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अध्ययन लेख 8

गीत 123 यहोवा की हुकूमत कबूल करें

यहोवा की दिखायी राह पर चलते रहिए

यहोवा की दिखायी राह पर चलते रहिए

“मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूँ, . . . और जिस राह पर तुझे चलना चाहिए उसी पर ले चलता हूँ।”​—यशा. 48:17.

क्या सीखेंगे?

आज यहोवा किस तरह अपने लोगों को सही राह दिखाता है और उसकी दिखायी राह पर चलने से हमें कौन-सी आशीषें मिलती हैं?

1. उदाहरण देकर बताइए कि हमें क्यों यहोवा की दिखायी राह पर चलना चाहिए।

 सोचिए, आप एक घने जंगल में खो गए हैं। वह एक चट्टानी इलाका है, चारों तरफ खूँखार जंगली जानवर घूम रहे हैं और जगह-जगह जानलेवा कीड़े-मकोड़े और ज़हरीले पेड़-पौधे हैं। लेकिन अगर आपके साथ एक ऐसा व्यक्‍ति हो जो जानता है कि कहाँ-कहाँ खतरे हैं और उनसे कैसे बचना है, तो आप कितनी राहत महसूस करेंगे और उसके कितने एहसानमंद होंगे! यह दुनिया भी घने जंगल की तरह है जहाँ चारों तरफ खतरे-ही-खतरे हैं। अगर हम ज़रा-सा भी चूक गए, तो यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता खराब हो सकता है। लेकिन हमें घबराने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि हमारे साथ यहोवा है। वह हमें हर खतरे से बचाता है और उस रास्ते पर ले चलता है, जिस पर चलकर हम अपनी मंज़िल तक पहुँच सकते हैं यानी नयी दुनिया में जहाँ हम हमेशा के लिए जीएँगे।

2. यहोवा किस तरह हमें सही राह दिखाता है?

2 आज यहोवा किस तरह हमें राह दिखाता है? अपने वचन बाइबल के ज़रिए। इसके अलावा वह इंसानों के ज़रिए भी हमारी मदद करता है। जैसे यहोवा “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए हमें सही वक्‍त पर खाना देता है, ताकि हम सही फैसले ले सकें। (मत्ती 24:45) वह दूसरे काबिल आदमियों के ज़रिए भी हमें राह दिखाता है। जैसे, वह सर्किट निगरानों और मंडली के प्राचीनों के ज़रिए हमारा हौसला बढ़ाता है और हमें हिदायतें देता है, ताकि हम मुश्‍किलों का सामना कर सकें। इन आखिरी दिनों में यहोवा जिस तरह हमारी मदद कर रहा है, उसके लिए हम बहुत एहसानमंद हैं। इस वजह से हम यहोवा के दोस्त बने रहे पाते हैं और जीवन की राह पर चलते रह पाते हैं।

3. इस लेख में हम क्या जानेंगे?

3 लेकिन कभी-कभी हमें यहोवा से मिलनेवाली हिदायतें मानना मुश्‍किल लग सकता है, खासकर जब ये हिदायतें हमें अपरिपूर्ण आदमियों से मिलती हैं। हो सकता है, भाइयों से हमें जो हिदायत मिले वह हमें पसंद ना आए। या फिर हो सकता है कि वह हिदायत हमें सही ना लगे, इसलिए हम सोचें कि यह यहोवा की तरफ से तो नहीं हो सकती। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? हमें पूरा भरोसा रखना चाहिए कि उन भाइयों के ज़रिए यहोवा ही हमें हिदायतें दे रहा है और उन्हें मानने से हमारा ही भला होगा। इस लेख में हम जानेंगे कि हम अपना यह भरोसा कैसे बढ़ा सकते हैं। हम तीन बातों पर चर्चा करेंगे: (1) यहोवा ने पुराने ज़माने में कैसे अपने लोगों को राह दिखायी? (2) यहोवा आज कैसे हमें राह दिखा रहा है? और (3) उसकी दिखायी राह पर चलते रहने से हमें कौन-सी आशीषें मिलेंगी?

