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कैसे हम जान सकते हैं कि एक परमेश्‍वर है

कैसे हम जान सकते हैं कि एक परमेश्‍वर है

भाग ३

कैसे हम जान सकते हैं कि एक परमेश्‍वर है

१, २. यह निश्‍चित करने के लिए कि परमेश्‍वर है या नहीं, कौन-सा सिद्धान्त हमारी सहायता करता है?

परमेश्‍वर है या नहीं, इसे निश्‍चित करने का एक तरीका है, इस सुस्थापित सिद्धान्त को लागू करना: जो निर्मित है उसके लिए निर्माता की आवश्‍यकता है।  निर्मित की गयी वस्तु जितनी ज़्यादा जटिल है, निर्माता उतना ही योग्य होगा।

उदाहरण के लिए, अपने घर के चारों ओर देखिए। मेज़, कुर्सियाँ, डेस्क, पलंग, कड़ाहियाँ, हँडियाँ, प्लेट, और खाने के अन्य बर्तन, सभी के लिए एक निर्माता की आवश्‍यकता है, जैसे कि दीवारों, फ़र्श, और छतों के लिए भी है। तोभी, इन वस्तुओं को बनाना तुलनात्मक दृष्टि से आसान है। जब आसान वस्तुओं के लिए निर्माता की आवश्‍यकता है, तो क्या यह तर्कसंगत नहीं कि जटिल वस्तुओं के लिए और भी ज़्यादा बुद्धिमान निर्माता की आवश्‍यकता है?

हमारा विस्मयकारी विश्‍व-मंडल

३, ४. परमेश्‍वर अस्तित्व में है, यह जानने के लिए विश्‍व-मंडल कैसे हमारी सहायता करता है?

घड़ी के लिए घड़ीसाज़ की आवश्‍यकता होती है। इससे अत्यधिक जटिल हमारे सौर मंडल के विषय में क्या, जिसमें सूर्य है और उसके ग्रह हैं, जो शताब्दियों से इतनी सूक्ष्मता से उसकी परिक्रमा कर रहे हैं? हम जिस विस्मयकारी गैलेक्सी में रहते हैं, जिसे आकाशगंगा कहा जाता है और जिसमें एक खरब से भी ज़्यादा तारे हैं, उसके विषय में क्या? क्या आप ने रात में कभी रुककर आकाशगंगा की ओर देखा है? क्या आप प्रभावित हुए थे? तो अविश्‍वसनीय विशाल विश्‍व-मंडल के विषय में सोचिए जिसमें हमारी आकाशगंगा के समान असंख्य करोड़ों गैलेक्सियाँ हैं! साथ ही, शताब्दियों से आकाशीय पिण्ड अपनी गति में इतने विश्‍वसनीय हैं कि इनकी तुलना सूक्ष्मता से समय बतानेवाली घड़ियों से की गयी है।

यदि एक घड़ी, जो तुलनात्मक रूप से सरल है, एक घड़ीसाज़ के अस्तित्व की वास्तविकता को दिखाती है, तो निश्‍चित ही अत्यधिक जटिल और विस्मयकारी विश्‍व एक अभिकल्पक और निर्माता के अस्तित्व की वास्तविकता को दिखाता है। इसीलिए बाइबल हमें आमंत्रित करती है कि “अपनी आंखें ऊपर उठाकर देखो,” और फिर वह पूछती है: “किस ने इनको सिरजा?” उत्तर है: “वह [परमेश्‍वर] इन गणों को गिन गिनकर निकालता, उन सब को नाम ले लेकर बुलाता है? वह ऐसा सामर्थी और अत्यन्त बली है कि उन में के कोई बिना आए नहीं रहता।” (यशायाह ४०:२६) अतः, परमेश्‍वर—एक अदृश्‍य, नियंत्रित करनेवाली, बुद्धिमान शक्‍ति के कारण ही विश्‍व अपने अस्तित्व में आया है।

पृथ्वी अनोखे रूप से अभिकल्पित

५-७. पृथ्वी के विषय में कौन-से तथ्य दिखाते हैं कि इसका एक अभिकल्पक था?

