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अध्याय 22

“यहोवा की मरज़ी पूरी हो”

“यहोवा की मरज़ी पूरी हो”

पौलुस हर हाल में परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करना चाहता है, इसलिए वह यरूशलेम जाता है

प्रेषितों 21:1-17 पर आधारित

1-4. पौलुस यरूशलेम क्यों जा रहा है? वहाँ उसके साथ क्या होनेवाला है?

 मीलेतुस के बंदरगाह पर पौलुस और लूका, इफिसुस के प्राचीनों से गले मिलकर रो रहे हैं। इफिसुस के भाई मानने को तैयार नहीं हैं कि वे पौलुस को आखिरी बार देख रहे हैं। इन प्यारे भाइयों को अलविदा कहना पौलुस और लूका के लिए भी आसान नहीं है। फिर भी अपने दिल पर पत्थर रखकर ये दोनों भाई जहाज़ पर चढ़ते हैं। भाइयों ने उन्हें सफर के लिए खाना और दूसरी ज़रूरी चीज़ें बाँधकर दी हैं ताकि रास्ते में उन्हें किसी चीज़ की कमी ना हो। पौलुस और लूका अपने साथ यहूदिया के भाइयों के लिए दान भी ले जा रहे हैं। वे जल्द-से-जल्द यह दान उन ज़रूरतमंद भाइयों तक पहुँचाना चाहते हैं।

2 अब जहाज़ के पाल खोले जाते हैं और हवा की मदद से जहाज़ बंदरगाह से निकल पड़ता है। पौलुस, लूका और सात और भाई जहाज़ से उन दोस्तों को एकटक देखते रहते हैं जो बंदरगाह पर उदास खड़े हैं। (प्रेषि. 20:4, 14, 15) वे तब तक हाथ हिला-हिलाकर उन्हें अलविदा कहते हैं जब तक कि वे उनकी नज़रों से ओझल नहीं हो जाते।

3 पौलुस ने इफिसुस के उन प्राचीनों के साथ मिलकर करीब तीन साल तक काम किया था। मगर अब पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में वह यरूशलेम जा रहा है। उसे थोड़ा-बहुत अंदाज़ा है कि यरूशलेम में उसके साथ क्या होनेवाला है। कुछ समय पहले उसने इफिसुस के प्राचीनों से कहा था, “मैं पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन के मुताबिक यरूशलेम जाने के लिए मजबूर हूँ, हालाँकि मैं नहीं जानता कि वहाँ मुझ पर क्या-क्या बीतेगी। मैं सिर्फ इतना जानता हूँ कि हर शहर में पवित्र शक्‍ति ने बार-बार मुझ पर ज़ाहिर किया कि कैद और मुसीबतें मेरी राह तक रहे हैं।” (प्रेषि. 20:22, 23) खतरे का अंदेशा होने के बावजूद, पौलुस “पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन के मुताबिक यरूशलेम जाने के लिए मजबूर” है। उसके कहने का मतलब है कि वह हर हाल में पवित्र शक्‍ति का निर्देश मानना चाहता है और ऐसा करने से पीछे नहीं हटेगा। बेशक पौलुस को अपनी जान प्यारी थी, मगर परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करना उसे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारा था।

4 क्या परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने के लिए हममें भी पौलुस जैसा जज़्बा है? जब हमने अपना जीवन यहोवा को समर्पित किया, तो हमने उससे वादा किया था कि अब से उसकी मरज़ी पूरी करना ही हमारी ज़िंदगी का मकसद होगा। प्रेषित पौलुस ने जिस तरह सारी ज़िंदगी परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी की, उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

रास्ते में उन्हें ‘कुप्रुस द्वीप दिखायी देता है’ (प्रेषि. 21:1-3)

5. पौलुस और उसके साथी सोर जाने के लिए कहाँ-कहाँ से होकर जाते हैं?

