अध्याय 16
‘इस पार मकिदुनिया आ’
यहोवा जो भी काम देता है उसे करने से और ज़ुल्मों के बावजूद खुश रहने से आशीषें मिलती हैं
प्रेषितों 16:6-40 पर आधारित
1-3. (क) पौलुस और उसके साथियों को पवित्र शक्ति कैसे राह दिखाती है? (ख) हम किन घटनाओं पर गौर करेंगे?
मकिदुनिया के फिलिप्पी शहर में औरतों की एक टोली साथ मिलकर कहीं जा रही है। चलते-चलते वे शहर से थोड़ी दूर गॉनगीटीस नाम की एक नदी के पास पहुँचती हैं। फिर हमेशा की तरह वे नदी किनारे बैठकर इसराएल के परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना करने लगती हैं। यहोवा उन पर ध्यान देता है और उनकी प्रार्थना सुनता है।—2 इति. 16:9; भज. 65:2.
2 इस दौरान, फिलिप्पी से 800 किलोमीटर दूर पूरब में पौलुस, सीलास और तीमुथियुस गलातिया प्रांत के लुस्त्रा शहर में हैं। वे उस शहर से रवाना होते हैं और कुछ दिन बाद एक रोमी राजमार्ग पर पहुँचते हैं। यह रास्ता एशिया के सबसे घनी आबादीवाले इलाके की तरफ ले जाता है। वे उस रास्ते से इफिसुस और दूसरे शहरों में जाना चाहते हैं ताकि हज़ारों लोगों को मसीह के बारे में खुशखबरी सुना सकें। मगर इससे पहले कि वे अपना सफर शुरू करते, पवित्र शक्ति उन्हें रोक देती है। बाइबल नहीं बताती कि पवित्र शक्ति उन्हें कैसे रोकती है, लेकिन उन्हें एशिया ज़िले में प्रचार करने से मना किया जाता है। मगर क्यों? क्योंकि यीशु चाहता है कि पौलुस और उसके साथी एशिया ज़िले से आगे जाएँ और एजियन सागर पार करके फिलिप्पी शहर के बाहर गॉनगीटीस नदी के किनारे जाएँ।
3 मकिदुनिया जाने के लिए यीशु ने जिस तरह पौलुस और उसके साथियों को राह दिखायी, उससे आज हम कुछ अनमोल सबक सीखते हैं। इसलिए आइए पौलुस के दूसरे मिशनरी दौरे की कुछ घटनाओं पर गौर करें। यह दौरा उसने करीब ईसवी सन् 49 में शुरू किया था।
‘परमेश्वर ने बुलावा दिया है’ (प्रेषि. 16:6-15)
4, 5. (क) जब पौलुस और उसके साथी बितूनिया पहुँचने ही वाले होते हैं, तो क्या होता है? (ख) वे क्या फैसला करते हैं और इसका क्या नतीजा होता है?
