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अध्याय 13

‘उनके बीच लंबी चर्चा होती है’

‘उनके बीच लंबी चर्चा होती है’

शासी निकाय के सामने खतने का मसला पेश किया जाता है

प्रेषितों 15:1-12 पर आधारित

1-3. (क) शुरू की मसीही मंडली में फूट पड़ने का खतरा क्यों पैदा होता है? (ख) प्रेषितों की किताब की इस घटना से हम क्या जानेंगे?

 पौलुस और बरनबास अपने पहले मिशनरी दौरे से वापस सीरिया के अंताकिया लौट आए हैं। वे इस बात को लेकर बहुत खुश हैं कि यहोवा ने “गैर-यहूदियों के लिए विश्‍वास अपनाने का रास्ता खोल दिया है।” (प्रेषि. 14:26, 27) यहाँ अंताकिया में भी ज़ोर-शोर से खुशखबरी सुनायी जा रही है और “बड़ी तादाद में” गैर-यहूदी लोग मसीही बन रहे हैं।​—प्रेषि. 11:20-26.

2 बढ़ोतरी की यह खबर जल्द ही यहूदिया तक पहुँचती है। लेकिन इस खबर से सभी खुश नहीं होते। एक बार फिर खतने का सवाल खड़ा होता है। कुछ लोगों को लगता है कि गैर-यहूदियों को मसीही बनने के लिए मूसा का कानून मानना चाहिए और खतना करवाना चाहिए जबकि कुछ लोगों को ऐसा नहीं लगता। इसके अलावा, यह भी एक सवाल है कि यहूदी मसीहियों और गैर-यहूदी मसीहियों को एक-दूसरे के साथ कैसे पेश आना चाहिए? इस मसले को लेकर भाइयों के बीच तनाव इस हद तक बढ़ जाता है कि अब मसीही मंडली में फूट पड़ने का खतरा है। आखिर यह मसला कैसे सुलझाया जाता है?

3 जब हम प्रेषितों की किताब से इस घटना पर चर्चा करेंगे तो हम बहुत-से अहम सबक सीखेंगे। हम जानेंगे कि आज भी अगर मंडली में फूट पड़ने का खतरा हो, तो हमें क्या करना चाहिए।

‘जब तक तुम खतना नहीं करवाओगे’ (प्रेषि. 15:1)

4. यहूदिया के कुछ लोग क्या सिखाने लगे? इससे क्या सवाल खड़ा होता है?

4 लूका ने लिखा, “यहूदिया से कुछ लोग अंताकिया आए और भाइयों को यह सिखाने लगे, ‘जब तक तुम मूसा के रिवाज़ के मुताबिक खतना नहीं करवाओगे, तब तक तुम उद्धार नहीं पा सकते।’” (प्रेषि. 15:1) हम पक्के तौर पर यह नहीं कह सकते कि ‘यहूदिया से आए ये लोग’ मसीही बनने से पहले फरीसी थे या नहीं। लेकिन ऐसा लगता है कि उनकी सोच पर फरीसियों का बड़ा असर था, जो मूसा का कानून मानने में लकीर के फकीर थे। इसके अलावा, ये लोग शायद झूठा दावा कर रहे थे कि वे यरूशलेम के प्रेषितों और प्राचीनों की तरफ से बोल रहे हैं। (प्रेषि. 15:23, 24) जब यहोवा ने करीब 13 साल पहले पतरस से साफ कहा था कि वह गैर-यहूदियों को स्वीकार कर रहा है, तो फिर ये यहूदी मसीही खतना करवाने पर ज़ोर क्यों दे रहे हैं? a​—प्रेषि. 10:24-29, 44-48.

5, 6. (क) कुछ यहूदी मसीही खतना करवाने पर ज़ोर क्यों दे रहे थे? (ख) क्या खतने का करार अब्राहम से किए करार का हिस्सा था? समझाइए। (फुटनोट देखें।)

5 उनके पास खतने पर ज़ोर देने की कई वजह हो सकती हैं। एक वजह यह थी कि खुद यहोवा ने आज्ञा दी थी कि आदमियों का खतना करवाया जाए और खतना करवाना परमेश्‍वर के साथ एक खास रिश्‍ते की निशानी था। सबसे पहले अब्राहम और उसके घराने ने अपना खतना करवाया था। यह आज्ञा मूसा के कानून से पहले दी गयी थी और आगे चलकर, इसे मूसा के कानून में भी शामिल किया गया। b (लैव्य. 12:2, 3) मूसा के कानून के तहत परदेसी अगर कुछ खास आशीषें पाना चाहते थे तो उन्हें भी खतना करवाना था। जैसे सिर्फ वही परदेसी फसह का खाना खा सकते थे जिन्होंने खतना करवाया था। (निर्ग. 12:43, 44, 48, 49) एक यहूदी की नज़र से देखें तो खतना करवाना इतना ज़रूरी था कि अगर कोई नहीं करवाता, तो वह अशुद्ध और घिनौना ठहरता।​—यशा. 52:1.

