अध्याय 17
‘वह पवित्र शास्त्र से उनके साथ तर्क-वितर्क करता है’
अच्छे शिक्षक बाइबल से सिखाते हैं; बिरीया के लोगों की बेहतरीन मिसाल
प्रेषितों 17:1-15 पर आधारित
1, 2. फिलिप्पी से थिस्सलुनीके के सफर पर कौन-कौन निकले हैं? वे शायद मन-ही-मन क्या सोच रहे हैं?
रोम के हुनरमंद कारीगरों की बनायी यह सड़क ऊबड़-खाबड़ पहाड़ों के बीच से होती हुए जाती है। इस सड़क पर मुसाफिरों का आना-जाना लगा रहता है। कोई रथ पर सवार होकर जा रहा है तो कोई गधे पर, कहीं सिपाहियों की टोली जा रही है तो कहीं व्यापारियों या शिल्पकारों का दल अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ रहा है। इस सड़क से गुज़रते वक्त तरह-तरह की आवाज़ें कानों में पड़ती हैं: गधों के रेंकने की आवाज़ से लेकर, रथों के पहियों के खड़खड़ाने की और मुसाफिरों के ज़ोर-ज़ोर से बात करने की। इन्हीं मुसाफिरों में पौलुस, सीलास और तीमुथियुस भी हैं जो फिलिप्पी से निकले हैं। उन्हें यहाँ से करीब 130 किलोमीटर दूर थिस्सलुनीके जाना है। खासकर पौलुस और सीलास के लिए यह सफर आसान नहीं होगा, क्योंकि फिलिप्पी में उन्हें बुरी तरह पीटा गया था और उनके घाव अभी-भी ताज़ा हैं।—प्रेषि. 16:22, 23.
2 इन तीनों भाइयों ने इतना लंबा सफर कैसे तय किया होगा? वे बातें करते-करते गए होंगे जिस वजह से उन्हें दूरी का एहसास नहीं हुआ होगा। उन्होंने ज़रूर इस बारे में बात की होगी कि कैसे फिलिप्पी में जेलर और उसके घराने के लोग विश्वासी बन गए। उस घटना से उनका इरादा और मज़बूत हो गया कि वे परमेश्वर के वचन का ऐलान करते रहेंगे। लेकिन जब वे थिस्सलुनीके शहर पहुँचनेवाले होते हैं, तो मन-ही-मन सोचने लगते हैं, ‘पता नहीं, यहाँ के यहूदी हमारे साथ कैसा सलूक करेंगे? क्या वे भी फिलिप्पी के लोगों की तरह हम पर हमला करेंगे और हमें मारेंगे-पीटेंगे?’
3. अगर हमें प्रचार करने में घबराहट होती है, तो हम पौलुस से क्या सीख सकते हैं?
3 पौलुस के मन में क्या चल रहा था, यह उसने बाद में थिस्सलुनीके के मसीहियों को अपनी चिट्ठी में बताया। उसने कहा, “जैसा कि तुम जानते हो, हमने फिलिप्पी में बहुत दुख झेले और हमारी बेइज़्ज़ती की गयी थी, फिर भी अपने परमेश्वर की मदद से हमने हिम्मत जुटायी ताकि काफी विरोध के बावजूद तुम्हें उसकी खुशखबरी सुना सकें।” (1 थिस्स. 2:2) फिलिप्पी में उनके साथ जो हुआ, शायद उस वजह से पौलुस थिस्सलुनीके जाने से घबरा रहा था। क्या आप पौलुस की भावनाओं को समझ सकते हैं? क्या आपको भी कभी-कभी प्रचार करने में घबराहट होती है? पौलुस की मिसाल पर ध्यान दीजिए। (1 कुरिं. 4:16) उसने यहोवा पर भरोसा रखा कि वह डर पर काबू पाने में उसकी मदद करेगा। इस वजह से वह हिम्मत के साथ प्रचार करता रहा।
‘वह पवित्र शास्त्र से तर्क-वितर्क करता है’ (प्रेषि. 17:1-3)
4. हम क्यों कह सकते हैं कि पौलुस थिस्सलुनीके में तीन हफ्ते से ज़्यादा रहा होगा?
