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अध्याय 12

‘यहोवा से मिले अधिकार की वजह से वे निडर होकर वचन सुनाते रहे’

‘यहोवा से मिले अधिकार की वजह से वे निडर होकर वचन सुनाते रहे’

पौलुस और बरनबास नम्र और निडर रहते हैं और अपने काम में डटे रहते हैं

प्रेषितों 14:1-28 पर आधारित

1, 2. लुस्त्रा में पौलुस और बरनबास के साथ क्या होता है?

 लुस्त्रा शहर में शोर-शराबा मचा हुआ है। कुछ देर पहले यहाँ दो अजनबी आए और उन्होंने एक ऐसे आदमी को ठीक किया जो जन्म से लँगड़ा था। खुशी के मारे वह आदमी उछल-कूद रहा है। लोगों को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा। उन्होंने ज़िंदगी में पहली बार ऐसा चमत्कार देखा है। उन्हें लगता है कि ये दो अजनबी ज़रूर कोई देवता हैं। फिर क्या, पूजा की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। वहाँ का पुजारी उनके लिए फूलों के हार और बलि चढ़ाने के लिए बैल ले आता है। तब दोनों अजनबी अपने कपड़े फाड़ते हैं और लोगों से मिन्‍नतें करते हैं कि उनकी पूजा ना की जाए। ये अजनबी कोई और नहीं, पौलुस और बरनबास हैं। उनके बहुत मना करने पर भीड़ शांत हो जाती है।

2 इसके बाद, पिसिदिया के अंताकिया और इकुनियुम से कुछ यहूदी आ धमकते हैं। वे लोगों को पौलुस और बरनबास के खिलाफ भड़काते हैं। नतीजा? जो भीड़ पौलुस को देवता मान रही थी, अब वही भीड़ उस पर टूट पड़ती है। वे उसे पत्थरों से तब तक मारते हैं जब तक कि वह बेहोश नहीं हो जाता। फिर वे उसे घसीटकर शहर के बाहर ले जाते हैं और मरा समझकर वहीं छोड़ देते हैं।

3. इस अध्याय में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?

3 इस घटना से पहले क्या हुआ था? पौलुस, बरनबास और लुस्त्रा के लोगों से हम क्या सबक सीखते हैं? और जिस तरह पौलुस और बरनबास ‘यहोवा से मिले अधिकार की वजह से निडर होकर वचन सुनाते रहे,’ उससे आज प्राचीन क्या सीख सकते हैं? (प्रेषि. 14:3) आइए इन सवालों के जवाब जानें।

‘बहुत-से लोग विश्‍वासी बन जाते हैं’ (प्रेषि. 14:1-7)

4, 5. पौलुस और बरनबास इकुनियुम क्यों जाते हैं और वहाँ क्या होता है?

4 कुछ दिन पहले पौलुस और बरनबास पिसिदिया के रोमी शहर अंताकिया में थे। वहाँ कुछ यहूदियों ने उनका विरोध किया और उन्हें शहर से भगा दिया। वे चुपचाप वहाँ से चले जाते हैं। वे निराश नहीं होते बल्कि “अपने पैरों की धूल झाड़” देते हैं। (प्रेषि. 13:50-52; मत्ती 10:14) अब परमेश्‍वर के न्याय के दिन उन लोगों का जो भी अंजाम होगा उसके लिए वे खुद ज़िम्मेदार होंगे। (प्रेषि. 18:5, 6; 20:26) पौलुस और बरनबास पहले की तरह खुशी-खुशी अपना प्रचार का काम जारी रखते हैं। वे दक्षिण-पूर्व की तरफ करीब 150 किलोमीटर का सफर करते हैं और एक उपजाऊ इलाके में पहुँचते हैं। यह एक पठारी इलाका है जो टोरस और सुलतान पर्वतमालाओं के बीच में है।

