अध्याय 20
विरोध के बावजूद “यहोवा का वचन फैलता गया”
खुशखबरी फैलाने में पौलुस और अपुल्लोस दोनों ने मेहनत की
प्रेषितों 18:23–19:41 पर आधारित
1, 2. (क) इफिसुस में पौलुस और उसके साथियों को किस खतरे का सामना करना पड़ता है? (ख) इस अध्याय में हम किन बातों पर गौर करेंगे?
इफिसुस की सड़कों पर लोगों की भीड़ जमा हो रही है। वे ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे हैं, इधर-उधर भाग रहे हैं। चारों तरफ हुल्लड़ मचा हुआ है। गुस्से से पागल भीड़ ने दो आदमियों को पकड़ लिया है और उन्हें घसीटकर कहीं ले जा रही है। ये आदमी पौलुस के साथी हैं। भीड़ शहर की मुख्य सड़क पर पहुँचती है और जैसे-जैसे यह दुकानों के सामने से निकलती है, और भी लोग इसमें जुड़ते जाते हैं। देखते-ही-देखते पूरी सड़क सुनसान हो जाती है। लोगों की भीड़ धड़धड़ाते हुए शहर की रंगशाला में घुस जाती है, जिसमें 25,000 दर्शक समा सकते हैं। ताज्जुब की बात है कि आधे-से-ज़्यादा लोग जानते भी नहीं कि वे वहाँ क्यों जमा हुए हैं। बस उन्होंने सुना है कि उनकी महान देवी अरतिमिस और उसके मंदिर को खतरा है। इसलिए वे चीख-चीखकर नारा लगा रहे हैं, “इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!”—प्रेषि. 19:34.
2 यहाँ शैतान एक बार फिर अपनी पुरानी चाल चलता है। वह भीड़ को भड़काकर खुशखबरी सुनाने का काम रोकने की कोशिश करता है। बेशक, यह शैतान की कई चालों में से सिर्फ एक है। इस अध्याय में हम देखेंगे कि शैतान पहली सदी में प्रचार काम को रोकने और मसीहियों की एकता तोड़ने के लिए कौन-सी चालें चलता है। हम गौर करेंगे कि शैतान की सारी चालें कैसे नाकाम होती हैं और किस तरह ‘बड़े शक्तिशाली तरीके से यहोवा का वचन फैलता जाता है और उसकी जीत होती है।’ (प्रेषि. 19:20) पहली सदी के मसीही यह सब कैसे कर पाए? यहोवा की मदद से। आज यहोवा हमारी भी मदद करता है, लेकिन उन मसीहियों की तरह हमें भी कुछ करना होगा। हमें पवित्र शक्ति की मदद से ऐसे गुण बढ़ाने होंगे, जो प्रचार करते रहने के लिए ज़रूरी हैं। मगर आइए सबसे पहले, हम अपुल्लोस नाम के एक मसीही पर गौर करें और देखें कि हम उससे क्या सीख सकते हैं।
उसे “शास्त्र का अच्छा ज्ञान” है (प्रेषि. 18:24-28)
3, 4. अपुल्लोस की बातें सुनकर अक्विला और प्रिस्किल्ला क्या समझ जाते हैं? वे उसकी कैसे मदद करते हैं?
3 पौलुस अपने तीसरे मिशनरी दौरे पर इफिसुस की तरफ बढ़ रहा है, मगर इससे पहले अपुल्लोस नाम का एक यहूदी उस शहर में आता है। वह मिस्र के मशहूर शहर सिकंदरिया से है। अपुल्लोस में कई खूबियाँ हैं। वह बात करने में माहिर है और बढ़िया भाषण देता है। उसे “शास्त्र का अच्छा ज्ञान” है। इतना ही नहीं, वह “पवित्र शक्ति से भरपूर” है। वह इफिसुस के सभा-घर में जाकर पूरे जोश के साथ और निडर होकर यहूदियों को प्रचार करता है।—प्रेषि. 18:24, 25.
