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अध्ययन लेख 7

गीत 51 हम यहोवा को समर्पित हुए!

नाज़ीरों से सीखें अनमोल सबक

नाज़ीरों से सीखें अनमोल सबक

“वह जितने दिनों के लिए मन्‍नत मानता है उतने दिन वह यहोवा के लिए पवित्र रहता है।”​—गिन. 6:8.

क्या सीखेंगे?

नाज़ीरों की मिसाल से हम सीखेंगे कि यहोवा की सेवा करने के लिए हम कैसे खुशी-खुशी त्याग कर सकते हैं और हिम्मत से काम ले सकते हैं।

1. पुराने ज़माने से ही यहोवा के उपासकों में क्या बात साफ दिखायी देती है?

 क्या आप यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को अनमोल समझते हैं? बेशक। पुराने ज़माने से ही ऐसे बहुत से लोग रहे हैं जो आपकी तरह ही महसूस करते हैं। (भज. 104:33, 34) उन्होंने यहोवा की उपासना करने के लिए बहुत-से त्याग भी किए। प्राचीन इसराएल में ऐसे ही कुछ लोग थे जिन्हें नाज़ीर कहा जाता था। वे कौन थे और उनसे हम क्या सीख सकते हैं?

2. (क) किन लोगों को नाज़ीर कहा जाता था? (गिनती 6:1, 2) (ख) कुछ इसराएली नाज़ीर होने की मन्‍नत क्यों मानते थे?

2 शब्द “नाज़ीर” इब्रानी भाषा से निकला है, जिसका मतलब है “चुना गया,” “अलग किया गया” या “समर्पित किया गया।” इस शब्द से उन इसराएलियों का जज़्बा साफ पता चलता है जो खास तरीके से यहोवा की सेवा करने के लिए कुछ त्याग करते थे। मूसा के कानून के हिसाब से एक आदमी या औरत कुछ वक्‍त तक नाज़ीर की ज़िंदगी जीने के लिए यहोवा से खास मन्‍नत मान सकता था। a (गिनती 6:1, 2 पढ़िए।) वह खास मन्‍नत मानने की वजह से एक नाज़ीर को कुछ ऐसी हिदायतें माननी होती थीं जो बाकी इसराएलियों को मानने की ज़रूरत नहीं थी। तो एक इसराएली नाज़ीर होने की मन्‍नत क्यों मानता था? क्योंकि वह यहोवा से बहुत प्यार करता था और यहोवा ने उसके लिए जो कुछ किया था, उसकी वह दिल से कदर करता था।​—व्यव. 6:5; 16:17.

3. परमेश्‍वर के लोग आज भी किस तरह नाज़ीरों जैसा जज़्बा रखते हैं?

3 लेकिन जब “मसीह का कानून” आया, तब मूसा का कानून रद्द हो गया और उसके साथ नाज़ीर होने का इंतज़ाम भी खत्म हो गया। (गला. 6:2; रोमि. 10:4) लेकिन परमेश्‍वर के लोग आज भी नाज़ीरों जैसा जज़्बा रखते हैं। वे अपने पूरे दिल, पूरी जान, पूरे दिमाग और पूरी ताकत से उसकी सेवा करना चाहते हैं। (मर. 12:30) तभी वे अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करते हैं और खुशी-खुशी मानो उससे एक मन्‍नत मानते हैं। यह मन्‍नत पूरी करने के लिए उन्हें यहोवा की मरज़ी के हिसाब से जीना होता है और कुछ त्याग करने होते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि नाज़ीर किस तरह अपनी मन्‍नत पूरी करते थे और हम उनसे क्या सीख सकते हैं। b​—मत्ती 16:24.

त्याग करने के लिए तैयार रहें

4. गिनती 6:3, 4 के मुताबिक नाज़ीरों को किन चीज़ों से दूर रहना होता था?