5 मीलेतुस से पौलुस और उसके साथियों का जहाज़ “बड़ी तेज़ी से सीधे” आगे बढ़ता है। जहाज़ को कहीं भी अपनी दिशा बदलने की ज़रूरत नहीं पड़ती क्योंकि मौसम अच्छा है। इसलिए वे उसी दिन कोस द्वीप पहुँच जाते हैं। (प्रेषि. 21:1) ऐसा मालूम होता है कि उस रात जहाज़ कोस द्वीप में ही लंगर डालता है। फिर अगले दिन वह रुदुस द्वीप और पतरा बंदरगाह की तरफ आगे बढ़ता है। पतरा एशिया माइनर के दक्षिणी तट पर है। पतरा में पौलुस और उसके साथी एक बड़े मालवाहक जहाज़ पर चढ़ते हैं जो उन्हें सीधे सोर शहर पहुँचाता है जो फीनीके में है। रास्ते में उन्हें ‘कुप्रुस द्वीप दिखायी देता है जो उनके बायीं तरफ था।’ (प्रेषि. 21:3) इस ब्यौरे में लूका कुप्रुस द्वीप का ज़िक्र क्यों करता है?

6. (क) कुप्रुस द्वीप में जो हुआ, उसे याद करके पौलुस को किस बात का यकीन हो गया होगा? (ख) बीते समय में यहोवा ने आपको जो मदद और आशीषें दीं, उन्हें याद करना क्यों अच्छा होगा?

6 सफर के दौरान जब पौलुस ने वह द्वीप देखा तो उसने लूका और बाकी साथियों को वहाँ के किस्से सुनाए होंगे। करीब नौ साल पहले वह अपने पहले मिशनरी दौरे पर वहाँ गया था। उस वक्‍त उसके साथ बरनबास और यूहन्‍ना मरकुस भी थे। उनका सामना इलीमास नाम के एक जादूगर से हुआ था जिसने उनके संदेश का विरोध किया। (प्रेषि. 13:4-12) पौलुस को यह याद करके ज़रूर हिम्मत मिली होगी कि उस वक्‍त यहोवा ने कैसे उसकी मदद की। उसे यकीन हो गया होगा कि आगे जो मुसीबतें आनेवाली हैं उनका भी वह ज़रूर सामना कर पाएगा। अगर हम भी याद करें कि बीते समय में यहोवा ने हमें क्या आशीषें दी हैं और मुश्‍किलों का सामना करने में कैसे हमारी मदद की है, तो हमें हिम्मत मिलेगी। हम भी दाविद की तरह कह पाएँगे, “नेक जन पर बहुत-सी विपत्तियाँ तो आती हैं, मगर यहोवा उसे उन सबसे छुड़ाता है।”​—भज. 34:19.

“हमने ढूँढ़कर पता लगाया कि चेले कहाँ रहते हैं” (प्रेषि. 21:4-9)

7. सोर पहुँचने पर पौलुस और उसके साथी क्या करते हैं?

7 पौलुस जानता है कि मसीही भाई-बहनों के साथ संगति करना कितना ज़रूरी है, इसलिए वह उनसे मिलने के लिए बेताब रहता है। जब वे सोर पहुँचते हैं तो लूका बताता है, “हमने ढूँढ़कर पता लगाया कि चेले कहाँ रहते हैं।” (प्रेषि. 21:4) उन्हें पता था कि सोर में कुछ मसीही भाई-बहन रहते हैं, इसलिए वे उनका घर ढूँढ़ते हैं और उनके यहाँ ठहरते हैं। आज भी अगर हम दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएँ, हमें ऐसे भाई-बहन मिलते हैं जो दिल से हमारा स्वागत करते हैं। सच्चाई में होने की यह एक बहुत बड़ी आशीष है! वाकई, जो लोग परमेश्‍वर से प्यार करते हैं और सच्ची उपासना करते हैं, उनके दोस्त पूरी दुनिया में फैले हुए हैं!

8. प्रेषितों 21:4 में जो लिखा है उसका क्या मतलब है?

8 पौलुस और उसके साथी सात दिन तक सोर में रहते हैं। इस दौरान जो हुआ उस बारे में लूका लिखता है, “पवित्र शक्‍ति ने जो ज़ाहिर किया था उसकी वजह से [सोर के भाइयों] ने पौलुस से बार-बार कहा कि वह यरूशलेम न जाए।” (प्रेषि. 21:4) यह आयत पढ़कर लग सकता है कि पवित्र शक्‍ति की वजह से भाई, पौलुस को यरूशलेम जाने से रोक रहे थे। पर ऐसा नहीं है। पवित्र शक्‍ति ने तो साफ ज़ाहिर कर दिया था कि पौलुस यरूशलेम जाएगा और वहाँ उसके साथ बुरा सलूक किया जाएगा। लेकिन जब सोर के भाइयों को यह बात समझ आती है तो उन्हें पौलुस की चिंता होने लगती है। इसलिए वे भाई  पौलुस को यरूशलेम जाने से रोकते हैं, ना कि पवित्र शक्‍ति। हम उनकी भावनाओं को समझ सकते हैं। वे नहीं चाहते कि पौलुस पर कोई आँच आए। लेकिन पौलुस ने परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने की ठान ली है, इसलिए वह यरूशलेम के लिए रवाना हो जाता है।​—प्रेषि. 21:12.

