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स्वतंत्र इच्छा की अद्‌भुत देन

स्वतंत्र इच्छा की अद्‌भुत देन

भाग ५

स्वतंत्र इच्छा की अद्‌भुत देन

१, २. कौन-सी अद्‌भुत देन हमारी बनावट का भाग है?

यह समझने के लिए कि परमेश्‍वर ने दुःख को अनुमति क्यों दी है और वह इसके विषय में क्या करेगा, हमें इस बात का मूल्यांकन करने की आवश्‍यकता है कि उसने हमें कैसा बनाया है। उसने हमें सिर्फ़ एक शरीर और एक मस्तिष्क के साथ सृष्ट करने से कुछ ज़्यादा किया है। उसने हमें विशेष मानसिक और भावात्मक गुणों के साथ भी सृजा है।

हमारी मानसिक और भावात्मक बनावट का एक महत्त्वपूर्ण भाग स्वतंत्र इच्छा  है। जी हाँ, परमेश्‍वर ने हमारे में चुनाव की स्वतंत्रता की क्षमता डाली है। यह सचमुच परमेश्‍वर की ओर से एक अद्‌भुत देन थी।

हम किस प्रकार बनाए गए हैं

३-५. हम स्वतंत्र इच्छा का मूल्यांकन क्यों करते हैं?

आइए विचार करें कि किस प्रकार स्वतंत्र इच्छा परमेश्‍वर द्वारा दुःख को अनुमति देने में सम्मिलित है। पहले, इस पर विचार कीजिए: आप क्या करेंगे और क्या बोलेंगे, क्या खाएंगे और क्या पहनेंगे, आप किस प्रकार का काम करेंगे, और कहां और कैसे रहेंगे, क्या आप इन बातों का चुनाव करने की स्वतंत्रता का मूल्यांकन करते हैं? या क्या आप चाहेंगे कि कोई आपके जीवन के हर क्षण, आपके हर शब्द और कार्य को निर्देशित करे?

कोई भी प्रसामान्य व्यक्‍ति यह नहीं चाहता कि उसका जीवन इतनी पूरी तरह से उसके नियंत्रण से ले लिया जाए। क्यों नहीं? क्योंकि परमेश्‍वर ने हमें इस प्रकार बनाया है। बाइबल हमें बताती है कि परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने ‘स्वरूप और समानता’ में सृजा है, और चुनाव करने की स्वतंत्रता एक ऐसी क्षमता है जो स्वयं परमेश्‍वर में है। (उत्पत्ति १:२६; व्यवस्थाविवरण ७:६) जब उसने मनुष्यों को बनाया, तब उसने उन्हें भी वही अद्‌भुत क्षमता दी—स्वतंत्र इच्छा की देन। यह एक कारण है कि क्यों हमें अत्याचारी शासकों की दासता में आना निराशाजनक लगता है।

अतः स्वतंत्रता की चाहत कोई संयोग नहीं है, क्योंकि परमेश्‍वर स्वतंत्रता का परमेश्‍वर है। बाइबल कहती है: “जहां कहीं प्रभु का आत्मा है वहां स्वतंत्रता है।” (२ कुरिन्थियों ३:१७) अतः, परमेश्‍वर ने हमें स्वतंत्र इच्छा हमारी बनावट के एक हिस्से के रूप में दी। क्योंकि वह जानता था कि हमारा मन और भावनाएं किस प्रकार काम करते हैं, वह जानता था कि हम स्वतंत्र इच्छा के साथ ही सबसे ज़्यादा आनन्दित होंगे।

६. परमेश्‍वर ने किस प्रकार हमारे मस्तिष्क को स्वतंत्र इच्छा के सामन्जस्य में काम करने के लिए बनाया?

