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अध्याय 23

“मैं अपनी सफाई में जो कहने जा रहा हूँ, वह सुनो”

“मैं अपनी सफाई में जो कहने जा रहा हूँ, वह सुनो”

गुस्से से भड़की हुई भीड़ और महासभा के सामने पौलुस अपने विश्‍वास की पैरवी करता है

प्रेषितों 21:18–23:10 पर आधारित

1, 2. प्रेषित पौलुस यरूशलेम क्यों आता है? यहाँ उसके सामने क्या-क्या मुश्‍किलें आती हैं?

 पौलुस एक बार फिर यरूशलेम में है। वह यहाँ की तंग गलियों से गुज़र रहा है जहाँ हमेशा की तरह चहल-पहल है। यरूशलेम दुनिया के सभी शहरों में से अनोखा है। बरसों से यह शहर यहोवा की उपासना करने की खास जगह रहा है। यहाँ के ज़्यादातर लोग उन बीते दिनों को याद करके अपने शहर पर बड़ा घमंड करते हैं। पौलुस जानता है कि कई यहूदी मसीही भी ऐसा ही महसूस करते हैं। उनके लिए यह मानना मुश्‍किल हो रहा है कि मूसा का कानून रद्द हो चुका है और अब यहोवा ने उपासना करने का एक नया इंतज़ाम शुरू किया है। इसलिए जब पौलुस इफिसुस से यरूशलेम आया, तो उसके दो मकसद थे। एक, भाई-बहनों तक दान पहुँचाकर उनकी मदद करना और दो, उनकी सोच सुधारना। (प्रेषि. 19:21) वह जानता है कि यरूशलेम जाना खतरे से खाली नहीं है, फिर भी वह भाई-बहनों की मदद करने के लिए वहाँ जाता है।

2 पौलुस के सामने क्या-क्या मुश्‍किलें आती हैं? एक मुश्‍किल तो मंडली के अंदर से आती है। कुछ भाइयों ने पौलुस के बारे में अफवाहें सुनी थीं जिस वजह से वे परेशान हैं। मगर इससे भी बड़ी-बड़ी मुश्‍किलें मसीह के दुश्‍मनों की तरफ से आती हैं। वे पौलुस पर झूठे इलज़ाम लगाते हैं, उसे मारते-पीटते हैं और उसे जान से मारने की कोशिश करते हैं। इस दौरान पौलुस को सच्चाई की पैरवी करने का मौका भी मिलता है। पौलुस जिस तरह हिम्मत, नम्रता और विश्‍वास के साथ इन मुश्‍किलों का सामना करता है, उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

“वे परमेश्‍वर की महिमा करने” लगते हैं (प्रेषि. 21:18-20क)

3-5. (क) यरूशलेम में पौलुस किनसे मिलने जाता है? वह उनसे किस बारे में बात करता है? (ख) पौलुस की तरह आज हम भी क्या-क्या कर सकते हैं?

3 यरूशलेम पहुँचने के अगले ही दिन पौलुस और उसके साथी मंडली के प्राचीनों से मिलने जाते हैं। एक बैठक होती है जिसमें पौलुस और ‘सभी प्राचीन मौजूद’ होते हैं। (प्रेषि. 21:18) इस वाकये में प्रेषितों का कोई ज़िक्र नहीं मिलता। शायद इसलिए कि वे सभी दुनिया के दूसरे इलाकों में जाकर सेवा कर रहे थे। लेकिन यीशु का भाई याकूब अब भी यरूशलेम में है। (गला. 2:9) ऐसा मालूम होता है कि वही उस बैठक का सभापति था।

4 पौलुस उन प्राचीनों को नमस्कार करता है, फिर ‘उन्हें पूरा ब्यौरा देता है कि परमेश्‍वर ने उसकी सेवा के ज़रिए गैर-यहूदियों के बीच क्या-क्या काम किए हैं।’ (प्रेषि. 21:19) पौलुस की बातें सुनकर उन भाइयों को बहुत खुशी हुई होगी। आज हम भी जब सुनते हैं कि दूसरे देशों में किस तरह प्रचार काम में बढ़ोतरी हो रही है, तो हम फूले नहीं समाते।​—नीति. 25:25.