9, 10. (क) सोर के भाइयों की मिन्‍नतें सुनकर पौलुस को कौन-सी घटना याद आयी होगी? (ख) आज ज़्यादातर लोगों की क्या सोच है? मगर यीशु ने क्या कहा?

9 सोर के भाइयों की मिन्‍नतें सुनकर पौलुस को शायद यीशु की ज़िंदगी की एक घटना याद आयी होगी। एक बार यीशु अपने चेलों को बता रहा था कि उसे यरूशलेम जाना होगा, वहाँ उसे कई दुख सहने होंगे और आखिरकार उसे मार डाला जाएगा। यह सुनकर पतरस से रहा नहीं गया और उसने यीशु से कहा, “प्रभु खुद पर दया कर, तेरे साथ ऐसा कभी नहीं होगा।” मगर यीशु ने उससे कहा, “अरे शैतान, मेरे सामने से दूर हो जा! तू मेरे लिए ठोकर की वजह है क्योंकि तेरी सोच परमेश्‍वर जैसी नहीं, बल्कि इंसानों जैसी है।” (मत्ती 16:21-23) यीशु ने ठान लिया था कि वह हर हाल में यहोवा की मरज़ी पूरी करेगा और अपनी जान कुरबान करेगा। पौलुस ने भी यही ठान रखा था। पतरस की तरह सोर के भाइयों का इरादा तो नेक था, पर उनकी सोच गलत थी। वे यह नहीं समझ पाए कि परमेश्‍वर की मरज़ी थी कि पौलुस यरूशलेम जाए।

यीशु के पीछे चलने के लिए हमें कुछ त्याग करने होंगे

10 आजकल लोगों की सोच ऐसी हो गयी है कि अगर उन्हें कोई काम मुश्‍किल लगता है तो वे उससे जी चुराते हैं, भले ही वह काम कितना भी ज़रूरी हो। धर्म की ही बात लीजिए। लोग ऐसे धर्म को मानना पसंद करते हैं जिसमें ज़्यादा रोक-टोक और नियम-कानून ना हों। लेकिन यीशु ने हमें ऐसी सोच रखने का बढ़ावा दिया जो दुनिया की सोच से बिलकुल हटकर है। उसने अपने चेलों से कहा, “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह खुद से इनकार करे और अपना यातना का काठ उठाए और मेरे पीछे चलता रहे।” (मत्ती 16:24) यीशु के पीछे चलना समझदारी है और बिलकुल सही भी है लेकिन ऐसा करना हरगिज़ आसान नहीं है।

11. सोर के भाई-बहन कैसे दिखाते हैं कि वे पौलुस से प्यार करते हैं और चाहते हैं कि वह प्रचार काम अच्छे-से करता रहे?

11 अब वह दिन आ जाता है जब पौलुस, लूका और बाकी भाइयों को सोर छोड़कर अपने सफर पर आगे बढ़ना है। सोर के भाई पौलुस और उसके साथियों को छोड़ने समुंदर किनारे तक आते हैं। इनमें औरतें और बच्चे भी शामिल हैं। वे सब घुटने टेककर प्रार्थना करते हैं और इसके बाद पौलुस और उसके साथियों को अलविदा कहते हैं। यह नज़ारा हमारे दिल को छू जाता है! इससे पता चलता है कि वे पौलुस से कितना प्यार करते हैं और चाहते हैं कि वह प्रचार काम अच्छे-से करता रहे। फिर पौलुस, लूका और उनके साथी एक जहाज़ पर चढ़कर पतुलि-मयिस शहर जाते हैं। वहाँ वे भाइयों से मिलते हैं और उनके यहाँ एक दिन रुकते हैं।​—प्रेषि. 21:5-7.

