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आपका बपतिस्मा क्या मायने रखता है

आपका बपतिस्मा क्या मायने रखता है

बारहवाँ अध्याय

आपका बपतिस्मा क्या मायने रखता है

1. पानी में बपतिस्मा लेने के विषय में हममें से हरेक को दिलचस्पी क्यों लेनी चाहिए?

सामान्य युग 29 में बपतिस्मा देनेवाले यूहन्‍ना ने यीशु को यरदन नदी में डुबकी देकर बपतिस्मा दिया। यहोवा भी इस घटना को देख रहा था और उसने बपतिस्मे पर अपनी मंज़ूरी ज़ाहिर की। (मत्ती 3:16,17) यीशु ने बपतिस्मा लेकर अपने सभी चेलों के लिए एक आदर्श रखा। अपने बपतिस्मे के साढ़े तीन साल बाद, यीशु ने अपने चेलों को ये हिदायतें दीं: “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है। इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो।” (मत्ती 28:18,19) यीशु की इस आज्ञा के मुताबिक क्या आपने भी बपतिस्मा लिया है? अगर नहीं, तो क्या आप उसकी तैयारी कर रहे हैं?

2. बपतिस्मे के बारे में किन सवालों के जवाब जानना ज़रूरी है?

2 चाहे आपका बपतिस्मा हो गया हो या फिर आप उसकी तैयारी कर रहे हों, अगर आप यहोवा की सेवा करना और उसके धर्मी नए संसार में जीना चाहते हैं, तो आपके लिए बपतिस्मे के बारे में सही-सही समझ हासिल करना ज़रूरी है। आपको इन सवालों के जवाब जानने होंगे: आज जो मसीही बपतिस्मा दिया जाता है, क्या उसका वही अर्थ है जो यीशु के बपतिस्मे का था? “पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से” बपतिस्मा लेने का मतलब क्या है? पानी में दिया जानेवाला मसीही बपतिस्मा जिस बात को दर्शाता है, उसके अनुसार ज़िंदगी बिताने में क्या-क्या बातें शामिल हैं?

यूहन्‍ना ने जो बपतिस्मे दिए

3. यूहन्‍ना ने जो बपतिस्मा दिया वह सिर्फ किनके लिए था?

3 यीशु के बपतिस्मे के करीब छः महीने पहले, बपतिस्मा देनेवाले यूहन्‍ना ने यहूदिया के वीराने में यह प्रचार किया: “मन फिराओ; क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” (मत्ती 3:1,2) लोगों ने यूहन्‍ना का संदेश सुना और उसके मुताबिक कदम भी उठाया। उन्होंने सरेआम अपने पापों को कबूल किया, पश्‍चाताप किया और फिर वे यरदन नदी में बपतिस्मा लेने के लिए यूहन्‍ना के पास आए। यूहन्‍ना ने जो बपतिस्मा दिया वह सिर्फ यहूदियों के लिए था।—लूका 1:13-16; प्रेरितों 13:23,24.

4. पहली सदी में यहूदियों को पश्‍चाताप करने की सख्त ज़रूरत क्यों थी?

4 उन यहूदियों को पश्‍चाताप करने की सख्त ज़रूरत थी। उनके बाप-दादों ने सा.यु.पू. 1513 में सीनै पर्वत के पास, एक जाति के तौर पर यहोवा परमेश्‍वर के साथ बाकायदा एक वाचा बाँधी थी, उसके साथ एक समझौता किया था। लेकिन यहूदियों ने घोर पाप किए और इस तरह उस वाचा के तहत उन पर आनेवाली ज़िम्मेदारियों को उन्होंने पूरा नहीं किया। इसलिए वाचा ने उनको दोषी ठहराया। और यीशु के दिनों तक उनकी हालत बहुत नाज़ुक थी क्योंकि मलाकी की भविष्यवाणी में बताए गए ‘यहोवा के बड़े और भयानक दिन’ के आने का समय करीब था। वह “दिन” सा.यु. 70 में आया जब रोमी सेना ने यरूशलेम शहर और उसके मंदिर को तहस-नहस कर डाला और एक लाख से ज़्यादा यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया। उस विनाश के आने से पहले यहूदियों के पास, बपतिस्मा देनेवाले यूहन्‍ना को भेजा गया, जो सच्ची उपासना के लिए बहुत जोशीला था। उसे इसलिए भेजा गया ताकि वह “प्रभु के लिये एक योग्य प्रजा तैयार करे।” उन यहूदियों को चाहिए था कि वे मूसा की व्यवस्था वाचा के खिलाफ किए पापों से पश्‍चाताप करें और परमेश्‍वर के पुत्र, यीशु को स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाएँ, जिसे यहोवा जल्द ही उनके पास भेजनेवाला था।—मलाकी 4:4-6; लूका 1:17; प्रेरितों 19:4.

