अध्याय 18
‘परमेश्वर को ढूँढ़ो और वाकई तुम उसे पा लोगे’
पौलुस प्रचार के अपने तरीके में फेरबदल करता है और ऐसे विषय पर बात करता है जिसमें लोगों को रुचि है
प्रेषितों 17:16-34 पर आधारित
1-3. (क) एथेन्स में पौलुस क्या देखकर चिढ़ जाता है? (ख) पौलुस के भाषण से हम क्या सीख सकते हैं?
पौलुस यूनान के एथेन्स शहर में है जो शिक्षा और ज्ञान का मुख्य केंद्र है। यहाँ एक ज़माने में सुकरात, प्लेटो और अरस्तू जैसे महान दार्शनिक सिखाते थे। पौलुस इस शहर का दौरा करते वक्त कुछ ऐसी चीज़ें देखता है जिससे वह चिढ़ जाता है। मंदिरों में, चौराहों पर, सड़कों पर, जहाँ देखो वहाँ मूर्तियाँ-ही-मूर्तियाँ हैं, क्योंकि यहाँ के लोग कई देवी-देवताओं को पूजते हैं। पौलुस जानता है कि सच्चे परमेश्वर यहोवा को मूर्तिपूजा से सख्त नफरत है। (निर्ग. 20:4, 5) और पौलुस भी अपने परमेश्वर यहोवा की तरह मूर्तियों से घिन करता है!
2 जैसे ही पौलुस बाज़ार में पहुँचता है, वह कुछ ऐसा देखता है जो बहुत ही घिनौना है। शहर के उत्तर-पश्चिम की तरफ मुख्य फाटक के पास हिरमेस देवता की कई मूरतें खड़ी हैं जिनमें उसके लिंग को उभारकर दिखाया गया है। पूरा बाज़ार मंदिरों से भरा पड़ा है। अब पौलुस कैसे प्रचार कर पाएगा? क्या वह शांत रह पाएगा और ऐसे विषय पर बात कर पाएगा जिसमें लोगों को रुचि हो? क्या वह सच्चे परमेश्वर को जानने में एक भी इंसान की मदद कर पाएगा?
3 पौलुस एथेन्स के बड़े-बड़े ज्ञानियों के सामने एक भाषण देता है जो प्रेषितों 17:22-31 में दर्ज़ है। उसने बहुत सोच-समझकर बात की ताकि लोगों की भावनाओं को ठेस ना पहुँचे। और उसने जो भी कहा पूरे यकीन से कहा। हम उससे क्या सीख सकते हैं? हमें ऐसे विषय पर लोगों से बात करनी चाहिए जिसमें उन्हें रुचि हो। और हमें इस तरह अपनी बात कहनी चाहिए ताकि लोग गहराई से सोचें और सही नतीजे पर पहुँच सकें।
वह “बाज़ार में” सिखाता है (प्रेषि. 17:16-21)
4, 5. पौलुस एथेन्स में कहाँ प्रचार करता है? पौलुस के लिए किन लोगों से बात करना आसान नहीं होगा?
