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अध्ययन लेख 45

यहोवा के महान मंदिर में सेवा करना—एक अनोखी आशीष

यहोवा के महान मंदिर में सेवा करना—एक अनोखी आशीष

‘उस परमेश्‍वर की उपासना करो जिसने आकाश और धरती बनायी।’​—प्रका. 14:7.

गीत 93 हमारी सभाओं पर आशीष दे

एक झलक a

1. एक स्वर्गदूत क्या कह रहा है और उस बारे में सोचकर हमें कैसा लगता है?

 सोचिए, अगर एक स्वर्गदूत आकर आपसे बात करे, तो क्या आप उसकी सुनेंगे? असल में आज एक स्वर्गदूत “हर राष्ट्र, गोत्र, भाषा और जाति के लोगों” से बात कर रहा है। वह क्या कह रहा है? ‘परमेश्‍वर से डरो और उसकी महिमा करो। उस परमेश्‍वर की उपासना करो जिसने आकाश और धरती बनायी।’ (प्रका. 14:6, 7) यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है और सब इंसानों को उसी की उपासना करनी चाहिए। हमारे लिए यह कितनी बड़ी बात है कि यहोवा ने हमें अपने महान मंदिर में उसकी उपासना करने का मौका दिया है! इसके लिए हम यहोवा के बहुत एहसानमंद हैं।

2. महान मंदिर का क्या मतलब है? (“ महान मंदिर क्या नहीं है?” नाम का बक्स भी देखें।)

2 असल में महान मंदिर क्या है और हम इसके बारे में कैसे जान सकते हैं? यह मंदिर कोई सचमुच की इमारत नहीं है। इसका मतलब है, मसीह के फिरौती बलिदान के आधार पर शुद्ध उपासना करने के लिए यहोवा का इंतज़ाम। प्रेषित पौलुस ने इस इंतज़ाम के बारे में उस चिट्ठी में समझाया जो उसने पहली सदी में यहूदिया में रहनेवाले इब्रानी मसीहियों को लिखी थी। b

3-4. पौलुस को किन बातों को लेकर इब्रानी मसीहियों की चिंता हो रही थी? और उसने कैसे उनकी मदद की?

3 पौलुस ने यहूदिया में रहनेवाले इब्रानी मसीहियों को चिट्ठी क्यों लिखी? शायद इसकी दो वजह रही हों। पहली वजह, वह उनका हौसला बढ़ाना चाहता था। उनमें से ज़्यादातर मसीही पहले यहूदी थे। इसलिए हो सकता है कि यहूदी धर्म गुरु उनका मज़ाक उड़ाते हों कि अब वे मसीही बन गए हैं, अब उनके पास कोई आलीशान मंदिर नहीं है जहाँ वे उपासना कर सकते हैं, ना कोई वेदी है और ना ही याजक जो उनकी तरफ से बलि चढ़ाएँ। इस सबकी वजह से वे मसीही निराश हो सकते थे और उनका विश्‍वास कमज़ोर हो सकता था। (इब्रा. 2:1; 3:12, 14) उनमें से कुछ तो शायद दोबारा यहूदी धर्म अपनाने की सोचने लगे हों।

4 दूसरी वजह, वे मसीही जितना जानते थे उसी में खुश थे। वे कुछ नया सीखने की कोशिश नहीं कर रहे थे और ना ही परमेश्‍वर के वचन का “ठोस आहार” लेने यानी उसकी गहरी बातें समझने की कोशिश कर रहे थे। (इब्रा. 5:11-14) ऐसा लगता है कि उनमें से कुछ मसीही अब भी मूसा का कानून मान रहे थे। इसलिए पौलुस ने उन्हें समझाया कि इस कानून के मुताबिक जो बलिदान चढ़ाए जाते थे, उनसे उनके पाप पूरी तरह माफ नहीं हो सकते। इसी वजह से उस कानून को “रद्द कर दिया गया” है। फिर पौलुस ने उन्हें कुछ गहरी बातें सिखायीं। उसने उन मसीहियों को याद दिलाया कि यीशु के बलिदान की वजह से उन्हें एक “बेहतर आशा” मिली है, जिससे वे सच में “परमेश्‍वर के करीब” आ सकते हैं।—इब्रा. 7:18, 19.

5. हमें किस इंतज़ाम को समझने की ज़रूरत है और ऐसा करने से हमें क्या फायदा होगा?

