वह मसला जिसका हम सभी को सामना करना है
छठा अध्याय
वह मसला जिसका हम सभी को सामना करना है
1, 2. (क) अदन में शैतान ने कौन-सा मसला खड़ा किया? (ख) शैतान ने जो कहा उससे कैसे पता चलता है कि मसला वही था?
आज सभी इंसानों के सामने एक ऐसा मसला है जो अब तक का सबसे ज़रूरी मसला है। इसमें आप भी शामिल हैं। इस मसले में आप किसका पक्ष लेंगे, उसी से आपका अनंत भविष्य तय होगा। यह मसला अदन के बाग में हुई बगावत के वक्त उठा था। शैतान ने हव्वा से पूछा: “क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, कि तुम इस बाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना?” जवाब में हव्वा ने कहा कि परमेश्वर ने सिर्फ एक पेड़ के बारे में यह आज्ञा दी: ‘तुम उसको न खाना, नहीं तो मर जाओगे।’ तब शैतान ने सीधे यहोवा पर झूठ बोलने का इलज़ाम लगाते हुए कहा कि ना तो हव्वा की और ना ही आदम की ज़िंदगी परमेश्वर की आज्ञाओं को मानने पर निर्भर है। शैतान ने दावा किया कि परमेश्वर अपनी सृष्टि को एक अच्छी चीज़ देने से पीछे हट रहा है और वह है, ज़िंदगी में अपने स्तर बनाने की काबिलीयत। उसने दावे के साथ कहा: “परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।”—उत्पत्ति 3:1-5.
2 दूसरे शब्दों में, शैतान यह कह रहा था कि परमेश्वर के नियमों को मानने के बजाय, अपने फैसले खुद करने से इंसान ज़्यादा खुश रहेगा। इस तरह, उसने परमेश्वर के शासन करने के तरीके पर सवाल खड़ा किया। उसकी इस चुनौती से सबसे ज़रूरी मसला खड़ा हुआ कि परमेश्वर को पूरे विश्व पर
हुकूमत करने का हक है या नहीं। यह सवाल उठाया गया: इंसान की भलाई किसमें है, यहोवा की हुकूमत मानकर चलने में या उससे नाता तोड़कर खुद राज करने में? अगर यहोवा चाहता तो वह उसी वक्त आदम और हव्वा को खत्म कर सकता था, मगर इससे हुकूमत का मसला सही तरह से हल नहीं होता। इसलिए यहोवा ने इंसानों की गिनती बढ़ने और उन्हें अपनी व्यवस्था कायम करने के लिए काफी समय की इजाज़त दी। इससे यह साफ ज़ाहिर हो जाता कि परमेश्वर और उसके नियमों को ठुकराने का अंजाम क्या होता है।3. शैतान ने कौन-सा दूसरा मसला खड़ा किया?
3 अदन के बाग में यहोवा की हुकूमत को चुनौती देने के बाद, शैतान चुप नहीं बैठा। उसने यहोवा के लिए इंसानों की वफादारी पर भी सवाल खड़ा किया। यह एक और मसला बन गया जिसका पहले मसले से गहरा ताल्लुक है। इस मसले में आदम और हव्वा की संतान और परमेश्वर के सभी आत्मिक पुत्र, यहाँ तक कि यहोवा का सबसे अज़ीज़ और पहिलौठा पुत्र भी शामिल है। मसलन, अय्यूब के दिनों में शैतान ने यह आरोप लगाया कि जो यहोवा की सेवा करते हैं, वे असल में उससे और उसके शासन से प्रेम होने की वजह से नहीं बल्कि स्वार्थ के लिए करते हैं। उसने दावा किया कि अगर उन पर मुश्किलें आएँगी, तो वे अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए यहोवा को छोड़ देंगे।—अय्यूब 2:1-6; प्रकाशितवाक्य 12:10.
इतिहास ने क्या साबित किया
4, 5. इंसान का अपना मार्गदर्शन खुद करने के बारे में इतिहास ने क्या साबित कर दिखाया है?
