इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्ययन लेख 25

गीत 7 यहोवा, बल हमारा!

याद रखिए, यहोवा “जीवित परमेश्‍वर” है!

याद रखिए, यहोवा “जीवित परमेश्‍वर” है!

“यहोवा जीवित परमेश्‍वर है!”​—भज. 18:46.

क्या सीखेंगे?

हम जिस परमेश्‍वर की उपासना करते हैं, वह “जीवित परमेश्‍वर” है। यह याद रखने से हमें बहुत मदद मिल सकती है।

1. यहोवा के लोग किस वजह से मुश्‍किलों में भी उसकी सेवा कर पाते हैं?

 आज हम ‘संकटों से भरे वक्‍त’ में जी रहे हैं, जैसा बाइबल में बताया था। (2 तीमु. 3:1) दुनिया में हर कोई मुश्‍किलों का सामना कर रहा है। लेकिन यहोवा के लोग इन मुश्‍किलों के साथ-साथ विरोध और ज़ुल्मों का भी सामना कर रहे हैं। ऐसे में क्या बात यहोवा की सेवा करते रहने में हमारी मदद कर सकती है? एक ज़रूरी बात जिससे हमें मदद मिल सकती है, वह यह कि हमें यकीन है कि यहोवा एक “जीवित परमेश्‍वर” है।​—यिर्म. 10:10; 2 तीमु. 1:12.

2. यहोवा जीवित परमेश्‍वर है, इसका क्या मतलब है?

2 यहोवा एक जीवित परमेश्‍वर है। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि यहोवा सच में है और वह हमारी हर परेशानी जानता है और हमारी मदद करने के लिए तैयार रहता है। (2 इति. 16:9; भज. 23:4) अगर हम यह बात याद रखें, तो हम हिम्मत के साथ किसी भी मुश्‍किल का सामना कर पाएँगे। राजा दाविद भी इसी वजह से मुश्‍किलों का सामना कर पाया। आइए उसके उदाहरण पर गौर करते हैं।

3. जब दाविद ने कहा कि यहोवा जीवित परमेश्‍वर है, तो उसके कहने का क्या मतलब था?

3 दाविद यहोवा को अच्छी तरह जानता था और उसे उस पर पूरा भरोसा था। इसलिए जब राजा शाऊल और दूसरे दुश्‍मन उसकी जान के पीछे पड़े थे, तो दाविद ने मदद के लिए यहोवा को पुकारा। (भज. 18:6) यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी और उसे बचाया। तब दाविद ने कहा, “यहोवा जीवित परमेश्‍वर है!” (भज. 18:46) दाविद सिर्फ यह नहीं कह रहा था कि परमेश्‍वर सचमुच में है। उसके शब्दों के बारे में एक किताब में यह लिखा है कि दाविद यहोवा पर अपना यकीन ज़ाहिर कर रहा था, वह कह रहा था, “जीवित परमेश्‍वर के नाते वह हमेशा अपने लोगों की मदद करेगा।” तो दाविद अपने अनुभव से जानता था कि यहोवा एक जीवित परमेश्‍वर है, वह जानता है कि उसके सेवकों के साथ क्या हो रहा है। और इस वजह से दाविद पूरे जोश से यहोवा की सेवा करता रहा और उसकी तारीफ करता रहा।​—भज. 18:28, 29, 49.

4. अगर हमें यकीन होगा कि यहोवा जीवित परमेश्‍वर है, तो हम क्या करेंगे?

4 अगर हमें भी पूरा यकीन होगा कि यहोवा जीवित परमेश्‍वर है, तो हम जोश से उसकी सेवा करेंगे। हम हिम्मत से मुश्‍किलों का सामना कर पाएँगे और जी-जान से उसकी सेवा करते रहेंगे। यही नहीं, हम ठान लेंगे कि चाहे जो हो जाए हम यहोवा के करीब रहेंगे।

जीवित परमेश्‍वर आपको ताकत देगा

5. क्या बात याद रखने से हम मुश्‍किलों का सामना कर पाएँगे? (फिलिप्पियों 4:13)