6 लेकिन अब मूसा का कानून रद्द हो चुका है और उसकी जगह नए करार ने ले ली है। इस करार के मुताबिक यहूदी यहोवा के खास लोग नहीं रहे, बल्कि यह मौका सबके लिए खुल चुका था। यहूदी मसीहियों के लिए यह बात एकदम नयी थी इसलिए उन्हें अपना नज़रिया बदलने के लिए मज़बूत विश्‍वास और नम्रता की ज़रूरत थी। इनमें से कई मसीही ऐसे इलाकों में रहते थे जहाँ यहूदियों का बड़ा समुदाय था। इसलिए उनके लिए यीशु को सबके सामने मसीहा मानना और गैर-यहूदी मसीहियों के साथ मिलकर उपासना करना आसान नहीं था, उन्हें बहुत हिम्मत की ज़रूरत थी।​—यिर्म. 31:31-33; लूका 22:20.

7. ‘यहूदिया से आए लोग’ कौन-सी सच्चाई नहीं समझ पाए?

7 इसका मतलब यह नहीं था कि परमेश्‍वर ने अपने स्तर बदल दिए थे। क्योंकि नए करार में वही सिद्धांत थे जो मूसा के कानून में थे। (मत्ती 22:36-40) मिसाल के लिए, खतने के बारे में बाद में पौलुस ने लिखा था, “असली यहूदी वह है जो अंदर से यहूदी है और असली खतना लिखित कानून के हिसाब से होनेवाला खतना नहीं बल्कि पवित्र शक्‍ति के हिसाब से होनेवाला दिल का खतना है।” (रोमि. 2:29; व्यव. 10:16) मगर ‘यहूदिया से आए लोग’ इस सच्चाई को नहीं समझ पाए। वे बस इस बात पर अड़े थे कि परमेश्‍वर ने कभी-भी खतने का नियम रद्द नहीं किया। आपको क्या लगता है, जब इन यहूदी मसीहियों को दलीलें देकर समझाया जाएगा, तो क्या वे अपनी सोच बदलेंगे?

‘बहस और झगड़ा होता है’ (प्रेषि. 15:2)

8. खतने का मसला शासी निकाय के सामने क्यों पेश किया जाता है?

8 लूका आगे लिखता है, “मगर जब इस बात पर पौलुस और बरनबास के साथ उनकी [यानी ‘यहूदिया से आए लोगों’ की] काफी बहस हुई और झगड़ा हुआ, तो इस सिलसिले में पौलुस और बरनबास को साथ ही कुछ और भाइयों को, प्रेषितों और प्राचीनों के पास यरूशलेम भेजने का इंतज़ाम किया गया।” c (प्रेषि. 15:2) आयत बताती है कि मसले को लेकर काफी ‘बहस और झगड़ा’ होता है। यानी दोनों पक्षों के लोग अपनी बात पर अड़े रहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे जो कह रहे हैं वही सही है। अंताकिया के प्राचीन इस मसले को नहीं सुलझा पाते। इसलिए मंडली की शांति और एकता बनाए रखने के लिए वे एक फैसला करते हैं। वह यह कि अब खतने का मसला वे “प्रेषितों और प्राचीनों” यानी उस समय के शासी निकाय के सामने पेश करेंगे। अंताकिया के उन प्राचीनों से हम क्या सीख सकते हैं?

कुछ लोग ज़िद करने लगे, ‘यह बेहद ज़रूरी है कि गैर-यहूदियों को मूसा का कानून मानने की आज्ञा दी जाए’

9, 10. पौलुस, बरनबास और अंताकिया के भाइयों से हम क्या सीख सकते हैं?

