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अध्याय 13

“यहोवा की व्यवस्था सिद्ध है”

“यहोवा की व्यवस्था सिद्ध है”

1, 2. ज़्यादातर लोग क्यों कानून की इज़्ज़त नहीं करते, मगर फिर भी हम परमेश्वर के कानूनों के बारे में कैसी भावना पैदा कर सकते हैं?

“मुकद्दमेबाज़ी वह अथाह कुआं है, जिसमें . . . सबकुछ समा जाता है।” ये शब्द, सन्‌ 1712 में छपी एक किताब में लिखे थे। इस किताब का लेखक उस कानून-व्यवस्था की बुराई कर रहा था जिसके तहत चलनेवाले मुकद्दमे बरसों-बरस घिसटते रहते थे, और इंसाफ की उम्मीद करनेवाले मुकद्दमा लड़ते-लड़ते कंगाल हो जाते थे। कई देशों में, कानून और न्याय-व्यवस्था इतनी जटिल है, और अन्याय, भेदभाव और मुँह देखा न्याय करना इतना आम है कि लोग कानून के नाम से ही चिढ़ने लगे हैं।

2 इसकी तुलना में ज़रा इन शब्दों पर गौर कीजिए जो करीब 2,700 साल पहले लिखे गए थे: “अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं!” (भजन 119:97) इस भजनहार को परमेश्वर की कानून-व्यवस्था से इतना गहरा लगाव क्यों था? क्योंकि जिस कानून-व्यवस्था की तारीफ उसने की, वह किसी दुनियावी सरकार की नहीं बल्कि यहोवा परमेश्वर की थी। जैसे-जैसे आप यहोवा के कानूनों का अध्ययन करेंगे, वैसे-वैसे आप और भी ज़्यादा भजनहार की तरह महसूस कर पाएँगे। इस तरह के अध्ययन से आप जान पाएँगे कि इस विश्व में कानून बनानेवाली सबसे महान हस्ती की सोच कैसी है।

सबसे बड़ा कानून-साज़

3, 4. किस तरह यहोवा एक कानून-साज़ साबित हुआ?

3 बाइबल कहती है: “व्यवस्था का देने वाला और न्यायी तो एक ही है।” (याकूब 4:12, NHT) वाकई, सही मायनों में सिर्फ यहोवा ही सच्चा कानून-साज़ है। यहाँ तक कि आकाश के पिंड भी उसके ‘नभ के नियमों’ के मुताबिक चलते हैं। (अय्यूब 38:33, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) उसी तरह यहोवा के लाखों-करोड़ों स्वर्गदूत भी उसके बनाए नियमों का पालन करते हैं। वे अलग-अलग श्रेणियों में बँटे हैं और यहोवा के सेवकों के नाते उसकी कमान के अधीन उसकी सेवा करते हैं।—इब्रानियों 1:7, 14.

4 यहोवा ने इंसानों को भी कायदे-कानून दिए हैं। हममें से हरेक के अंदर विवेक है, इसीलिए हम यहोवा की तरह न्याय का जज़्बा रखते हैं। विवेक हमारे अंदर का कानून है, जो सही और गलत के बीच फर्क करने में हमारी मदद कर सकता है। (रोमियों 2:14) हमारे पहले माता-पिता को सिद्ध विवेक की आशीष मिली थी। इसलिए उन्हें ढेर सारे नियमों की ज़रूरत नहीं थी। (उत्पत्ति 2:15-17) लेकिन, असिद्ध इंसान को परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में मार्गदर्शन के लिए ज़्यादा कायदे-कानूनों की ज़रूरत थी। नूह, इब्राहीम और याकूब जैसे कुलपिताओं ने यहोवा परमेश्वर से नियम पाकर, इन्हें अपने परिवारों को सिखाया था। (उत्पत्ति 6:22; 9:3-6; 18:19; 26:4, 5) यहोवा ने पहली बार इस्राएल जाति को मूसा के ज़रिए एक ब्यौरेदार कानून-व्यवस्था दी और इस तरह वह उनका कानून-साज़ बना। यहोवा की इस कानून-व्यवस्था से हमें उसके न्याय का जज़्बा अच्छी तरह समझ में आता है।