4 पौलुस अपने दूसरे मिशनरी दौरे में यानी ईसवी सन् 50 के आस-पास एथेन्स आता है। a सीलास और तीमुथियुस भी बिरीया से आनेवाले हैं। इस बीच पौलुस अपने दस्तूर के मुताबिक ‘सभा-घर में यहूदियों के साथ शास्त्र से तर्क-वितर्क’ करने लगता है। वह “बाज़ार में” भी जाता है ताकि गैर-यहूदियों को गवाही दे सके। (प्रेषि. 17:17) एथेन्स का बाज़ार बहुत बड़ा था और एक्रोपोलिस नाम की पहाड़ी के पास था। लोग यहाँ सिर्फ चीज़ें खरीदने-बेचने नहीं आते थे बल्कि अगर शहर में कोई भी बड़ी बात होती थी तो लोग यहीं इकट्ठा होते थे। एक किताब बताती है कि इस जगह पर शहर के व्यापारी, नेता, दार्शनिक और लेखक जमा होते थे। यहाँ बैठकर लोगों को ज्ञान की बड़ी-बड़ी बातें करना पसंद था।
5 पौलुस बाज़ार में ऐसे लोगों से बात करनेवाला है जिन्हें कायल करना आसान नहीं होगा। इनमें से कुछ लोग इपिकूरी कहलाते हैं और कुछ स्तोइकी। इनके दार्शनिक विचार एक-दूसरे से बिलकुल अलग हैं। b इपिकूरी मानते हैं कि जीवन की शुरूआत अपने आप हुई है। चंद शब्दों में कहें तो ज़िंदगी के बारे में उनके उसूल ये हैं: “ईश्वर से डरने की ज़रूरत नहीं; मौत कोई दर्दनाक हादसा नहीं है; अच्छाई हासिल की जा सकती है; बुराई बरदाश्त की जा सकती है।” वहीं दूसरी तरफ, स्तोइकी मानते हैं कि कोई ईश्वर नहीं है और अपना दिमाग लगाकर इंसान अच्छी ज़िंदगी जी सकता है। इपिकूरी और स्तोइकी दोनों ही नहीं मानते कि मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे, जबकि यह मसीह के चेलों की एक अहम शिक्षा है। तो ज़ाहिर है कि इन दलों के दार्शनिक विचार उन शिक्षाओं से बिलकुल अलग हैं जो मसीही मानते हैं और जिनके बारे में पौलुस बता रहा है।
6, 7. कुछ ज्ञानी पौलुस की बातें सुनकर क्या कहते हैं? आज भी लोग क्या करते हैं?
6 पौलुस की बातें सुनकर यूनान के बड़े-बड़े ज्ञानियों को कैसा लगता है? उनमें से कुछ लोग पौलुस को “बकबक करनेवाला” कहते हैं। यूनानी भाषा में इस शब्द का मतलब “दाना चुगनेवाला” भी हो सकता है। (प्रेषि. 17:18) एक विद्वान का कहना है, “यह शब्द असल में एक छोटी चिड़िया के लिए इस्तेमाल किया जाता था, जो जगह-जगह जाकर दाना चुगती है। फिर यह शब्द ऐसे लोगों के लिए इस्तेमाल होने लगा जो बाज़ार में बचा-खुचा खाना और रद्दी बटोरते थे। बाद में, यह शब्द ऐसे इंसान के लिए भी इस्तेमाल होने लगा जो यहाँ-वहाँ से जानकारी इकट्ठा करता है, लेकिन खुद ही उसे समझ नहीं पाता।” तो जब ज्ञानियों ने पौलुस को “बकबक करनेवाला” कहा, तो उनका मतलब था कि पौलुस को कुछ नहीं पता, वह बस सुनी-सुनायी बातें दोहरा रहा है। जब लोग इस तरह पौलुस की बेइज़्ज़ती करते हैं तो वह निराश नहीं होता और संदेश सुनाने से पीछे नहीं हटता, जैसा कि हम आगे देखेंगे।
7 आज भी यहोवा के साक्षियों के साथ कुछ ऐसा ही होता है। हमारे विश्वास की वजह से लोग हमारा अपमान करते हैं। मिसाल के लिए, कुछ टीचर पढ़ाते हैं कि विकासवाद की शिक्षा सच है और समझदार लोग ही इस शिक्षा को मानते हैं। उनका कहना है कि जो लोग विकासवाद को नहीं मानते वे बेवकूफ हैं। इसलिए जब हम लोगों को बाइबल से दिखाते हैं कि सबकुछ अपने आप नहीं आया बल्कि इसे रचा गया है, तो उन्हें लगता है कि हम बेवकूफ हैं। जब हमारा अपमान किया जाता है तो हम निराश नहीं होते। इसके उलट, हम पूरे यकीन से अपने विश्वास की पैरवी करते हैं और बताते हैं कि एक सृष्टिकर्ता है जिसने सबकुछ रचा है।—प्रका. 4:11.