9 एक अहम सीख यह है कि हमें परमेश्‍वर के संगठन पर पूरा भरोसा रखना चाहिए। ज़रा इस बारे में सोचिए, अंताकिया के भाई जानते थे कि शासी निकाय के सभी भाई यहूदी हैं। फिर भी उन्होंने भरोसा रखा कि वे भाई खतने के बारे में वही फैसला करेंगे जो शास्त्र के मुताबिक है। उन्हें इतना भरोसा क्यों था? क्योंकि वे जानते थे कि यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति और मसीही मंडली के मुखिया यीशु के ज़रिए मामले का हल ढूँढ़ने में उनकी मदद ज़रूर करेगा। (मत्ती 28:18, 20; इफि. 1:22, 23) आज जब कोई नाज़ुक मसला खड़ा होता है, तो हमें भी अंताकिया के मसीहियों के जैसा रवैया रखना चाहिए। हमें परमेश्‍वर के संगठन पर और अभिषिक्‍त मसीहियों से बने शासी निकाय पर भरोसा रखना चाहिए।

10 इस घटना से हमें नम्र रहने और सब्र रखने की भी सीख मिलती है। पौलुस और बरनबास को परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति ने ही चुना था कि वे गैर-यहूदी राष्ट्रों में प्रचार करें। लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा कि इससे उन्हें यह अधिकार भी मिल गया कि वे खतने का मसला हल कर सकें। (प्रेषि. 13:2, 3) यही नहीं, पौलुस ने बाद में लिखा, “मैं वहाँ [यानी यरूशलेम] इसलिए गया क्योंकि मुझ पर प्रकट किया गया था कि मुझे वहाँ जाना है।” (गला. 2:2) इससे पता चलता है कि पौलुस को यरूशलेम जाने की हिदायत परमेश्‍वर ने दी थी। आज भी जब मंडली में फूट पड़ने का खतरा होता है तो प्राचीन अपने विचारों को लेकर आपस में नहीं झगड़ते। वे नम्र रहते हैं और सब्र से पेश आते हैं। वे यहोवा की सोच जानने के लिए बाइबल में खोजबीन करते हैं और विश्‍वासयोग्य दास के निर्देशों को मानते हैं।​—फिलि. 2:2, 3.

11, 12. यहोवा पर भरोसा रखना क्यों ज़रूरी है?

11 हो सकता है, किसी मामले में हमें साफ-साफ पता ना हो कि क्या फैसला करना सही होगा। ऐसे में हमें यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए कि वक्‍त आने पर वह सही समझ देगा। याद कीजिए कि ईसवी सन्‌ 36 में पवित्र शक्‍ति से कुरनेलियुस का अभिषेक किया गया था। मगर इसके 13 साल बाद यानी करीब ईसवी सन्‌ 49 में परमेश्‍वर ने खतने के मसले का हल किया। यहोवा ने क्यों इतने लंबे समय तक इस मसले को चलने दिया? क्योंकि खतने का करार 1,900 साल पहले अब्राहम के साथ किया गया था, जिसका यहूदी गहरा सम्मान करते थे। नेकदिल यहूदी मसीहियों के लिए यह स्वीकार करना बहुत मुश्‍किल होता कि खतने का नियम अब रद्द हो चुका है। इतने बड़े बदलाव को स्वीकार करने और अपनी सोच को ढालने में उन्हें काफी वक्‍त लगता इसलिए यहोवा ने मसले को इतने समय तक चलने दिया।​—यूह. 16:12.

12 हमारा पिता यहोवा हमें प्यार से सिखाता है और हमारे साथ सब्र रखता है। ऐसे पिता से सीखना और उसके हाथों ढलना हमारे लिए कितनी खुशी की बात है! उसकी बात मानने से हमेशा हमारा भला होता है। (यशा. 48:17, 18; 64:8) इसलिए आइए हम कभी-भी घमंड से फूलकर अपने विचारों पर अड़े ना रहें। और जब संगठन के काम करने के तरीके में कोई फेरबदल किया जाता है या किसी आयत की नयी समझ दी जाती है, तो हम उसमें नुक्स ना निकालें। (सभो. 7:8) अगर हमें लगे कि हमारे अंदर धीरे-धीरे ऐसी सोच आने लगी है, तो हमें प्रेषितों अध्याय 15 में दी सीख पर ध्यान देना चाहिए और यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए। d

13. प्रचार में हम यहोवा की तरह सब्र कैसे रख सकते हैं?

