यहोवा के साक्षी क्या मानते हैं?
हम यहोवा के साक्षी मसीही हैं। हम यीशु की शिक्षाओं को मानते हैं। हम वैसा ही करने की कोशिश करते हैं जैसे यीशु ने बताया था, ठीक जैसे शुरू में उसके शिष्य करते थे। इस लेख में बताया गया है कि हम क्या मानते हैं।
ईश्वर। हम मानते हैं कि एक ही सच्चा ईश्वर है जिसने सबकुछ बनाया है। उसका नाम यहोवा है। (भजन 83:18; प्रकाशितवाक्य 4:11) पुराने ज़माने में अब्राहम और मूसा जैसे नेक जन यहोवा को ही अपना ईश्वर मानते थे। यीशु ने भी उसी को अपना ईश्वर माना।—निर्गमन 3:6; 32:11; यूहन्ना 20:17.
बाइबल। बाइबल 66 किताबों से मिलकर बनी है, इसमें “पुराना नियम” और “नया नियम” शामिल है। हम मानते हैं कि ईश्वर ने पूरी बाइबल हम इंसानों के लिए लिखवाई थी। (यूहन्ना 17:17; 2 तीमुथियुस 3:16) हम जो भी मानते हैं वह बाइबल पर आधारित होता है। लोगों के धार्मिक विश्वास पर अध्ययन करनेवाले प्रोफेसर जेसन डी. बीडुन ने लिखा कि यहोवा के साक्षी “बाइबल में छानबीन किए बगैर पहले से तय नहीं कर लेते कि बाइबल फलाँ बात सिखाती है। इसके बजाय, बाइबल में जो लिखा है, ठीक उसी के मुताबिक शिक्षाएँ देते हैं और काम करते हैं।” a
हम मानते हैं कि पूरी बाइबल परमेश्वर का वचन है, मगर हम यह नहीं मानते कि इसमें लिखी हर बात का शाब्दिक मतलब होता है। इसमें ऐसी कई बातें और कई शब्द हैं जिनका लाक्षणिक मतलब है।—प्रकाशितवाक्य 1:1.
यीशु। हम यीशु के नक्शेकदम पर चलते हैं और उसकी शिक्षाओं को मानते हैं। हम यह भी मानते हैं कि यीशु हमारा उद्धारकर्ता है और ईश्वर का बेटा है। (मत्ती 20:28; प्रेषितों 5:31) इसलिए यह कहना सही होगा कि हम मसीही हैं। (प्रेषितों 11:26) हमने बाइबल से सीखा है कि यीशु सर्वशक्तिमान परमेश्वर नहीं है और बाइबल में कहीं भी त्रिएक की शिक्षा का ज़िक्र नहीं है।—यूहन्ना 14:28.
परमेश्वर का राज। कुछ ईसाइयों का मानना है कि परमेश्वर का राज उनके दिल में है। लेकिन बाइबल के मुताबिक यह सचमुच की एक सरकार है जो स्वर्ग से हुकूमत करेगी। यह सरकार दुनिया की सभी सरकारों को हटा देगी और इसके बाद धरती पर वही होगा जो ईश्वर चाहता है। (दानियेल 2:44; मत्ती 6:9, 10) ऐसा बहुत जल्द होगा क्योंकि जैसे बाइबल में पहले से लिखा था, आज हम इस बुरी दुनिया के “आखिरी दिनों” में जी रहे हैं।—2 तीमुथियुस 3:1-5; मत्ती 24:3-14.
यीशु परमेश्वर के राज का राजा है। उसने 1914 से राज करना शुरू कर दिया है।—प्रकाशितवाक्य 11:15.
उद्धार। यीशु ने हमारे लिए अपनी जान कुरबान की थी। उसकी कुरबानी की वजह से हमें पाप और मौत से छुटकारा मिलेगा। (मत्ती 20:28; प्रेषितों 4:12) लेकिन यह छुटकारा पाने के लिए हमें यीशु मसीह पर विश्वास करना होगा। हमें अपने तौर-तरीके भी बदलने होंगे और बपतिस्मा लेना होगा। (मत्ती 28:19, 20; यूहन्ना 3:16; प्रेषितों 3:19, 20) एक व्यक्ति अपने कामों से दिखा सकता है कि वह यीशु मसीह पर विश्वास करता है। (याकूब 2:24, 26) लेकिन हम सिर्फ नेक काम करके उद्धार नहीं पा सकते। हमें “परमेश्वर की महा-कृपा” से ही उद्धार मिल सकता है।—गलातियों 2:16, 21.