8. (क) पौलुस की बातें सुनकर कुछ और लोग क्या कहते हैं? (ख) इसका क्या मतलब हो सकता है कि पौलुस को अरियुपगुस ले जाया जाता है? (फुटनोट देखें।)
8 पौलुस की बातें सुनकर कुछ लोग यह भी कहते हैं, “यह तो कोई विदेशी देवताओं का प्रचारक लगता है।” (प्रेषि. 17:18) क्या उनकी बात सच है? क्या पौलुस नए देवताओं का प्रचार कर रहा है? उस ज़माने में नए देवताओं का प्रचार करना खतरे से खाली नहीं था। सदियों पहले सुकरात नाम के दार्शनिक पर यही आरोप लगा था। इस वजह से उस पर मुकदमा चला और उसे मौत की सज़ा दी गयी। तो फिर जब एथेन्स के लोगों को पौलुस की शिक्षाएँ अजीब लगती हैं, तो वे उसे अरियुपगुस ले जाते हैं और अपनी शिक्षाएँ खुलकर समझाने के लिए कहते हैं। c अब पौलुस किस तरह इन लोगों को प्रचार करेगा जिन्हें शास्त्र का कोई ज्ञान नहीं है?
“एथेन्स के लोगो, मैं देख सकता हूँ” (प्रेषि. 17:22, 23)
9-11. (क) पौलुस किस विषय पर अपनी बात शुरू करता है? (ख) हम प्रचार में पौलुस का तरीका कैसे अपना सकते हैं?
9 याद कीजिए कि शहर को मूरतों से भरा देखकर पौलुस चिढ़ गया था। मगर वह मूर्तिपूजा का खुलेआम खंडन नहीं करने लगता। इसके बजाय वह शांत रहता है और समझ से काम लेता है। वह ऐसे विषय पर अपनी बात शुरू करता है जिसमें एथेन्स के लोगों को भी रुचि होगी और वे उसकी सुनने के लिए तैयार हो जाएँगे। वह कहता है, “एथेन्स के लोगो, मैं देख सकता हूँ कि तुम हर बात में दूसरों से बढ़कर देवताओं के भक्त हो।” (प्रेषि. 17:22) पौलुस उनकी तारीफ कर रहा है कि वे बहुत धार्मिक हैं। वह जानता है कि भले ही उनकी आँखों पर झूठी शिक्षाओं का परदा पड़ा हुआ है मगर उनमें से कुछ दिल के अच्छे हैं और सच्चाई जानना चाहते हैं। पौलुस याद करता है कि एक वक्त पर उसने भी जो कुछ किया “अनजाने में किया और [उसमें] विश्वास नहीं था।”—1 तीमु. 1:13.
10 फिर पौलुस बताता है कि उसने क्यों एथेन्स के लोगों की तारीफ की। उन्होंने एक वेदी खड़ी की है और उसे “अनजाने परमेश्वर के लिए” समर्पित किया है। एक किताब बताती है, “यूनान और दूसरे देशों में लोग आम तौर पर ‘अनजाने ईश्वरों’ के नाम वेदियाँ बनाते थे। वह इसलिए क्योंकि वे डरते थे कि अगर वे गलती से किसी ईश्वर को पूजना भूल गए, तो वह उनसे नाराज़ हो जाएगा।” तो जब एथेन्स के लोगों ने “अनजाने परमेश्वर के लिए” वेदी खड़ी की तो वे मान रहे थे कि ऐसा एक परमेश्वर है जिसे वे नहीं जानते। इसी वेदी का ज़िक्र करने के बाद पौलुस लोगों का ध्यान अपने संदेश की तरफ खींचता है। वह समझाता है, “तुम अनजाने में जिस परमेश्वर की उपासना कर रहे हो, मैं उसी के बारे में तुम्हें बता रहा हूँ।” (प्रेषि. 17:23) पौलुस किसी नए या विदेशी देवता का प्रचार नहीं कर रहा है, जैसा कुछ लोग इलज़ाम लगा रहे हैं। इसके बजाय, वह सच्चे परमेश्वर के बारे में गवाही दे रहा है, जिससे वे अनजान हैं। पौलुस ने कितनी समझदारी दिखायी और दमदार तरीके से अपनी बात रखी!