वैज्ञानिक जितना ज़्यादा पृथ्वी का अध्ययन करते हैं, वे उतना ही ज़्यादा पाते हैं कि यह मानव निवास के लिए अनोखे रूप से अभिकल्पित है। यह सही मात्रा में प्रकाश और गर्मी पाने के लिए सूर्य से बिलकुल ठीक दूरी पर है। बिलकुल ठीक कोण के झुकाव के साथ यह साल में एक बार सूर्य का चक्कर लगाती है, जिससे पृथ्वी के अनेक भागों में ऋतुएं संभव होती हैं। पृथ्वी हर २४ घंटे में स्वयं अपनी धूरी पर घूमने के द्वारा उजाले और अंधेरे की नियमित अवधियाँ देती है। इसका एक वायुमंडल है जिसमें गैसों का बिलकुल ठीक मिश्रण है ताकि हम सांस ले सकें और अंतरिक्ष की हानिकर विकिरणों से बच सकें। इसमें अन्‍न उगाने के लिए ज़रूरी पानी और मिट्टी भी हैं।

इन सब और अन्य तत्त्वों के एक साथ काम किए बिना जीवन असंभव होगा। क्या यह सब एक संयोग था? साइन्स न्यूज़ (Science News) कहती है: “ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसी विशेष और सुनिश्‍चित परिस्थितियाँ संयोग से नहीं आ सकती थीं।” नहीं, वे नहीं आ सकती थीं। इनमें एक उत्कृष्ट अभिकल्पक द्वारा उद्देश्‍यपूर्ण अभिकल्पना सम्मिलित थी।

यदि आप एक उत्तम घर में जाएं और पाएं कि वह भोजन से भरपूर है, उसमें बढ़िया ऊष्मा और वातानुकूलन की व्यवस्था है, और उसमें पानी प्रदान करने के लिए अच्छी नलकारी है, तो आप क्या निष्कर्ष निकालेंगे? कि यह सब कुछ मात्र स्वयं ही आ गया? नहीं, आप निश्‍चित ही यह निष्कर्ष निकालेंगे कि एक बुद्धिमान व्यक्‍ति ने बड़े ध्यान से इसकी अभिकल्पना करके इसे बनाया है। पृथ्वी को भी इसके निवासियों की आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए बड़े ध्यान से अभिकल्पित किया गया और बनाया गया था, और यह किसी भी घर से कहीं ज़्यादा जटिल और सुसज्जित है।

८. पृथ्वी के विषय में और क्या है जो हमारे लिए परमेश्‍वर की प्रेममय परवाह दिखाती है?

उन बहुसंख्य वस्तुओं पर भी विचार कीजिए जो जीने के आनन्द को बढ़ाती हैं। बड़ी विविधता में सुंदर रंगों के फूलों को देखिए जिनकी सुखद सुगंध का आनन्द मनुष्य लेते हैं। फिर हमारे स्वाद के लिए विविध प्रकार के स्वादिष्ट भोजन हैं। देखने के लिए जंगल, पहाड़, झील, और अन्य रमणीय सृष्टि हैं। और, हमारे जीवन के आनन्द को बढ़ानेवाले सुंदर सूर्यास्तों का क्या? और जानवरों की दुनिया में, क्या हम पिल्लों, बिलौटों, और दूसरे जानवरों के बच्चों के प्रसन्‍न उछलकूद और प्यारे स्वभाव से आनन्दित नहीं होते? सो पृथ्वी आनन्दपूर्ण और आश्‍चर्यचकित करनेवाली अनेक वस्तुएँ देती है जो जीवित रहने के लिए अत्यावश्‍यक नहीं हैं। ये दिखाती हैं कि मनुष्यों को मन में रखते हुए प्रेममय परवाह से पृथ्वी की अभिकल्पना की गयी थी, ताकि हम मात्र जीवित ही नहीं रहें बल्कि जीवन का आनन्द भी ले सकें।

९. पृथ्वी को किसने बनाया, और उसने उसे क्यों बनाया?

इसलिए, तर्कसंगत निष्कर्ष यही है कि हम इन सब वस्तुओं के दाता को स्वीकार करें, जैसा कि बाइबल के लेखक ने किया जिसने यहोवा परमेश्‍वर के विषय में कहा: “आकाश और पृथ्वी को तू ही ने बनाया है।” किस उद्देश्‍य के लिए? वह परमेश्‍वर का वर्णन इस प्रकार करते हुए उत्तर देता है कि “उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उस ने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है।”—यशायाह ३७:१६; ४५:१८.

