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अध्याय 19

“प्रचार किए जा, चुप मत रह”

“प्रचार किए जा, चुप मत रह”

पौलुस अपने गुज़ारे के लिए काम करता है, फिर भी प्रचार काम को पहली जगह देता है

प्रेषितों 18:1-22 पर आधारित

1-3. प्रेषित पौलुस कुरिंथ क्यों आता है? उसके मन में क्या-क्या बातें चल रही होंगी?

 ईसवी सन्‌ 50 खत्म होनेवाला है और पौलुस कुरिंथ में है। यह दौलतमंद शहर फलते-फूलते व्यापार के लिए मशहूर है और यहाँ यूनानी, रोमी और यहूदी लोगों की एक बड़ी आबादी रहती है। a पौलुस यहाँ ना तो नौकरी की तलाश में, ना ही कारोबार करने आया है। वह इससे भी ज़रूरी काम के लिए आया है, परमेश्‍वर के राज के बारे में गवाही देने के लिए। लेकिन उसे रहने की एक जगह चाहिए होगी और गुज़ारा चलाने के लिए कुछ पैसे भी चाहिए होंगे। उसने ठान लिया है कि वह किसी पर बोझ नहीं बनेगा। वह नहीं चाहता है कि लोगों को ऐसा लगे कि वह परमेश्‍वर का वचन सिखाने आया है इसलिए उसकी ज़रूरतें पूरी करना उनकी ज़िम्मेदारी है। लेकिन सवाल है कि वह कुरिंथ में अपनी रोज़ी-रोटी के लिए क्या करेगा?

2 पौलुस तंबू बनाने का काम जानता है। यह काम आसान नहीं है, फिर भी पौलुस मेहनत करने से नहीं डरता। क्या उसे इस शहर में काम मिलेगा? क्या उसे रहने की एक जगह मिलेगी? पौलुस के मन में ये सारी बातें चल रही होंगी, फिर भी वह यह नहीं भूलता कि उसका सबसे ज़रूरी काम प्रचार करना है।

3 पौलुस कुछ समय के लिए कुरिंथ में ही रहता है और उसे प्रचार में बढ़िया नतीजे मिलते हैं। हम भी अपने इलाके में परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही देना चाहते हैं। आइए देखें कि पौलुस ने कुरिंथ में जिस तरह गवाही दी, उससे हम क्या सीख सकते हैं।

“वे तंबू बनाया करते थे” (प्रेषि. 18:1-4)

4, 5. (क) कुरिंथ में पौलुस किनके साथ रहता है? वहाँ वह क्या काम करता है? (ख) पौलुस तंबू बनाने का काम कैसे जानता है?

4 कुरिंथ आने के कुछ समय बाद, पौलुस एक यहूदी आदमी और उसकी पत्नी से मिलता है। उसका नाम अक्विला है और उसकी पत्नी का नाम प्रिस्किल्ला है, जिसे लोग प्रिस्का के नाम से भी जानते हैं। वे दोनों मेहमान-नवाज़ी करने में अच्छी मिसाल हैं। वे अभी-अभी कुरिंथ आए थे, क्योंकि सम्राट क्लौदियुस ने “सभी यहूदियों को रोम से निकल जाने का हुक्म दिया था।” (प्रेषि. 18:1, 2) अक्विला और प्रिस्किल्ला पौलुस से कहते हैं कि वह उनके साथ आकर रहे और उनके साथ काम करे। आयत बताती है, “पौलुस का और उनका पेशा एक ही था, इसलिए वह उनके घर में रहने लगा और उनके साथ काम करने लगा। वे तंबू बनाया करते थे।” (प्रेषि. 18:3) पौलुस जब तक कुरिंथ में रहता है तब तक इस पति-पत्नी के घर रुकता है। शायद इसी दौरान वह कुछ चिट्ठियाँ भी लिखता है जिन्हें आगे चलकर बाइबल में शामिल किया जाता है। b