11 हम प्रचार में पौलुस का तरीका कैसे अपना सकते हैं? हम ध्यान दे सकते हैं कि क्या घर-मालिक ने कुछ ऐसा पहना है या उसके घर के बाहर ऐसी कोई चीज़ है जिससे पता चलता है कि वह एक धार्मिक इंसान है। फिर हम कह सकते हैं, ‘मैं देख सकता हूँ कि आप ईश्वर में आस्था रखते हैं। मैं आप जैसे लोगों से ही मिलने आया हूँ।’ इस तरह उनकी तारीफ करके हम कोई ऐसे विषय पर बात शुरू कर सकते हैं जिसमें उसे भी रुचि हो। याद रखिए, एक इंसान चाहे किसी भी धर्म को मानता हो, हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि वह कभी सच्चाई में नहीं आएगा। हमारे बीच ऐसे कई भाई-बहन हैं जो एक वक्त पर झूठी शिक्षाओं को दिल से मानते थे।
परमेश्वर “हममें से किसी से भी दूर नहीं है” (प्रेषि. 17:24-28)
12. पौलुस कैसे एथेन्स के लोगों को ध्यान में रखकर अपने प्रचार के तरीके में फेरबदल करता है?
12 पौलुस ने ऐसे विषय पर बात शुरू की जिसमें एथेन्स के लोगों को रुचि थी। पर क्या वह उनकी दिलचस्पी बनाए रख पाता? पौलुस जानता है कि उन लोगों को यूनानी फलसफों का तो ज्ञान है लेकिन शास्त्र का बिलकुल ज्ञान नहीं है। इसलिए उन्हें गवाही देने के लिए वह अपने तरीके में फेरबदल करता है। कैसे? एक, वह सीधे-सीधे शास्त्र का हवाला नहीं देता लेकिन उसमें लिखी बातों को अपने शब्दों में समझाता है। दूसरा, वह बातचीत में “हम” शब्द का इस्तेमाल करता है। ऐसा करके वह उन्हें एहसास दिलाता है कि वह उनके विचारों और भावनाओं को समझ सकता है। तीसरा, वह यूनानी लेखकों की किताबों का भी हवाला देता है ताकि लोग जान सकें कि कुछ बातें जो पौलुस बता रहा है वे उनकी किताबों में भी लिखी हैं। आइए पौलुस के ज़बरदस्त भाषण पर गौर करें और देखें कि वह उस अनजाने परमेश्वर के बारे में कौन-सी अहम सच्चाइयाँ बताता है।
13. विश्व-मंडल के बारे में पौलुस क्या बताता है? इससे वह क्या संदेश देना चाहता है?
13 परमेश्वर ने पूरे विश्व-मंडल को रचा है। पौलुस कहता है, “जिस परमेश्वर ने पूरी दुनिया और उसकी सब चीज़ें बनायीं, वह आकाश और धरती का मालिक है इसलिए वह हाथ के बनाए मंदिरों में नहीं रहता।” d (प्रेषि. 17:24) पूरा विश्व-मंडल और इसमें जो कुछ है वह अपने आप नहीं आ गया। सच्चा परमेश्वर इस सब का बनानेवाला है। (भज. 146:6) वह आकाश और धरती का मालिक है, फिर वह इंसान के बनाए मंदिरों में कैसे रह सकता है? वह अथेना जैसे ईश्वरों की तरह नहीं है जिनकी शान तब तक रहती है जब तक उनके मंदिर और वेदियाँ रहती हैं। (1 राजा 8:27) पौलुस का संदेश साफ है: सच्चा परमेश्वर इतना महान है कि इंसान की बनायी कोई भी मूरत उसे टक्कर नहीं दे सकती।—यशा. 40:18-26.
