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अध्ययन लेख 24

गीत 24 यहोवा की इबादत करें!

हमेशा यहोवा के तंबू में रहिए!

हमेशा यहोवा के तंबू में रहिए!

“हे यहोवा, कौन तेरे तंबू में मेहमान बनकर रह सकता है? कौन तेरे पवित्र पहाड़ पर निवास कर सकता है?”​—भज. 15:1.

क्या सीखेंगे?

हम जानेंगे कि अगर हम यहोवा के दोस्त बने रहना चाहते हैं, तो हमें क्या करना होगा। हम यह भी जानेंगे कि हमें उसके दोस्तों के साथ कैसे पेश आना चाहिए।

1. भजन 15:1-5 पर ध्यान देने से हमें क्या फायदा होगा?

 पिछले लेख में हमने जाना कि जो लोग यहोवा को अपना जीवन समर्पित करते हैं और उसके साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाते हैं, वे उसके तंबू में मेहमान बनकर रह सकते हैं। लेकिन यहोवा के तंबू में रहने के लिए हमें और क्या करना होगा? भजन 15 में इस बारे में बताया गया है। (भजन 15:1-5 पढ़िए।) इसमें बहुत बढ़िया सलाह दी गयी है जिसे मानने से हम यहोवा के और भी करीब आ सकते हैं।

2. भजन 15 में जब दाविद ने यहोवा के तंबू का ज़िक्र किया, तो शायद वह किस बारे में सोच रहा था?

2 भजन 15 की शुरूआत इस तरह होती है, “हे यहोवा, कौन तेरे तंबू में मेहमान बनकर रह सकता है? कौन तेरे पवित्र पहाड़ पर निवास कर सकता है?” (भज. 15:1) दाविद ने इस भजन में जब यहोवा के “तंबू” का ज़िक्र किया, तो शायद वह पवित्र डेरे के बारे में सोच रहा था जो कुछ समय के लिए गिबोन में था। दाविद ने “पवित्र पहाड़” का भी ज़िक्र किया, इसलिए हो सकता है कि वह यरूशलेम के सिय्योन पहाड़ के बारे में सोच रहा हो, जहाँ उसने यहोवा के लिए एक तंबू खड़ा किया था। यह तंबू गिबोन से करीब 10 किलोमीटर दूर दक्षिण में था। इसमें करार का संदूक रखा था। और यह संदूक तब तक वहाँ था जब तक यहोवा का मंदिर नहीं बना।​—2 शमू. 6:17.

3. हमें भजन 15 में लिखी बातों पर क्यों ध्यान देना चाहिए? (तसवीर भी देखें।)

3 बीते ज़माने में ज़्यादातर इसराएली पवित्र डेरे में सेवा नहीं कर सकते थे। और जहाँ तक पवित्र डेरे के अंदर जाने की बात है, जहाँ करार का संदूक था, वहाँ तो और भी कम लोग जा सकते थे। लेकिन आज हर इंसान जो यहोवा से दोस्ती करता है और उसका दोस्त बना रहता है, वह यहोवा के तंबू में मेहमान बनकर रह सकता है। और हम सब यही तो चाहते हैं! भजन 15 में कुछ ऐसी बातें बतायी गयी हैं जिन्हें मानने से हम हमेशा यहोवा के दोस्त बने रह पाएँगे।

दाविद के ज़माने में इसराएली आसानी से समझ सकते थे कि यहोवा के तंबू में मेहमान बनकर जाना कैसा होता है (पैराग्राफ 3)


बेदाग ज़िंदगी जीएँ और हमेशा सही काम करें

4. यहोवा के दोस्त बने रहने के लिए बस बपतिस्मा लेना काफी क्यों नहीं है? (यशायाह 48:1)