आश्‍चर्यजनक जीवित कोशिका

१०, ११. जीवित कोशिका इतनी आश्‍चर्यजनक क्यों है?

१० जीवित वस्तुओं के विषय में क्या? क्या उनके लिए निर्माता की आवश्‍यकता नहीं है? उदाहरण के लिए, जीवित कोशिका की कुछ आश्‍चर्यजनक विशेषताओं पर विचार कीजिए। आणविक जीव-विज्ञानी माइकल डॅनटन अपनी पुस्तक इवोलूशन: अ थीअरि इन क्राइसिस (Evolution: A Theory in Crisis) में कहता है: “आज पृथ्वी पर सभी जीवित तंत्रों में से सबसे सरल, बैक्टीरिया कोशिकाएं, भी अत्यधिक जटिल वस्तु हैं। जबकि सबसे छोटी बैक्टीरिया कोशिकाएं अविश्‍वसनीय रूप से छोटी होती हैं, . . . वस्तुतः प्रत्येक कोशिका एक वास्तविक सूक्ष्मीकृत फ़ैक्टरी है जिसमें जटिल आणविक मशीनरी के अति सुन्दरता से अभिकल्पित हज़ारों टुकड़े होते हैं . . . मनुष्य द्वारा बनायी गयी किसी भी मशीन से कहीं ज़्यादा जटिल और निर्जीव संसार में तो बिलकुल ही अतुल्य।”

११ हर कोशिका में आनुवंशिक कूट (genetic code) के सम्बन्ध में, वह कहता है: “जानकारी जमा करने की डी एन ए (DNA) की क्षमता अन्य किसी भी ज्ञात तंत्र से कहीं ज़्यादा है; यह इतना कुशल है कि मनुष्य जैसे जटिल जीव का विशेष रूप से उल्लेख करने के लिए आवश्‍यक जानकारी रखता है और भार एक ग्राम के कुछ लाखों हज़ारवें भाग से भी कम होता है। . . . जीवन की आणविक मशीनरी द्वारा दिखाई गई पटुता और जटिलता के स्तर के सामने, हमारे सबसे विकसित [उत्पादन] भी बेढंगे दिखाई पड़ते हैं। हम अपने आपको छोटा महसूस करते हैं।”

१२. कोशिका के आरम्भ के विषय में एक वैज्ञानिक ने क्या कहा?

१२ डॅनटन आगे कहता है: “सबसे सरल क़िस्म की ज्ञात कोशिका की जटिलता इतनी विशाल है कि यह स्वीकार करना असंभव है कि ऐसी वस्तु किसी प्रकार की विचित्र, बहुत ही असंभाव्य घटना द्वारा अचानक ही बन गयी हो।” इसका एक अभिकल्पक और निर्माता होना ही था।

हमारा अविश्‍वसनीय मस्तिष्क

१३, १४. मस्तिष्क एक जीवित कोशिका से भी ज़्यादा आश्‍चर्यजनक क्यों है?

१३ यह वैज्ञानिक फिर कहता है: “जटिलता के विषय में, जब एक अकेली कोशिका की तुलना स्तनी मस्तिष्क जैसे तंत्र से की जाती है तो यह कुछ भी नहीं है। मानव मस्तिष्क में लगभग दस अरब तंत्रिका-कोशिकाएं हैं। प्रत्येक तंत्रिका कोशिका में से क़रीब दस हज़ार और एक लाख के बीच संयोजी तन्तु निकलते हैं जिनके द्वारा यह मस्तिष्क में दूसरी तंत्रिका कोशिकाओं से जा मिलती है। कुल मिलाकर मानव मस्तिष्क में संयोजनों की कुल संख्या दस हज़ार खरब के क़रीब होती है।”

१४ डॅनटन आगे कहता है: “यदि मस्तिष्क में संयोजनों का सिर्फ़ सौवां भाग ही विशेष रूप से व्यवस्थित किया गया होता, तो भी यह एक ऐसे तंत्र को चित्रित करता जिसमें पृथ्वी पर सम्पूर्ण संचार तंत्र के विशेष संयोजनों से कहीं ज़्यादा संयोजन होते।” फिर वह पूछता है: “क्या किसी प्रकार की संयोगिक प्रक्रिया कभी-भी ऐसे तंत्रों को एकत्रित कर सकती थी?” सुस्पष्ट रूप से, उत्तर है, नहीं। एक परवाह करनेवाले अभिकल्पक और निर्माता ने ही मस्तिष्क बनाया होगा।

१५. मस्तिष्क के विषय में दूसरे जन क्या टिप्पणी करते हैं?