5 सबसे पहले पौलुस और बरनबास इकुनियुम में रुकते हैं, जो रोमी प्रांत गलातिया का एक खास शहर है। a इकुनियुम में चारों तरफ यूनानी संस्कृति का असर देखा जा सकता है। इस शहर में यहूदियों का बड़ा दबदबा है और उनके अलावा बहुत-से गैर-यहूदी भी यहाँ रहते हैं जिन्होंने यहूदी धर्म अपनाया है। इकुनियुम पहुँचने के बाद पौलुस और बरनबास अपने दस्तूर के मुताबिक सभा-घर में जाते हैं और प्रचार करने लगते हैं। (प्रेषि. 13:5, 14) वे ‘इतने बढ़िया ढंग से बात करते हैं कि बहुत-से यहूदी और यूनानी विश्‍वासी बन जाते हैं।’​—प्रेषि. 14:1.

6. पौलुस और बरनबास इतने बढ़िया ढंग से क्यों सिखा पाए? हम उनकी तरह कैसे बन सकते हैं?

6 पौलुस और बरनबास इतने बढ़िया ढंग से क्यों सिखा पाए? पौलुस को शास्त्र की बहुत अच्छी समझ थी। उसने मूसा के कानून, इतिहास और भविष्यवक्‍ताओं की किताबों के हवाले देकर साबित किया कि यीशु ही वादा किया गया मसीहा है। (प्रेषि. 13:15-31; 26:22, 23) और बरनबास ने जिस तरह बात की उससे साफ दिखा कि उसे लोगों की परवाह है। (प्रेषि. 4:36, 37; 9:27; 11:23, 24) उन दोनों ने अपनी समझ का सहारा नहीं लिया बल्कि यहोवा पर भरोसा रखा। तभी बाइबल में लिखा है कि वे “यहोवा से मिले अधिकार” की वजह से वचन सुनाते रहे। आप इन मिशनरियों की तरह कैसे बन सकते हैं? आगे दिए कुछ कदम उठाइए: परमेश्‍वर के वचन से अच्छी तरह वाकिफ होइए। लोगों को बताने के लिए ऐसी आयतें चुनिए जो उनके दिल को छू जाएँ। ऐसे कुछ तरीके सोचिए जिनसे आप प्रचार में लोगों को दिलासा दे सकें और उन्हें महसूस करा सकें कि आपको उनकी परवाह है। सिखाते वक्‍त अपनी बुद्धि का नहीं बल्कि परमेश्‍वर के वचन का इस्तेमाल कीजिए।

7. (क) आज जब लोग सच्चाई कबूल करते हैं तो क्या होता है? (ख) अगर आपका परिवार आपका विरोध कर रहा है, तो आपको क्या याद रखना चाहिए?

7 लेकिन इकुनियुम के सभी लोग पौलुस और बरनबास का संदेश सुनकर खुश नहीं होते। लूका बताता है, “जिन यहूदियों ने विश्‍वास नहीं किया, उन्होंने गैर-यहूदियों को भड़काया और भाइयों के खिलाफ उनके मन में कड़वाहट भर दी।” पौलुस और बरनबास को लगता है कि इस मौके पर चुप रहना सही नहीं होगा बल्कि उन्हें खुशखबरी की पैरवी करनी चाहिए। इसलिए वे ‘वहाँ काफी समय बिताते हैं और निडर होकर परमेश्‍वर का वचन सुनाते हैं।’ नतीजा, ‘शहर के लोगों में फूट पड़ जाती है और कुछ यहूदियों की तरफ हो जाते हैं, तो कुछ प्रेषितों की तरफ।’ (प्रेषि. 14:2-4) आज भी ऐसा ही होता है। जब लोग सच्चाई कबूल करते हैं तो कुछ परिवारों का आपसी बंधन और मज़बूत हो जाता है लेकिन कुछ परिवारों में फूट पड़ जाती है। (मत्ती 10:34-36) अगर आपका परिवार आपका विरोध कर रहा है तो याद रखिए कि वे ऐसा क्यों करते हैं। शायद उन्होंने यहोवा के लोगों के बारे में अफवाहें सुनी हों या झूठ सुने हों। ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? बढ़िया चालचलन बनाए रखिए और उनके साथ अच्छे-से पेश आइए। इस तरह वे साफ देख पाएँगे कि उन्होंने जो बातें सुनी थीं वे झूठी हैं और हो सकता है धीरे-धीरे उनका मन भी बदल जाए।​—1 पत. 2:12; 3:1, 2.

