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आज उपासना में एकता के क्या मायने हैं?

आज उपासना में एकता के क्या मायने हैं?

पहला अध्याय

आज उपासना में एकता के क्या मायने हैं?

1, 2. (क) आज कौन-सी सनसनीखेज़ घटना घट रही है? (ख) सच्चे मन के लोग किस शानदार भविष्य की उम्मीद कर सकते हैं?

सारी दुनिया में एक बड़ी ही सनसनीखेज़ घटना घट रही है! हर देश, हर कुल और हर भाषा से लाखों लोग निकलकर इकट्ठे हो रहे हैं! वे एकता से परमेश्‍वर की उपासना करने के लिए इकट्ठे किए जा रहे हैं और हर साल उनकी तादाद बढ़ती चली जा रही है। बाइबल में इन्हें यहोवा के “साक्षी” और “बड़ी भीड़” कहा गया है। वे ‘दिन रात परमेश्‍वर की सेवा’ करते हैं। (यशायाह 43:10-12; प्रकाशितवाक्य 7:9-15) लेकिन वे यह सेवा क्यों करते हैं? क्योंकि वे जान गए हैं कि सिर्फ यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है। इस ज्ञान से उन्हें परमेश्‍वर के धर्मी स्तरों के मुताबिक अपनी ज़िंदगी में तबदीलियाँ लाने की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने यह भी सीखा है कि आज हम इस दुष्ट संसार के “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं और परमेश्‍वर बहुत जल्द इस संसार का नामो-निशान मिटा देगा। फिर वह सारी धरती को एक फिरदौस बनाकर अपनी नयी दुनिया कायम करेगा।—2 तीमुथियुस 3:1-5,13; 2 पतरस 3:10-13.

2 परमेश्‍वर का वचन वादा करता है: “थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; . . . परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।” (भजन 37:10,11) “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” (भजन 37:29) “[परमेश्‍वर] उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।” —प्रकाशितवाक्य 21:4.

3. आज उपासना में सच्ची एकता कैसे मुमकिन हुई है?

3 उस नयी दुनिया में सबसे पहले वे लोग कदम रखेंगे, जो आज एकता से सच्चे परमेश्‍वर की उपासना कर रहे हैं। उन्होंने यह सीखा है कि परमेश्‍वर की मरज़ी क्या है और वे जी-जान से इसे पूरा करने में लगे हुए हैं। ऐसा करने की अहमियत समझाते हुए खुद यीशु ने कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्‍ना 17:3) प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।”—1 यूहन्‍ना 2:17.

इस एकता के क्या मायने हैं?

4. (क) हमारे समय में एकता से उपासना करने के लिए भारी तादाद में लोगों का इकट्ठा किया जाना क्या दिखाता है? (ख) बाइबल में इकट्ठा करने के इस काम का कैसे वर्णन किया गया है?

4 हमारे समय में, एकता से उपासना करने के लिए इतनी भारी तादाद में लोगों का इकट्ठा होना दरअसल क्या दिखाता है? यह इस बात का सबूत है कि बहुत जल्द, इस दुष्ट संसार का अंत होनेवाला है और उसके फौरन बाद परमेश्‍वर की नयी दुनिया शुरू होगी। लोगों को इकट्ठा करने के इस बेहद ज़रूरी काम के बारे में बाइबल में कई भविष्यवाणियाँ की गयी थीं जिन्हें आज हम पूरा होते देख रहे हैं। उनमें से एक भविष्यवाणी यह है: “अन्त के दिनों [आज के समय] में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत [उसकी सर्वश्रेष्ठ सच्ची उपासना] सब पहाड़ों [बाकी ईश्‍वरों की उपासना] पर दृढ़ किया जाएगा, . . . और हर जाति के लोग धारा की नाईं उसकी ओर चलेंगे। और बहुत जातियों के लोग जाएंगे, और आपस में कहेंगे, आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्‍वर के भवन में जाएं; तब वह हम को अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे।”—मीका 4:1,2; भजन 37:34.

5, 6. (क) आज मीका 4:1,2 की भविष्यवाणी कैसे पूरी हो रही है? (ख) हमें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?

