इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

यहोवा के उपासकों को मिली आज़ादी

यहोवा के उपासकों को मिली आज़ादी

पाँचवाँ अध्याय

यहोवा के उपासकों को मिली आज़ादी

1, 2. (क) परमेश्‍वर ने पहले इंसानी जोड़े को किस तरह की आज़ादी दी? (ख) ऐसे कुछ नियम बताइए जिनके मुताबिक आदम और हव्वा को काम करना था?

जब यहोवा ने पहले पुरुष और स्त्री को बनाया तो उन्हें ऐसी आज़ादी दी जो आज इंसानों को मिली हर तरह की आज़ादी से कहीं बढ़कर थी। अदन का खूबसूरत बाग यानी फिरदौस उनका घर था। वे तन और मन से सिद्ध थे, इसलिए किसी भी तरह की बीमारी उनकी खुशी में खलल नहीं डाल सकती थी। उन पर मौत का साया नहीं मँडरा रहा था, जैसे तब से लेकर अब तक हर किसी पर मँडरा रहा है। और उन्हें रोबोट की तरह नहीं बनाया गया था बल्कि उन्हें आज़ाद मरज़ी का बढ़िया वरदान दिया गया था, यानी उनके पास अपने फैसले खुद करने की काबिलीयत थी। लेकिन इस शानदार आज़ादी को हमेशा कायम रखने के लिए ज़रूरी था कि वे परमेश्‍वर के नियमों को मानें।

2 उदाहरण के लिए, उन्हें प्रकृति में ठहराए परमेश्‍वर के नियमों को मानना था। बेशक, आदम और हव्वा को ये नियम लिखकर तो नहीं दिए गए थे, मगर उनकी रचना ही इस तरह से की गयी थी कि परमेश्‍वर के नियमों को मानना उनके स्वभाव में था। भूख लगती तो वे खाने की, प्यास लगती तो पानी पीने की, और सूरज ढलने पर सोने की ज़रूरत महसूस करते। इसके अलावा, यहोवा ने उन्हें एक काम भी सौंपा था। यह काम दरअसल एक नियम था, क्योंकि इस नियम को ध्यान में रखते हुए उन्हें ज़िंदगी बितानी थी। उन्हें आज्ञा दी गयी थी कि वे संतान पैदा करें, धरती पर रहनेवाले सभी प्राणियों पर अधिकार रखें और वाटिका की सरहदों को बढ़ाकर सारी धरती को फिरदौस में बदल दें। (उत्पत्ति 1:28; 2:15) वह क्या ही फायदेमंद नियम था! इस नियम को मानते हुए वे जो काम करते उससे उन्हें गहरी संतुष्टि मिलती और वे अपनी काबिलीयतों का पूरा-पूरा और फायदेमंद तरीके से इस्तेमाल कर पाते। और उन्हें सौंपा गया काम किस तरीके से करना है, इसका फैसला भी खुद करने की आज़ादी उन्हें दी गयी। ज़िंदगी में इतना सबकुछ पाने के बाद भला एक इंसान को और क्या चाहिए?

3. आदम और हव्वा, फैसला करने की आज़ादी का अक्लमंदी से इस्तेमाल करना कैसे सीख सकते थे?

3 लेकिन आदम और हव्वा को खुद फैसला करने का मौका देने का यह मतलब नहीं था कि वे चाहे जो भी फैसला करें, उसका नतीजा अच्छा ही निकलता। उन्हें परमेश्‍वर के नियमों और सिद्धांतों के दायरे में रहकर, फैसला करने की अपनी आज़ादी का इस्तेमाल करना था। वे इन नियमों और सिद्धांतों के बारे में कैसे जान सकते थे? अपने कर्त्ता की बात सुनकर और उसके कामों को ध्यान से देखकर। परमेश्‍वर ने आदम और हव्वा को ऐसी बुद्धि दी कि वे जो भी सीखते उस पर अमल कर सकते थे। उन्हें सिद्ध बनाया गया था, इसलिए फैसला करते वक्‍त परमेश्‍वर के गुण दिखाना उनके स्वभाव में था। परमेश्‍वर ने उनकी खातिर जो भले काम किए थे, उसके लिए सच्ची कदरदानी होने से वे ज़रूर परमेश्‍वर के गुण दिखाते और उसे खुश करना चाहते।—उत्पत्ति 1:26,27; यूहन्‍ना 8:29.

4. (क) एक पेड़ का फल ना खाने की आज्ञा से क्या आदम और हव्वा की आज़ादी छिन गयी? (ख) परमेश्‍वर का यह माँग करना क्यों जायज़ था?

