इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्याय 28

“दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में”

“दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में”

पहली सदी में यीशु के चेलों ने जो काम शुरू किया था, वही काम आज यहोवा के साक्षी कर रहे हैं

1. शुरू के मसीहियों और आज के साक्षियों के बीच क्या समानताएँ हैं?

 शुरू के मसीहियों ने पूरे जोश के साथ परमेश्‍वर के राज की गवाही दी। पवित्र शक्‍ति ने जो भी मदद दी, उसे उन्होंने कबूल किया और जो भी निर्देश दिए उसे तुरंत माना। ज़ुल्म की आँधी आने पर भी उन्होंने गवाही देना नहीं छोड़ा। और यहोवा ने उन्हें बहुत-सी आशीषें दीं। ये सारी बातें आज यहोवा के साक्षियों के बारे में भी सच हैं।

2, 3. प्रेषितों की किताब, बाइबल की बाकी किताबों से कैसे अलग है?

2 पहली सदी के मसीहियों के बारे में अब तक आपने प्रेषितों की किताब से जो भी पढ़ा उससे ज़रूर आपका विश्‍वास मज़बूत हुआ होगा। यह किताब, बाइबल की बाकी किताबों से अलग है क्योंकि सिर्फ यही किताब हमें शुरू के मसीहियों का इतिहास बताती है।

3 प्रेषितों की किताब में 95 लोगों के नाम दर्ज़ हैं जो 32 देशों, 54 शहरों और 9 द्वीपों के रहनेवाले थे। इसमें अलग-अलग लोगों की दिलचस्प दास्तान बतायी गयी है। कुछ बहुत मामूली लोग थे तो कुछ मगरूर शासक, धर्म के कट्टरपंथी और मसीहियों को सतानेवाले ज़ालिम थे। लेकिन सबसे बढ़कर, यह किताब उन मसीही भाई-बहनों से आपकी पहचान कराती है जो पहली सदी में जीए थे। उन्होंने भी आपकी तरह ज़िंदगी में मुश्‍किलों का सामना किया, फिर भी वे जोश के साथ खुशखबरी का प्रचार करते रहे।

4. भले ही हम पहली सदी के मसीहियों से नहीं मिले फिर भी हमें ऐसा क्यों लगता है कि हम उन्हें अच्छी तरह जानते हैं?

4 पतरस और पौलुस जैसे जोशीले प्रेषित, प्यारा वैद्य लूका, दरियादिल बरनबास, दिलेर स्तिफनुस, दयालु तबीता, मेहमान-नवाज़ी के लिए मशहूर लुदिया और ना जाने कितने ही वफादार मसीही हमसे करीब 2,000 साल पहले जीए थे। हम उनसे कभी नहीं मिले लेकिन ऐसा लगता है कि हम उन्हें अच्छी तरह जानते हैं। वह क्यों? क्योंकि उन्हें भी वही काम मिला था जो आज हमें मिला है, वह है प्रचार का काम। (मत्ती 28:19, 20) इस काम को पूरा करना हमारे लिए क्या ही बड़ा सम्मान है!

“दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में . . .”​—प्रेषितों 1:8

5. यीशु के चेलों ने प्रचार काम कहाँ से शुरू किया?

5 ज़रा उस ज़िम्मेदारी के बारे में सोचिए जो यीशु ने अपने चेलों को दी थी। उसने कहा था, “जब तुम पर पवित्र शक्‍ति आएगी, तो तुम ताकत पाओगे और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, यहाँ तक कि दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।” (प्रेषि. 1:8) पवित्र शक्‍ति से ताकत पाकर चेलों ने सबसे पहले “यरूशलेम”  में गवाही दी। (प्रेषि. 1:1–8:3) फिर पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में उन्होंने “सारे यहूदिया और सामरिया में”  गवाही दी। (प्रेषि. 8:4–13:3) इसके बाद, वे “दुनिया के सबसे दूर के इलाकों”  तक खुशखबरी पहुँचाने लगे।​—प्रेषि. 13:4–28:31.

6, 7. प्रचार काम के लिए आज हमारे पास क्या-क्या है जो पहली सदी के भाई-बहनों के पास नहीं था?

