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अध्याय 12

“क्या परमेश्वर के यहां अन्याय है?”

“क्या परमेश्वर के यहां अन्याय है?”

1. अन्याय होता देखकर हम पर क्या असर हो सकता है?

एक बूढ़ी विधवा के साथ धोखाधड़ी करके कोई उसकी ज़िंदगी भर की जमा-पूँजी हड़प कर जाता है। एक लाचार शिशु को उसकी निर्दयी माँ रास्ते पर छोड़ जाती है। एक आदमी को उस जुर्म की सज़ा दी जाती है जो उसने किया ही नहीं। यह सब देखकर आपको कैसा लगता है? शायद ये तीनों नज़ारे आपको बेचैन कर दें और यह स्वाभाविक है। हम इंसानों में सही और गलत का ज़बरदस्त जज़्बा है। कोई अन्याय होता देखकर हमारा खून खौल उठता है। हम चाहते हैं कि किसी मासूम ने जो खोया है उसे वापस दिलाया जाए और ज़ुल्म करनेवालों को उनके किए की सज़ा मिले। अगर ऐसा नहीं होता, तो हम सोचने लगते हैं: ‘क्या परमेश्वर यह सब देख रहा है? वह कुछ करता क्यों नहीं?’

2. हबक्कूक पर अन्याय का क्या असर हुआ, और यहोवा ने इसके लिए उसे क्यों नहीं फटकारा?

2 इतिहास के हर दौर में, यहोवा के वफादार सेवकों ने ऐसे ही सवाल पूछे हैं। मिसाल के लिए, भविष्यवक्ता हबक्कूक ने परमेश्वर से प्रार्थना की: “तू क्यों मुझे ऐसा घोर अन्याय दिखा रहा है? तू क्यों हिंसा, अधर्म और क्रूरता को हर तरफ बढ़ने देता है?” (हबक्कूक 1:3, कॉन्टेम्प्ररी इंग्लिश वर्शन) यहोवा ने हबक्कूक को ऐसे पैने सवाल पूछने के लिए फटकारा नहीं, क्योंकि उसी ने इंसानों में न्याय की भावना डाली है। जी हाँ, यहोवा ने न्याय के अपने गहरे जज़्बे को कुछ हद तक हमारे अंदर भी भरा है।

यहोवा अन्याय से घृणा करता है

3. क्यों कहा जा सकता है कि हमसे ज़्यादा यहोवा को अन्याय की जानकारी है?

3 ऐसा हरगिज़ नहीं है कि यहोवा अन्याय को नहीं देखता। जो कुछ हो रहा है वह सब देखता है। नूह के दिनों के बारे में, बाइबल हमसे कहती है: “यहोवा ने देखा, कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है सो निरन्तर बुरा ही होता है।” (उत्पत्ति 6:5) गौर कीजिए कि इन शब्दों के क्या मायने हैं। अकसर, अन्याय के बारे में हमारी जानकारी सिर्फ उन कुछेक घटनाओं पर आधारित होती है जिन्हें हमने खुद होते देखा है या दूसरों से सुना है। लेकिन, यहोवा पूरी दुनिया में होनेवाले अन्याय की जानकारी रखता है। वह एक-एक अन्याय को देखता है! यही नहीं, वह इंसान के दिल का रुझान भी जान सकता है—उन घृणित विचारों को भी जिनकी वजह से इंसान दूसरों पर अन्याय करता है।—यिर्मयाह 17:10.

4, 5. (क) बाइबल कैसे दिखाती है कि यहोवा उन लोगों की परवाह करता है जिनके साथ अन्याय हुआ है? (ख) अन्याय का खुद यहोवा पर कैसा असर हुआ है?

4 मगर यहोवा अन्याय को बस देखता ही नहीं रहता। जिन पर अन्याय हुआ है, उनकी भी वह परवाह करता है। जब उसके लोगों पर दुश्मन देशों ने अत्याचार किए, तो यहोवा “उनका कराहना” सुनकर “जो अन्धेर और उपद्रव करनेवालों के कारण होता था,” बहुत दुःखी हुआ। (न्यायियों 2:18) शायद आपने गौर किया होगा कि लोग जितना ज़्यादा अन्याय होते देखते हैं, तड़पनेवालों के लिए उनकी हमदर्दी उतनी ही कम होती जाती है। मगर यहोवा ऐसा नहीं है! उसने लगभग 6,000 सालों से देखा है कि धरती पर कैसे-कैसे अन्याय हो रहे हैं, मगर आज भी वह इससे उतनी ही घृणा करता है जितनी पहले करता था। और बाइबल हमें यकीन दिलाती है कि “झूठ बोलनेवाली जीभ,” “निर्दोष का लोहू बहानेवाले हाथ,” और ‘झूठ बोलनेवाले साक्षी’ से उसे घिन है।—नीतिवचन 6:16-19.