4 सभा-घर में अक्विला और प्रिस्किल्ला भी मौजूद होते हैं। वे अपुल्लोस को ‘यीशु के बारे में सही-सही बातें सिखाते’ देखकर बहुत खुश होते हैं। मगर वे तुरंत समझ जाते हैं कि अपुल्लोस कुछ ज़रूरी बातों से अनजान है। वह “सिर्फ उस बपतिस्मे के बारे में जानता [है] जिसका यूहन्ना ने प्रचार किया था।” अक्विला और प्रिस्किल्ला सोच सकते थे कि अपुल्लोस तो बोलने में माहिर है और बहुत पढ़ा-लिखा है, भला हम तंबू बनानेवाले मामूली लोग उसे क्या समझाएँगे! लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं सोचा। इसके बजाय, ‘वे उसे अपने साथ ले जाते हैं और उसे परमेश्वर की राह के बारे में सही जानकारी देते हैं और अच्छी तरह समझाते हैं।’ (प्रेषि. 18:25, 26) और अपुल्लोस कैसा रवैया दिखाता है? आगे के ब्यौरे से पता चलता है कि वह एक ऐसा गुण दिखाता है जो हर मसीही में होना चाहिए। वह है नम्रता।
5, 6. अपुल्लोस किस वजह से यहोवा की सेवा और भी अच्छे-से कर पाया? हम उससे क्या सीख सकते हैं?
5 अपुल्लोस ने अक्विला और प्रिस्किल्ला की मदद कबूल की, इस वजह से वह यहोवा की सेवा और भी अच्छे-से कर पाया। कुछ समय बाद वह अखाया प्रांत जाता है, जहाँ वह भाई-बहनों की “बहुत मदद” करता है। यही नहीं, वह वहाँ के यहूदियों को भी ज़बरदस्त गवाही देता है जो यह दावा करते थे कि यीशु वादा किया गया मसीहा नहीं है। अपुल्लोस के बारे में लूका लिखता है, ‘उसने बड़े दमदार तरीके से यहूदियों को गलत साबित किया और शास्त्र से साफ-साफ दिखाया कि यीशु ही मसीह है।’ (प्रेषि. 18:27, 28) वाकई, अपुल्लोस मसीही मंडलियों के लिए एक आशीष साबित होता है! उसकी वजह से कई लोगों ने “यहोवा का वचन” सुना। अपुल्लोस से हम क्या सीख सकते हैं?
6 मसीहियों में नम्रता का गुण होना बहुत ज़रूरी है। हम सबके पास अलग-अलग काबिलीयतें, हुनर या तजुरबा होता है। लेकिन इनकी वजह से हम घमंड करने लग सकते हैं। और घमंड काबिल-से-काबिल व्यक्ति को यहोवा की नज़र में बेकार बना सकता है। (1 कुरिं. 4:7; याकू. 4:6) अगर हम सच में नम्र होंगे, तो हम दूसरों को खुद से बेहतर समझेंगे। (फिलि. 2:3) जब दूसरे हमारी गलती बताते हैं तो हम बुरा नहीं मानेंगे या जब कोई हमें कुछ सिखाता है तो हम उससे सीखेंगे। अगर यहोवा अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए संगठन को कुछ ऐसे निर्देश देता है जो हमारी सोच से अलग हैं, तो हम अड़े नहीं रहेंगे बल्कि अपनी सोच बदलेंगे। जब तक हम नम्र रहेंगे, तब तक यहोवा और यीशु हमें अपनी सेवा के योग्य समझेंगे।—लूका 1:51, 52.
7. नम्रता के मामले में पौलुस और अपुल्लोस ने क्या मिसाल रखी?
7 नम्र होने का एक और फायदा है। नम्र लोग एक-दूसरे से जलते नहीं हैं। शैतान तो चाहता था कि पहली सदी के मसीहियों के बीच फूट पड़ जाए। ज़रा अपुल्लोस और पौलुस के बारे में सोचिए। वे दोनों ही बहुत काबिल शिक्षक थे। अगर वे एक-दूसरे से जलने लगते और मंडली में खुद को बड़ा दिखाने की कोशिश करते, तो यह देखकर शैतान को बहुत खुशी होती। वे ऐसा कर भी सकते थे क्योंकि कुरिंथ में कुछ मसीही कह रहे थे, “मैं पौलुस का चेला हूँ,” तो कुछ कह रहे थे, “मैं अपुल्लोस का चेला हूँ।” क्या पौलुस और अपुल्लोस ने ऐसी गलत सोच को बढ़ावा दिया? बिलकुल नहीं। इसके बजाय, पौलुस ने नम्रता से कबूल किया कि खुशखबरी फैलाने में अपुल्लोस ने भी बहुत मेहनत की है। साथ ही उसने अपुल्लोस को और भी ज़िम्मेदारियाँ दीं। अपुल्लोस ने भी पौलुस के निर्देशों को माना। (1 कुरिं. 1:10-12; 3:6, 9; तीतु. 3:12, 13) पौलुस और अपुल्लोस दोनों नम्र थे और उन्होंने साथ मिलकर काम किया। वे हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल हैं!