6 पहली सदी के मसीहियों के पास ना तो पूरी बाइबल थी और ना ही किताबें-पत्रिकाएँ थीं जिन्हें वे दिलचस्पी रखनेवाले लोगों को दे सकते थे। मत्ती की किताब का लिखना ईसवी सन्‌ 41 में जाकर पूरा हुआ था। प्रेषितों की किताब का लिखना करीब ईसवी सन्‌ 61 में पूरा हुआ। उससे पहले पौलुस ने अपनी कुछ चिट्ठियाँ लिखी थीं। यीशु के चेले बनने से पहले कई यहूदी लगातार सभा-घरों में जाते थे जहाँ इब्रानी शास्त्र पढ़कर सुनाया जाता था। (2 कुरिं. 3:14-16) मगर उनमें से कइयों के पास पवित्र शास्त्र की अपनी कॉपी नहीं होती थी। इसलिए वे प्रचार में सिर्फ उन वचनों का हवाला दे सकते थे जिन्हें उन्होंने मुँह-ज़ुबानी याद किया था।

7 लेकिन आज हममें से ज़्यादातर के पास अपनी-अपनी बाइबल है और ढेरों किताबें-पत्रिकाएँ हैं। हम 240 देशों में चेला बनाने का काम कर रहे हैं और कई भाषाओं में खुशखबरी सुना रहे हैं।

पवित्र शक्‍ति हमें काबिल बनाती है

8, 9. (क) पवित्र शक्‍ति ने यीशु के चेलों को कौन-से काम करने के काबिल बनाया? (ख) विश्‍वासयोग्य दास पवित्र शक्‍ति की मदद से क्या कर पाता है?

8 जब यीशु ने अपने चेलों को गवाही देने का काम सौंपा तो उसने कहा, “जब तुम पर पवित्र शक्‍ति आएगी, तो तुम ताकत पाओगे।” इसका मतलब, पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में ही यीशु के चेले पूरी दुनिया में उसके बारे में गवाही दे पाते। और ऐसा ही हुआ। इसी शक्‍ति की मदद से पतरस और पौलुस ने लोगों की बीमारियाँ दूर कीं, उनमें समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला, यहाँ तक कि मरे हुओं को ज़िंदा किया! पवित्र शक्‍ति ने प्रेषितों और दूसरे चेलों को एक और काम के काबिल बनाया जो सबसे ज़रूरी था। वह था, लोगों को सही ज्ञान देना जिससे उन्हें हमेशा की ज़िंदगी मिलती।​—यूह. 17:3.

9 ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन यीशु के चेले “अलग-अलग भाषा बोलने लगे, ठीक जैसा पवित्र शक्‍ति  उन्हें बोलने के काबिल बना रही थी।” इस वजह से वे “परमेश्‍वर के शानदार कामों” के बारे में गवाही दे सके। (प्रेषि. 2:1-4, 11) यह सच है कि आज पवित्र शक्‍ति से हमें अलग-अलग भाषाएँ बोलने का वरदान नहीं मिलता। लेकिन पवित्र शक्‍ति की मदद से विश्‍वासयोग्य दास अलग-अलग भाषाओं में किताबें-पत्रिकाएँ प्रकाशित कर रहा है जो किसी चमत्कार से कम नहीं। मिसाल के लिए, हर महीने प्रहरीदुर्ग  और सजग होइए!  की लाखों कॉपियाँ छापी जाती हैं। हमारी वेबसाइट jw.org में 1,000 से भी ज़्यादा भाषाओं में बाइबल के प्रकाशन और वीडियो उपलब्ध हैं। इनकी मदद से हम सब राष्ट्रों, गोत्रों और भाषाओं के लोगों को “परमेश्‍वर के शानदार कामों” के बारे में बता पाते हैं।​—प्रका. 7:9.

10. सन्‌ 1989 से किस बात पर खास ध्यान दिया जाने लगा?

10 सन्‌ 1989 से इस दास ने नयी दुनिया अनुवाद  बाइबल को कई भाषाओं में अनुवाद करने पर खास ध्यान दिया है। अब तक 200 से ज़्यादा भाषाओं में यह अनुवाद तैयार हो चुका है और इसकी करोड़ों कॉपियाँ छापी गयी हैं और आगे भी कई भाषाओं में छापी जाएँगी। यह काम सिर्फ परमेश्‍वर और उसकी पवित्र शक्‍ति की वजह से मुमकिन हो पाया है।

11. अनुवाद का काम कितने बड़े पैमाने पर हो रहा है?

11 अनुवाद का काम 150 से ज़्यादा देशों में हो रहा है और हज़ारों भाई-बहन स्वयंसेवकों के तौर पर यह काम कर रहे हैं। क्या यह देखकर हमें हैरानी होनी चाहिए? नहीं, क्योंकि पूरी दुनिया में सिर्फ यही एक संगठन है जो पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में यहोवा, उसके राज और यीशु के बारे में “अच्छी तरह गवाही” दे रहा है।​—प्रेषि. 28:23.