पुराने ज़माने से लेकर आज तक यहोवा इंसानों के ज़रिए अपने लोगों को राह दिखा रहा है (पैराग्राफ 3)


यहोवा ने इसराएलियों को कैसे राह दिखायी?

4-5. यहोवा ने कैसे साबित किया कि वह मूसा के ज़रिए इसराएलियों को राह दिखा रहा है? (बाहर दी तसवीर देखें।)

4 यहोवा ने मूसा को चुना, ताकि उसके ज़रिए इसराएलियों को मिस्र से बाहर निकाले। और यहोवा ने कई तरीकों से यह साबित किया कि वही मूसा के ज़रिए अपने लोगों को राह दिखा रहा है। ज़रा इस बारे में सोचिए। यहोवा ने दिन में बादल के खंभे का और रात में आग के खंभे का इंतज़ाम किया। (निर्ग. 13:21) मूसा खंभे के पीछे-पीछे चला और इसराएलियों को लेकर लाल सागर के पास पहुँच गया। लेकिन जब इसराएलियों ने देखा कि सामने लाल सागर है और पीछे से मिस्री सेना तेज़ी से आ रही है, तो वे बहुत डर गए। उन्हें लगा कि अब वे फँस गए हैं और मूसा ने उन्हें वहाँ लाकर बहुत बड़ी गलती कर दी है। लेकिन वह कोई गलती नहीं थी। यहोवा मूसा के ज़रिए जान-बूझकर अपने लोगों को वहाँ लाया था। (निर्ग. 14:2) फिर यहोवा ने बहुत ही शानदार तरीके से उन्हें बचाया।​—निर्ग. 14:26-28.

वीराने में परमेश्‍वर के लोगों को राह दिखाने के लिए मूसा बादल के खंभे पर निर्भर रहा (पैराग्राफ 4-5)


5 इसके बाद 40 सालों तक मूसा बादल के खंभे के पीछे-पीछे चलता रहा और वीराने में यहोवा के लोगों को रास्ता दिखाता रहा। a कुछ समय के लिए यहोवा ने बादल के खंभे को मूसा के तंबू के ऊपर ठहरा दिया था और सभी इसराएली उसे साफ देख सकते थे। (निर्ग. 33:7, 9, 10) उस खंभे में से यहोवा मूसा से बातें करता था और उसे हिदायतें देता था। फिर मूसा वे हिदायतें लोगों को बताता था। (भज. 99:7) सच में, इसराएली एकदम साफ देख सकते थे कि यहोवा मूसा के ज़रिए उन्हें राह दिखा रहा है।

मूसा और उसके बाद चुना गया अगुवा, यहोशू (पैराग्राफ 5, 7)


6. ज़्यादातर इसराएलियों ने कैसा रवैया दिखाया? (गिनती 14:2, 10, 11)

6 अफसोस की बात है कि ज़्यादातर इसराएलियों ने यह मानने से इनकार कर दिया कि यहोवा मूसा के ज़रिए उन्हें हिदायतें दे रहा है, जबकि इसके साफ सबूत थे। (गिनती 14:2, 10, 11 पढ़िए।) उन्होंने बार-बार ऐसा किया। इस वजह से यहोवा ने इसराएलियों की उस पीढ़ी को वादा किए गए देश में नहीं जाने दिया।​—गिन. 14:30.

7. कुछ ऐसे लोगों का उदाहरण दीजिए जो यहोवा की दिखायी राह पर चलते रहे। (गिनती 14:24) (तसवीर भी देखें।)

7 लेकिन कुछ इसराएली ऐसे भी थे, जो यहोवा की दिखायी राह पर चलते रहे। उनमें से एक था कालेब। यहोवा ने कालेब के बारे में कहा, “वह पूरे दिल से मेरी बतायी राह पर चलता आया है।” (गिनती 14:24 पढ़िए।) यहोवा ने उसे इसका इनाम दिया, यहाँ तक कि उसे यह चुनने का मौका भी दिया कि वह वादा किए गए देश में कहाँ रहेगा। (यहो. 14:12-14) इसके अलावा जो अगली पीढ़ी के इसराएली थे, वे भी यहोवा की दिखायी राह पर चलते रहे। मूसा के बाद जब यहोशू को इसराएलियों का अगुवा चुना गया, तो “उन्होंने यहोशू के जीवन-भर उसे गहरा आदर दिया।” (यहो. 4:14) इस वजह से यहोवा ने उन्हें ढेरों आशीषें दीं और उन्हें वादा किए गए देश में लेकर गया।​—यहो. 21:43, 44.