4 हुकूमत के मसले में एक अहम बात यह है: परमेश्वर ने इंसान को इस तरह नहीं बनाया था कि वे उसकी हुकूमत से आज़ाद होकर जीएँ और उसमें कामयाब हों। परमेश्वर ने उनके भले के लिए धर्मी नियम दिए। भविष्यवक्ता यिर्मयाह ने कबूल किया: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु यिर्मयाह 10:23,24) इसलिए परमेश्वर का वचन हमसे ज़ोर देकर कहता है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना।” (नीतिवचन 3:5) परमेश्वर ने जिस तरह इंसानों के ज़िंदा रहने के लिए उन्हें प्रकृति के नियमों के अधीन किया, उसी तरह उसने नैतिक नियम भी दिए, जिन्हें मानने पर समाज में अमन-चैन कायम हो सकता है।
उसके डग उसके अधीन नहीं हैं। हे यहोवा, मेरी ताड़ना कर।” (5 ज़ाहिर है कि परमेश्वर जानता था कि इंसान, उसकी हुकूमत को ठुकराकर अपने बलबूते पर दुनिया को चलाने में कभी कामयाब नहीं हो सकता। परमेश्वर के शासन के अधीन ना रहकर उन्होंने तरह-तरह की सरकारें, आर्थिक व्यवस्थाएँ और धर्म स्थापित किए, मगर सारी कोशिशें नाकाम रही हैं। दरअसल, इन अलग-अलग व्यवस्थाओं और धर्मों की वजह से लोगों के बीच लगातार संघर्ष होता रहा है और इसका अंजाम खून-खराबा, युद्ध और मौत के सिवा कुछ नहीं रहा है। “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।” (सभोपदेशक 8:9) पूरे इतिहास में बस यही बात हकीकत बनकर बार-बार सामने आयी है। ठीक जैसे परमेश्वर के वचन में भविष्यवाणी की गयी थी, आज भी दुष्ट और बहकानेवाले ‘बिगड़ते चले जा रहे हैं।’ (2 तीमुथियुस 3:13) और 20वीं सदी में, हालाँकि इंसान ने विज्ञान और उद्योग के क्षेत्र में तरक्की की बुलंदियाँ छू ली है, मगर इस सदी में ही इतनी दिल दहलानेवाली घटनाएँ हुईं, जितनी पहले कभी नहीं हुई थीं। यिर्मयाह 10:23 के ये शब्द शत-प्रतिशत सच साबित हुए हैं कि इंसान को अपना मार्गदर्शन खुद करने के लिए नहीं बनाया गया था।
6. इंसान का खुद शासन करने के मसले को परमेश्वर, बहुत जल्द कैसे हल करेगा?
6 परमेश्वर से अलग होने की वजह से इंसान को इतने लंबे अरसे से जो दर्दनाक अंजाम भुगतने पड़े हैं, उनसे यह बात हमेशा के लिए साबित हो गयी है कि इंसान, शासन करने में कभी कामयाब नहीं हो सकता। सिर्फ परमेश्वर की सरकार ही खुशियाँ, एकता, अच्छी सेहत और ज़िंदगी मत्ती 24:3-14; 2 तीमुथियुस 3:1-5) बहुत जल्द वह इंसान के मामलों में दखल देकर पृथ्वी पर हुकूमत करने का अपना अधिकार साबित कर दिखाएगा। बाइबल की भविष्यवाणी कहती है: “उन राजाओं [इंसान की बनायी मौजूदा सरकारों] के दिनों में स्वर्ग का परमेश्वर, [स्वर्ग में] एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा [इंसान फिर कभी धरती पर शासन नहीं करेंगे]। वरन वह उन सब [मौजूदा] राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।”—दानिय्येल 2:44.
दे सकती है। और परमेश्वर का वचन बताता है कि इंसान के शासन को बरदाश्त करने का यहोवा का समय बस खत्म होनेवाला है। (परमेश्वर की नयी दुनिया में पहुँचना
7. जब परमेश्वर की हुकूमत इंसान की हुकूमत का अंत कर देगी तब कौन ज़िंदा बचेंगे?
7 जब परमेश्वर की हुकूमत, इंसान की हुकूमत को मिटा देगी तब कौन ज़िंदा बचेगा? बाइबल जवाब देती है: “धर्मी लोग [परमेश्वर की हुकूमत के हिमायती] देश में बसे रहेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे। दुष्ट लोग [परमेश्वर की हुकूमत को ना माननेवाले] देश में से नाश होंगे।” (नीतिवचन 2:21,22) भजनहार ने भी कुछ ऐसा ही कहा: “थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं . . . धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।”—भजन 37:10,29.