12. पौलुस और बाकी चेले गवाही देने का काम कैसे कर पाए?

12 जब पौलुस ने पिसिदिया के अंताकिया में यहूदियों और गैर-यहूदियों को गवाही दी, तो “वे सभी जो हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन रखते थे, विश्‍वासी बन गए।” (प्रेषि. 13:48) प्रेषितों की किताब के आखिर में लूका लिखता है कि पौलुस ‘परमेश्‍वर के राज का प्रचार करता और बेझिझक और बिना किसी रुकावट के सिखाता रहा।’ (प्रेषि. 28:31) पौलुस उस वक्‍त कहाँ गवाही दे रहा था? बेशक रोम में, जो उस ज़माने की विश्‍व शक्‍ति की राजधानी था। पौलुस और बाकी चेलों ने लोगों के सामने भाषण देने या दूसरे तरीकों से गवाही देने में बहुत मेहनत की। वे पवित्र शक्‍ति की मदद और मार्गदर्शन से यह सब कर पाए।

हम ज़ुल्मों के बावजूद डटे रहते हैं

13. जब हम पर ज़ुल्म किए जाते हैं या हमें सताया जाता है, तो हमें क्यों प्रार्थना करनी चाहिए?

13 जब यीशु के शुरूआती चेलों पर ज़ुल्म हुए तो उन्होंने हिम्मत के लिए यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती की। नतीजा, वे पवित्र शक्‍ति से भर गए और निडर होकर परमेश्‍वर का संदेश सुनाने लगे। (प्रेषि. 4:18-31) आज हम भी परमेश्‍वर से बुद्धि और हिम्मत के लिए प्रार्थना करते हैं ताकि हम ज़ुल्मों के बावजूद प्रचार करते रह सकें। (याकू. 1:2-8) परमेश्‍वर पवित्र शक्‍ति देकर हमारी मदद करता है, इसलिए हम प्रचार में लगे रह पाते हैं। दुनिया की कोई भी ताकत हमें नहीं रोक सकती, फिर चाहे हमारा कड़ा विरोध किया जाए या हम पर बेरहमी से ज़ुल्म ढाए जाएँ। जब हमें सताया जाता है तो यह बहुत ज़रूरी है कि हम यहोवा से पवित्र शक्‍ति, बुद्धि और हिम्मत के लिए प्रार्थना करें, तभी हम खुशखबरी का प्रचार करते रह पाएँगे।​—लूका 11:13.

14, 15. (क) “स्तिफनुस के कत्ल के बाद जब भाइयों पर ज़ुल्म होने लगे” तब क्या हुआ? (ख) हमारे दिनों में साइबेरिया में कई लोगों को सच्चाई कैसे मिली?

14 स्तिफनुस ने अपने दुश्‍मनों के हाथों मरने से पहले निडर होकर गवाही दी थी। (प्रेषि. 6:5; 7:54-60) उसके बाद जब मसीहियों पर “बहुत ज़ुल्म” होने लगे, तो प्रेषितों को छोड़ बाकी सभी चेले यहूदिया और सामरिया में तितर-बितर हो गए। लेकिन इससे गवाही देने का काम नहीं रुका। फिलिप्पुस ने सामरिया में “मसीह के बारे में प्रचार” किया और उसे बढ़िया नतीजे मिले। (प्रेषि. 8:1-8, 14, 15, 25) इसके अलावा, बाइबल में लिखा है, “स्तिफनुस के कत्ल के बाद जब भाइयों पर ज़ुल्म होने लगे और वे तितर-बितर हो गए, तो वे फीनीके, कुप्रुस और अंताकिया तक पहुँच गए। मगर उन्होंने यहूदियों के अलावा किसी और को परमेश्‍वर का संदेश नहीं सुनाया। लेकिन उनमें से कुछ चेले जो कुप्रुस और कुरेने के थे, वे अंताकिया आए और यूनानी बोलनेवाले लोगों को प्रभु यीशु की खुशखबरी सुनाने लगे।” (प्रेषि. 11:19, 20) देखा जाए तो ज़ुल्मों की वजह से खुशखबरी दूर-दूर के इलाकों तक फैलती गयी।

