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सवाल 3

निर्देश कहाँ से आते हैं?

निर्देश कहाँ से आते हैं?

आपका रंग-रूप और आपकी बनावट ऐसी क्यों है? आपकी आँखों, बालों और त्वचा का रंग किस बात से तय होता है? यह कौन तय करता है कि आपकी कद-काठी कैसी होगी और आप किसकी तरह दिखेंगे, माँ, पिता या दोनों की तरह? कौन आपकी उँगलियों के सिरों को बताता है कि वे अंदर से नरम हों, मगर बाहर की तरफ सुरक्षा के लिहाज़ से सख्त नाखून उगें?

चार्ल्स डार्विन के दिनों में इन सवालों के जवाब पर रहस्य का परदा पड़ा था। खुद डार्विन भी हैरान था कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी कैसे माँ-बाप के गुण बच्चों में आते हैं। लेकिन उसे आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) के नियम की कोई जानकारी नहीं थी और जहाँ तक आनुवंशिकी को तय करनेवाली कोशिकाओं के काम की बात है, उससे तो वह बिलकुल अनजान था। मगर अब तक इंसानों की आनुवंशिकी और डी.एन.ए. (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लीक अम्ल) पर अध्ययन करने में जीव-विज्ञानी कई दशक बिता चुके हैं। उन्होंने देखा कि इस हैरतअंगेज़ अणु डी.एन.ए. में ढेर सारे निर्देश होते हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है, ये निर्देश आते कहाँ से हैं?

कई वैज्ञानिक क्या दावा करते हैं? कई जीव-विज्ञानी और दूसरे वैज्ञानिक मानते हैं कि डी.एन.ए. और उसमें दिए सांकेतिक (कोडेड) निर्देश अपने आप ही लाखों सालों के दौरान एक-के-बाद-एक हुई घटनाओं की वजह से आ गए। वे कहते हैं कि हमें कोई सबूत नहीं मिलता कि इस अणु की संरचना, इसके काम करने के तरीके, इसमें भरी जानकारी और इसे दूसरों तक पहुँचाए जाने के बारे में सारे निर्देश किसी की तरफ से आए हैं।17

बाइबल क्या कहती है? बाइबल बताती है कि हमारे शरीर के अलग-अलग अंगों का निर्माण कैसे, यहाँ तक कि किस वक्‍त होगा, यह सब परमेश्‍वर की लाक्षणिक किताब में लिखा है। गौर कीजिए कि राजा दाविद कैसे परमेश्‍वर के बारे में लिखने के लिए उभारा गया: “तेरी आंखों ने मेरे बेडौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहिले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे।”—भजन 139:16.

सबूत क्या दिखाते हैं? अगर विकासवाद सच है, तो कम-से-कम कहीं से तो यह साबित होना चाहिए कि डी.एन.ए. अपने आप घटी घटनाओं की वजह से वजूद में आया। लेकिन अगर बाइबल सच है तो डी.एन.ए. में इस बात का ठोस सबूत होना चाहिए कि इसे एक बुद्धिमान हस्ती ने बहुत सोच-समझकर बनाया है।

अगर हम सरल भाषा में डी.एन.ए. की चर्चा करें, तो हम आसानी से इसे समझ पाएँगे और हमें बड़ा मज़ा भी आएगा। चलिए हम फिर से एक कोशिका के अंदर जाकर देखें। इस बार हम एक मानव कोशिका के अंदर जाएँगे। कल्पना कीजिए कि आप एक ऐसे संग्रहालय में जा रहे हैं, जहाँ आप सीखेंगे कि मानव कोशिका कैसे काम करती है। पूरा संग्रहालय एक मानव कोशिका के नमूने पर बना है, बस उसे कुछ 1,30,00,000 गुना बड़ा कर दिया गया है। यह एक विशाल खेल के मैदान जितना बड़ा है, जिसमें करीब 70,000 लोग बैठ सकते हैं।

आप संग्रहालय के अंदर जाते हैं और वहाँ की चीज़ों की अजीबो-गरीब बनावट और आकार देखकर आपकी आँखें फटी-की-फटी रह जाती हैं। कोशिका के बीचों-बीच एक गोल नाभिक है, जो करीब 20 मंज़िला इमारत जितना बड़ा है। आप उसकी तरफ बढ़ते हैं।