4 इसलिए परमेश्‍वर का उन्हें परखना जायज़ था कि क्या वे उसे अपना जीवन-दाता मानकर उसकी भक्‍ति करेंगे और उसने आज़ादी की जो सीमाएँ ठहरायी थीं, उनमें खुशी-खुशी रहेंगे। यहोवा ने आदम को यह आज्ञा दी: “तू बाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्‍य मर जाएगा।” (उत्पत्ति 2:16,17) हव्वा को बनाने के बाद उसे भी यह नियम बताया गया। (उत्पत्ति 3:2,3) क्या इस पाबंदी से उनकी आज़ादी छिन गयी? बिलकुल नहीं। उनके पास हर तरह का स्वादिष्ट भोजन बहुतायत में था, इसलिए वे मना किए गए पेड़ का फल खाए बगैर भी ज़िंदा रह सकते थे। (उत्पत्ति 2:8,9) आदम और हव्वा के लिए यह कबूल करना सही होता कि पृथ्वी का मालिक परमेश्‍वर है क्योंकि उसी ने उसकी सृष्टि की थी। इसलिए उसे ऐसे नियम बनाने का हक है जिनसे उसका मकसद पूरा होता और इंसानों की भलाई होती।—भजन 24:1,10.

5. (क) आदम और हव्वा ने अपनी शानदार आज़ादी कैसे खो दी? (ख) अपनी आज़ादी खोने के बाद उनका क्या हुआ और उससे हम पर क्या असर पड़ा है?

5 तो फिर गड़बड़ कहाँ हुई? ऊँची पदवी हासिल करने के जुनून में आकर, एक स्वर्गदूत ने अपनी आज़ाद मरज़ी का गलत इस्तेमाल किया। वह स्वर्गदूत शैतान बन गया जिसका मतलब है, “विरोधी।” उसने हव्वा को परमेश्‍वर की मरज़ी के खिलाफ जाने के लिए कायल कर दिया। (उत्पत्ति 3:4,5) आदम भी हव्वा के साथ हो लिया। इस तरह जिस चीज़ पर उनका हक नहीं था, उसे हथियाने की कोशिश में उन्होंने अपनी शानदार आज़ादी खो दी। अब वे पाप के गुलाम बन गए और जैसे परमेश्‍वर ने खबरदार किया था, आखिर में मौत ने उन पर वार किया। उन्होंने अपनी संतान को भी विरासत में पाप दिया, जो इस बात से देखी जा सकती है कि इंसान में गलत काम करने की इच्छा पैदाइशी होती है। पाप की वजह से उनमें कमज़ोरियाँ पैदा हुईं जिसका अंजाम, बीमारी, बुढ़ापा और मौत है। और इंसान में पाप करने की जो अभिलाषा है, उसे शैतान और भी प्रबल करता है। इसका नतीजा हम देखते हैं कि इतिहास की शुरूआत से लेकर अब तक बस नफरत, अपराध और ज़ुल्म होते रहे हैं, और ऐसे भयानक युद्ध लड़े गए हैं जिनमें लाखों लोगों का खून बहाया गया है। यह अंजाम उस आज़ाद ज़िंदगी से कितना अलग है, जो परमेश्‍वर ने शुरू में इंसानों को दी थी!—व्यवस्थाविवरण 32:4,5; अय्यूब 14:1,2; रोमियों 5:12; प्रकाशितवाक्य 12:9.

आज़ादी कहाँ पायी जा सकती है?

6. (क) सच्ची आज़ादी कहाँ पायी जा सकती है? (ख) यीशु ने किस किस्म की आज़ादी की बात की?

6 आजकल जहाँ देखो वहाँ हालात इतने बदतर हैं कि लोगों का और ज़्यादा आज़ादी के लिए तरसना ताज्जुब की बात नहीं। लेकिन सच्ची आज़ादी कहाँ पायी जा सकती है? यीशु ने कहा: “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” (यूहन्‍ना 8:31,32) यीशु उस आज़ादी की बात नहीं कर रहा था जो एक नेता या सरकार को ठुकराकर दूसरा नेता या सरकार चुनने पर उम्मीद की जाती है। इसके बजाय, वह उस आज़ादी की बात कर रहा था, जिसमें इंसान की समस्याओं की असल जड़ से छुटकारा मिलता है। यह है, पाप की गुलामी से आज़ादी। (यूहन्‍ना 8:24,34-36) इसलिए जब एक इंसान यीशु मसीह का सच्चा चेला बनता है, तो वह अपनी ज़िंदगी में ज़बरदस्त बदलाव या आज़ादी महसूस करता है!