4 गिनती 6:3, 4 पढ़िए। नाज़ीरों को किसी भी किस्म की शराब नहीं पीनी थी और ना ही अंगूर की बेल की उपज से बनी कोई भी चीज़ खानी थी, जैसे अंगूर और किशमिश। लेकिन बाकी इसराएली यह सब चीज़ें खाते-पीते थे और इनका मज़ा लेते थे। और ऐसा करना गलत नहीं था। बाइबल में भी लिखा है, ‘दाख-मदिरा से इंसान का दिल मगन होता है,’ क्योंकि यह परमेश्‍वर की तरफ से एक तोहफा है। (भज. 104:14, 15) फिर भी नाज़ीर खुशी-खुशी इन सब चीज़ों से दूर रहते थे। c

क्या आप भी नाज़ीरों की तरह त्याग करने के लिए तैयार हैं? (पैराग्राफ 4-6)


5. भाई मादियान और उनकी पत्नी ने कौन-से त्याग करने का फैसला किया और क्यों?

5 नाज़ीरों की तरह यहोवा की और ज़्यादा सेवा करने के लिए, हम भी कुछ त्याग करते हैं। ज़रा भाई मैडियान और उनकी पत्नी मारसेला d के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वे दोनों बहुत आराम की ज़िंदगी जी रहे थे। भाई के पास एक अच्छी-खासी नौकरी थी और उनका एक बढ़िया-सा घर था। लेकिन वे यहोवा की और ज़्यादा सेवा करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वे कुछ फेरबदल करेंगे। वे कहते हैं, “हम अपने खर्चे कम करने लगे। हम एक छोटे-से घर में जाकर रहने लगे और हमने अपनी कार बेच दी।” ऐसा नहीं था कि भाई मैडियान और बहन मारसेला को ये त्याग करने ही थे। उन्होंने अपनी मरज़ी से ऐसा किया, ताकि वे बढ़-चढ़कर यहोवा की सेवा कर सकें। उन्होंने जो फैसले किए उससे वे बहुत खुश हैं।

6. आज यहोवा के लोग क्यों त्याग करते हैं? (तसवीर भी देखें।)

6 आज यहोवा के लोग खुशी-खुशी त्याग करते हैं, ताकि वे राज से जुड़े कामों में ज़्यादा वक्‍त बिता सकें। (1 कुरिं. 9:3-6) यहोवा ये त्याग करने की माँग नहीं करता और भाई-बहन जिन चीज़ों का त्याग करते हैं, वे अपने आप में गलत नहीं हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग अपनी पसंद की नौकरी नहीं करते या घर नहीं बनाते या कोई पालतू जानवर नहीं रखते। कई लोगों ने फैसला किया है कि वे कुछ समय तक शादी नहीं करेंगे या परिवार नहीं बढ़ाएँगे। वहीं कुछ लोग फैसला करते हैं कि वे ऐसी जगह जाकर सेवा करेंगे जहाँ ज़्यादा ज़रूरत है, जबकि इस वजह से उन्हें अपने परिवारवालों और दोस्तों से दूर रहना पड़ता है। वे खुशी-खुशी यह सब त्याग करते हैं, क्योंकि वे दिलो-जान से यहोवा की सेवा करना चाहते हैं। यकीन मानिए, आप यहोवा की सेवा करने के लिए छोटे या बड़े जो भी त्याग करते हैं, उनकी वह बहुत कदर करता है।​—इब्रा. 6:10.