स्वर्ग। यहोवा परमेश्वर, यीशु मसीह और वफादार स्वर्गदूत स्वर्ग में रहते हैं। b (भजन 103:19-21; प्रेषितों 7:55) यीशु के साथ 1,44,000 इंसान स्वर्ग से राज करेंगे।—दानियेल 7:27; 2 तीमुथियुस 2:12; प्रकाशितवाक्य 5:9, 10; 14:1, 3.
धरती। ईश्वर ने धरती इसलिए बनायी है ताकि यह हमेशा इंसानों से आबाद रहे। (भजन 104:5; 115:16; सभोपदेशक 1:4) बहुत जल्द धरती खूबसूरत बगीचे जैसी हो जाएगी। तब वहाँ सिर्फ उन लोगों को जीने का मौका मिलेगा जो परमेश्वर की बात मानते हैं। वे फिर कभी बीमार नहीं पड़ेंगे और हमेशा तक इस धरती पर जीएँगे।—भजन 37:11, 34.
दुख-तकलीफें। बाइबल बताती है कि बहुत पहले परमेश्वर के एक स्वर्गदूत ने उसकी बात नहीं मानी और उसके खिलाफ काम किया। (यूहन्ना 8:44) तब से दुनिया में दुख-तकलीफें शुरू हुईं। उस स्वर्गदूत को “शैतान” और “इबलीस” कहा गया है। उसने दुनिया के पहले स्त्री-पुरुष आदम और हव्वा को परमेश्वर के खिलाफ जाने के लिए बहकाया। और उसने दावा किया कि इंसान परमेश्वर के बगैर खुश रह सकता है। जब वे दोनों शैतान की बातों में आ गए, तो अंजाम बहुत बुरा हुआ और आज तक इंसानों पर दुख-तकलीफें आ रही हैं। (उत्पत्ति 3:1-6; रोमियों 5:12) शैतान के दावे को झूठा साबित करने के लिए परमेश्वर ने कुछ वक्त के लिए दुख-तकलीफें रहने दी हैं। लेकिन वह जल्द ही इन्हें खत्म कर देगा।
मौत। जो लोग मर जाते हैं उनका वजूद पूरी तरह मिट जाता है। (भजन 146:4; सभोपदेशक 9:5, 10) कई लोग मानते हैं कि बुरे लोगों को नरक की आग में तड़पाया जाता है। मगर बाइबल के मुताबिक नरक जैसी कोई जगह नहीं है।
बहुत जल्द परमेश्वर करोड़ों लोगों को ज़िंदा करेगा। (प्रेषितों 24:15) फिर उन्हें यहोवा के बारे में सीखने का मौका दिया जाएगा। लेकिन जो लोग उसके बारे में सीखने से इनकार कर देंगे उन्हें हमेशा के लिए मिटा दिया जाएगा।—प्रकाशितवाक्य 20:14, 15.
परिवार। परमेश्वर ने शुरू में तय किया था कि एक आदमी को सिर्फ एक औरत से शादी करनी चाहिए। हम भी यही मानते हैं। अगर पति-पत्नी में से एक जन किसी पराए के साथ संबंध रखे, तो ही वे तलाक ले सकते हैं। (मत्ती 19:4-9) हमें पूरा यकीन है कि अगर पति-पत्नी और बच्चे बाइबल में दी सलाह मानें, तो वे खुश रहेंगे।—इफिसियों 5:22-6:1.
उपासना। हम क्रूस या किसी भी मूरत की पूजा नहीं करते। (व्यवस्थाविवरण 4:15-19; 1 यूहन्ना 5:21) आगे बतायी बातें हमारी उपासना का हिस्सा हैं:
परमेश्वर से प्रार्थना करना।—फिलिप्पियों 4:6.
बाइबल पढ़ना और उसे अच्छी तरह समझना।—भजन 1:1-3.
बाइबल से सीखी बातों के बारे में गहराई से सोचना।—भजन 77:12.
साथ मिलकर प्रार्थना करना, बाइबल का अध्ययन करना, गीत गाना, ईश्वर से जुड़ी बातों पर चर्चा करना और एक-दूसरे की हिम्मत बँधाना।—कुलुस्सियों 3:16; इब्रानियों 10:23-25.
परमेश्वर के “राज की खुशखबरी” सब लोगों को सुनाना।—मत्ती 24:14.