“इंजीनियरी का कमाल”—डी.एन.ए. को कैसे पैक किया जाता है: डी.एन.ए. को नाभिक के अंदर पैक करना इंजीनियरी का कमाल है, यह ऐसा है मानो 40 किलोमीटर लंबे बारीक धागे को एक टेनिस गेंद के अंदर बेहतरीन तरीके से लपेटा गया हो

नाभिक की बाहरी त्वचा, यानी झिल्ली में बने दरवाज़े से आप अंदर जाते हैं और अपनी आस-पास की चीज़ें निहारने लगते हैं। आप जहाँ भी देखते हैं आपको गुणसूत्र (क्रोमोज़ोम) नज़र आते हैं। नाभिक में इनकी कुल संख्या 46 है। (1) ये गुणसूत्र जोड़ों में नज़र आते हैं, जो एक-जैसे दिखते हैं। मगर हर जोड़े की लंबाई अलग-अलग होती है। आप जिस जोड़े के पास हैं, वह करीब 12 मंज़िला इमारत जितना ऊँचा है। हर गुणसूत्र एक विशाल पेड़ के तने जितना मोटा होता है और बीच में से थोड़ा सिकुड़ा होता है। आप देखते हैं गुणसूत्र पर कई पट्टियाँ लिपटी हुई हैं। (2) करीब जाने पर पता चलता है कि इसकी हर पट्टी खड़ी रेखाओं से बँटी है और इन खड़ी रेखाओं के बीच में समांतर रेखाएँ हैं। बाहर से देखने में लगता है कि वे तरतीब से रखी हुई किताबें हैं। लेकिन दरअसल ये स्प्रिंगनुमा तार हैं, जो एक-दूसरे से बिलकुल सटे रहते हैं। अगर हम इन्हें खींच लें, तो ये आसानी से उधड़ जाते हैं। (3) आप देखकर हैरान हो जाते हैं कि यह तार और भी छोटे स्प्रिंगनुमा तार से बना है जिसे बड़ी तरतीब से लपेटा गया है। इस छोटे स्प्रिंगनुमा तार में ही गुणसूत्र की सबसे खास चीज़ है। यह तार दरअसल बहुत लंबी रस्सी की तरह दिखता है। यह असल में है क्या?

एक अनोखे अणु की बनावट

चलिए गुणसूत्र के इस खास भाग को हम रस्सी कहें। यह करीब एक इंच मोटी होती है। (4) यह फिरकियों पर कसकर लिपटी होती है, जिनकी बदौलत ही यह रस्सी घुमावदार स्प्रिंग के आकार में मुड़ती है और इसके अंदर कई घुमावदार स्प्रिंग बनते हैं। ये स्प्रिंग किसी चीज़ से जुड़े होते हैं जिसकी वजह से इन्हें अपनी जगह पर टिके रहने का सहारा मिलता है। संग्रहालय में बना एक संकेत चिन्ह बताता है कि इस रस्सी को बड़े बेहतरीन तरीके से लपेटा या पैक किया गया है। अगर आप इन 46 गुणसूत्रों की हर रस्सी को खींचें और उसे जोड़कर फैला दें तो इससे आप धरती का आधा हिस्सा नाप लेंगे। a

विज्ञान की एक किताब, पैक करने के इस बेहतरीन तरीके को “इंजीनियरी का कमाल” बताती है।18 अगर आपसे कहा जाए कि यह कारीगरी अपने आप ही बन गयी, तो क्या यह बात आपके गले उतरेगी? मान लीजिए कि इस संग्रहालय में एक बहुत बड़ी दुकान है, जहाँ बेचने के लिए लाखों चीज़ें रखी हैं और वह भी इतनी तरतीब से कि आप कोई भी चीज़ आसानी से ढूँढ़ सकते हैं। ऐसे में क्या आप मान लेंगे कि ये चीज़ें अपने आप अपनी जगह पर आ गयीं, उन्हें किसी ने नहीं रखा? नहीं, यह तो बेतुकी बात होगी। तो फिर इससे कहीं ज़्यादा व्यवस्थित कोशिका के बारे में आप क्या कहेंगे?