5 पौलुस ने उन प्राचीनों को ज़रूर बताया होगा कि वह यूरोप से दान लेकर आया है। यह बात उन प्राचीनों के दिल को छू गयी होगी कि इतनी दूर से ऐसे भाई-बहनों ने उनकी मदद की है, जिन्हें वे जानते तक नहीं। पौलुस से सारी बातें सुनने के बाद वे प्राचीन, “परमेश्‍वर की महिमा करने” लगते हैं। (प्रेषि. 21:20क) पौलुस और यरूशलेम के प्राचीनों से हम क्या सीखते हैं? आज भी जब मसीही किसी विपत्ति के शिकार होते हैं या उन्हें कोई दर्दनाक बीमारी हो जाती है, तो भाई-बहन तुरंत उनकी मदद करते हैं। वे उन तक ज़रूरी चीज़ें पहुँचाते हैं और अपनी बातों से उनकी हिम्मत बढ़ाते हैं। भाई-बहनों का यह प्यार देखकर उन्हें बहुत खुशी मिलती है और उनका दिल एहसान से भर जाता है।

वे अब भी “पूरे जोश के साथ कानून मानते हैं” (प्रेषि. 21:20ख, 21)

6. पौलुस के बारे में क्या अफवाहें फैल रही हैं?

6 अब प्राचीन, पौलुस को बताते हैं कि यहूदिया में उसके बारे में कुछ अफवाहें फैल रही हैं। वे कहते हैं, “भाई, तू देख रहा है कि हज़ारों यहूदी विश्‍वासी बन गए हैं और वे सब पूरे जोश के साथ कानून मानते हैं। मगर उन्होंने तेरे बारे में यह अफवाह सुनी है कि तू दूसरे राष्ट्रों में रहनेवाले सब यहूदियों को मूसा के कानून के खिलाफ बगावत करना सिखा रहा है। तू उनसे कहता है कि वे न तो अपने बच्चों का खतना करें, न ही सदियों से चले आ रहे रिवाज़ों को मानें।” a​—प्रेषि. 21:20ख, 21.

7, 8. (क) बहुत-से यहूदी मसीहियों को अब भी क्या लग रहा था? (ख) क्या इसका यह मतलब था कि वे यहोवा के वफादार नहीं थे? समझाइए।

7 मूसा के कानून को रद्द हुए 20 साल से भी ज़्यादा हो चुके हैं। फिर भी बहुत-से मसीही क्यों इस बात पर अड़े हैं कि मूसा का कानून मानना ज़रूरी है? (कुलु. 2:14) ईसवी सन्‌ 49 में प्रेषितों और प्राचीनों ने यरूशलेम में एक बैठक रखी थी और उसके बाद सभी मंडलियों को एक खत भेजा था। उस खत में उन्होंने समझाया था कि गैर-यहूदी मसीहियों को खतना करवाने और मूसा का कानून मानने की ज़रूरत नहीं है। (प्रेषि. 15:23-29) लेकिन उस खत में यहूदी  मसीहियों के बारे में कुछ नहीं लिखा था। इसलिए बहुत-से यहूदी मसीहियों को लगा कि उन्हें अब भी मूसा का कानून मानना चाहिए।

8 इन यहूदी मसीहियों की सोच गलत थी। लेकिन क्या इसका यह मतलब था कि वे यहोवा के वफादार नहीं थे? ऐसी बात नहीं है। वे ना तो पहले झूठे देवी-देवताओं और रीति-रिवाज़ों को मानते थे और ना अब मान रहे थे। वे बस उस कानून का पालन कर रहे थे जो यहोवा ने उन्हें दिया था। वह कानून अपने आप में गलत नहीं था, ना ही उसका दुष्ट स्वर्गदूतों से लेना-देना था। लेकिन वह कानून तब दिया गया था जब वे पुराने करार के अधीन थे। पर अब मसीही नए करार के अधीन हैं। इसका मतलब अब उन्हें मूसा के कानून में बताए तरीके से उपासना नहीं करनी थी बल्कि यहोवा ने उपासना करने का जो नया इंतज़ाम बताया था, उसे मानना था। यही बात यहूदी मसीही पूरी तरह समझ नहीं पा रहे थे। इसलिए उन्हें अपनी सोच बदलनी थी। b​—यिर्म. 31:31-34; लूका 22:20.