8. पौलुस और बरनबास इकुनियुम से क्यों निकल जाते हैं? इससे हम क्या सीख सकते हैं?

8 कुछ समय बाद इकुनियुम में विरोधी पौलुस और बरनबास को पत्थरों से मार डालने की साज़िश करते हैं। जब इन दोनों भाइयों को इसकी खबर मिलती है तो वे वहाँ से निकल जाते हैं और दूसरे इलाकों में जाकर गवाही देने लगते हैं। (प्रेषि. 14:5-7) आज भी राज के प्रचारक इसी तरह समझदारी से काम लेते हैं। जब हम पर झूठे इलज़ाम लगाए जाते हैं तो हम निडर होकर जवाब देते हैं। (फिलि. 1:7; 1 पत. 3:13-15) लेकिन जब ऐसा लगता है कि लोग हम पर हमला कर सकते हैं, तो हम ऐसा कोई कदम नही उठाते जिससे हमारी और दूसरे भाई-बहनों की जान खतरे में पड़ जाए।​—नीति. 22:3.

“जीवित परमेश्‍वर के पास आओ” (प्रेषि. 14:8-19)

9, 10. लुस्त्रा शहर कहाँ बसा है? वहाँ के लोगों के बारे में हम क्या जानते हैं?

9 पौलुस और बरनबास लुस्त्रा आते हैं। लुस्त्रा में रोमी सरकार का शासन है। यह शहर इकुनियुम से दक्षिण-पश्‍चिम की तरफ करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर है। लुस्त्रा काफी कुछ पिसिदिया के अंताकिया शहर जैसा है। बस यहाँ यहूदियों की आबादी बहुत कम है। यहाँ रहनेवाले शायद यूनानी भाषा बोलते हैं, लेकिन उनकी मातृ-भाषा लुकाउनिया की भाषा है। ऐसा लगता है कि इस शहर में कोई सभा-घर नहीं है, इसलिए पौलुस और बरनबास भीड़-भाड़वाले इलाकों में सरेआम प्रचार करने लगते हैं। याद कीजिए कि जब यरूशलेम में पतरस ने एक जन्म से लँगड़े आदमी को ठीक किया था तो बहुत-से लोग विश्‍वासी बन गए थे। (प्रेषि. 3:1-10) अब यहाँ लुस्त्रा में, पौलुस भी जन्म से लँगड़े एक आदमी को ठीक करता है। (प्रेषि. 14:8-10) मगर पौलुस के चमत्कार का लोगों पर कुछ अलग ही असर होता है।

10 लुस्त्रा के लोग झूठे देवी-देवताओं को मानते हैं। इसलिए जब पौलुस उस आदमी को ठीक करता है तो उन्हें लगता है कि पौलुस और बरनबास देवता हैं। वे बरनबास को ज़्यूस देवता और पौलुस को हिरमेस देवता कहने लगते हैं। ज़्यूस, उनके देवताओं में प्रधान था और हिरमेस, ज़्यूस का बेटा था और बाकी देवताओं की तरफ से बोलता था। (यह बक्स देखें, “ लुस्त्रा शहर, जहाँ ज़्यूस और हिरमेस को पूजा जाता था।”) बरनबास और पौलुस भीड़ को यह समझाने की पूरी कोशिश करते हैं कि वे कोई देवता नहीं हैं। बल्कि यहोवा ही एकमात्र सच्चा परमेश्‍वर है और वे उसी के अधिकार से चमत्कार कर पा रहे हैं।​—प्रेषि. 14:11-14.