१५ मानव मस्तिष्क के सामने सबसे विकसित कम्‌प्यूटर भी आदिम काल के दिखते हैं। विज्ञान लेखक मॉर्टन हन्ट ने कहा: “हमारी सक्रिय याददाश्‍त एक बड़े समकालिक अनुसंधान कम्‌प्यूटर से कई करोड़ बार ज़्यादा जानकारी रखती है।” अतः, मस्तिष्क शल्यचिकित्सक डॉ. रॉबर्ट जे. व्हाइट ने निष्कर्ष निकाला: “अविश्‍वसनीय मस्तिष्क-मन सम्बन्ध—एक ऐसी बात जो मनुष्य की समझने की क्षमता से बहुत परे है, के अभिकल्प और विकास के लिए एक श्रेष्ठ और प्रतिभाशाली व्यक्‍ति के अस्तित्व को स्वीकार करने के अलावा मेरे पास और कोई विकल्प नहीं है। . . . मुझे यह विश्‍वास करना पड़ेगा कि इस सब का आरम्भ बुद्धिमानी से हुआ, कि किसी ने इसे बनाया है।” यह ऐसा व्यक्‍ति भी होना था जिसे परवाह थी।

अद्वितीय रक्‍त तंत्र

१६-१८. (क) किन तरीक़ों से रक्‍त तंत्र अद्वितीय है? (ख) हमें क्या निष्कर्ष निकालना चाहिए?

१६ अद्वितीय रक्‍त तंत्र पर भी विचार कीजिए जो पोषाहारों और ऑक्सीजन को ले जाता है और संक्रामण से बचाव करता है। इस तंत्र के एक मुख्य अवयव, लाल रक्‍त कोशिका के सम्बन्ध में पुस्तक एबीसी’ज़ ऑफ द ह्‍यूमन बॉडि (ABC’s of the Human Body) कहती है: “रक्‍त की एक बूंद में २५ करोड़ से ज़्यादा अलग-अलग रक्‍त कोशिकाएं होती हैं . . . शरीर में शायद ये २५० खरब हों, इतनी कि यदि फैलाई जाएं तो टेनिस के चार मैदान भर जाएं। . . . प्रति सेकन्ड ३० लाख नई कोशिकाओं के दर से प्रतिस्थापन होते हैं।”

१७ अद्वितीय रक्‍त तंत्र के एक और भाग, श्‍वेत रक्‍त कोशिकाओं के सम्बन्ध में यही स्रोत हमें बताता है: “जबकि लाल कोशिका एक ही क़िस्म की होती है, श्‍वेत कोशिकाएं अनेक प्रकार की होती हैं, हर वर्ग एक भिन्‍न तरीक़े से शरीर की लड़ाई लड़ने के लिए योग्य होता है। उदाहरण के लिए, एक क़िस्म की कोशिका मृत कोशिकाओं को नाश करती है। अन्य क़िस्म, विषाणुओं के विरुद्ध प्रतिरक्षी उत्पन्‍न करते हैं, बाहरी पदार्थों को निर्विष करते हैं, या आक्षरिक रूप से बैक्टीरिया को खाकर पचा लेते हैं।”

१८ क्या ही आश्‍चर्यजनक और अत्यन्त व्यवस्थित तंत्र! निश्‍चित ही कोई भी वस्तु, जो इतनी भली-भांति बनाई गई और इतने पूर्ण रूप से सुरक्षा करती हो, उसका एक अति बुद्धिमान और परवाह करनेवाला व्यवस्थापक होना ही है—परमेश्‍वर।

अन्य आश्‍चर्य

१९. मानव-निर्मित यंत्रों की तुलना में आँख कैसी है?