“जो अफवाह सुनी थी वह सच नहीं है” (प्रेषि. 21:22-26)

9. पौलुस ने मूसा के कानून के बारे में क्या सिखाया?

9 क्या पौलुस के बारे में वे अफवाहें सच थीं? क्या वाकई पौलुस दूसरे राष्ट्रों में रहनेवाले यहूदियों को सिखा रहा था कि “वे न तो अपने बच्चों का खतना करें, न ही सदियों से चले आ रहे रिवाज़ों को मानें”? पौलुस को गैर-यहूदियों के बीच प्रचार करने के लिए प्रेषित चुना गया था। उसने हमेशा उन्हें यही सिखाया कि शासी निकाय के फैसले के मुताबिक, गैर-यहूदियों को मूसा के कानून पर चलने की ज़रूरत नहीं है। और उसने उन लोगों को गलत ठहराया जो गैर-यहूदी मसीहियों पर दबाव डाल रहे थे कि वे मूसा का कानून मानें और खतना करवाएँ। (गला. 5:1-7) पौलुस ने जिन-जिन शहरों का दौरा किया वहाँ उसने गैर-यहूदियों के अलावा यहूदियों को भी प्रचार किया। जो यहूदी नेकदिल थे, उन्हें उसने ज़रूर समझाया होगा कि यीशु की मौत से मूसा का कानून रद्द हो चुका है। और परमेश्‍वर के सामने नेक ठहरने के लिए उन्हें मूसा का कानून मानने की ज़रूरत नहीं है।​—रोमि. 2:28, 29; 3:21-26.

10. पौलुस ने मूसा के कानून और खतने के मामले में कैसे दूसरों का लिहाज़ किया?

10 लेकिन कुछ मसीहियों को अब भी लग रहा था कि उन्हें कुछ मामलों में मूसा का कानून मानना है। जैसे, सब्त का नियम मानना या खाने-पीने की कुछ चीज़ों से दूर रहना। पौलुस ने उनका लिहाज़ किया और उन्हें ऐसा करने से नहीं रोका। (रोमि. 14:1-6) यही नहीं, पौलुस ने खतना करवाने या ना करवाने के बारे में कोई कायदे-कानून नहीं बनाए। एक मौके पर उसने खुद तीमुथियुस से कहा कि वह अपना खतना करवाए। पौलुस नहीं चाहता था कि उन यहूदियों को ठोकर लगे जो जानते थे कि तीमुथियुस का पिता यूनानी है। (प्रेषि. 16:3) फिर भी खतना करवाने या ना करवाने का फैसला हरेक को खुद लेना था। पौलुस ने गलातिया के मसीहियों को लिखा, “न तो खतना कराने की कोई अहमियत है, न ही खतना न कराने की बल्कि उस विश्‍वास की अहमियत है जो प्यार के ज़रिए दिखायी देता है।” (गला. 5:6) लेकिन अगर किसी मसीही को लगे कि खतना करवाने से ही वह कानून के अधीन हो सकता है या परमेश्‍वर को खुश कर सकता है, तो वह सरासर गलत होगा। यह दिखाएगा कि उसमें विश्‍वास की कमी है।

11. प्राचीन, पौलुस से क्या करने के लिए कहते हैं? उनकी बात मानते वक्‍त पौलुस ने क्या ध्यान रखा होगा? (फुटनोट भी देखें।)

11 हालाँकि पौलुस के बारे में वे अफवाहें सरासर झूठी हैं, फिर भी उन्हें सुनकर कुछ यहूदी मसीहियों को ठेस पहुँची और वे काफी परेशान हो गए। इसलिए यरूशलेम के प्राचीन, पौलुस से कहते हैं, “हमारे यहाँ ऐसे चार आदमी हैं जिन्होंने मन्‍नत मानी है। तू इन आदमियों को साथ ले जा और रिवाज़ के मुताबिक उनके साथ-साथ खुद को शुद्ध कर और उनका खर्च उठा ताकि वे अपना सिर मुँड़वाएँ। तब हर कोई जान लेगा कि तेरे बारे में उन्होंने जो अफवाह सुनी थी वह सच नहीं है, बल्कि तू सही चाल चलता है और कानून भी मानता है।” c​—प्रेषि. 21:23, 24.