8. परमेश्वर, हमेशा के लिए अपनी हुकूमत कैसे बुलंद करेगा?
8 शैतान के संसार को मिटा देने के बाद परमेश्वर, अपनी नयी दुनिया लाएगा। उस दुनिया में खौफनाक वारदातें, युद्ध, गरीबी, दुःख-तकलीफें, बीमारी और मृत्यु जैसी समस्याओं का साया तक नहीं रहेगा जिनकी गिरफ्त में इंसान हज़ारों सालों से पड़ा है। आज्ञा माननेवाले इंसानों को मिलनेवाली आशीषों का बाइबल इन सुंदर शब्दों में वर्णन करती है: “वह [परमेश्वर] उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली प्रकाशितवाक्य 21:3,4) अपनी स्वर्गीय सरकार के ज़रिए, जिसका राजा मसीह होगा, परमेश्वर हमेशा के लिए अपनी हुकूमत या अपने शासन करने के हक को बुलंद करेगा (जायज़ ठहराएगा या साबित करेगा)।—रोमियों 16:20; 2 पतरस 3:10-13; प्रकाशितवाक्य 20:1-6.
बातें जाती रहीं।” (कुछ लोगों ने मसले में क्या फैसला किया
9. (क) यहोवा के वफादार रहनेवालों ने उसकी आज्ञाओं को किस नज़र से देखा? (ख) नूह ने अपनी वफादारी कैसे साबित की और उसकी मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं?
9 पूरे इतिहास में ऐसे कई विश्वासी स्त्री-पुरुष रहे हैं जिन्होंने यहोवा के लिए अपनी वफादारी साबित कर दिखायी और विश्व के सम्राट के तौर पर उसका आदर किया। उन्हें मालूम था कि उनकी ज़िंदगी परमेश्वर की बात सुनने और उसकी आज्ञाएँ मानने पर ही निर्भर है। ऐसा ही एक इंसान था, नूह। परमेश्वर ने नूह से कहा: ‘सब प्राणियों के अन्त करने का प्रश्न मेरे साम्हने आ गया है। इसलिये तू एक जहाज़ बना ले।’ नूह ने वही किया जो यहोवा ने उसे आज्ञा दी। जबकि उस समय के बाकी लोग चेतावनी दिए जाने पर भी अपनी ज़िंदगी में इस तरह उलझे रहे मानो कोई बदलाव नहीं होनेवाला है। मगर जहाँ तक नूह की बात है, उसने एक बड़ा जहाज़ बनाया और वह परमेश्वर के धर्मी स्तरों के बारे में प्रचार करता रहा। बाइबल कहती है: “जैसी परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी थी, नूह ने ऐसा ही किया। उसने सब कुछ वैसा ही किया।” (NHT)—उत्पत्ति 6:13-22; इब्रानियों 11:7; 2 पतरस 2:5.
10. (क) इब्राहीम और सारा ने कैसे यहोवा की हुकूमत का पक्ष लिया? (ख) इब्राहीम और सारा के उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं?
10 इब्राहीम और सारा ने भी यहोवा की हर आज्ञा मानी और इस तरह उसकी हुकूमत का पक्ष लेने में अच्छी मिसाल रखी। वे कसदियों के ऊर नगर में रहते थे जो एक समृद्ध नगर था। मगर जब यहोवा ने इब्राहीम को वह नगर छोड़कर एक अनजान देश में बस जाने को कहा, तो वह ‘यहोवा के इस वचन के अनुसार चला।’ ऊर नगर में सारा, बेशक एक खुशहाल उत्पत्ति 11:31–12:4; प्रेरितों 7:2-4.
और आराम की ज़िंदगी जी रही थी, उसका घर-परिवार, दोस्त, रिश्तेदार सब वहीं थे। फिर भी वह यहोवा और अपने पति के अधीन रहते हुए कनान देश के लिए निकल पड़ी, जबकि उसे ज़रा-भी अंदाज़ा नहीं था कि वहाँ हालात कैसे होंगे।—11. (क) मूसा ने किन हालात में यहोवा की हुकूमत का समर्थन किया? (ख) मूसा की मिसाल से हमें कैसे मदद मिल सकती है?