संग्रहालय में एक निशान आपसे कहता है कि आप इस रस्सी को (5) अपने हाथ में लेकर इसे और करीब से देखें। जब आप इसे अपनी उँगलियों पर फेरते हैं, तो आप देखते हैं कि यह कोई साधारण रस्सी नहीं है। यह दो डोरियों से बनी है, जो घुमावदार आकार में साथ-साथ मुड़ी हुई हैं। ये डोरियाँ एक-दूसरे से छोटी-छोटी छड़ों से जुड़ी हैं और छड़ों के बीच की दूरी एक समान है। ( पेज 20 पर दिया चित्र भी देखिए।) (6) डोरियाँ मुड़ी होने की वजह से दिखने में एक घुमावदार सीढ़ी की तरह लगती हैं। फिर आपकी समझ में आता है कि आपके हाथ में तो डी.एन.ए. अणु का नमूना है, जो जीवन का एक सबसे बड़ा रहस्य है!

फिरकियों और किसी चीज़ के सहारे कायदे से लिपटे डी.एन.ए. अणु को ही गुणसूत्र कहा जाता है। (7) डोरियों के बीच की छड़ों को बेस पेयर्स कहा जाता है। ये क्या काम करते हैं? ये सब किस लिए होते हैं? एक निशान इसे आसान भाषा में समझाता है।

जानकारी जमा करके रखने का सबसे बेहतरीन तरीका

निशान बताता है कि डी.एन.ए. का रहस्य उन छड़ों में है। कल्पना कीजिए कि डोरियों की छड़ों को बीच से काट दिया गया है। दोनों डोरियों पर छड़ों के आधे-आधे हिस्से नज़र आते हैं, जो चार प्रकार के होते हैं। वैज्ञानिकों ने उन्हें ए, टी, जी और सी नाम दिया है। वे यह जानकर दंग रह गए कि उन अक्षरों का क्रम, दरअसल सांकेतिक भाषा में दर्ज़ जानकारी है।

आप शायद जानते होंगे कि 19वीं सदी में मोर्स कोड की खोज की गयी थी, ताकि लोग टेलीग्राफ के ज़रिए एक-दूसरे को संदेश भेज सकें। उस कोड में सिर्फ दो “अक्षर” होते थे, एक बिंदु और एक डैश यानी छोटी रेखा। लेकिन उन दो अक्षरों के ज़रिए अनगिनत शब्द या वाक्य लिखे जा सकते थे। उसी तरह डी.एन.ए. में चार अक्षर होते हैं, ए, टी, जी और सी। ये अक्षर जिस क्रम में नज़र आते हैं उनसे “शब्द” या कोडोन बनते हैं। शब्दों से “कहानियाँ” लिखी जाती हैं, जिन्हें जीन कहा जाता है। हर कहानी या जीन में औसतन 27,000 अक्षर होते हैं। ये जीन और इनके बीच की लंबी जगह मिलकर अध्याय यानी एक गुणसूत्र बनता है। और 23 गुणसूत्रों से मिलकर पूरी “किताब” यानी जीनोम बनता है, जिसमें एक जीव की सारी आनुवंशिक जानकारी दर्ज़ होती है। b

जीनोम की तुलना एक बहुत बड़ी किताब से की जा सकती है। उसमें कितनी जानकारी होती है? इंसान का जीनोम, डी.एन.ए. की सीढ़ी के करीब 3 अरब छड़ों या बेस पेयर से बना होता है।19 एक ऐसे विश्‍वकोश की कल्पना कीजिए जिसमें एक हज़ार पन्‍ने हों। एक जीनोम में दर्ज़ जानकारी अगर लिखी जाए तो इसके लिए 428 विश्‍वकोशों की ज़रूरत पड़ेगी। और जैसा कि आप जानते हैं, हर कोशिका में जीनोम की एक प्रति भी होती है। इसलिए जीनोम की दूसरी नकल बनाने के लिए और 428 विश्‍वकोशों की ज़रूरत पड़ेगी। इस हिसाब से देखा जाए तो कुल मिलाकर 856 विश्‍वकोश चाहिए। अगर आप जीनोम में दी जानकारी टाइप करने बैठें, वह भी हर दिन आठ घंटे बिना छुट्टी लिए, तो आपको करीब 80 साल लग जाएँगे!