12, 13. (क) फिलिप्पुस ने कैसे परमेश्‍वर की सेवा करने में अच्छी मिसाल रखी? (ख) आज मसीही पिता फिलिप्पुस से क्या सीख सकते हैं?

12 लूका बताता है कि इसके बाद, पौलुस और उसके साथी कैसरिया के लिए निकल पड़ते हैं। वहाँ पहुँचने पर वे “प्रचारक फिलिप्पुस के घर” जाते हैं। a (प्रेषि. 21:8) फिलिप्पुस से मिलकर वे सभी बहुत खुश हुए होंगे। करीब 20 साल पहले जब यरूशलेम की मंडली नयी-नयी बनी थी तब प्रेषितों ने फिलिप्पुस को खाना बाँटने का काम दिया था। फिलिप्पुस कई सालों से पूरे जोश के साथ प्रचार कर रहा था। आपको शायद याद हो कि जब यरूशलेम में चेलों पर ज़ुल्म होने लगे तो वे वहाँ से दूर-दूर के इलाकों में तितर-बितर हो गए थे। उसी दौरान फिलिप्पुस सामरिया चला गया और वहाँ प्रचार करने लगा। बाद में, उसने इथियोपिया के खोजे को भी प्रचार किया और उसे बपतिस्मा दिया। (प्रेषि. 6:2-6; 8:4-13, 26-38) फिलिप्पुस ने बरसों तक जी-जान से परमेश्‍वर की सेवा की!

13 फिलिप्पुस कैसरिया में अब भी जोश से प्रचार कर रहा है। यही वजह है कि लूका उसे “प्रचारक फिलिप्पुस” कहता है। इतना ही नहीं, लूका के ब्यौरे से पता चलता है कि उसकी चार बेटियाँ हैं जो भविष्यवाणी करती हैं। b उन्होंने ज़रूर अपने पिता की अच्छी मिसाल से सीखा होगा। (प्रेषि. 21:9) ज़ाहिर है, फिलिप्पुस ने बहुत मेहनत की होगी जिस वजह से उसका पूरा परिवार यहोवा से प्यार करता था और उसकी सेवा करता था। आज जिन भाइयों के बच्चे हैं, वे भी फिलिप्पुस की तरह अच्छे पिता बनने की कोशिश कर सकते हैं। जब वे खुद प्रचार में मेहनत करेंगे और अपने बच्चों के दिल में प्रचार के लिए लगाव पैदा करेंगे, तो उनके बच्चे भी उनकी तरह बनेंगे।

14. पौलुस और उसके साथियों ने जब भाई-बहनों के साथ वक्‍त बिताया तो इससे क्या फायदा हुआ होगा? आज हमारे पास भी क्या मौके होते हैं?

14 पौलुस अपने सफर में जहाँ कहीं गया, वहाँ उसने मसीही भाई-बहनों को ढूँढ़ा ताकि उनके साथ वक्‍त बिता सके। उन भाई-बहनों को भी पौलुस और उसके साथियों की मेहमान-नवाज़ी करने में खुशी हुई होगी। इस तरह साथ वक्‍त बिताकर उन्होंने ज़रूर “एक-दूसरे का हौसला” बढ़ाया होगा। (रोमि. 1:11, 12) आज हमारे पास भी ऐसे कई मौके होते हैं जब हम दूसरों की मेहमान-नवाज़ी कर सकते हैं। शायद हमारा घर ज़्यादा बड़ा ना हो फिर भी अगर हम सर्किट निगरान और उनकी पत्नी को अपने यहाँ बुलाएँगे तो इससे हमारा हौसला बढ़ेगा।​—रोमि. 12:13.

‘मैं मरने के लिए तैयार हूँ’ (प्रेषि. 21:10-14)

15, 16. अगबुस क्या संदेश लेकर आया है? उसका संदेश सुनकर भाई क्या करते हैं?