पौलुस ‘परमेश्वर के राज के बारे में दलीलें देकर लोगों को कायल’ करता है (प्रेषि. 18:23; 19:1-10)
8. पौलुस किस रास्ते से इफिसुस आता है? पौलुस इतना लंबा और मुश्किल रास्ता क्यों चुनता है?
8 पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों से वादा किया था कि वह दोबारा उनसे मिलने आएगा और वह अपना वादा निभाता है। a (प्रेषि. 18:20, 21) लेकिन गौर कीजिए कि वह किस रास्ते से इफिसुस आता है। हमने पिछली बार जब पौलुस का ज़िक्र किया था, तो वह सीरिया के अंताकिया में था। वह चाहता तो पास के सिलूकिया बंदरगाह जा सकता था और वहाँ से जहाज़ पर चढ़कर सीधा इफिसुस आ सकता था। लेकिन वह ऐसा नहीं करता। वह “समुद्री तट से दूर, अंदर के इलाकों का दौरा” करते हुए इफिसुस आता है। प्रेषितों 18:23 और 19:1 को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि पौलुस ने शायद 1,600 किलोमीटर की दूरी तय की! पौलुस इतना लंबा और मुश्किल रास्ता क्यों चुनता है? क्योंकि वह रास्ते में अलग-अलग मंडलियों में जाकर ‘सभी चेलों की हिम्मत बँधाना’ चाहता है। (प्रेषि. 18:23) पौलुस जानता है कि पिछले दो मिशनरी दौरों की तरह, यह तीसरा दौरा भी आसान नहीं होगा। मगर वह यह भी जानता है कि उसकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। आज सर्किट निगरान और उनकी पत्नियाँ भी इसी तरह कड़ी मेहनत करते हैं। हम उनके त्याग और उनके प्यार की दिल से कदर करते हैं!
9. कुछ चेलों को क्यों दोबारा बपतिस्मा लेना पड़ता है? उन लोगों से हम क्या सीखते हैं?
9 जब पौलुस इफिसुस पहुँचता है तो वह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के कुछ चेलों से मिलता है। ये करीब 12 आदमी थे। उन्होंने वह बपतिस्मा लिया था, जिसका प्रचार यूहन्ना करता था। मगर अब वह बपतिस्मा कोई मायने नहीं रखता। यही नहीं, उन्होंने पवित्र शक्ति के बारे में कुछ नहीं सुना था। इसलिए पौलुस उन्हें समझाता है कि यीशु के नाम से बपतिस्मा लेना क्यों ज़रूरी है। ये 12 आदमी भी अपुल्लोस की तरह नम्र हैं और ध्यान से पौलुस की बातें सुनते हैं। जब वे यीशु के नाम से बपतिस्मा लेते हैं तो उन्हें पवित्र शक्ति और इसके कुछ वरदान भी मिलते हैं। उन लोगों से हम क्या सीखते हैं? यही कि जब-जब यहोवा का संगठन कुछ नयी हिदायतें देता है, तो उन्हें तुरंत मानने से आशीषें मिलती हैं।—प्रेषि. 19:1-7.
10. पौलुस क्यों सभा-घर छोड़कर सभा-भवन में सिखाने लगता है? हम पौलुस से क्या सीख सकते हैं?
10 फिर कुछ ही समय बाद एक और घटना घटती है। पौलुस इफिसुस के सभा-घर में तीन महीने तक पूरे जोश से प्रचार करता है। वह ‘परमेश्वर के राज के बारे में दलीलें देकर लोगों को कायल’ करता है। मगर कुछ लोग उसकी सुनने से इनकार कर देते हैं और कड़ा विरोध करते हैं। वे “‘प्रभु की राह’ को बदनाम करने” लगते हैं। पौलुस उन लोगों के साथ अपना वक्त बरबाद करने के बजाय सभा-घर से निकल जाता है और एक स्कूल के सभा-भवन में सिखाने लगता है। (प्रेषि. 19:8, 9) अब जो लोग परमेश्वर के राज के बारे में सीखना चाहते हैं उन्हें स्कूल के सभा-भवन में आना होगा। हम पौलुस से क्या सीख सकते हैं? अगर हम किसी को प्रचार करते हैं और वह हमारी सुनना नहीं चाहता या सिर्फ बहस करना चाहता है, तो हमें बातचीत वहीं रोक देनी चाहिए। और उन लोगों के पास जाना चाहिए जो सच्चाई के प्यासे हैं। अब भी ऐसे कई नेकदिल लोग हैं जो हमारा संदेश सुनना चाहते हैं।
11, 12. (क) मेहनत करने और हालात के मुताबिक खुद को ढालने में पौलुस ने कैसे एक अच्छी मिसाल रखी? (ख) आज यहोवा के साक्षी प्रचार में कैसे पौलुस की तरह बनने की कोशिश करते हैं?
