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अध्ययन लेख 43

“वह तुम्हें मज़बूत करेगा”

“वह तुम्हें मज़बूत करेगा”

“[यहोवा] तुम्हें मज़बूत करेगा, शक्‍तिशाली बनाएगा और मज़बूती से खड़ा करेगा।”​—1 पत. 5:10.

गीत 38 वह तुम्हें मज़बूत करेगा

एक झलक a

1. पुराने ज़माने में परमेश्‍वर के सेवक क्यों ताकतवर बन पाए?

 बाइबल में अकसर बताया गया है कि यहोवा के वफादार सेवक ताकतवर थे। लेकिन जो बहुत ताकतवर थे, उन्हें भी हमेशा ऐसा नहीं लगता था कि वे ताकतवर हैं। जैसे राजा दाविद को कई बार लगा कि वह “पहाड़ जैसा मज़बूत” है, लेकिन कभी-कभी वह “बहुत डर” भी गया। (भज. 30:7) शिमशोन पर जब परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति काम करने लगती थी, तो उसमें गज़ब की ताकत आ जाती थी। लेकिन वह जानता था कि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के बिना उसकी ‘ताकत खत्म हो जाएगी और वह बाकी आदमियों की तरह हो जाएगा।’ (न्यायि. 14:5, 6; 16:17) सच में, इन वफादार सेवकों को यहोवा ने ही ताकतवर बनाया था।

2. प्रेषित पौलुस ने ऐसा क्यों कहा कि वह कमज़ोर है, लेकिन ताकतवर भी है? (2 कुरिंथियों 12:9, 10)

2 प्रेषित पौलुस जानता था कि उसे भी यहोवा से ताकत चाहिए। (2 कुरिंथियों 12:9, 10 पढ़िए।) वह क्यों? हममें से कई लोगों की तरह पौलुस को भी सेहत से जुड़ी कुछ समस्याएँ थीं। (गला. 4:13, 14) कभी-कभी उसे सही काम करना भी मुश्‍किल लगता था। (रोमि. 7:18, 19) और कई बार तो उसे बहुत चिंता होती थी और उसे यह सोचकर डर लगता था कि पता नहीं उसके साथ आगे क्या होगा। (2 कुरिं. 1:8, 9) फिर भी पौलुस ने कहा कि जब वह कमज़ोर होता है, तभी ताकतवर होता है। वह ऐसा क्यों कह पाया? यहोवा ने उसे ताकत दी। उसी ने पौलुस को मज़बूत किया।

3. इस लेख में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?

3 यहोवा ने वादा किया है कि वह हमें भी मज़बूत करेगा। (1 पत. 5:10) लेकिन हमें यहोवा से अपने आप ताकत नहीं मिल जाएगी, हमें भी कुछ करना होगा। ज़रा एक गाड़ी के बारे में सोचिए। गाड़ी में इंजन होना बहुत ज़रूरी है, लेकिन इंजन होने से गाड़ी अपने आप आगे नहीं बढ़ जाएगी। ड्राइवर को उसे चालू करना होगा, तभी वह आगे बढ़ पाएगी। उसी तरह यहोवा हमें ताकत देने के लिए तैयार है, पर उसे पाने के लिए हमें भी कुछ कदम उठाने होंगे। यहोवा ने हमें मज़बूत करने के लिए क्या इंतज़ाम किए हैं? और उससे ताकत या हिम्मत पाने के लिए हमें क्या करना होगा? इन सवालों के जवाब पाने के लिए हम गौर करेंगे कि यहोवा ने भविष्यवक्‍ता योना, यीशु की माँ मरियम और प्रेषित पौलुस को कैसे ताकतवर बनाया था। हम इस लेख में यह भी जानेंगे कि आज यहोवा अपने सेवकों को किस तरह ताकतवर बनाता है।