मूसा की कानून-व्यवस्था पर एक नज़र

5. क्या मूसा की कानून-व्यवस्था जटिल नियमों की बस एक लंबी-चौड़ी लिस्ट थी जिन पर अमल करना बहुत मुश्किल था, और आप ऐसा जवाब क्यों देते हैं?

5 बहुत-से लोग शायद सोचते हैं कि मूसा की कानून-व्यवस्था, ऐसे जटिल नियमों की लंबी-चौड़ी लिस्ट है जिन पर अमल करना बहुत मुश्किल था। लेकिन यह बात सच नहीं है। पूरी कानून-व्यवस्था में कुल मिलाकर 600 से कुछ ज़्यादा नियम थे। ये संख्या शायद हमें बहुत बड़ी लगे, मगर एक पल के लिए ज़रा गौर कीजिए: 20वीं सदी के आखिर तक, अमरीका के सरकारी कायदे-कानून इतने हो गए थे कि इन्होंने कानून की किताबों के 1,50,000 से ज़्यादा पन्ने भर दिए। इतना ही नहीं, हर दो साल में करीब 600 और नियम इसमें जोड़े जाते हैं! इसलिए अगर आप संख्या की बात करें, तो इंसानों के लिखे कानूनों के ढेर के आगे मूसा की कानून-व्यवस्था तो बौनी लगती है। फिर भी, परमेश्वर की कानून-व्यवस्था में इस्राएलियों की ज़िंदगी के उन पहलुओं पर ध्यान दिया गया था, जिनका आजकल के कानूनों में ज़िक्र तक नहीं पाया जाता। आइए मूसा की कानून-व्यवस्था पर एक नज़र डालें।

6, 7. (क) मूसा की कानून-व्यवस्था और दूसरे कायदे-कानूनों में क्या फर्क था, और कानून-व्यवस्था का सबसे बड़ा नियम क्या था? (ख) इस्राएली कैसे दिखाते कि वे यहोवा की हुकूमत को अपनी ज़िंदगी में स्वीकार करते हैं?

6 कानून-व्यवस्था ने यहोवा की हुकूमत को बुलंद किया। इस मामले में, कोई और कायदे-कानून, मूसा की कानून-व्यवस्था की बराबरी नहीं कर सकते। इसमें सबसे बड़ा नियम था: “हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है; तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्‍ति के साथ प्रेम रखना।” परमेश्वर के लोगों को यहोवा के लिए अपना प्यार कैसे दिखाना था? उन्हें यहोवा की सेवा करनी थी और उसकी हुकूमत के अधीन होना था।—व्यवस्थाविवरण 6:4, 5; 11:13.

7 हर इस्राएली जब अपने ऊपर ठहराए अधिकारियों के अधीन रहता था, तो इससे ज़ाहिर होता था कि वह यहोवा की हुकूमत कबूल करता है। माता-पिता, प्रधान, न्यायी, याजक यहाँ तक कि देश का राजा, इन सभी को यहोवा की तरफ से अधिकार मिला हुआ था। इन अधिकारियों के खिलाफ बगावत, यहोवा की नज़र में उसके खिलाफ बगावत थी। दूसरी तरफ, जिनके पास अधिकार था, अगर वे लोगों पर अन्याय करते या क्रूरता से पेश आते, तो बहुत मुमकिन था कि यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठता। (निर्गमन 20:12; 22:28; व्यवस्थाविवरण 1:16, 17; 17:8-20; 19:16, 17) इस तरह, जिनके पास अधिकार था और जो अधीन थे, दोनों पर यहोवा की हुकूमत को बुलंद करने की ज़िम्मेदारी थी।

8. कानून-व्यवस्था में, पवित्रता के बारे में यहोवा का स्तर कैसे बुलंद किया गया था?