11 पौलुस शायद उस सभा-भवन में रोज़ सुबह करीब 11 बजे से लेकर शाम के करीब 4 बजे तक सिखाता है। (प्रेषि. 19:9) यह दिन का ऐसा वक्त था जब बहुत गरमी होती थी और लोग अपना काम-धंधा बंद करके, खा-पीकर सुस्ताते थे। लेकिन पौलुस ऐसी सड़ी गरमी में भी मेहनत करने से पीछे नहीं हटता। अगर पौलुस दो साल तक रोज़ लोगों को सिखाता रहा तो इसका मतलब उसने 3,000 से ज़्यादा घंटे सेवा में बिताए। b पौलुस ने बहुत मेहनत की और लोगों के हालात के मुताबिक खुद को ढाला। वह उस समय पर और उस जगह प्रचार करता था, जहाँ ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग उसकी सुनते। यह एक और वजह थी कि यहोवा का वचन फैलता गया और कई लोगों ने खुशखबरी सुनी। जैसा बाइबल बताती है, “एशिया प्रांत में रहनेवाले सब लोगों ने, चाहे वे यहूदी हों या यूनानी, प्रभु का वचन सुना।” (प्रेषि. 19:10) खुशखबरी की अच्छी तरह गवाही देने में पौलुस की मिसाल सचमुच काबिले-तारीफ है!
12 आज हम यहोवा के साक्षी भी प्रचार में बहुत मेहनत करते हैं और लोगों के हालात के मुताबिक खुद को ढालते हैं। हम ऐसे वक्त पर और ऐसी जगह जाकर प्रचार करते हैं जहाँ ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग मिलते हैं। हम सड़कों पर, बाज़ारों में, जहाँ कहीं लोग मिलते हैं वहाँ गवाही देते हैं। हम फोन या चिट्ठी के ज़रिए भी लोगों को गवाही देते हैं। और हम घर-घर का प्रचार ऐसे समय पर करते हैं जब लोग घर पर मिलते हैं।
प्रेषि. 19:11-22)
दुष्ट स्वर्गदूतों के बावजूद “यहोवा का वचन फैलता गया” (13, 14. (क) यहोवा की मदद से पौलुस क्या कर पाता है? (ख) स्कीवा के बेटे क्या गलती करते हैं? आज ईसाईजगत के कई लोग कैसे वही गलती दोहराते हैं?
13 प्रेषितों की किताब आगे बताती है कि यहोवा पौलुस से “बड़े-बड़े शक्तिशाली काम” करवाता है। यहाँ तक कि उसके कपड़े और अंगोछे को छूकर बीमार लोग ठीक हो जाते हैं और जिन लोगों में दुष्ट स्वर्गदूत समाए हुए थे वे भी बाहर निकल जाते हैं। c (प्रेषि. 19:11, 12) शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों पर शानदार जीत देखकर कुछ लोगों पर अच्छा असर होता है। लेकिन वहाँ कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके इरादे नेक नहीं हैं।
14 ‘कुछ यहूदी जो जगह-जगह घूमकर दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला करते थे,’ वे भी पौलुस के इस चमत्कार की नकल करना चाहते हैं। वे यीशु और पौलुस का नाम लेकर, लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालने की कोशिश करते हैं। लूका बताता है कि स्कीवा नाम के एक आदमी के सात बेटे थे और वे याजक परिवार से थे। जब ये लोग एक आदमी में समाए दुष्ट स्वर्गदूत को निकालने की कोशिश करते हैं, तो दुष्ट स्वर्गदूत उनसे कहता है, “मैं यीशु को भी जानता हूँ और पौलुस को भी मगर तुम कौन हो?” यह कहकर वह आदमी एक जंगली जानवर की तरह उन धोखेबाज़ों पर झपट पड़ता है और उन सातों का ऐसा बुरा हाल कर देता है कि वे नंगे और ज़ख्मी हालत में भाग खड़े होते हैं। (प्रेषि. 19:13-16) इस घटना से साफ ज़ाहिर हो जाता है कि पौलुस को ही यहोवा की शक्ति मिली थी, उन धोखेबाज़ों को नहीं। आज ईसाईजगत में कई लोग सोचते हैं कि बार-बार यीशु का नाम लेना या “ईसाई” कहलाना काफी है, इसी से परमेश्वर खुश हो जाएगा। मगर उनकी यह सोच गलत है। यीशु ने साफ बताया था कि पिता सिर्फ उन्हीं से खुश होता है जो सही मायनों में उसकी मरज़ी पूरी करते हैं। और वह उन्हें एक अच्छा भविष्य देने का वादा करता है।—मत्ती 7:21-23.