5 पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को बताया कि अब वे जिस तरह यहोवा की उपासना कर रहे हैं, वह क्यों पहले से बेहतर है। उसने कहा कि यहूदी जिस तरह मूसा के कानून के हिसाब से उपासना करते थे, वह ‘बस आनेवाली बातों की छाया थी, मगर हकीकत मसीह की है।’ (कुलु. 2:17) किसी चीज़ की छाया देखकर हमें बस मोटे तौर पर अंदाज़ा हो जाता है कि वह चीज़ क्या होगी। वैसे ही यहूदी जिस तरह उपासना करते थे, वह बेहतर तरीके से उपासना करने के इंतज़ाम (यानी यहोवा के महान मंदिर) की एक छाया थी। यहोवा ने यह इंतज़ाम इसलिए किया है ताकि हमें अपने पापों की माफी मिल सके और हम उस तरह उपासना कर सकें जैसे वह चाहता है। इसलिए इस इंतज़ाम को समझना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है। तो फिर आइए यह जानने की कोशिश करें कि वह “छाया” (पुराने ज़माने में यहूदियों का उपासना करने का तरीका) क्या है और “हकीकत” (मसीहियों का उपासना करने का तरीका) क्या है, जिसके बारे में इब्रानियों की किताब में बताया गया है। ऐसा करने से हम और अच्छी तरह जान पाएँगे कि महान मंदिर क्या है और यह हमारे लिए क्या मायने रखता है।

पवित्र डेरा

6. पवित्र डेरे में क्या होता था?

6 छाया। पौलुस ने उस पवित्र डेरे को ध्यान में रखकर बात की, जिसे मूसा ने ईसा पूर्व 1512 में बनवाया था। (“छाया—हकीकत” नाम का चार्ट देखें।) यह पवित्र डेरा एक तंबू था जहाँ इसराएली यहोवा को बलिदान चढ़ाने और उसकी उपासना करने के लिए आते थे। इस डेरे को ‘भेंट का तंबू’ भी कहा जाता था। (निर्ग. 29:43-46) जब इसराएली वीराने में एक जगह से दूसरी जगह जाते थे, तो इसे भी साथ ले जाते थे। उन्होंने करीब 500 साल तक उसमें उपासना की, जब तक कि यरूशलेम में मंदिर नहीं बन गया। (निर्ग. 25:8, 9; गिन. 9:22) लेकिन यह डेरा एक ऐसी बेहतर चीज़ की निशानी था जो मसीहियों के लिए होती।

7. महान मंदिर कब वजूद में आया?

7 हकीकत। पवित्र डेरा ‘स्वर्ग की चीज़ों की छाया’ था और यह यहोवा के महान मंदिर की निशानी था। पौलुस ने कहा, “यह तंबू [या, डेरा] आज के समय के लिए एक नमूना है।” (इब्रा. 8:5; 9:9) इसका मतलब, जब पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को चिट्ठी लिखी, तब तक महान मंदिर मसीहियों के लिए एक हकीकत बन चुका था। यह मंदिर ईसवी सन्‌ 29 में वजूद में आया। उस साल यीशु का बपतिस्मा हुआ, उसका पवित्र शक्‍ति से अभिषेक किया गया और वह इस मंदिर में यहोवा के “महान महायाजक” के तौर पर सेवा करने लगा। cइब्रा. 4:14; प्रेषि. 10:37, 38.

महायाजक

8-9. इब्रानियों 7:23-27 के मुताबिक इसराएलियों के महायाजकों और महान महायाजक यीशु में क्या फर्क है?

8 छाया। महायाजक लोगों की तरफ से यहोवा के सामने जाता था। इसराएलियों का पहला महायाजक हारून था। उसे यहोवा ने तब ठहराया था जब पवित्र डेरे का उद्‌घाटन किया गया था। लेकिन जैसे पौलुस ने बताया, “एक-के-बाद-एक कइयों को याजक बनना होता था, क्योंकि मौत उन्हें याजक के पद पर नहीं रहने देती थी।” d(इब्रानियों 7:23-27 पढ़िए।) इसके अलावा अपरिपूर्ण होने की वजह से महायाजकों को अपने पापों के लिए भी बलिदान चढ़ाने होते थे। इससे पता चलता है कि इसराएलियों के महायाजकों और हमारे महान महायाजक यीशु में कितना बड़ा फर्क है!