5 अगर हम याद रखें कि यहोवा जीवित परमेश्‍वर है और वह हमें हर हाल में सँभालेगा, तो हम किसी भी मुश्‍किल का सामना कर पाएँगे, फिर चाहे वह छोटी हो या बड़ी। कभी मत भूलिए, पहाड़ जैसी बड़ी-बड़ी मुश्‍किलें भी यहोवा के आगे बहुत छोटी हैं! यहोवा सबसे शक्‍तिशाली है और वह हमें किसी भी मुश्‍किल को सहने की ताकत दे सकता है। (फिलिप्पियों 4:13 पढ़िए।) इसलिए चाहे जो भी मुश्‍किल आए, हम उसका सामना कर सकते हैं। और जब हम देखते हैं कि यहोवा कैसे छोटी-छोटी मुश्‍किलों में भी हमारी मदद कर रहा है, तो हमें पूरा यकीन हो जाता है कि अगर कल को कोई बड़ी मुश्‍किल भी आए, तो वह हमें सँभालेगा।

6. जब दाविद छोटा था, तो ऐसा क्या हुआ जिससे यहोवा पर उसका भरोसा बढ़ गया?

6 आइए दाविद की ज़िंदगी में हुई दो घटनाओं पर गौर करें जिस वजह से वह यहोवा पर और भी भरोसा करने लगा। जब दाविद छोटा था और अपने पिता की भेड़ें चराया करता था, तो एक बार एक भालू और दूसरी बार एक शेर उसकी भेड़ को उठा ले गया। लेकिन इन दोनों ही मौकों पर दाविद ने दिलेरी दिखायी। उसने उनका पीछा किया और उन्हें मारकर भेड़ को बचा लिया। इतना बड़ा काम करने पर भी उसने यह नहीं कहा कि उसने अपनी ताकत से ऐसा किया है, क्योंकि वह जानता था कि यहोवा की मदद से ही वह ऐसा कर पाया है। (1 शमू. 17:34-37) दाविद ये घटनाएँ कभी नहीं भूला। इन पर मनन करने से जीवित परमेश्‍वर यहोवा पर उसका भरोसा और बढ़ गया और उसे यकीन हो गया कि आगे भी यहोवा उसकी मदद करेगा।

7. दाविद ने किस बारे में सोचा और उसे किस बात का यकीन था?

7 अब ध्यान दीजिए कि जब दाविद थोड़ा बड़ा हो गया, तब क्या हुआ। एक बार दाविद इसराएली सेना की छावनी में गया। उसने देखा कि पलिश्‍तियों के एक सूरमा गोलियात की वजह से सभी सैनिक घबराए हुए हैं। गोलियात “इसराएल की सेना को चुनौती” दे रहा था। (1 शमू. 17:10, 11) सभी सैनिक उसकी कद-काठी देखकर और उसकी ललकार सुनकर बहुत डर गए थे। (1 शमू. 17:24, 25) लेकिन दाविद उनसे अलग था। वह यह देख रहा था कि गोलियात सिर्फ इसराएल की सेना को नहीं, बल्कि ‘जीवित परमेश्‍वर की सेना को ललकार रहा है।’ (1 शमू. 17:26) दाविद यहोवा के बारे में सोच रहा था। वह यह देख रहा था कि गोलियात यहोवा की बेइज़्ज़ती कर रहा है। उसे यकीन था कि जिस तरह यहोवा ने उसे शेर और भालू से लड़ने की ताकत दी थी, उसी तरह वह उसे गोलियात से लड़ने की ताकत भी देगा। इसी भरोसे के साथ वह गोलियात से लड़ने गया और उसने उसे मार गिराया।​—1 शमू. 17:45-51.

8. हम कैसे इस बात पर अपना भरोसा बढ़ा सकते हैं कि यहोवा हमारी मदद करेगा? (तसवीर भी देखें।)