5 भविष्यवाणी के मुताबिक, आज लाखों लोग सभी जातियों से निकलकर, यहोवा की उपासना करने के लिए उसके आत्मिक भवन में इकट्ठे हो रहे हैं। जब वे यहोवा परमेश्‍वर के प्यार-भरे मकसद और उसकी बेमिसाल शख्सियत के बारे में सीखते हैं, तो उनके दिलों में उसके लिए प्यार उमड़ आता है। फिर वे नम्रता से यह जानने की कोशिश करते हैं कि परमेश्‍वर उनसे क्या चाहता है। भजनहार की तरह उनकी भी यह बिनती है: “मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा क्योंकर पूरी करूं, क्योंकि मेरा परमेश्‍वर तू ही है!”—भजन 143:10.

6 क्या आप भी लोगों की उस बड़ी भीड़ में हैं जिसे यहोवा, एकता से उपासना करने के लिए इकट्ठा कर रहा है? क्या आपके काम दिखाते हैं कि परमेश्‍वर के वचन से सीखी हुई बातों को आप, यहोवा से मिलनेवाली शिक्षा समझकर स्वीकार करते हैं? आप किस हद तक ‘उसके पथों पर चलने’ के लिए तैयार हैं?

एकता से उपासना करना कैसे मुमकिन है

7. (क) भविष्य में एकता से सच्ची उपासना करने में कौन-कौन शामिल होंगे? (ख) यह क्यों बेहद ज़रूरी है कि हम आज से, हाँ अभी से यहोवा के उपासक बनें और ऐसा करने में हम दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं?

7 यहोवा का उद्देश्‍य है कि सब बुद्धिमान प्राणी, एकता से सच्ची उपासना करें। हम भी उस दिन का कितनी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं जब स्वर्ग और पृथ्वी का हर प्राणी एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करेगा! (भजन 103:19-22) मगर उस समय के आने से पहले, यह ज़रूरी है कि यहोवा उन सभी को मिटा दे जो उसकी धर्मी माँगों को पूरा नहीं करना चाहते। परमेश्‍वर ने दया दिखाकर, सभी को पहले से बताया है कि वह क्या करने जा रहा है, ताकि लोगों को बदलने का मौका मिले। (यशायाह 55:6,7) इसीलिए हमारे समय में “हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगों” से यह आग्रह किया जा रहा है: “परमेश्‍वर से डरो; और उस की महिमा करो; क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुंचा है, और उसका भजन करो, जिस ने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जल के सोते बनाए।” (प्रकाशितवाक्य 14:6,7) क्या आपने इस न्यौते को स्वीकार किया है? अगर हाँ, तो आपको यह बड़ा सम्मान मिला है कि सच्चे परमेश्‍वर को जानने और उसकी उपासना करने का यह न्यौता दूसरों को भी दें।

8. बाइबल की बुनियादी शिक्षाएँ सीखने के बाद, हमें कैसी तरक्की करने के लिए जी-जान से कोशिश करनी चाहिए?

8 यहोवा ऐसे लोगों की उपासना कबूल नहीं करता जो उस पर विश्‍वास करने का दावा तो करते हैं, मगर असल में अपना ही स्वार्थ पूरा करने में लगे रहते हैं। इसके बजाय वह चाहता है कि लोग ‘उसकी इच्छा’ के बारे में सही-सही “ज्ञान” हासिल करें और उसके मुताबिक अपनी ज़िंदगी जीएँ। (कुलुस्सियों 1:9,10) इसलिए, जो लोग बाइबल की बुनियादी शिक्षाएँ सीखकर उनकी अहमियत समझते हैं, वे वहीं रुक नहीं जाते। इसके बजाय, वे प्रौढ़ मसीही बनने के लिए लगातार परमेश्‍वर के ज्ञान में आगे बढ़ते जाते हैं। उनकी इच्छा होती है कि वे यहोवा को और भी करीब से जानें, उसके वचन के बारे में गहरी समझ हासिल करें, और उसे और भी अच्छी तरह अपनी ज़िंदगी में अमल करें। वे हमारे स्वर्गीय पिता के गुण अपने अंदर पैदा करने और हर मामले में उसकी तरह सोचने की कोशिश करते हैं। इसलिए उनका मन उन्हें उकसाता है कि लोगों की जान बचाने का जो काम परमेश्‍वर करवा रहा है, उसमें हिस्सा लेने के लिए वे नए-से-नए तरीके ढूँढ़ निकालें। क्या आप भी यही चाहते हैं?—मरकुस 13:10; इब्रानियों 5:12-6:3.