14. पौलुस किस तरह समझाता है कि परमेश्वर इंसानों पर निर्भर नहीं है?
14 परमेश्वर इंसानों पर निर्भर नहीं है। मूरत पूजनेवाले अपनी मूर्तियों को महँगे-महँगे कपड़े पहनाते हैं और उनके आगे कीमती तोहफे या खाने-पीने की चीज़ें रखते हैं। उन्हें लगता है कि मूरतों को इन चीज़ों की ज़रूरत है। लेकिन कुछ यूनानी दार्शनिक शायद ऐसा नहीं मानते हैं। वे ज़रूर पौलुस की इस बात से सहमत हुए होंगे कि परमेश्वर ‘इंसान के हाथों अपनी सेवा नहीं करवाता, मानो उसे किसी चीज़ की ज़रूरत हो।’ सच तो यह है कि सृष्टिकर्ता इंसानों पर निर्भर नहीं है। उलटा परमेश्वर इंसानों को “जीवन और साँसें और सबकुछ देता है।” वही धूप, बारिश, उपजाऊ ज़मीन वगैरह देता है जो इंसानों के लिए ज़रूरी हैं। (प्रेषि. 17:25; उत्प. 2:7) इससे साफ ज़ाहिर है कि परमेश्वर जो इंसानों को सबकुछ देता है, उसे इंसानों से किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है।
15. पौलुस ने एथेन्स के लोगों की गलत सोच कैसे सुधारी? हम उसकी मिसाल से क्या सीखते हैं?
15 परमेश्वर ने इंसानों को बनाया है। एथेन्स के लोगों को अपने देश पर बहुत घमंड है और जो लोग यूनानी नहीं हैं उन्हें वे नीचा समझते हैं। मगर बाइबल सिखाती है कि हमें अपने राष्ट्र या जाति पर घमंड नहीं करना चाहिए। (व्यव. 10:17) तो पौलुस उनकी गलत सोच कैसे सुधारता है? वह बड़ी कुशलता से और उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाए बगैर उन्हें बताता है, “[परमेश्वर ने] एक ही इंसान से सारे राष्ट्र बनाए।” (प्रेषि. 17:26) पौलुस की इस बात से वे सोच में पड़ जाते हैं। पौलुस यहाँ उत्पत्ति में बताए पहले आदमी की बात कर रहा है। (उत्प. 1:26-28) पूरी मानवजाति एक ही इंसान, आदम से निकली है, इसलिए कोई भी देश या राष्ट्र दूसरे से बड़ा नहीं है। इस सच्चाई को एथेन्स के लोग फौरन समझ जाते हैं। यहाँ हम पौलुस से एक ज़रूरी बात सीखते हैं। प्रचार में हम कुशलता से बात करते हैं और लोगों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाते। मगर उन्हें नाराज़ करने के डर से हम बाइबल की सच्चाई में फेरबदल नहीं करते।
16. सृष्टिकर्ता ने इंसान को किस लिए बनाया है?
16 परमेश्वर चाहता है कि इंसान उसके करीब आएँ। पौलुस की बात सुननेवाले दार्शनिकों ने ज़रूर इंसान और ज़िंदगी के बारे में लंबी-चौड़ी बातें की होंगी। फिर भी वे यह ठीक-ठीक नहीं समझा पाए होंगे कि आखिर इंसान को किस लिए बनाया गया है। मगर पौलुस साफ बताता है कि सृष्टिकर्ता ने इंसान को इसलिए बनाया कि “वे परमेश्वर को ढूँढ़ें और उसकी खोज करें और वाकई उसे पा लें। सच तो यह है कि वह हममें से किसी से भी दूर नहीं है।” (प्रेषि. 17:27) एथेन्स के लोग जिस परमेश्वर से अनजान थे, उसे अब वे जान सकते हैं, उसके करीब आ सकते हैं। दरअसल जो लोग सच में उसकी खोज करते हैं और उसके बारे में सीखना चाहते हैं उनसे वह दूर नहीं। (भज. 145:18) ध्यान दीजिए, पौलुस “हममें” शब्द का इस्तेमाल करता है। वह खुद को भी उन लोगों में शामिल करता है जिन्हें परमेश्वर को ‘ढूँढ़ने’ और ‘उसकी खोज करने’ की ज़रूरत है।
17, 18. (क) इंसानों में परमेश्वर को जानने की इच्छा क्यों होनी चाहिए? (ख) पौलुस ने अपने सुननेवालों का ध्यान खींचने के लिए क्या किया? उससे हम क्या सीखते हैं?