१९ मानव शरीर में अनेक अन्य आश्‍चर्य हैं। एक है आँख, जो इतने उत्कृष्ट रूप से अभिकल्पित है कि कोई कैमरा इसे दोहरा नहीं सकता। खगोलज्ञ रॉबर्ट जेस्ट्रो ने कहा: “ऐसा प्रतीत होता है कि आँख की अभिकल्पना की गई है; दूरबीन का भी कोई अभिकल्पक इससे बेहतर नहीं कर सकता था।” और प्रकाशन पॉप्युलर फ़ोटॉग्रफि (Popular Photography) कहता है: “मानव आँखें फ़िल्म से बहुत ज़्यादा विस्तृत रूप से देखती हैं। वे तीन आयाम में, एक अत्यधिक विस्तृत कोण से, बिना विकृति के, अविच्छिन्‍न गति में देखती हैं . . . मानव आँख से कैमरे की तुलना करना उचित सादृश्‍य नहीं है। मानव आँख एक अविश्‍वसनीय रूप से विकसित सुपरकम्‌प्यूटर की तरह ज़्यादा है, जिसमें कृत्रिम बुद्धि, जानकारी-संसाधन की योग्यताएं, गति, और प्रचालन के तरीक़े हैं जो मानव-निर्मित यन्त्र, कम्‌प्यूटर या कैमरे से कहीं उच्च हैं।”

२०. मानव शरीर के और कौन-से अन्य आश्‍चर्यजनक पहलू हैं?

२० इस पर भी विचार कीजिए कि किस प्रकार शरीर के सभी जटिल अंग बिना हमारे सचेतन प्रयास के मिलकर काम करते हैं। उदाहरण के लिए, हम विभिन्‍न प्रकार के भोजन अथवा पेय अपने पेट में डालते हैं, फिर भी शरीर उन्हें संसाधित करता है और ऊर्जा उत्पन्‍न करता है। एक मोटरगाड़ी की गैस टंकी में इतनी विविध वस्तुएं डाल कर देखिए कि वह कितनी दूर चलती है! फिर जन्म का चमत्कार है, एक अत्यधिक मोहक बच्चे का उत्पन्‍न होना—अपने माता-पिता की नक़ल—मात्र नौ महीनों में। और एक छोटी-सी उम्र के बच्चे का एक जटिल भाषा में बोलना सीख लेने की योग्यता के विषय में क्या?

२१. शरीर के आश्‍चर्यों पर विचार करने से समझदार व्यक्‍ति क्या कहते हैं?

२१ जी हाँ, मानव शरीर में अनेक आश्‍चर्यजनक, जटिल सृष्टियां हमें विस्मय से भर देती हैं। उन चीज़ों को कोई इंजीनियर नहीं दोहरा सकते। क्या वे सिर्फ़ संयोग के कार्य हैं? निश्‍चित ही नहीं। इसके बजाय, मानव शरीर के अद्‌भुत पहलुओं पर विचार करने से समझदार व्यक्‍ति भजनहार की तरह कहते हैं: “मैं तेरा [परमेश्‍वर का] धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्‌भुत रीति से रचा गया हूं।”—भजन १३९:१४.

सर्वश्रेष्ठ निर्माता

२२, २३. (क) हमें सृष्टिकर्ता के अस्तित्व को क्यों स्वीकार करना चाहिए? (ख) बाइबल परमेश्‍वर के विषय में क्या ठीक कहती है?

२२ बाइबल कहती है: “निःसन्देह, हर घर किसी न किसी के द्वारा निर्मित है, लेकिन जो कुछ अस्तित्व में है उसका निर्माण परमेश्‍वर ने किया है।” (इब्रानियों ३:४, द जरूसलेम बाइबल) क्योंकि किसी भी घर का, चाहे वह कितना ही साधारण क्यों न हो, एक निर्माता होता है, तो फिर कहीं ज़्यादा जटिल विश्‍व-मंडल, साथ ही पृथ्वी पर विविध प्रकार के जीवन का भी निर्माता होगा। और क्योंकि हम उन मनुष्यों के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं जिन्होंने हवाई जहाज़, टेलीविजन, और कम्‌प्यूटर जैसे यंत्रों का आविष्कार किया, तो क्या हमें उसके अस्तित्व को नहीं स्वीकार करना चाहिए जिसने मनुष्यों को ऐसी वस्तुएं बनाने के लिए मस्तिष्क दिया है?