11 मूसा, एक और पुरुष था जिसने यहोवा की हुकूमत का पक्ष लिया। और ऐसा उसने मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी किया, मसलन जब उसे मिस्र के फिरौन का आमना-सामना करना पड़ा। इसका मतलब यह नहीं कि मूसा को खुद पर बहुत भरोसा था। उलटा उसे डर था कि वह फिरौन के सामने ठीक से बोल नहीं पाएगा। मगर फिर भी उसने यहोवा की आज्ञा का पालन किया। यहोवा से मिली शक्ति और अपने भाई, हारून की मदद से उसने ज़िद्दी फिरौन को बार-बार यहोवा का संदेश पहुँचाया। यहाँ तक कि कुछ इस्राएलियों ने भी मूसा की कड़ी निंदा की थी। ऐसी मुश्किलों के बावजूद, मूसा ने हमेशा यहोवा की आज्ञा मानी और उसके ज़रिए इस्राएल को मिस्र से आज़ाद किया गया।—निर्गमन 7:6; 12:50,51; इब्रानियों 11:24-27.
12. (क) कौन-सी मिसाल दिखाती है कि यहोवा के वफादार रहने का मतलब सिर्फ उसके लिखित नियमों पर चलना नहीं है? (ख) इस तरह की वफादारी को समझने से हमें 1 यूहन्ना 2:15 पर अमल करने में कैसे मदद मिलेगी?
12 यहोवा के वफादार रहनेवालों ने कभी ऐसा नहीं सोचा कि परमेश्वर ने जो-जो नियम लिखकर दिए हैं, सिर्फ उन्हीं का मानना काफी है। मिसाल के लिए, यूसुफ के ज़माने में परमेश्वर की तरफ से कोई लिखित नियम नहीं था कि व्यभिचार करना गलत है। फिर भी जब पोतीपर की पत्नी ने यूसुफ को अपने साथ लैंगिक संबंध रखने के लिए लुभाया, तो यूसुफ ने साफ इनकार किया। क्योंकि उसे मालूम था कि शादी, अदन की वाटिका में शुरू किया गया यहोवा का इंतज़ाम है। किसी और की पत्नी के साथ लैंगिक संबंध रखना, परमेश्वर को नाराज़ करना होगा। यूसुफ यह नहीं परखना उत्पत्ति 39:7-12; भजन 77:11,12.
चाहता था कि परमेश्वर उसे मिस्रियों की तरह ज़िंदगी जीने के लिए किस हद तक छूट देगा। इंसानों के साथ परमेश्वर के व्यवहार पर यूसुफ ने मनन किया और परमेश्वर की मरज़ी के बारे में उसने जो समझा उसके मुताबिक चलने की हर मुमकिन कोशिश की।—13. (क) अय्यूब और (ख) तीन यहूदियों के मामले में शैतान कैसे झूठा साबित हुआ?
13 जो लोग सचमुच यहोवा को जानते हैं, वे कठिन-से-कठिन परीक्षाओं में भी यहोवा से मुँह नहीं मोड़ेंगे। यहोवा ने अय्यूब की बहुत तारीफ की थी, मगर शैतान ने यह दावा किया कि अगर अय्यूब अपनी बेशुमार दौलत या सेहत खो दे, तो वह यहोवा से मुकर जाएगा। लेकिन अय्यूब ने इब्लीस को झूठा साबित किया जबकि वह नहीं जानता था कि उस पर क्यों विपत्तियाँ टूट पड़ी थीं। (अय्यूब 2:9,10) इस घटना के सदियों बाद भी, शैतान ने अपना दावा साबित करने की कोशिश में बाबुल के राजा का इस्तेमाल किया। गुस्से से पागल उस राजा ने तीन यहूदी जवानों को धमकी दी कि अगर वे उसकी खड़ी करायी मूरत के आगे सिर झुकाकर उसकी पूजा नहीं करेंगे तो उन्हें धधकते भट्ठे में डाल दिया जाएगा। अब उन जवानों को यह फैसला करना था कि वे राजा का हुक्म मानेंगे या मूर्तिपूजा से दूर रहने का यहोवा का नियम मानेंगे। उन्होंने अटल इरादे के साथ अपना फैसला सुनाया कि वे सिर्फ यहोवा की उपासना करेंगे क्योंकि वही पूरे विश्व का मालिक है। यहोवा के वफादार बने रहना उन्हें अपनी जान से भी प्यारा था!—दानिय्येल 3:14-18.
14. असिद्ध होने के बावजूद हम यहोवा के लिए अपनी सच्ची वफादारी कैसे साबित कर सकते हैं?