दूसरों से अलग नज़र आने के लिए तैयार रहें

7. एक नाज़ीर को अपनी मन्‍नत पूरी करने के लिए किस मुश्‍किल का सामना करना पड़ता था? (गिनती 6:5) (तसवीर भी देखें।)

7 गिनती 6:5 पढ़िए। नाज़ीर जब मन्‍नत मानते थे, तो उसके मुताबिक उन्हें बाल नहीं काटने होते थे। इस तरह वे यह दर्शाते थे कि वे पूरी तरह यहोवा के अधीन हैं। अगर वे लंबे समय के लिए मन्‍नत मानते थे, तो उनके बाल बहुत बढ़ जाते थे और दूसरे भी यह साफ देख सकते थे। जो लोग नाज़ीरों की इज़्ज़त करते थे, वे उनका साथ देते थे। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्हें यह बात पसंद नहीं थी, इसलिए वे उनका साथ नहीं देते थे। ऐसा ही कुछ भविष्यवक्‍ता आमोस के दिनों में हुआ। जिन इसराएलियों ने यहोवा की उपासना करनी छोड़ दी थी, वे “नाज़ीरों को दाख-मदिरा पिलाते” थे, क्योंकि शायद वे चाहते थे कि नाज़ीरों की मन्‍नत पूरी ना हो। (आमो. 2:12) इस सबका सामना करना नाज़ीरों के लिए आसान नहीं होता होगा। उन्हें बहुत हिम्मत से काम लेना पड़ता होगा, ताकि वे दूसरों से अलग भी दिखायी दें और अपनी मन्‍नत भी पूरी कर सकें।

जो नाज़ीर हर हाल में अपनी मन्‍नत मानना चाहता था, वह दूसरों से अलग नज़र आने के लिए तैयार था (पैराग्राफ 7)


8. बेन्यामिन के अनुभव में किस बात से आपका हौसला बढ़ा?

8 कभी-कभी दूसरों से अलग नज़र आना आसान नहीं होता। शायद हम शर्मीले स्वभाव के हों या दूसरों से डर जाते हों। लेकिन हम यहोवा की मदद से हिम्मत से काम ले सकते हैं। ज़रा नॉर्वे में रहनेवाले हमारे एक छोटे भाई बेन्यामिन पर ध्यान दीजिए। वह 10 साल का है। एक बार उसके स्कूल में एक कार्यक्रम रखा गया। दरअसल रूस और यूक्रेन के बीच जो युद्ध चल रहा है, उसमें यूक्रेन का साथ देने के लिए यह कार्यक्रम हो रहा था। सभी बच्चों से कहा गया कि वे यूक्रेन के झंडे के रंग के कपड़े पहनें और एक गीत गाएँ। बेन्यामिन समझदार था, इसलिए वह दूर जाकर खड़ा हो गया ताकि उसे इस कार्यक्रम में हिस्सा ना लेना पड़े। लेकिन उसकी टीचर ने उसे देख लिया और ज़ोर से आवाज़ लगायी, “बेन्यामिन जल्दी से यहाँ आओ और सबके साथ खड़े हो जाओ। हम तुम्हारी वजह से ही रुके हुए हैं।” वह हिम्मत करके टीचर के पास गया और कहा, “मैं किसी का पक्ष नहीं लेता और राजनीति से जुड़े किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेता। कई यहोवा के साक्षी तो जेलों में भी हैं, क्योंकि वे युद्ध में हिस्सा नहीं लेते।” टीचर उसकी बात मान गयी और उसे कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए नहीं कहा। लेकिन फिर उसकी क्लास के बच्चे उससे पूछने लगे कि वह क्यों नहीं आ रहा है। बेन्यामिन बहुत डर गया और उसकी आँखें भर आयीं। फिर भी उसने हिम्मत करके सब बच्चों को बताया कि वह क्यों कार्यक्रम में नहीं आ रहा है। बाद में बेन्यामिन ने अपने मम्मी-पापा को बताया कि यहोवा ने ही उसकी मदद की, तभी वह दूसरों को बता पाया कि वह क्या मानता है।

9. हम किस तरह यहोवा का दिल खुश कर सकते हैं?