प्रार्थना और अध्ययन करके ताकत पाइए

4. यहोवा से ताकत पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

4 यहोवा से ताकत पाने का एक तरीका है, उससे प्रार्थना करना। जब हम प्रार्थना करते हैं, तो यहोवा हमें वह ताकत दे सकता है “जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है।” (2 कुरिं. 4:7) और यहोवा ने बाइबल में हमारे लिए जो संदेश लिखवाया है, उसमें “ज़बरदस्त ताकत” है। (इब्रा. 4:12) इसलिए जब हम परमेश्‍वर का वचन पढ़ते हैं और उस पर मनन करते हैं, तो उससे भी हमें हिम्मत और ताकत मिल सकती है। (भज. 86:11) तो यहोवा से प्रार्थना कीजिए और उसका वचन बाइबल पढ़िए, तब वह आपको ताकत देगा। इससे आप अपनी मुश्‍किलों का सामना कर पाएँगे, अपनी खुशी बनाए रख पाएँगे और वह काम या ज़िम्मेदारी पूरी कर पाएँगे जो आपको मुश्‍किल लग रही है। अब आइए गौर करें कि यहोवा ने भविष्यवक्‍ता योना को कैसे ताकत और हिम्मत दी।

5. योना को क्यों हिम्मत चाहिए थी?

5 भविष्यवक्‍ता योना को हिम्मत चाहिए थी। यहोवा ने उसे जो काम सौंपा था, वह उसे बहुत मुश्‍किल लग रहा था, इसलिए वह एक जहाज़ पर चढ़कर उलटी दिशा में भाग गया। फिर समुंदर में भयंकर तूफान आ गया, जिससे उसके साथ-साथ जहाज़ पर सवार दूसरे लोगों की जान भी खतरे में पड़ गयी। जब नाविकों ने उसे उठाकर समुंदर में फेंक दिया, तो एक बहुत बड़ी मछली ने उसे निगल लिया। अब वह मछली के पेट में था और उसके चारों तरफ घोर अंधेरा था। सोचिए योना को कैसा लग रहा होगा। क्या वह यह सोच रहा होगा कि अब तो उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं? या क्या उसे ऐसा लग रहा होगा कि यहोवा ने उसे छोड़ दिया है? योना सच में बहुत घबरा गया होगा।

जब हम मुश्‍किलों से गुज़र रहे होते हैं, तो योना की तरह कैसे ताकत पा सकते हैं? (पैराग्राफ 6-9)

6. जैसे योना 2:1, 2, 7 से पता चलता है जब योना मछली के पेट में था, तो उसने हिम्मत पाने के लिए क्या किया?

6 योना एकदम अकेला था, उसके आस-पास कोई नहीं था। ऐसे में उसने हिम्मत पाने के लिए क्या किया? उसने यहोवा से प्रार्थना की। (योना 2:1, 2, 7 पढ़िए।) योना ने यहोवा की आज्ञा तोड़ दी थी, पर अब उसे पछतावा हो रहा था, इसलिए उसे यकीन था कि यहोवा उसकी प्रार्थना सुनेगा। योना ने उन बातों के बारे में भी सोचा जो उसने पहले शास्त्र में पढ़ी थीं। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? योना की किताब के अध्याय 2 में उसकी जो प्रार्थना लिखी है, उसमें ऐसी कई बातें हैं जो भजनों में भी पायी जाती हैं। (उदाहरण के लिए, योना 2:2, 5 की भजन 69:1; 86:7 से तुलना कीजिए।) इससे साफ पता चलता है कि योना उन बातों को अच्छी तरह जानता था। और अब उसने इस मुश्‍किल घड़ी में उन बातों के बारे में सोचा। इससे उसे यकीन हो गया कि यहोवा उसकी मदद करेगा। फिर कुछ समय बाद मछली ने योना को सूखी ज़मीन पर उगल दिया। अब योना यहोवा से मिला काम पूरा करने के लिए तैयार था।​—योना 2:10–3:4.

7-8. ताइवान में रहनेवाले एक भाई को मुश्‍किलों के दौरान कैसे हिम्मत मिली?