17 इंसानों में परमेश्वर को जानने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा हम क्यों कहते हैं? जैसा पौलुस ने बताया, परमेश्वर से ही “हमारी ज़िंदगी है और हम चलते-फिरते हैं और वजूद में हैं।” कुछ विद्वानों का कहना है कि पौलुस ने ये शब्द छठी सदी के कवि एपिमेनिडीस की पंक्तियों से लिए थे। वह एक मशहूर कवि था और जब भी एथेन्स की धार्मिक परंपराओं की बात होती थी तो उसका नाम ज़रूर आता था। पौलुस एक और वजह बताता है कि इंसानों में परमेश्वर को जानने की इच्छा क्यों होनी चाहिए। वह कहता है, “तुम्हारे कुछ कवियों ने भी कहा है, ‘हम तो उसी के बच्चे हैं।’” (प्रेषि. 17:28) परमेश्वर ने दुनिया के सबसे पहले इंसान को बनाया था जिससे हम सभी इंसान आए हैं। तो ज़ाहिर है, परमेश्वर और हमारा एक रिश्ता है, इसलिए हमें उसे जानना चाहिए और उसके करीब आना चाहिए। पौलुस ने अपने सुननेवालों का ध्यान खींचने के लिए यूनानी किताबों से सीधे-सीधे हवाला दिया। e पौलुस की तरह हम भी कभी-कभी इतिहास की किताबों, विश्वकोश या दूसरी जानी-मानी किताबों से हवाला दे सकते हैं। जैसे, हम किसी मशहूर किताब से हवाला देकर समझा सकते हैं कि फलाँ रीति-रिवाज़ या त्योहार की शुरूआत कैसे झूठे धर्म से हुई थी।
18 अब तक पौलुस ने एथेन्स के लोगों को बड़ी कुशलता से परमेश्वर के बारे में अहम सच्चाइयाँ बतायीं। यह सब जानने के बाद उन्हें क्या करना चाहिए? आइए ध्यान दें कि पौलुस उन्हें क्या बताता है।
“सब लोग पश्चाताप करें” (प्रेषि. 17:29-31)
19, 20. (क) पौलुस ने लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाए बिना कैसे समझाया कि मूरतों को पूजना बेवकूफी है? (ख) पौलुस के सुननेवालों को क्या कदम उठाना था?