15 जब पौलुस, फिलिप्पुस के घर ठहरा था तो उनके यहाँ एक और मेहमान आता है जिसका मसीहियों के बीच काफी मान-सम्मान है। वह है, अगबुस। फिलिप्पुस के घर जमा हुए सब लोग जानते हैं कि वह एक भविष्यवक्‍ता है। उसने सम्राट क्लौदियुस के दिनों में भविष्यवाणी की थी कि एक भारी अकाल पड़ेगा और ऐसा ही हुआ। (प्रेषि. 11:27, 28) इसलिए अब सबके मन में शायद यह सवाल उठ रहा है, ‘अगबुस यहाँ क्यों आया है? वह हमें क्या संदेश देना चाहता है?’ सभी की नज़रें उस पर हैं। तभी अगबुस पौलुस का कमरबंद लेता है और उससे अपने हाथ-पैर बाँध लेता है। कमरबंद एक ऐसा कपड़ा होता है जिसे लोग अपनी कमर पर बाँधते हैं और उसमें पैसा और दूसरी चीज़ें रखते हैं। कमरबंद से अपने हाथ-पैर बाँधने के बाद अगबुस बोलना शुरू करता है। उसका संदेश काफी गंभीर है। उसने कहा, “पवित्र शक्‍ति कहती है, ‘जिस आदमी का यह कमरबंद है, उसे यहूदी इसी तरह यरूशलेम में बाँधेंगे और दूसरे राष्ट्रों के लोगों के हवाले कर देंगे।’”​—प्रेषि. 21:11.

16 इस भविष्यवाणी से साफ पता चलता है कि पौलुस यरूशलेम ज़रूर जाएगा। इससे यह भी ज़ाहिर होता है कि यरूशलेम के यहूदी उसे “दूसरे राष्ट्रों के लोगों के हवाले कर देंगे।” जब वहाँ मौजूद भाई सुनते हैं कि पौलुस के साथ ऐसा होगा तो वे परेशान हो जाते हैं। लूका बताता है, “जब हमने यह सुना, तो हम और वहाँ के लोग पौलुस से मिन्‍नतें करने लगे कि वह यरूशलेम न जाए। तब पौलुस ने कहा, ‘तुम क्यों रो-रोकर मेरा इरादा कमज़ोर कर रहे हो? यकीन मानो, मैं प्रभु यीशु के नाम की खातिर यरूशलेम में न सिर्फ बंदी बनने के लिए बल्कि मरने के लिए भी तैयार हूँ।’”​—प्रेषि. 21:12, 13.

17, 18. पौलुस कैसे दिखाता है कि वह अपने इरादे पर अटल है? तब भाई क्या करते हैं?

17 ज़रा कल्पना कीजिए, फिलिप्पुस के घर जमा भाई पौलुस से मिन्‍नतें कर रहे हैं कि वह यरूशलेम ना जाए। लूका भी उससे यही कह रहा है। कुछ तो रोने भी लगते हैं। पौलुस देख सकता है कि वे सभी उसे कितना चाहते हैं और उसके लिए कितने परेशान हैं। मगर वह उन्हें प्यार से समझाता है कि वे उसका “इरादा कमज़ोर” ना करें। पौलुस अपने इरादे पर अटल है कि वह यरूशलेम जाएगा। वह सोर के भाइयों के कहने पर नहीं रुका और अब वह इन भाइयों के कहने पर भी अपना फैसला नहीं बदलता। इसके बजाय, वह उन्हें समझाता है कि उसका यरूशलेम जाना क्यों ज़रूरी है। सच में, पौलुस में बहुत हिम्मत है! यीशु की तरह पौलुस भी पीछे हटनेवालों में से नहीं है, वह यरूशलेम जाकर ही रहेगा। (इब्रा. 12:2) इसका मतलब यह नहीं है कि पौलुस को मरने का शौक था। लेकिन मसीह यीशु की खातिर वह मौत को भी गले लगाने को तैयार था और इसे बड़े सम्मान की बात समझता था।

18 अब भाई क्या करते हैं? चंद शब्दों में कहें तो वे पौलुस के फैसले का आदर करते हैं। आयत बताती है, “जब वह नहीं माना तो हम यह कहकर चुप हो गए, ‘यहोवा की मरज़ी पूरी हो।’” (प्रेषि. 21:14) भाइयों ने पौलुस को रोकने की कोशिश ज़रूर की मगर उन्होंने उसके साथ ज़बरदस्ती नहीं की। हालाँकि उनके लिए पौलुस की बात मानना मुश्‍किल है फिर भी वे उसका फैसला मान लेते हैं। वे इस बात को समझ जाते हैं कि यहोवा की यही मरज़ी है। पौलुस ने ऐसा रास्ता चुना है जिसका अंजाम मौत है। इसलिए अगर भाई-बहन पौलुस का इरादा कमज़ोर नहीं करेंगे, तो उसके लिए अपने फैसले पर डटे रहना आसान होगा।

19. पौलुस के साथ जो हुआ उससे हमें क्या ज़रूरी सीख मिलती है?