5 पौलुस ने तो “गमलीएल के पैरों के पास बैठकर शिक्षा” पायी थी, फिर वह तंबू बनाने का काम कैसे जानता है? (प्रेषि. 22:3) ऐसा मालूम होता है कि पहली सदी में यहूदी लोग अपने बच्चों को ऊँची पढ़ाई के साथ-साथ हाथ का काम भी सिखाते थे। इसे वे छोटा काम नहीं समझते थे। पौलुस किलिकिया के तरसुस शहर से था। यह शहर किलिकियम  नाम के कपड़े के लिए मशहूर था जिससे तंबू बनाया जाता था। पौलुस ने शायद यह काम तब सीखा होगा जब वह छोटा ही था। तंबू बनाने के लिए तंबू के कपड़े को बुनना होता था या फिर कपड़े को काटकर उसे सिलना होता था। कपड़ा मोटा और सख्त होता था इसलिए उसे काटना या सिलना आसान नहीं था। इस काम में बहुत मेहनत लगती थी।

6, 7. (क) पौलुस तंबू बनाने का काम क्यों करता है? क्या बात दिखाती है कि अक्विला और प्रिस्किल्ला का नज़रिया भी पौलुस की तरह है? (ख) पौलुस, अक्विला और प्रिस्किल्ला की तरह आज मसीही भी क्या करते हैं?

6 पौलुस अपना सारा समय और अपनी सारी मेहनत तंबू बनाने के काम में नहीं लगाता। यह काम वह सिर्फ अपना गुज़ारा चलाने के लिए करता है ताकि “बिना कोई दाम लिए” लोगों को खुशखबरी सुना सके। (2 कुरिं. 11:7) अपने काम के बारे में अक्विला और प्रिस्किल्ला का नज़रिया भी पौलुस की तरह है। इसलिए ईसवी सन्‌ 52 में जब पौलुस कुरिंथ छोड़कर इफिसुस जा रहा होता है, तो वे सबकुछ छोड़कर उसके साथ हो लेते हैं। इफिसुस में अक्विला और प्रिस्किल्ला के घर पर मसीही मंडली सभा के लिए इकट्ठा होती है। (1 कुरिं. 16:19) बाद में, वे रोम लौट जाते हैं और फिर वापस इफिसुस आते हैं। ये जोशीले पति-पत्नी राज के कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं और दूसरों की सेवा में खुद को लगा देते हैं। इस वजह से “गैर-यहूदी राष्ट्रों की सभी मंडलियाँ” उन दोनों की बहुत एहसानमंद होती हैं।​—रोमि. 16:3-5; 2 तीमु. 4:19.

7 आज बहुत-से मसीही पौलुस, अक्विला और प्रिस्किल्ला की तरह बनने की कोशिश करते हैं। वे जोश से प्रचार करने के साथ-साथ काम भी करते हैं ताकि दूसरों पर “खर्चीला बोझ न बनें।” (1 थिस्स. 2:9) कई पायनियर हफ्ते के कुछ दिन या साल के कुछ महीने नौकरी करते हैं ताकि पूरे समय की सेवा करते रह सकें। वे सच में तारीफ के काबिल हैं! अक्विला और प्रिस्किल्ला की तरह बहुत-से भाई-बहन अपने घर में सर्किट निगरानों को ठहराते हैं। भाई-बहन जानते हैं कि मेहमान-नवाज़ी करने से खुद उनका हौसला बढ़ता है और वे तरो-ताज़ा महसूस करते हैं।​—रोमि. 12:13.

“कुरिंथ के बहुत-से लोगों ने . . . विश्‍वास किया” (प्रेषि. 18:5-8)

8, 9. जब पौलुस के काम का विरोध होता है, तो वह क्या करता है? उसके बाद वह कहाँ जाकर प्रचार करता है?