9. आज किन मायनों में सच्ची एकता पायी जा सकती है?

9 बाइबल बताती है कि यहोवा की सेवा करनेवालों के बीच एकता होनी चाहिए। (इफिसियों 4:1-3) यह सच है कि संसार में हर जगह फूट पड़ी है और असिद्धता की वजह से हमें एकता बनाए रखने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है, फिर भी यहोवा के सेवकों में आज एकता मौजूद होनी चाहिए। यीशु ने दिल से प्रार्थना की थी कि उसके सभी चेले एक हों यानी वे सच्ची एकता का आनंद उठाएँ। लेकिन, इस सच्ची एकता का क्या मतलब है? सबसे पहले कि चेलों का यहोवा और उसके बेटे के साथ अच्छा रिश्‍ता होगा। दूसरा, वे आपस में एकता से रहेंगे। (यूहन्‍ना 17:20,21) ऐसी एकता हासिल करने में मदद देने के लिए, यहोवा मसीही कलीसिया के ज़रिए अपने लोगों को शिक्षा देता है।

किन बातों से एकता बढ़ती है?

10. (क) जब हम बाइबल का इस्तेमाल करके सवालों के जवाब ढूँढ़ेंगे और उन पर गहराई से सोचेंगे, तो हम अपने अंदर कौन-से गुण पैदा कर पाएँगे? (ख) इस पैराग्राफ में दिए गए सवालों का जवाब देकर उन बातों को जाँचिए जिनसे मसीही एकता बढ़ती है।

10 नीचे ऐसी सात बातें बतायी गयी हैं, जो उपासना में एकता हासिल करने के लिए बेहद ज़रूरी हैं। हर मुद्दे के साथ कुछ सवाल भी पूछे गए हैं। इनका जवाब देते वक्‍त, सोचिए कि इस मुद्दे का, यहोवा के साथ और मसीही भाई-बहनों के साथ आपके रिश्‍ते पर कैसा असर पड़ता है? इन मुद्दों पर गहराई से सोचिए और बाइबल की उन आयतों को खोलकर पढ़िए जिनका हवाला नहीं दिया गया है। इससे आपको अपने अंदर ऐसे गुण पैदा करने में मदद मिलेगी, जो हम सभी में होने चाहिए, जैसे ईश्‍वरीय बुद्धि, सोचने-समझने की काबिलीयत और परख-शक्‍ति। (नीतिवचन 5:1,2; फिलिप्पियों 1:9-11) आइए एक-एक करके इन बातों पर ध्यान दें।

(1) हम यह कबूल करते हैं कि हमारे लिए अच्छा क्या है और बुरा क्या, इसका फैसला करने का हक यहोवा का है। “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।”—नीतिवचन 3:5,6.

कोई भी फैसला करने से पहले, हमें क्यों यहोवा की सलाह और उसके मार्गदर्शन की खोज करनी चाहिए? (भजन 146:3-5; यशायाह 48:17)

(2) परमेश्‍वर का वचन हमें राह दिखाता है। “जब हमारे द्वारा परमेश्‍वर के सुसमाचार का वचन तुम्हारे पास पहुंचा, तो तुम ने उसे मनुष्यों का नहीं, परन्तु परमेश्‍वर का वचन समझकर (और सचमुच यह ऐसा ही है) ग्रहण किया: और वह तुम में जो विश्‍वास रखते हो, प्रभावशाली है।”—1 थिस्सलुनीकियों 2:13.

जो काम “हमें” सही लगता है, वह करने में क्या खतरा है? (नीतिवचन 14:12; यिर्मयाह 10:23,24; 17:9)

अगर हमें यह नहीं मालूम कि किसी एक मामले पर बाइबल क्या सलाह देती है, तो हमें क्या करना चाहिए? (नीतिवचन 2:3-5; 2 तीमुथियुस 3:16,17)

(3) हम सभी के लिए आध्यात्मिक भोजन पाने का एक ही इंतज़ाम किया गया है, जिससे हमें फायदा होता है। “तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे।” (यशायाह 54:13) “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्यों ज्यों उस [विनाश के] दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो।”—इब्रानियों 10:24,25.