8 अगर हम भरोसा रखें कि जीवित परमेश्‍वर यहोवा हमारी मदद करने के लिए तैयार है, तो हम भी मुश्‍किलों का सामना कर पाएँगे। (भज. 118:6) पर हम यहोवा पर अपना भरोसा कैसे बढ़ा सकते हैं? सोचिए कि यहोवा ने बीते समय में अपने लोगों के लिए क्या कुछ किया। बाइबल की उन घटनाओं के बारे में पढ़िए जिनमें यहोवा ने अपने लोगों को बचाया था। (यशा. 37:17, 33-37) इसके अलावा, jw.org पर आनेवाले अनुभव देखिए कि कैसे यहोवा आज भी हमारे भाई-बहनों की मदद कर रहा है। इस बारे में भी सोचिए कि मुश्‍किल वक्‍त में यहोवा ने आपकी कैसे मदद की थी। हो सकता है, आपको ऐसा कोई किस्सा याद ना आए जब यहोवा ने किसी शानदार तरीके से आपकी मदद की हो, जैसे उसने दाविद की मदद की थी। ऐसे में परेशान मत होइए। सच तो यह है कि यहोवा ने आपके लिए बहुत कुछ किया है। उसने आपको अपनी तरफ खींचा है ताकि आप उसके दोस्त बन सकें। (यूह. 6:44) यही नहीं, आज आप सच्चाई में बने हुए हैं, यह भी यहोवा की मदद से हो पाया है। इसके अलावा, कई बार यहोवा ने आपकी प्रार्थनाओं का जवाब दिया होगा, सही वक्‍त पर आपकी मदद की होगी या मुश्‍किल वक्‍त में आपको सँभाला होगा। यहोवा से मदद माँगिए ताकि आप उन किस्सों को याद कर पाएँ। जब आप बीते समय के उन अनुभवों के बारे में सोचेंगे, तो आपका यकीन बढ़ेगा कि यहोवा आगे भी आपकी खातिर कदम उठाएगा।

मुश्‍किलें आने पर याद रखिए कि ज़्यादा ज़रूरी बात क्या है (पैराग्राफ 8-9)


9. मुश्‍किलें आने पर हमें क्या बात याद रखनी चाहिए? (नीतिवचन 27:11)

9 यहोवा जीवित परमेश्‍वर है, यह याद रखने से हम मुश्‍किलें आने पर सही नज़रिया रख पाएँगे। वह कैसे? हम याद रखेंगे कि ज़्यादा ज़रूरी बात क्या है। शैतान ने दावा किया है कि मुश्‍किलें आने पर हम यहोवा की सेवा करना छोड़ देंगे। (अय्यू. 1:10, 11; नीतिवचन 27:11 पढ़िए।) इसलिए जब हम यहोवा के वफादार रहते हैं, तो हम शैतान को झूठा साबित करते हैं और दिखाते हैं कि हमें यहोवा से प्यार है। आप जहाँ रहते हैं, क्या वहाँ सरकार ने हमारे काम पर पाबंदी लगायी है? क्या आप पैसों की तंगी झेल रहे हैं? क्या प्रचार में लोग आपका संदेश नहीं सुनते? या क्या आप किसी और मुश्‍किल का सामना कर रहे हैं? अगर ऐसा है, तो याद रखिए कि आपके पास यहोवा का दिल खुश करने का एक बढ़िया मौका है। यह भी याद रखिए कि आप पर चाहे जो भी मुश्‍किल आए, यहोवा हमेशा आपको सहने की ताकत देगा।​—1 कुरिं. 10:13.

जीवित परमेश्‍वर आपको ज़रूर इनाम देगा

10. जीवित परमेश्‍वर उन लोगों के लिए क्या करेगा जो उसकी सेवा करते हैं?

10 यहोवा उन लोगों को इनाम देता है जो उसकी उपासना करते हैं। (इब्रा. 11:6) वह आज हमें शांति और सुकून देता है और आनेवाले समय में हमें हमेशा की ज़िंदगी देगा। हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमें इनाम देना चाहता है और उसके पास ऐसा करने की ताकत भी है। इस यकीन की वजह से हम उसकी सेवा में लगे रहते हैं, ठीक जैसे पुराने समय में कई वफादार लोग उसकी सेवा में लगे हुए थे। तीमुथियुस उनमें से एक था। आइए उसके उदाहरण पर ध्यान देते हैं।​—इब्रा. 6:10-12.

11. तीमुथियुस ने भाई-बहनों की मदद करने के लिए क्यों मेहनत की? (1 तीमुथियुस 4:10)

11 पहला तीमुथियुस 4:10 पढ़िए। तीमुथियुस को पूरा यकीन था कि यहोवा जीवित परमेश्‍वर है और वह उसे इनाम देगा। इसलिए उसने तन-मन से उसकी सेवा की और बढ़-चढ़कर भाई-बहनों की मदद की। उसने क्या-क्या किया? उसने पौलुस की सलाह मानी और एक अच्छा शिक्षक बनने के लिए खूब मेहनत की ताकि प्रचार करते वक्‍त और मंडली में वह अच्छी तरह सिखा सके। उसने मंडली के छोटे-बड़े सब लोगों के लिए एक अच्छी मिसाल रखी। यही नहीं, उसे कुछ मुश्‍किल ज़िम्मेदारियाँ भी मिली थीं, जैसे उसे गलती करनेवालों को प्यार से सुधारना था। यह काम भी उसने ज़रूर अच्छी तरह किया होगा। (1 तीमु. 4:11-16; 2 तीमु. 4:1-5) तीमुथियुस को यकीन था कि चाहे कोई उसके काम को देखे या ना देखे, उसकी मेहनत की कदर करे या ना करे, लेकिन यहोवा सब देख रहा है और वह उसे ज़रूर इनाम देगा।​—रोमि. 2:6, 7.