स्वतंत्र इच्छा के साथ-साथ, परमेश्‍वर ने हमें सोचने की, बातों को तौलने की, निर्णय लेने की, और सही-ग़लत में भेद करने की क्षमता दी। (इब्रानियों ५:१४) अतः, स्वतंत्र इच्छा को बुद्धिमानी से किए गए चुनाव पर आधारित किया जाना था। हमें बुद्धिहीन रोबॉट की तरह नहीं बनाया गया था जिनके पास अपनी इच्छा नहीं होती। न ही हमें जानवरों की तरह सहज वृत्ति से काम करने के लिए सृजा गया था। इसके बजाय, हमारा आश्‍चर्यजनक मस्तिष्क हमारी चुनाव की स्वतंत्रता के सामन्जस्य में काम करने के लिए अभिकल्पित किया गया था।

सर्वोत्तम शुरूआत

७, ८. परमेश्‍वर ने हमारे प्रथम माता-पिता को कौन-सी उत्तम शुरूआत दी?

यह दिखाने के लिए कि परमेश्‍वर को कितनी परवाह थी, स्वतंत्र इच्छा के साथ-साथ हमारे प्रथम माता-पिता, आदम और हव्वा को वह हर वस्तु दी गयी थी जो किसी व्यक्‍ति की उचित मांग हो सकती है। उन्हें एक बड़े, उद्यानरूपी परादीस में रखा गया था। उनके पास भौतिक वस्तुओं की बहुतायत थी। उनके मन और शरीर परिपूर्ण थे, जिससे कि उन्हें बूढ़े होने या बीमार पड़ने या मरने की ज़रूरत नहीं थी—वे सर्वदा जीवित रह सकते थे। उनके परिपूर्ण बच्चे उत्पन्‍न होते और उनका भी आनन्दपूर्ण, अनन्तकालिक भविष्य हो सकता था। और अंत में बढ़ती हुई जनसंख्या के पास पूरी पृथ्वी को परादीस में बदलने का संतोषजनक कार्य होता।—उत्पत्ति १:२६-३०; २:१५.

जो दिया गया था, उसके सम्बन्ध में बाइबल कहती है: “परमेश्‍वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है।”  (उत्पत्ति १:३१) बाइबल परमेश्‍वर के विषय में यह भी कहती है: “उसका काम खरा  है।” (व्यवस्थाविवरण ३२:४) जी हाँ, सृष्टिकर्ता ने मानव परिवार को एक परिपूर्ण शुरूआत दी। वह इससे बेहतर नहीं हो सकती थी। वह कितनी परवाह करनेवाला परमेश्‍वर प्रमाणित हुआ!

सीमाओं के अन्दर स्वतंत्रता

९, १०. स्वतंत्र इच्छा उचित रूप से क्यों नियंत्रित की जानी चाहिए?

फिर भी, क्या परमेश्‍वर का उद्देश्‍य था कि स्वतंत्र इच्छा बिना सीमाओं के हो? एक ऐसे शहर की कल्पना कीजिए जहां कोई यातायात के नियम नहीं, जहां हर कोई किसी भी दिशा में, किसी भी गति से गाड़ी चला सकता है। क्या आप उन परिस्थितियों में गाड़ी चलाना चाहेंगे? नहीं, वह यातायात अव्यवस्था होगी जिसका परिणाम निश्‍चित ही अनेक दुर्घटनाएं होंगी।

१० ऐसा ही परमेश्‍वर की स्वतंत्र इच्छा की देन के साथ भी है। असीमित स्वतंत्रता का अर्थ समाज में अव्यवस्था होगा। मानव गतिविधियों का निर्देशन करने के लिए नियम होने ही चाहिए। परमेश्‍वर का वचन कहता है: “अपने आपको स्वतंत्र जानो, और कभी-भी अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग दुष्टता के लिए आड़ बना कर न करो।” (१ पतरस २:१६, JB) परमेश्‍वर चाहता है कि सभी के भले के लिए स्वतंत्र इच्छा को नियंत्रित किया जाए। उसका उद्देश्‍य था कि हमारे पास पूर्ण  स्वतंत्रता नहीं, बल्कि नियम के अधीन तुलनात्मक स्वतंत्रता हो।

किसके नियम?

११. हमें किसके नियमों का पालन करने के लिए अभिकल्पित किया गया था?