15 आज हमारे दिनों में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। सन्‌ 1950 के दशक में भूतपूर्व सोवियत संघ के हज़ारों भाइयों को साइबेरिया भेज दिया गया। वहाँ उन्हें दूर-दूर के इलाकों में तितर-बितर कर दिया गया। मगर इसका अच्छा नतीजा निकला। साक्षियों को जहाँ-जहाँ भेजा गया वहाँ वे खुशखबरी सुनाते गए। इस तरह साइबेरिया के बहुत बड़े इलाके में खुशखबरी फैल गयी। अगर सरकार साक्षियों को उन इलाकों में नहीं भेजती तो वे खुद कभी वहाँ नहीं जा सकते थे क्योंकि उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वे 10,000 किलोमीटर का लंबा सफर तय करके वहाँ जाते। लेकिन खुद सरकार ने ही साक्षियों को मुफ्त में साइबेरिया भेज दिया! एक भाई ने कहा, “सरकारी अधिकारियों की वजह से ही साइबेरिया के हज़ारों नेकदिल लोगों ने सच्चाई सीखी।”

यहोवा आशीषों की बौछार करता है

16, 17. प्रेषितों की किताब से कैसे पता चलता है कि गवाही देने के काम पर यहोवा की आशीष थी?

16 इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा ने शुरू के मसीहियों की मेहनत पर आशीष दी। पौलुस और दूसरे मसीहियों ने सच्चाई का बीज बोया और उसे पानी देकर सींचा, “लेकिन परमेश्‍वर उसे बढ़ाता रहा।” (1 कुरिं. 3:5, 6) प्रेषितों की किताब से साफ पता चलता है कि यहोवा की आशीष से ही ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग सच्चाई सीख पाए। मिसाल के लिए, एक वाकया बताता है, “परमेश्‍वर का वचन फैलता गया और यरूशलेम में चेलों की गिनती तेज़ी से बढ़ती गयी।” (प्रेषि. 6:7) फिर खुशखबरी दूसरे इलाकों में भी फैलती गयी और “सारे यहूदिया, गलील और सामरिया में मंडली के लिए शांति का दौर शुरू हुआ और वह विश्‍वास में मज़बूत होती गयी। मंडली यहोवा का डर मानती रही और पवित्र शक्‍ति से दिलासा पाती रही और उसमें बढ़ोतरी होती गयी।”​—प्रेषि. 9:31.

17 सीरिया के अंताकिया में जब प्रचारकों ने निडर होकर गवाही दी तो यहूदी और यूनानी लोगों को खुशखबरी सुनने का मौका मिला। नतीजा क्या हुआ? आयत बताती है, “यहोवा का हाथ उन [प्रचारकों] पर था और बड़ी तादाद में लोगों ने विश्‍वास किया और प्रभु की तरफ हो गए।” (प्रेषि. 11:21) प्रचार काम के बारे में आयत यह भी बताती है, “यहोवा का वचन फैलता गया और बहुत-से लोगों ने विश्‍वास किया।” (प्रेषि. 12:24) फिर जब पौलुस और दूसरे चेले गैर-यहूदियों को ज़ोर-शोर से गवाही देने लगे, तो “बड़े शक्‍तिशाली तरीके से यहोवा का वचन फैलता गया और उसकी जीत होती गयी।”​—प्रेषि. 19:20.

18, 19. (क) हम क्यों यकीन के साथ कह सकते हैं कि “यहोवा का हाथ” हम पर है? (ख) एक मिसाल देकर समझाइए कि यहोवा कैसे अपने लोगों का साथ नहीं छोड़ता।

18 आज हम भी पूरे यकीन के साथ कह सकते हैं कि “यहोवा का हाथ” हम पर है। इसीलिए आज कई लोग यहोवा के बारे में सीख रहे हैं और उसे अपना जीवन समर्पित करके बपतिस्मा ले रहे हैं। यही नहीं, यहोवा तब भी हमारी मदद करता है जब हमारा विरोध किया जाता है या हम पर बहुत ज़ुल्म किए जाते हैं। उसी की मदद से हम प्रचार काम करते रह पाते हैं, ठीक जैसे पौलुस और पहली सदी के मसीहियों ने किया था। (प्रेषि. 14:19-21) हम यह बात कभी ना भूलें कि यहोवा हर मुश्‍किल में हमारे साथ खड़ा है। वह हमें कभी गिरने नहीं देगा क्योंकि उसकी “बाँहें [हमें] सदा थामे रहेंगी।” (व्यव. 33:27) हम यह भी याद रखें कि यहोवा अपने महान नाम की खातिर कभी-भी अपने लोगों का साथ नहीं छोड़ेगा।​—1 शमू. 12:22; भज. 94:14.