8. बताइए कि राजाओं के दिनों में यहोवा ने कैसे अपने लोगों को राह दिखायी। (तसवीर भी देखें।)

8 सालों बाद यहोवा ने अपने लोगों को राह दिखाने के लिए न्यायियों को चुना। इसके बाद राजाओं के ज़माने में यहोवा ने भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए अपने लोगों को राह दिखायी। वफादार राजाओं ने इन भविष्यवक्‍ताओं की सुनी। जैसे, जब भविष्यवक्‍ता नातान ने राजा दाविद को उसकी गलती बतायी, तो उसने नम्र होकर अपनी गलती मानी। (2 शमू. 12:7, 13; 1 इति. 17:3, 4) राजा यहोशापात ने भविष्यवक्‍ता यहजीएल की सलाह मानी और यहूदा के लोगों को बढ़ावा दिया कि वे “[परमेश्‍वर] के भविष्यवक्‍ताओं पर विश्‍वास” रखें। (2 इति. 20:14, 15, 20) और राजा हिजकियाह जब बहुत परेशान था, तो उसने भविष्यवक्‍ता यशायाह से मदद ली। (यशा. 37:1-6) जब भी राजा यहोवा की दिखायी राह पर चलते थे, यहोवा उन्हें आशीषें देता था और पूरे राष्ट्र की हिफाज़त करता था। (2 इति. 20:29, 30; 32:22) यह सब देखकर कोई भी समझ सकता था कि यहोवा भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए अपने लोगों को राह दिखा रहा है। फिर भी ज़्यादातर राजाओं और लोगों ने यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं की एक ना सुनी।​—यिर्म. 35:12-15.

राजा हिजकियाह और भविष्यवक्‍ता यशायाह (पैराग्राफ 8)


यहोवा ने पहली सदी के मसीहियों को कैसे राह दिखायी?

9. यहोवा ने पहली सदी के मसीहियों को किस तरह राह दिखायी? (तसवीर भी देखें।)

9 पहली सदी में यहोवा ने मसीही मंडली की शुरूआत की। उस वक्‍त यहोवा ने कैसे मसीहियों को राह दिखायी? उसने यीशु को मंडली का सिर या मुखिया चुना। (इफि. 5:23) लेकिन ऐसा नहीं था कि यीशु हरेक चेले के पास जाकर उसे हिदायतें देता था। इसके बजाय वह प्रेषितों और प्राचीनों के ज़रिए उनकी अगुवाई करता था, जो उस वक्‍त यरूशलेम में थे। (प्रेषि. 15:1, 2) इसके अलावा मंडलियों में अगुवाई करने के लिए प्राचीनों को ठहराया गया था।​—1 थिस्स. 5:12; तीतु. 1:5.

यरूशलेम में प्रेषित और प्राचीन (पैराग्राफ 9)


10. (क) पहली सदी के मसीहियों ने कैसा रवैया दिखाया? (प्रेषितों 15:30, 31) (ख) पुराने ज़माने में कुछ लोगों ने परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों पर क्यों भरोसा नहीं किया? (“ कुछ लोगों ने साफ सबूतों को भी क्यों अनदेखा कर दिया?” नाम का बक्स देखें।)

10 यहोवा ने जिस तरह पहली सदी के मसीहियों को राह दिखायी, उसके बारे में उनका कैसा रवैया था? ज़्यादातर मसीहियों ने उन हिदायतों को खुशी-खुशी माना जो उन्हें मिल रही थीं। यहाँ तक कि वे हिदायतें पाकर “उन्हें बहुत हौसला मिला और वे बेहद खुश हुए।” (प्रेषितों 15:30, 31 पढ़िए।) लेकिन यहोवा हमारे ज़माने में कैसे अपने लोगों को राह दिखा रहा है?

यहोवा हमारे ज़माने में कैसे अपने लोगों को राह दिखा रहा है?