4 ब्यौरा बताता है कि थिस्सलुनीके में पौलुस ने सभा-घर में तीन सब्त तक प्रचार किया। क्या इसका मतलब है कि वह उस शहर में सिर्फ तीन हफ्ते ही रहा? जी नहीं। इस बात की गुंजाइश कम है कि उसने थिस्सलुनीके पहुँचते ही सभा-घर जाना शुरू कर दिया होगा। इसके अलावा, पौलुस की चिट्ठियों से पता चलता है कि उसने और उसके साथियों ने थिस्सलुनीके में अपने गुज़ारे के लिए काम भी किया। (1 थिस्स. 2:9; 2 थिस्स. 3:7, 8) यहीं नहीं, पौलुस जब वहाँ था तो फिलिप्पी के भाइयों ने दो बार उसकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए उसे कुछ चीज़ें भेजी थीं। (फिलि. 4:16) इससे हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि पौलुस थिस्सलुनीके में तीन हफ्ते से ज़्यादा रहा होगा।
5. पौलुस ने क्या किया ताकि लोग उसके संदेश पर यकीन करें?
5 पौलुस हिम्मत करके सभा-घर में जमा लोगों को प्रचार करता है। अपने रिवाज़ के मुताबिक ‘वह पवित्र शास्त्र से उन यहूदियों के साथ तर्क-वितर्क करता है और शास्त्र से हवाले दे-देकर समझाता है और साबित करता है कि मसीह के लिए दुख उठाना और मरे हुओं में से ज़िंदा होना ज़रूरी था। वह कहता है, “यही है वह मसीह, वह यीशु जिसके बारे में मैं तुम्हें बता रहा हूँ।”’ (प्रेषि. 17:2, 3) गौर कीजिए, पौलुस यह नहीं चाहता कि लोग जज़्बाती होकर उसके संदेश पर यकीन करें। इसके बजाय, वह चाहता है कि वे अपने दिमाग से काम लें, उन बातों के बारे में गहराई से सोचें और फिर यकीन करें। वह जानता है कि सभा-घर में हाज़िर लोगों को शास्त्र का अच्छा ज्ञान है और वे शास्त्र का आदर भी करते हैं। लेकिन उन्हें शास्त्र की पूरी समझ नहीं है। इसलिए पौलुस उनके साथ शास्त्र से तर्क करता है, उन्हें समझाता है और शास्त्र से साबित करता है कि नासरत का रहनेवाला यीशु ही वादा किया गया मसीहा था।
6. यीशु ने क्या किया ताकि चेले शास्त्र पर भरोसा कर पाएँ? इसका उन पर क्या असर हुआ?
6 पौलुस ने सिखाने का वही तरीका अपनाया जो यीशु ने अपनाया था। यीशु जो भी बताता था वह शास्त्र से होता था। मिसाल के लिए, उसने बताया कि इंसान के बेटे को दुख सहना होगा, उसे मार डाला जाएगा और फिर ज़िंदा किया जाएगा। (मत्ती 16:21) जब यीशु मरे हुओं में से ज़िंदा हुआ और अपने चेलों को दिखायी दिया, तो उन्हें यकीन हो गया कि शास्त्र में लिखी बातें सच्ची हैं। मगर यीशु ने चेलों की और भी मदद की ताकि वे शास्त्र पर भरोसा कर पाएँ। उसने कुछ चेलों को “मूसा की किताबों से लेकर सारे भविष्यवक्ताओं की किताबों तक, यानी पूरे शास्त्र में उसके बारे में जितनी भी बातें लिखी थीं, उन सबका मतलब . . . खोल-खोलकर समझाया।” इसका क्या असर हुआ? चेले यीशु की बात पर ताज्जुब करने लगे। वे कहने लगे, “जब वह सड़क पर हमसे बात कर रहा था और हमें शास्त्र का मतलब खोल-खोलकर समझा रहा था, तो क्या हमारे दिल की धड़कनें तेज़ नहीं हो गयी थीं?”—लूका 24:13, 27, 32.
7. हम लोगों को जो भी सिखाते हैं वह बाइबल से क्यों होना चाहिए?