9 हम यहोवा की मरज़ी के हिसाब से जीना चाहते हैं, इसलिए हम दुनिया के लोगों से अलग नज़र आते हैं। इस वजह से कई बार लोगों को यह बताने के लिए भी हिम्मत से काम लेना होता है कि हम यहोवा के साक्षी हैं, फिर चाहे हम स्कूल में हो या काम की जगह पर। इसके अलावा दुनिया के लोगों की सोच और उनके तौर-तरीके बद-से-बदतर होते जा रहे हैं, इसलिए शायद बाइबल के सिद्धांतों के हिसाब से जीना और लोगों को खुशखबरी सुनाना हमारे लिए मुश्‍किल हो जाए। (2 तीमु. 1:8; 3:13) लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि जब हम हिम्मत से यहोवा की सेवा करते हैं और दुनिया के लोगों से अलग नज़र आते हैं, तो हम उसका “दिल खुश कर” रहे होते हैं।​—नीति. 27:11; मला. 3:18.

यहोवा को ज़िंदगी में पहली जगह दें

10. गिनती 6:6, 7 में दी हिदायत मानना एक नाज़ीर के लिए कब मुश्‍किल होता होगा?

10 गिनती 6:6, 7 पढ़िए। एक नाज़ीर किसी लाश के करीब नहीं जा सकता था। कुछ लोगों को शायद लगे कि इसमें तो कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन ज़रा सोचिए, जब एक नाज़ीर के किसी अपने की मौत हो जाती होगी, तो उसके लिए यह हिदायत मानना कितना मुश्‍किल होता होगा। इसके अलावा उस ज़माने में यह दस्तूर था कि जब किसी की मौत हो जाती थी, तो उसके अपने लाश के पास ही रहते थे। (यूह. 19:39, 40; प्रेषि. 9:36-40) लेकिन नाज़ीर अपनी मन्‍नत की वजह से यह दस्तूर नहीं मान सकते थे। इतनी दुख की घड़ी में भी वे अपनी मन्‍नत नहीं तोड़ते थे। इस तरह वे यहोवा के वफादार रहते थे। यहोवा अपने इन वफादार सेवकों को ज़रूर हिम्मत और ताकत देता होगा ताकि वे ऐसे मुश्‍किल हालात में खुद को सँभाल पाएँ।

11. परिवार के मामले में कोई फैसला लेते वक्‍त एक मसीही को किस बात का ध्यान रखना चाहिए? (तसवीर भी देखें।)

11 हम मसीहियों ने समर्पण करके यहोवा से जो मन्‍नत मानी है, उसे हम हलके में नहीं लेते। अपने परिवार के मामले में भी जब हमें कोई फैसला लेना होता है, तो हम इस मन्‍नत को हमेशा ध्यान में रखते हैं। जैसे शास्त्र में बताया गया है, हम अपने परिवारवालों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। लेकिन हम कभी-भी उनकी इच्छाएँ पूरी करने के लिए यहोवा की मरज़ी को ताक पर नहीं रख देते। (मत्ती 10:35-37; 1 तीमु. 5:8) इस वजह से हो सकता है, कई बार हमारे परिवारवाले हमसे नाराज़ हो जाएँ, फिर भी हम यहोवा को खुश करने की कोशिश करते हैं।

क्या आप मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी अपनी इच्छा पूरी करने के बजाय यहोवा की मरज़ी पूरी करने को तैयार हैं? (पैराग्राफ 11) e


12. भाई आलैक्सांड्रू के परिवार में जब मुश्‍किल हालात खड़े हो गए, तब उन्होंने क्या किया और क्या नहीं किया?