4 जब पौलुस और उसके साथियों को एशिया में प्रचार करने से रोका जाता है तो वे उत्तर की तरफ निकल पड़ते हैं। वे बितूनिया प्रांत के शहरों में जाकर प्रचार करना चाहते हैं। बितूनिया पहुँचने के लिए वे फ्रूगिया और गलातिया से होकर जाते हैं जहाँ बहुत कम लोग रहते हैं। वहाँ की कच्ची सड़कों पर उन्हें कई दिनों तक पैदल चलना पड़ता है। जब वे बितूनिया पहुँचने ही वाले होते हैं तो यीशु पवित्र शक्ति के ज़रिए उन्हें बताता है कि वे वहाँ भी प्रचार नहीं कर सकते। (प्रेषि. 16:6, 7) अब वे उलझन में पड़ जाते हैं। उन्हें यह तो पता है कि लोगों को क्या और कैसे प्रचार करना है, मगर उन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि कहाँ प्रचार करना है। पहले उन्होंने एशिया में प्रचार करने की कोशिश की, मगर नहीं कर पाए। फिर उन्होंने बितूनिया में जाने की कोशिश की, मगर यीशु ने उन्हें जाने नहीं दिया। यह ऐसा था मानो उन्होंने एक दरवाज़ा खटखटाया, मगर वह खोला नहीं गया, फिर दूसरा दरवाज़ा खटखटाया, मगर वह भी खोला नहीं गया। फिर भी पौलुस हार नहीं मानता। वह ठान लेता है कि वह तब तक खटखटाता रहेगा जब तक कि कोई दरवाज़ा खुल नहीं जाता। फिर पौलुस और उसके साथी एक ऐसा फैसला करते हैं जो दूसरों को शायद बेतुका लगे। वे बितूनिया से पश्चिम की तरफ जाते हैं और शहर-शहर से होते हुए 550 किलोमीटर चलते हैं। आखिरकार वे त्रोआस बंदरगाह पहुँचते हैं, जहाँ से वे मकिदुनिया जा सकते हैं। (प्रेषि. 16:8) अब पौलुस तीसरी बार दरवाज़ा खटखटाता है और इस बार मौके का दरवाज़ा उनके लिए खुल जाता है!
5 जब पौलुस और उसके साथी त्रोआस पहुँचते हैं, तो लूका भी उनके साथ हो लेता है। लूका लिखता है कि आगे क्या हुआ, “रात को पौलुस ने एक दर्शन में देखा कि मकिदुनिया का एक आदमी खड़ा हुआ उससे यह बिनती कर रहा है, ‘इस पार मकिदुनिया आकर हमारी मदद कर।’ जैसे ही उसने यह दर्शन देखा, हम यह समझकर मकिदुनिया के लिए निकल पड़े कि परमेश्वर ने हमें वहाँ के लोगों को खुशखबरी सुनाने का बुलावा दिया है।” a (प्रेषि. 16:9, 10) आखिरकार, पौलुस को पता चल जाता है कि उसे कहाँ प्रचार करना है। पौलुस को कितनी खुशी हुई होगी कि उसने हार नहीं मानी! फिर त्रोआस से वे चारों भाई फौरन मकिदुनिया जाने के लिए जहाज़ पर चढ़ जाते हैं।
6, 7. (क) पौलुस के ब्यौरे से हम क्या सीखते हैं? (ख) अगर हमारे सामने भी रुकावटें आएँ तो हम पौलुस की तरह क्या कर सकते हैं?
6 इस ब्यौरे से हम क्या सीखते हैं? ध्यान दीजिए, जब पौलुस एशिया जाने के लिए निकला, तो उसके बाद पवित्र शक्ति ने उसे निर्देश दिया। जब पौलुस बितूनिया के करीब पहुँचा, तो उसके बाद यीशु ने उसे हिदायत दी। और जब पौलुस त्रोआस पहुँचा, तो उसके बाद यीशु ने उसे मकिदुनिया जाने के लिए कहा। मंडली का मुखिया होने के नाते यीशु आज भी इसी तरह हमें राह दिखाता है। (कुलु. 1:18) मिसाल के लिए, हम शायद काफी समय से पायनियर सेवा करने की सोच रहे हों या ऐसी जगह जाकर सेवा करने की सोच रहे हों, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। लेकिन सिर्फ सोचना काफी नहीं, इसके साथ-साथ हमें कुछ कदम भी उठाने होंगे। उसके बाद ही यीशु, पवित्र शक्ति के ज़रिए हमें सही राह दिखाएगा। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? ज़रा इस उदाहरण पर गौर कीजिए। एक व्यक्ति अपनी गाड़ी को दायीं या बायीं तरफ तभी मोड़ सकता है जब गाड़ी चल रही हो। लेकिन अगर गाड़ी एक ही जगह रुकी हो, तो उसे कहीं मोड़ा नहीं जा सकता। उसी तरह, यीशु हमें अपनी सेवा बढ़ाने के लिए सिर्फ तभी मार्गदर्शन देगा, जब हम अपनी तरफ से कुछ कदम उठा रहे हों।
7 लेकिन अगर हम फौरन कामयाब नहीं होते तब क्या? क्या हम यह सोचेंगे कि पवित्र शक्ति हमारा मार्गदर्शन नहीं कर रही? जी नहीं! याद कीजिए, पौलुस के सामने भी रुकावटें आयी थीं। मगर उसने हिम्मत नहीं हारी और वह तब तक खटखटाता रहा जब तक कि कोई दरवाज़ा उसके लिए खोला नहीं गया। अगर हम भी हार ना मानें, तो यहोवा हमारे लिए भी “मौके का एक दरवाज़ा” ज़रूर खोलेगा।—1 कुरिं. 16:9.