14 क्या इन उदाहरणों से हमें इस नतीजे पर पहुँचना चाहिए कि यहोवा के वफादार होने के लिए एक व्यक्ति को सिद्ध होना होगा या अगर कोई इंसान एक बार गलती कर देता है तो इसका मतलब है कि वह वफादार नहीं रहा? ऐसा बिलकुल नहीं है! बाइबल बताती है कि मूसा ने भी गलतियाँ आमोस 5:15; प्रेरितों 3:19; इब्रानियों 9:14.
की थीं। और यहोवा उससे नाराज़ ज़रूर हुआ, मगर उसने मूसा को ठुकरा नहीं दिया। यीशु मसीह के प्रेरितों में भी खामियाँ थीं। यहोवा जानता है कि हमें विरासत में असिद्धता मिली है, इसलिए अगर हम जानबूझकर किसी भी तरह उसकी मरज़ी के खिलाफ ना जाएँ तो वह हमसे खुश रहता है। अगर हम अपनी कमज़ोरियों की वजह से पाप में फँस जाते हैं तो हमें चाहिए कि हम सच्चे दिल से पश्चाताप करें और उस गलती को बार-बार न दोहराएँ। ऐसा करने से हम साबित करेंगे कि जो काम यहोवा की नज़र में सही हैं, उनसे हम प्रेम करते हैं और जिनको वह बुरा कहता है, उनसे नफरत करते हैं। यीशु के बलिदान पर विश्वास करने से, जिसमें पापों को माफ करने की कीमत है, हम परमेश्वर की नज़र में शुद्ध बने रहेंगे।—15. (क) सभी इंसानों में से किसने पूर्ण रूप से परमेश्वर के लिए अपनी खराई बनाए रखी, और इससे क्या साबित हुआ? (ख) यीशु की मिसाल से हम क्या सीखते हैं?
15 लेकिन क्या यह कहना सही होगा कि पूर्ण रूप से यहोवा की हुकूमत के आज्ञाकारी होना इंसानों के बस में नहीं है? इस सवाल का जवाब करीब 4,000 सालों तक मानो एक “पवित्र भेद” रहा। (1 तीमुथियुस 3:16, NW) आदम, सिद्ध बनाए जाने के बावजूद, परमेश्वर की भक्ति करने में एक सिद्ध मिसाल नहीं कायम कर पाया। तो कौन ऐसी मिसाल कायम कर सकता था? आदम की पापी संतानों में से तो कोई भी नहीं। लेकिन सिर्फ एक ही इंसान ने ऐसा किया, वह था, यीशु मसीह। (इब्रानियों 4:15) यीशु ने जो किया उससे यह साबित हुआ कि आदम अगर चाहता तो वह पूर्ण रूप से खराई बनाए रख सकता था, क्योंकि यीशु की तुलना में आदम अच्छे माहौल में जी रहा था। परमेश्वर ने जिस तरीके से इंसान की रचना की थी, उसमें कोई खोट नहीं था। इस तरह यीशु मसीह ने न सिर्फ परमेश्वर की आज्ञा मानने में बल्कि यहोवा को पूरे विश्व का महाराजाधिराज मानकर उसकी भक्ति करने में भी एक मिसाल रखी। और हम भी उसी की मिसाल पर चलने की कोशिश करते हैं।—व्यवस्थाविवरण 32:4,5.
हममें से हरेक का जवाब क्या है?
16. हमें हर वक्त यह देखने के लिए चौकन्ना क्यों रहना है कि यहोवा की हुकूमत के बारे में हमारा क्या रवैया है?
16 आज भी हममें से हरेक यहोवा की हुकूमत के मसले का सामना करता है। अगर हमने खुलकर इस बात को कबूल किया है कि हम यहोवा के पक्ष में हैं तो शैतान हमें अपना निशाना बनाता है। वह हर तरफ से हम पर दबाव डालता है और वह तब तक ऐसा करता रहेगा जब तक कि उसके दुष्ट संसार का नाश नहीं हो जाता। इसलिए हमें हमेशा चौकन्ना रहने की ज़रूरत है। (1 पतरस 5:8) हमारे चालचलन से यह ज़ाहिर होता है कि हम यहोवा की हुकूमत के अहम मसले और परीक्षा के समय यहोवा के वफादार रहने के दूसरे मसले में किसके पक्ष में हैं। हम विश्वासघात को एक हलकी बात नहीं समझ सकते, सिर्फ इसलिए कि ऐसा रवैया दुनिया में आम है। विश्वासघात करना हमारे लिए नुकसानदेह है। खराई बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि हम ज़िंदगी के हर दायरे में यहोवा के धर्मी स्तरों को मानने की कोशिश करें।
17. झूठ और चोरी की शुरूआत के बारे में किस सच्चाई को ध्यान में रखते हुए हमें उनसे दूर रहना चाहिए?