8 पौलुस तंबू बनाने का काम सिर्फ इसलिए करता है ताकि वह अपनी सेवा पूरी कर सके। यह बात तब और खुलकर पता चलती है जब मकिदुनिया की मंडली सीलास और तीमुथियुस के हाथ, पौलुस के लिए बहुत-से तोहफे भेजती है। (2 कुरिं. 11:9) आयत बताती है कि इसके तुरंत बाद पौलुस “और भी ज़ोर-शोर से वचन का प्रचार करने लगा,” या जैसा वाल्द-बुल्के अनुवाद  बताता है, “पौलुस वचन के प्रचार के लिए अपना पूरा समय देने लगा।” (प्रेषि. 18:5) लेकिन जब प्रचार काम ज़ोर पकड़ने लगता है तो यहूदी विरोध करने लगते हैं। वे मसीह के बारे में उस संदेश को ठुकरा देते हैं जिससे उनकी जान बच सकती है। तब पौलुस यह दिखाने के लिए अपने कपड़े झाड़ता है कि अब उनके साथ जो होगा, उसके लिए वह ज़िम्मेदार नहीं होगा। वह उनसे कहता है, “तुम्हारा खून तुम्हारे ही सिर पड़े। मैं निर्दोष हूँ। अब से मैं गैर-यहूदियों के पास जाऊँगा।”​—प्रेषि. 18:6; यहे. 3:18, 19.

9 अब पौलुस कहाँ जाकर प्रचार करेगा? तितुस युसतुस नाम का एक आदमी उसे अपने घर बुलाता है। उसने शायद यहूदी धर्म अपनाया था और उसका घर सभा-घर के बिलकुल पास में था। इसलिए पौलुस युसतुस के घर जाता है और वहाँ अपना प्रचार काम जारी रखता है। (प्रेषि. 18:7) पौलुस जब तक कुरिंथ में रहा, तो वह अक्विला और प्रिस्किल्ला के साथ उनके घर में रुका। लेकिन वह प्रचार का काम युसतुस के घर से ही करता रहा।

10. पौलुस ने कहा था कि अब से वह गैर-यहूदियों को ही प्रचार करेगा। क्या दिखाता है कि वह अपनी बात पर अड़ा नहीं रहा?

10 पौलुस ने जब कहा कि अब से वह गैर-यहूदियों के पास जाएगा, तो उसका क्या मतलब था? क्या अब से वह यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवालों को बिलकुल प्रचार नहीं करेगा भले ही उनमें से कुछ खुशखबरी सुनना चाहते हों? ऐसी बात नहीं है। ब्यौरा बताता है, “सभा-घर का अधिकारी क्रिसपुस और उसका पूरा घराना पौलुस का संदेश सुनकर प्रभु में विश्‍वासी बन गया।” क्रिसपुस के अलावा, सभा-घर में आनेवाले दूसरे यहूदी भी विश्‍वासी बन गए। बाइबल बताती है, “कुरिंथ के बहुत-से लोगों ने भी यह संदेश सुनकर विश्‍वास किया और बपतिस्मा लिया।” (प्रेषि. 18:8) इस तरह कुरिंथ में एक नयी मंडली शुरू हुई जो तितुस युसतुस के घर पर मिलती थी। अगर लूका ने यह ब्यौरा घटनाओं के क्रम के मुताबिक लिखा है, जैसा वह आम तौर पर करता था, तो इसका मतलब है कि पौलुस अपने कपड़े झाड़ने के बाद भी  यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवालों को प्रचार करता रहा जिस वजह से वे मसीही बने। यह वाकया दिखाता है कि पौलुस अपनी बात पर अड़ा नहीं रहा बल्कि हालात के हिसाब से फेरबदल करने को तैयार था।

11. पौलुस की तरह आज यहोवा के साक्षी ईसाईजगत के लोगों की मदद कैसे करते हैं?

11 आज कई देशों में ईसाईजगत के चर्च फैले हुए हैं। इनका अपने सदस्यों पर गहरा असर रहा है। कुछ देशों और द्वीपों में ईसाईजगत के मिशनरियों ने बहुत-से लोगों को ईसाई बनाया है। मगर ये ईसाई परमेश्‍वर के साथ रिश्‍ता बनाने के बजाय अपनी धार्मिक परंपराओं में उलझे हुए हैं, ठीक जैसे कुरिंथ के यहूदी उलझे हुए थे। फिर भी हम यहोवा के साक्षी उनकी मदद करना चाहते हैं। हम पौलुस की तरह उन्हें प्रचार करते हैं और बाइबल को अच्छे-से समझने में उनकी मदद करते हैं। कभी-कभी वे हमारा विरोध करते हैं या उनके धर्म गुरु हम पर ज़ुल्म करते हैं, फिर भी हम कोशिश करते रहते हैं। हम जानते हैं कि ईसाईजगत के कई लोगों में “परमेश्‍वर की सेवा के लिए जोश तो है, मगर सही ज्ञान के मुताबिक नहीं।” हमें ऐसे लोगों को ढूँढ़ना है जो सच्चाई जानना चाहते हैं।​—रोमि. 10:2.

“इस शहर में मेरे बहुत-से लोग हैं” (प्रेषि. 18:9-17)

12. यीशु एक दर्शन में पौलुस को क्या यकीन दिलाता है?

12 पौलुस शायद इस उलझन में है कि उसे कुरिंथ में प्रचार करते रहना चाहिए या नहीं। पर अब जो होता है उससे उसकी उलझन दूर हो जाती है। रात में प्रभु यीशु उसे दर्शन देता है और कहता है, “मत डर, प्रचार किए जा, चुप मत रह। इस शहर में मेरे बहुत-से लोग हैं जिन्हें इकट्ठा करना बाकी है। इसलिए मैं तेरे साथ हूँ और कोई भी तुझ पर हमला करके तुझे चोट नहीं पहुँचाएगा।” (प्रेषि. 18:9, 10) ज़रा सोचिए इस दर्शन से पौलुस को कितनी हिम्मत मिली होगी! यीशु खुद उसे यकीन दिलाता है कि उस पर कोई आँच नहीं आएगी और शहर में अब भी बहुत-से लोग हैं जिन्हें खुशखबरी सुनाना बाकी है। दर्शन के बाद पौलुस क्या करता है? आयत बताती है, “पौलुस डेढ़ साल तक वहीं रहा और उनके बीच परमेश्‍वर का वचन सुनाता रहा।”​—प्रेषि. 18:11.

13. न्याय-आसन के सामने जाते वक्‍त पौलुस शायद क्या सोच रहा होगा? लेकिन पौलुस को किस बात का यकीन है और क्यों?

13 कुरिंथ में पौलुस को जब करीब एक साल हो जाता है तब उसे एक और सबूत मिलता है कि यीशु उसकी मदद कर रहा है। गौर कीजिए कि जब ‘यहूदी आपस में तय करके एक-साथ पौलुस पर चढ़ आते हैं और उसे न्याय-आसन के सामने ले जाते हैं’ तो क्या होता है। (प्रेषि. 18:12) कुछ लोगों का मानना है कि यह न्याय-आसन एक ऊँचा चबूतरा था जो नीले और सफेद रंग के संगमरमर का बना था और उस पर खूबसूरत नक्काशी की हुई थी। यह न्याय-आसन शायद कुरिंथ के बाज़ार के चौक के पास था। न्याय-आसन के सामने की खुली जगह इतनी बड़ी थी कि वहाँ अच्छी-खासी भीड़ जमा हो सकती थी। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि शायद यह न्याय-आसन सभा-घर से बस कुछ कदम दूर था। तो ज़ाहिर है कि यह युसतुस के घर के नज़दीक रहा होगा। जब पौलुस को न्याय-आसन के पास ले जाया जा रहा था, तब वह शायद स्तिफनुस के बारे में सोच रहा होगा। माना जाता है कि स्तिफनुस, मसीहियों में सबसे पहला शहीद था। और पौलुस ने जो उस वक्‍त शाऊल कहलाता था, “स्तिफनुस के कत्ल में साथ दिया” था। (प्रेषि. 8:1) अब यहाँ कुरिंथ में क्या पौलुस के साथ भी कुछ ऐसा होगा? जी नहीं। क्योंकि यीशु ने उसे यकीन दिलाया था, ‘कोई भी तुझे चोट नहीं पहुँचाएगा।’​—प्रेषि. 18:10.

“उसने यहूदियों को न्याय-आसन के सामने से निकलवा दिया।”​—प्रेषितों 18:16

14, 15. (क) यहूदी लोग पौलुस पर क्या इलज़ाम लगाते हैं? गल्लियो क्यों इस मामले को रफा-दफा कर देता है? (ख) सोस्थिनेस के साथ क्या होता है और शायद इसका क्या नतीजा होता है?

14 जब पौलुस न्याय-आसन के सामने पहुँच जाता है तब क्या होता है? पौलुस का न्याय अखाया प्रांत का राज्यपाल, गल्लियो करनेवाला है। यह सेनेका नाम के एक रोमी दार्शनिक का बड़ा भाई था। यहूदी लोग गल्लियो के सामने पौलुस पर यह इलज़ाम लगाते हैं, “यह आदमी लोगों को ऐसे तरीके से परमेश्‍वर की उपासना करने के लिए कायल कर रहा है जो कानून के खिलाफ है।” (प्रेषि. 18:13) उनके कहने का मतलब था कि पौलुस कानून के खिलाफ जाकर कुछ यहूदियों को मसीही बना रहा है। मगर गल्लियो ने देखा कि पौलुस ने कोई “अन्याय” नहीं किया है और ना ही सज़ा के लायक कोई ‘बड़ा अपराध’ किया है। (प्रेषि. 18:14) गल्लियो, यहूदियों के झगड़े में नहीं पड़ना चाहता। इससे पहले कि पौलुस अपने बचाव में कुछ बोलता, गल्लियो मामले को रफा-दफा कर देता है! यहूदी गुस्से से पागल हो जाते हैं और अपना गुस्सा सोस्थिनेस नाम के आदमी पर उतारते हैं। सोस्थिनेस को शायद क्रिसपुस की जगह सभा-घर का अधिकारी ठहराया गया था। वे सोस्थिनेस को पकड़ लेते हैं “और न्याय-आसन के सामने उसे पीटने” लगते हैं।​—प्रेषि. 18:17.

15 यह देखकर गल्लियो भीड़ को क्यों नहीं रोकता? शायद गल्लियो को लगता है कि सोस्थिनेस ने ही भीड़ को पौलुस के खिलाफ भड़काया था और अब उसे अपने किए की सज़ा मिल रही है। हम यह तो नहीं जानते कि सोस्थिनेस ने ऐसा किया था या नहीं, लेकिन ऐसा लगता है कि इस घटना का अच्छा नतीजा निकला। कई सालों बाद जब पौलुस कुरिंथ की मंडली को अपनी पहली चिट्ठी लिखता है, तो वह सोस्थिनेस नाम के एक भाई का ज़िक्र करता है। (1 कुरिं. 1:1, 2) क्या यह वही सोस्थिनेस है जिसे भीड़ ने पीटा था? अगर हाँ, तो इसका मतलब है कि शायद उस दर्दनाक हादसे के बाद सोस्थिनेस एक मसीही बन गया होगा।

16. यीशु ने पौलुस से जो कहा था, उससे आज हमें क्या बढ़ावा मिलना चाहिए?

16 याद कीजिए कि जब यहूदियों ने पौलुस का संदेश ठुकरा दिया, तो उसके बाद ही प्रभु यीशु ने उसे यकीन दिलाया, “मत डर, प्रचार किए जा, चुप मत रह। . . . मैं तेरे साथ हूँ।” (प्रेषि. 18:9, 10) हमें भी यीशु के इन शब्दों को याद रखना चाहिए, खासकर तब जब लोग हमारा संदेश ठुकरा देते हैं। कभी मत भूलिए कि यहोवा इंसानों का दिल पढ़ सकता है और नेकदिल लोगों को अपने पास खींच सकता है। (1 शमू. 16:7; यूह. 6:44) इससे हमें क्या बढ़ावा मिलना चाहिए? यही कि हम प्रचार काम में लगे रहें। हर साल लाखों लोग बपतिस्मा लेते हैं यानी हर दिन सैकड़ों लोग। यीशु ने आज्ञा दी थी, “सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।” जो इस आज्ञा को मानते हैं उन्हें वह यकीन दिलाता है, “मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त तक हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।”​—मत्ती 28:19, 20.

“अगर यहोवा ने चाहा” (प्रेषि. 18:18-22)

17, 18. किंख्रिया छोड़ते वक्‍त पौलुस ने क्या-क्या याद किया होगा?

17 इसके बाद कुरिंथ की नयी मंडली शांति से सेवा कर पाती है। क्या इसकी वजह यह थी कि गल्लियो ने पौलुस के पक्ष में फैसला किया था? हम पक्के तौर पर यह नहीं कह सकते। मगर ब्यौरा बताता है कि पौलुस कुरिंथ के भाइयों से विदा लेने से पहले “वहाँ कुछ दिन और ठहरा।” फिर ईसवी सन्‌ 52 के वसंत में वह किंख्रिया बंदरगाह से सीरिया जाने की योजना बनाता है। यह बंदरगाह कुरिंथ से पूरब की ओर करीब 11 किलोमीटर दूर था। किंख्रिया में वह ‘अपने बाल कटवाता है क्योंकि उसने मन्‍नत मानी थी।’ c (प्रेषि. 18:18) पौलुस के साथ अक्विला और प्रिस्किल्ला भी होते हैं और वे तीनों एजियन सागर पार करके एशिया माइनर में इफिसुस जाते हैं।

18 किंख्रिया छोड़ते वक्‍त पौलुस ने ज़रूर कुरिंथ में बिताए दिनों को याद किया होगा। उसके पास बहुत-सी मीठी यादें थीं और खुश होने की ढेरों वजह थीं। उसने वहाँ 18 महीने प्रचार किया था और उसे कई बढ़िया नतीजे मिले थे। कुरिंथ में एक नयी मंडली बनी जो सभाओं के लिए युसतुस के घर इकट्ठा होती थी। इस मंडली में युसतुस, क्रिसपुस और उसका पूरा घराना और दूसरे कई लोग थे। पौलुस को इन नए भाई-बहनों से बहुत लगाव था क्योंकि उसी ने मसीही बनने में इन सबकी मदद की थी। बाद में वह उन्हें एक खत लिखता है और कहता है कि तुम सब मेरे लिए मानो सिफारिशी चिट्ठियाँ हों जो मेरे दिल पर लिखी हैं। पौलुस की तरह हमें भी उन लोगों से खास लगाव होता है जिन्हें हम सच्चाई सिखाते हैं। उन जीती-जागती ‘सिफारिशी चिट्ठियों’ को देखकर हमें कितनी खुशी होती है!​—2 कुरिं. 3:1-3.

19, 20. इफिसुस पहुँचते ही पौलुस क्या करता है? अगर हम परमेश्‍वर की ज़्यादा-से-ज़्यादा सेवा करना चाहते हैं तो हमें पौलुस की तरह क्या करना चाहिए?

19 इफिसुस पहुँचते ही पौलुस प्रचार काम में लग जाता है। वह ‘सभा-घर में जाता है और यहूदियों के साथ तर्क-वितर्क करके उन्हें समझाने लगता है।’ (प्रेषि. 18:19) इफिसुस में वह ज़्यादा दिन नहीं रहता। हालाँकि लोग उसे रुकने के लिए कहते हैं, ‘मगर वह नहीं मानता।’ वह उनसे यह कहकर विदा लेता है, “अगर यहोवा ने चाहा तो मैं तुम्हारे पास दोबारा आऊँगा।” (प्रेषि. 18:20, 21) पौलुस जानता है कि इफिसुस में और भी लोगों को प्रचार करना बाकी है। इसलिए वह दोबारा यहाँ आने की योजना बनाता है, मगर इसे यहोवा की मरज़ी पर छोड़ देता है। पौलुस हमारे लिए एक बढ़िया उदाहरण है। परमेश्‍वर की ज़्यादा-से-ज़्यादा सेवा करने के लिए हमें अपनी तरफ से कुछ कदम ज़रूर उठाने चाहिए। पर साथ ही हमें यहोवा से मार्गदर्शन लेना चाहिए और उसकी मरज़ी के मुताबिक काम करना चाहिए।​—याकू. 4:15.

20 अक्विला और प्रिस्किल्ला को इफिसुस में छोड़कर, पौलुस समुंदर के रास्ते कैसरिया आता है। फिर वह कैसरिया से “ऊपर” यानी यरूशलेम जाता है और वहाँ की मंडली से मिलता है। (प्रेषि. 18:22, फु.) इसके बाद, पौलुस सीरिया के अंताकिया चला जाता है जहाँ से वह अपनी हर मिशनरी यात्रा शुरू करता था। इस तरह, वह अपना दूसरा मिशनरी दौरा अच्छे-से पूरा करता है। अब उसका तीसरा और आखिरी मिशनरी दौरा कैसा रहेगा? यह हम आगे देखेंगे।