5 इस पर भी ध्यान दीजिए कि यहोवा ने इस्राएल में अन्याय करनेवाले अगुवों को कैसी ज़बरदस्त फटकार सुनायी। उसने अपने भविष्यवक्ता को उनसे यह सवाल पूछने के लिए प्रेरित किया: “क्या न्याय का भेद जानना तुम्हारा काम नहीं?” यहोवा ने, शक्ति का गलत इस्तेमाल करनेवालों का कच्चा चिट्ठा खोलकर उनके सामने रख दिया। उसके बाद, इन भ्रष्ट लोगों के अंजाम के बारे में यहोवा ने यूँ भविष्यवाणी की: “वे उस समय यहोवा की दोहाई देंगे, परन्तु वह उनकी न सुनेगा, वरन उस समय वह उनके बुरे कामों के कारण उन से मुंह फेर लेगा।” (मीका 3:1-4) वाकई, अन्याय के खिलाफ यहोवा के मन में कैसी घृणा भरी हुई है! और क्यों न हो, खुद उस पर भी तो अन्याय हुआ है! हज़ारों सालों से, शैतान बेवजह उसकी निंदा करता आया है। (नीतिवचन 27:11) यही नहीं, इतिहास के सबसे घिनौने अन्याय ने यहोवा को तब तड़पा दिया जब उसके बेटे को, जिसने ‘कोई पाप न किया था,’ एक अपराधी की तरह मार डाला गया। (1 पतरस 2:22; यशायाह 53:9) साफ ज़ाहिर है, यहोवा अन्याय सहनेवालों की दुर्दशा को देखकर न तो अपनी आँखें मूँद लेता है, न ही चुप बैठा रहता है।

6. अन्याय होने पर हम शायद क्या करें, और क्यों?

6 फिर भी, जब हम अन्याय होता देखते हैं—या खुद अन्याय के शिकार होते हैं—तो यह स्वाभाविक है कि हम तिलमिला उठें। हम परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए हैं और अन्याय यहोवा के स्वरूप और स्वभाव के बिलकुल खिलाफ है। (उत्पत्ति 1:27) तो फिर, परमेश्वर अन्याय क्यों होने देता है?

परमेश्वर की हुकूमत का मसला

7. बताइए कि यहोवा के हुकूमत करने के हक पर कैसे सवाल उठाया गया।

7 इस सवाल का जवाब, परमेश्वर की हुकूमत के मसले से जुड़ा हुआ है। हम देख चुके हैं कि हमारे सिरजनहार को सारी धरती पर और इसके रहनेवालों पर हुकूमत करने का हक है। (भजन 24:1; प्रकाशितवाक्य 4:11) लेकिन, इंसानी इतिहास की शुरूआत में ही, यहोवा के इस हक पर सवाल उठाया गया था। वह कैसे? यहोवा ने पहले इंसान, आदम को आज्ञा दी कि वह एक पेड़ का फल ना खाए जो उसके फिरदौस जैसे घर में था। और अगर वह परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानता तो? परमेश्वर ने उसे साफ-साफ बताया: “[तू] अवश्य मर जाएगा।” (उत्पत्ति 2:17) परमेश्वर की आज्ञा मानना, आदम और हव्वा के लिए बिलकुल भी मुश्किल न था। इसके बावजूद, शैतान ने हव्वा को यकीन दिलाया कि परमेश्वर नाहक उन पर इतनी पाबंदियाँ लगा रहा है। अगर वह उस पेड़ का फल खा लेगी तो क्या होगा? शैतान ने हव्वा से सीधे-सीधे कहा: “तुम निश्चय मरोगे। वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।”—तिरछे टाइप हमारे; उत्पत्ति 3:1-5.