२३ बाइबल स्वीकार करती है, यह कहते हुए कि वह “ईश्‍वर . . . आकाश का सृजने और ताननेवाला है, जो उपज सहित पृथ्वी का फैलानेवाला और उस पर के लोगों को सांस और उस पर के चलनेवालों को आत्मा देनेवाला यहोवा है।” (यशायाह ४२:५) बाइबल उचित रूप से घोषित करती है: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्‍वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी इच्छा से थीं, और सृजी गईं।”—प्रकाशितवाक्य ४:११.

२४. हम कैसे जान सकते हैं कि एक परमेश्‍वर है?

२४ जी हाँ, हम परमेश्‍वर की सृष्टि से जान सकते हैं कि वह है। “क्योंकि [परमेश्‍वर के] अनदेखे गुण . . . जगत की सृष्टि के समय से [परमेश्‍वर के] कामों के द्वारा देखने में आते हैं।”—रोमियों १:२०.

२५, २६. क्यों किसी वस्तु का दुरुपयोग इस बात के विरुद्ध कोई तर्क नहीं है कि उसका एक निर्माता है?

२५ क्योंकि एक निर्मित वस्तु का दुरुपयोग हो रहा है इसका यह अर्थ नहीं कि उसका कोई निर्माता नहीं था। एक हवाई जहाज़ का प्रयोग शान्तिपूर्ण उद्देश्‍यों के लिए विमान के रूप में किया जा सकता है। लेकिन उसका प्रयोग विनाश के लिए बमवर्षक के रूप में भी किया जा सकता है। जान-लेवा ढंग से उसके प्रयोग का यह अर्थ नहीं कि उसका कोई निर्माता नहीं था।

२६ इसी प्रकार, क्योंकि अक़सर मनुष्य बुरे निकले हैं इसका यह अर्थ नहीं कि उनका कोई निर्माता नहीं था, कि कोई परमेश्‍वर नहीं है। अतः, बाइबल सही कहती है: “तुम्हारी कैसी उलटी समझ है! क्या कुम्हार मिट्टी के तुल्य गिना जाएगा? क्या बनाई हुई वस्तु अपने कर्त्ता के विषय कहे कि उस ने मुझे नहीं बनाया, वा रची हुई वस्तु अपने रचनेवाले के विषय कहे, कि वह कुछ समझ नहीं रखता?”—यशायाह २९:१६.

२७. हम परमेश्‍वर से यह अपेक्षा क्यों कर सकते हैं कि वह दुःख के विषय में हमारे प्रश्‍नों का उत्तर देगा?

२७ सृष्टिकर्ता ने अपनी बुद्धि को अपनी बनाई हुई वस्तुओं की आश्‍चर्यजनक जटिलता के द्वारा दिखाया है। उसने पृथ्वी को रहने के लिए बिलकुल ठीक बनाकर, हमारे शरीर और मन को इतने अद्‌भुत ढंग से बनाकर, और हमारे आनन्द के लिए इतनी सारी अच्छी वस्तुएं बनाकर दिखाया है कि वह वास्तव में हमारी परवाह करता है। परमेश्‍वर ने दुःख को अनुमति क्यों दी है? वह इसके विषय में क्या करेगा? निश्‍चित ही वह ऐसे प्रश्‍नों के उत्तर ज्ञात करा के वैसी ही बुद्धि और परवाह दिखाएगा।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 5 पर तसवीरें]

पृथ्वी, अपने संरक्षी वायुमंडल के साथ, एक अद्वितीय घर है जो हमारे लिए एक परवाह करनेवाले परमेश्‍वर द्वारा अभिकल्पित की गयी है

[पेज 6 पर तसवीरें]

पृथ्वी का निर्माण प्रेममय परवाह से किया गया है ताकि हम जीवन का पूरा आनन्द ले सकें

[पेज 7 पर तसवीरें]

‘पृथ्वी पर सम्पूर्ण संचार तंत्र से ज़्यादा संयोजन एक मस्तिष्क में होते हैं।’ —आणविक जीव-विज्ञानी

[पेज 8 पर तसवीरें]

“ऐसा प्रतीत होता है कि आँख की अभिकल्पना की गई है; दूरबीन का कोई भी अभिकल्पक इससे बेहतर नहीं कर सकता था।”—खगोलज्ञ