8 कानून-व्यवस्था ने यहोवा की पवित्रता के स्तर को बुलंद किया। मूसा की कानून-व्यवस्था में, “पवित्र” या “पवित्रता” अनुवाद किए जानेवाले इब्रानी शब्द 280 से ज़्यादा बार आते हैं। इस कानून-व्यवस्था ने परमेश्वर के लोगों को शुद्ध और अशुद्ध, स्वच्छ और अस्वच्छ चीज़ों के बीच फर्क करने में मदद दी। इसमें 70 ऐसी चीज़ों के बारे में बताया है, जिनकी वजह से एक इस्राएली व्यवस्था के मुताबिक अशुद्ध हो जाता था। ये नियम, शरीर की साफ-सफाई, खाने-पीने की चीज़ों, यहाँ तक कि मल-त्याग के बारे में थे। सेहत के लिहाज़ से ये नियम बहुत फायदेमंद साबित हुए। * मगर इन नियमों का मकसद अच्छी सेहत देने से बढ़कर कुछ था। इन नियमों को मानने से ये लोग हमेशा यहोवा के अनुग्रह में बने रहते और आस-पास की पतित जातियों के घिनौने कामों से दूर रहते। एक मिसाल पर गौर कीजिए।

9, 10. कानून-व्यवस्था में लैंगिक संबंधों और बच्चे के जन्म के बारे में क्या कानून दिए गए थे, और इनसे क्या लाभ होता था?

9 व्यवस्था वाचा के कानूनों के मुताबिक, लैंगिक संबंधों और बच्चे के जन्म होने के बाद, स्त्री-पुरुष को कुछ वक्‍त के लिए अशुद्ध माना जाता था, फिर चाहे वे शादी-शुदा जोड़ा ही क्यों न हो। (लैव्यव्यवस्था 12:2-4; 15:16-18) इस तरह के कानूनों से, परमेश्वर की तरफ से मिले इन पवित्र वरदानों का तिरस्कार नहीं होता था। (उत्पत्ति 1:28; 2:18-25) इसके बजाय, ये नियम यहोवा की पवित्रता को बुलंद करते थे और उसके सेवकों को दूषित होने से बचाए रखते थे। गौर करने लायक बात है कि इस्राएल के आस-पास की जातियाँ, अकसर उपासना के साथ-साथ लैंगिक संबंध और प्रजनन के रीति-रिवाज़ मानती थीं। कनान देश के धर्म में स्त्रियों को वेश्यावृति और पुरषों को पुरुषगमन में हिस्सा लेना होता था। अंजाम यह हुआ कि घिनौने किस्म के रीति-रिवाज़ बढ़ते चले गए। दूसरी तरफ, कानून-व्यवस्था ने यहोवा की उपासना को लैंगिक मामलों से पूरी तरह अलग रखा। * इसके और भी फायदे थे।

10 इन कायदे-कानूनों से एक बहुत अहम सच्चाई सिखायी गयी। * दरअसल, आदम का पाप एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कैसे पहुँचाया जाता है? क्या लैंगिक संबंधों और उसके बाद बच्चों को जन्म देने से नहीं? (रोमियों 5:12) जी हाँ, परमेश्वर की कानून-व्यवस्था लोगों को यह असलियत बार-बार याद दिलाती थी कि पाप उनमें हर घड़ी मौजूद है। दरअसल, हम सभी पाप के साथ ही पैदा होते हैं। (भजन 51:5) हमें अपने पवित्र परमेश्वर के करीब आने के लिए पापों की माफी की और इससे छुड़ाए जाने की ज़रूरत है।

11, 12. (क) कानून-व्यवस्था में न्याय के किस अहम सिद्धांत का समर्थन किया जाता था? (ख) कानून-व्यवस्था में, कोई न्याय बिगाड़ने न पाए इसके लिए क्या इंतज़ाम किए गए थे?