8. (क) शैतान ने हव्वा से जो कहा उससे वह असल में क्या कहना चाह रहा था? (ख) परमेश्वर की हुकूमत के बारे में शैतान ने क्या सवाल खड़ा किया?

8 इन शब्दों से शैतान यह कहना चाह रहा था कि न सिर्फ यहोवा ने हव्वा से ज़रूरी जानकारी छिपा रखी है, बल्कि उससे झूठ भी बोला है। शैतान ने चालाकी से काम लिया, उसने इस सच्चाई पर सवाल नहीं उठाया कि परमेश्वर विश्व का महाराजाधिराज है या नहीं। मगर उसने यह सवाल किया कि क्या वह हुकूमत करने का हकदार है, क्या वह इसके लायक है और क्या वह धार्मिकता से हुकूमत करता है? दूसरे शब्दों में, शैतान का दावा था कि यहोवा सही तरीके से हुकूमत नहीं चला रहा और न ही इससे उसकी प्रजा का कोई भला हो रहा है।

9. (क) आदम और हव्वा के लिए आज्ञा न मानने का अंजाम क्या हुआ, और शैतान के झूठ ने कौन-से अहम सवाल खड़े कर दिए? (ख) क्यों यहोवा ने बागियों को वहीं खत्म नहीं कर दिया?

9 इसके बाद, आदम और हव्वा दोनों ने यहोवा की आज्ञा तोड़ी और जिस पेड़ का फल खाने से उन्हें मना किया गया था, वही उन्होंने खाया। यहोवा के आदेश के मुताबिक, आज्ञा न मानने से वे मौत की सज़ा के लायक ठहरे। शैतान के झूठ ने कुछ अहम सवाल खड़े कर दिए थे। क्या यहोवा सचमुच इंसानों पर हुकूमत करने का हकदार है या क्या इंसान को खुद अपने आप पर राज करना चाहिए? क्या यहोवा अपनी हुकूमत बेहतरीन तरीके से चलाता है? यहोवा चाहता तो अपनी अपार शक्ति से उन बागियों को वहीं और उसी वक्‍त खत्म कर सकता था। मगर जो सवाल खड़े किए गए थे, वे परमेश्वर की शक्ति के बारे में नहीं, बल्कि उसकी हुकूमत के बारे में थे। इसलिए आदम, हव्वा और शैतान को मार डालने से यह साबित नहीं होता कि परमेश्वर का हुकूमत करने का तरीका ही सही है। उलटे, इससे उसकी हुकूमत के बारे में और भी सवाल खड़े हो जाते। इंसान, परमेश्वर से आज़ाद रहकर खुद पर हुकूमत करने में कामयाब हो सकता है या नहीं, यह जानने का एक ही तरीका था कि इसे साबित करने का वक्‍त दिया जाए।

10. इंसान की हुकूमत के बारे में इतिहास से क्या बात सामने आयी?

10 वक्‍त के गुज़रने से क्या बात सामने आयी? हज़ारों सालों से, लोगों ने तरह-तरह की सरकारें आज़माकर देखी हैं। इनमें तानाशाह, लोकतंत्र, समाजवाद और साम्यवाद जैसी सरकारें शामिल हैं। इन सब सरकारों ने जो किया है, वह बाइबल के इन चंद शब्दों में बहुत साफ कहा गया है: “मनुष्य ने दूसरे पर अधिकार जमा कर अपनी ही हानि की है।” (सभोपदेशक 8:9, NHT) भविष्यवक्ता यिर्मयाह ने कितना सही कहा था: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।”—यिर्मयाह 10:23.

11. यहोवा ने इंसानों को दुःख-तकलीफों से क्यों गुज़रने दिया?