5. (क) यूहन्‍ना, यीशु को बपतिस्मा देने से क्यों झिझका? (ख) यीशु का बपतिस्मा किस बात की निशानी था?

5 यूहन्‍ना के पास बपतिस्मे के लिए आनेवालों में यीशु भी था। लेकिन वह क्यों आया? यूहन्‍ना जानता था कि यीशु ने कोई पाप नहीं किया था जिससे कि उसे पश्‍चाताप करने की ज़रूरत पड़े, इसलिए उसने यीशु से कहा: “मुझे तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्‍यकता है, और तू मेरे पास आया है?” लेकिन यीशु का बपतिस्मा किसी और बात की निशानी था। इसलिए उसने जवाब दिया: “अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है।” (मत्ती 3:13-15) यीशु में कोई पाप नहीं था इसलिए उसका बपतिस्मा पापों से पश्‍चाताप की निशानी नहीं था। ना ही वह समर्पण की निशानी था क्योंकि यीशु एक ऐसी जाति से था जो पहले से ही यहोवा को समर्पित थी। उसे खुद को परमेश्‍वर को समर्पित करने की ज़रूरत नहीं थी। तीस साल की उम्र में यीशु का बपतिस्मा एक बेजोड़ घटना थी क्योंकि यह इस बात की निशानी था कि यीशु खुद को अपने स्वर्गीय पिता के सामने पेश कर रहा है ताकि भविष्य के लिए उसके पिता की जो मरज़ी है, उसे वह पूरा करे।

6. यीशु ने परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने की ज़िम्मेदारी को कितनी गंभीरता से लिया?

6 मसीह यीशु के लिए परमेश्‍वर की मरज़ी यह थी कि वह राज्य से संबंधित काम करे। (लूका 8:1) परमेश्‍वर की यह भी मरज़ी थी कि यीशु अपना सिद्ध मानव जीवन बलिदान कर दे ताकि उससे छुड़ौती की रकम दी जाए और नयी वाचा के लिए नींव तैयार हो। (मत्ती 20:28; 26:26-28; इब्रानियों 10:5-10) पानी में यीशु का बपतिस्मा, जिस बात की निशानी था, उसने उसे बहुत गंभीरता से लिया। उसने अपना ध्यान दूसरी बातों की तरफ भटकने नहीं दिया। धरती पर अपनी ज़िंदगी के आखिरी लम्हों तक, उसने परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी की और परमेश्‍वर के राज्य के प्रचार काम को ही सबसे ज़्यादा अहमियत दी।—यूहन्‍ना 4:34.

मसीही चेलों का पानी में बपतिस्मा

7. सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त के दिन से मसीहियों को बपतिस्मे के बारे में कौन-सी आज्ञा मानने के लिए बताया गया?

7 यीशु के शुरू के चेलों को पहले यूहन्‍ना ने पानी में बपतिस्मा दिया और फिर उन्हें यीशु के पास भेजा कि वे स्वर्गीय राज्य के वारिस बनें। (यूहन्‍ना 3:25-30) यीशु का निर्देशन पाकर, उसके चेलों ने भी कुछ लोगों को बपतिस्मा दिया। उस बपतिस्मे का भी वही मतलब था जो यूहन्‍ना के बपतिस्मे का था। (यूहन्‍ना 4:1,2) लेकिन सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन से उन्होंने “पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से” बपतिस्मा देना शुरू किया। (मत्ती 28:19) इस पर ध्यान देना आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा कि यह बपतिस्मा क्या मायने रखता है।

8. ‘पिता के नाम से’ बपतिस्मा लेने का मतलब क्या है?

