अध्याय 9
“परमेश्वर भेदभाव नहीं करता”
खतनारहित गैर-यहूदियों को खुशखबरी सुनने का मौका मिलता है
प्रेषितों 10:1–11:30 पर आधारित
1-3. पतरस दर्शन में क्या देखता है? दर्शन का मतलब समझना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है?
ईसवी सन् 36 का साल है। पतझड़ का मौसम है और दोपहर का वक्त है। पतरस याफा शहर में एक घर की छत पर प्रार्थना कर रहा है। यह घर समुंदर किनारे है। वह कुछ दिनों से इस घर में मेहमान है। घर का मालिक शमौन, चमड़े का काम करता है। बहुत कम यहूदियों को चमड़े का काम करनेवालों के घर ठहरना गवारा होता। a पतरस का इस घर में रुकना दिखाता है कि उसके दिल में कोई भेदभाव नहीं है। वह जानता है कि परमेश्वर यहोवा भेदभाव नहीं करता और उसकी नज़र में हर इंसान बराबर है। फिर भी उसे परमेश्वर के इस गुण के बारे में बहुत जल्द एक अहम सीख मिलनेवाली है।
2 प्रार्थना करते-करते पतरस को एक दर्शन मिलता है। दर्शन में वह कुछ ऐसा देखता है जो किसी भी यहूदी को परेशान कर सकता है। आकाश से बड़ी चादर जैसा कुछ नीचे आ रहा है। और उसमें ऐसे कई जानवर भरे पड़े हैं जो मूसा के कानून के मुताबिक अशुद्ध हैं। फिर एक आवाज़ पतरस से कहती है कि इन जानवरों को काटकर खा। मगर पतरस कहता है, “मैंने कभी कोई दूषित और अशुद्ध चीज़ नहीं खायी है।” ऐसा तीन बार होता है और हर बार वह आवाज़ पतरस से कहती है, “तू अब से उन चीज़ों को दूषित मत कहना जिन्हें परमेश्वर ने शुद्ध किया है।” (प्रेषि. 10:14-16) दर्शन देखकर पतरस उलझन में पड़ जाता है। लेकिन जल्द ही यह गुत्थी सुलझनेवाली है।
3 इस दर्शन का मतलब समझना आज हमारे लिए भी ज़रूरी है। तब हम समझ पाएँगे कि यहोवा इंसानों को किस नज़र से देखता है। यहोवा का नज़रिया रखने से ही हम उसके राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दे पाएँगे। आइए देखें कि दर्शन से पहले और उसके बाद कौन-सी घटनाएँ घटती हैं।
वह ‘परमेश्वर के सामने गिड़गिड़ाकर बिनती किया करता है’ (प्रेषि. 10:1-8)
4, 5. कुरनेलियुस कौन है? जब वह प्रार्थना कर रहा होता है तो क्या होता है?
4 इस दर्शन से एक दिन पहले कुरनेलियुस नाम के एक आदमी को भी परमेश्वर की तरफ से एक दर्शन मिलता है। लेकिन पतरस इस बात से बेखबर है। कुरनेलियुस याफा से करीब 50 किलोमीटर दूर कैसरिया में रहता है। वह रोमी सेना का एक बड़ा अफसर है और “एक भक्त इंसान” है। b वह अपने परिवार की अच्छी देखभाल करता है और आयत बताती है कि “वह और उसका पूरा घराना परमेश्वर का डर मानता [है]।” कुरनेलियुस यहूदी धर्म अपनानेवालों में से नहीं है बल्कि एक खतनारहित गैर-यहूदी है। लेकिन वह ज़रूरतमंद यहूदियों पर करुणा करता है और पैसे या दूसरी चीज़ें देकर उनकी मदद करता है। “परमेश्वर के सामने गिड़गिड़ाकर बिनती” करना इस नेक इंसान की आदत है।—प्रेषि. 10:2.