7 परमेश्वर के वचन में ज़बरदस्त ताकत है। (इब्रा. 4:12) इसलिए हम लोगों को जो भी सिखाते हैं वह बाइबल से होता है, ठीक जैसे यीशु, पौलुस और दूसरे प्रेषितों ने सिखाया था। प्रचार में हम लोगों के साथ तर्क करते हैं, वचनों का मतलब समझाते हैं और जब-जब मौका मिले बाइबल खोलकर दिखाते हैं कि हम जो भी बता रहे हैं वह सच में बाइबल में लिखा है। यह हम इसलिए करते हैं ताकि लोग समझ पाएँ कि हम अपने विचार नहीं, बल्कि परमेश्वर की बातें सिखा रहे हैं। इससे हमें भी फायदा होता है। हमारा भी यकीन बढ़ता है कि हम जो सिखा रहे हैं वह बाइबल से है और उस पर पूरा भरोसा किया जा सकता है। इससे हमें हिम्मत मिलती है कि हम भी पौलुस की तरह निडर होकर खुशखबरी सुनाते रहें।
‘उनमें से कुछ मसीही बन गए’ (प्रेषि. 17:4-9)
8-10. (क) थिस्सलुनीके के लोग खुशखबरी सुनकर क्या करते हैं? (ख) कुछ यहूदी क्यों जलन से भर जाते हैं? (ग) जलन से भरकर वे क्या करते हैं?
8 पौलुस अपने तजुरबे से जानता है कि यीशु की यह बात एकदम सच है, “एक दास अपने मालिक से बड़ा नहीं होता। अगर उन्होंने मुझे सताया है तो तुम्हें भी सताएँगे। अगर उन्होंने मेरी बात मानी है तो तुम्हारी भी मानेंगे।” (यूह. 15:20) थिस्सलुनीके में पौलुस के साथ कुछ ऐसा ही होता है। कुछ लोग तुरंत परमेश्वर का वचन मान लेते हैं मगर दूसरे उसे ठुकरा देते हैं। जो खुशखबरी कबूल करते हैं, उनके बारे में लूका लिखता है, ‘यहूदियों में से कुछ मसीही बन गए और पौलुस और सीलास के साथ हो लिए। इनके अलावा, परमेश्वर की उपासना करनेवाले यूनानियों की एक बड़ी भीड़ ने भी विश्वास किया। इनमें कई जानी-मानी औरतें भी थीं।’ (प्रेषि. 17:4) ये नए चेले ज़रूर इस बात के लिए एहसानमंद होंगे कि अब उन्हें शास्त्र की सही समझ मिली है।
9 मगर जब थिस्सलुनीके के कुछ यहूदी देखते हैं कि “यूनानियों की एक बड़ी भीड़” ने पौलुस के संदेश को स्वीकार कर लिया तो वे जलन से भर जाते हैं। क्यों? इन यहूदियों ने यूनानी लोगों को इब्रानी शास्त्र सिखाया था और अपना चेला बनाया था। पर फिर एक दिन पौलुस उनके सभा-घर में आकर यूनानी लोगों को कायल करता है और वे मसीही बन जाते हैं। यहूदियों को लगता है कि पौलुस उनके चेले चुरा रहा है। यह सब देखकर उनका खून खौल उठता है!
10 अब क्या होगा? लूका लिखता है, “यह देखकर यहूदी जलन से भर गए और अपने साथ बाज़ार के कुछ आवारा बदमाशों को लेकर एक दल बना लिया और शहर भर में हंगामा करने लगे। उन्होंने यासोन के घर पर धावा बोल दिया ताकि पौलुस और सीलास को इस पागल भीड़ के हवाले कर दें। मगर जब ढूँढ़ने पर उन्हें पौलुस और सीलास वहाँ नहीं मिले, तो उन्होंने यासोन और कुछ और भाइयों को पकड़ लिया और उन्हें घसीटकर नगर-अधिकारियों के पास ले गए और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, ‘जिन आदमियों ने सारी दुनिया में उथल-पुथल मचा रखी है, वे अब यहाँ भी आ पहुँचे हैं और इस यासोन ने उन्हें अपने घर में मेहमान ठहराया है। ये आदमी सम्राट के आदेशों के खिलाफ बगावत करते हैं और कहते हैं कि कोई दूसरा राजा है, जिसका नाम यीशु है।’” (प्रेषि. 17:5-7) भीड़ के इस हमले का पौलुस और उसके साथियों पर क्या असर होता है?