8. (क) समझाइए कि फिलिप्पी कैसा शहर था। (ख) जब पौलुस ‘प्रार्थना की जगह’ जाकर प्रचार करने लगता है, तो क्या बढ़िया नतीजे निकलते हैं?
8 मकिदुनिया पहुँचने के बाद पौलुस और उसके साथी फिलिप्पी शहर जाते हैं। यहाँ के लोगों को रोमी नागरिक होने का बड़ा घमंड है। फिलिप्पी शहर रोम जैसा है और यहाँ कई रिटायर्ड रोमी सैनिक रहते हैं। पौलुस और उसके साथी पता करते हैं कि शहर के बाहर, नदी किनारे “प्रार्थना करने की कोई जगह” है। b सब्त के दिन वे उस जगह जाते हैं और देखते हैं कि वहाँ कई औरतें परमेश्वर की उपासना करने के लिए जमा हैं। ये भाई वहीं बैठकर उन्हें प्रचार करने लगते हैं। उन औरतों में लुदिया नाम की एक औरत भी है। वह भाइयों की बातें सुन रही है और तब ‘यहोवा उसके दिल के दरवाज़े पूरी तरह खोल देता है।’ इन बातों का लुदिया पर इतना गहरा असर होता है कि वह और उसका घराना बपतिस्मा ले लेता है। फिर वह पौलुस और उसके साथियों को जैसे-तैसे मनाकर अपने घर ले जाती है और उन्हें अपने यहाँ ठहराती है। c—प्रेषि. 16:13-15.
9. आज कई लोग पौलुस की तरह क्या करते हैं? उन्हें क्या आशीषें मिली हैं?
9 लुदिया के बपतिस्मे पर पौलुस और उसके साथी फूले नहीं समाए होंगे! पौलुस को लगा होगा कि उसने “इस पार मकिदुनिया आकर” कितना अच्छा किया। उसे इस बात की भी खुशी हुई होगी कि यहोवा ने उसे और उसके साथियों को इस लायक समझा कि वे लुदिया जैसी औरतों की मदद करें। आज भी बहुत-से जवान, बुज़ुर्ग, अविवाहित और शादीशुदा भाई-बहन ऐसे इलाकों में जाकर सेवा करते हैं जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। हालाँकि उन्हें कई मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं, मगर जब उन्हें प्रचार में लुदिया जैसे लोग मिलते हैं, तो वे अपनी सारी मुश्किलें भूल जाते हैं। अगर आप भी ऐसे इलाकों में जाकर सेवा करेंगे तो आपको भी आशीषें मिलेंगी! ऐरन नाम के एक जवान भाई पर गौर कीजिए जो प्रचार करने के लिए मध्य अमरीका के एक शहर में गया। उसका कहना है, “यहाँ आकर सेवा करने से परमेश्वर के साथ मेरा रिश्ता मज़बूत हुआ है। मैं खुद को उसके और भी करीब महसूस कर पाता हूँ। प्रचार काम में मुझे खूब मज़ा आता है और मैं आठ बाइबल अध्ययन करा रहा हूँ!” ऐरन की तरह बहुत से भाई-बहन भी ऐसा ही महसूस करते हैं।
‘लोगों की भीड़ उनके खिलाफ जमा हो जाती है’ (प्रेषि. 16:16-24)
10. शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूत कैसे पौलुस और उसके साथियों के लिए मुश्किलें खड़ी करते हैं?