7 योना के उदाहरण से हम सबको मदद मिल सकती है, खासकर जब हम मुश्‍किलों का सामना करते हैं। ज़रा ताइवान में रहनेवाले भाई ज़मिंग b के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उन्हें कई बड़ी-बड़ी बीमारियाँ हैं। ऊपर से उनके परिवारवाले उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार करते हैं, बस इसलिए कि भाई यहोवा के साक्षी हैं। ऐसे में प्रार्थना और अध्ययन करने से भाई को हिम्मत मिलती है। वे कहते हैं, “कभी-कभी जब समस्याएँ बढ़ जाती हैं, तो मैं इतना परेशान हो जाता हूँ कि मैं अध्ययन ही नहीं कर पाता।” लेकिन भाई हार नहीं मानते। वे कहते हैं, “पहले मैं यहोवा से प्रार्थना करता हूँ। फिर मैं अपने इयरफोन लगा लेता हूँ और राजगीत सुनता हूँ। कई बार तो मैं साथ-साथ गुनगुनाता भी हूँ, जब तक कि मेरा मन शांत नहीं हो जाता। फिर मैं अध्ययन करना शुरू करता हूँ।”

8 निजी अध्ययन करने से भाई ज़मिंग को बहुत हिम्मत मिली। गौर कीजिए कि एक बार उनके साथ क्या हुआ। उनका एक बहुत बड़ा ऑपरेशन हुआ था। ऑपरेशन के बाद एक नर्स ने उनसे कहा कि उनके शरीर में खून की (लाल रक्‍त कोशिकाओं की) बहुत कमी हो गयी है, इसलिए उन्हें खून चढ़वाना पड़ेगा। पर भाई अपने फैसले पर डटे रहे। वे यह कैसे कर पाए? ऑपरेशन से एक रात पहले भाई ज़मिंग ने एक बहन का अनुभव पढ़ा था जिसका वैसा ही ऑपरेशन हुआ था। और उस बहन का खून तो भाई के खून से भी कम हो गया था, फिर भी उस बहन ने खून नहीं चढ़वाया और वह ठीक भी हो गयी। उस बहन के अनुभव से भाई ज़मिंग को बहुत हिम्मत मिली और वे यहोवा के वफादार रह पाए।

9. अगर आप किसी मुश्‍किल का सामना कर रहे हैं या बहुत परेशान हैं तो आप क्या कर सकते हैं? (तसवीरें भी देखें।)

9 अगर आप किसी मुश्‍किल से गुज़र रहे हैं, तो क्या कभी आप इतने परेशान हो जाते हैं कि आप ठीक से प्रार्थना भी नहीं कर पाते? या आप इतना कमज़ोर महसूस करते हैं कि आप अध्ययन नहीं कर पाते? अगर ऐसी बात है, तो याद रखिए कि यहोवा आपके हालात अच्छी तरह समझता है। अगर आप छोटी-सी भी प्रार्थना करें, तो आप यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आपकी सुनेगा और आपको जो मदद चाहिए वह देगा। (इफि. 3:20) अगर आप बीमार हैं या बहुत परेशान रहते हैं या इतना थक जाते हैं कि आपमें पढ़ने और अध्ययन करने की हिम्मत ही नहीं रह जाती, तो क्यों ना आप हमारे प्रकाशनों का ऑडियो सुनें? आप चाहे तो jw.org पर कोई गीत सुन सकते हैं या वीडियो देख सकते हैं। जब आप यहोवा से प्रार्थना करेंगे और बाइबल और उसने जो दूसरे इंतजाम किए हैं, उनमें अपनी प्रार्थना का जवाब ढूँढ़ने की कोशिश करेंगे, तो आप यहोवा को मौका दे रहे होंगे कि वह आपको ताकत दे।

यहोवा के सेवकों से ताकत पाइए

10. हमारे भाई-बहन कैसे हमारी हिम्मत बँधाते हैं?

10 यहोवा हमारे मसीही भाई-बहनों के ज़रिए भी हमें ताकत या हिम्मत दे सकता है। जब हम किसी परेशानी से गुज़र रहे होते हैं या कोई ज़िम्मेदारी निभाना हमें मुश्‍किल लगता है, तो हमें भाई-बहनों से “बहुत दिलासा” मिल सकता है। (कुलु. 4:10, 11) हमें “मुसीबत की घड़ी” में दोस्तों की और भी ज़रूरत होती है। (नीति. 17:17) जब हम कमज़ोर महसूस करते हैं, तो हमारे भाई-बहन हमारी ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं, हमें तसल्ली दे सकते हैं और हमारा हौसला बढ़ा सकते हैं ताकि हम वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहें। अब आइए गौर करें कि यीशु की माँ मरियम को दूसरों से कैसे हिम्मत मिली।

11. मरियम को क्यों हिम्मत चाहिए थी?