11. पौलुस और उसके साथियों पर क्या आरोप लगाए जाते हैं? यहूदी शायद किस आदेश को ध्यान में रखकर यह आरोप लगाते हैं? (फुटनोट देखें।)
11 गुस्से से पागल भीड़ बहुत खतरनाक होती है। वह एक बाढ़ की तरह तबाही मचा सकती है। उसके रास्ते में जो भी आता है उसे बहा ले जाती है। इसलिए थिस्सलुनीके के यहूदी पौलुस और सीलास को अपने रास्ते से हटाने के लिए भीड़ को भड़काते हैं। वे पूरे शहर में “हंगामा” मचा देते हैं और नगर-अधिकारियों के सामने जाकर पौलुस और सीलास पर गंभीर आरोप लगाते हैं। उनका पहला आरोप यह है कि पौलुस और उसके साथियों ने “सारी दुनिया में उथल-पुथल मचा रखी है,” जबकि हंगामा यहूदियों ने किया था, पौलुस और उसके साथियों ने नहीं। दूसरा आरोप और भी गंभीर है। यहूदी कहते हैं कि ये लोग यीशु नाम के किसी दूसरे राजा का प्रचार कर रहे हैं और इस तरह सम्राट के आदेशों के खिलाफ बगावत कर रहे हैं। a
12. यह क्यों कहा जा सकता है कि थिस्सलुनीके के मसीहियों पर जो आरोप लगाए गए थे, उनके भयानक अंजाम हो सकते थे?
12 याद कीजिए कि यीशु पर भी धर्म गुरुओं ने इसी तरह का इलज़ाम लगाया था। उन्होंने पीलातुस से कहा था, “यह आदमी हमारे राष्ट्र को बगावत के लिए भड़काता है . . . और कहता है कि मैं मसीह हूँ, मैं राजा हूँ।” (लूका 23:2) पीलातुस को शायद डर था कि अगर उसने यीशु को छोड़ दिया तो सम्राट को लगेगा कि वह भी बगावत में यीशु का साथ दे रहा है। इसलिए उसने यीशु को मौत की सज़ा सुनायी। उसी तरह, थिस्सलुनीके के मसीहियों पर जो आरोप लगाए गए थे, उनके भयानक अंजाम हो सकते थे। एक किताब बताती है, “ये आरोप बहुत गंभीर थे। ‘अगर किसी के बारे में ज़रा-सा भी शक होता कि वह सम्राट के खिलाफ साज़िश कर रहा है तो उसकी मौत तय थी, बचना लगभग नामुमकिन था।’” क्या थिस्सलुनीके के यहूदी अपनी साज़िश में कामयाब होते हैं?
13, 14. (क) थिस्सलुनीके में भीड़ क्यों प्रचार काम को नहीं रोक पाती? (ख) पौलुस ने यीशु की सलाह कैसे मानी? हम उससे क्या सीख सकते हैं?
13 थिस्सलुनीके में भीड़ प्रचार काम रोकने में नाकाम हो जाती है। क्यों? एक वजह तो यह है कि पौलुस और सीलास उनके हाथ नहीं आते। इसके अलावा, नगर-अधिकारियों को लगता है कि पौलुस और उसके साथियों पर लगे इलज़ाम झूठे हैं। इसलिए वे यासोन और बाकी भाइयों से “ज़मानत के तौर पर भारी रकम” लेकर उन्हें छोड़ देते हैं। (प्रेषि. 17:8, 9) इस बीच पौलुस ने फैसला किया कि वह दूसरे इलाकों में जाकर प्रचार करेगा। इस तरह उसने यीशु की यह सलाह मानी, “साँपों की तरह सतर्क रहो और कबूतरों की तरह सीधे बने रहो।” (मत्ती 10:16) यह सच है कि पौलुस में बहुत हिम्मत थी पर उसने बेवजह खतरा मोल नहीं लिया। आज मसीही पौलुस से क्या सीख सकते हैं?