12. पौलुस ने कैसे दिखाया कि वह झुकने को तैयार है?

12 पौलुस चाहता तो प्राचीनों की बात मानने से इनकार कर सकता था। वह कह सकता था कि यहूदी मसीहियों की परेशानी की वजह वे खुद हैं क्योंकि वे मूसा का कानून मानने पर अड़े हुए हैं। फिर भी वह जानता है कि प्राचीन जो करने के लिए कह रहे हैं, वे परमेश्‍वर के सिद्धांतों के खिलाफ नहीं हैं। कुछ समय पहले खुद उसने लिखा था, “जो कानून के अधीन हैं उनके लिए मैं कानून के अधीन रहनेवालों जैसा बना ताकि जो कानून के अधीन हैं उन्हें ला सकूँ, हालाँकि मैं खुद कानून के अधीन नहीं।” (1 कुरिं. 9:20) इसलिए वह झुकने को तैयार हो जाता है और प्राचीनों की बात मान लेता है। इस तरह वह खुद को “कानून के अधीन” कर लेता है। पौलुस ने हमारे लिए क्या ही अच्छी मिसाल रखी! अगर प्राचीन भी हमसे कुछ ऐसा करने के लिए कहते हैं जो बाइबल के हिसाब से गलत नहीं है, तो हमें उनकी बात मान लेनी चाहिए।​—इब्रा. 13:17.

अगर कोई बात बाइबल के हिसाब से गलत नहीं, तो क्या आप भी पौलुस की तरह उसे मानेंगे?

“यह ज़िंदा रहने के लायक नहीं!” (प्रेषि. 21:27–22:30)

13. (क) कुछ यहूदी क्यों मंदिर में हंगामा खड़ा करते हैं? (ख) पौलुस कैसे बच जाता है?

13 पौलुस उन चार आदमियों के साथ यरूशलेम के मंदिर में आता है। मन्‍नत के दिन पूरे होनेवाले हैं। तभी एशिया से आए यहूदियों की नज़र पौलुस पर पड़ती है। वे पौलुस को जान से मारना चाहते हैं, इसलिए वे हंगामा खड़ा कर देते हैं। वे पौलुस पर इलज़ाम लगाते हैं कि उसने गैर-यहूदियों को मंदिर में लाकर इसे अशुद्ध कर दिया है। वे लोगों को भड़काते हैं और सब मिलकर पौलुस पर टूट पड़ते हैं। तभी एक रोमी सेनापति पौलुस को बचा लेता है वरना यहूदी उसे मार डालते। सेनापति उसे हिरासत में ले लेता है। इसके बाद पौलुस को करीब चार साल तक कैद में ही रहना पड़ता। जब हंगामा शुरू हुआ था तब सेनापति ने यहूदियों से पूछा कि वे पौलुस को क्यों पीट रहे हैं। जवाब में भीड़ चिल्ला उठती है। कोई कुछ इलज़ाम लगाता है तो कोई कुछ। इस शोरगुल में सेनापति कुछ समझ नहीं पाता। भीड़ पर खून सवार है, इसलिए सैनिकों को मजबूरन पौलुस को उठाकर ले जाना पड़ता है। तब पौलुस सेनापति से कहता है, “मैं तुझसे बिनती करता हूँ कि मुझे इन लोगों से बात करने की इजाज़त दे।” (प्रेषि. 21:39) सेनापति इजाज़त देता है और पौलुस निडरता से अपने विश्‍वास की पैरवी करता है।

14, 15. (क) पौलुस यहूदियों को क्या बताता है? (ख) रोमी सेनापति यहूदियों के भड़कने की वजह जानने के लिए क्या करता है?