9 हकीकत। हमारा महायाजक यीशु मसीह ‘सच्चे तंबू का सेवक है जिसे किसी इंसान ने नहीं बल्कि यहोवा ने खड़ा किया है।’ (इब्रा. 8:1, 2) पौलुस ने समझाया कि “[यीशु] हमेशा तक ज़िंदा रहता है इसलिए उसका याजकपद भी हमेशा तक बना रहता है और उसकी जगह कोई और नहीं लेता।” उसने यह भी बताया कि यीशु ‘बेदाग है और पापियों जैसा नहीं है।’ यीशु ने कोई पाप नहीं किया था, इसलिए इसराएल के महायाजकों की तरह उसे “हर दिन बलिदान चढ़ाने की ज़रूरत नहीं” थी। अब आइए देखें कि वेदी और उस पर जो बलिदान चढ़ाए जाते थे, वे किस बात की छाया थे।

वेदियाँ और बलिदान

10. ताँबे की वेदी पर जो बलिदान चढ़ाए जाते थे, वे किस चीज़ की निशानी थे?

10 छाया। पवित्र डेरे के बाहर ताँबे की एक वेदी हुआ करती थी जिस पर यहोवा के लिए जानवरों का बलिदान चढ़ाया जाता था। (निर्ग. 27:1, 2; 40:29) लेकिन उन बलिदानों से लोगों को अपने पापों के लिए पूरी तरह माफी नहीं मिलती थी। (इब्रा. 10:1-4) उस वेदी पर एक-के-बाद-एक जानवरों के जो बलिदान चढ़ाए जाते थे, वे उस बलिदान की निशानी थे जिससे इंसानों को अपने पापों के लिए पूरी तरह माफी मिल जाती।

11. यीशु ने किस वेदी पर अपना बलिदान चढ़ाया? (इब्रानियों 10:5-7, 10)

11 हकीकत। यीशु जानता था कि यहोवा ने उसे धरती पर इसलिए भेजा है कि वह इंसानों के लिए फिरौती के रूप में अपनी जान दे। (मत्ती 20:28) बपतिस्मा लेकर उसने ज़ाहिर किया कि वह यहोवा की यह मरज़ी पूरी करना चाहता है। (यूह. 6:38; गला. 1:4) यीशु ने जिस वेदी पर अपना बलिदान चढ़ाया, वह यहोवा की “मरज़ी” को दर्शाती है और उसकी मरज़ी थी कि उसका बेटा अपना परिपूर्ण इंसानी शरीर बलिदान कर दे। यीशु ने “एक ही बार हमेशा के लिए” अपना जीवन बलिदान कर दिया, ताकि जो कोई मसीह पर विश्‍वास करे, उसके पापों का प्रायश्‍चित हो यानी उन्हें हमेशा के लिए ढक दिया जाए। (इब्रानियों 10:5-7, 10 पढ़िए।) अब आइए पवित्र डेरे के अंदर चलें और इसकी कुछ और बातों पर ध्यान दें।

पवित्र और परम पवित्र भाग

12. (क) डेरे के पवित्र भाग में कौन जा सकता था? (ख) परम-पवित्र भाग में कौन जा सकता था?

12 छाया। पवित्र डेरा और आगे चलकर यरूशलेम में जो मंदिर बनाए गए, उनमें काफी कुछ एक जैसा ही था। उनके अंदर दो भाग थे, एक “पवित्र जगह” और दूसरा ‘परम-पवित्र भाग।’ इन दोनों भागों के बीच एक परदा था जिस पर कढ़ाई की गयी थी। (इब्रा. 9:2-5; निर्ग. 26:31-33) पवित्र भाग में सोने की दीवट, धूप जलाने के लिए एक वेदी और नज़राने की रोटी की मेज़ हुआ करती थी। सिर्फ वे लोग ही इस भाग में पवित्र सेवा कर सकते थे, जिनका ‘याजकों के नाते अभिषेक किया गया’ था। (गिन. 3:3, 7, 10) परम-पवित्र भाग में करार का संदूक था जो सोने से मढ़ा हुआ था और वह यहोवा की मौजूदगी की निशानी था। (निर्ग. 25:21, 22) सिर्फ महायाजक को परदे के उस पार यानी परम-पवित्र भाग में जाने की इजाज़त थी। वह साल में एक बार प्रायश्‍चित के दिन वहाँ जाता था। (लैव्य. 16:2, 17) हर साल वह जानवरों का खून लेकर परम-पवित्र भाग में जाता था, ताकि अपने पापों के लिए और पूरे राष्ट्र के पापों के लिए प्रायश्‍चित कर सके। आगे चलकर यहोवा ने अपनी पवित्र शक्‍ति से ज़ाहिर किया कि पवित्र डेरे के ये भाग किन बातों की निशानी हैं।—इब्रा. 9:6-8. e

13. (क) डेरे का पवित्र भाग किस बात को दर्शाता है? (ख) परम-पवित्र भाग किसे दर्शाता है?