7. (क) आज हम किस अर्थ में पाप से आज़ाद हो सकते हैं? (ख) उस आज़ादी को पाने के लिए हमें क्या करना होगा?

7 इसका मतलब यह नहीं कि आज सच्चे मसीहियों में पाप करने की पैदाइशी कमज़ोरी नहीं होती। उन्होंने भी विरासत में पाप हासिल किया है और इसलिए उन्हें अपनी पापी अभिलाषाओं से संघर्ष करना पड़ता है। (रोमियों 7:21-25) लेकिन अगर एक व्यक्‍ति अपनी ज़िंदगी में सचमुच यीशु की शिक्षाओं को अमल करे, तो वह पाप का गुलाम नहीं बना रहेगा। यानी पाप, उस पर एक तानाशाह की तरह हुक्म नहीं चला सकेगा जिसकी हर बात उसे आँख मूँदकर माननी पड़े। वह इस तरह की ज़िंदगी में उलझा नहीं रहेगा जिसमें कोई मकसद न हो और जिससे उसका विवेक उसे कोसता रहे। इसके बजाय, मसीह के बलिदान पर विश्‍वास दिखाने की वजह से उसके पिछले पाप माफ किए जाएँगे और परमेश्‍वर की नज़र में उसका विवेक शुद्ध रहेगा। और अगर कभी उसमें पाप करने की ज़बरदस्त इच्छा पैदा हो तो वह मसीह की पवित्र शिक्षाओं को ध्यान में रखते हुए उस इच्छा के आगे झुकने से इनकार कर देगा। इस तरह वह दिखाएगा कि अब पाप का उस पर कोई ज़ोर नहीं है।—रोमियों 6:12-17.

8. (क) सच्ची मसीहियत हमें किन-किन बेड़ियों से आज़ाद करती है? (ख) सरकारी अधिकारियों के बारे में हमारा रवैया कैसा होना चाहिए?

8 ध्यान दीजिए कि मसीही होने के नाते आज हम किन-किन मामलों में आज़ादी का लुत्फ उठा रहे हैं। हमें झूठी शिक्षाओं के बुरे असर, अंधविश्‍वास और पाप की गुलामी से छुड़ाया गया है। मरे हुओं की हालत और पुनरुत्थान के बारे में बढ़िया सच्चाइयाँ जानने पर हम मौत से जुड़े उस डर से आज़ाद हुए हैं जो बेबुनियाद है। यह जानकर हमें निराशा के अँधेरे से छुटकारा मिलता है कि परमेश्‍वर का धर्मी राज्य, जल्द ही असिद्ध इंसानों की बनायी सरकारों को हटाकर उनकी जगह ले लेगा। (दानिय्येल 2:44; मत्ती 6:10) लेकिन इस आज़ादी का मतलब यह नहीं कि हम सरकारी अधिकारियों और उनके बनाए नियमों का निरादर कर सकते हैं।—तीतुस 3:1,2; 1 पतरस 2:16,17.

9. (क) आज के हालात में इंसानों के लिए जितनी ज़्यादा आज़ादी पाना मुमकिन हो सकता है, उतना हासिल करने में यहोवा कैसे हमारी मदद करता है? (ख) हम सही फैसले कैसे कर सकते हैं?

9 यहोवा नहीं चाहता कि हम अलग-अलग तरीके आज़माकर और गलतियाँ कर-करके सीखें कि जीने का सबसे बेहतरीन तरीका क्या है। वह हमारी बनावट जानता है, उसे यह भी पता है कि किस चीज़ से हमें सच्ची खुशी मिल सकती है और क्या करने से हमेशा के लिए हमारा फायदा होगा। वह जानता है कि किस तरह के विचारों और चालचलन से एक इंसान का उसके साथ और दूसरे इंसानों के साथ रिश्‍ता बिगड़ सकता है, और वह नयी दुनिया में जीने की आशा भी गवाँ सकता है। इसलिए हमारे भले के लिए यहोवा, बाइबल और पृथ्वी पर उसके संगठन के ज़रिए हमें इन सारी बातों से वाकिफ कराता है। (मरकुस 13:10; गलतियों 5:19-23; 1 तीमुथियुस 1:12,13) तो फिर फैसला हमारे हाथ में है कि हम परमेश्‍वर से मिली आज़ाद मरज़ी का इस्तेमाल करके कौन-सा रास्ता इख्तियार करेंगे। आदम के नक्शे-कदम पर न चलते हुए अगर हम बाइबल में लिखी बातों के मुताबिक काम करेंगे, तो हम सही फैसले कर पाएँगे। और इस तरह हम दिखाएँगे कि हम अपनी ज़िंदगी में यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बरकरार रखने को सबसे ज़्यादा अहमियत देते हैं।

दूसरी किस्म की आज़ादी चाहना

10. यहोवा के साक्षियों में से कुछ लोगों ने किस किस्म की आज़ादी हासिल करनी चाही?