13 हमें अपने बाइबल विद्यार्थियों के साथ भी सब्र रखना चाहिए। हो सकता है, उन्हें कुछ झूठी शिक्षाओं या रस्मों-रिवाज़ों से बहुत लगाव हो और उन्हें छोड़ना बहुत मुश्‍किल लगता हो। हमें अपने विद्यार्थी को समय देना चाहिए ताकि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति उसके दिल पर असर कर सके। (1 कुरिं. 3:6, 7) हमें अपने विद्यार्थी के लिए प्रार्थना भी करनी चाहिए। तब ठीक समय पर परमेश्‍वर किसी-न-किसी तरीके से यह ज़ाहिर करेगा कि उस विद्यार्थी के मामले में क्या कदम उठाना सही रहेगा।​—1 यूह. 5:14.

वे “पूरा ब्यौरा देकर” अच्छे अनुभव बताते हैं (प्रेषि. 15:3-5)

14, 15. अंताकिया की मंडली पौलुस, बरनबास और दूसरे भाइयों का कैसे आदर करती है? पौलुस और उसके साथी फीनीके और सामरिया के भाइयों का हौसला कैसे बढ़ाते हैं?

14 लूका आगे लिखता है, ‘मंडली उन्हें कुछ दूर तक विदा करती है और फिर ये भाई फीनीके और सामरिया के इलाकों से होते हुए जाते हैं और वहाँ के भाइयों को पूरा ब्यौरा देकर बताते हैं कि गैर-यहूदी खुद को बदलकर परमेश्‍वर की तरफ हो गए हैं। यह सब सुनकर भाइयों को बहुत खुशी होती है।’ (प्रेषि. 15:3) अंताकिया की मंडली पौलुस, बरनबास और दूसरे भाइयों के साथ-साथ कुछ दूर तक जाती है और उन्हें विदा करती है। उनका यह मसीही प्यार दिखाता है कि वे पौलुस और उसके साथियों का आदर करते हैं और चाहते हैं कि यहोवा की आशीष उन पर रहे। यह भी हमारे लिए कितनी बेहतरीन मिसाल है! क्या आप भी अंताकिया के भाइयों की तरह अपने मसीही भाई-बहनों का आदर करते हैं, “खासकर [प्राचीनों का] जो बोलने और सिखाने में कड़ी मेहनत करते हैं”?​—1 तीमु. 5:17.

15 रास्ते में पौलुस और उसके साथी, फीनीके और सामरिया में रुकते हैं और जितने दिन वहाँ ठहरते हैं वहाँ के भाइयों का हौसला बढ़ाते हैं। वे उन भाइयों को “पूरा ब्यौरा देकर” बताते हैं कि किस तरह बहुत सारे गैर-यहूदी लोग मसीही बन रहे हैं। उनमें से कुछ यहूदी मसीही ऐसे थे जो स्तिफनुस की मौत के बाद यरूशलेम से भागकर फीनीके और सामरिया में आ बसे थे। आज भी जब हम दूसरे इलाकों में होनेवाली बढ़ोतरी की खबरें सुनते हैं तो हमें हिम्मत मिलती है। खासकर उन भाई-बहनों को बहुत हिम्मत मिलती है जो आज़माइशों से गुज़र रहे हैं। क्या आप भी ऐसे अनुभव सुनने के लिए मसीही सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में हाज़िर होते हैं और हमारी पत्रिकाओं में या jw.org पर प्रकाशित होनेवाले अनुभव और जीवन कहानियाँ पढ़ते हैं?

16. क्या दिखाता है कि खतने का मसला गंभीर रूप ले चुका था?

16 पौलुस और उसके साथी अंताकिया से दक्षिण की ओर करीब 550 किलोमीटर का सफर तय करके यरूशलेम पहुँचते हैं। लूका लिखता है, “जब वे यरूशलेम पहुँचे तो मंडली और प्रेषितों और प्राचीनों ने खुशी से उनका स्वागत किया और पौलुस और बरनबास ने उन सब कामों के बारे में उन्हें बताया जो परमेश्‍वर ने उनके ज़रिए किए थे।” (प्रेषि. 15:4) लेकिन ‘फरीसियों के गुट के कुछ लोग, जो विश्‍वासी बन गए थे, अपनी जगह से उठ खड़े होते हैं और कहते हैं, “यह बेहद ज़रूरी है कि गैर-यहूदियों का खतना कराया जाए और उन्हें मूसा का कानून मानने की आज्ञा दी जाए।”’ (प्रेषि. 15:5) इससे पता चलता है कि खतने का मसला गंभीर रूप ले चुका था और इसका हल करना बहुत ज़रूरी था।

‘प्रेषित और प्राचीन इकट्ठा होते हैं’ (प्रेषि. 15:6-12)

17. यरूशलेम में शासी निकाय किन लोगों से मिलकर बना था? इसमें प्रेषितों के साथ-साथ “प्राचीन” क्यों शामिल थे?