4 भजन 15:2 में बताया गया है कि परमेश्‍वर का दोस्त “बेदाग ज़िंदगी जीता है” और “हमेशा सही काम करता है।” इस आयत से पता चलता है कि यहोवा के दोस्त बने रहने के लिए हमें हमेशा ऐसा करना होगा। पर क्या हम सच में बेदाग ज़िंदगी जी सकते हैं? हाँ, बिलकुल। यह तो है कि हम कई गलतियाँ करते हैं, लेकिन अगर हम यहोवा की आज्ञाएँ मानने की पूरी कोशिश करें, तो हम उसकी नज़र में एक “बेदाग ज़िंदगी” जी पाएँगे। यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करना और बपतिस्मा लेना तो बस उसके साथ हमारे रिश्‍ते की एक शुरूआत है। याद कीजिए, बीते ज़माने में जो व्यक्‍ति इसराएल राष्ट्र में पैदा होता था, वह अपने आप यहोवा के तंबू में मेहमान नहीं बन जाता था। जैसे कुछ इसराएली यहोवा की उपासना तो करते थे, लेकिन वे ऐसा “सच्चाई और नेकी” से नहीं करते थे। (यशायाह 48:1 पढ़िए।) जो इसराएली यहोवा के तंबू में रहना चाहते थे, उन्हें यहोवा के कानूनों के बारे में जानना था और उन्हें मानना था। उसी तरह आज यहोवा के तंबू में रहने के लिए या उसके दोस्त बने रहने के लिए बस बपतिस्मा लेना और यहोवा का एक साक्षी कहलाना काफी नहीं है। यह भी ज़रूरी है कि हम “हमेशा सही काम” करें। इसके लिए हमें क्या करना होगा?

5. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम हर बात में यहोवा की आज्ञा मानते हैं?

5 यहोवा की नज़र में ‘बेदाग ज़िंदगी जीने’ और ‘सही काम करने’ के लिए सिर्फ यह काफी नहीं कि हम सभाओं में जाएँ। (1 शमू. 15:22) यह भी ज़रूरी है कि हम ज़िंदगी के हर मामले में यहोवा की आज्ञाएँ मानें, फिर चाहे हम सबके सामने हों या अकेले में। (नीति. 3:6; सभो. 12:13, 14) यही नहीं, छोटी-छोटी बातों में भी हमें यहोवा की आज्ञा मानने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। इस तरह हम दिखाएँगे कि हम यहोवा से सच में प्यार करते हैं और फिर यहोवा भी हमें और चाहने लगेगा।​—यूह. 14:23; 1 यूह. 5:3.

6. बीते समय में हमने चाहे जो भी अच्छे काम किए हों, पर हमें आगे भी क्या करते रहना है? (इब्रानियों 6:10-12)

6 बीते समय में हमने मुश्‍किलों में भी यहोवा की आज्ञा मानी और उसके वफादार रहे। और यहोवा इस बात की बहुत कदर करता है। लेकिन सिर्फ उन अच्छे कामों की वजह से हम हमेशा यहोवा के तंबू में नहीं रह सकते। इसी बात को इब्रानियों 6:10-12 में समझाया गया है। (पढ़िए।) वहाँ बताया है कि यहोवा हमारे भले कामों को कभी नहीं भूलता। लेकिन वह यह भी चाहता है कि हम “आखिर तक” तन-मन से उसकी सेवा करते रहें। अगर हम “हिम्मत न हारें” और उसकी सेवा में लगे रहें, तो यहोवा हमेशा हमारा दोस्त बना रहेगा।​—गला. 6:9.

दिल में सच बोलें

7. दिल में सच बोलने का क्या मतलब है?

7 यहोवा के तंबू में रहने के लिए यह भी ज़रूरी है कि हम ‘दिल में सच बोलें।’ (भज. 15:2) यह तो है कि हम झूठ नहीं बोलते, लेकिन दिल में सच बोलने का मतलब है कि हम हर बात में पूरी तरह ईमानदार हों। (इब्रा. 13:18) ऐसा करना क्यों ज़रूरी है? “क्योंकि यहोवा कपटी लोगों से नफरत करता है, मगर सीधे-सच्चे लोगों से गहरी दोस्ती रखता है।”​—नीति. 3:32.

8. हमें कैसा इंसान नहीं होना चाहिए?

8 जो इंसान “दिल में सच” नहीं बोलता, वह चोरी-छिपे यहोवा की आज्ञाएँ तोड़ता है, लेकिन दूसरों के सामने दिखाता है कि वह यहोवा की आज्ञाएँ मान रहा है। (यशा. 29:13) ऐसा इंसान कपटी होता है। वह सोचने लग सकता है कि यहोवा के कुछ कायदे-कानून ऐसे हैं जिन्हें मानने में समझदारी नहीं है। (याकू. 1:5-8) इसलिए जब उसे लगता है कि कोई बात इतनी बड़ी नहीं है, तो उस मामले में शायद वह यहोवा की आज्ञा ना माने। और जब वह देखता है कि आज्ञा ना मानने से उसे कोई बुरा अंजाम नहीं भुगतना पड़ा, तो शायद वह बड़ी-बड़ी बातों में भी यहोवा की आज्ञाएँ तोड़ने लगे। भले ही उसे लगे कि वह यहोवा की उपासना कर रहा है, लेकिन यहोवा ऐसे कपटी इंसान की उपासना कभी कबूल नहीं करता। (सभो. 8:11) हम ऐसे इंसान की तरह नहीं बनना चाहते, बल्कि हर बात में ईमानदार होना चाहते हैं।