11 यहोवा शुरू से जानता था कि इंसान की आज़ादी या उसकी अपनी हुकूमत, दुःख-दर्द के सिवा और कुछ नहीं लाएगी। जब उसे पता था कि यह होना है, तो उसने इंसान को तबाही की इस राह पर क्यों जाने दिया? क्या यह सरासर अन्याय नहीं था? हरगिज़ नहीं! एक मिसाल पर गौर कीजिए: मान लीजिए आपके बच्चे को एक जानलेवा रोग है और उसका ऑपरेशन करवाने की सख्त ज़रूरत है। आप जानते हैं कि ऑपरेशन से आपके बच्चे को बहुत तकलीफ होगी और इसलिए आप दुःखी हैं। मगर, आपको यह भी पता है कि इस ऑपरेशन के बाद आपका बच्चा बिलकुल ठीक हो जाएगा और अच्छी सेहत के साथ जी सकेगा। उसी तरह, परमेश्वर भी जानता था, यहाँ तक कि उसने भविष्यवाणी भी की कि जब वह इंसान को हुकूमत करने देगा, तो उसके साथ-साथ दुःख-दर्द और मुसीबतें भी आएँगी। (उत्पत्ति 3:16-19) मगर वह यह भी जानता था कि अगर वह इंसान को यह देखने दे कि बगावत करने का फल कितना कड़वा है, तो इस समस्या का हमेशा के लिए और सही मायनों में हल हो सकेगा। इस तरह, परमेश्वर की हुकूमत पर उठाए गए सवाल का हमेशा-हमेशा के लिए, जी हाँ, अनंतकाल के लिए जवाब मिल सकेगा।

इंसान की खराई का मसला

12. जैसा अय्यूब के मामले से पता लगता है, शैतान ने इंसानों पर क्या लांछन लगाया है?

12 इस मामले का एक और पहलू है। परमेश्वर हुकूमत करने का हकदार है या नहीं और उसके हुकूमत करने का तरीका सही है या नहीं, इस पर सवाल उठाकर शैतान ने न सिर्फ इस बारे में यहोवा की निंदा की है; बल्कि उसने परमेश्वर के सेवकों की खराई पर भी लांछन लगाया है। मिसाल के लिए, ध्यान दीजिए कि शैतान ने धर्मी अय्यूब के बारे में यहोवा से क्या कहा: “क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बान्धा? तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है। परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा।”—अय्यूब 1:10, 11.

13. शैतान अय्यूब पर इलज़ाम लगाकर असल में क्या कहना चाहता था, और इसमें सब इंसान कैसे शामिल हैं?

13 शैतान ने दावा किया कि यहोवा ने अय्यूब की रक्षा करके उसकी भक्ति को खरीद लिया है। इसका यह भी मतलब निकलता था कि अय्यूब की खराई महज़ एक ढकोसला है और वह परमेश्वर की उपासना सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि उसे बदले में उससे कुछ मिलता है। शैतान ने दावा किया कि अगर अय्यूब के ऊपर से परमेश्वर की आशीष हटा ली जाए, तो उसके जैसा धर्मी आदमी भी अपने सिरजनहार की निंदा करेगा। शैतान जानता था कि अय्यूब जैसा “खरा और सीधा और [परमेश्वर का] भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला” दूसरा कोई नहीं। * इसलिए अगर शैतान, अय्यूब जैसे इंसान की खराई तोड़ सकता था, तो बाकी इंसानों की क्या बिसात। इस तरह शैतान असल में उन सभी लोगों की वफादारी पर सवाल उठा रहा था जो परमेश्वर की सेवा करना चाहते हैं। जी हाँ, सबको अपने सवाल की चपेट में लेते हुए, शैतान ने यहोवा से कहा: “प्राण के बदले मनुष्य [सिर्फ अय्यूब ही नहीं] अपना सब कुछ दे देता है।”—तिरछे टाइप हमारे; अय्यूब 1:8; 2:4.

14. इंसानों पर लगाए शैतान के इलज़ाम के बारे में इतिहास क्या दिखाता है?

14 इतिहास दिखाता है कि बहुत-से लोग, अय्यूब की तरह परीक्षाओं के वक्‍त यहोवा के वफादार रहे हैं और इस तरह उन्होंने शैतान के दावे को गलत साबित किया है। उन्होंने ज़िंदगी भर यहोवा का वफादार बने रहकर उसके दिल को खुश किया और इसकी वजह से यहोवा, शैतान के घमंड से भरे इस ताने का मुँहतोड़ जवाब दे पाया कि इंसानों पर जब तकलीफें लायी जाती हैं, तो वे परमेश्वर की सेवा करना छोड़ देते हैं। (इब्रानियों 11:4-38) जी हाँ, सच्चे दिल के लोगों ने परमेश्वर से मुँह मोड़ने से इनकार कर दिया है। यहाँ तक कि जब वे मुश्किल-से-मुश्किल हालात से घिर गए और उन्हें समझ नहीं आया कि क्या करें, कहाँ जाएँ, तब भी उन्होंने पहले से ज़्यादा यहोवा पर भरोसा किया कि वह ज़रूर उन्हें धीरज धरने की ताकत देगा।—2 कुरिन्थियों 4:7-10.