19 पौलुस एक बार फिर यूनानी किताबों से हवाला देकर कहता है, “हम परमेश्वर के बच्चे हैं इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्वर सोने या चाँदी या पत्थर जैसा है, या इंसान की कल्पना और कला से गढ़ी गयी किसी चीज़ जैसा है।” (प्रेषि. 17:29) अगर परमेश्वर ने इंसान को बनाया है, तो फिर वह एक मूरत के बराबर कैसे हो सकता है क्योंकि मूरत को तो इंसान ने बनाया है? पौलुस ने क्या ही ज़बरदस्त तर्क किया! इस तरह उसने बड़ी कुशलता से, लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाए बिना यह ज़ाहिर किया कि मूरतों को पूजना बेवकूफी है। (भज. 115:4-8; यशा. 44:9-20) ध्यान दीजिए कि पौलुस ने यह नहीं कहा कि “तुम्हें यह नहीं सोचना चाहिए।” इसके बजाय उसने खुद को भी शामिल करते हुए कहा कि “हमें यह नहीं सोचना चाहिए।” इसलिए लोगों को उसकी बात मानना ज़्यादा आसान लगा होगा।
20 अब पौलुस उन्हें साफ-साफ बताता है कि उन्हें क्या कदम उठाना है। वह कहता है, “परमेश्वर ने उस वक्त को नज़रअंदाज़ किया जब लोगों ने अनजाने में ऐसा किया था [यानी यह सोचा था कि मूरतों को पूजकर वे परमेश्वर को खुश कर सकते थे]। मगर अब वह हर जगह ऐलान कर रहा है कि सब लोग पश्चाताप करें।” (प्रेषि. 17:30) “पश्चाताप” शब्द सुनकर कुछ लोग शायद दंग रह गए होंगे। लेकिन पौलुस के भाषण से एक बात तो साफ थी कि परमेश्वर ने उन्हें ज़िंदगी दी है इसलिए वे जो कुछ करते उसका लेखा उन्हें परमेश्वर को देना होगा। अब तक यहोवा उनसे खुश नहीं था क्योंकि वे मूर्तिपूजा कर रहे थे। इसलिए उन्हें मूर्तिपूजा छोड़नी थी और यहोवा को जानना था और उसके मुताबिक ज़िंदगी जीनी थी।
21, 22. पौलुस आखिर में कौन-सी ज़बरदस्त बात कहता है? उसके शब्द आज हमारे लिए क्यों मायने रखते हैं?
21 पौलुस आखिर में एथेन्स के लोगों से यह ज़बरदस्त बात कहता है, “[परमेश्वर ने] एक दिन तय किया है जब वह सच्चाई से सारी दुनिया का न्याय करेगा और इसके लिए उसने एक आदमी को ठहराया है। और सब इंसानों को इस बात का पक्का यकीन दिलाने के लिए परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया है।” (प्रेषि. 17:31) परमेश्वर बहुत जल्द सारी दुनिया का न्याय करनेवाला है! इससे उन्हें समझ जाना चाहिए था कि सच्चे परमेश्वर को ढूँढ़ना और उसे पाना कितना ज़रूरी है! पौलुस यह नहीं बताता कि परमेश्वर ने किसे न्यायी ठहराया है। लेकिन वह उस न्यायी के बारे में एक दिलचस्प बात बताता है। वह यह कि उसे मार डाला गया और परमेश्वर ने उसे फिर से ज़िंदा किया!
22 पौलुस के ये शब्द आज हमारे लिए बहुत मायने रखते हैं। हम जानते हैं कि परमेश्वर ने यीशु को न्यायी ठहराया है, जिसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया है। (यूह. 5:22) हम यह भी जानते हैं कि न्याय का दिन 1,000 साल लंबा होगा और वह दिन तेज़ी से पास आ रहा है। (प्रका. 20:4, 6) हम न्याय के उस दिन से नहीं डरते क्योंकि हमें पता है कि जो लोग वफादार गिने जाएँगे उन्हें लाजवाब आशीषें मिलेंगी। हमें इतना यकीन क्यों है कि हमारा भविष्य शानदार होगा? यीशु का ज़िंदा होना इस बात की गारंटी देता है, जो आज तक का सबसे बड़ा चमत्कार है!
‘कुछ आदमी विश्वासी बन जाते हैं’ (प्रेषि. 17:32-34)
23. पौलुस का भाषण सुनकर लोगों का क्या रवैया होता है?
23 पौलुस का भाषण सुनकर लोग क्या करते हैं? “कुछ लोग उसकी खिल्ली उड़ाने” लगते हैं क्योंकि उसने मरे हुओं के ज़िंदा होने के बारे में बताया। दूसरे मज़ाक तो नहीं बनाते, मगर वे पश्चाताप करने और विश्वासी बनने का फैसला भी नहीं करते। वे बस यह कहकर पौलुस को टाल देते हैं, “हम इस बारे में तुझसे फिर कभी सुनेंगे।” (प्रेषि. 17:32) ‘मगर कुछ आदमी उसके साथ हो लेते हैं और विश्वासी बन जाते हैं। इनमें अरियुपगुस की अदालत का एक न्यायी दियोनिसियुस और दमरिस नाम की एक औरत और इनके अलावा और भी लोग थे।’ (प्रेषि. 17:34) आज हमें भी प्रचार में तरह-तरह के लोग मिलते हैं। कुछ लोग हमारा मज़ाक उड़ाते हैं जबकि कुछ प्यार से हमें टाल देते हैं। लेकिन कुछ लोग राज का संदेश सुनकर विश्वासी बन जाते हैं जिससे हमें बड़ी खुशी होती है।
24. एथेन्स के लोगों को पौलुस ने जो भाषण दिया, उससे हमने क्या सीखा?