19 इस घटना से हमें एक ज़रूरी सीख मिलती है: हमें कभी-भी उन लोगों का इरादा कमज़ोर नहीं करना चाहिए जो परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए त्याग करते हैं। हम यह सीख ज़िंदगी और मौत के मामलों में ही नहीं बल्कि और भी कई मामलों में लागू कर सकते हैं। ज़रा उन माता-पिताओं के बारे में सोचिए जिनके बच्चे यहोवा की सेवा करने के लिए घर से दूर जाते हैं। अपने बच्चों से बिछड़ना उन माँ-बाप के लिए आसान नहीं होता, फिर भी वे ऐसा कुछ नहीं करते या कहते जिससे उनके बच्चों का इरादा कमज़ोर हो जाए। इंग्लैंड में रहनेवाली बहन फिलिस बताती है कि जब उसकी इकलौती बेटी घर छोड़कर, अफ्रीका में मिशनरी सेवा करने जा रही थी, तो उसके दिल पर क्या बीती। फिलिस कहती है, “मैं खुश तो थी कि वह यहोवा की सेवा करने जा रही है लेकिन यह सोचकर दुख भी हो रहा था कि वह मुझसे दूर जा रही है। मैंने इस बारे में बहुत प्रार्थना की ताकि मैं सही नज़रिया रख पाऊँ। मैंने उसका मन बदलने की कोशिश नहीं की, आखिर यह उसका अपना फैसला था। और मैंने ही तो उसे हमेशा यह सिखाया था कि वह राज के कामों को ज़िंदगी में पहली जगह दे। आज उसे दूसरे देशों में सेवा करते 30 साल हो गए हैं। मैं हर दिन यहोवा का धन्यवाद करती हूँ कि मेरी बेटी आज तक उसकी सेवा कर रही है।” ऐसे और भी कई भाई-बहन हैं जिन्होंने यहोवा की सेवा में बड़े-बड़े त्याग किए हैं। आइए हम उनका हौसला बढ़ाते रहें ताकि वे यहोवा की सेवा में लगे रहें!

हमें उन भाई-बहनों का हौसला बढ़ाना चाहिए जो यहोवा की सेवा करने के लिए त्याग करते हैं

“भाइयों ने खुशी-खुशी हमारा स्वागत किया” (प्रेषि. 21:15-17)

20, 21. क्या दिखाता है कि पौलुस हमेशा अपने भाइयों के साथ वक्‍त बिताना चाहता था? ऐसा करने का क्या फायदा हुआ?

20 आपको याद होगा कि पौलुस और उसके साथी अपने सफर में जहाँ कहीं रुके, वहाँ उन्होंने मसीही भाई-बहनों को ढूँढ़ा और उनके साथ वक्‍त बिताया। जैसे, सोर में वे भाइयों के यहाँ सात दिन रुके, पतुलि-मयिस में भाई-बहनों के साथ एक दिन बिताया और फिर कैसरिया में फिलिप्पुस के घर कुछ दिन ठहरे। अब पौलुस यरूशलेम जाने की तैयारी करता है। कैसरिया के कुछ भाई भी उसके साथ जाते हैं। पौलुस को इन भाइयों का साथ पाकर ज़रूर हिम्मत मिली होगी। यरूशलेम पहुँचने पर वे मनासोन के घर ठहरते हैं, जो शुरू के चेलों में से एक था। इस बारे में लूका लिखता है, “जब हम यरूशलेम पहुँचे, तो भाइयों ने खुशी-खुशी हमारा स्वागत किया।”​—प्रेषि. 21:17.

21 इस पूरे वाकये से साफ पता चलता है कि पौलुस हमेशा अपने भाई-बहनों के साथ वक्‍त बिताना चाहता था। उसे भाई-बहनों की संगति से बहुत हौसला मिला, जैसे आज हमें भी मिलता है। यही नहीं, पौलुस को आगे चलकर उन खूँखार दुश्‍मनों का सामना करने की भी हिम्मत मिली, जो हाथ धोकर उसकी जान के पीछे पड़ गए थे।