14 पौलुस अपनी बात इस तरह शुरू करता है, “अब मैं अपनी सफाई में जो कहने जा रहा हूँ, वह सुनो।” (प्रेषि. 22:1) वह इब्रानी में बात करता है इसलिए भीड़ शांत हो जाती है। वह उन्हें साफ शब्दों में समझाता है कि वह मसीह का चेला क्यों बना। वह उन यहूदियों को बड़ी कुशलता से कुछ ऐसी बातें बताता है जिनकी सच्चाई वे खुद पता कर सकते हैं। पौलुस बताता है कि उसने मशहूर शिक्षक गमलीएल से शिक्षा पायी थी और पहले वह मसीह के चेलों को सताता था। यह बात भीड़ में से कुछ लोग शायद जानते हैं। पौलुस आगे बताता है कि एक बार जब वह अपने कुछ साथियों के साथ दमिश्‍क जा रहा था तो रास्ते में यीशु ने, जिसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया था, उसे दर्शन दिया और उससे बात की। पौलुस के साथियों को भी एक तेज़ रौशनी दिखायी दी और आवाज़ सुनायी दी, मगर उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह आवाज़ क्या कह रही थी। (प्रेषि. 9:7; 22:9) बाद में पौलुस के साथी उसका हाथ पकड़कर उसे दमिश्‍क ले गए क्योंकि दर्शन की वजह से वह अंधा हो गया था। दमिश्‍क में हनन्याह नाम का एक आदमी रहता था जिसे वहाँ के यहूदी जानते थे। उसने चमत्कार करके पौलुस की आँखों की रौशनी लौटा दी।

15 पौलुस आगे बताता है कि जब वह यरूशलेम लौटा तो यीशु ने मंदिर में उसे दर्शन दिया। जैसे ही यहूदी यह बात सुनते हैं, उनका खून खौल उठता है। वे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगते हैं, “इस आदमी का धरती से नामो-निशान मिटा दो, यह ज़िंदा रहने के लायक नहीं!” (प्रेषि. 22:22) सेनापति फौरन अपने आदमियों से कहता है कि वे पौलुस को सैनिकों के रहने की जगह ले जाएँ, वरना लोग उसे मार डालते। सेनापति जानना चाहता है कि आखिर यहूदी, पौलुस पर इतने भड़के हुए क्यों हैं। वह अपने आदमियों को हुक्म देता है कि वे पौलुस को कोड़े लगाकर उससे पूछताछ करें। मगर पौलुस उन्हें बताता है कि वह एक रोमी नागरिक है। इस तरह वह अपने कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करके अपना बचाव करता है। आज भी यहोवा के सेवक अपने विश्‍वास की पैरवी करने के लिए देश के कानूनों का सहारा लेते हैं। (ये बक्स देखें:  रोम का कानून और रोमी नागरिक” और “ आज के दिनों में कानूनी लड़ाइयाँ।”) जैसे ही सेनापति को पता चलता है कि पौलुस एक रोमी नागरिक है, उसे एहसास होता है कि पौलुस से पूछताछ करने के लिए कोई और तरीका अपनाना होगा। इसलिए अगले दिन वह पौलुस को महासभा यानी यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत के सामने पेश करता है, ताकि मुकदमे की सुनवाई हो सके।

“मैं एक फरीसी हूँ” (प्रेषि. 23:1-10)

16, 17. (क) जब पौलुस महासभा के सामने बोलना शुरू करता है तो क्या होता है? (ख) पौलुस ने कैसे नम्रता की मिसाल रखी?

16 पौलुस महासभा के सामने अपनी सफाई में बोलना शुरू करता है, “भाइयो, मैंने आज के दिन तक परमेश्‍वर के सामने बिलकुल साफ ज़मीर से ज़िंदगी बितायी है।” (प्रेषि. 23:1) इससे पहले कि वह आगे कुछ बोलता ‘महायाजक हनन्याह पौलुस के पास खड़े लोगों को हुक्म देता है कि वे उसके मुँह पर थप्पड़ मारें।’ (प्रेषि. 23:2) यह पौलुस का कितना बड़ा अपमान था! महायाजक के मन में पल रही नफरत कैसे खुलकर सामने आ गयी! तभी तो पौलुस की पूरी बात सुने बगैर ही वह उसे दोषी करार देता है। इसलिए ताज्जुब नहीं कि पौलुस महायाजक से कहता है, “अरे कपटी, तुझ पर परमेश्‍वर की मार पड़ेगी। तू कानून के मुताबिक मेरा न्याय करने बैठा है और मुझे मारने का हुक्म देकर उसी कानून को तोड़ भी रहा है?”​—प्रेषि. 23:3.

