विद्रोह का परिणाम क्या हुआ है?
भाग ७
विद्रोह का परिणाम क्या हुआ है?
१-३. समय ने कैसे यहोवा को सही प्रमाणित किया है?
परमेश्वर का शासन करने के अधिकार के वादविषय के सम्बन्ध में, परमेश्वर से स्वतंत्र इन सारी शताब्दियों के मानव शासन का क्या परिणाम हुआ है? क्या मनुष्य परमेश्वर से बेहतर शासक प्रमाणित हुए हैं? यदि हम मनुष्य की मनुष्य पर अमानुषिकता के इतिहास से न्याय करें, तो निश्चित ही नहीं।
२ जब हमारे प्रथम माता-पिता ने परमेश्वर के शासन को अस्वीकार किया, तब घोर संकट आए। वे अपने ऊपर और उनके द्वारा आनेवाले सारे मानव परिवार पर दुःख लाए। और वे अपने सिवाय किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते थे। परमेश्वर का वचन कहता है: “ये बिगड़ गए, ये उसके पुत्र नहीं; यह उनका कलंक है।”—व्यवस्थाविवरण ३२:५.
३ इतिहास ने आदम और हव्वा को दी गई परमेश्वर की चेतावनी की यथातथ्यता को दिखा दिया कि यदि वे परमेश्वर के प्रबन्धों की अधीनता से बाहर निकलेंगे, तो उनकी अवनति होगी और अंत में वे मर जाएंगे। (उत्पत्ति २:१७; ३:१९) वे परमेश्वर के शासन की अधीनता से बाहर निकले, और समय के बीतने पर वे अवनत होकर मर गए।
४. क्यों हम सब बीमारी और मृत्यु को प्रवृत्त, अपरिपूर्ण जन्मे हैं?
रोमियों ५:१२ समझाता है: “जैसा एक मनुष्य [आदम, मानवजाति के परिवार के सिर] के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई।” इसलिए जब हमारे प्रथम माता-पिता ने परमेश्वर की अध्यक्षता के विरुद्ध विद्रोह किया, तो वे दोषपूर्ण पापी बन गए। आनुवंशिक नियमों के सामन्जस्य में, इसके परिणामस्वरूप वे अपनी सन्तानों को अपरिपूर्णता ही दे सकते थे। इसी कारण हम सब दोषपूर्ण जन्मे हैं, बीमारी और मृत्यु को प्रवृत्त हैं।
४ बाद में उनकी सभी सन्तानों के साथ जो हुआ, उसे५, ६. सच्ची शांति और समृद्धि लाने के लिए मनुष्य के प्रयासों के विषय में इतिहास ने क्या दिखाया है?
५ अनेक शताब्दियाँ बीत चुकी हैं। अनेक साम्राज्य आए और चले गए। उन सभी प्रकार की सरकारों को परखा जा चुका है, जिनकी कल्पना की जा सकती है। फिर भी, बार-बार मानव परिवार के साथ भयानक बातें घटित हुई हैं। छः हज़ार सालों के बाद, कोई सोचेगा कि मनुष्यों ने पूरी पृथ्वी पर शांति, न्याय, और समृद्धि स्थापित करने की हद तक प्रगति कर ली होगी और अब तक वे कृपा, करुणा, और सहयोग के सकारात्मक गुणों में निपुण हो गए होंगे।
६ परन्तु, सच्चाई बिलकुल विपरीत है। अभी तक निर्मित किसी भी प्रकार की सरकार सभी के लिए सच्ची शांति और समृद्धि नहीं लायी है। इस २०वीं शताब्दी में ही, हमने यहूदियों के संहार में लाखों की योजनाबद्ध हत्या और युद्धों में १० करोड़ से ज़्यादा लोगों का घात होते देखा है। हमारे समय में असहनशीलता और राजनीतिक भेदों के कारण अनगिनत लोगों को सताया गया है, हत्या की गयी है, और क़ैद किया गया है।
आज की स्थिति
७. आज मानव परिवार की परिस्थिति की व्याख्या कैसे की जा सकती है?
७ इसके अतिरिक्त, आज मानव परिवार की समस्त परिस्थिति पर विचार कीजिए। अपराध और हिंसा सर्वत्र फैले हुए हैं। नशीली दवाओं का दुष्प्रयोग संक्रामक है। लैंगिक रूप से फैली बीमारियाँ बहुव्यापी हैं। भयानक बीमारी एडस् (AIDS) लाखों लोगों को प्रभावित कर रही है। करोड़ों लोग हर साल भूख या बीमारी से मरते हैं, जबकि थोड़े लोगों के पास बहुत ही धन है। मनुष्य पृथ्वी को दूषित करते और लूटते हैं। हर जगह पारिवारिक जीवन और नैतिक मान्यताएँ गिर गयी हैं। वास्तव में, जीवन आज “इस संसार के ईश्वर,” शैतान के घृणित शासकत्व को प्रतिबिम्बित करता है। जिस संसार का वह सरदार है वह संसार भावशून्य, निष्ठुर, और पूर्ण रूप से भ्रष्ट है।—२ कुरिन्थियों ४:४.
८. हम मनुष्यजाति की उपलब्धियों को वास्तविक प्रगति क्यों नहीं कह सकते?