15. इफिसुस के मसीहियों की तरह हमें क्या करना चाहिए?
15 स्कीवा के बेटों के साथ जो हुआ, उस बारे में जब लोगों को पता चलता है तो कई लोग मसीही बन जाते हैं और जादू-टोने के काम छोड़ देते हैं। दरअसल, इफिसुस के लोग जादू-टोने में बहुत विश्वास करते थे। जैसे, वे तावीज़ पहनते थे, मंत्र फूँकते थे और अपने घरों में जादू-टोने की किताबें रखते थे। मगर अब बहुत-से लोग अपनी जादूगरी की किताबें लाकर सबके सामने उन्हें जला देते हैं, इसके बावजूद कि वे बहुत महँगी हैं। आज के हिसाब से देखें तो उन किताबों की कीमत लाखों में होगी। d लूका बताता है, “इस तरह बड़े शक्तिशाली तरीके से यहोवा का वचन फैलता गया और उसकी जीत होती गयी।” (प्रेषि. 19:17-20) झूठे धर्म और दुष्ट स्वर्गदूतों पर यहोवा और उसके सच्चे सेवकों की क्या ही बढ़िया जीत होती है! इफिसुस के उन मसीहियों ने हमारे लिए एक बेहतरीन मिसाल रखी है। आज हम भी ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ हर तरफ लोग जादू-टोने के काम करते हैं। अगर हमें पता चले कि हमारे पास कोई ऐसी चीज़ है जो जादू-टोने से जुड़ी है, तो हमें फौरन वह चीज़ नष्ट कर देनी चाहिए जैसे इफिसुस के मसीहियों ने किया था। आइए हम ऐसे घिनौने कामों से दूर रहें, फिर चाहे हमें इसके लिए नुकसान ही क्यों ना उठाना पड़े।
“बड़ा हंगामा मचा” (प्रेषि. 19:23-41)
16, 17. (क) देमेत्रियुस कैसे इफिसुस में एक हंगामा शुरू करता है? (ख) इफिसुस के लोग कैसे दिखाते हैं कि वे बहुत कट्टर हैं और कुछ भी सुनने-समझने को तैयार नहीं हैं?
16 अब ध्यान दीजिए कि शैतान कैसे भीड़ को भड़काकर प्रचार काम रोकने की कोशिश करता है। लूका लिखता है, “इफिसुस में ‘प्रभु की राह’ को लेकर बड़ा हंगामा मचा।” लूका यहाँ बढ़ा-चढ़ाकर बात नहीं कर रहा था, हालात सचमुच खतरनाक थे। e (प्रेषि. 19:23) देमेत्रियुस नाम का एक आदमी यह हंगामा शुरू करता है। वह एक सुनार है और चाँदी के छोटे-छोटे मंदिर बनाता है। वह अपने साथी कारीगरों को इकट्ठा करता है और उन्हें याद दिलाता है कि मूर्तियाँ बेचने से उनकी कितनी कमाई हो रही है। फिर वह कहता है, ‘पौलुस हमारा धंधा चौपट कर रहा है। उसका संदेश सुनकर लोग मसीही बन रहे हैं और मूरतों को पूजना छोड़ रहे हैं। अगर हमने पौलुस को नहीं रोका, तो जल्द ही हम सड़क पर आ जाएँगे।’ देमेत्रियुस जानता है कि उसके सुननेवालों को अपने देश और अपने शहर पर बहुत घमंड है। इसलिए वह उन्हें और भड़काता है। वह कहता है कि अगर पौलुस का प्रचार-प्रसार यूँ ही चलता रहा, तो उनकी महान देवी अरतिमिस की शान खत्म हो जाएगी और उसका मंदिर, जो दुनिया-भर में मशहूर है, “तुच्छ समझा जाएगा।”—प्रेषि. 19:24-27.