9. जब यीशु पहली बार नतनएल से मिला, तो उसने क्या कहा? और इससे हम क्या सीखते हैं? (तसवीर भी देखें।)

9 दिल में सच बोलना कितना ज़रूरी है, यह हम बाइबल के एक किस्से से अच्छी तरह समझ सकते हैं। जब फिलिप्पुस अपने दोस्त नतनएल को यीशु के पास लाया, तो यीशु ने उसके बारे में एक बहुत ही अनोखी बात कही। यीशु पहले कभी नतनएल से नहीं मिला था, फिर भी उसने उसके बारे में कहा, “देखो, यह एक सच्चा इसराएली है जिसमें कोई कपट नहीं।” (यूह. 1:47) यीशु जानता था कि उसके दूसरे चेले भी ईमानदार हैं और उनमें कोई कपट नहीं है। लेकिन उसने नतनएल में कुछ खास देखा। नतनएल भी हमारी तरह अपरिपूर्ण था, लेकिन यीशु ने गौर किया कि उसमें कोई दिखावा नहीं है, वह बाहर से जैसा है, अंदर से भी वैसा ही है। यीशु को उसकी यह बात बहुत पसंद आयी, इसलिए उसने उसकी तारीफ की। ज़रा सोचिए, अगर यीशु आपके बारे में ऐसा कहता, तो आपको कैसा लगता?

जब फिलिप्पुस ने अपने दोस्त नतनएल को यीशु से मिलवाया, तो यीशु ने कहा कि नतनएल में “कोई कपट नहीं।” क्या यीशु आपके बारे में भी ऐसा ही कहेगा? (पैराग्राफ 9)


10. हमें क्यों सोच-समझकर बात करनी चाहिए? (याकूब 1:26)

10 भजन 15 में जो बातें बतायी हैं, उनमें से ज़्यादातर इस बारे में हैं कि यहोवा के दोस्तों को दूसरों के साथ कैसे पेश आना चाहिए। इसकी आयत 3 में लिखा है कि जो व्यक्‍ति यहोवा के तंबू में मेहमान बनकर रहना चाहता है, “वह अपनी ज़बान से दूसरों को बदनाम नहीं करता, अपने पड़ोसी का कुछ बुरा नहीं करता, न ही अपने दोस्तों का नाम खराब करता है।” अगर हम सोच-समझकर बात ना करें, तो इसके बहुत बुरे अंजाम हो सकते हैं। हम दूसरों को नुकसान पहुँचा सकते हैं और हो सकता है हम यहोवा के तंबू में रहने के लायक भी ना रहें।​—याकूब 1:26 पढ़िए।

11. दूसरों को बदनाम करनेवाला अगर पश्‍चाताप नहीं करता, तो क्या हो सकता है?

11 भजन 15 में बताया है कि जो व्यक्‍ति यहोवा के तंबू में रहना चाहता है, उसे दूसरों को बदनाम करनेवाला नहीं होना चाहिए। उसे किसी का नाम खराब करने के लिए झूठी बातें नहीं कहनी चाहिए। जो व्यक्‍ति ऐसा करने से बाज़ नहीं आता और पश्‍चाताप नहीं करता, उसे मंडली से निकाल दिया जाता है।​—यिर्म. 17:10.

12-13. हम शायद कब अनजाने में अपने दोस्तों का नाम खराब कर बैठें? (तसवीर भी देखें।)

12 भजन 15:3 में यह भी बताया है कि यहोवा के दोस्त अपने पड़ोसियों का कुछ बुरा नहीं करते और ना ही अपने दोस्तों का नाम खराब करते हैं। पर हम शायद कब ऐसा कर बैठें?