17 वहाँ खड़े कुछ लोग चौंक जाते हैं, इसलिए नहीं कि पौलुस को थप्पड़ पड़ा बल्कि इसलिए कि पौलुस ने महायाजक से कैसे बात की। वे पौलुस से कहते हैं, “तू परमेश्‍वर के महायाजक की बेइज़्ज़ती कर रहा है?” इस पर पौलुस कहता है, “भाइयो, मुझे मालूम नहीं था कि यह महायाजक है। क्योंकि लिखा है, ‘तू अपने लोगों के अधिकारी की निंदा मत करना।’” d (प्रेषि. 23:4, 5; निर्ग. 22:28) इस तरह पौलुस ने नम्र होने और कानून का आदर करने में एक मिसाल रखी। इसके बाद पौलुस उनसे तर्क करने के लिए दूसरा तरीका अपनाता है। वह जानता है कि महासभा फरीसियों और सदूकियों से मिलकर बनी है, इसलिए वह उनसे कहता है, “भाइयो, मैं एक फरीसी हूँ और फरीसियों का बेटा हूँ। मरे हुओं के ज़िंदा होने की आशा को लेकर मुझ पर मुकदमा चलाया जा रहा है।”​—प्रेषि. 23:6.

जब हम दूसरे धर्म के लोगों से मिलते हैं, तो पौलुस की तरह ऐसे विषय पर बात कीजिए जिससे वे भी सहमत हों

18. पौलुस क्यों कहता है कि वह एक फरीसी है? हम प्रचार में पौलुस का तरीका कैसे आज़मा सकते हैं?

18 पौलुस ने खुद को एक फरीसी क्यों कहा? उसका परिवार फरीसियों के पंथ से था और इस मायने में वह “फरीसियों का बेटा” था। इसलिए कई लोग अब भी उसे फरीसी समझते थे। e मगर फरीसी मरे हुओं के ज़िंदा होने के बारे में गलत धारणाएँ रखते थे। वे मानते थे कि मरने पर इंसान का शरीर खत्म हो जाता है पर उसकी आत्मा ज़िंदा रहती है। और जब कोई नेक इंसान मर जाता है, तो उसकी आत्मा निकलकर फिर से एक नए शरीर में समा जाती है। पौलुस इन धारणाओं को नहीं मानता था। पर वह जानता था कि फरीसी कम-से-कम इतना तो मानते हैं कि मरने के बाद इंसान पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता, जबकि सदूकी तो इतना भी नहीं मानते। इसलिए पौलुस ने मरे हुओं के ज़िंदा होने की बात की, जैसा यीशु ने सिखाया था। (यूह. 5:25-29) हम भी प्रचार में पौलुस का यह तरीका आज़मा सकते हैं। जब हम दूसरे धर्म के लोगों से बात करते हैं, तो उन्हें बता सकते हैं कि हम भी उनकी तरह परमेश्‍वर पर विश्‍वास करते हैं। हालाँकि वे अलग-अलग देवताओं को मानते हैं और हम बाइबल में बताए परमेश्‍वर पर विश्‍वास करते हैं, लेकिन हम इस बात पर उनके साथ सहमत हैं कि एक परमेश्‍वर ज़रूर है।

19. महासभा की बैठक में किस बात को लेकर फूट पड़ जाती है?