10 फिलिप्पी शहर पर शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों की मज़बूत पकड़ है। इसलिए लोगों को मसीह के चेले बनते देख शैतान आग-बबूला हो उठा होगा। अब वह और उसके दुष्ट दूत ज़रूर पौलुस और उसके साथियों के लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे। एक बार जब पौलुस और उसके साथी प्रार्थना की जगह जा रहे होते हैं, तो एक दासी उनके पीछे-पीछे आने लगती है। उसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया हुआ है जिस वजह से वह भविष्य बताती है और उसके मालिकों की बहुत कमाई होती है। वह पौलुस और उसके साथियों के पीछे-पीछे चिल्लाने लगती है, “ये आदमी परम-प्रधान परमेश्वर के दास हैं, तुम्हें उद्धार की राह का संदेश सुना रहे हैं।” उस दासी में समाया दुष्ट स्वर्गदूत ही शायद यह ऐलान करवाता है ताकि लोगों को लगे कि यह लड़की भी यहोवा की तरफ से बोल रही है। इससे लोगों का ध्यान उस खुशखबरी से हट सकता है जो पौलुस सुना रहा है। इसलिए पौलुस उस लड़की में समाए दुष्ट स्वर्गदूत को बाहर निकाल देता है और वह लड़की चुप हो जाती है।—प्रेषि. 16:16-18.
11. उस दासी में से दुष्ट स्वर्गदूत को निकालने के बाद, पौलुस और सीलास के साथ क्या होता है?
11 जब उस दासी के मालिक देखते हैं कि उनका धंधा चौपट हो गया है, तो उनका पारा चढ़ जाता है। वे पौलुस और सीलास को घसीटकर बाज़ार के चौक में अधिकारियों के सामने ले आते हैं। ये अधिकारी रोमी सरकार की तरफ से अदालत लगाते हैं और लोगों के झगड़े निपटाते हैं। इन अधिकारियों को रोमी होने का बहुत घमंड है और वे यहूदियों से नफरत करते हैं और यह बात उस दासी के मालिक भी जानते हैं। इसलिए वे अधिकारियों से कहते हैं, “ये आदमी हमारे शहर में गड़बड़ी मचा रहे हैं। ये यहूदी हैं और लोगों को ऐसे रिवाज़ सिखा रहे हैं जिन्हें अपनाने या मानने की हमें इजाज़त नहीं क्योंकि हम रोमी हैं।” फिर क्या, बाज़ार में “लोगों की भीड़ उनके [यानी पौलुस और सीलास के] खिलाफ जमा” हो जाती है और नगर-अधिकारी “उन्हें बेंत लगाने” का हुक्म देते हैं। इसके बाद, पौलुस और सीलास को जेल में डाल दिया जाता है। जेलर उन्हें अंदर की कोठरी में डाल देता है और उनके पाँव काठ में कस देता है। (प्रेषि. 16:19-24) जब जेलर दरवाज़ा बंद कर देता है तो कोठरी में ऐसा अँधेरा छा जाता है कि पौलुस और सीलास एक-दूसरे को देख नहीं पाते। मगर यहोवा उन्हें देख रहा था और उनकी तकलीफ समझ सकता था।—भज. 139:12.
12. (क) ज़ुल्मों के बारे में यीशु के चेलों का क्या नज़रिया था और क्यों? (ख) आज भी शैतान कुछ लोगों के ज़रिए क्या हथकंडे अपनाता है?
