसे क्या कहा, तो हम समझ पाएँगे कि आज हमें बाइबल कैसे पढ़नी चाहिए, ताकि हमें उससे पूरा-पूरा फायदा हो।

b यीशु के बपतिस्मे के बाद जब पवित्र शक्‍ति से उसका अभिषेक किया गया, तो ज़ाहिर है कि परमेश्‍वर ने कुछ ऐसा किया कि उसे स्वर्ग की सारी बातें याद आ गयीं।​—मत्ती 3:16.

c मरियम अकसर शास्त्र की बातों का ज़िक्र करती थी। (लूका 1:46-55) इससे पता चलता है कि वह इन्हें अच्छी तरह जानती थी। शायद यूसुफ और मरियम के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे अपने लिए शास्त्र के खर्रे खरीद सकें। इसलिए जब सभा-घर में परमेश्‍वर का वचन पढ़कर सुनाया जाता होगा, तो वे बड़े ध्यान से सुनते होंगे ताकि वे बातें याद रख सकें।

d 1 अप्रैल, 2013 की प्रहरीदुर्ग  में दिया लेख “परमेश्‍वर के करीब आओ​—‘वह जीवितों का परमेश्‍वर है’” पढ़ें।

e मत्ती 19:4-6 भी पढ़ें जहाँ यीशु ने फरीसियों से वही सवाल किया, “क्या तुमने नहीं पढ़ा?” उन फरीसियों ने दुनिया की रचना के बारे में शास्त्र में कई बार पढ़ा होगा जब परमेश्‍वर ने एक आदमी और औरत को एक बंधन में बाँधा था। पर उन्होंने यह नहीं समझा कि परमेश्‍वर की नज़र में यह बंधन कितना खास है और इसे हलके में नहीं लिया जाना चाहिए।

f तसवीर के बारे में: राज-घर में सभा के दौरान ऑडियो-वीडियो चलानेवाले एक भाई से कई गलतियाँ हो जाती हैं। लेकिन सभा के बाद दूसरे भाई उसे उसकी गलतियाँ बताने के बजाय, उसके अच्छे काम की तारीफ करते हैं।