8 ‘पिता के नाम से’ बपतिस्मा लेने का मतलब क्या है? इसका मतलब है, पिता के नाम, उसकी पदवी, उसके अधिकार, मकसद और उसके नियमों को कबूल करना। ध्यान दीजिए कि इसमें क्या-क्या शामिल है। (1) उसके नाम के बारे में भजन 83:18 कहता है: “केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।” (2) उसकी पदवी के बारे में यिर्मयाह 10:10 (NHT) कहता है: “यहोवा सच्चा परमेश्‍वर है।” (3) उसके अधिकार के बारे में प्रकाशितवाक्य 4:11 कहता है: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्‍वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।” (4) हमें यह भी मानना चाहिए कि यहोवा हमारा जीवन-दाता है जो हमें पाप और मृत्यु से छुड़ाने का मकसद रखता है: “उद्धार यहोवा ही की ओर से होता है।” (भजन 3:8; 36:9) (5) हमें यह कबूल करना होगा कि यहोवा ही सर्वश्रेष्ठ नियमदाता है: “यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा व्यवस्था देनेवाला और यहोवा हमारा राजा है।” (यशायाह 33:22, NHT) यहोवा के पास इतने सारे पद होने की वजह से हमसे यह आग्रह किया जाता है: “तू परमेश्‍वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।”—मत्ती 22:37.

9. ‘पुत्र के नाम से’ बपतिस्मा लेने का मतलब क्या है?

9 ‘पुत्र के नाम से’ बपतिस्मा लेना किस बात को दर्शाता है? इसका मतलब है, यीशु मसीह के नाम, उसकी पदवी और उसके अधिकार को कबूल करना। यीशु के नाम का अर्थ है, “यहोवा ही उद्धार है।” पुत्र होने की पदवी उसे इसलिए मिली है क्योंकि वह परमेश्‍वर का एकलौता बेटा और उसकी पहली सृष्टि है। (मत्ती 16:16; कुलुस्सियों 1:15,16) इस पुत्र के बारे में यूहन्‍ना 3:16 कहता है: “परमेश्‍वर ने जगत [उद्धार पाने के योग्य इंसानों] से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्‍वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” यीशु, अपनी मौत तक वफादार रहा इसलिए परमेश्‍वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया और पहले से ज़्यादा अधिकार सौंपा। प्रेरित पौलुस के शब्दों में कहें तो परमेश्‍वर ने यीशु को पूरे विश्‍व में ‘अति महान किया’ यानी पूरे विश्‍व में यहोवा के बाद वही सबसे महान है। इसीलिए ज़रूरी है कि “सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। और परमेश्‍वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।” (फिलिप्पियों 2:9-11) इसका मतलब है, यीशु की आज्ञाएँ मानना जो खुद यहोवा की ओर से हैं।—यूहन्‍ना 15:10.

10. “पवित्रात्मा के नाम से” बपतिस्मा लेने का अर्थ क्या है?

10 “पवित्रात्मा के नाम से” बपतिस्मा लेने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है, पवित्र आत्मा जो भूमिका निभाती है या जो काम पूरा करती है, उसे कबूल करना। पवित्र आत्मा क्या है? यह यहोवा की सक्रिय शक्‍ति है, जिसके ज़रिए वह अपना मकसद पूरा करता है। यीशु ने अपने चेलों से कहा: “मैं पिता से बिनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। अर्थात्‌ सत्य का आत्मा।” (यूहन्‍ना 14:16,17) यह आत्मा उन्हें क्या करने के लिए मदद करती? इस बारे में यीशु ने उन्हें बाद में बताया: “जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।” (प्रेरितों 1:8) पवित्र आत्मा की प्रेरणा से यहोवा ने बाइबल भी लिखवायी: “कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्‍त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे।” (2 पतरस 1:21) इसलिए जब हम बाइबल का अध्ययन करते हैं, तो हम पवित्र आत्मा की भूमिका को कबूल करते हैं। पवित्र आत्मा की भूमिका को कबूल करने का एक और तरीका है, यहोवा से बिनती करना कि वह ‘आत्मा के फल,’ “प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम” पैदा करने में हमारी मदद करे।—गलतियों 5:22,23.

11. (क) हमारे दिनों में बपतिस्मा का सही अर्थ क्या है? (ख) किस अर्थ में बपतिस्मा, मर जाने और फिर से जीवित होने की तरह है?