12 ज़रा भाई आलैक्सांड्रू और उनकी पत्नी डोरिना के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उन दोनों ने एक साल तक बाइबल का अध्ययन किया। फिर डोरिना ने अध्ययन करना बंद कर दिया और वे चाहती थीं कि उनके पति भी अध्ययन करना बंद कर दें। लेकिन भाई ने बड़े प्यार से उन्हें समझाया कि वे ऐसा नहीं करेंगे। यह बात डोरिना को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने बहुत कोशिश की कि वे अध्ययन करना बंद कर दें। भाई आलैक्सांड्रू बताते हैं कि उन्होंने यह समझने की कोशिश की कि उनकी पत्नी क्यों इस तरह बरताव कर रही है। वे कभी-कभी भाई को बहुत बुरा-भला कहती थीं और बड़ी रुखायी से जवाब देती थीं। यह सब सहना भाई के लिए आसान नहीं था। कई बार उन्हें लगता था कि उन्हें भी अध्ययन बंद कर देना चाहिए। पर उन्होंने हार नहीं मानी और वे यहोवा को ज़िंदगी में पहली जगह देते रहे। इस दौरान वे अपनी पत्नी से बहुत प्यार से पेश आए और उसकी इज़्ज़त करते रहे। उनके इस अच्छे व्यवहार की वजह से डोरिना ने फिर से बाइबल का अध्ययन करना शुरू कर दिया और यहोवा की साक्षी बन गयीं।​—jw.org पर “सच्चाई ज़िंदगी सँवार देती है” शृंखला में दिया वीडियो आलैक्सांड्रू और डोरिना वकार: प्यार सब्र रखता है और कृपा करता है  देखें।

13. हम अपने परिवार के लिए और यहोवा के लिए अपना प्यार कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?

13 परिवार की शुरुआत यहोवा ने ही की है और वह चाहता है कि परिवार में सभी खुश रहें। (इफि. 3:14, 15) अगर हम सच में खुश रहना चाहते हैं, तो हमें उस तरह से काम करना होगा जैसे यहोवा चाहता है। यहोवा जानता है कि आप अपने परिवारवालों की देखभाल करना चाहते हैं, उनके साथ प्यार और इज़्ज़त से पेश आना चाहते हैं और साथ ही आप उसकी सेवा भी करना चाहते हैं, इसलिए कई बार आपको कुछ त्याग करने पड़ते हैं। यकीन मानिए, आप जो भी त्याग करते हैं, यहोवा उनकी बहुत कदर करता है।​—रोमि. 12:10.

नाज़ीरों जैसा जज़्बा रखने के लिए एक-दूसरे का हौसला बढ़ाएँ

14. हमें खासकर किनका अपनी बातों से हौसला बढ़ाना चाहिए?

14 जो कोई यहोवा की उपासना करना चाहता है, वह खुशी-खुशी त्याग करने के लिए तैयार रहता है, क्योंकि वह उससे प्यार करता है। लेकिन ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता। तो हम ऐसा क्या कर सकते हैं ताकि हम सबमें यह जज़्बा बना रहे? हम अपनी बातों से एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकते हैं। (अय्यू. 16:5) क्या आप मंडली में कुछ ऐसे भाई-बहनों को जानते हैं जो यहोवा की और ज़्यादा सेवा करने के लिए अपना जीवन सादा करने की कोशिश कर रहे हैं? या फिर क्या आप ऐसे नौजवानों को जानते हैं जो मुश्‍किलों में भी हिम्मत से काम लेते हैं और इस तरह अपने स्कूल में दूसरों से अलग नज़र आते हैं? या क्या कुछ ऐसे बाइबल विद्यार्थी या भाई-बहन हैं जिनके परिवारवाले उनका विरोध करते हैं, फिर भी वे यहोवा के स्तरों के हिसाब से जीने की कोशिश कर रहे हैं? सच में, ये प्यारे भाई-बहन बहुत हिम्मत से काम लेते हैं और कई त्याग करते हैं। तो आइए हम हर मौके पर उनका हौसला बढ़ाते रहें और उन्हें यकीन दिलाते रहें कि हम उनके इस जज़्बे की बहुत कदर करते हैं।​—फिले. 4, 5, 7.

15. कुछ भाई-बहन पूरे समय के सेवकों की कैसे मदद करते हैं?