17 यह सुनकर सभी कारीगर आग-बबूला हो उठते हैं और चिल्लाने लगते हैं, “इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!” और भी कट्टरपंथी लोग इस भीड़ में जुड़ते चले जाते हैं और शहर में बड़ा हुल्लड़ मच जाता है, जैसा हमने इस अध्याय की शुरूआत में पढ़ा था। f जब भीड़ रंगशाला में घुस जाती है, तो पौलुस उन्हें समझाने के लिए अंदर जाना चाहता है ताकि अपने साथियों को बचा सके। पौलुस को हमेशा खुद से ज़्यादा दूसरों की परवाह थी, इसलिए वह खतरा मोल लेने के लिए तैयार है। मगर चेले उसे अंदर जाने नहीं देते। इसी दौरान भीड़ में से सिकंदर नाम का एक आदमी सामने आता है। वह एक यहूदी है, इसलिए शायद वह भीड़ को यह समझाने के लिए बेताब हो रहा है कि यहूदियों और मसीहियों के बीच फर्क है। लेकिन भीड़ उसे बोलने का मौका ही नहीं देती, वे कुछ भी सुनने-समझने को तैयार नहीं हैं। उलटा जब उन्हें पता चलता है कि वह एक यहूदी है तो वे एक-साथ चिल्ला उठते हैं, “इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!” वे करीब दो घंटों तक पागलों की तरह यही चिल्लाते रहते हैं। आज इतने सालों बाद भी लोग नहीं बदले। कुछ लोग अपने धार्मिक विश्वास को लेकर इतने कट्टर होते हैं कि वे कुछ भी सुनने-समझने को तैयार नहीं होते।—प्रेषि. 19:28-34.
18, 19. (क) इफिसुस में नगर-प्रमुख भीड़ को कैसे शांत करता है? (ख) सरकारी अधिकारियों ने कैसे यहोवा के लोगों की मदद की है? अगर हम चाहते हैं कि हमें ऐसी मदद मिले, तो हम अपनी तरफ से क्या कर सकते हैं?
18 आखिर में नगर-प्रमुख भीड़ को शांत करता है। वह एक समझदार इंसान है जो ठंडे दिमाग से काम लेता है। वह भीड़ को यकीन दिलाता है कि इन मसीहियों से उनके मंदिर और उनकी देवी की शान को कोई खतरा नहीं है। वह यह भी कहता है कि पौलुस और उसके साथियों ने अरतिमिस के मंदिर के खिलाफ कोई अपराध नहीं किया है। फिर भी अगर उन्हें कोई शिकायत है तो ऐसे मामलों को निपटाने का एक कानूनी तरीका होता है। फिर वह उन्हें खबरदार करता है कि इस तरह भीड़ को इकट्ठा करना और हुल्लड़ मचाना गैर-कानूनी है, जिसके लिए रोमी सरकार उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई कर सकती है। इसके बाद वह भीड़ को वहाँ से भेज देता है। जितनी तेज़ी से हुल्लड़ मचा था, उतनी ही तेज़ी से वह थम जाता है। यह इसलिए हो पाया क्योंकि नगर-प्रमुख ने बहुत समझदारी से बात की।—प्रेषि. 19:35-41.