24 पौलुस के भाषण से हमने बहुत सारी बातें सीखीं। एक यह कि हम लोगों के साथ तर्क कर सकते हैं और ऐसी दलीलें दे सकते हैं जिनसे उन्हें हमारी बातों पर यकीन हो जाए। साथ ही, हम लोगों को ध्यान में रखकर प्रचार के अपने तरीके में फेरबदल कर सकते हैं। कुछ लोग नेकदिल हैं लेकिन झूठे धर्म ने उन्हें अंधा कर रखा है। हमने यह सीखा कि उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाए बिना हम सब्र और समझदारी से पेश आ सकते हैं। हमने पौलुस से यह भी सीखा कि लोगों को नाराज़ करने के डर से हमें बाइबल की सच्चाइयों में फेरबदल नहीं करना चाहिए। जी हाँ, प्रेषित पौलुस की मिसाल पर ध्यान देने से हम सब अच्छे शिक्षक बन सकते हैं। और मंडली के निगरान सिखाने की अपनी कला निखार सकते हैं। अगर हम ऐसा करें तो हम दूसरों की मदद कर पाएँगे ताकि वे “परमेश्वर को ढूँढ़ें . . . और वाकई उसे पा लें।”—प्रेषि. 17:27.
a यह बक्स देखें, “ एथेन्स—पुराने ज़माने का एक मशहूर शहर।”
b यह बक्स देखें, “ इपिकूरी और स्तोइकी।”
c अरियुपगुस एक ऊँची पहाड़ी थी जहाँ एथेन्स के शासक आम तौर पर बैठक रखते थे। यह पहाड़ी एक्रोपोलिस के उत्तर-पश्चिम में थी। बाइबल में “अरियुपगुस” शब्द का मतलब या तो अरियुपगुस पहाड़ी हो सकता है या एथेन्स के शासक हो सकते हैं। इसलिए विद्वानों के बीच इस बात को लेकर मतभेद है कि पौलुस को कहाँ ले जाया गया था। कुछ विद्वान कहते हैं कि पौलुस को अरियुपगुस पहाड़ी पर या उसके आस-पास ले जाया गया था तो कुछ कहते हैं कि उसे शासकों की बैठक में ले जाया गया जो शायद बाज़ार में या किसी और जगह पर हुई थी।
d यहाँ जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “दुनिया” किया गया है, वह है कॉसमोस। बाइबल में आम तौर पर इस शब्द का मतलब है लोग। लेकिन यूनानी लोग कॉसमोस शब्द का मतलब विश्व-मंडल समझते थे। पौलुस ने एथेन्स में यूनानी लोगों के साथ ऐसे विषय पर बात शुरू की थी जिसमें उन्हें रुचि थी और वह चाहता था कि वे आगे भी उसकी बात में दिलचस्पी लें और उसकी सुनते रहें। शायद इसलिए उसने प्रेषितों 17:24 में कॉसमोस शब्द का इस्तेमाल विश्व-मंडल की बात करने के लिए किया होगा।
e पौलुस ने स्तोइकी कवि अराटस की लिखी एक कविता फिनोमिना से हवाला दिया था। इसी से मिलते-जुलते शब्द दूसरी यूनानी किताबों में भी पाए जाते हैं जैसे ज़्यूस के लिए भजन में, जिसे स्तोइकी लेखक क्लिंथस ने लिखा था।