11 यीशु की हिदायतों के मुताबिक, सबसे पहले यहूदियों और यहूदी मतधारकों को बपतिस्मा दिया गया और इस तरह का बपतिस्मा देना सा.यु. 33 से शुरू हुआ। इसके कुछ ही समय बाद, मसीह के चेले बनने का सुअवसर सामरियों को भी दिया गया। फिर सा.यु. 36 में अन्यजाति के खतनारहित लोगों को भी यह मौका दिया गया। लेकिन सामरियों और अन्यजाति के लोगों को बपतिस्मा लेने से पहले निजी तौर पर अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करनी थी ताकि वे उसके पुत्र के चेलों के तौर पर उसकी सेवा करें। आज भी मसीहियों का पानी में बपतिस्मा लेना इसी बात को दिखाता है। बपतिस्मा, लाक्षणिक अर्थ में दफनाए जाने की तरह है, इसलिए पानी में पूरी तरह डुबकी लेना इस बात की सही निशानी है कि बपतिस्मा लेनेवाले ने अपनी ज़िंदगी, यहोवा को समर्पित कर दी है। बपतिस्मे के वक्‍त आपका पानी के अंदर डुबोया जाना दिखाता है कि आप अपनी पिछली ज़िंदगी के लिए मर गए हैं। पानी से ऊपर उठाया जाना दिखाता है कि आप परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने के लिए दोबारा जीवित हुए हैं। यह “एक ही बपतिस्मा” उन सभी को लेना चाहिए जो सच्चे मसीही बनते हैं। बपतिस्मा लेने पर वे यहोवा के मसीही साक्षी यानी परमेश्‍वर के ठहराए सेवक बनते हैं।—इफिसियों 4:5; 2 कुरिन्थियों 6:3,4.

12. मसीहियों का पानी में बपतिस्मा लेना किस घटना से मिलता-जुलता है, और कैसे?

12 परमेश्‍वर की नज़रों में ऐसे बपतिस्मे का बहुत मोल है और इससे उद्धार मिल सकता है। मिसाल के लिए, प्रेरित पतरस ने अपनी चिट्ठी में नूह के बारे में बताया कि उसने जहाज़ बनाया और उसमें सवार होकर वह और उसका परिवार जलप्रलय से बच गए। यह बताने के बाद पतरस ने लिखा: “उसी पानी का दृष्टान्त भी, अर्थात्‌ बपतिस्मा, यीशु मसीह के जी उठने के द्वारा, अब तुम्हें बचाता है; (उस से शरीर के मैल को दूर करने का अर्थ नहीं है, परन्तु शुद्ध विवेक से परमेश्‍वर के वश में हो जाने का अर्थ है)।” (तिरछे टाइप हमारे।) (1 पतरस 3:21) जहाज़ इस बात का पक्का सबूत था कि नूह ने परमेश्‍वर से मिली ज़िम्मेदारी को वफादारी से निभाया। जहाज़ बनाने का काम पूरा होने के बाद, “उस युग का जगत जल में डूब कर नाश हो गया।” (2 पतरस 3:6) लेकिन नूह और उसका परिवार यानी ‘आठ व्यक्‍ति जल से सुरक्षित निकले।’—1 पतरस 3:20, NHT.

13. पानी में बपतिस्मा लेने पर एक मसीही किससे बचाया जाता है?

13 आज जो लोग पुनरुत्थान पाए मसीह में अपने विश्‍वास की बिनाह पर अपना जीवन यहोवा को समर्पित करते हैं, वे अपने समर्पण को सबके सामने ज़ाहिर करने के लिए बपतिस्मा लेते हैं। तब से वे वही करते हैं जो आज परमेश्‍वर, इंसानों से माँग करता है और इस दुष्ट संसार से बचाए जाते हैं। (गलतियों 1:3,4) इसके बाद से वे इस दुष्ट संसार के साथ नाश होने के लिए ठहराए नहीं जाते। वे ना सिर्फ उस नाश से बचाए जाते हैं बल्कि परमेश्‍वर की ओर से एक अच्छा विवेक भी पाते हैं। प्रेरित यूहन्‍ना, परमेश्‍वर के सेवकों को भरोसा दिलाता है: “संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।”—1 यूहन्‍ना 2:17.

अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करना

14. बपतिस्मा अपने आप में उद्धार की गारंटी क्यों नहीं है?

14 इस नतीजे पर पहुँचना गलत होगा कि बपतिस्मा अपने आप में उद्धार की गारंटी है। सिर्फ ऐसे व्यक्‍ति का बपतिस्मा मायने रखता है जिसने यीशु मसीह के ज़रिए सचमुच अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित की है और इसके बाद से वह परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करता और आखिर तक वफादार बना रहता है। बाइबल कहती है: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।”—मत्ती 24:13.