मगर इतनी मेहनत करने के बाद भी आपके शरीर को इससे कोई फायदा नहीं होगा। आप उन सैंकड़ों विश्‍वकोशों को अपनी 1000 खरब सूक्ष्म कोशिकाओं के अंदर कैसे डालेंगे? यह काम हमारे बस के बाहर है।

अणुविज्ञान और कंप्यूटर विज्ञान के एक प्रोफेसर ने लिखा: “एक ग्राम डी.एन.ए. को अगर सुखाया जाए तो वह करीब 1 घन सेंटीमीटर जगह घेरेगा और उसमें दी जानकारी को अगर सी.डी. में डालना हो, तो इसके लिए करीब 10 खरब सी.डी. की ज़रूरत पड़ेगी।”20 इससे क्या समझ में आता है? याद रखिए कि डी.एन.ए. में जीन या कहानी होती है, जिसमें एक इंसान के शरीर की बनावट के बारे में निर्देश दिए होते हैं। यही निर्देश एक इंसान को दूसरे से अलग बनाते हैं। हर कोशिका में ये सारे निर्देश मौजूद होते हैं। डी.एन.ए. निर्देशों से इस कदर भरा होता है कि अगर एक चम्मच डी.एन.ए. लें, तो उससे आज दुनिया की आबादी से 350 गुणा ज़्यादा इंसान बनाए जा सकते हैं! धरती पर आज मौजूद 7 अरब इंसानों को बनाने के लिए जितने डी.एन.ए. की ज़रूरत है, वह सिर्फ उस चम्मच पर जमी परत के बराबर होगी।21

बिना लेखक की किताब?

एक ग्राम डी.एन.ए. में उतनी जानकारी होती है जितनी कि 10 खरब सी.डी. में

हालाँकि आज चीज़ों का छोटे-से-छोटा रूप बनाने में काफी तरक्की हुई है, लेकिन जानकारी जमा करने के लिए इंसान का बनाया कोई भी उपकरण डी.एन.ए. की बराबरी नहीं कर सकता। लेकिन इसकी तुलना सी.डी. से की जा सकती है। गौर कीजिए: सी.डी. का आकार, उसकी चमकदार सतह और उसका असरदार काम देखकर हम वाकई हैरत में पड़ जाते हैं। हमें इस बात का साफ सबूत मिलता है कि इसे बुद्धिमान इंसानों ने बनाया है। इसमें बेकार की जानकारी के बजाय अगर एक जटिल मशीन बनाने, उसके रख-रखाव और बिगड़ने पर उसकी मरम्मत किए जाने के निर्देश दिए हों तो आप क्या कहेंगे? इतना ही नहीं, उस जानकारी का न तो सी.डी. के आकार पर न ही उसके वज़न पर असर होता है, मगर फिर भी यह जानकारी उस सी.डी. की खासियत है। तो सी.डी. में दर्ज़ निर्देशों से क्या हमें यकीन नहीं हो जाता है कि इसे बनाने में ज़रूर किसी इंसान का दिमाग है? क्या कोई लेख बिना किसी लेखक के लिखा जा सकता है?

डी.एन.ए. की तुलना किसी सी.डी. या किताब से करना गलत नहीं है। जीनोम के बारे में लिखी एक किताब कहती है: “हालाँकि जीनोम को समझाने के लिए इसकी तुलना एक किताब से की गयी है, लेकिन यह तुलना बेमानी है, क्योंकि जीनोम असल में एक किताब ही है। जीनोम में डिजिटल (सांकेतिक) जानकारी होती है, ठीक जैसे एक किताब में।” किताब आगे कहती है: “जीनोम बहुत ही होशियार किताब है, क्योंकि सही हालात में यह अपनी एक प्रति बना सकता है और खुद में दर्ज़ जानकारी पढ़ सकता है।”22 इससे हमारा ध्यान डी.एन.ए. की एक और खासियत पर जाता है।

काम करती मशीनें

जब आप संग्रहालय में चुपचाप खड़े शीशे के खोल में रखे डी.एन.ए. के नमूने को देख रहे होते हैं, तो आपके मन में सवाल उठता है, इस संग्रहालय में रखे नाभिक की तरह क्या कोशिका का नाभिक भी बिलकुल स्थिर रहता है? तभी आपकी नज़र नमूने के ऊपर लगे एक संकेत चिन्ह पर पड़ती है, जिस पर लिखा है: “प्रदर्शन के लिए बटन दबाइए।” आप बटन दबाते हैं और एक आवाज़ समझाने लगती है: “डी.एन.ए. कम-से-कम दो ज़रूरी काम करता है। पहला है, विभाजन। डी.एन.ए. की हू-ब-हू प्रतियाँ बननी ज़रूरी हैं ताकि हर नयी कोशिका में एक-सी आनुवंशिक जानकारी हो। कृपया यह प्रदर्शन देखिए।”