यहोवा ने आध्यात्मिक भोजन का जो इंतज़ाम किया है, उसका पूरा लाभ उठानेवालों को क्या-क्या आशीषें मिलेंगी? (यशायाह 65:13,14)

(4) हमारा अगुवा कोई इंसान नहीं बल्कि यीशु मसीह है। “तुम ‘रब्बी’ न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है और तुम सब भाई हो। पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है। तुम अगुवे न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही अगुवा है, अर्थात्‌ मसीह।”—मत्ती 23:8-10, NHT.

क्या हममें से किसी को भी यह समझना चाहिए कि हम दूसरों से श्रेष्ठ हैं? (रोमियों 3:23,24; 12:3)

(5) हम विश्‍वास करते हैं कि सिर्फ परमेश्‍वर का राज्य ही इंसानों के लिए सच्ची आशा है। “सो तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो; ‘हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।’ इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो।”—मत्ती 6:9,10,33.

अगर हम ‘पहिले राज्य की खोज करेंगे,’ तो हमें एकता बनाए रखने में कैसे मदद मिलेगी? (मीका 4:3; 1 यूहन्‍ना 3:10-12)

(6) पवित्र आत्मा, यहोवा के उपासकों में ऐसे गुण पैदा करती है जो मसीही एकता के लिए बेहद ज़रूरी हैं। “आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम हैं।”—गलतियों 5:22,23.

परमेश्‍वर की आत्मा हमारे अंदर अपने फल पैदा करे, इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? (प्रेरितों 5:32)

अगर परमेश्‍वर की आत्मा हम पर काम करती है, तो अपने मसीही भाई-बहनों के साथ हमारा रिश्‍ता कैसा होगा? (यूहन्‍ना 13:35; 1 यूहन्‍ना 4:8,20,21)

(7) परमेश्‍वर के सभी सच्चे उपासक, उसके राज्य का सुसमाचार सुनाते हैं। “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।”—मत्ती 24:14.

प्रचार के काम में पूरा-पूरा हिस्सा लेने के लिए किस बात से हमें प्रेरणा मिलनी चाहिए? (मत्ती 22:37-39; रोमियों 10:10)

11. जब हम बाइबल की सच्चाइयों के मुताबिक ज़िंदगी जीते हैं, तो इसका क्या असर होता है?

11 जब हम एकता से यहोवा की उपासना करते हैं, तो उसके साथ हमारा रिश्‍ता और भी मज़बूत होता है और अपने मसीही भाई-बहनों की संगति से हम तरो-ताज़ा महसूस करते हैं। भजन 133:1 कहता है: “देखो, यह क्या ही भली और मनोहर बात है कि भाई लोग आपस में मिले रहें!” आज दुनिया में हर तरफ स्वार्थ, अनैतिकता और हिंसा फैली हुई है। ऐसे माहौल से निकलकर जब हम सभाओं में उन लोगों के साथ इकट्ठे होते हैं जो यहोवा को सच्चे दिल से प्यार करते हैं और उसकी आज्ञाएँ मानते हैं, तो हमें कितना सुकून मिलता है और हम कितना तरो-ताज़ा महसूस करते हैं!

फूट डालनेवाली बातों से बचिए

12. हमें आज़ादी की आत्मा से क्यों बचना चाहिए?

12 हमारी यह अनमोल एकता दुनिया के कोने-कोने में पायी जा सकती है। मगर, यह एकता भंग न हो, इसके लिए हमें फूट पैदा करनेवाली बातों से बचना होगा। इन बातों में से एक है, परमेश्‍वर और उसके नियमों से आज़ाद होने की आत्मा। यहोवा ने इस आत्मा से दूर रहने में हमारी मदद की है। कैसे? इस आत्मा को शुरू करनेवाला शैतान या इब्‌लीस की असलियत हमें बताकर। (2 कुरिन्थियों 4:4; प्रकाशितवाक्य 12:9) वह शैतान ही था जिसने आदम और हव्वा को बहकाया कि वे परमेश्‍वर की बातों पर ध्यान न दें और उसकी मरज़ी के खिलाफ फैसले करें। लेकिन ऐसा करने से ना सिर्फ उन दोनों पर बल्कि आज हम पर भी मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। (उत्पत्ति 3:1-6,17-19) आज जहाँ देखो वहाँ, परमेश्‍वर और उसके नियमों को ठुकराकर अपनी मरज़ी से जीने का चलन है। इसलिए अगर हमारे अंदर ऐसा रवैया है तो हमें फौरन इस पर काबू पाने के लिए कदम उठाने चाहिए।