राज-घर (जहाँ हमारी सभाएँ होती हैं) और ऐसी दूसरी इमारतों का निर्माण और रख-रखाव करना जहाँ हमारे संगठन का काम चलता है।—भजन 127:1.
राहत काम में हाथ बँटाना।—प्रेषितों 11:27-30.
हमारा संगठन। हम छोटे-छोटे समूहों में मिलते हैं, जिन्हें मंडलियाँ कहा जाता है। हरेक मंडली की देखरेख करने के लिए कुछ प्राचीन होते हैं और उन्हें इस काम के लिए तनख्वाह नहीं दी जाती। हमारे संगठन में पादरी नहीं होते जैसे चर्चों में होते हैं। (मत्ती 10:8; 23:8) हम न तो किसी की कमाई का दसवाँ हिस्सा माँगते हैं, न ही अपनी सभाओं में थैलियाँ घुमाकर चंदा इकट्ठा करते हैं। (2 कुरिंथियों 9:7) हमारे काम का खर्च लोगों के दान से चलता है और कौन कितना दान करता है, इसकी कोई घोषणा नहीं की जाती।
कुछ अनुभवी मसीहियों का एक छोटा-सा समूह हमारे विश्व-मुख्यालय में काम करता है। उन्हें शासी निकाय कहा जाता है। वे पूरी दुनिया में रहनेवाले यहोवा के साक्षियों को निर्देश देते हैं।—मत्ती 24:45.
एकता। पूरी दुनिया में यहोवा के साक्षी एक-जैसी शिक्षाओं को मानते हैं। (1 कुरिंथियों 1:10) हम सब लोगों से एक-जैसा व्यवहार करते हैं फिर चाहे वे किसी भी जाति, संस्कृति या तबके से क्यों न हों। (प्रेषितों 10:34, 35; याकूब 2:4) हालाँकि हम सभी एक-जैसी शिक्षाओं को मानते हैं, लेकिन हर किसी को अपने फैसले खुद करने की आज़ादी है। हममें से हर कोई बाइबल से सीखी बातों के आधार पर फैसले करता है।—रोमियों 14:1-4; इब्रानियों 5:14.
हमारे उसूल। हम कोशिश करते हैं कि सबके साथ प्यार से रहें और उनके भले की सोचें। (यूहन्ना 13:34, 35) हम ध्यान रखते हैं कि ऐसा कोई काम न करें जिससे परमेश्वर नाराज़ हो। यही वजह है कि हम इलाज में खून नहीं चढ़वाते। (प्रेषितों 15:28, 29; गलातियों 5:19-21) हम सबके साथ शांति से रहने की कोशिश करते हैं और युद्धों में हिस्सा नहीं लेते। (मत्ती 5:9; यशायाह 2:4) हम सरकार के कानून मानते हैं, लेकिन अगर सरकार हमसे कुछ ऐसा करने को कहे जो परमेश्वर के कानून के खिलाफ हो तो हम वह नहीं करते।—मत्ती 22:21; प्रेषितों 5:29.
दूसरों के साथ हमारा व्यवहार। यीशु ने अपने शिष्यों से कहा था, “तुम अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।” पर उसने यह भी कहा कि मसीहियों को इस ‘दुनिया से अलग’ रहना चाहिए। (मत्ती 22:39; यूहन्ना 17:16) इसलिए “हम सबके साथ भलाई” करने की कोशिश करते हैं, लेकिन राजनीति या दूसरे धर्मों से कोई नाता नहीं रखते। (गलातियों 6:10; 2 कुरिंथियों 6:14) रही बात दूसरे लोगों की, वे राजनीति और धर्म के मामले में चाहे जो मानें, हमें उससे कोई एतराज़ नहीं।—रोमियों 14:12.
अगर आपके मन में यहोवा के साक्षियों के बारे में कुछ और सवाल हैं, तो आप हमारी वेबसाइट पर हमारे बारे में और पढ़ सकते हैं या फिर हमारे किसी शाखा दफ्तर से संपर्क कर सकते हैं। आप चाहे तो अपने इलाके के राज-घर में भी आ सकते हैं जहाँ हमारी सभाएँ होती हैं या फिर सीधे किसी यहोवा के साक्षी से बात कर सकते हैं।
a अनुवाद में सच्चाई (अँग्रेज़ी) किताब का पेज 165 देखिए।
b कुछ स्वर्गदूत बुरे हो गए थे, इसलिए उन्हें स्वर्ग से निकाल दिया गया।—प्रकाशितवाक्य 12:7-9.