इस संकेत चिन्ह के आखिर में एक दरवाज़ा है, जिसके अंदर से एक जटिल मशीन बाहर आती है। यह असल में कई रोबोट का झुंड है जो एक-दूसरे से जुड़ा है। यह मशीन डी.एन.ए. की तरफ जाती है और उससे जुड़ जाती है, फिर डी.एन.ए. पर चलना शुरू कर देती है, ठीक जैसे एक रेलगाड़ी पटरी पर चलती है। यह इतनी तेज़ चलती है कि आप देख नहीं पाते असल में क्या हो रहा है। लेकिन जैसे-जैसे मशीन आगे बढ़ती है, आप देखते हैं कि मशीन से डी.एन.ए. की एक रस्सी के बजाय दो रस्सियाँ निकल रही हैं।

आवाज़ समझाती है: “डी.एन.ए. के विभाजन को समझाने का यही सबसे सरल तरीका है। रोबोट की यह मशीन दरअसल अणुओं का समूह है, जिसे एन्ज़ाइम कहा जाता है। जब यह एन्ज़ाइम मशीन डी.एन.ए. पर चलती है, तो पहले उसे दो भागों में विभाजित करती है। फिर हर भाग के आधार पर यह उसका दूसरा भाग तैयार करती है। हम आपको इस एन्ज़ाइम मशीन के सारे पुरज़े नहीं दिखा सकते, जैसे कि वह छोटा-सा यंत्र जो मशीन के आगे-आगे चलता है और डी.एन.ए. को बीच से काटता है। कटा हुआ हिस्सा एक स्प्रिंग की तरह घुमावदार आकार लेता है, मगर वह उलझता नहीं। हम आपको यह भी नहीं दिखा सकते कि डी.एन.ए. में आयी कमियों को कैसे बार-बार सुधारा जाता है। इतना ज़रूर है कि सारी-की-सारी कमियों को ढूँढ़कर पूरी तरह ठीक कर दिया जाता है।”— पेज 16 और 17 पर दिया चित्र देखिए।

आवाज़ आगे बताती है: “एक चीज़ जो हम आपको साफ दिखा सकते हैं, वह है इस एन्ज़ाइम मशीन की रफ्तार। आपने देखा कि यह रोबोट बहुत तेज़ी से चलता है। यह एक सेकेंड में डी.एन.ए. की करीब 100 छड़ें (बेस पेयर) पार करता है।23 अगर डी.एन.ए. की ‘पटरी’, रेल की पटरी के आकार की होती, तो इस एन्ज़ाइम मशीन या ‘इंजन’ की रफ्तार 80 किलोमीटर प्रति घंटा से भी ज़्यादा होती। जीवाणुओं में यह एन्ज़ाइम मशीन और भी तेज़ी से काम करती है, इसकी रफ्तार इससे दस गुना ज़्यादा हो सकती है! इंसान की कोशिका में इस तरह की सैकडों एन्ज़ाइम मशीनें डी.एन.ए. ‘पटरी’ पर अलग-अलग जगह काम करती रहती हैं। वे आठ घंटे में पूरे-के-पूरे जीनोम की बिलकुल सही प्रति बना सकती हैं।”24 (पेज 20 पर दिया बक्स “ एक अणु जिसे पढ़ा और जिसकी प्रतियाँ बनायी जा सकती हैं” देखिए।)

डी.एन.ए. “पढ़ना”

डी.एन.ए. का विभाजन करनेवाली रोबोट मशीन धीरे-धीरे चली जाती है और अब दूसरी एन्ज़ाइम मशीन आती है। यह भी डी.एन.ए. पर चलती है, लेकिन पहलीवाली मशीन की जितनी रफ्तार से नहीं। आप देखते हैं कि डी.एन.ए. की रस्सी इस एन्ज़ाइम मशीन के अंदर घुसती है और दूसरे सिरे से बाहर निकलती है, लेकिन उसमें कोई बदलाव नहीं होता। मगर यह क्या, एक नयी डोर मशीन के दूसरे हिस्से से पूँछ की तरह बाहर निकल रही है! यह हो क्या रहा है?