19 पौलुस ने जो कहा उससे महासभा में फूट पड़ जाती है। आयत बताती है, “वहाँ बड़ी चीख-पुकार मच गयी और फरीसियों के दल के कुछ शास्त्री उठे और यह कहकर बुरी तरह झगड़ने लगे, ‘हमें इस आदमी में कोई बुराई नज़र नहीं आती। क्या पता किसी अदृश्‍य प्राणी या स्वर्गदूत ने उससे बात की हो . . .।’” (प्रेषि. 23:9) जैसे ही सदूकी यह बात सुनते हैं वे भड़क उठते हैं क्योंकि वे नहीं मानते कि स्वर्गदूत सच में होते हैं। (यह बक्स देखें, “ सदूकी और फरीसी।”) झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि रोमी सेनापति को एक बार फिर पौलुस की जान बचानी पड़ती है। (प्रेषि. 23:10) लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। पौलुस के साथ आगे क्या होगा? यह हम अगले अध्याय में जानेंगे।

a उस ज़माने में यहूदी मसीही बड़ी तादाद में थे, इसलिए शायद कई मंडलियाँ सभाओं के लिए भाई-बहनों के घरों में मिलती थीं।

b कुछ साल बाद पौलुस ने इब्रानियों के नाम एक चिट्ठी लिखी। उसमें उसने समझाया कि नया करार किन तरीकों से पुराने करार से बेहतर है। उसने ज़बरदस्त दलीलें देकर साबित किया कि नए करार के आने से पुराना करार रद्द हो चुका था। इन दलीलों की मदद से यहूदी मसीही उन यहूदियों का मुँह बंद कर सकते थे जो मूसा के कानून के कट्टर समर्थक थे। यही नहीं, जो मसीही पहले मूसा के कानून को ज़्यादा अहमियत दे रहे थे उन्हें पौलुस की दलीलें सुनकर और भी यकीन हो गया होगा कि पुराना करार रद्द हो चुका है।​—इब्रा. 8:7-13.

c विद्वानों का कहना है कि उन आदमियों ने शायद नाज़ीर होने की मन्‍नत मानी थी। (गिन. 6:1-21) यह सच है कि नाज़ीर की मन्‍नत मानने का इंतज़ाम मूसा के कानून में था और अब उसके कोई मायने नहीं रह गए थे। मगर पौलुस ने शायद सोचा होगा कि अगर उन आदमियों ने यहोवा से मन्‍नत मानी है तो वे उसे पूरा करके कोई गलती नहीं कर रहे हैं। इसलिए उनका खर्च उठाना और उनके साथ मंदिर जाना गलत नहीं था। हम यह ठीक-ठीक नहीं जानते कि उन आदमियों ने क्या मन्‍नत मानी थी। मगर हम यह ज़रूर कह सकते हैं कि पौलुस ने किसी जानवर की बलि चढ़ाने के रिवाज़ का साथ नहीं दिया होगा, जैसा कि नाज़ीर की मन्‍नत माननेवाले चढ़ाते थे। जानवरों की बलि यह सोचकर चढ़ायी जाती थी कि उससे इंसान के पाप धुल जाते हैं। लेकिन जब से यीशु ने अपना परिपूर्ण जीवन बलिदान किया तब से पापों की माफी के लिए जानवरों के बलिदान की ज़रूरत नहीं थी। हमें पूरा यकीन है कि पौलुस ने उस मौके पर ऐसा कुछ नहीं किया होगा जो उसके ज़मीर के खिलाफ होता।

d कुछ लोग कहते हैं कि पौलुस की नज़र कमज़ोर थी इसलिए वह महायाजक को पहचान नहीं पाया। या शायद पौलुस बहुत समय बाद यरूशलेम आया था जिस वजह से वह उस वक्‍त के महायाजक को नहीं पहचान पाया। यह भी हो सकता है कि पौलुस भीड़ की वजह से देख नहीं पाया कि उसे मारने का हुक्म किसने दिया था।

e ईसवी सन्‌ 49 में जब प्रेषित और प्राचीन इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि गैर-यहूदियों को मूसा का कानून मानना चाहिए या नहीं, तो वहाँ “फरीसियों के गुट के कुछ लोग [मौजूद थे], जो विश्‍वासी बन गए थे।” (प्रेषि. 15:5) ज़ाहिर है, मसीही बनने के बाद भी उनकी पहचान इस बात से होती थी कि वे पहले फरीसी गुट के थे।