11 मरियम को हिम्मत चाहिए थी। सोचिए जब जिब्राईल नाम के स्वर्गदूत ने उसे बताया होगा कि वह गर्भवती होगी और एक बच्चे को जन्म देगी, तो वह कितनी घबरा गयी होगी। उसकी अब तक शादी नहीं हुई थी, लेकिन वह गर्भवती होनेवाली थी। उसे बच्चों को पालने-पोसने का कोई तजुरबा नहीं था, पर उसे एक ऐसे बच्चे की परवरिश करनी थी जो आगे चलकर मसीहा बनता। उसने अब तक किसी आदमी के साथ संबंध नहीं रखे थे, पर वह माँ बननेवाली थी। वह अपने मंगेतर यूसुफ को यह सब कैसे समझाती?​—लूका 1:26-33.

12. लूका 1:39-45 के मुताबिक मरियम को कैसे हिम्मत मिली?

12 मरियम को एक अनोखी और भारी ज़िम्मेदारी मिली थी। यह ज़िम्मेदारी निभाने के लिए उसे हिम्मत कैसे मिली? उसने दूसरों से मदद ली। जैसे उसने जिब्राईल से कहा कि वह इस बारे में उसे और जानकारी दे। (लूका 1:34) फिर कुछ ही समय बाद वह एक लंबा सफर तय करके यहूदा के “पहाड़ी इलाके” में अपनी रिश्‍तेदार इलीशिबा से मिलने गयी। और मरियम ने वहाँ जाने का फैसला करके बहुत अच्छा किया। इलीशिबा ने मरियम की तारीफ की और यहोवा की प्रेरणा से मरियम के होनेवाले बच्चे के बारे में एक भविष्यवाणी की। (लूका 1:39-45 पढ़िए।) तब मरियम ने कहा कि यहोवा ने “अपने बाज़ुओं की ताकत दिखायी है।” (लूका 1:46-51) जिब्राईल स्वर्गदूत और इलीशिबा के ज़रिए यहोवा ने मरियम को हिम्मत दी।

13. जब बोलिविया में हमारी एक बहन ने भाई-बहनों से मदद ली, तो क्या हुआ?

13 मरियम की तरह आपको भी भाई-बहनों से हिम्मत मिल सकती है। बोलिविया में रहनेवाली बहन दसूरी को ऐसी हिम्मत चाहिए थी। उनके पापा को एक ऐसी बीमारी हो गयी थी जिसका कोई इलाज नहीं था। फिर जब उन्हें अस्पताल में भरती किया गया, तो बहन दसूरी उनकी देखभाल करने लगीं। (1 तीमु. 5:4) ऐसा करना उनके लिए हमेशा आसान नहीं होता था। वे कहती हैं, “कई बार मुझे लगता था कि अब मुझसे और नहीं हो पाएगा।” क्या तब बहन ने दूसरों से मदद ली? शुरू-शुरू में तो नहीं। वे कहती हैं, “मैं भाई-बहनों को परेशान नहीं करना चाहती थी। मैं सोचती थी कि यहोवा  है ना, वह मेरी मदद करेगा। लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि मैं खुद को दूसरों से अलग कर रही हूँ और अकेले  ही अपनी समस्याएँ सुलझाने की कोशिश कर रही हूँ।” (नीति. 18:1) फिर बहन दसूरी ने अपने कुछ दोस्तों को बताया कि वे कैसे हालात से गुज़र रही हैं। वे कहती हैं, “भाई-बहनों से मुझे जो हिम्मत मिली, उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती। वे अस्पताल में खाना लेकर आए और उन्होंने मुझे बाइबल से ऐसी बातें बतायीं जिससे मुझे बहुत दिलासा मिला। यह जानकर बहुत हिम्मत मिलती है कि हम अकेले नहीं हैं। हम यहोवा के एक बड़े परिवार का हिस्सा हैं, एक ऐसे परिवार का जो ज़रूरत की घड़ी में हमारा हाथ थाम लेता है, जब हम रोते हैं तो हमारे साथ रोता है और जब हम मुसीबतों से लड़ रहे होते हैं तो हमारा साथ देता है।”

14. हमें प्राचीनों की मदद लेने से क्यों हिचकिचाना नहीं चाहिए?