15. गुज़रे वक्‍त और भविष्य में परमेश्वर ने जो न्याय किया है या करेगा, उसके बारे में क्या सवाल उठ सकता है?

15 मगर यहोवा के न्याय करने में सिर्फ उसकी हुकूमत और इंसान की खराई के मसले ही शामिल नहीं। बाइबल में यहोवा के वे न्यायदंड दर्ज़ हैं जो उसने अलग-अलग इंसानों पर, यहाँ तक कि पूरी जातियों को दिए थे। इसके अलावा, बाइबल में उन न्यायदंडों की भविष्यवाणियाँ भी हैं जो वह भविष्य में देनेवाला है। हम क्यों यह विश्वास रख सकते हैं कि यहोवा हमेशा न्याय करने में धर्मी रहा है और आगे भी रहेगा?

परमेश्वर का न्याय क्यों श्रेष्ठ है

यहोवा कभी-भी ‘दुष्ट के संग धर्मी को नाश नहीं करेगा’

16, 17. कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि सच्चा न्याय करने में इंसानों का सोचना-समझना सीमित है?

16 यहोवा के बारे में, यह सचमुच कहा जा सकता है: “उसके सब मार्ग तो न्यायपूर्ण हैं।” (व्यवस्थाविवरण 32:4, NHT) हममें से कोई भी खुद के बारे में ऐसा दावा नहीं कर सकता, क्योंकि कई बार हमारी सीमित सोच, हमारी समझ को धुंधला कर देती है और हम देख नहीं पाते कि सही क्या है। इब्राहीम की ही मिसाल लीजिए। उसने सदोम के विनाश के बारे में यहोवा से याचना की, हालाँकि वह जानता था कि वहाँ हर तरफ दुष्टता फैली हुई है। उसने यहोवा से पूछा: “क्या तू सचमुच दुष्ट के संग धर्मी को भी नाश करेगा?” (उत्पत्ति 18:23-33) बेशक, इसका जवाब था, नहीं। क्योंकि जब धर्मी लूत और उसकी बेटियाँ सही-सलामत पास के एक नगर सोअर में पहुँच गए, तभी यहोवा ने सदोम पर “आकाश से गन्धक और आग बरसाई।” (उत्पत्ति 19:22-24) दूसरी तरफ, जब परमेश्वर ने नीनवे के लोगों पर दया दिखायी तो योना का ‘क्रोध भड़क’ उठा। योना ने उनके विनाश की भविष्यवाणी कर दी थी, इसलिए उसे तभी खुशी होती जब वे सब मारे जाते—फिर चाहे उन्होंने दिल से पश्‍चाताप ही क्यों न किया होता।—योना 3:10–4:1.

17 यहोवा ने इब्राहीम को यकीन दिलाया कि उसके न्याय का मतलब सिर्फ दुष्टों का सर्वनाश करना नहीं बल्कि धर्मियों को बचाना भी है। दूसरी तरफ, योना को यह सीखने की ज़रूरत पड़ी कि यहोवा दया का सागर है। अगर दुष्ट अपने मार्गों से फिर जाते हैं, तो यहोवा उन्हें “क्षमा करने को तत्पर रहता है।” (भजन 86:5, NHT) यहोवा उन इंसानों की तरह नहीं है, जिन्हें हमेशा अपनी कुरसी बचाने की फिक्र रहती है, और जो लोगों को अपनी ताकत का एहसास दिलाने के लिए कड़ी-से-कड़ी सज़ा देते हैं। यहोवा को यह डर भी नहीं सताता कि अगर वह करुणा और दया दिखाएगा तो उसे कमज़ोर समझा जाएगा। यहोवा का तरीका है, जहाँ जायज़ हो वहाँ दया ज़रूर दिखायी जाए।—यशायाह 55:7; यहेजकेल 18:23.