‘इन बेकार की चीज़ों को छोड़कर जीवित परमेश्‍वर के पास आओ, जिसने आकाश और पृथ्वी को बनाया है।’​—प्रेषितों 14:15

11-13. (क) पौलुस और बरनबास लुस्त्रा के लोगों से क्या कहते हैं? (ख) एक सबक बताइए जो हम उन दोनों भाइयों से सीख सकते हैं।

11 इतने शोर-शराबे के बीच, पौलुस और बरनबास गवाही देने की पूरी कोशिश करते हैं। ध्यान दीजिए कि वे लोगों से क्या कहते हैं। इससे हम समझ पाएँगे कि हम दूसरे धर्म के लोगों को अच्छी तरह गवाही कैसे दे सकते हैं। वे कहते हैं, “हे लोगो, तुम यह सब क्यों कर रहे हो? हम भी तुम्हारी तरह मामूली इंसान हैं और तुम्हें एक खुशखबरी सुना रहे हैं ताकि तुम इन बेकार की चीज़ों को छोड़कर जीवित परमेश्‍वर के पास आओ, जिसने आकाश, पृथ्वी और समुंदर को और जो कुछ उनमें है सब बनाया है। बीते समय में उसने सब राष्ट्रों को अपनी-अपनी राह चलने दिया, फिर भी वह भलाई करता रहा और इस तरह अपने बारे में गवाही देता रहा। वह तुम्हें आकाश से बरसात और अच्छी पैदावार के मौसम देता रहा और तुम्हें जी-भरकर खाना देता रहा और तुम्हारे दिलों को आनंद से भरता रहा।”​—प्रेषि. 14:15-17.

12 पौलुस और बरनबास ने लोगों से जो कहा वह वाकई ध्यान देने लायक है। इससे हम क्या सबक सीखते हैं? एक यह कि पौलुस और बरनबास ने खुद को उन लोगों से बेहतर नहीं समझा। इसके बजाय, उन्होंने नम्रता से कबूल किया कि वे भी उन्हीं के जैसे हैं और उनके अंदर भी कमियाँ हैं। यह सच है कि पौलुस और बरनबास को पवित्र शक्‍ति मिली थी और वे झूठी शिक्षाओं से आज़ाद थे। उन्हें मसीह के साथ राज करने की आशा भी थी। मगर वे अच्छी तरह जानते थे कि अगर लुस्त्रा के लोगों ने मसीह की आज्ञा मानी तो उन्हें भी ये सारी आशीषें मिल सकती हैं।

13 आज हम जिन्हें प्रचार करते हैं उनके बारे में हम कैसा नज़रिया रखते हैं? क्या हम उन्हें अपने बराबर समझते हैं? जब हम उन्हें सच्चाई सिखाते हैं तो क्या हम अपनी वाह-वाही करवाते हैं या पौलुस और बरनबास की तरह ऐसा करने से दूर रहते हैं? भाई चार्ल्स टेज़ रसल इस मामले में एक अच्छी मिसाल थे। वे एक बढ़िया शिक्षक थे, जिन्होंने करीब 1870 से लेकर 1916 तक काफी ज़ोर-शोर से प्रचार काम किया था। मगर उन्होंने लिखा, “हम नहीं चाहते कि लोग हमें या हमारी किताबों-पत्रिकाओं को पूजें। ना ही हम चाहते हैं कि कोई हमें पास्टर या गुरु कहकर बुलाए।” भाई रसल पौलुस और बरनबास की तरह नम्र थे। उसी तरह, हम भी दूसरों की नज़रों में छाने के लिए प्रचार नहीं करते बल्कि इसलिए करते हैं कि लोग “जीवित परमेश्‍वर” को जान सकें।

14-16. पौलुस और बरनबास ने जिस तरह लुस्त्रा के लोगों से बात की, उससे हम और कौन-से दो सबक सीखते हैं?

14 पौलुस और बरनबास ने जिस तरह लुस्त्रा के लोगों से बात की उससे हम एक और सबक सीखते हैं। उन्होंने लोगों को ध्यान में रखकर गवाही देने के तरीके में फेरबदल किया। लुस्त्रा के लोग इकुनियुम के यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवालों की तरह नहीं थे। उनके पास शास्त्र का ज्ञान नहीं था और ना ही वे जानते थे कि यहोवा का इसराएल राष्ट्र के साथ कैसा रिश्‍ता था। इसलिए पौलुस और बरनबास ने उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को ध्यान में रखकर गवाही दी। लुस्त्रा के लोग खेती-बाड़ी करते थे। वहाँ खूब बारिश होती थी और ज़मीन भी बहुत उपजाऊ थी। यह सब देखकर वे अच्छे-से समझ पाते कि जिसने उन्हें बनाया है उसमें कितने शानदार गुण हैं। पौलुस और बरनबास ने इसी विषय पर लुस्त्रा के लोगों से बात की और उन्हें गवाही दी।​—रोमि. 1:19, 20.