14 यहोवा प्राचीनों के ज़रिए भी हमारी हिम्मत बँधा सकता है। वह उसकी तरफ से मिले तोहफे हैं। उनके ज़रिए वह हममें दम भर सकता है और हमें ताज़गी दे सकता है। (यशा. 32:1, 2) तो जब भी आप परेशान हों, प्राचीनों को अपनी चिंताएँ बताइए। और जब वे आपकी मदद करें, तो हिचकिचाइए मत, उनकी मदद लीजिए। उनके ज़रिए यहोवा आपको ताकत दे सकता है।

अपनी आशा से ताकत पाइए

15. सभी मसीहियों के पास कौन-सी बढ़िया आशा है?

15 बाइबल से हमें जो आशा मिली है, उससे भी हमें हिम्मत या ताकत मिल सकती है। (रोमि. 4:3, 18-20) मसीही होने के नाते हम सबके पास हमेशा तक जीने की एक शानदार आशा है। हममें से ज़्यादातर लोगों को इसी धरती पर फिरदौस में जीने की आशा है और कुछ लोगों को स्वर्ग में जीने की। इस आशा से हमें मुश्‍किलें सहने की हिम्मत मिलती है और प्रचार काम में लगे रहने और मंडली में अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने की ताकत मिलती है। (1 थिस्स. 1:3) इसी आशा से प्रेषित पौलुस को भी हिम्मत मिली थी।

16. प्रेषित पौलुस को क्यों हिम्मत चाहिए थी?

16 पौलुस को हिम्मत चाहिए थी। कुरिंथियों को लिखी अपनी दूसरी चिट्ठी में पौलुस ने कहा कि वह मिट्टी के बरतन की तरह कमज़ोर है। उसने कहा कि उसे ‘दबाया’ जा रहा है, वह “उलझन” में है, उस पर “ज़ुल्म” किए जा रहे हैं और उसे ‘गिराया’ जा रहा है। उसकी जान पर भी बन आयी थी। (2 कुरिं. 4:8-10) पौलुस ने यह बातें तब लिखीं जब वह तीसरा मिशनरी दौरा कर रहा था। उस वक्‍त उसे पता नहीं था कि आगे चलकर उसे और भी मुश्‍किलों का सामना करना पड़ेगा। और ऐसा ही हुआ। एक भीड़ ने उस पर हमला किया, उसे गिरफ्तार कर लिया गया, वह जिस जहाज़ से सफर कर रहा था वह टूटकर तहस-नहस हो गया और उसे कैद में डाल दिया गया।

17. दूसरा कुरिंथियों 4:16-18 के मुताबिक पौलुस को अपनी मुश्‍किलें सहने की हिम्मत कैसे मिली?

17 पौलुस ने हिम्मत पाने के लिए अपनी आशा पर ध्यान लगाए रखा। (2 कुरिंथियों 4:16-18 पढ़िए।) उसने कुरिंथ के मसीहियों से कहा कि भले ही उसका शरीर “मिटता जा रहा है,” लेकिन वह हिम्मत नहीं हारेगा। पौलुस के पास स्वर्ग में हमेशा जीने की जो आशा थी, वह “बेमिसाल” थी। उसे पूरा होते हुए देखने के लिए वह किसी भी मुश्‍किल का सामना करने के लिए तैयार था। पौलुस हमेशा अपनी उस आशा के बारे में सोचता रहता था और इससे उसे बहुत हिम्मत मिलती थी। उसे ऐसा लगता था मानो वह अंदर से “दिन-ब-दिन नया होता जा रहा है।”

18. अपनी आशा के बारे में सोचते रहने से भाई टीहोमिर और उनके परिवार को कैसे हिम्मत मिली है?