12. मंडली के काम-काज करने में प्राचीन क्यों इतनी मेहनत करते हैं? (तसवीर भी देखें।)

12 आज मंडली के प्राचीन भी पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा उनकी मेहनत पर ध्यान देता है और उनके बढ़िया काम की कदर करता है। सभी प्राचीन चरवाही करने, सिखाने और प्रचार काम में हिस्सा लेते हैं। लेकिन कई प्राचीन निर्माण काम और राहत काम में भी हाथ बँटाते हैं। दूसरे कुछ प्राचीन ‘मरीज़ मुलाकात दल’ या ‘अस्पताल संपर्क समिति’ में काम करते हैं। ये सभी प्राचीन अच्छी तरह जानते हैं कि मंडली के काम-काज यहोवा की तरफ से हैं, ना कि किसी इंसान की तरफ से। इस वजह से वे दिलो-जान से अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करते हैं। और उन्हें पूरा यकीन है कि परमेश्‍वर उनकी मेहनत के लिए उन्हें ज़रूर इनाम देगा।​—कुलु. 3:23, 24.

आप मंडली के काम-काज करने में जो मेहनत करते हैं, उसके लिए जीवित परमेश्‍वर आपको इनाम देगा (पैराग्राफ 12-13)


13. हम यहोवा की सेवा में जो भी करते हैं, उसे देखकर यहोवा को कैसा लगता है?

13 यह सच है कि मंडली में हर कोई प्राचीन नहीं बन सकता। लेकिन हम सब यहोवा को कुछ-न-कुछ ज़रूर दे सकते हैं। जब हम तन-मन से यहोवा की सेवा करते हैं, तो यह देखकर यहोवा को बहुत खुशी होती है। और जब हम दुनिया-भर में होनेवाले काम के लिए दान देते हैं, फिर चाहे वह थोड़ा ही क्यों ना हो, यहोवा उस पर ध्यान देता है। उसे यह देखकर भी अच्छा लगता है कि हम शर्मीले होने पर भी सभाओं में जवाब देने के लिए हाथ उठाते हैं। और उसे तब भी खुशी होती है जब हम दूसरों की गलतियाँ नज़रअंदाज़ करते हैं और उन्हें माफ करते हैं। लेकिन कुछ भाई-बहनों को लगता है कि वे यहोवा के लिए जितना करना चाहते हैं, उतना नहीं कर पा रहे हैं। क्या आपको भी कभी ऐसा लगता है? अगर हाँ, तो यकीन रखिए कि आप यहोवा के लिए जो भी कर पा रहे हैं, वह उसकी बहुत कदर करता है। यहोवा आपसे प्यार करता है और वह आपकी मेहनत का आपको ज़रूर इनाम देगा।​—लूका 21:1-4.

जीवित परमेश्‍वर के करीब रहिए

14. यहोवा के साथ एक मज़बूत रिश्‍ता होने से हम कैसे उसके वफादार रह सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)

14 अगर यहोवा के साथ हमारी अच्छी दोस्ती होगी, तो हमारे लिए उसके वफादार रहना आसान होगा। यूसुफ के बारे में सोचिए। उसने गलत काम करने से साफ इनकार कर दिया था। यहोवा उसके लिए एक जीवित परमेश्‍वर था और वह अपने परमेश्‍वर को नाराज़ नहीं करना चाहता था। (उत्प. 39:9) अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारे लिए भी एक जीवित परमेश्‍वर हो, तो हमें क्या करना होगा? हमें समय निकालकर उससे प्रार्थना करनी होगी और उसके वचन का अध्ययन करना होगा। ऐसा करने से उसके साथ हमारी दोस्ती और पक्की हो जाएगी। यूसुफ की तरह अगर हमारा भी यहोवा के साथ मज़बूत रिश्‍ता होगा, तो हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे यहोवा नाराज़ हो जाए।​—याकू. 4:8.