17 उदाहरण के लिए, हमें शैतान की तरह नहीं बनना चाहिए जो “झूठ का पिता” है। (यूहन्ना 8:44) हमें अपने हर काम में ईमानदार होना चाहिए। शैतान के संसार में जवानों के लिए अपने माता-पिता से झूठ बोलना आम बात है। लेकिन मसीही जवान ऐसा नहीं करते और इस तरह वे शैतान के दावे को झूठा साबित करते हैं कि परीक्षा के दौरान परमेश्वर के लोग अपनी खराई तोड़ देंगे। (अय्यूब 1:9-11; नीतिवचन 6:16-19) इसके अलावा, दुनिया में बिज़नेस के ऐसे तरीके आम हैं जिन्हें अपनानेवाले के बारे में ज़ाहिर होता है कि वह सच्चाई के परमेश्वर के पक्ष में नहीं बल्कि “झूठ के पिता” के पक्ष में है। हम उस तरह के बिज़नेस नहीं करते। (मीका 6:11,12) उसी तरह चोरी करना भी गलत है और इसे किसी भी हाल में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता, फिर चाहे एक व्यक्ति तंगहाली की वजह से चोरी करता हो या वह किसी रईस की चीज़ें चुराता हो। (नीतिवचन 6:30,31; 1 पतरस ) चोरी करना, भले ही हमारे इलाके में आम हो या चाहे छोटी-छोटी चीज़ों की चोरी की जाती हो, फिर भी यह परमेश्वर के नियमों के खिलाफ है।— 4:15लूका 16:10; रोमियों 12:2; इफिसियों 4:28.
18. (क) मसीह के हज़ार साल की हुकूमत के खत्म होने पर, सभी इंसानों की क्या परीक्षा होगी? (ख) अभी से हमें क्या आदत डालनी चाहिए?
18 मसीह के हज़ार साल के राज्य के दौरान, शैतान और उसके पिशाच अथाह कुंड में होंगे, इसलिए वे इंसानों को गुमराह नहीं कर पाएँगे। तब हम क्या ही राहत महसूस करेंगे! मगर हज़ार साल के खत्म होने पर उन्हें कुछ वक्त के लिए छोड़ा जाएगा। फिर शैतान और जो उसके पीछे हो लेते हैं, वे परमेश्वर के वफादार रहनेवाले बाकी सिद्ध इंसानों की खराई तोड़ने के लिए उन पर दबाव डालेंगे। (प्रकाशितवाक्य 20:7-10) अगर हमें उस वक्त तक ज़िंदा रहने का अनमोल मौका मिला, तो हम विश्व पर हुकूमत के मसले में किसकी तरफ खड़े होंगे? उस वक्त हर इंसान सिद्ध होगा इसलिए अगर कोई विश्वासघात करता है तो वह जानबूझकर किया गया विश्वासघात होगा और उसकी सज़ा होगी, हमेशा के लिए विनाश। तो हमारे लिए यह कितना ज़रूरी है कि हम अभी से यहोवा से मिलनेवाली हर हिदायत को मानने की आदत डालें, फिर चाहे वह अपने वचन से या अपने संगठन से हमें हिदायत देता हो! ऐसा करने से हम यहोवा को पूरे विश्व का महाराजाधिराज मानकर उसके लिए अपनी सच्ची भक्ति दिखा रहे होंगे।
आइए याद करें
• हम सभी को कौन-से बड़े मसले का सामना करना पड़ता है? इन मसलों में हम कैसे शामिल हुए?
• प्राचीन समय के स्त्री-पुरुषों ने जिन तरीकों से यहोवा के लिए अपनी वफादारी बनाए रखी, उनमें क्या बात गौर करने लायक है?
• यह क्यों ज़रूरी है कि हम हर दिन अपने चालचलन से यहोवा का आदर करें?
[अध्ययन के लिए सवाल]