14 हमारे समय में, ईसाईजगत के पादरी अकसर लोगों की भीड़ को यहोवा के साक्षियों के खिलाफ भड़काते हैं। वे अधिकारियों के भी कान भरते हैं ताकि वे हम पर ज़ुल्म करें। उनका कहना है कि साक्षी सरकार से बगावत करते हैं और देशद्रोही हैं। वे पहली सदी के उन यहूदियों की तरह जलन से भरकर ऐसा करते हैं। पौलुस की तरह हम बेवजह मुसीबत को बुलावा नहीं देते। जब प्रचार में लोग हम पर भड़क उठते हैं या हम पर बेबुनियाद इलज़ाम लगाते हैं तो हम उनसे बहस नहीं करते। हम वह इलाका छोड़कर किसी और इलाके में चले जाते हैं। फिर जब माहौल ठंडा हो जाता है तो हम शायद वहाँ दोबारा प्रचार करें।
वे “ज़्यादा भले और खुले विचारोंवाले थे” (प्रेषि. 17:10-15)
15. बिरीया के लोग खुशखबरी सुनकर क्या करते हैं?
15 पौलुस और सीलास की सुरक्षा के लिए थिस्सलुनीके के भाई उन्हें बिरीया शहर भेज देते हैं, जो करीब 65 किलोमीटर दूर है। वहाँ पहुँचने पर पौलुस सभा-घर में जाता है और लोगों को सिखाने लगता है। पौलुस को कितनी खुशी हुई होगी जब लोगों ने उसका संदेश ध्यान से सुना! लूका लिखता है कि बिरीया के यहूदी “थिस्सलुनीके के लोगों से ज़्यादा भले और खुले विचारोंवाले थे क्योंकि उन्होंने बड़ी उत्सुकता से वचन स्वीकार किया। वे हर दिन ध्यान से शास्त्र की जाँच करते थे कि जो बातें वे सुन रहे हैं वे सच हैं या नहीं।” (प्रेषि. 17:10, 11) क्या इसका मतलब यह है कि थिस्सलुनीके में जिन लोगों ने सच्चाई कबूल की थी वे भले और खुले विचारोंवाले नहीं थे? ऐसी बात नहीं है। पौलुस ने बाद में उन्हें लिखा, “हम परमेश्वर का धन्यवाद करना नहीं छोड़ते क्योंकि जब तुमने परमेश्वर का वचन हमसे सुना तो इसे इंसानों का नहीं बल्कि परमेश्वर का वचन समझकर स्वीकार किया, जैसा कि यह सचमुच है। और यह वचन तुम विश्वास करनेवालों पर असर कर रहा है।” (1 थिस्स. 2:13) तो फिर, बिरीया के यहूदी किस मायने में भले और खुले विचारोंवाले थे?
16. बिरीया के लोगों के बारे में यह क्यों कहा गया कि वे “भले और खुले विचारोंवाले थे”?
16 पौलुस की बातें बिरीया के लोगों के लिए नयी थीं, फिर भी उन्होंने पौलुस पर शक नहीं किया या उससे बहस नहीं की। पर ऐसा भी नहीं था कि उन्होंने आँख मूँदकर उसकी बातों पर यकीन कर लिया। सबसे पहले, उन्होंने ध्यान से सुना कि पौलुस क्या समझा रहा है। फिर उन्होंने खुद जाँच की कि शास्त्र में वैसा ही लिखा है या नहीं। इसके अलावा, वे ना सिर्फ सब्त के दिन बल्कि हर दिन “बड़ी उत्सुकता” से परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते थे। वे यह समझने की कोशिश करते थे कि जो नयी बातें वे सीख रहे थे उन्हें शास्त्र में कैसे समझाया गया है। फिर उन्होंने नम्रता से नयी बातों के मुताबिक अपनी सोच बदली। इसलिए उनमें से “कई लोग विश्वासी बन गए।” (प्रेषि. 17:12) इन सारी खूबियों की वजह से ही लूका ने बिरीया के लोगों को “भले और खुले विचारोंवाले” कहा।
17. बिरीया के लोगों का जज़्बा क्यों काबिले-तारीफ है? चाहे हम बरसों से सच्चाई में हों, फिर भी हमें बिरीया के लोगों की तरह क्यों बनना चाहिए?