11 कानून-व्यवस्था से यहोवा का सिद्ध न्याय बुलंद होता था। मूसा की कानून-व्यवस्था में, न्याय करते वक्‍त बराबर बदला चुकाने के सिद्धांत की पैरवी की गयी थी। इसलिए, कानून-व्यवस्था में लिखा था: “प्राण की सन्ती प्राण का, आंख की सन्ती आंख का, दांत की सन्ती दांत का, हाथ की सन्ती हाथ का, पांव की सन्ती पांव का दण्ड देना।” (व्यवस्थाविवरण 19:21) इसलिए, अपराधिक मामलों में जैसा अपराध होता था वैसी ही सज़ा दी जाती थी। परमेश्वर के न्याय का यह पहलू, कानून-व्यवस्था के सभी नियमों में देखा जा सकता था और आज भी मसीह यीशु के छुड़ौती बलिदान की समझ पाने के लिए यह बेहद ज़रूरी है। अध्याय 14 हमें इसी बारे में ज़्यादा बताएगा।—1 तीमुथियुस 2:5, 6.

12 कानून-व्यवस्था में कई इंतज़ाम ऐसे भी थे जिनकी वजह से कोई न्याय को बिगाड़ नहीं सकता था। मसलन, किसी भी इलज़ाम को सच साबित करने के लिए कम-से-कम दो गवाहों की ज़रूरत होती थी। झूठी साक्षी देनेवालों को कड़ी-से-कड़ी सज़ा दी जाती थी। (व्यवस्थाविवरण 19:15, 18, 19) भ्रष्टाचार और घूसखोरी की भी सख्त मनाही थी। (निर्गमन 23:8; व्यवस्थाविवरण 27:25) अपने व्यापार और लेन-देन में भी, परमेश्वर के लोगों को यहोवा के न्याय के ऊँचे स्तर पर कायम रहना था। (लैव्यव्यवस्था 19:35, 36; व्यवस्थाविवरण 23:19, 20) ऐसे उत्तम और निष्पक्ष कायदे-कानून इस्राएल जाति के लिए बहुत बड़ी आशीष थे!

कानून जो दया दिखाने और बिना पक्षपात के न्याय करने पर ज़ोर देते थे

13, 14. कानून-व्यवस्था में कैसे चोर और जिसको उसने लूटा दोनों के साथ न्याय किया जाता था?

13 क्या मूसा की व्यवस्था ढेरों सख्त नियमों की पोथी थी जिनमें दया की कोई गुंजाइश न थी? ऐसा बिलकुल नहीं था! राजा दाऊद ने ये ईश्वर-प्रेरित शब्द लिखे: “यहोवा की व्यवस्था सिद्ध है।” (भजन 19:7, NHT) दाऊद बहुत अच्छी तरह जानता था कि यह कानून-व्यवस्था दया दिखाने और बिना पक्षपात के न्याय करने पर ज़ोर देती है। वह कैसे?

14 आज कुछ देशों में, लगता है कि कानून को अपराध के शिकार लोगों से ज़्यादा अपराधियों से हमदर्दी है और उन्हें सख्त सज़ा देने के बजाय यह उनके साथ नरमी से पेश आता है। मिसाल के लिए, एक चोर को शायद जेल की सज़ा हो जाए, लेकिन जिसकी चीज़ें चोरी हुई हैं शायद उसे अब तक अपनी चीज़ें वापस न मिली हों। ऊपर से उसे टैक्स भरना पड़ता है ताकि जेल में चोर-डाकुओं जैसे अपराधियों के रहने और खाने का इंतज़ाम किया जा सके। प्राचीन इस्राएल में, आज के जैसे जेलखाने नहीं हुआ करते थे। दोषियों को कितनी सख्त सज़ा दी जाएगी इसकी हद ठहरायी गयी थी। (व्यवस्थाविवरण 25:1-3) एक चोर को चुराए गए सामान की भरपाई करनी होती थी। इसके अलावा, चोर को जुर्माना भी देना पड़ता था। कितना? यह अलग-अलग होता था। न्यायियों को इस बात की छूट दी गयी थी कि अलग-अलग बातें, जैसे कि अपराधी का प्रायश्‍चित्त देखते हुए उस पर जुर्माना करें। इसलिए समझ में आता है कि लैव्यव्यवस्था 6:1-7 में चोरी करनेवाले से जितने मुआवज़े की बात कही है, उससे कहीं ज़्यादा मुआवज़ा भरने की बात निर्गमन 22:7 में बतायी गयी है।