5 दोपहर के करीब 3 बजे जब कुरनेलियुस प्रार्थना कर रहा होता है तो वह एक दर्शन देखता है। दर्शन में एक स्वर्गदूत उससे कहता है, “परमेश्वर ने तेरी प्रार्थनाएँ सुनी हैं और जो दान तू देता है उन पर ध्यान दिया है।” (प्रेषि. 10:4) फिर स्वर्गदूत उससे कहता है कि वह अपने आदमी भेजकर प्रेषित पतरस को बुलवा ले। कुरनेलियुस वही करता है जो स्वर्गदूत उससे कहता है। अब कुरनेलियुस को ऐसा मौका मिलनेवाला है, जो अब तक गैर-यहूदियों को नहीं मिला था। उसे उद्धार का संदेश सुनाया जाएगा।
6, 7. (क) एक अनुभव बताइए जो दिखाता है कि परमेश्वर नेकदिल लोगों की प्रार्थनाएँ सुनता है। (ख) ऐसे अनुभवों से हम किस नतीजे पर पहुँच सकते हैं?
6 आज भी कई लोग परमेश्वर को जानने के लिए प्रार्थना करते हैं। क्या परमेश्वर ऐसे नेकदिल लोगों की प्रार्थनाएँ सुनता है? एक अनुभव पर ध्यान दीजिए। अल्बानिया में एक बहन घर-घर के प्रचार में एक औरत से मिली। बहन ने उसे एक प्रहरीदुर्ग पत्रिका दी जो बच्चों की परवरिश के बारे में थी। c उस औरत ने बहन से कहा, “आप यकीन नहीं करोगी, मैं परमेश्वर से यही प्रार्थना कर रही थी कि मुझे अपनी बेटियों की परवरिश करने में मदद कर। और देखो! उसने आपको भेज दिया। ऐसा लगता है, यह पत्रिका मेरे लिए ही लिखी गयी थी।” वह औरत और उसकी बेटियाँ बाइबल अध्ययन करने लगीं और बाद में उसका पति भी अध्ययन करने लगा।
7 क्या ऐसे अनुभव कभी-कभार ही होते हैं? जी नहीं! पूरी दुनिया में साक्षियों को अकसर ऐसे अनुभव होते हैं, इसलिए इसे महज़ एक इत्तफाक नहीं कहा जा सकता। तो फिर हम किस नतीजे पर पहुँच सकते हैं? एक तो यह कि यहोवा उन लोगों की प्रार्थनाएँ सुनता है जो उसके बारे में जानना चाहते हैं। (1 राजा 8:41-43; भज. 65:2) दूसरी बात, प्रचार काम में स्वर्गदूत हमारे साथ हैं।—प्रका. 14:6, 7.
‘पतरस बड़ी उलझन में है’ (प्रेषि. 10:9-23क)
8, 9. परमेश्वर पवित्र शक्ति के ज़रिए पतरस को क्या हिदायत देता है? पतरस क्या करता है?
8 ‘पतरस बड़ी उलझन में है’ कि इस दर्शन का क्या मतलब हो सकता है। वह घर की छत पर इस बारे में सोच ही रहा था कि तभी कुरनेलियुस के आदमी दरवाज़े पर पहुँच जाते हैं। (प्रेषि. 10:17) पतरस ने कुछ देर पहले ऐसी चीज़ें खाने से तीन बार इनकार किया जो कानून के हिसाब से अशुद्ध थीं। तो क्या अब वह इन आदमियों के साथ जाने के लिए राज़ी होगा और एक गैर-यहूदी के घर में कदम रखेगा? परमेश्वर अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए पतरस को यह हिदायत देता है, “देख! तीन आदमी तेरे बारे में पूछ रहे हैं। उठ, नीचे जा और उनके साथ बेझिझक चला जा, क्योंकि मैंने ही उन्हें भेजा है।” (प्रेषि. 10:19, 20) पतरस यह हिदायत ज़रूर मानेगा, क्योंकि अभी-अभी उसे जो दर्शन मिला है उसकी वजह से उसका मन तैयार है।
9 वे तीन आदमी पतरस को बताते हैं कि एक स्वर्गदूत ने कुरनेलियुस से बात की और इसीलिए वे उसके पास आए हैं। तब पतरस उन आदमियों को घर के अंदर बुलाता है ‘और अपना मेहमान बनाकर ठहराता है।’ (प्रेषि. 10:23क) पतरस के इस व्यवहार से पता चलता है कि उसने परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक अपनी सोच ढालनी शुरू कर दी है।
10. आज यहोवा कैसे अपने लोगों की अगुवाई करता है? हमें खुद से क्या पूछना चाहिए?
10 आज भी, यहोवा अपने लोगों की अगुवाई करता है और अपनी मरज़ी के बारे में ज़रूरत के मुताबिक समझ देता है। (नीति. 4:18) वह अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को सही राह दिखा रहा है। (मत्ती 24:45) कभी-कभी हमें बाइबल की किसी सच्चाई के बारे में नयी समझ मिलती है या संगठन के काम करने के तरीके में कुछ फेरबदल किए जाते हैं। तब हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘जब इस तरह के फेरबदल होते हैं, तो क्या मैं तुरंत अपनी सोच बदलता हूँ? पवित्र शक्ति के ज़रिए हमें जो निर्देश मिलते हैं, क्या मैं खुशी-खुशी उन्हें मानता हूँ?’
पतरस ‘आज्ञा देता है कि उन्हें बपतिस्मा दिया जाए’ (प्रेषि. 10:23ख-48)
11, 12. कैसरिया पहुँचकर पतरस क्या करता है? उसे किस बात का यकीन हो जाता है?
11 दर्शन देखने के अगले दिन पतरस कुरनेलियुस के तीन आदमियों और याफा के ‘छः यहूदी भाइयों’ को लेकर कैसरिया के लिए निकल पड़ता है। (प्रेषि. 11:12) कैसरिया में कुरनेलियुस, पतरस का इंतज़ार कर रहा है। इस बीच वह “अपने रिश्तेदारों और करीबी दोस्तों को” भी अपने घर में इकट्ठा करता है। शायद ये सभी गैर-यहूदी हैं। (प्रेषि. 10:24) पतरस वहाँ पहुँचकर कुछ ऐसा करता है जिसके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं होगा। वह एक खतनारहित गैर-यहूदी के घर में कदम रखता है! इस बारे में वह कुरनेलियुस से कहता है, “तुम अच्छी तरह जानते हो कि एक यहूदी के लिए दूसरी जाति के किसी इंसान से मिलना-जुलना या उसके यहाँ जाना भी नियम के खिलाफ है। मगर फिर भी परमेश्वर ने मुझे दिखाया है कि मैं किसी भी इंसान को दूषित या अशुद्ध न कहूँ।” (प्रेषि. 10:28) अब पतरस अच्छी तरह समझ गया कि परमेश्वर दर्शन के ज़रिए उसे क्या सीख देना चाह रहा था। वह उससे खाने की बात नहीं कर रहा था बल्कि यह समझा रहा था कि उसे ‘किसी भी इंसान को [यहाँ तक कि गैर-यहूदी को भी] दूषित नहीं कहना’ चाहिए।
12 कुरनेलियुस के घर में इकट्ठा लोग जानना चाहते हैं कि पतरस उनसे क्या कहेगा। कुरनेलियुस पतरस से कहता है, “हम सब परमेश्वर के सामने हाज़िर हैं ताकि वे सारी बातें सुनें, जिन्हें सुनाने की आज्ञा यहोवा ने तुझे दी है।” (प्रेषि. 10:33) ज़रा सोचिए, अगर यही बात कोई प्रचार में आपसे कहे तो आपको कितनी खुशी होगी! पतरस इन दमदार शब्दों से अपनी बात शुरू करता है, “अब मैं अच्छी तरह समझ गया हूँ कि परमेश्वर भेदभाव नहीं करता, मगर हर वह इंसान जो उसका डर मानता है और सही काम करता है, फिर चाहे वह किसी भी राष्ट्र का क्यों न हो, उसे वह स्वीकार करता है।” (प्रेषि. 10:34, 35) पतरस को यकीन हो गया कि परमेश्वर जाति, देश या रंग नहीं देखता बल्कि सबके साथ एक जैसा व्यवहार करता है। इसके बाद पतरस उनसे यीशु की सेवा, उसकी मौत और उसके ज़िंदा होने के बारे में बात करता है।
13, 14. (क) ईसवी सन् 36 में जब गैर-यहूदी मसीही बने, तो क्या ज़ाहिर हुआ? (ख) हमें क्यों लोगों का बाहरी रूप देखकर उनके बारे में राय कायम नहीं करनी चाहिए?
13 फिर एक ऐसी घटना घटती है जो पहले कभी नहीं हुई। ‘पतरस अपनी बातें बोल ही रहा होता है’ कि तभी उन “गैर-यहूदियों” पर पवित्र शक्ति उतरती है। (प्रेषि. 10:44, 45) बाइबल में सिर्फ यही एक घटना दर्ज़ है जब बपतिस्मा लेने से पहले किसी को पवित्र शक्ति मिली हो। पतरस समझ जाता है कि यहोवा ने इन गैर-यहूदियों को स्वीकार कर लिया है, इसलिए वह ‘आज्ञा देता है कि उन्हें बपतिस्मा दिया जाए।’ (प्रेषि. 10:48) इस तरह ईसवी सन् 36 में जब गैर-यहूदी मसीही बने, तब इससे साफ ज़ाहिर हुआ कि यहूदी यहोवा के खास लोग नहीं रहे। (दानि. 9:24-27) इस मौके पर पतरस ‘राज की चाबियों’ में से तीसरी और आखिरी चाबी इस्तेमाल करता है। (मत्ती 16:19) इससे खतनारहित गैर-यहूदियों को अभिषिक्त मसीही बनने का मौका मिलता है।
14 आज राज के प्रचारक जानते हैं कि “परमेश्वर भेदभाव नहीं करता।” (रोमि. 2:11) वह चाहता है कि “सब किस्म के लोगों का उद्धार हो।” (1 तीमु. 2:4) इसलिए हमें कभी-भी लोगों का बाहरी रूप देखकर उनके बारे में राय कायम नहीं करनी चाहिए। हमारा काम है, परमेश्वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही देना। इसमें सभी लोगों को खुशखबरी सुनाना शामिल है, फिर चाहे उनकी भाषा, देश, धर्म या रंग जो भी हो।
‘वे और कुछ नहीं कहते और परमेश्वर की महिमा करने लगते हैं’ (प्रेषि. 11:1-18)
15, 16. कुछ यहूदी मसीही, पतरस से नाराज़ क्यों हैं? वह उन्हें कैसे समझाता है कि उसने जो किया वह गलत नहीं था?
15 पतरस यरूशलेम के भाइयों को कैसरिया में हुई घटना की खबर देने के लिए बेताब है और वह यरूशलेम के लिए निकल पड़ता है। लेकिन ऐसा मालूम होता है कि उसके पहुँचने से पहले ही यरूशलेम में खबर फैल जाती है कि खतनारहित गैर-यहूदियों ने “परमेश्वर का वचन स्वीकार किया है।” जैसे ही पतरस यरूशलेम पहुँचता है, “खतने का समर्थन करनेवाले उसे बुरा-भला कहने” लगते हैं। यहूदी मसीही पतरस से नाराज़ हैं कि वह ‘ऐसे लोगों के घर गया था जिनका खतना नहीं हुआ और उनके साथ खाना भी खाया।’ (प्रेषि. 11:1-3) वे इस बात पर बहस नहीं करते कि गैर-यहूदी लोग मसीही बन सकते हैं या नहीं। इसके बजाय, उनका कहना है कि अगर गैर-यहूदी परमेश्वर के सेवक बनना चाहते हैं, तो उन्हें मूसा का कानून मानना होगा जिसमें खतना करवाना भी शामिल है। यह साफ है कि कुछ यहूदी चेलों के लिए यह मानना मुश्किल हो रहा है कि मूसा का कानून अब रद्द हो चुका है।
16 पतरस उन लोगों को कैसे समझाता है कि उसने जो किया वह गलत नहीं था? जैसा प्रेषितों 11:4-16 बताता है, पतरस उन्हें चार सबूत देकर समझाता है कि परमेश्वर ने उसे गैर-यहूदियों के घर जाने के लिए कहा था। (1) परमेश्वर से उसे एक दर्शन मिला था (आयत 4-10); (2) पवित्र शक्ति ने उसे आज्ञा दी थी (आयत 11, 12); (3) स्वर्गदूत ने कुरनेलियुस से बात की थी (आयत 13, 14) और (4) गैर-यहूदियों पर पवित्र शक्ति उतरी थी। (आयत 15, 16) आखिर में पतरस एक ऐसा सवाल करता है, जिसका जवाब यहूदी मसीही खुद जानते हैं। वह कहता है, “इसलिए जब परमेश्वर ने उन्हें भी [पवित्र शक्ति का] वह मुफ्त वरदान दिया, जो उसने हमें यानी प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करनेवालों को दिया था, तो परमेश्वर को रोकनेवाला भला मैं कौन होता?”—प्रेषि. 11:17.
17, 18. (क) पतरस की बात सुनने के बाद यहूदी मसीहियों को क्या फैसला करना है? (ख) मंडली की एकता बनाए रखना क्यों मुश्किल हो सकता है? हमें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?
17 पतरस की बात सुनने के बाद अब उन यहूदी मसीहियों को एक ज़रूरी फैसला करना है। क्या वे अपने दिल से जाति-भेद की भावना मिटाकर उन गैर-यहूदी मसीहियों को अपनाएँगे? आयत बताती है, “जब उन्होंने [यानी प्रेषितों और दूसरे यहूदी मसीहियों ने] ये बातें सुनीं तो इस बारे में और कुछ न कहा और यह कहकर परमेश्वर की महिमा करने लगे, ‘तो इसका मतलब, परमेश्वर ने गैर-यहूदियों को भी पश्चाताप करने का मौका दिया है ताकि वे भी जीवन पाएँ।’” (प्रेषि. 11:18) यहूदी मसीही अपनी सोच बदलते हैं और इस वजह से मंडली की एकता बनी रहती है।
18 आज भी एकता बनाए रखना मुश्किल हो सकता है क्योंकि यहोवा के सेवक “सब राष्ट्रों और गोत्रों और जातियों और भाषाओं” में से आए हैं। (प्रका. 7:9) कई मंडलियों में भाई-बहनों की भाषा, परवरिश और संस्कृति एक-दूसरे से बिलकुल अलग है। इसलिए हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं कुछ लोगों को इसलिए पसंद नहीं करता क्योंकि वे मुझसे अलग हैं? भले ही लोग अपने देश, जाति और संस्कृति की वजह से खुद को दूसरों से बेहतर समझते हैं, लेकिन क्या मैंने ठान लिया है कि मैं अपने भाई-बहनों के साथ ऐसा नहीं करूँगा?’ भेदभाव की भावना कभी-भी हमारे मन में आ सकती है। याद कीजिए कि जब गैर-यहूदी मसीही बने, तो उसके कुछ साल बाद कैफा यानी पतरस ने क्या किया। वह कुछ यहूदी मसीहियों की वजह से गैर-यहूदी मसीहियों से “दूर-दूर रहने लगा।” इस वजह से पौलुस को पतरस की सोच सुधारनी पड़ी। (गला. 2:11-14) आइए हम सावधान रहें कि हम कभी-भी भेदभाव ना करने लगें।
‘बड़ी तादाद में लोग विश्वास करते हैं’ (प्रेषि. 11:19-26क)
19. अंताकिया में यहूदी चेले किन लोगों को प्रचार करना शुरू करते हैं? इसका क्या नतीजा होता है?