17 बिरीया के लोगों ने क्या ही गज़ब का जज़्बा दिखाया! उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके बारे में परमेश्वर के वचन में लिखा जाएगा और वे आज हमारे लिए एक मिसाल बन जाएँगे। उन्होंने खुले मन से शास्त्र की जाँच की। पौलुस ने उनसे यही उम्मीद की थी और यहोवा भी यही चाहता था। आज हम भी चाहते हैं कि लोग ऐसा करें। हम उन्हें बढ़ावा देते हैं कि वे सिर्फ हमारी बातें सुनकर विश्वास ना करें बल्कि खुद बाइबल की अच्छी तरह जाँच करें और फिर विश्वास करें। मगर क्या मसीही बनने के बाद भी हमें शास्त्र की जाँच करते रहना चाहिए? बिलकुल। हमें हमेशा यहोवा से सीखने और उसकी बातों को मानने के लिए उत्सुक रहना चाहिए। फिर यहोवा हमें अपनी मरज़ी के मुताबिक ढालेगा और सिखाता रहेगा। (यशा. 64:8) इस तरह हम अपने पिता यहोवा के हमेशा काम आएँगे और उसे पूरी तरह खुश कर पाएँगे।
18, 19. (क) पौलुस को बिरीया छोड़कर क्यों जाना पड़ता है? फिर भी वह क्या करता रहता है और उससे हम क्या सीखते हैं? (ख) बिरीया से अब पौलुस कहाँ जाता है और उसे किन लोगों को प्रचार करना है?
18 पौलुस बिरीया में ज़्यादा वक्त नहीं बिताता। बाइबल बताती है, “जब थिस्सलुनीके के यहूदियों को पता चला कि पौलुस बिरीया में भी परमेश्वर का वचन सुना रहा है, तो वे वहाँ आ धमके ताकि जनता को भड़काएँ और हंगामा मचाएँ। तब भाइयों ने फौरन पौलुस को समुंदर किनारे भेज दिया, मगर सीलास और तीमुथियुस वहीं बिरीया में रहे। जो भाई पौलुस को छोड़ने उसके साथ गए वे उसे बहुत दूर एथेन्स तक ले गए। पौलुस ने उन्हें विदा करते वक्त सीलास और तीमुथियुस के लिए यह खबर दी कि वे जल्द-से-जल्द उसके पास एथेन्स चले आएँ।” (प्रेषि. 17:13-15) खुशखबरी के दुश्मन हाथ धोकर पौलुस के पीछे पड़ गए हैं! पौलुस को थिस्सलुनीके से खदेड़कर उन्हें चैन नहीं मिला। वे बिरीया भी आ धमके और उन्होंने लोगों को भड़काने की कोशिश की। लेकिन वे कामयाब नहीं हुए। पौलुस जानता है कि उसके पास प्रचार का बड़ा इलाका है। इसलिए जब बिरीया में कुछ रुकावटें आयीं तो वह दूसरी जगह जाकर प्रचार करने लगता है। आइए हम भी पौलुस की तरह ठान लें कि चाहे प्रचार काम को रोकने की कितनी ही कोशिश की जाए हम प्रचार करते रहेंगे!
19 हिम्मत से गवाही देना और शास्त्र से तर्क करना बहुत ज़रूरी है। पौलुस यह बात तब और भी अच्छी तरह समझ पाया जब उसने थिस्सलुनीके और बिरीया के यहूदियों को गवाही दी। और यह बात हम भी अच्छी तरह समझ गए हैं। बिरीया से अब पौलुस एथेन्स जाता है जहाँ उसे गैर-यहूदियों को खुशखबरी सुनानी है यानी ऐसे लोगों को जिनका धार्मिक विश्वास बिलकुल अलग है। वहाँ के लोग उसके साथ किस तरह पेश आएँगे? यह हम अगले अध्याय में देखेंगे।
a एक विद्वान बताता है कि उस ज़माने में सम्राट का आदेश था कि “किसी नए राजा या किसी नयी सरकार” के बारे में बात करना मना है, “खासकर किसी ऐसे राजा की जो मौजूदा सम्राट को दोषी ठहराने या उसे हटाकर अपनी हुकूमत कायम करने की कोशिश करता है।” पौलुस के दुश्मनों ने उसके संदेश को तोड़-मरोड़कर ऐसे पेश किया होगा जिससे लगता कि पौलुस सम्राट के आदेश के खिलाफ जा रहा है। यह बक्स देखें, “ प्रेषितों की किताब में रोमी सम्राटों का ज़िक्र।”