13 हो सकता है, हम दूसरों के बारे में कुछ गलत बातें कहने लगें और अनजाने में उनका नाम खराब कर दें। जैसे मान लीजिए, (1) एक बहन ने पूरे समय की सेवा करनी छोड़ दी है, (2) एक पति-पत्नी अब बेथेल में सेवा नहीं कर रहे या (3) एक भाई अब एक प्राचीन या सहायक सेवक नहीं रहा। ऐसे में अगर हम दूसरों से यह कहते फिरें कि उन्होंने ज़रूर कुछ किया होगा इसलिए ऐसा हुआ, तो यह सही नहीं होगा। हमें याद रखना चाहिए कि ऐसे फैसलों के पीछे कई कारण हो सकते हैं जिनके बारे में शायद हमें ना पता हो। हमें नहीं भूलना चाहिए कि जो लोग यहोवा के तंबू में रहना चाहते हैं, वे ‘अपने पड़ोसी का कुछ बुरा नहीं करते, न ही अपने दोस्तों का नाम खराब करते हैं।’

दूसरों के बारे में बुरी बातें कहना बहुत आसान होता है। अगर हम ध्यान ना दें, तो हम उन्हें बदनाम करने लग सकते हैं (पैराग्राफ 12-13)


यहोवा का डर माननेवालों का सम्मान करें

14. यहोवा के दोस्त कैसे जान सकते हैं कि एक व्यक्‍ति “तुच्छ” है या नहीं और फिर उन्हें क्या करना चाहिए?

14 भजन 15:4 में लिखा है कि यहोवा के दोस्त ‘किसी तुच्छ इंसान से नाता नहीं रखते।’ हम कैसे जान सकते हैं कि एक व्यक्‍ति तुच्छ है या नहीं? अपरिपूर्ण होने की वजह से हम खुद यह तय नहीं कर सकते। वह क्यों? क्योंकि कई बार हम सिर्फ अपनी सोच या पसंद-नापसंद के आधार पर किसी के बारे में राय कायम कर लेते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों का व्यवहार देखकर हम उन्हें पसंद करने लगते हैं, वहीं कुछ लोगों का व्यवहार देखकर हम उनसे चिढ़ने लगते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि हम जानें कि यहोवा  किन लोगों को “तुच्छ” समझता है और फिर उन लोगों से कोई नाता ना रखें। (1 कुरिं. 5:11) जैसे वे लोग जो बुरे कामों में लगे रहते हैं और पश्‍चाताप नहीं करते, जो बाइबल की शिक्षाओं की कोई कदर नहीं करते और जो यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते को तोड़ना चाहते हैं।​—नीति. 13:20.

15. हम उन लोगों का सम्मान कैसे कर सकते हैं जो ‘यहोवा का डर मानते हैं’?

15 भजन 15:4 में आगे यह भी लिखा है कि हम उन लोगों का ‘सम्मान करें जो यहोवा का डर मानते हैं।’ इसलिए हम यहोवा के दोस्तों के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करने और उनका आदर करने के मौके ढूँढ़ते हैं। (रोमि. 12:10) ऐसा करने का एक तरीका आयत 4 में बताया है। वहाँ लिखा है कि यहोवा के दोस्त ‘अपना वादा निभाते हैं, फिर चाहे उन्हें नुकसान क्यों न सहना पड़े।’ वादा तोड़ने से दूसरों का नुकसान हो सकता है और उन्हें ठेस पहुँच सकती है। (मत्ती 5:37) इसलिए यहोवा अपने दोस्तों से चाहता है कि वे अपने वादे पूरे करें। जैसे, वह चाहता है कि पति-पत्नी अपनी शादी का वादा निभाएँ और माता-पिता अपने बच्चों से किए वादे निभाने की पूरी कोशिश करें। हम यहोवा और अपने पड़ोसियों से प्यार करते हैं, इसलिए हम अपने वादे निभाने की पूरी कोशिश करते हैं।

16. यहोवा के दोस्तों का सम्मान करने का एक और तरीका क्या है?

16 यहोवा के दोस्तों का सम्मान करने का एक और तरीका है, उनकी मेहमान-नवाज़ी करना और उनकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहना। (रोमि. 12:13) जब हम अपने भाई-बहनों से मिलते हैं, उनके साथ वक्‍त बिताते हैं, तो हमारी दोस्ती और पक्की हो जाती है और यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता भी मज़बूत होता है। इतना ही नहीं, जब हम मेहमान-नवाज़ी करते हैं, तो हम यहोवा की तरह बन रहे होते हैं।

पैसों से प्यार ना करें

17. भजन 15 में पैसों की बात क्यों की गयी है?