13 हकीकत। मसीह के कुछ चेलों का पवित्र शक्‍ति से अभिषेक किया गया है और उनका यहोवा के साथ एक खास रिश्‍ता है। ये 1,44,000 जन स्वर्ग में यीशु के साथ याजकों के तौर पर सेवा करेंगे। (प्रका. 1:6; 14:1) जब वे धरती पर ही होते हैं, तभी परमेश्‍वर पवित्र शक्‍ति से उनका अभिषेक करके उन्हें अपने बेटों के नाते गोद लेता है। डेरे का पवित्र भाग परमेश्‍वर के साथ उनके इसी खास रिश्‍ते को दर्शाता है। (रोमि. 8:15-17) डेरे का परम-पवित्र भाग स्वर्ग को दर्शाता है जहाँ यहोवा निवास करता है। पवित्र और परम पवित्र भाग के बीच जो ‘परदा’ था, वह यीशु के इंसानी शरीर की निशानी है। इस शरीर के साथ यीशु महायाजक के तौर पर स्वर्ग में दाखिल नहीं हो सकता था। जब यीशु ने अपना शरीर इंसानों के लिए बलिदान किया, तो उसने सभी अभिषिक्‍त मसीहियों के लिए स्वर्ग में जाने का रास्ता खोल दिया। उन्हें भी स्वर्ग में अपना इनाम पाने के लिए अपना इंसानी शरीर त्यागना होगा। (इब्रा. 10:19, 20; 1 कुरिं. 15:50) ज़िंदा किए जाने के बाद यीशु महान मंदिर के परम-पवित्र भाग में गया जहाँ आगे चलकर सभी अभिषिक्‍त मसीही उसके साथ होंगे।

14. इब्रानियों 9:12, 24-26 के मुताबिक यहोवा के महान मंदिर में उसकी उपासना करने का इंतज़ाम क्यों बेहतर है?

14 यहोवा ने फिरौती बलिदान के आधार पर शुद्ध उपासना के लिए जो इंतज़ाम किया है, उसमें यीशु महायाजक है और यह एक बेहतर इंतज़ाम है। वह क्यों? इसराएल में महायाजक जानवरों का खून लेकर इंसानों के बनाए परम-पवित्र भाग में जाता था। मगर यीशु ‘स्वर्ग में’ गया जो सबसे पवित्र जगह है, ताकि वह यहोवा के सामने हाज़िर हो सके। उसने हमारी खातिर अपने परिपूर्ण जीवन की कीमत (धरती पर हमेशा जीने का अपना हक) यहोवा के सामने पेश की, ताकि ‘अपने बलिदान से हमारे पाप मिटा दे।’ (इब्रानियों 9:12, 24-26 पढ़िए।) यीशु की कुरबानी ही ऐसा बलिदान है, जिससे इंसानों के पाप हमेशा के लिए मिटाए जा सकते हैं। आज हम सब यहोवा के महान मंदिर में उसकी उपासना कर सकते हैं, फिर चाहे हमारी आशा स्वर्ग में जीने की हो या धरती पर। आइए इस बारे में और जानें।

आँगन

15. पवित्र डेरे के आँगन में कौन सेवा करते थे?

15 छाया। पवित्र डेरे का एक आँगन भी था जिसके चारों तरफ कपड़े की दीवार-सी बनायी गयी थी। इस आँगन में याजक सेवा किया करते थे। यहाँ होम-बलि चढ़ाने के लिए ताँबे की एक बड़ी-सी वेदी थी। आँगन में ताँबे का एक हौद भी था, जिसमें पानी भरा रहता था। पवित्र सेवा करने से पहले याजक इसी पानी से अपने हाथ-पैर धोकर खुद को शुद्ध करते थे। (निर्ग. 30:17-20; 40:6-8) लेकिन आगे चलकर जो मंदिर बनाए गए, उनमें एक बाहरी आँगन भी था। इस आँगन में वे लोग भी आ सकते थे और परमेश्‍वर की उपासना कर सकते थे, जो याजक नहीं थे।

16. महान मंदिर के आँगनों में कौन सेवा करते हैं?