15 हम अपना वक्‍त देकर या पैसों से भी भाई-बहनों की मदद कर सकते हैं, खासकर पूरे समय के सेवकों की। (नीति. 19:17; इब्रा. 13:16) श्रीलंका में रहनेवाली एक बुज़ुर्ग बहन ने कुछ ऐसा ही किया। उन्होंने देखा कि पैसों की तंगी की वजह से दो जवान पायनियर बहनों के लिए अपनी सेवा जारी रखना मुश्‍किल हो रहा है। वे दिल से उनकी मदद करना चाहती थीं। इसलिए जब उनकी पेंशन बढ़ी, तो उन्होंने फैसला किया कि वे हर महीने कुछ पैसा उन बहनों को देंगी ताकि वे अपने फोन का बिल भर सकें। उस बुज़ुर्ग बहन ने क्या ही बढ़िया जज़्बा दिखाया!

16. नाज़ीरों के इंतज़ाम से हमें क्या पता चलता है?

16 पुराने ज़माने में जो लोग अपनी मरज़ी से नाज़ीर होने की मन्‍नत मानते थे, उनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। लेकिन इस इंतज़ाम से हमें यहोवा के बारे में भी काफी कुछ पता चलता है। यहोवा को यकीन है कि हम दिल से उसे खुश करना चाहते हैं। और वह जानता है कि समर्पण करके हमने जो मन्‍नत मानी थी, उसे पूरा करने के लिए हम कोई भी त्याग करने को तैयार रहते हैं। उसने हमें यह खास मौका दिया है कि हम उसके लिए अपना प्यार ज़ाहिर करें। (नीति. 23:15, 16; मर. 10:28-30; 1 यूह. 4:19) नाज़ीरों के इंतज़ाम से यह भी पता चलता है कि हम यहोवा की सेवा करने के लिए जो भी त्याग करते हैं, उन पर वह ध्यान देता है और उनकी बहुत कदर करता है। तो आइए हम ठान लें कि हम हमेशा दिलो-जान से यहोवा की सेवा करते रहेंगे।

आपका जवाब क्या होगा?

  • नाज़ीरों ने कैसे दिखाया कि वे त्याग करने के लिए तैयार हैं और हिम्मत से काम लेते हैं?

  • नाज़ीरों जैसा जज़्बा रखने के लिए आज हम कैसे एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकते हैं?

  • नाज़ीरों के इंतज़ाम से हमें यहोवा के बारे में क्या पता चलता है?

गीत 124 हम निभाएँगे वफा

a कुछ लोगों को खुद यहोवा ने नाज़ीर होने के लिए चुना था। लेकिन ज़्यादातर इसराएली अपनी मरज़ी से कुछ वक्‍त के लिए नाज़ीर होने की मन्‍नत मानते थे।​—“ नाज़ीर जिन्हें यहोवा ने चुना था” नाम का बक्स देखें।

b हमारे कुछ प्रकाशनों में नाज़ीरों की तुलना पूरे समय के सेवकों से की गयी है। लेकिन इस लेख में हम इस बात पर ध्यान देंगे कि किस तरह यहोवा के सभी  समर्पित सेवक नाज़ीरों जैसा जज़्बा रख सकते हैं।

c आम तौर पर देखा जाए, तो शायद नाज़ीरों को अपनी मन्‍नत पूरी करने के लिए अलग से कोई खास काम करने की ज़रूरत नहीं होती थी।

d jw.org पर “यहोवा के साक्षियों के अनुभव” शृंखला में दिया लेख “कम में गुज़ारा करने से मिली ज़्यादा खुशी” पढ़ें।

e तसवीर के बारे में: एक नाज़ीर के परिवार में किसी की मौत हो गयी है और उसकी अर्थी जा रही है। वह नाज़ीर घर की छत से यह सब देख रहा है। वह अपनी मन्‍नत की वजह से अर्थी के पास नहीं जा सकता।