15. (क) बपतिस्मा पाए हुए मसीहियों से आज परमेश्‍वर क्या चाहता है? (ख) मसीह के नक्शे-कदम पर चलने की ज़िम्मेदारी को हमें कितनी अहमियत देनी चाहिए?

15 यीशु के लिए परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने का मतलब यह भी था कि वह अपने मानव जीवन के साथ वही करे जो परमेश्‍वर चाहता था। परमेश्‍वर की मरज़ी थी कि यीशु अपना मानव जीवन बलिदान कर दे। आज परमेश्‍वर हमसे चाहता है कि हम अपने शरीरों को उसके लिए अर्पित कर दें और त्याग की ज़िंदगी जीते हुए उसकी मरज़ी पूरी करें। (रोमियों 12:1,2) अगर हम कभी-कभार ही सही, मगर जानबूझकर संसार की तरह बर्ताव करें या स्वार्थ के कामों में पूरी तरह डूब जाएँ और नाम के वास्ते परमेश्‍वर की सेवा करें, तो हम परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी नहीं कर रहे होंगे। (1 पतरस 4:1-3; 1 यूहन्‍ना 2:15,16) जब एक यहूदी आदमी ने यीशु से पूछा कि उसे अनंत जीवन पाने के लिए क्या करना चाहिए, तो यीशु ने माना कि एक शुद्ध चरित्र बनाए रखना बहुत अहमियत रखता है। फिर उसने एक और बात बतायी जो उससे भी ज़रूरी है: वह है, मसीह का चेला बनना यानी उसके नक्शे-कदम पर चलना। इसी को जीवन में सबसे ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए। इसे ज़िंदगी में दूसरे स्थान पर रखकर धन-दौलत को पहला स्थान नहीं दिया जा सकता।—मत्ती 19:16-21.

16. (क) राज्य के संबंध में सभी मसीहियों पर क्या ज़िम्मेदारी है? (ख) जैसा कि पेज 116 और 117 पर दिखाया गया है, राज्य का प्रचार करने के कुछ असरदार तरीके क्या हैं? (ख) जब हम पूरे दिल से गवाही देने का काम करते हैं, तो हम क्या ज़ाहिर करते हैं?

16 इस बात पर फिर से ज़ोर दिया जाना चाहिए कि यीशु के लिए परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने में यह भी शामिल था कि वह राज्य से संबंधित अहम काम को पूरा करे। यीशु को राजा होने के लिए अभिषिक्‍त किया गया था। मगर धरती पर रहते वक्‍त उसने भी राज्य के बारे में ज़ोर-शोर से गवाही दी। आज हमें भी गवाही देने का काम करना है और यह काम जी-जान लगाकर करने के लिए हमारे पास हर कारण मौजूद है। ऐसा करने के ज़रिए हम यहोवा की हुकूमत के लिए एहसानमंदी और दूसरों के लिए प्रेम दिखाते हैं। (मत्ती 22:36-40) हम यह भी दिखाते हैं कि हम संसार-भर में रहनेवाले यहोवा के उपासकों के साथ एकता में बँधे हैं, जिनमें से हर कोई राज्य का प्रचारक है। संसार भर में रहनेवाले हम सभी प्रचारक एक होकर, उस राज्य में धरती पर मिलनेवाली हमेशा की ज़िंदगी की मंज़िल की ओर आगे बढ़ रहे हैं।

आइए याद करें

• यीशु के बपतिस्मे और आज पानी में दिए जानेवाले बपतिस्मे में कौन-सी समानताएँ और क्या फर्क हैं?

• “पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से” बपतिस्मा लेने का मतलब क्या है?

• पानी में बपतिस्मा लेने से मसीहियों पर जो ज़िम्मेदारियाँ आती हैं, उन्हें पूरा करने के लिए क्या करना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 116,117 पर तसवीरें]

रिश्‍तेदारों को

साथ काम करनेवालों को

राज्य का ऐलान करने के कुछ तरीके

घर-घर जाना

साथ पढ़नेवालों को

सड़कों पर

दिलचस्पी दिखानेवालों से दोबारा मिलना

लोगों के घरों पर उनके साथ बाइबल अध्ययन करना