८ परमेश्वर ने मनुष्य को अपनी वैज्ञानिक और भौतिक प्रगति के शिखर तक आने का पर्याप्त समय दिया है। लेकिन क्या यह असली प्रगति है जब तीर-कमानों को मशीन गनों, टैंकों, जेट बमवर्षकों, और न्यूक्लियर मिसाइलों से बदल दिया गया है? क्या यह प्रगति है जब लोग अंतरिक्ष में यात्रा कर सकते हैं लेकिन पृथ्वी पर एक साथ शांति से नहीं रह सकते? क्या यह प्रगति है जब लोग रात में, या किसी-किसी जगह पर दिन में भी सड़कों पर चलने से डरते हैं?
समय ने क्या दिखाया है
९, १०. (क) बीती शताब्दियों के समय ने स्पष्ट रूप से क्या दिखाया है? (ख) परमेश्वर स्वतंत्र इच्छा वापस क्यों नहीं लेगा?
९ शताब्दियों के समय की परख ने यह दिखाया है कि मनुष्यों के लिए यह संभव नहीं कि वे परमेश्वर के शासन से अलग सफलतापूर्वक अपने क़दमों को निर्दिष्ट कर सकें। उनके लिए ऐसा करना उतना ही असंभव है जितना कि खाने, पीने, और सांस लेने के बिना जीना असंभव है। प्रमाण स्पष्ट है: हम अपने सृष्टिकर्ता के मार्गदर्शन पर निर्भर रहने के लिए अभिकल्पित किए गए हैं, ठीक उसी तरह जैसे हम भोजन, पानी, और हवा पर निर्भर रहने के लिए सृजे गए हैं।
१० दुष्टता को अनुमति देने से, परमेश्वर ने स्वतंत्र इच्छा का दुरुपयोग करने के दुःखद परिणामों को हमेशा के लिए प्रदर्शित कर दिया। और स्वतंत्र इच्छा इतनी मूल्यवान देन है कि इसको मनुष्यों से वापस लेने के बजाय, परमेश्वर ने उन्हें यह देखने की अनुमति दी है कि इसके दुरुपयोग का क्या अर्थ होता है। परमेश्वर का वचन सच बोलता है जब वह कहता है: “मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” वह तब भी सच्चा है जब वह कहता है: “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।”—यिर्मयाह १०:२३; सभोपदेशक ८:९.
११. क्या किसी प्रकार के मानव शासन ने दुःख दूर किया है?
११ परमेश्वर द्वारा छः हज़ार साल के लिए मानव शासन की अनुमति देना, प्रभावशाली रूप से स्पष्ट करता है कि मनुष्य दुःख दूर करने में असमर्थ है। किसी भी समय वह ऐसा नहीं कर सका है। उदाहरण के लिए, इस्राएल का राजा सुलैमान अपने समय में, अपनी सारी बुद्धि, धन, और शक्ति से भी मानवी शासन से परिणित दुर्दशा को नहीं सुधार सका। (सभोपदेशक ४:१-३) इसी प्रकार, हमारे समय में विश्व नेता, नवीनतम तकनीकी प्रगति के साथ भी दुःख दूर करने में समर्थ नहीं हैं। इससे भी बुरा, इतिहास ने दिखाया है कि परमेश्वर के शासन से स्वतंत्र होकर मनुष्यों ने दुःख दूर करने के बजाय उसे बढ़ाया है।
परमेश्वर का दीर्घकालिक दृष्टिकोण
१२-१४. परमेश्वर द्वारा दुःख को अनुमति देने के परिणामस्वरूप कौन-से दीर्घकालिक लाभ आते हैं?
१२ परमेश्वर द्वारा दुःख की अनुमति हमारे लिए दुःखदायी रही है। लेकिन यह जानते हुए कि आगे चलकर इसके परिणाम अच्छे होंगे, उसने दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाया है। परमेश्वर का दृष्टिकोण प्राणियों को मात्र कुछ सालों या कुछ हज़ार सालों के लिए ही नहीं, बल्कि लाखों सालों के लिए, जी हाँ, अनन्तकाल के लिए लाभ पहुँचाएगा।
१३ भविष्य में किसी समय यदि कभी यह स्थिति खड़ी हो कि कोई व्यक्ति परमेश्वर के कार्य करने के ढंग पर प्रश्न उठाकर स्वतंत्र इच्छा का दुरुपयोग करता है, तो यह आवश्यक नहीं होगा कि उसे अपने विचारों को सिद्ध करने की कोशिश करने का समय दिया जाए। पहले से ही हज़ारों सालों के लिए विद्रोहियों को अनुमति देने के द्वारा परमेश्वर ने क़ानूनी पूर्वोदाहरण स्थापित कर दिया है जिसे विश्व में कहीं भी अनन्तकाल तक लागू किया जा सकता है।
१४ क्योंकि यहोवा ने इस समय दुष्टता और दुःख को अनुमति दी है, यह पहले से ही पूरी तरह प्रमाणित हो चुका होगा कि जो कुछ भी उसके सामन्जस्य से बाहर है वह समृद्ध नहीं हो सकता। यह हर संदेह से परे दिखाया जा चुका होगा कि मनुष्यों या आत्मिक प्राणियों की कोई भी स्वतंत्र योजना स्थायी लाभ नहीं ला सकती। अतः, तब परमेश्वर किसी भी विद्रोही को तुरंत कुचलने में पूर्ण रूप से न्यायसंगत ठहरेगा। वह “सब दुष्टों को सत्यानाश करता है।”—[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 15 पर तसवीर]
परमेश्वर से स्वतंत्र होने का चुनाव करने के पश्चात्, हमारे प्रथम माता-पिता अन्त में बूढ़े होकर मर गए
[पेज 16 पर तसवीरें]
परमेश्वर से अलग मानव शासन विपत्तिग्रस्त प्रमाणित हुआ है
[चित्र का श्रेय]
U.S. Coast Guard photo