15. अगर एक इंसान ने गलती से किसी का खून किया हो, तो कानून-व्यवस्था में कैसे उस पर दया दिखाने के साथ-साथ उसका न्याय भी किया जाता था?

15 दया दिखाते हुए, कानून-व्यवस्था में यह भी स्वीकार किया गया था कि सारे पाप जान-बूझकर नहीं किए जाते। मिसाल के लिए, अगर एक आदमी ने गलती से किसी की जान ले ली हो, और अगर वह सही कदम उठाते हुए भागकर किसी एक शरणनगर में चला जाए, जो इस्राएल में अलग-अलग जगहों पर थे, तो उसे प्राण के बदले प्राण देने की ज़रूरत नहीं थी। वहाँ काबिल न्यायी उसके मामले की जाँच करते। उसके बाद, उसे महायाजक की मौत तक उसी शरणनगर में रहना होता था। महायाजक की मौत के बाद, वह जहाँ चाहे जाकर रह सकता था। इस तरह उसे परमेश्वर की दया से लाभ होता था। साथ ही इस कानून-व्यवस्था में ज़ोर दिया गया था कि इंसान की ज़िंदगी को बेहद अनमोल समझा जाए।—गिनती 15:30, 31; 35:12-25.

16. कानून-व्यवस्था में निजी अधिकारों की रक्षा कैसे की गयी थी?

16 कानून-व्यवस्था में एक इंसान के निजी अधिकारों की भी रक्षा होती थी। गौर कीजिए कि कर्ज़ के बोझ से दबे लोगों की, कानून-व्यवस्था कैसे रक्षा करती थी। कानून-व्यवस्था के मुताबिक, कर्ज़ वसूल करनेवाले पर कुछ पाबंदियाँ थीं। पैसों के बदले में वह, कर्ज़दार के घर में घुसकर गिरवी रखने के लिए कोई भी चीज़ उठाकर नहीं ले जा सकता था। इसके बजाय, कर्ज़ वसूल करनेवाले को कर्ज़दार के घर के बाहर ही रुकना होता था ताकि वह खुद गिरवी रखने के लिए कोई चीज़ उसके पास ले आए। इस तरह उस आदमी के घर में घुसपैठ नहीं होती थी। और अगर लेनदार ने कर्ज़दार का ओढ़ना अपने पास गिरवी रख लिया, तो उसे रात तक यह ओढ़ना लौटाना होता था, क्योंकि रात को ठंड से बचने के लिए कर्ज़दार को इसकी ज़रूरत पड़ सकती थी।—व्यवस्थाविवरण 24:10-14.

17, 18. युद्ध के मामले में, इस्राएली दूसरे देशों से कैसे अलग थे, और ऐसा क्यों था?