अगर यहोवा के साथ हमारी अच्छी दोस्ती होगी, तो हम उसके वफादार रह पाएँगे (पैराग्राफ 14-15)


15. हम इसराएलियों से क्या सबक सीखते हैं? (इब्रानियों 3:12)

15 जो लोग यह भूल जाते हैं कि यहोवा जीवित परमेश्‍वर है, वे बड़ी आसानी से यहोवा से दूर चले जाते हैं और उसके वफादार नहीं रहते। ध्यान दीजिए कि वीराने में इसराएलियों के साथ क्या हुआ था। उन्हें पता था कि यहोवा सच में है। लेकिन वे शक करने लगे कि पता नहीं यहोवा उनकी ज़रूरतें पूरी करेगा भी या नहीं। उन्होंने तो यह तक कहा, “यहोवा हमारे बीच है भी या नहीं?” (निर्ग. 17:2, 7) इसी वजह से उन्होंने आगे चलकर परमेश्‍वर से बगावत की। हम उन इसराएलियों की तरह नहीं होना चाहते और अपने जीवित परमेश्‍वर से दूर नहीं जाना चाहते।​—इब्रानियों 3:12 पढ़िए।

16. हमारे विश्‍वास की परख कैसे हो सकती है?

16 इस दुष्ट दुनिया में यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत बनाए रखना इतना आसान नहीं है। कई लोग परमेश्‍वर को नहीं मानते, वे कहते हैं कि कोई ईश्‍वर नहीं है। और अकसर ऐसा होता है कि जो परमेश्‍वर के स्तरों को नहीं मानते, वे फलते-फूलते नज़र आते हैं। यह सब देखकर हमारे विश्‍वास की परख हो सकती है। हम शायद यह तो ना कहें कि परमेश्‍वर नहीं है, लेकिन हो सकता है हम मन-ही-मन यह सोचने लगें कि पता नहीं परमेश्‍वर मेरी मदद करेगा भी या नहीं। भजन 73 के लेखक को एक बार ऐसा ही लगा था। जब उसने देखा कि उसके आस-पास के लोग परमेश्‍वर के नियम नहीं मान रहे हैं, फिर भी आराम की ज़िंदगी जी रहे हैं, खूब मज़े कर रहे हैं, तो वह सोचने लगा कि क्या यहोवा की सेवा करने का कोई फायदा है।​—भज. 73:11-13.

17. यहोवा के करीब रहने के लिए हमें क्या करना होगा?

17 आगे चलकर भजन 73 के लेखक ने अपनी सोच सुधारी। उसने यह कैसे किया? उसने इस बारे में सोचा कि जो लोग यहोवा पर भरोसा नहीं करते, उनका क्या अंजाम होगा। (भज. 73:18, 19, 27) उसने इस बात पर भी गौर किया कि यहोवा की सेवा करने से क्या-क्या आशीषें मिलती हैं। (भज. 73:24) हम भी ऐसा ही कर सकते हैं। हम सोच सकते हैं कि यहोवा ने हमें क्या-क्या आशीषें दी हैं और अगर हम यहोवा की सेवा नहीं कर रहे होते, तो हमारी ज़िंदगी कैसी होती। इस तरह सोचने से हम यहोवा के वफादार रह पाएँगे और भजन के लेखक की तरह यह कह पाएँगे, “मेरे लिए परमेश्‍वर के करीब जाना भला है।”​—भज. 73:28.

18. भविष्य के बारे में सोचकर हम क्यों नहीं डरते?

18 हम “जीवित और सच्चे परमेश्‍वर” की सेवा करते हैं, इसलिए हम इन आखिरी दिनों में आनेवाली हर मुश्‍किल का सामना कर सकते हैं। (1 थिस्स. 1:9) हमारा परमेश्‍वर जीवित है और जो उसकी उपासना करते हैं, वह उनकी हमेशा मदद करता है। बीते समय में उसने अपने सेवकों का साथ दिया था और आज वह हमारा साथ भी दे रहा है। बहुत जल्द हम एक ऐसे बड़े संकट का सामना करनेवाले हैं जैसा दुनिया में पहले कभी नहीं आया। लेकिन हम यकीन रख सकते हैं कि उस वक्‍त भी हम अकेले नहीं होंगे, यहोवा हमारे साथ होगा। (यशा. 41:10) इसलिए आइए “हम पूरी हिम्मत रखें और यह कहें, ‘यहोवा मेरा मददगार है, मैं नहीं डरूँगा।’”​—इब्रा. 13:5, 6.

गीत 3 हमारी ताकत, आशा और भरोसा