18. बाइबल से दिखाइए कि यहोवा भावनाओं में बहकर न्याय नहीं करता।

18 लेकिन, यहोवा भावनाओं में बहकर न्याय नहीं करता। जब उसके लोग दिन-रात मूर्तिपूजा में लगे हुए थे, तो यहोवा ने कड़ाई से यह ऐलान किया: “मैं . . . तेरे चालचलन के अनुसार तुझे दण्ड दूंगा; और तेरे सारे घिनौने कामों का फल तुझे दूंगा। मेरी दयादृष्टि तुझ पर न होगी, और न मैं कोमलता करूंगा; और . . . मैं तेरे चालचलन का फल तुझे दूंगा।” (यहेजकेल 7:3, 4) तो जब इंसान बुराई करते-करते ढीठ हो जाते हैं, यहोवा उसी के मुताबिक उनका न्याय करता है। मगर वह ठोस सबूत के आधार पर न्याय करता है। इसलिए, जब सदोम और अमोरा की बुराइयों की “चिल्लाहट” यहोवा के कानों तक पहुँची, तो उसने कहा: “मैं उतरकर देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्हों ने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं।” (उत्पत्ति 18:20, 21) हमें कितना एहसानमंद होना चाहिए कि यहोवा ऐसे बहुत-से इंसानों की तरह नहीं, जो पूरी बात सुने बगैर ही जल्दबाज़ी में किसी नतीजे पर पहुँच जाते हैं! सच, यहोवा ठीक वैसा ही है जैसा बाइबल कहती है: “वह सच्चा ईश्वर है, उसमें कुटिलता [“अन्याय,” बुल्के बाइबिल] नहीं।”—व्यवस्थाविवरण 32:4.

यहोवा के न्याय पर भरोसा रखिए

19. यहोवा के न्याय करने के बारे में अगर हमारे मन में उलझानेवाले सवाल उठते हैं, तो हम क्या कर सकते हैं?

19 बीते ज़माने में यहोवा ने जो न्याय किया उसके बारे में उठनेवाले हर सवाल का जवाब बाइबल नहीं देती; ना ही यह विस्तार से बताती है कि भविष्य में यहोवा एक-एक इंसान और समूहों का न्याय कैसे करेगा। जब हमें बाइबल के वृत्तांतों या भविष्यवाणियों में ऐसी छोटी-छोटी जानकारी नहीं मिलती और हम उलझन में पड़ जाते हैं, तो हम भविष्यवक्ता मीका जैसी वफादारी दिखा सकते हैं, जिसने लिखा: “मैं अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्वर की बाट जोहता रहूंगा।”—मीका 7:7.

20, 21. हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमेशा वही करेगा जो सही है?

20 हम यह भरोसा रख सकते हैं कि चाहे कैसे भी हालात क्यों न हों, यहोवा वही करेगा जो सही है। अगर कभी हमें लगे कि जो अन्याय हो रहा है, उसे देखनेवाला कोई नहीं, तब भी यहोवा वादा करता है: “पलटा लेना मेरा काम है, . . . मैं ही बदला दूंगा।” (रोमियों 12:19) अगर हम परमेश्वर की बाट जोहें, तो हमारा भी प्रेरित पौलुस जैसा अटल विश्वास होगा, जिसने कहा: “क्या परमेश्वर के यहां अन्याय है? कदापि नहीं!”—रोमियों 9:14.

21 इस दौरान, हम “कठिन समय” में जी रहे हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) अन्याय और “अन्धेर” करनेवालों ने बड़ी क्रूरता से दूसरों को सताया है। (सभोपदेशक 4:1) मगर, यहोवा नहीं बदला। वह आज भी अन्याय से घृणा करता है और इसके शिकार लोगों की सच्ची परवाह करता है। अगर हम यहोवा और उसकी हुकूमत के वफादार रहें, तो वह हमें उस ठहराए हुए समय तक धीरज धरने की शक्ति देगा जब तक वह, अपने राज्य में हर तरह के अन्याय को मिटा न दे।—1 पतरस 5:6, 7.

^ पैरा. 13 यहोवा ने अय्यूब के बारे में कहा: “पृथ्वी पर उसके समान . . . अन्य कोई नहीं।” (अय्यूब 1:8, NHT) इसलिए मुमकिन है कि अय्यूब, यूसुफ की मौत के बाद और मूसा के इस्राएल का अगुवा ठहराए जाने से पहले के समय में जीया था। इसलिए उस वक्‍त कहा जा सकता था कि अय्यूब के जैसा खरा इंसान और कोई नहीं था।