17 कानून-व्यवस्था में युद्धों के बारे में भी नियम दिए गए थे। परमेश्वर के लोगों को दूसरों पर अधिकार करने या सिर्फ जीत हासिल करने के लालच से युद्ध नहीं लड़ने थे, बल्कि उन्हें ‘यहोवा के संग्रामों’ में उसके प्रतिनिधि बनकर लड़ना होता था। (गिनती 21:14) कई मामलों में, इस्राएलियों से यह माँग की गयी थी कि वे पहले दुश्मन से हथियार डालने को कहें। अगर कोई नगर इस पेशकश को ठुकरा देता था, तो इस्राएली उसे घेर सकते थे—मगर परमेश्वर के नियमों के मुताबिक। इतिहास में अकसर जीतनेवाले सिपाही जो करते आए हैं, वह इस्राएल की सेना के जवानों को करने से मना किया गया था। वे न तो दुश्मन की स्त्रियों की इज़्ज़त पर हाथ डालते थे, न ही उन्हें बेवजह खून की नदियाँ बहाने की इजाज़त थी। यहाँ तक कि उनसे पर्यावरण का लिहाज़ करने की भी माँग की गयी थी, यानी वे दुश्मन के इलाके के फलदायी पेड़ों को गिरा नहीं सकते थे। * दूसरे देशों की सेनाओं पर ये सारी पाबंदियाँ नहीं थीं।—व्यवस्थाविवरण 20:10-15, 19, 20; 21:10-13.

18 क्या आप यह सुनकर तिलमिला उठते हैं कि कुछ देशों में छोटे-छोटे बच्चों को सिपाहियों की ट्रेनिंग दी जाती है? प्राचीन इस्राएल में, 20 साल से कम उम्र के नौजवान को सेना में भर्ती नहीं किया जाता था। (गिनती 1:2, 3) लेकिन, ऐसे पुरुष को भी भर्ती नहीं किया जाता था जो युद्ध के नाम से खौफ खाता हो। जिस जवान की नयी-नयी शादी होती थी, उसे पूरे एक साल के लिए सेना से छुट्टी दी जाती थी, ताकि वह जान हथेली पर रखकर अपनी सेवा शुरू करने से पहले अपने वारिस का मुँह देख सके। कानून-व्यवस्था समझाती है कि इस तरीके से एक जवान अपनी नयी-नवेली दुल्हन को “प्रसन्न” कर सकता था।—व्यवस्थाविवरण 20:5, 6, 8; 24:5.

19. कानून-व्यवस्था में स्त्रियो, बच्चों, परिवारों, विधवाओं और अनाथों की रक्षा करने के लिए क्या इंतज़ाम किए गए थे?

19 कानून-व्यवस्था, स्त्रियों, बच्चों और परिवारों की रक्षा भी करती थी और इसमें उनकी देखभाल का इंतज़ाम भी था। इसमें माता-पिता को आज्ञा दी गयी थी कि वे अपने बच्चों पर बराबर ध्यान देते रहें और आध्यात्मिक बातों के बारे में उन्हें उपदेश दें। (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7) परिवार के सदस्यों के बीच नाजायज़ लैंगिक संबंधों की सख्त मनाही थी, और इस नियम को तोड़नेवाले के लिए मौत की सज़ा थी। (लैव्यव्यवस्था, अध्याय 18) इसी तरह यह व्यभिचार करने से मना करती थी, जिससे अकसर परिवार टूट जाते हैं, उनकी सुरक्षा खत्म हो जाती है और वे समाज में किसी को मुँह दिखाने के लायक नहीं रहते। कानून-व्यवस्था में विधवाओं और अनाथों के लिए खास इंतज़ाम किए गए थे और उनके साथ बुरा सलूक करने की कड़े-से-कड़े शब्दों में निंदा की गयी थी।—निर्गमन 20:14; 22:22-24.

20, 21. (क) मूसा की कानून-व्यवस्था ने इस्राएलियों को अनेक शादियाँ करने की इजाज़त क्यों दी? (ख) तलाक के मामले में, कानून-व्यवस्था का स्तर बाद में यीशु के ठहराए स्तर से अलग क्यों था?