19 अब क्या यीशु के चेले खतनारहित गैर-यहूदियों के यहाँ जाकर उन्हें खुशखबरी सुनाना शुरू करेंगे? गौर कीजिए कि इसके कुछ समय बाद सीरिया के अंताकिया में क्या होता है। d अंताकिया शहर में बहुत सारे यहूदी रहते हैं और यहाँ यहूदियों और गैर-यहूदियों के बीच काफी हद तक शांति है। इसलिए यह शहर गैर-यहूदियों को प्रचार करने के लिए एक बढ़िया इलाका है। अंताकिया में ही कुछ यहूदी चेले “यूनानी बोलनेवाले लोगों को” खुशखबरी सुनाना शुरू करते हैं। (प्रेषि. 11:20) इनमें यूनानी बोलनेवाले यहूदी और खतनारहित गैर-यहूदी दोनों शामिल हैं। यहोवा चेलों के प्रचार काम पर आशीष देता है और ‘बड़ी तादाद में लोग विश्वास करते हैं।’—प्रेषि. 11:21.
20, 21. बरनबास कैसे दिखाता है कि वह नम्र है? प्रचार काम में हम उसकी तरह कैसे बन सकते हैं?
20 अब अंताकिया में खेत कटाई के लिए पक चुके हैं, इसलिए यरूशलेम की मंडली बरनबास को अंताकिया भेजती है। वहाँ इतने सारे लोग खुशखबरी में दिलचस्पी लेते हैं कि बरनबास के लिए अकेले उन सबकी मदद करना मुश्किल हो जाता है। बरनबास का हाथ बँटाने के लिए कौन सही रहेगा? शाऊल सही रहेगा क्योंकि वह गैर-यहूदी राष्ट्रों के लिए प्रेषित बननेवाला था। (प्रेषि. 9:15; रोमि 1:5) क्या बरनबास यह सोचता है कि अगर शाऊल अंताकिया आया तो कोई मुझे नहीं पूछेगा? जी नहीं! बरनबास नम्र है और वह समझता है कि सारा काम उससे अकेले नहीं हो सकता। वह शाऊल को ढूँढ़ने तरसुस जाता है और उसे अपने साथ अंताकिया ले आता है। फिर वे दोनों मिलकर अंताकिया में पूरे एक साल तक मंडली के भाई-बहनों का हौसला बढ़ाते हैं।—प्रेषि. 11:22-26क.
21 प्रचार में हम कैसे नम्र रह सकते हैं और अपनी सीमाएँ पहचान सकते हैं? हम सबमें अलग-अलग खूबियाँ और काबिलीयतें होती हैं लेकिन हम कुछ बातों में कमज़ोर भी होते हैं। जैसे, कुछ मसीही घर-घर जाकर प्रचार करने या मौका देखकर गवाही देने में कुशल होते हैं लेकिन वापसी भेंट करना या बाइबल अध्ययन शुरू करना उन्हें मुश्किल लगता है। अगर आपको भी वापसी भेंट करना या किसी और तरीके से गवाही देना मुश्किल लगता है, तो क्यों ना आप किसी प्रचारक से मदद माँगकर इसे करना सीखें? ऐसा करने से, आप भी हुनरमंद बनेंगे और आपको अपनी सेवा में ज़्यादा खुशी मिलेगी।—1 कुरिं. 9:26.
“भाइयों की मदद के लिए राहत का सामान” भेजा जाता है (प्रेषि. 11:26ख-30)
22, 23. अंताकिया के मसीहियों ने कैसे दिखाया कि वे अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं? आज परमेश्वर के लोग कैसे दिखाते हैं कि वे एक-दूसरे से प्यार करते हैं?