13. कौन-सी बात दिखाती है कि हम परमेश्‍वर के धर्मी नए संसार में जीने के लिए सच्चे मन से तैयारी कर रहे हैं?

13 मिसाल के लिए, यहोवा के इस शानदार वादे पर गौर कीजिए कि वह बहुत जल्द इस दुष्ट संसार को हटाकर उसकी जगह एक नया आकाश और नयी पृथ्वी लाएगा “जिन में धार्मिकता बास करेगी।” (2 पतरस 3:13) क्या इस वादे से हमारे अंदर उमंग पैदा नहीं होनी चाहिए, ताकि हम उस दुनिया में जीने की अभी से तैयारी करें, जहाँ हर तरफ धार्मिकता होगी? इसके लिए बाइबल में साफ बतायी गयी इस सलाह को मानना ज़रूरी है: “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है।” (1 यूहन्‍ना 2:15) इसलिए हम संसार की आत्मा से दूर रहते हैं, जो इसी बात पर ज़ोर देती है कि लोग अपनी मन-मरज़ी करें, अपने सिवाय किसी और की न सोचें, अनैतिकता और हिंसा के काम करें। हमारी असिद्धता हमें उलटी दिशा में क्यों न ले जाना चाहे, फिर भी हमने सच्चे मन से यहोवा की बात सुनने और उसकी आज्ञाओं को मानने की आदत डाल ली है। हमारी पूरी ज़िंदगी इस बात का सबूत है कि हमारे दिलो-दिमाग पर बस एक बात छायी रहती है कि हम परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करें।—भजन 40:8.

14. (क) यहोवा के मार्गों के बारे में सीखने और उन पर चलने के मौके का अभी फायदा उठाना क्यों ज़रूरी है? (ख) पैराग्राफ में दी गयी आयतें हममें से हरेक के लिए क्या मायने रखती हैं?

14 जब यहोवा का ठहराया हुआ समय आएगा कि वह इस दुष्ट संसार और इसे पसंद करनेवालों का नाश करे, तब वह पल-भर की भी देरी नहीं करेगा। वह ऐसे लोगों के बदलने का इंतज़ार नहीं करेगा जो उसकी इच्छा के बारे में सीखने के बाद भी सिर्फ आधे-अधूरे मन से उसकी सेवा करते हैं और संसार से चिपके रहते हैं, ना ही वह उनके लिए अपने स्तर बदलेगा। इसलिए कार्यवाही करने का वक्‍त अभी है! (लूका 13:23,24; 17:32; 21:34-36) यह देखकर हमें सचमुच खुशी होती है कि बड़ी भीड़ इस सुनहरे मौके का पूरा-पूरा फायदा उठा रही है। ये लोग बड़ी उमंग से यहोवा के वचन और संगठन से मिलनेवाली शिक्षा को स्वीकार करते हैं और कंधे-से-कंधा मिलाकर उसके पथों पर चलते हुए नयी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं! और हम जितना ज़्यादा यहोवा के बारे में सीखेंगे उतना ही उसके लिए हमारा प्यार गहरा होगा और उसकी सेवा करने का हमारा इरादा मज़बूत होगा।

आइए याद करें

• उपासना के बारे में यहोवा का मकसद क्या है?

• बाइबल की बुनियादी शिक्षाएँ सीखने के बाद, हमें और किन बातों में तरक्की करने के लिए जी-जान से कोशिश करनी चाहिए?

• हममें से हरेक क्या कर सकता है ताकि वह यहोवा के उपासकों के साथ एकता में रहे?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 4 पर तसवीर]

“नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे”