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यहोवा के गवाह—शल्यक/नीति-विषयक चुनौती

यहोवा के गवाह—शल्यक/नीति-विषयक चुनौती

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यहोवा के गवाहशल्यक/नीति-विषयक चुनौती

द जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (JAMA) नवम्बर २७, १९८१, खण्ड २४६, क्र. २१, पृष्ठ २४७१, २४७२ में से लेकर अमेरिकन मैडिकल एसोसिएशन का अनुज्ञा प्राप्ती के बाद दुबारा छापा गया। प्रकाशनाधिकार १९८१, अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन.

यहोवा के गवाहों का उपचार करने में चिकित्सकों को एक विशेष चुनौती का सामना करना पड़ता है। इस विश्‍वास वाले सदस्यों में समजातीय या स्वयं अपना सम्पूर्ण रक्‍त (होल ब्लड), समुहित RBC [लाल रक्‍त कोशिकाएँ], WBC [श्‍वोत रक्‍त कोशिकाएँ] या प्लेटलेट (बिम्बाणु) को शरीर में ग्रहण करने के विरूद्ध दृढ़ धार्मिक विश्‍वास है। अनेक व्यक्‍ति यदि शरीर के बाहर के परिसंचरण में कोई रुकावट न आए तो [बिना रक्‍त डाले गए] हृदय-फेफडा यन्त्र (हार्ट-लंग मशीन), डाइएलिसिस या इनके समान उपकरणों के प्रयोग की अनुमति देते है। चिकित्सीय कर्मचारियों को दायित्व के विषय में चिन्ता नहीं करनी चाहिये, क्योंकि गवाह अपने सूचित लहू अस्वीकृति से सम्बन्धित उचित कानूनी कदम उठाएँगे जिससे दायित्व से मुक्‍ति मिलेगी। वह अरक्‍तीय प्रतिस्थापन द्रव स्वीकार करते हैं। इनसे तथा अन्य अति सावधानीपूर्वक किए गए उपायों से चिकित्सक, वयस्क या अवयस्क गवाह रोगियों पर हर प्रकार की प्रधान शल्यक्रियाएँ कर रहे हैं। इस तरह से ऐसे रागियों के लिये कार्यप्रणाली का एक ऐसा स्तर विकसित हुआ है जो “सम्पूर्ण व्यक्‍ति” का उपचार के सिद्धान्त के अनुसार है। (JAMA १९८१;२४६:२४७१-२४७२)

चिकित्सक एक बढ़ती हुई चुनौती का सामना कर रहे हैं, जो एक प्रमुख स्वास्थ्य विषय है। अमरीका में लगभग पाँच लाख यहोवा के गवाह हैं जो रक्‍त-आधान, स्वीकार नहीं करते हैं। गवाहों तथा उनके सहयोगियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। हालाँकि पहले, बहुत से चिकित्सक और अस्पताल के अधिकारी रक्‍त-आधान न लेने को एक कानूनी समस्या समझते थे और न्यायालय का प्राधिकरण प्राप्त करके, औषधीय रूप से उन्हें आवश्‍यक जान पड़ने वाली प्रक्रिया करते थे, आधुनिक औषधी सम्बन्धी साहित्य यह प्रकट करता है कि इस व्यवहार में एक उल्लेखलीय परिवर्तन आ रहा है। बहुत कम हीमोग्लोबिन स्तरों वाले मरीज़ों के साथ शल्यक अनुभव और अधिक अनुभव के कारण ऐसा हो सकता है और यह सूचित स्वीकृति के कानूनी सिद्धान्त के प्रति जागरूकता बढ़ने को भी प्रदर्शित करता है।

अब, अनेक वयस्क और अवयस्क गवाह की चयनात्मक शल्यक्रिया और मानसिक आघातों का उपचार बिना रक्‍त-आधान के किया जा रहा है। हाल ही में, यहोवा के गवाहों के प्रतिनिधि देश के कुछ प्रमुख चिकित्सा केन्द्रों के शल्यचिकित्सकों और प्रशासी कर्मचारियों से मिले। इन गोष्ठीयों से आपसी समझौते में सुधार हुआ और लहू बचाव, प्रतिरोपण पर प्रश्‍नों को दूर करने एवं चिकित्सीय/कानूनी मुक़ाबला से बचने में सहायता मिली।

उपचार पर गवाह की स्थिति

यहोवा के गवाह औषधीय तथा शल्यक उपचार स्वीकार करते हैं। वास्तव में, उनमें से बहुत चिकित्सक हैं, शल्यचिकित्सक भी है। लेकिन गवाह अत्याधिक धार्मिक लोग हैं जो यह विश्‍वास करते हैं के निम्नलिखित बाइबल पदों के अनुसार उनके लिये रक्‍त-आधान निषिद्ध है: “पर माँस को प्राण समेत—अर्थात लहू—तुम न खाना” (उत्पत्ति ९:३-४); “[तुमने] लहू को उंडेलकर धूलि से ढांप देना चाहिये” (लैव्यव्यवस्था १७:१३-१४); और “व्यभिचार और गला घोंटे हुओं के माँस से और लहू से परे रहे” (प्रेरितों के काम १५:१९-२१).1 *

जबकि यह शास्त्र-पद विशेष औषधीय शब्दों में नहीं कहे गए हैं, लेकिन गवाह यह मानते हैं कि सम्पूर्ण रक्‍त, समुहित लाल कोशिकाएँ (RBC) और प्लाज़्मा, इसके अलावा श्‍वोत रक्‍त कण (WBC) और प्लेटलेट, (बिम्बाणु) का आधान नियमविरुद्ध ठहरता है। फिर भी, ऐल्‌ब्यूमिन, इम्मयून ग्लोब्यूलिन जैसे अवयवों तथा अधिक-रक्‍तस्राव सम्बन्धी निर्मितियों के प्रयोग के लिये, गवाहों की धार्मिक समझ पूर्णतः रोक नहीं लगाती; प्रत्येक गवाह को स्वयं यह फैसला करना है कि उन्हें वह स्वीकार कर सकता है या नहीं।2 *

गवाह यह विश्‍वास करते हैं कि शरीर से बाहर निकाले गए लहू को फेंक देना चाहिये, इसलिये वे अपना ही पूर्व एकत्रित किया गया रक्‍त का आधान स्वीकार नहीं करते हैं। ऑपरेशन के दौरान एकत्रित करने वाले या रक्‍त-तनूकरण के तरीके जो लहू संचयन को शामिल करते हैं, उनके लिये आपत्तिजनक है। फिर भी, बहुत से गवाह डाइएलिसिस (अपोहन) एवं हृदय-फेफड़ा उपकरण (बिना रक्‍त डाले हुए) तथा ऑपरेशन के दौरान किए गए लहू बचाव जिसमें शरीर के बाहर के परिसंचरण में कोई रुकावट न आए जैसे उपायों की अनुमति देते हैं; चिकित्सक को मरीज़ से व्यक्‍तिगत रूप से पूछना चाहिये कि उसका विवेक क्या आज्ञा देता है।2 *

गवाह यह महसूस नहीं करते कि बाइबल अंग प्रतिरोपण के बारे में सीधे रूप से व्याख्या करता है; इसलिये कॉर्निआ (स्वच्छमण्डल), गुरदे या किसी अन्य ऊतक के प्रतिरोपण के विषय में गवाह को व्यक्‍तिगत निर्णय करना चाहिये।

प्रधान शल्यक्रिया सम्भव

यद्यपि, लहू पदार्थों के प्रयोग के विषय में ली गई गवाहों की स्थिति के कारण शल्यचिकित्सक ऐसा महसूस करते हैं कि “डॉक्टर के हाथ बँध गए हैं,” इसलिये बहुत बार इलाज करने से इन्कार कर देते हैं, परन्तु अब बहुत से चिकित्सकों ने इस स्थिति को अपने हुनर को चुनौती देने वाली एक उलझन समझ लिया है। क्योंकि कोलॉइड एवं क्रिस्टलाभ प्रतिस्थापन द्रवों, इलेक्ट्रोकॉटरि (विधृतप्रदाह-यन्त्र), अल्प रक्‍त दाबीय संवेदनाहारी औषध,3 * या अल्प अष्मीय चिकित्सा के लिये गवाह इन्कार नहीं करते हैं, इन उपायों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है। हीटास्टार्च,4 * अधिक मात्रा में अंतःशिरा आइअन डेक्सट्रॅन इंजैक्शन,5 *,6 * एवं “सॉनिक (ध्वनिक) छुरिका”7 * का आधुनिक और भविष्य में प्रयोग आशाजनक है और धार्मिक रूप से आपत्तिजनक भी नहीं है। इसके अतिरिक्‍त, हाल ही में विकसित फ्लोरीन युक्‍त रक्‍त अनुकल्प (फ्लूओसॉल-DA) यदि सफल और प्रभावशाली सिद्ध होगा,8 * तो इसका प्रयोग भी गवाहों के विश्‍वासों के विरूद्ध नहीं होगा।

१९७७ में, गवाहों पर बिना लहू के किए गए ५४२ हृदय-वाहिकामय ऑपरेशनों के विषय में रिपोर्ट देते हुए ऑट्‌ एवं कूली9 * ने कहा कि यह प्रक्रिया “एक स्वीकार्यमय कम जोखिम” से की जा सकती है। हमारे निवेदन के जवाब में, कूली ने १,०२६ ऑपरेशनों का सांख्यिकीय समीक्षा की, जिनमे २२% अवयस्कों पर किए गए थे, और निश्‍चित किया, “यहोवा के गवाह समूह के मरीज़ों में शल्यचिकित्सा का जोखिम अन्य मरीज़ों से प्रर्याप्त अधिक नहीं है।” इसी प्रकार से, माईकल ई. डीबेकी, MD, ने बताया “अधिकतर परिस्थितियों (गवाहों से सम्बन्धित), में बिना लहू के ऑपरेशन के जोखिम, उन मरीज़ों से अधिक नहीं है जिन्हें हम रक्‍त-आधान देते हैं” (व्यक्‍तिगत संचारण, मार्च १९८१)। साहित्य में भी सफल मूत्रविज्ञान10 * सम्बन्धी तथा विकलांग चिकित्सा सम्बन्धी शल्यक्रिया11 * का वर्णन है। जी. डीन मैकइवन, MD, और जे. रिचर्ड बोवेन, MD, लिखते हैं कि, पिछला मेरूदण्ड का समेकन, “२० [गवाह] अवयस्कों पर सफलतापूर्वक किए गए” (अप्रकाशित तथ्य, अगस्त १९८१)। वे आगे लिखते हैं: “रक्‍त-आधान के लिये मना करने के मरीज़ के अधिकार के प्रति, शल्यचिकित्सक को आदर के तत्व-ज्ञान की स्थापना करने की आवश्‍यकता है, परन्तु फिर भी, मरीज़ की सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही, शल्यचिकित्सा करनी चाहिये।

“अभिघात द्वारा अत्याधिक रक्‍तस्राव” वाले कुछ युवा मरीज़ों सहित, अन्य मरीज़ों में हर्ब्समैंन12 * सफलता पाने का वर्णन करते हैं। वह स्वीकार करते हैं कि “जब लहू की आवश्‍यकता का प्रश्‍न आता है तो गवाह एक प्रकार से असुविधा में है। फिर भी यह स्पष्ट है कि हमारे पास लहू प्रतिस्थापन के लिये विकल्प है।” इस बात पर ध्यान देते हुए कि बहुत से शल्यचिकित्सकों ने “कानूनी परिणामों के भय” से गवाहों को रोगियों के रूप में स्वीकारने में रूकावट महसूस की है, वह बताते हैं कि यह एक मान्य चिन्ता नहीं है।

कानूनी चिन्ताएँ एवं अवयस्क

अमेरिकन मेडिकल ऐसोसिएशन कार्ड पर गवाह शीर्घ हस्ताक्षर कर देते हैं जिससे चिकित्सकों और अस्पतालों पर कोई दायित्व13 * न आए, इसके अतिरिक्‍त बहुत से गवाह एक तिथिलिखित, साक्षी हस्ताक्षर द्वारा प्रमाणित मेडिकल अलर्ट कार्ड (चिकित्सीय सतर्क पत्रक) अपने पास रखते हैं जो चिकित्सीय और कानूनी अधिकारियों की सलाह से बनाया गया है। यह दस्तावेज़ मरीज़ (या उसकी सम्पति) के लिये बाध्यकारी है और चिकित्सकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं, क्योंकि न्यायमूर्ति वॉरन बर्गर ने निर्णीत किया कि जहाँ ऐसा परित्याग पत्र पर हस्ताक्षर किया गया हो वहाँ एक भ्रष्ट कार्यवाही, “निराधार प्रतीत होगी।” इसके अलावा, एक “अनिवार्य चिकित्सीय उपचार तथा धार्मिक स्वतंत्रता” के विशलेषण पर टिप्पणी देते हुए पेरिस14 * ने लिखा: “एक टीकाकार ने साहित्य का सर्वेक्षण करने के बाद रिपोर्ट दी, ‘एक असहमत मरीज़ को बलपूर्वक रक्‍त-आधान देने की असमर्थता के कारण, चिकित्सक पर . . . अपराधिक . . . दायित्व होगा, इस कथन के लिये, मुझे कोई भी लिखित प्रमाण नहीं मिला है।’ एक वास्तविक संभावना के बजाय यह जोखिम एक उर्वर कानूनी दिमाग की उपज अधिक मालूम पड़ती है।”

अवयस्कों की देखभाल सबसे बड़ी चिन्ता प्रस्तुत करती है, अधिकतर इसके परिणामस्वरूप माता-पिता के विरूद्ध बाल-उपेक्षा संविधि के अन्तरगत कानूनी कार्यवाही होती है। लेकिन ऐसी कार्यवाहियों पर बहुत से चिकित्सक और न्यायवादी, जो गवाह के मामलों से परिचित है, ने आपत्ति किया है, उन्हें विश्‍वास है कि गवाह माता-पिता अपने बच्चों के लिये उच्च चिकित्सीय देखभाल की खोज करते हैं। अपने पैतृक उत्तरदायित्व से जी चुराने की इच्छा न करते हुए और न ही उसे किसी न्यायाधीश या किसी तीसरे व्यक्‍ति पर डालते हुए गवाह यह आग्रह करते हैं कि परिवार के धार्मिक विश्‍वासों पर ध्यान दिया जाए। केन्‌डियन मेडिकल एसोसिएशन के भूतपूर्व सचिव डॉ. ए. डी. केल्ली ने लिखा15 * कि, “अवयस्कों के माता-पिता और अचेत मरीज़ों के निकटतम सम्बन्धियों को मरीज़ की इच्छा की व्याख्या करने की अधिकार है . . . बच्चे को माता-पिता की अभिरक्षा से हटाने की, रात के २ बजे हो रही एक विवादास्पद न्यायिक सभा, कार्यवाहियों को मैं पसन्द नहीं करता हूँ।”

यह स्वतः सिद्ध है कि अपने बच्चों की देखभाल में माता-पिता अपनी अभिव्यक्‍ति कर सकते हैं, उदाहरण के लिये जब शल्यचिकित्सा, विकिरण या रसायन चिकित्सा के जोखिम-लाभ संभावनाओं का सामना करना पड़ता है। नैतिक कारणों से वे रक्‍त-आधान16 * जोखिम के वाद-विषय से आगे बढ़ जाते हैं, गवाह माता-पिता उन उपचारों की माँग करते हैं जिनपर धार्मिक प्रतिबन्ध नहीं है। यह उस चिकित्सीय सिद्धान्त के अनुरूप है जिसमें “सम्पूर्ण व्यक्‍ति” का उपचार करना है और एक परिवार के मूल विश्‍वासों का उल्लघंन करने वाली आक्रमणकारी प्रक्रिया के संभावित स्थायी मानसिक एवं सामाजिक क्षति को नज़र अंदाज़ नहीं करना है। देश के अधिकतर बड़े कन्द्र जिनको गवाहों के साथ अनुभव प्राप्त हैं, वह ऐसे संस्थानों से रोगियों को स्वीकार कर रहे हैं, जहाँ गवाहों का उपचार करने को मना कर दिया जाता है, इसमें बच्चे भी शामिल है।

चिकित्सक की चुनौती

अपने पास उपलब्ध सभी तकनीकियों का प्रयोग करके जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिये समर्पित चिकित्सक के लिये स्वाभाविक है कि यहोवा के गवाहों का उपचार करना उसे दुविधापूर्ण लगे। गवाहों पर की गई प्रधान शल्यक्रियाओं पर लेखों की एक श्रृखला के लिये संपादकीय प्रस्तावना लिखते हुए हार्वे17 * ने यह माना, “मुझे अपने काम में बाधा डाल सकने वाले विश्‍वासों से झुँझलाहट तो होती है।” परन्तु, उन्होंने आगे कहा, “शायद हम बहुत आसानी से यह भूल जाते हैं कि शल्यक्रिया एक ऐसा हस्त कौशल है जो हरेक की व्यक्‍तिगत तकनीकी पर निर्भर करता है। तकनीक में सुधार लाया जा सकता है।”

डेड काउन्टी, फ्लोरिडा, के सबसे अधिक व्यस्त अभिघात अस्पतालों में से एक चिन्ताजनक रिपोर्ट पर प्रोफेसर बुलूकी18 * ने ध्यान दिया, जहाँ “गवाहों के उपचार के लिये मना करने की एक संपूर्ण नीति थी।” उन्होंने ध्यान दिलाया कि, “इस समूह के रोगियों की अधिकतर शल्यक्रियाओं में सामान्य से कम जोखिम है।” उन्होंने आगे कहा: “यद्यपि शल्य-चिकित्सक को ऐसा प्रतीत होगा कि उन्हें आधुनिक औषधी के एक उपकरण से वंचित किया जा रहा है . . . मुझे विश्‍वास है कि इन रोगियों का ऑपरेशन करने से वे बहुत कुछ सीखेंगे।”

अधिक से अधिक चिकित्सक गवाह मरीज़ को एक समस्या समझने के बजाय इस परिस्थिति को एक चिकित्सीय चुनौती के रूप में स्वीकार करते हैं। इस चुनौती का सामना करते हुए उन्होंने इस वर्ग के रोगियों के लिये कार्यप्रणाली का एक ऐसा स्तर विकसित किया है जो देश भर के अनगिनित चिकित्सा केन्द्रों में स्वीकार किया जाता है। उसी समय यह चिकित्सक भी मरीज़ का सम्पूर्ण भलाई के लिये सबसे उत्तम उपचार का प्रबन्ध कर रहे हैं। जैसे गार्डनर और अन्य व्यक्‍तियों19 * ने ध्यान दिया: “यदि मरीज़ का शारीरिक रोग तो दूर हो जाए परन्तु, उसके अनुसार, परमेश्‍वर के साथ उसके आत्मिक जीवन में समझौता हो जाए तो इससे किसको लाभ होगा, यह एक निरर्थक जीवन होगा और शायद मृत्यु से भी बदतर हो।”

गवाह इस बात को समझते हैं कि उनके दृढ़ विश्‍वासों द्वारा औषधीय रूप से उनकी देखभाल में कुछ और जोखिम बढ़ सकता है और उनके इलाज को और अधिक जटिल बना सकते हैं। इसके अनुरूप साधारणतः वे की गई देखभाल के प्रति असाधारण मूल्यांकन दिखाते हैं। गहरे विश्‍वास के अनिवार्य तत्वों तथा जीवित रहने की प्रबल इच्छा के अतिरिक्‍त वे चिकित्सकों एवं चिकित्सा कर्मचारियों के साथ, खुशी से सहयोग देते हैं। इसलिये इस अद्वितीय चुनौती का मरीज़ और चिकित्सक दोनों मिलकर सामना करते हैं।

[REFERENCES]

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