११ हमें किसके नियमों का पालन करने के लिए अभिकल्पित किया गया था? पहला पतरस २:१६ (JB) के पाठ का एक और भाग कहता है: “तुम परमेश्‍वर के अलावा किसी के दास नहीं हो।” इसका अर्थ एक अत्याचारी दासता नहीं, बल्कि, इसका अर्थ है कि हमारी अभिकल्पना ऐसे की गयी थी कि हम परमेश्‍वर के नियमों के अधीन सबसे ज़्यादा आनन्दित रह सकें। (मत्ती २२:३५-४०) उसके नियम, मनुष्यों द्वारा बनाए किसी भी नियमों से ज़्यादा, सर्वोत्तम मार्गदर्शन देते हैं। “मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं।”—यशायाह ४८:१७.

१२. परमेश्‍वर के नियमों के अन्दर हमें चुनाव की क्या स्वतंत्रता है?

१२ लेकिन साथ ही, परमेश्‍वर के नियम अपनी सीमाओं के अन्दर चुनाव की बहुत स्वतंत्रता देते हैं। इसका परिणाम विविधता है और मानव परिवार को सम्मोहक बनाता है। संसार-भर में विभिन्‍न प्रकार के भोजन, कपड़े, संगीत, कला, और घरों के विषय में सोचिए। कोई हमारे लिए निर्णय करे इसके बजाय हम ऐसे मामलों में निश्‍चित ही अपना चुनाव करना ज़्यादा पसन्द करते हैं।

१३. स्वयं अपने भले के लिए हमें कौन-से भौतिक नियमों का पालन करना चाहिए?

१३ अतः, हमें मानव आचरण के लिए परमेश्‍वर के नियमों की अधीनता में सबसे ज़्यादा आनन्दित रहने के लिए सृजा गया था। यह परमेश्‍वर के भौतिक नियमों के अधीन रहने के समान है। उदाहरण के लिए, यदि हम गुरुत्व के नियम की उपेक्षा करें और एक ऊँची जगह से छलांग लगाएं, तो हम घायल हो जाएंगे या मर जाएंगे। यदि हम अपने शरीर के आन्तरिक नियमों की उपेक्षा करें और भोजन करना, पानी पीना, या सांस लेना बंद कर दें, तो हम मर जाएंगे।

१४. हम कैसे जानते हैं कि मनुष्यों को परमेश्‍वर से स्वतंत्र रहने के लिए नहीं सृजा गया था?

१४ जितना यह निश्‍चित है कि हम परमेश्‍वर के भौतिक नियमों के अधीन रहने की आवश्‍यकता के साथ सृजे गए थे, उतना ही हम परमेश्‍वर के नैतिक और सामाजिक नियमों के अधीन रहने की आवश्‍यकता के साथ सृजे गए थे। (मत्ती ४:४) मनुष्यों को अपने रचयिता से स्वतंत्र होकर सफल होने के लिए नहीं बनाया गया था। भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह कहता है: “मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं। हे यहोवा मेरी ताड़ना कर।” (यिर्मयाह १०:२३, २४) इसलिए, मनुष्य स्वयं अपने नहीं, बल्कि हर तरीक़े से परमेश्‍वर के शासकत्व के अधीन रहने के लिए सृजे गए थे।

१५. क्या परमेश्‍वर के नियम आदम और हव्वा के लिए बोझ होते?

१५ परमेश्‍वर के नियमों का पालन करना हमारे प्रथम माता-पिता के लिए बोझ नहीं होता। इसके बजाय, यह उनके और पूरे मानव परिवार के कल्याण के लिए होता। यदि पहला जोड़ा परमेश्‍वर की सीमाओं के अन्दर रहा होता, तो सब कुछ ठीक होता। वास्तव में, अभी हम एक शानदार सुखद परादीस में एक प्रेममय, संयुक्‍त मानव परिवार के रूप में जी रहे होते! दुष्टता, दुःख, और मृत्यु नहीं होती।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 11 पर तसवीर]

सृष्टिकर्ता ने मनुष्यों को एक परिपूर्ण शुरूआत दी

[पेज 12 पर तसवीर]

क्या आप भारी यातायात में गाड़ी चलाना चाहेंगे यदि यातायात के कोई नियम न होते?