20 लेकिन, इस मामले में कुछ लोग शायद सवाल पूछें, ‘कानून-व्यवस्था में एक से ज़्यादा शादियाँ करने की इजाज़त क्यों दी गयी थी?’ (व्यवस्थाविवरण 21:15-17) हमें उस ज़माने के हालात को ध्यान में रखते हुए इन नियमों को समझना चाहिए। जो लोग आज के ज़माने और संस्कृतियों को ध्यान में रखते हुए मूसा की कानून-व्यवस्था के बारे में सोचेंगे, ज़ाहिर है वे इसे सही तरह समझ नहीं पाएँगे। (नीतिवचन 18:13) सबसे पहले अदन की वाटिका में, यहोवा ने यह तय किया था कि शादी, एक पति और एक पत्नी के बीच का अटूट बंधन हो। (उत्पत्ति 2:18, 20-24) लेकिन, जिस ज़माने में यहोवा ने इस्राएल जाति को कानून-व्यवस्था दी थी तब तक अनेक शादियाँ करने के रिवाज़ को चलते हुए सदियाँ बीत चुकी थीं, इसलिए यह समाज में बहुत गहराई तक जड़ पकड़ चुका था। यहोवा अच्छी तरह जानता था कि उसके ये “हठीले” लोग, मूर्तिपूजा न करने जैसी व्यवस्था की बुनियादी आज्ञाओं को भी बार-बार तोड़ देंगे। (निर्गमन 32:9) इसलिए, उसने समझ से काम लेकर उस युग में उनके शादी-ब्याह के रिवाज़ों को पूरी तरह से बदल देने का फैसला नहीं किया। लेकिन, याद रखिए कि अनेक शादियाँ करने का रिवाज़ यहोवा ने शुरू नहीं किया था। लेकिन हाँ, उसने मूसा की कानून-व्यवस्था के ज़रिए अनेक शादियाँ करनेवालों के लिए नियम ज़रूर तय किए ताकि उसके लोग इस रिवाज़ का गलत फायदा न उठाएँ।

21 उसी तरह, मूसा की कानून-व्यवस्था एक आदमी को कई गंभीर कारणों के आधार पर अपनी पत्नी को तलाक देने की इजाज़त देती थी। (व्यवस्थाविवरण 24:1-4) यीशु ने कहा कि परमेश्वर ने यहूदियों के साथ यह रिआयत उनके “मन की कठोरता के कारण” बरती थी। लेकिन, ऐसी रिआयत सिर्फ कुछ समय के लिए थी। यीशु ने अपने चेलों के लिए, शादी के मामले में फिर से वही स्तर कायम किया जो यहोवा ने शुरू में ठहराया था।—मत्ती 19:8.

कानून-व्यवस्था ने प्रेम को बढ़ावा दिया

22. किन तरीकों से मूसा की कानून-व्यवस्था में प्रेम को बढ़ावा दिया गया था, और परमेश्वर के लोगों को किस-किस के लिए प्रेम दिखाना था?

22 क्या आज की कोई भी कानून-व्यवस्था ऐसी है जो लोगों को प्यार-मुहब्बत से जीने का बढ़ावा देती हो? मूसा की व्यवस्था में सबसे ज़्यादा प्रेम को बढ़ावा दिया गया था। तभी तो अकेले व्यवस्थाविवरण की किताब में, अलग-अलग रूप में “प्रेम” शब्द 20 से ज़्यादा बार आता है। “एक दूसरे से अपने ही समान प्रेम रखना” पूरी कानून-व्यवस्था में दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा थी। (लैव्यव्यवस्था 19:18; मत्ती 22:37-40) परमेश्वर के लोगों को ऐसा प्रेम न सिर्फ अपने जातिभाइयों को दिखाना था, बल्कि उनके बीच रहनेवाले परदेशियों से भी उन्हें ऐसा प्रेम करना था, और यह याद रखना था कि एक वक्‍त खुद इस्राएली परदेशी थे। उन्हें दीन-दुखियों और गरीबों के लिए प्रेम दिखाना था, पैसे या खाने-कपड़े से उनकी मदद करनी थी और उनकी लाचारी का फायदा उठाने से दूर रहना था। यहाँ तक कि उन्हें बोझा ढोनेवाले जानवरों पर भी दया और करुणा दिखानी थी।—निर्गमन 23:6; लैव्यव्यवस्था 19:14, 33, 34; व्यवस्थाविवरण 22:4, 10; 24:17, 18.