19 इस बात की एक मिसाल लीजिए। दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान भाई हैरल्ट ऐप्ट ने प्रचार करना नहीं छोड़ा, इसलिए नाज़ियों ने उन्हें सैक्सनहाउसन के यातना शिविर में भेज दिया था। फिर मई 1942 में जर्मन पुलिस, भाई के घर गयी और उनकी पत्नी एलज़ा को गिरफ्तार कर लिया और उनकी नन्ही बच्ची को उनसे छीन लिया। इसके बाद बहन एलज़ा को कई शिविरों में भेजा गया। बहन बताती हैं, “जर्मनी के यातना शिविरों में रहकर मैंने एक बहुत ज़रूरी बात सीखी। वह यह कि जब हम ज़िंदगी की सबसे मुश्‍किल परीक्षा से गुज़रते हैं, तो उस वक्‍त यहोवा की पवित्र शक्‍ति हमें अंदर से मज़बूत करती है ताकि हम डटे रहें! अपनी गिरफ्तारी से पहले मैंने एक बहन का खत पढ़ा था जिसमें उसने बताया कि कड़ी परीक्षाओं के दौरान यहोवा की पवित्र शक्‍ति हमारे बेचैन मन को शांत कर सकती है। उस वक्‍त मुझे लगा कि बहन ने कुछ ज़्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर यह बात कही होगी। लेकिन जब मैं खुद परीक्षाओं से गुज़री तो मैंने महसूस किया कि बहन ने सही कहा था। अगर आपने खुद कभी यह अनुभव नहीं किया तो आपको यकीन करना मुश्‍किल लग सकता है। लेकिन मैंने महसूस किया कि ऐसा सचमुच होता है।”

अच्छी तरह गवाही देते रहिए!

20. जब पौलुस एक घर में कैद था तो उसने क्या किया? इससे कुछ भाई-बहनों को क्या बढ़ावा मिलता है?

20 प्रेषितों की किताब के आखिर में बताया गया है कि पौलुस पूरे जोश के साथ “परमेश्‍वर के राज का प्रचार करता” रहा। (प्रेषि. 28:31) रोम में वह एक घर में कैद था इसलिए वह घर-घर जाकर प्रचार नहीं कर सकता था। फिर भी वह उन सभी को गवाही देता था जो उसके पास आते थे। आज हमारे कुछ प्यारे भाई-बहन भी एक तरह से घर में कैद हैं। कुछ लोग ज़्यादा चल-फिर नहीं पाते यहाँ तक कि बिस्तर से भी नहीं उठ पाते, तो कुछ ढलती उम्र, बीमारी या अपंगता की वजह से नर्सिंग होम में रहते हैं। इस सबके बावजूद, परमेश्‍वर के लिए उनका प्यार और प्रचार के लिए उनका जोश ज़रा भी कम नहीं हुआ है। हम यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं कि इन भाई-बहनों को ऐसे लोग मिलें जो सच में यहोवा और उसके मकसद के बारे में जानना चाहते हैं।

21. हमें गवाही देने के काम में देरी क्यों नहीं करनी चाहिए?

21 हममें से ज़्यादातर लोगों की सेहत अच्छी है और हम घर-घर जाकर और दूसरे तरीकों से प्रचार कर सकते हैं। इसलिए हमें “दुनिया के सबसे दूर के इलाकों” तक परमेश्‍वर के राज का ऐलान करने में जी-जान से मेहनत करनी चाहिए। इस काम को करने में हमें देरी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हम आखिरी दिनों की “निशानी” साफ देख सकते हैं। (मत्ती 24:3-14) और-तो-और ‘प्रभु की सेवा में हमारे पास बहुत काम है।’ (1 कुरिं. 15:58) हम ज़रा भी समय बरबाद नहीं कर सकते।

22. जब तक यहोवा का दिन नहीं आता, हमें क्या ठान लेना चाहिए?

22 आज हम “यहोवा के बड़े भयानक दिन के आने” का इंतज़ार कर रहे हैं। इस दौरान हमें ठान लेना चाहिए कि हम निडर होकर गवाही देते रहेंगे। (योए. 2:31) हमारे इलाके में अब भी ऐसे लोग हैं जो बिरीया के लोगों की तरह “बड़ी उत्सुकता से वचन स्वीकार” करेंगे। (प्रेषि. 17:10, 11) इसलिए आइए हम गवाही देने में तब तक लगे रहें जब तक हमसे यह ना कहा जाए, “शाबाश, अच्छे और विश्‍वासयोग्य दास!” (मत्ती 25:23) अगर आज हम तन-मन से चेला बनाने का काम करें और यहोवा के वफादार रहें, तो हमें यह बात हमेशा-हमेशा तक खुशी देती रहेगी कि हमने परमेश्‍वर के राज के बारे में “अच्छी तरह गवाही” दी थी!