11. उदाहरण देकर बताइए कि हमारे ज़माने में यहोवा किस तरह अगुवाई करनेवाले भाइयों को सही राह दिखाता आया है।

11 यहोवा हमारे ज़माने में भी अपने लोगों को राह दिखा रहा है। वह अपने वचन बाइबल और अपने बेटे के ज़रिए ऐसा कर रहा है जो मंडली का मुखिया है। इसके अलावा यहोवा इंसानों के ज़रिए भी अपने लोगों को राह दिखा रहा है, जैसा उसने बीते समय में किया था। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? ज़रा ध्यान दीजिए कि 1870 के बाद क्या हुआ। चार्ल्स टेज़ रसल और उनके साथी बाइबल की भविष्यवाणियों का अध्ययन करने लगे और इससे उन्हें यकीन हो गया कि 1914 परमेश्‍वर के राज के सिलसिले में बहुत ही खास साल होनेवाला है। (दानि. 4:25, 26) क्या इस सबके पीछे यहोवा का हाथ था? बिलकुल। सन्‌ 1914 में जो घटनाएँ घटीं, उससे साबित हो गया कि परमेश्‍वर का राज शुरू हो गया है। उसी साल पहला विश्‍व युद्ध हुआ, महामारियाँ फैलने लगीं, जगह-जगह भूकंप आने लगे और अकाल पड़ने लगे। (लूका 21:10, 11) सच में, यहोवा उन बाइबल विद्यार्थियों के ज़रिए अपने लोगों को राह दिखा रहा था।

12-13. दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान क्या इंतज़ाम किए गए ताकि और भी बड़े पैमाने पर लोगों को प्रचार और सिखाने का काम किया जा सके?

12 अब ज़रा ध्यान दीजिए कि दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान क्या हुआ। विश्‍व मुख्यालय में ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले भाइयों ने प्रकाशितवाक्य 17:8 में लिखी बात का अध्ययन किया। इससे वे समझ गए कि दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद हर-मगिदोन नहीं आ जाएगा। इसके बजाय एक ऐसा दौर आएगा जब कुछ हद तक शांति होगी और वे ज़ोर-शोर से प्रचार कर पाएँगे। इसलिए यहोवा के संगठन ने ‘वॉचटावर बाइबल कॉलेज (स्कूल) ऑफ गिलियड’ की शुरूआत की। इंसानी नज़र से देखें, तो शायद उस वक्‍त ऐसा करना सही नहीं था। फिर भी भाइयों ने यह इंतज़ाम किया ताकि दुनिया-भर में लोगों को प्रचार करने और सिखाने के लिए मिशनरियों को ट्रेनिंग दी जा सके। जब युद्ध चल ही रहा था, तभी मिशनरियों को अलग-अलग जगह भेजा गया। इसके अलावा विश्‍वासयोग्य दास ने ‘परमेश्‍वर की सेवा स्कूल पाठ्‌यक्रम’ b की भी शुरूआत की ताकि मंडलियों में भाई-बहनों को अच्छी तरह प्रचार करने और सिखाने की ट्रेनिंग दी जा सके। इस तरह यहोवा अपने लोगों को और भी बड़े पैमाने पर होनेवाले प्रचार काम के लिए तैयार कर रहा था।

13 उस दौरान जो कुछ हुआ उससे साफ पता चलता है कि उस मुश्‍किल वक्‍त में भी यहोवा अपने लोगों को राह दिखा रहा था। दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद से यहोवा के लोग कई देशों में शांति से और बिना किसी रोक-टोक के प्रचार कर पा रहे हैं। परमेश्‍वर के सेवक दुनिया-भर में लोगों को खुशखबरी सुना रहे हैं और बहुत-से लोग यहोवा को जान रहे हैं।

14. यहोवा के संगठन से और प्राचीनों से आज हमें जो हिदायतें मिलती हैं, हम उन पर क्यों पूरा भरोसा रख सकते हैं? (प्रकाशितवाक्य 2:1) (तसवीर भी देखें।)

14 शासी निकाय के भाई हमेशा यह जानने की कोशिश करते हैं कि यीशु मसीह उनसे क्या चाहता है। वह इसलिए कि वे भाई-बहनों को ऐसी हिदायतें देना चाहते हैं जिनसे यहोवा की और मसीह की सोच ज़ाहिर हो। वे ये हिदायतें सर्किट निगरानों और प्राचीनों के ज़रिए मंडलियों तक पहुँचाते हैं। c अभिषिक्‍त प्राचीन और मंडली के बाकी सभी प्राचीन, मसीह के “दाएँ हाथ” में हैं। (प्रकाशितवाक्य 2:1 पढ़िए।) लेकिन सभी प्राचीन अपरिपूर्ण हैं और उनसे गलतियाँ हो जाती हैं, ठीक जैसे मूसा, यहोशू और प्रेषितों से भी कभी-कभी गलतियाँ हुई थीं। (गिन. 20:12; यहो. 9:14, 15; रोमि. 3:23) फिर भी इस बात के साफ सबूत देखने को मिलते हैं कि मसीह बड़ी सूझ-बूझ से विश्‍वासयोग्य दास और प्राचीनों का मार्गदर्शन कर रहा है। और वह “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त तक हमेशा” ऐसा करता रहेगा। (मत्ती 28:20) इसलिए प्राचीनों से मिलनेवाली हिदायतों पर हम पूरा भरोसा रख सकते हैं जिनके ज़रिए आज मसीह अपने लोगों की अगुवाई कर रहा है।

हमारे ज़माने में शासी निकाय (पैराग्राफ 14)


यहोवा की दिखायी राह पर चलते रहने से आशीषें मिलती हैं

15-16. जो लोग हमेशा यहोवा की दिखायी राह पर चलते हैं, उनके अनुभव से आपने क्या सीखा?

15 यहोवा की दिखायी राह पर चलते रहने से आज भी हमें कई आशीषें मिलती हैं। ज़रा भाई ऐंड्रू d और बहन रूबी के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। अपना जीवन सादा करने के लिए हमें लगातार जो सलाह दी जाती है, वह उन्होंने मानी। (मत्ती 6:22 में “एक ही चीज़ पर टिकी है” पर दिया अध्ययन नोट देखें।) इस वजह से वे संगठन के निर्माण काम में हाथ बँटा पाए। बहन बताती हैं, “कभी-कभी हम बहुत छोटी जगह में रहते थे। कई बार तो वहाँ रसोई भी नहीं होती थी। इसके अलावा मुझे तसवीरें खींचने का बहुत शौक है, लेकिन मुझे अपने कैमरे और दूसरी चीज़ें बेचनी पड़ीं। उस वक्‍त मेरी आँखों में आँसू आ गए थे। लेकिन अब्राहम की पत्नी सारा की तरह मैंने ठान लिया था कि मैं अपनी नज़रें पीछे छोड़ी हुई चीज़ों पर नहीं, बल्कि इस बात पर लगाऊँगी कि मैं आज क्या कर पा रही हूँ।” (इब्रा. 11:15) इस पति-पत्नी ने जो फैसला लिया, उससे उन्हें कई आशीषें मिलीं। बहन बताती हैं, “हम बहुत खुश हैं कि हम यहोवा को अपना सबकुछ दे रहे हैं। संगठन के निर्माण काम में हाथ बँटाकर हमें इस बात की झलक मिलती है कि नयी दुनिया में ज़िंदगी कैसी होगी।” भाई ऐंड्रू भी ऐसा ही महसूस करते हैं। वे कहते हैं, “हमने राज के कामों में खुद को पूरी तरह लगा दिया है, इसलिए हम सच में बहुत खुश हैं।”

16 यहोवा की दिखायी राह पर चलते रहने से और क्या फायदे होते हैं? आइए ध्यान दें कि बहन मार्सीया का क्या अनुभव रहा। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने संगठन से मिली सलाह मानी और यहोवा की सेवा को अपना करियर बनाया। (मत्ती 6:33; रोमि. 12:11) वे बताती हैं, “मेरे पास यह मौका था कि मैं चार साल के लिए एक विश्‍वविद्यालय में मुफ्त में पढ़ाई कर सकती थी। लेकिन मैं यहोवा की सेवा करना चाहती थी, इसलिए मैंने एक छोटा-सा टेक्निकल कोर्स किया ताकि कुछ पैसे कमा सकूँ और ज़्यादा-से-ज़्यादा प्रचार भी कर सकूँ। वह मेरी ज़िंदगी का सबसे बढ़िया फैसला था। आज मैं पायनियर सेवा कर रही हूँ और बहुत खुश हूँ। मेरा काम ऐसा है कि मैं उसे अपने समय के हिसाब से कर सकती हूँ, इसलिए मैं कुछ दिन बेथेल में भी सेवा कर पाती हूँ। और मुझे यहोवा की सेवा करने के और भी कई खास मौके मिल पाते हैं।”