17 भजन 15 में यह भी बताया है कि जो लोग यहोवा के तंबू में मेहमान बनकर रहना चाहते हैं, ‘वे ब्याज पर उधार नहीं देते, न किसी निर्दोष को दोषी ठहराने के लिए रिश्‍वत लेते हैं।’ (भज. 15:5) इस छोटे-से भजन में पैसे की बात क्यों की गयी है? क्योंकि अगर हम लोगों से ज़्यादा पैसों को अहमियत देने लगें, तो लोगों के साथ हमारा रिश्‍ता खराब हो सकता है और यहोवा के साथ हमारी दोस्ती भी टूट सकती है। (1 तीमु. 6:10) पुराने ज़माने में ऐसा ही कुछ हुआ था। कुछ इसराएली अपने गरीब इसराएली भाइयों को ब्याज पर पैसा दे रहे थे और उनका फायदा उठा रहे थे। इतना ही नहीं, कुछ न्यायी रिश्‍वत ले रहे थे और निर्दोष लोगों को दोषी ठहरा रहे थे। यह सब देखकर यहोवा को बहुत बुरा लगा। और आज भी वह ऐसे कामों से सख्त नफरत करता है।​—यहे. 22:12.

18. पैसों के बारे में हमारी क्या सोच है, यह जानने के लिए हम खुद से क्या सवाल कर सकते हैं? (इब्रानियों 13:5)

18 पैसों के बारे में हमारी क्या सोच है, यह जानना बहुत ज़रूरी है। इसलिए खुद से पूछिए: ‘क्या मैं हमेशा पैसों के बारे में ही सोचता रहता हूँ और यह सोचता रहता हूँ कि मैं क्या-क्या खरीदूँगा? अगर मैं किसी से उधार लेता हूँ, तो क्या मैं उसे चुकाने में आनाकानी करता हूँ और यह सोचता हूँ कि उसे तो पैसों की ज़रूरत नहीं है, मैं बाद में चुका दूँगा? क्या पैसा होने की वजह से मैं खुद को दूसरों से बड़ा समझता हूँ और कंजूस बन गया हूँ? क्या मैं अमीर भाई-बहनों के बारे में यह सोचता हूँ कि वे पैसों से प्यार करते हैं? क्या मैं सिर्फ अमीर लोगों के साथ दोस्ती करता हूँ और गरीब लोगों पर कोई ध्यान नहीं देता?’ यहोवा के तंबू में मेहमान होना हम सबके लिए बहुत बड़ी बात है। और अगर हम उसके तंबू में रहना चाहते हैं, तो यह बहुत ज़रूरी है कि हम पैसों से प्यार ना करें। तब यहोवा हमें कभी नहीं छोड़ेगा, ना कभी त्यागेगा।​—इब्रानियों 13:5 पढ़िए।

यहोवा अपने दोस्तों से प्यार करता है

19. यहोवा क्यों चाहता है कि हम भजन 15 में लिखी बातें मानें?

19 भजन 15 के आखिर में हमसे एक वादा किया गया है, “जो कोई ये सब करता है, उसे कभी हिलाया नहीं जा सकता।” (भज. 15:5) इससे हम समझ सकते हैं कि यहोवा क्यों चाहता है कि हम इस भजन में लिखी बातें मानें। यहोवा हमें खुश देखना चाहता है, इसलिए उसने हमें बताया है कि हमें क्या करना चाहिए। अगर हम उसकी बात मानेंगे, तो हम एक अच्छी ज़िंदगी जी पाएँगे और वह हमारी हिफाज़त करेगा।​—यशा. 48:17.

20. जो लोग यहोवा के तंबू में मेहमान हैं, वे क्या आशा रख सकते हैं?

20 जो लोग यहोवा के तंबू में मेहमान हैं, वे एक अच्छे भविष्य की आशा रख सकते हैं। अभिषिक्‍त मसीहियों को स्वर्ग में जीने की आशा है, जहाँ यीशु ने उनके लिए “बहुत-सी जगह” तैयार की है। (यूह. 14:2) और बाकी लोगों को धरती पर हमेशा जीने की आशा है, जहाँ वे प्रकाशितवाक्य 21:3 की बातों को पूरा होते हुए देखेंगे। सच में, हमारे लिए कितने बड़े सम्मान की बात है कि यहोवा ने हमें अपना दोस्त बनने का मौका दिया है। उसने हमें अपने तंबू में बुलाया है ताकि हम हमेशा-हमेशा तक उसके मेहमान रहें!

गीत 39 यहोवा की नज़रों में नेक नाम बनाएँ