22 ‘परमेश्वर के मार्गदर्शन से अंताकिया में ही पहली बार चेले “मसीही” कहलाते हैं।’ (प्रेषि. 11:26ख) चेलों के लिए “मसीही” नाम एकदम सही है क्योंकि उनके जीने का तरीका मसीह जैसा है। जब गैर-यहूदी लोग मसीही बनते हैं, तो क्या यहूदियों और गैर-यहूदियों के बीच प्यार और भाईचारा होता है? बेशक। गौर कीजिए कि करीब ईसवी सन् 46 में जब एक भारी अकाल पड़ता है तो क्या होता है। e उन दिनों में, अकाल की मार सबसे ज़्यादा गरीबों पर पड़ती थी, क्योंकि उनके पास ना तो खाना होता था ना कोई जमा-पूँजी। जब भारी अकाल पड़ता है तो यहूदिया में रहनेवाले यहूदी मसीहियों का बुरा हाल हो जाता है क्योंकि उनमें से ज़्यादातर बहुत गरीब हैं। जब अंताकिया के यहूदी और गैर-यहूदी भाइयों को इस बारे में पता चलता है तो वे “यहूदिया के भाइयों की मदद के लिए राहत का सामान” भेजते हैं। (प्रेषि. 11:29) जी हाँ, अंताकिया के मसीहियों ने दिखाया कि वे अपने भाई-बहनों से दिल से प्यार करते हैं।
23 आज भी परमेश्वर के लोगों के बीच प्यार और भाईचारा है। जब हमें पता चलता है कि हमारे देश में या किसी और देश में भाई-बहन मुसीबत में हैं, तो हम तुरंत मदद करते हैं। जैसे जब किसी इलाके में तूफान, भूकंप या सुनामी जैसी कुदरती आफतें आती हैं तो शाखा-समितियाँ बिना देर किए विपत्ति राहत-समितियाँ ठहराती हैं ताकि विपत्ति के शिकार भाई-बहनों की देखभाल की जा सके। ये सारे इंतज़ाम दिखाते हैं कि हम अपने भाई-बहनों से सच्चा प्यार करते हैं।—यूह. 13:34, 35; 1 यूह. 3:17.
24. हम कैसे दिखा सकते हैं कि पतरस को जो सीख मिली थी उसे आज हम भी याद रखते हैं?
24 याफा में पतरस को दर्शन दिखाकर यहोवा ने कितने बढ़िया तरीके से उसे सिखाया कि वह भेदभाव नहीं करता। और उसकी मरज़ी है कि सब लोग खुशखबरी सुनें, फिर चाहे वे किसी भी भाषा, देश या तबके से हों। आज हम भी यह सीख याद रखना चाहते हैं। इसलिए आइए हम उन सभी को अच्छी तरह गवाही दें जो खुशखबरी सुनना चाहते हैं और उन्हें यहोवा की सेवा करने का मौका दें।—रोमि. 10:11-13.
a चमड़े का काम करनेवाले जानवरों की खालों से चमड़ा तैयार करते थे। इसके लिए वे जानवरों की लाशें छूते थे और कुछ घिनौनी चीज़ें भी इस्तेमाल करते थे, जैसे कुत्ते का मल वगैरह। इसलिए कुछ यहूदी उन्हें नीची नज़र से देखते थे। यहूदी नहीं चाहते थे कि चमड़े का काम करनेवाले मंदिर में कदम रखें। यही नहीं, उन्हें शहर की सरहद से कम-से-कम 20 मीटर की दूरी पर अपना व्यापार करना होता था। शायद इसी वजह से शमौन का घर लोगों की बस्ती से दूर “समुंदर के किनारे” था।—प्रेषि. 10:6.
b यह बक्स देखें, “ कुरनेलियुस और रोमी सेना।”
c यह लेख 1 नवंबर, 2006 की प्रहरीदुर्ग के पेज 4-7 पर दिया गया है जिसका विषय है, “बच्चों की परवरिश करने के लिए भरोसेमंद सलाह।”
d यह बक्स देखें, “ सीरिया का अंताकिया।”
e यहूदी इतिहासकार जोसीफस ने अपनी किताब में लिखा कि यह “भारी अकाल” सम्राट क्लौदियुस की हुकूमत यानी ईसवी सन् 41-54 के दौरान पड़ा था।