23. भजन 119 के लेखक को क्या करने की प्रेरणा मिली, और हम क्या करने का पक्का फैसला कर सकते हैं?

23 ऐसा कौन-सा देश था जिसे इस तरह के कायदे-कानून पाने की आशीष मिली हो? इसलिए ताज्जुब नहीं कि भजनहार ने यह लिखा: “अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं!” मगर उसका यह प्यार सिर्फ दिल की एक भावना नहीं था। इस प्यार ने उसे काम करने को उकसाया, क्योंकि उसने परमेश्वर की कानून-व्यवस्था को मानने की और उसके मुताबिक जीने की पूरी-पूरी कोशिश की। उसने आगे कहा: “दिन भर मेरा ध्यान [तेरी व्यवस्था] पर लगा रहता है।” (भजन 119:11, 97) जी हाँ, वह बिना नागा यहोवा के नियमों का अध्ययन करने के लिए वक्‍त निकालता था। बेशक, जैसे-जैसे वह ऐसा करता रहा, इनके लिए उसका प्यार और बढ़ता गया। साथ ही, इसके देनेवाले यहोवा परमेश्वर के लिए भी उसका प्यार बढ़ता गया। उसी तरह, जैसे-जैसे आप परमेश्वर के कानूनों का अध्ययन करें, हमारी दुआ है कि आप भी उस महान कानून-साज़ और न्यायी परमेश्वर के और करीब आते जाएँ।

^ पैरा. 8 मिसाल के लिए, जो नियम आज सब देशों में माने जाते हैं, वे नियम सदियों पहले से ही व्यवस्था में थे। जैसे मल-त्याग करने के बाद उसे गड्ढा खोदकर गाड़ देना, बीमारों को सेहतमंद लोगों से अलग रखना, और लाश को छूनेवाले का नहाना-धोना।—लैव्यव्यवस्था 13:4-8; गिनती 19:11-13, 17-19; व्यवस्थाविवरण 23:13, 14.

^ पैरा. 9 कनानियों के मंदिरों में लैंगिक कामों के लिए अलग कमरे बनाए जाते थे, मगर मूसा की कानून-व्यवस्था में साफ लिखा था कि जो इंसान अशुद्ध अवस्था में है, उसे मंदिर में पैर रखने की इजाज़त नहीं थी। लैंगिक संबंधों से स्त्री-पुरुष कुछ समय तक अशुद्ध हो जाते थे, इसलिए कोई भी यहोवा के भवन में उपासना के साथ किसी भी तरह के लैंगिक कामों को जायज़ नहीं ठहरा सकता था।

^ पैरा. 10 व्यवस्था का सबसे खास उद्देश्य था लोगों को सिखाना। दरअसल, इनसाइक्लोपीडिया जुडाइका बताती है कि “नियम” के लिए इब्रानी में इस्तेमाल होनेवाले शब्द, तोहरा का मतलब है “हिदायत।”

^ पैरा. 17 कानून-व्यवस्था में यह पैना सवाल पूछा गया था: “क्या मैदान के वृक्ष भी मनुष्य हैं कि तू उनको भी घेर रखे?” (व्यवस्थाविवरण 20:19) पहली सदी के एक यहूदी विद्वान, फाइलो ने इस नियम का हवाला देकर समझाया कि परमेश्वर की नज़र में, यह “अन्याय है कि इंसानों का गुस्सा उन चीज़ों पर निकाला जाए जिन्होंने कोई बुराई नहीं की।”