10 यहोवा के साक्षियों में से कुछ नौजवान और बड़े लोग भी, कभी-कभी शायद दूसरी किस्म की आज़ादी के लिए तरसने लगें। उन्हें शायद दुनिया बहुत आकर्षक लगे और जितना ज़्यादा वे उस पर मन लगाएँ, उतना ज़्यादा ही वे उन चीज़ों की लालसा करने लगें जिनके पीछे दुनिया पागल है, मगर जो मसीही सिद्धांतों के खिलाफ हैं। हो सकता है, वे ड्रग्स लेने, हद-से-ज़्यादा शराब पीने या व्यभिचार करने की ना सोचें। लेकिन वे चंद ऐसे लोगों की सोहबत में पड़ जाते हैं जो सच्चे मसीही नहीं हैं और चाहते हैं कि ये दोस्त उन्हें पसंद करें। और यह भी हो सकता है कि उनकी बातचीत और चालचलन में धीरे-धीरे उनके दुनियावी दोस्तों का असर नज़र आने लगे।—3 यूहन्‍ना 11.

11. कभी-कभी गलत काम करने के लिए हमें कौन उकसा सकता है?

11 कभी-कभी ऐसा व्यक्‍ति हमें मसीही उसूलों के खिलाफ काम करने के लिए उकसा सकता है जो यहोवा की सेवा करने का सिर्फ ढोंग करता है। शुरू के कुछ मसीहियों के साथ ऐसा ही हुआ और आज हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है। ऐसे लोग अकसर उन चीज़ों की लालसा करते हैं जिनसे उन्हें लगता है कि खुशी हासिल होगी लेकिन वे परमेश्‍वर के नियमों के खिलाफ हैं। वे दूसरों को भी उकसाते हैं कि वे थोड़ा “मज़ा” कर लें। वे उन्हें “स्वतंत्र होने की प्रतिज्ञा तो देते हैं, पर आप ही सड़ाहट के दास हैं।”—2 पतरस 2:19.

12. परमेश्‍वर के नियमों और सिद्धांतों के खिलाफ काम करने के कैसे बुरे अंजाम निकलते हैं?

12 इस तरह की गलत किस्म की आज़ादी पाने का अंजाम हमेशा बुरा होता है, क्योंकि यह आज़ादी परमेश्‍वर के नियमों को तोड़कर हासिल की जाती है। उदाहरण के लिए, नाजायज़ लैंगिक संबंधों का नतीजा होता है, मन की शांति खोना, बीमारी, मौत, अनचाहा गर्भ और शायद शादी का टूट जाना। (1 कुरिन्थियों 6:18; 1 थिस्सलुनीकियों 4:3-8) ड्रग्स लेने का अंजाम हो सकता है, चिड़चिड़ापन, बात करने में दिक्कत, धुँधली नज़र, चक्कर आना, साँस लेने में परेशानी, मति भ्रम होना और मौत। इसके अलावा, एक व्यक्‍ति को ड्रग्स की लत भी लग सकती है और शायद वह ड्रग्स खरीदने के लिए जुर्म का भी सहारा ले। हद-से-ज़्यादा शराब पीने के भी कुछ ऐसे ही अंजाम निकलते हैं। (नीतिवचन 23:29-35) ऐसी बदचलनी करनेवाले शायद सोचें कि वे आज़ाद हैं, लेकिन जब वे इस हकीकत से दो-चार होते हैं कि दरअसल वे पाप के गुलाम हैं, तब तक बहुत देर हो जाती है। सचमुच पाप भी कैसा बेरहम मालिक है! इस मामले पर अभी से गहराई से सोचने से हम ऐसे कड़ुवे अनुभव से गुज़रने से बचेंगे।—गलतियों 6:7,8.