17. यहोवा की दिखायी राह पर चलते रहने से और कौन-सी आशीषें मिलती हैं? (यशायाह 48:17, 18)

17 समय-समय पर हमें संगठन से ऐसी सलाह मिलती है जिसे मानने से हमारी हिफाज़त होती है। जैसे हमें खबरदार किया जाता है कि हम पैसे के पीछे ना भागें और ना ही कोई ऐसा काम करें जिससे कि आगे चलकर हम पाप कर बैठें। इस तरह की सलाह मानने से भी हमें आशीषें मिलती हैं। हमारा ज़मीर साफ रहता है और हम बेवजह किसी मुश्‍किल में नहीं पड़ते। (1 तीमु. 6:9, 10) इस वजह से हम पूरे दिल से यहोवा की उपासना कर पाते हैं। इससे हमें जितनी खुशी और शांति मिलती है, उतनी किसी और चीज़ से नहीं मिल सकती।​—यशायाह 48:17, 18 पढ़िए।

18. आपने क्यों ठान लिया है कि आप यहोवा की दिखायी राह पर चलते रहेंगे?

18 इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा महा-संकट के दौरान और मसीह के हज़ार साल के राज के दौरान भी इंसानों के ज़रिए अपने लोगों को सही राह दिखाता रहेगा। (भज. 45:16) उस वक्‍त हमें जो हिदायतें दी जाएँगी, वे शायद हमें अच्छी ना लगें, लेकिन क्या तब भी हम उन्हें मानेंगे? अगर हम आज  यहोवा की हिदायतें मानना सीखें, तो हम तब भी ऐसा कर पाएँगे। तो आइए हम हमेशा यहोवा की दिखायी राह पर चलते रहें और उन लोगों की सलाह मानते रहें जिन्हें उसने हम पर अगुवाई करने के लिए ठहराया है। (यशा. 32:1, 2; इब्रा. 13:17) ऐसा करके हम दिखाएँगे कि हमें यहोवा पर पूरा भरोसा है जो हमें सही राह दिखाता है। वह हमें ऐसे हर खतरे से बचाता है जिससे उसके साथ हमारा रिश्‍ता खराब हो सकता है। और वह हमें उस रास्ते पर ले चलता है जो हमें हमारी मंज़िल तक ले जाएगा, नयी दुनिया तक, जहाँ हम हमेशा के लिए जीएँगे!

आपका जवाब क्या होगा?

  • यहोवा ने इसराएलियों को कैसे राह दिखायी?

  • यहोवा ने पहली सदी के मसीहियों को कैसे राह दिखायी?

  • यहोवा की दिखायी राह पर चलते रहने से आज हमें क्या आशीषें मिलती हैं?

गीत 48 यहोवा के साथ हर दिन चलें

a यहोवा ने एक स्वर्गदूत को भी चुना “जो इसराएलियों के आगे-आगे चल रहा था” ताकि उन्हें वादा किए हुए देश में जाने के लिए रास्ता दिखाए। ज़ाहिर है कि वह स्वर्गदूत मीकाएल था। मीकाएल, धरती पर आने से पहले स्वर्ग में यीशु का नाम था।​—निर्ग. 14:19; 32:34.

b बाद में इसे ‘परमेश्‍वर की सेवा स्कूल’ कहा जाने लगा। आज यह ट्रेनिंग हमें हफ्ते के बीच होनेवाली सभा में दी जाती है।

c फरवरी 2021 की प्रहरीदुर्ग  के पेज 18 पर दिया बक्स “शासी निकाय क्या काम करता है?” पढ़ें।

d इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।