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जो यहोवा को खुश करना चाहते हैं, वे सोच-समझकर फैसले लेते हैं

जो यहोवा को खुश करना चाहते हैं, वे सोच-समझकर फैसले लेते हैं

उत्पत्ति 25:29-34 पढ़िए और पता लगाइए कि क्या याकूब और एसाव ने सोच-समझकर फैसले किए थे।

और जानने के लिए आस-पास की आयतें पढ़िए। इस घटना से पहले क्या हुआ था? (उत्प. 25:20-28) इसके बाद क्या हुआ?​—उत्प. 27:1-46.

गहराई से खोजबीन कीजिए। उस ज़माने में पहलौठे बेटे के पास क्या अधिकार होते थे और उसकी क्या ज़िम्मेदारियाँ थीं?​—उत्प. 18:18, 19; नयी दुनिया अनुवाद  शब्दावली, “पहलौठा”; प्र10 5/1 पेज 13, अँग्रेज़ी

  • जिसके पास पहलौठे का अधिकार होता था, क्या वही मसीहा का पुरखा बन सकता था? (प्र17.12 पेज 14-15)

सोचिए कि आपने क्या सीखा और फिर वैसा ही कीजिए। याकूब ने क्यों पहलौठे के अधिकार को ज़्यादा अहमियत दी, जबकि एसाव ने नहीं? (इब्रा. 12:16, 17; प्र03 10/15 पेज 28-29) यहोवा इन दोनों भाइयों के बारे में कैसा महसूस करता था और क्यों? (मला. 1:2, 3) एसाव अच्छे फैसले लेने के लिए क्या कर सकता था?

  • खुद से पूछिए, ‘क्या हर हफ्ते के मेरे शेड्‌यूल से पता चलता है कि मैं परमेश्‍वर की उपासना को सबसे ज़्यादा अहमियत देता हूँ, जैसे पारिवारिक उपासना को?’