16 हकीकत। बचे हुए अभिषिक्‍त मसीही स्वर्ग जाकर यीशु के साथ याजकों के नाते सेवा करेंगे। लेकिन स्वर्ग जाने से पहले वे धरती पर महान मंदिर के भीतरी आँगन में वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। आँगन में जो पानी का हौद था, वह उन्हें और हम सभी मसीहियों को एक ज़रूरी बात याद दिलाता है। वह यह कि हमें नैतिक तौर पर और उपासना के मामले में शुद्ध रहना है। तो फिर मसीह के अभिषिक्‍त भाइयों का साथ देनेवाली “बड़ी भीड़” कहाँ सेवा कर रही है? प्रेषित यूहन्‍ना ने दर्शन में देखा कि वह “राजगद्दी के सामने” खड़ी है। इसका मतलब वह धरती पर मंदिर के बाहरी आँगन में ‘दिन-रात यहोवा की पवित्र सेवा कर रही है।’ (प्रका. 7:9, 13-15) हम कितने एहसानमंद हैं कि यहोवा ने हम सबको अपने महान मंदिर में उसकी उपासना करने के लिए एक जगह दी है!

यहोवा की उपासना करने का खास मौका

17. हमें यहोवा के सामने कौन-से बलिदान चढ़ाने का खास मौका मिला है?

17 आज हम सभी मसीहियों के पास यहोवा को बलिदान चढ़ाने का एक खास मौका है। हम परमेश्‍वर के राज के कामों में अपना समय और साधन लगा सकते हैं और खूब मेहनत कर सकते हैं। जैसे प्रेषित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों से कहा था, हम “परमेश्‍वर को तारीफ का बलिदान हमेशा चढ़ा” सकते हैं यानी “अपने होठों का फल जो उसके नाम का सरेआम ऐलान करते हैं।” (इब्रा. 13:15) जब हम यहोवा को सबसे अच्छा बलिदान चढ़ाते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हमें उसकी उपासना करने का जो खास मौका मिला है, उसकी हम बहुत कदर करते हैं।

18. इब्रानियों 10:22-25 के मुताबिक हम सब के लिए क्या करना ज़रूरी है और हमें क्या नहीं भूलना चाहिए?

18 इब्रानियों 10:22-25 पढ़िए। इब्रानियों को लिखी अपनी चिट्ठी के आखिर में पौलुस ने उपासना से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में बताया जिन्हें करना हम सबके लिए बहुत ज़रूरी है। जैसे, यहोवा से प्रार्थना करना, अपनी आशा का सरेआम ऐलान करना, मंडली की सभाओं में एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना और ‘जैसे-जैसे यहोवा का दिन नज़दीक आ रहा है और भी ज़्यादा एक-दूसरे का हौसला बढ़ाना।’ यह सब करना बहुत ज़रूरी है। इसलिए प्रकाशितवाक्य की किताब के आखिर में यहोवा के एक स्वर्गदूत ने दो बार कहा, “परमेश्‍वर की उपासना कर।” (प्रका. 19:10; 22:9) हमने यहोवा के महान मंदिर के बारे में जो गहरी बातें सीखी हैं, आइए हम उन्हें कभी ना भूलें और ना ही यह भूलें कि हमें अपने महान परमेश्‍वर की उपासना करने की कितनी अनोखी आशीष मिली है!

गीत 88 मुझे अपनी राहें सिखा

a परमेश्‍वर के वचन में जो गहरी बातें बतायी गयी हैं, उनमें से एक यहोवा के महान मंदिर के बारे में है। यह मंदिर क्या है? इब्रानियों की किताब में इस मंदिर के बारे में जो बारीकियाँ बतायी गयी हैं, इस लेख में उन्हीं के बारे में समझाया जाएगा। हमारी दुआ है कि इसका अध्ययन करने से इस बात के लिए आपकी कदर बढ़ जाए कि आपको यहोवा की उपासना करने का खास मौका मिला है।

b इब्रानियों की किताब की एक झलक देखने के लिए jw.org पर दिया वीडियो इब्रानियों की किताब पर एक नज़र  देखें।

c मसीही यूनानी शास्त्र में सिर्फ इब्रानियों की किताब में यीशु को महायाजक कहा गया है।

d एक किताब में बताया गया है कि ईसवी सन्‌ 70 में जब यरूशलेम के मंदिर का नाश किया गया था, तब तक इसराएल में शायद 84 महायाजक रह चुके होंगे।

e प्रायश्‍चित के दिन महायाजक जो-जो काम करता था, वे किन बातों की निशानी थे, यह जानने के लिए jw.org पर पवित्र डेरा  नाम का अँग्रेज़ी वीडियो देखें।