पाप की जड़

13. (क) पाप करने की अभिलाषाएँ अकसर कैसे जागती हैं? (ख) “बुरी संगति” क्या है, इसे समझने के लिए हमें किसके नज़रिए को जानना चाहिए? (ग) पैराग्राफ 13 में दिए सवालों का जवाब देते वक्‍त खासकर यह समझने की कोशिश कीजिए कि उन विषयों पर यहोवा का नज़रिया क्या है।

13 ध्यान दीजिए कि पाप की शुरूआत अकसर कैसे होती है। बाइबल समझाती है: “प्रत्येक व्यक्‍ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर, और फंसकर परीक्षा में पड़ता है। फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनता है और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्‍न करता है।” (याकूब 1:14,15) एक इंसान में यह अभिलाषा कैसे जागती है? वह अपने दिमाग में जैसी बातें भरता है, उनसे। अकसर यह ऐसे लोगों की संगति का नतीजा होता है जो बाइबल के सिद्धांतों पर नहीं चलते। बेशक, हम सब जानते हैं कि हमें “बुरी संगति” से दूर रहना चाहिए। (1 कुरिन्थियों 15:33) लेकिन किस तरह की संगति बुरी है? यहोवा इस मामले को किस नज़र से देखता है? आगे दिए सवालों पर गौर करने और बताए गए वचनों को पढ़ने से हम सही-सही जान पाएँगे कि कैसी संगति बुरी है।

कुछ लोगों की समाज में बहुत इज़्ज़त और नाम है, लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि उनकी संगति अच्छी है? (उत्पत्ति 34:1,2,18,19)

क्या उनकी बातचीत, या फिर उनके चुटकुलों से यह ज़ाहिर होता है कि उनके साथ मेल-जोल रखना ठीक नहीं होगा? (इफिसियों 5:3,4)

अगर हम ऐसे लोगों से गहरी दोस्ती रखेंगे जो यहोवा से प्यार नहीं करते, तो यहोवा को कैसा लगेगा? (2 इतिहास 19:1,2)

हालाँकि हम ऐसे लोगों के साथ काम करें या स्कूल पढ़ें जो हमारे जैसा विश्‍वास नहीं रखते, मगर हमें खबरदार क्यों रहना चाहिए? (1 पतरस 4:3,4)

टी.वी. और फिल्में, इंटरनॆट, किताबें, पत्रिकाएँ और अखबार भी दूसरों के साथ संगति करने का ही ज़रिया हैं। इनके ज़रिए पहुँचायी जानेवाली किस तरह की जानकारी से हमें दूर रहना चाहिए? (नीतिवचन 3:31; यशायाह 8:19; इफिसियों 4:17-19)

हम जिस तरह के लोगों से दोस्ती करते हैं, उससे यहोवा को हमारे बारे में क्या पता चलता है? (भजन 26:1,4,5; 97:10)

14. आज जो हमेशा परमेश्‍वर के वचन की सलाह पर चलते हैं, उन्हें भविष्य में किस तरह की शानदार आज़ादी हासिल होगी?

14 परमेश्‍वर की नयी दुनिया बस आने ही वाली है। परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य की सरकार के ज़रिए इंसानों को शैतान और उसके दुष्ट संसार के चंगुल से आज़ाद किया जाएगा। फिर आज्ञा माननेवाले इंसानों को पाप के सभी अंजामों से धीरे-धीरे छुटकारा दिलाया जाएगा। नतीजा यह होगा कि वे तन और मन से सिद्ध हो जाएँगे और फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी का आनंद उठाएँगे। आखिरकार, सारी सृष्टि को वह आज़ादी मिलेगी जो ‘प्रभु की आत्मा’ से पूरी तरह मेल खाती है। (2 कुरिन्थियों 3:17) क्या आज परमेश्‍वर के वचन की सलाह को ठुकराकर भविष्य में मिलनेवाली उन सभी आशीषों को हाथ से जाने देना समझदारी होगी? तो आइए हम सभी आज अपनी मसीही आज़ादी का अक्लमंदी से इस्तेमाल करें और यह साफ-साफ दिखाएँ कि हम सचमुच “परमेश्‍वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता” पाना चाहते हैं।—रोमियों 8:21.

आइए याद करें

• पहले इंसानी जोड़े ने किस किस्म की आज़ादी का आनंद उठाया? मगर आज इंसानों की क्या हालत है?

• सच्चे मसीहियों को कौन-सी आज़ादी मिली है? यह आज़ादी, उस हालत से कैसे अलग है जिसे संसार आज़ादी समझता है?

• बुरी संगति से बचे रहना क्यों इतना ज़रूरी है? आदम की मिसाल पर न चलते हुए, हम बुराई के बारे में किसके फैसलों को मानते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 46 पर तसवीरें]

परमेश्‍वर का वचन खबरदार करता है: “धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है”