12 कुछ साल पहले यीशु ने अपने चेलों से कहा था, वे “तुम्हें भी सताएँगे।” (यूह. 15:20) इसलिए पौलुस और उसके साथियों ने जब मकिदुनिया में कदम रखा, तो वे विरोध का सामना करने के लिए तैयार थे। जब उन पर ज़ुल्म किए गए तो उन्होंने यह नहीं सोचा कि यहोवा हमसे नाराज़ है बल्कि उन्होंने यही समझा कि शैतान हम पर अपना गुस्सा उतार रहा है। आज भी शैतान कुछ लोगों के ज़रिए वही हथकंडे अपनाता है जो उसने फिलिप्पी में अपनाए थे। जैसे, स्कूल में या काम की जगह पर कुछ लोग हमारे बारे में झूठी अफवाहें फैलाते हैं और दूसरों को हमारे खिलाफ भड़काते हैं। कुछ देशों में विरोधी हमें अदालत तक ले जाते हैं। वे हम पर यह इलज़ाम लगाते हैं कि ‘यहोवा के साक्षी लोगों को गलत बातें सिखाते हैं और उन्हें वे रीति-रिवाज़ छोड़ने के लिए कहते हैं जो वे सदियों से मानते आ रहे हैं।’ कुछ देशों में हमारे भाई-बहनों को मारा-पीटा जाता है और जेल में डाल दिया जाता है। लेकिन हमारे साथ जो भी नाइंसाफी होती है यहोवा उसे देख रहा है।—1 पत. 3:12.
वे “बिना देर किए बपतिस्मा” लेते हैं (प्रेषि. 16:25-34)
13. ऐसा क्या हुआ जिससे जेलर ने यह सवाल किया, “उद्धार पाने के लिए मुझे क्या करना होगा?”
13 पौलुस और सीलास को इस हादसे से उबरने में वक्त लगता है। मगर आधी रात वे ‘प्रार्थना करने लगते हैं और गीत गाकर परमेश्वर का गुणगान करने लगते हैं।’ तभी अचानक एक बड़ा भूकंप होता है जिससे जेल की नींव तक हिल जाती है! जेलर जाग जाता है और जब वह देखता है कि जेल के दरवाज़े खुले पड़े हैं, तो उसके होश उड़ जाते हैं। उसे लगता है कि सारे कैदी भाग गए। वह जानता है कि कैदियों के भाग जाने से उसे सज़ा मिलेगी। वह ‘अपनी तलवार खींचकर अपनी जान लेने ही वाला’ होता है कि पौलुस उसे ज़ोर से आवाज़ लगाता है, “अपनी जान मत ले क्योंकि हम सब यहीं हैं!” जेलर थर-थर काँपता हुआ पौलुस और सीलास के पास आता है और उनसे पूछता है, “मुझे बताओ, उद्धार पाने के लिए मुझे क्या करना होगा?” पौलुस और सीलास जानते हैं कि वे नहीं बल्कि यीशु उस जेलर को उद्धार दिला सकता है। इसलिए वे कहते हैं, “प्रभु यीशु पर विश्वास कर, तब तू और तेरा सारा घराना उद्धार पाएगा।”—प्रेषि. 16:25-31.
14. (क) पौलुस और सीलास जेलर की मदद कैसे करते हैं? (ख) उन्हें खुशी-खुशी ज़ुल्म सहने का क्या नतीजा मिला?
14 क्या जेलर सचमुच जानना चाहता है कि उसे उद्धार पाने के लिए क्या करना होगा? पौलुस को यकीन था कि वह जानना चाहता है। यह जेलर एक गैर-यहूदी है और शास्त्र से बिलकुल अनजान है। मसीही बनने के लिए उसे शास्त्र की बुनियादी शिक्षाएँ सीखनी थीं और उन पर विश्वास करना था। इसलिए पौलुस और सीलास उसे “यहोवा का वचन” सुनाने लगते हैं। वे उसे सिखाने में इतना खो जाते हैं कि अपना दर्द भूल जाते हैं। जेलर देखता है कि उनकी पीठ पर गहरे ज़ख्म हैं, वह उनकी मरहम-पट्टी करता है। फिर वह और उसके घराने के लोग “बिना देर किए बपतिस्मा” लेते हैं। पौलुस और सीलास को खुशी-खुशी ज़ुल्म सहने का क्या ही बढ़िया नतीजा मिला!—प्रेषि. 16:32-34.
15. (क) आज कई साक्षी पौलुस और सीलास की तरह क्या करते हैं? (ख) हमें क्यों लोगों से बार-बार जाकर मिलना चाहिए?
15 आज भी कई साक्षियों को अपने विश्वास की खातिर जेल जाना पड़ता है। पौलुस और सीलास की तरह वे भी जेल में खुशखबरी सुनाते हैं और उन्हें इसके बढ़िया नतीजे मिलते हैं। मिसाल के लिए, एक देश में प्रचार काम पर रोक लगी थी। तब एक वक्त ऐसा था जब 40 प्रतिशत लोगों ने जेल में सच्चाई सीखी और साक्षी बने। (यशा. 54:17) गौर कीजिए कि भूकंप के बाद ही जेलर ने खुशखबरी में दिलचस्पी ली। उसी तरह, आज कुछ लोग अपनी ज़िंदगी में बहुत खुश हैं और वे राज का संदेश सुनना नहीं चाहते। मगर फिर उनके साथ कुछ ऐसा होता है जो उन्हें हिलाकर रख देता है और वे खुशखबरी में दिलचस्पी लेने लगते हैं। इसीलिए हम लोगों से बार-बार मिलते हैं ताकि जब भी वे सुनने के लिए तैयार हों, तो हम उनकी मदद कर सकें।
“और अब कह रहे हैं कि हम चुपचाप यहाँ से निकल जाएँ?” (प्रेषि. 16:35-40)
16. जिस दिन पौलुस और सीलास को पीटा जाता है, उसके अगले दिन क्या होता है?
16 जिस दिन पौलुस और सीलास को पीटा जाता है, उसकी अगली सुबह नगर-अधिकारी हुक्म देते हैं कि उन दोनों को रिहा कर दिया जाए। लेकिन पौलुस कहता है, “हम रोमी नागरिक हैं, फिर भी उन्होंने यह साबित किए बगैर कि हमने कोई जुर्म किया है, हमें सबके सामने पिटवाया और जेल में डाल दिया। और अब कह रहे हैं कि हम चुपचाप यहाँ से निकल जाएँ? नहीं, ऐसा हरगिज़ नहीं होगा! उन्हें खुद आकर हमें यहाँ से बाहर ले जाना होगा।” जब नगर-अधिकारियों को पता चलता है कि पौलुस और सीलास रोमी नागरिक हैं, तो वे “बहुत डर” जाते हैं क्योंकि उन्होंने उनके अधिकारों का उल्लंघन किया है। d अब पासा पलट चुका है। जिन नगर-अधिकारियों ने पौलुस और सीलास को सबके सामने पिटवाया था, अब उन्हें सबके सामने माफी माँगनी होगी। नगर-अधिकारी आकर पौलुस और सीलास को मनाने लगते हैं और उनसे बिनती करते हैं कि वे फिलिप्पी छोड़कर चले जाएँ। वे दोनों उनकी बात मान लेते हैं लेकिन जाने से पहले वे फिलिप्पी के नए चेलों से मिलते हैं और उनकी हिम्मत बँधाते हैं। इसके बाद वे वहाँ से चले जाते हैं।
17. पौलुस और सीलास की मिसाल से नए चेले क्या समझ पाए?
17 पौलुस और सीलास चाहते तो शुरू में ही बता सकते थे कि वे रोमी नागरिक हैं और मार खाने से बच सकते थे। (प्रेषि. 22:25, 26) लेकिन अगर वे ऐसा करते, तो फिलिप्पी के चेलों को लगता कि ये दोनों भाई खुशखबरी की खातिर दुख नहीं उठाना चाहते। और उन चेलों को कैसा लगता जो रोमी नागरिक नहीं थे? उनका विश्वास कमज़ोर पड़ सकता था क्योंकि उन्हें वह हिफाज़त नहीं मिलती जो रोमी नागरिकों को मिलती थी। इसलिए पौलुस और सीलास ने चुपचाप ज़ुल्म सह लिया। उनकी मिसाल से नए चेले समझ पाए कि वे भी ज़ुल्मों के दौरान डटे रह सकते हैं। लेकिन पौलुस और सीलास ने बाद में क्यों बताया कि वे रोमी नागरिक हैं? ताकि अधिकारी सबके सामने कबूल करें कि उन्होंने कानून तोड़ा है। अगली बार वे मसीहियों पर ज़ुल्म करने से पहले दो बार सोचते। इस तरह मसीहियों को कानून की तरफ से थोड़ी-बहुत हिफाज़त मिलती।
18. (क) पौलुस की तरह आज मसीही प्राचीन क्या करते हैं? (ख) “खुशखबरी की पैरवी करने और उसे कानूनी मान्यता दिलाने” के लिए आज हम क्या करते हैं?
18 आज प्राचीन भी पौलुस की तरह भाई-बहनों के लिए अच्छी मिसाल रखते हैं। जब वे भाई-बहनों को कुछ करने के लिए कहते हैं तो खुद करके भी दिखाते हैं। पौलुस की तरह, हम भी सोच-समझकर फैसला करते हैं कि हम कब और कैसे अपने कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करेंगे। ज़रूरत पड़ने पर हम अपने देश की छोटी-बड़ी अदालतों, यहाँ तक कि अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में भी मुकदमे लड़ते हैं ताकि उपासना करने के अपने अधिकार की हिफाज़त कर सकें। हम ये कानूनी लड़ाइयाँ इसलिए नहीं लड़ते कि हम सरकार की नीतियाँ बदलना चाहते हैं। पर इसलिए कि जैसा पौलुस ने लिखा, हम ‘खुशखबरी की पैरवी करना और उसे कानूनी मान्यता दिलाना’ चाहते हैं। उसने यह बात फिलिप्पी में हुई उस घटना के दस साल बाद लिखी थी। (फिलि. 1:7) आज चाहे हम कोई मुकदमा जीतें या हारें, हमने पौलुस और उसके साथियों की तरह ठान लिया है कि पवित्र शक्ति हमें “खुशखबरी सुनाने” के लिए जहाँ कहीं भेजेगी, हम वहाँ ज़रूर जाएँगे।—प्रेषि. 16:10.
a यह बक्स देखें, “ लूका—प्रेषितों की किताब का लेखक।”
b रिटायर्ड रोमी सैनिकों की वजह से शायद यहूदियों को फिलिप्पी में सभा-घर बनाने की इजाज़त नहीं थी। या ऐसा भी हो सकता है कि शहर में यहूदी आदमियों की गिनती दस से भी कम थी जबकि सभा-घर बनाने के लिए कम-से-कम दस आदमियों का होना ज़रूरी था।
c यह बक्स देखें, “ लुदिया—वह बैंजनी कपड़े बेचा करती थी।”
d रोमी कानून के मुताबिक अगर एक रोमी नागरिक पर किसी अपराध का इलज़ाम हो, तो उसके मुकदमे की सुनवाई होती थी और जुर्म साबित होने के बाद ही उसे सज़ा मिलती थी। किसी भी रोमी नागरिक को बिना सुनवाई के सरेआम सज़ा नहीं दी जा सकती थी।