18 बुल्गारिया में रहनेवाले भाई टीहोमिर को अपनी आशा के बारे में सोचने से बहुत हिम्मत मिलती है। कुछ साल पहले उनके छोटे भाई स्ट्रैवको की एक्सीडेंट में मौत हो गयी थी। उस हादसे के काफी समय बाद भी उन्हें उसकी याद सताती रही। वे उसके बारे में सोचकर बहुत दुखी हो जाते थे। इस गम से उबरने के लिए वे और उनका परिवार यह सोचते हैं कि जब यहोवा स्ट्रैवको को ज़िंदा करेगा, तो वह वक्‍त कैसा होगा। वे बताते हैं, “जैसे हम बात करते हैं कि हम स्ट्रैवको से कहाँ मिलेंगे, उसके लिए क्या खाना बनाएँगे, उसका स्वागत करने के लिए हम जो पार्टी रखेंगे उसमें किस-किसको बुलाएँगे और हम उसे आखिरी दिनों के बारे में क्या-क्या बताएँगे।” भाई टीहोमिर बताते हैं कि अपनी आशा के बारे में सोचने से उनके परिवार को बहुत हिम्मत मिली है। इससे वे धीरज रख पा रहे हैं और उस वक्‍त का इंतज़ार कर पा रहे हैं जब यहोवा उनके भाई को ज़िंदा करेगा।

आपको क्या लगता है, नयी दुनिया में आपकी ज़िंदगी कैसी होगी? (पैराग्राफ 19) c

19. अपनी आशा और पक्की करने के लिए आप क्या कर सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)

19 आप अपनी आशा कैसे पक्की कर सकते हैं? जैसे अगर आपको धरती पर हमेशा जीने की आशा है, तो बाइबल की वे आयतें पढ़िए जिनमें फिरदौस के बारे में बताया गया है और उन पर मनन कीजिए। (यशा. 25:8; 32:16-18) सोचिए कि उस वक्‍त ज़िंदगी कैसी होगी। कल्पना कीजिए कि आप नयी दुनिया में हैं। आप किस-किस को देख रहे हैं? आपको कौन-सी आवाज़ें सुनायी दे रही हैं? आपको कैसा लग रहा है? इस बारे में सोचने के लिए, आप चाहें तो हमारे प्रकाशनों में फिरदौस की तसवीरें देख सकते हैं। या आप संगीत के वीडियो देख सकते हैं, जैसे जब दुनिया होगी नयी,  बस चार कदम आगे  या कैसा समाँ होगा।  अगर हम नयी दुनिया की अपनी आशा के बारे में हमेशा सोचते रहें, तो हमें अपनी समस्याएँ ‘पल-भर की और हलकी लगेंगी।’ (2 कुरिं. 4:17) इस आशा के ज़रिए यहोवा आपको मज़बूत करेगा, मुश्‍किलें सहने की ताकत देगा।

20. जब हम कमज़ोर महसूस करते हैं, तो हम कैसे ताकत पा सकते हैं?

20 भले ही हम कमज़ोर महसूस करें, ‘परमेश्‍वर हमें ताकत दे सकता है।’ (भज. 108:13) देखा जाए तो यहोवा ने पहले से ही वे इंतज़ाम कर दिए हैं, जिनके ज़रिए हमें उससे ताकत मिल सकती है। इसलिए जब आपके लिए कोई ज़िम्मेदारी निभाना मुश्‍किल हो जाए, अपनी समस्याओं की वजह से एक-एक दिन काटना आपके लिए भारी हो जाए या आपकी खुशी छिन जाए, तो गिड़गिड़ाकर यहोवा से प्रार्थना कीजिए और निजी अध्ययन करके उससे मदद लीजिए। अपने भाई-बहनों से मदद लीजिए और अपनी आशा मन में ताज़ा बनाए रखिए। तब आप ‘परमेश्‍वर की उस ताकत से जो महिमा से भरपूर है, मज़बूत होते जाएँगे ताकि आप खुशी से और सब्र रखते हुए धीरज धर सकें।’​—कुलु. 1:11.

गीत 33 अपना बोझ यहोवा पर डाल दे!

a इस लेख से खासकर उन भाई-बहनों को मदद मिलेगी जो किसी बड़ी मुश्‍किल का सामना कर रहे हैं या जिन्हें लगता है कि उन्हें जो ज़िम्मेदारी या काम दिया गया है, उसे वे नहीं कर पाएँगे। इसमें हम जानेंगे कि यहोवा कैसे हमें हिम्मत या ताकत दे सकता है और उससे मदद पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं।

b इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।

c तसवीर के बारे में: एक बहन जो सुन नहीं सकती, परमेश्‍वर के वादों के बारे में सोच रही है और संगीत का एक वीडियो देख रही है, ताकि वह कल्पना कर सके कि नयी दुनिया में उसकी ज़िंदगी कैसी होगी।