15 क्या हम भी लोगों को ध्यान में रखकर गवाही देने के अपने तरीके में फेरबदल कर सकते हैं? आइए इस बात को एक उदाहरण से समझें। एक किसान को एक ही तरह का बीज अलग-अलग ज़मीन पर बोना है। लेकिन हर ज़मीन की मिट्टी एक जैसी नहीं होती है। इसलिए किसान को हर ज़मीन को अलग तरीके से तैयार करना पड़ता है। जैसे एक ज़मीन की मिट्टी शायद नरम हो और उस पर ज़्यादा मेहनत ना करनी पड़े, जबकि दूसरी ज़मीन को तैयार करने में ज़्यादा समय लगे। उसी तरह, हम सब लोगों के दिलों में एक ही तरह का बीज बोते हैं और वह है राज का संदेश जो परमेश्‍वर के वचन में पाया जाता है। अगर हम चाहते हैं कि लोग हमारा संदेश सुनें तो हमें यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि लोग क्या मानते हैं और उनके हालात क्या हैं। और फिर उसे ध्यान में रखते हुए गवाही देने का अपना तरीका बदलना चाहिए। इस तरह हम पौलुस और बरनबास के जैसे अच्छी तरह गवाही दे पाएँगे।​—लूका 8:11, 15.

16 पौलुस, बरनबास और लुस्त्रा के लोगों के किस्से से हम एक और सबक सीखते हैं। वह यह कि हमारी लाख कोशिशों के बावजूद, कभी-कभी सच्चाई का बीज कुछ लोगों के दिल में जड़ नहीं पकड़ता। उसे या तो शैतान छीन ले जाता है या फिर वह बीज चट्टानी ज़मीन पर गिरता है। (मत्ती 13:18-21) अगर प्रचार में आपके साथ ऐसा हुआ है, तो निराश मत होइए। हमें पौलुस की वह बात याद रखनी चाहिए जो उसने बाद में रोम के मसीहियों से कही थी, “हममें से हर कोई [वह भी जो बाइबल से सीख रहा है] परमेश्‍वर को अपना हिसाब देगा।”​—रोमि. 14:12.

‘वे प्राचीनों को यहोवा के हाथ में सौंपते हैं’ (प्रेषि. 14:20-28)

17. दिरबे छोड़ने के बाद पौलुस और बरनबास कहाँ तक सफर करते हैं और क्यों?

17 लोग पौलुस को घसीटकर लुस्त्रा के बाहर ले जाते हैं और मरा समझकर वहाँ छोड़ देते हैं। तब चेले वहाँ उसकी मदद करने पहुँच जाते हैं और रात के लिए उसके रुकने का इंतज़ाम करते हैं। फिर अगले दिन, वह और बरनबास दिरबे शहर के लिए रवाना होते हैं जो करीब 100 किलोमीटर दूर है। ज़रा सोचिए, पौलुस के लिए यह सफर कितना मुश्‍किल रहा होगा क्योंकि कुछ ही घंटों पहले उसे पत्थरों से मारा गया था और उसके ज़ख्म ताज़ा ही थे। फिर भी, वे दोनों हिम्मत नहीं हारते। जब वे दिरबे पहुँचते हैं तो वहाँ कई लोगों को चेला बनाते हैं। दिरबे छोड़ने के बाद, वे चाहते तो छोटा रास्ता लेकर सीरिया के अंताकिया जा सकते थे जहाँ से उन्होंने अपना मिशनरी दौरा शुरू किया था। लेकिन, वे “लुस्त्रा, इकुनियुम और [पिसिदिया के] अंताकिया लौट” आते हैं। किस लिए? ताकि यहाँ के ‘चेलों की हिम्मत बँधा सकें और उन्हें अपना विश्‍वास मज़बूत बनाए रखने का बढ़ावा दे सकें।’ (प्रेषि. 14:20-22) इन भाइयों ने क्या ही बढ़िया मिसाल रखी! अपने बारे में सोचने के बजाय वे हमेशा मंडली के बारे में सोचते थे। आज सफरी निगरान और मिशनरी भी ऐसा ही जज़्बा दिखाते हैं।