19 यह ना तो पहली, ना ही आखिरी घटना थी जब कोई समझदार अधिकारी, यीशु के चेलों को बचाने के लिए आगे आया। प्रेषित यूहन्ना ने आखिरी दिनों के बारे में एक दर्शन देखा जिसमें पृथ्वी, नदी को निगल लेती है। यहाँ पृथ्वी का मतलब है, दुनिया के कुछ अधिकारी और नदी का मतलब है, परमेश्वर के लोगों पर होनेवाले ज़ुल्म। तो जब शैतान, यीशु के चेलों पर ज़ुल्मों की बाढ़ लाता है तो कुछ अधिकारी उनकी मदद के लिए आगे आते हैं। (प्रका. 12:15, 16) यह बात आज हमारे दिनों में भी सच साबित हुई है। कई बार यहोवा के साक्षियों के मुकदमों में जजों ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया है और सभाएँ रखने और प्रचार करने के उनके अधिकारों की रक्षा की है। बेशक, हमारे अच्छे चालचलन का भी इसमें हाथ होता है। पौलुस ने अपने अच्छे चालचलन से इफिसुस के कुछ सरकारी अधिकारियों का दिल जीत लिया था। इसलिए वे उसकी इज़्ज़त करते थे और उसका भला चाहते थे। (प्रेषि. 19:31) आइए हम हमेशा ईमानदार रहें और सबके साथ आदर से पेश आएँ ताकि लोग हमारे बारे में अच्छी राय कायम करें। हम नहीं जानते कि हमारा बढ़िया चालचलन कब-कहाँ अच्छे नतीजे ला सकता है!
20. (क) यहोवा के वचन की हमेशा जीत होती है, इस बारे में सोचकर आप कैसा महसूस करते हैं? (ख) खुशखबरी की खातिर लड़ी जानेवाली लड़ाइयों में योगदान देने के लिए आपने क्या करने की ठानी है?
20 वाकई पहली सदी में जिस तरह “यहोवा का वचन फैलता गया और उसकी जीत होती गयी,” उसके बारे में सोचकर हम रोमांचित हो उठते हैं। आज भी जब यहोवा हमें कानूनी लड़ाइयों में जीत दिलाता है तो यह देखकर हम खुशी से फूले नहीं समाते। क्या आप भी चाहते हैं कि इन लड़ाइयों में हमें जो जीत मिल रही है उसमें आपका भी कुछ योगदान हो? अगर हाँ, तो इस अध्याय में हमने जिन अच्छी मिसालों पर गौर किया, उनसे सीखिए। नम्र रहिए, यहोवा के संगठन से मिलनेवाले निर्देशों को तुरंत मानिए, मेहनत करते रहिए और जादू-टोने से दूर रहिए। साथ ही ईमानदार रहिए और दूसरों के साथ आदर से पेश आइए ताकि आपके चालचलन से दूसरों को अच्छी गवाही मिल सके।
a यह बक्स देखें, “ एशिया की राजधानी, इफिसुस।”
b इफिसुस में रहते वक्त पौलुस ने 1 कुरिंथियों की किताब भी लिखी थी।
c यहाँ कपड़े का मतलब रुमाल हो सकता है जो पौलुस अपने माथे पर बाँधता था ताकि पसीना बहकर आँखों में ना आए। आयत में अंगोछे का भी ज़िक्र किया गया है। इसके लिए जो यूनानी शब्द इस्तेमाल हुआ है उसका मतलब ऐसा कपड़ा हो सकता है जो एक व्यक्ति काम करते वक्त अपनी कमर पर बाँधता था। ऐसा मालूम होता है कि इफिसुस में पौलुस अपने खाली समय में, शायद सुबह जल्दी उठकर तंबू बनाने का काम भी करता था।—प्रेषि. 20:34, 35.
d लूका बताता है कि उन किताबों की कीमत 50,000 चाँदी के टुकड़े थी। अगर इस आयत में एक टुकड़े का मतलब एक दीनार है, तो 50,000 चाँदी के टुकड़े कमाने के लिए एक व्यक्ति को 50,000 दिनों तक काम करना पड़ता। यानी करीब 137 साल और वह भी हफ्ते के सातों दिन।
e कुछ लोगों का मानना है कि जब पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को लिखा कि “हमें तो लगा कि हम शायद ज़िंदा ही नहीं बचेंगे,” तो वह इसी घटना की बात कर रहा था। (2 कुरिं. 1:8) लेकिन हो सकता है कि वह किसी और घटना की बात कर रहा हो जो इससे भी खतरनाक थी। क्योंकि उसने 1 कुरिंथियों 15:32 में लिखा कि ‘मैं इफिसुस में जंगली जानवरों से लड़ा था।’ इसका मतलब पौलुस या तो अखाड़े में सचमुच के जंगली जानवरों से लड़ा या फिर उसका सामना जंगली जानवर जैसे खूँखार विरोधियों से हुआ।
f ऐसे कारीगरों के दल बड़े खतरनाक होते थे। इस घटना के करीब 100 साल बाद इफिसुस में नानबाइयों (रोटी बनानेवालों) के दल ने कुछ इसी तरह का हुल्लड़ मचाया था।