17 नीतिवचन 13:10 में लिखा है, “बुद्धिमान वही है जो सलाह-मशविरा करता है।” इस बढ़िया सिद्धांत के मुताबिक “प्रेषित और प्राचीन [खतने के] मामले पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा” होते हैं। (प्रेषि. 15:6) उस समय “प्रेषित और प्राचीन” सारी मंडलियों की तरफ से फैसला लेते थे, ठीक जैसे आज शासी निकाय लेता है। मगर प्रेषितों के साथ-साथ “प्राचीन” क्यों शामिल थे? याद कीजिए कि प्रेषित याकूब को मार डाला गया था और कुछ समय के लिए प्रेषित पतरस को भी कैद किया गया था। बाकी प्रेषितों के साथ भी कोई हादसा हो सकता था। इसलिए दूसरे काबिल अभिषिक्‍त भाइयों को भी चुना गया ताकि मंडलियों की निगरानी करने के लिए भाइयों की कमी ना हो।

18, 19. पतरस कौन-से दमदार शब्द कहता है? उसकी बातें सुनकर भाइयों को क्या समझ जाना चाहिए?

18 लूका आगे लिखता है, ‘उन्होंने इस मामले पर गहराई से सोच-विचार किया और उनके बीच लंबी चर्चा हुई। इसके बाद पतरस उठकर उनसे कहता है, “भाइयो, तुम अच्छी तरह जानते हो कि शुरू में ही परमेश्‍वर ने तुम्हारे बीच में से मुझे चुना कि मेरे मुँह से गैर-यहूदी खुशखबरी सुनें और विश्‍वास करें। और परमेश्‍वर ने, जो दिलों को जानता है, उन्हें पवित्र शक्‍ति देकर गवाही दी कि उसने उन्हें मंज़ूर किया है, ठीक जैसे हमें भी मंज़ूर किया था। उसने हमारे और उनके बीच कोई फर्क नहीं किया, मगर उनके विश्‍वास की बिना पर उनके दिलों को शुद्ध किया।”’ (प्रेषि. 15:7-9) एक किताब के मुताबिक आयत 7 में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “लंबी चर्चा” किया गया है, उसका मतलब है, “पता करने की कोशिश करना; सवाल-जवाब करना।” तो हालाँकि इस मसले पर भाइयों की अलग-अलग राय थी, फिर भी वे खुलकर आपस में बात करने के लिए तैयार थे।

19 पतरस ने अपने दमदार शब्दों से लोगों को याद दिलाया कि ईसवी सन्‌ 36 में जब पहली बार गैर-यहूदियों पर, यानी कुरनेलियुस और उसके घराने पर पवित्र शक्‍ति उँडेली गयी तो वह वहाँ मौजूद था। उसकी बातें सुनकर भाइयों को समझ जाना चाहिए कि जब यहोवा ने यहूदी और गैर-यहूदी के बीच फर्क करना बंद कर दिया है, तो भला इंसान किस अधिकार से ऐसा कर सकता है? यही नहीं, एक इंसान मसीह पर विश्‍वास करने की वजह से नेक ठहराया जाता है, ना कि मूसा का कानून मानने से।​—गला. 2:16.

20. खतने को बढ़ावा देनेवाले कैसे “परमेश्‍वर की परीक्षा” ले रहे थे?

20 परमेश्‍वर के वचन और पवित्र शक्‍ति की इस गवाही को कोई झुठला नहीं सकता। इसलिए पतरस आखिर में कहता है, “तो अब तुम क्यों परमेश्‍वर की परीक्षा लेने के लिए चेलों पर ऐसा बोझ लाद रहे हो, जिसे न हमारे बाप-दादा उठा सके थे, न हम? इसके बजाय, हमें विश्‍वास है कि हम प्रभु यीशु की महा-कृपा की वजह से उद्धार पाते हैं, ठीक जैसे वे भी उद्धार पाते हैं।” (प्रेषि. 15:10, 11) खतने को बढ़ावा देनेवाले दरअसल “परमेश्‍वर की परीक्षा” ले रहे थे या उसके सब्र का इम्तहान ले रहे थे। वे गैर-यहूदी मसीहियों पर ऐसा कानून थोपने की कोशिश कर रहे थे जिस पर वे खुद पूरी तरह नहीं चल पा रहे थे और इस वजह से मौत के लायक थे। (गला. 3:10) दरअसल उन यहूदियों को खतने का बढ़ावा देने के बजाय यहोवा का एहसानमंद होना चाहिए था कि उसने यीशु के ज़रिए उन पर महा-कृपा की थी।

21. बरनबास और पौलुस क्या बताते हैं जिससे भाइयों को फैसला लेने में मदद मिलती है?

21 पतरस की बातों का लोगों पर ज़रूर गहरा असर हुआ होगा क्योंकि उसकी बात सुनकर “पूरी सभा खामोश” हो जाती है। इसके बाद, बरनबास और पौलुस सबको बताते हैं कि “कैसे परमेश्‍वर ने उनके ज़रिए गैर-यहूदियों के बीच बहुत-से चमत्कार और आश्‍चर्य के काम किए।” (प्रेषि. 15:12) अब प्रेषित और प्राचीन इन सारे सबूतों की जाँच कर सकते हैं और खतने के बारे में सही फैसला ले सकते हैं।

22-24. (क) पहली सदी के शासी निकाय की तरह आज शासी निकाय क्या करता है? (ख) सभी प्राचीन कैसे दिखा सकते हैं कि वे परमेश्‍वर के संगठन के निर्देशों के मुताबिक काम करते हैं?

22 आज भी जब शासी निकाय के सदस्यों की बैठक होती है, तो वे परमेश्‍वर के वचन से मार्गदर्शन लेते हैं और पवित्र शक्‍ति के लिए दिल से प्रार्थना करते हैं। (भज. 119:105; मत्ती 7:7-11) बैठक से पहले हर सदस्य को बताया जाता है कि किन मुद्दों पर बात होगी ताकि वह प्रार्थना करके उन मुद्दों पर सोच-विचार कर सके। (नीति. 15:28) बैठक में शासी निकाय के भाई खुलकर और आदर के साथ अपनी राय पेश करते हैं। इस दौरान बाइबल का कई बार इस्तेमाल किया जाता है।

23 मंडली के प्राचीन भी शासी निकाय के नक्शे-कदम पर चलते हैं। लेकिन अगर किसी गंभीर मसले पर काफी सोच-विचार के बाद भी कोई हल नहीं निकलता, तो प्राचीन क्या करते हैं? वे शाखा दफ्तर से या उसके ठहराए प्रतिनिधियों जैसे सर्किट निगरानों से सलाह-मशविरा करते हैं। और अगर ज़रूरत पड़े तो शाखा दफ्तर निर्देश के लिए शासी निकाय को लिख सकता है।

24 जी हाँ, यहोवा उन लोगों से बहुत खुश होता है जो नम्रता, वफादारी और सब्र का गुण दिखाते हैं और संगठन के निर्देशों के मुताबिक काम करते हैं। वे उन्हें आशीषें देता है जिससे कि उनके बीच शांति और एकता होती है और मंडली में बढ़ोतरी होती है। इस बारे में हम अगले अध्याय में और भी जानेंगे।

a यह बक्स देखें, “ झूठे भाइयों की शिक्षाएँ।

b खतने का करार अब्राहम से किए गए करार का हिस्सा नहीं था। अब्राहम से किया गया करार आज भी लागू होता है। यह करार ईसा पूर्व 1943 से शुरू हुआ था, जब अब्राहम ने कनान देश जाते वक्‍त फरात नदी पार की थी। उस वक्‍त उसका नाम अब्राम था और वह 75 साल का था। लेकिन खतने का करार ईसा पूर्व 1919 में किया गया, जब अब्राहम 99 साल का था।​—उत्प. 12:1-8; 17:1, 9-14; गला. 3:17.

c जिन भाइयों को यरूशलेम भेजा जाता है उनमें से एक शायद तीतुस था। तीतुस एक यूनानी मसीही था, जो आगे चलकर पौलुस का एक भरोसेमंद साथी बना। (गला. 2:1; तीतु. 1:4) तीतुस इस बात की जीती-जागती मिसाल था कि खतनारहित गैर-यहूदियों का भी पवित्र शक्‍ति से अभिषेक किया गया था।​—गला. 2:3.