18. मंडली में प्राचीनों को किस तरह ठहराया जाता है?

18 पौलुस और बरनबास अपनी बातों और कामों से चेलों की हिम्मत बँधाने के अलावा “हर मंडली में उनके लिए प्राचीन” ठहराते हैं। हालाँकि इन दोनों को “पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन के मुताबिक” ही मिशनरी दौरे पर भेजा गया था, फिर भी वे ‘प्राचीनों को यहोवा के हाथ में सौंपने’ से पहले प्रार्थना करते हैं और उपवास करते हैं। (प्रेषि. 13:1-4; 14:23) आज भी प्राचीनों को इसी तरह ठहराया जाता है। किसी भाई की सिफारिश करने से पहले, प्राचीनों का निकाय प्रार्थना करता है और ध्यान से जाँच करता है कि वह भाई बाइबल में बतायी योग्यताओं को पूरा कर रहा है या नहीं। (1 तीमु. 3:1-10, 12, 13; तीतु. 1:5-9; याकू. 3:17, 18; 1 पत. 5:2, 3) उस भाई के बारे में सिर्फ यह नहीं देखा जाता कि वह कितने सालों से सच्चाई में है। बल्कि यह भी देखा जाता है कि उसकी बातचीत और चालचलन कैसा है और लोगों के बीच उसका कैसा नाम है। ये बातें साफ दिखाती हैं कि वह पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलता है या नहीं। अगर वह भाई बाइबल में बतायी योग्यताओं पर खरा उतरता है तो उसे मंडली में निगरान ठहराया जाता है। (गला. 5:22, 23) निगरानों को ठहराने की ज़िम्मेदारी सर्किट निगरान की है।​—1 तीमुथियुस 5:22 से तुलना करें।

19. प्राचीन क्या जानते हैं? वे पौलुस और बरनबास की तरह क्या करते हैं?

19 प्राचीन जानते हैं कि वे जिस तरह मंडली के साथ पेश आते हैं, उसके लिए उन्हें यहोवा को हिसाब देना होगा। (इब्रा. 13:17) पौलुस और बरनबास की तरह प्राचीन प्रचार काम में जोश से हिस्सा लेते हैं और अच्छी मिसाल रखते हैं। वे अपनी बातों से भाई-बहनों का हौसला बढ़ाते हैं। वे अपने से ज़्यादा मंडली के भले की फिक्र करते हैं।​—फिलि. 2:3, 4.

20. जब हम पढ़ते हैं कि भाई-बहन प्रचार काम में कितनी मेहनत कर रहे हैं तो हमें क्या फायदा होता है?

20 आखिरकार पौलुस और बरनबास सीरिया के अंताकिया लौटते हैं जहाँ से उन्होंने अपना मिशनरी दौरा शुरू किया था। वहाँ पहुँचकर वे भाइयों को बताने लगते हैं कि “परमेश्‍वर ने उनके ज़रिए कैसे-कैसे काम किए और किस तरह उसने गैर-यहूदियों के लिए विश्‍वास अपनाने का रास्ता खोल दिया है।” (प्रेषि. 14:27) आज जब हम पढ़ते हैं कि हमारे भाई-बहन कैसे वफादारी से सेवा कर रहे हैं और यहोवा उनकी मेहनत पर कितनी आशीषें दे रहा है तो हमें बहुत अच्छा लगता है। हमारे अंदर और भी जोश भर आता है कि हम ‘यहोवा से मिले अधिकार की वजह से निडर होकर वचन सुनाते’ रहें।