आवाज़ फिर समझाती है: “डी.एन.ए. का दूसरा काम है, लिखित में जानकारी (ट्रांस्क्रिप्शन) देना। डी.एन.ए. में मौजूद जीन में शरीर के लिए ज़रूरी प्रोटीन बनाने की सारी जानकारी होती है, लेकिन डी.एन.ए. कभी-भी नाभिक की सुरक्षा से बाहर नहीं जाता। तो फिर उसमें मौजूद जानकारी को कैसे पढ़ा और इस्तेमाल किया जा सकता है? बात यह है कि यह दूसरी एन्ज़ाइम मशीन नाभिक के अंदर घुसकर डी.एन.ए. में मौजूद जीन को ढूँढ़ लेती है। उसे नाभिक के बाहर से आए कुछ रसायनिक संकेतों से पता चल जाता है कि यह जीन कहाँ स्थित है। फिर यह एन्ज़ाइम मशीन, आर.एन.ए. (राइबोन्यूक्लिक अम्ल) नाम के अणु की मदद से उस जीन की प्रति बनाती है। आर.एन.ए. काफी हद तक डी.एन.ए. की एक डोर की तरह दिखता है, लेकिन होता है उससे अलग। उसका काम है, जीन में दर्ज़ सांकेतिक जानकारी को पढ़ना। फिर जानकारी लेने के बाद वह नाभिक से निकलता है और एक राइबोज़ोम की तरफ चला जाता है। यहीं उस जानकारी की मदद से एक प्रोटीन बनाया जाता है।”

प्रदर्शन देखकर आप हैरान रह जाते हैं! इस संग्रहालय और यहाँ की मशीनों को देखकर आप इसके बनानेवालों के दिमाग की दाद दिए बिना नहीं रह पाते। लेकिन तब क्या अगर इंसानी कोशिका में एक समय पर होनेवाले हज़ारों कामों को दिखाने के लिए संग्रहालय के सारे नमूनों का प्रदर्शन एक साथ दिखाया जाता? तब तो आप ज़रूर चकरा जाते!

तभी आपको एहसास होता है कि इन सूक्ष्म जटिल मशीनों के ज़रिए होनेवाली सारी प्रक्रियाएँ इस वक्‍त आपके शरीर की 1000 खरब कोशिकाओं के अंदर हो रही हैं! आपके डी.एन.ए. को पढ़ा जा रहा है, शरीर के लिए ज़रूरी सैकड़ों-हज़ारों प्रोटीन बनाने के निर्देश दिए जा रहे हैं, जिनसे शरीर के अंग, एन्ज़ाइम, ऊतक वगैरह बनते हैं। इस वक्‍त आपके डी.एन.ए. की प्रति बनायी जा रही है और उसकी कमियों को सुधारा जा रहा है ताकि हर नयी कोशिका के लिए सारे निर्देश मौजूद हों।

ये बातें क्यों मायने रखती हैं?

आइए हम दोबारा खुद से पूछें, ‘ये सारे निर्देश कहाँ से आते हैं?’ बाइबल का कहना है कि यह “किताब” या जीनोम और उसमें दी जानकारी इंसानों से कहीं ऊँची हस्ती की तरफ से है। क्या ऐसा कहना दकियानूसी या विज्ञान के खिलाफ है?

गौर कीजिए: क्या इंसान कभी ऐसा संग्रहालय बना सकता है? अगर उसने कोशिश की तो वह ज़रूर फँस जाएगा। अभी तक हमारे पास इंसानी जीनोम और उसके काम करने के बारे में पूरी जानकारी नहीं है। वैज्ञानिक आज भी इस उधेड़बुन में हैं कि सारे जीन हैं कहाँ और वे क्या काम करते हैं। और जीन तो डी.एन.ए. डोर का एक छोटा-सा हिस्सा है। उन लंबी जगहों का क्या, जिनमें जीन नहीं होते? वैज्ञानिक उन जगहों को कचरा डी.एन.ए. कहते हैं, लेकिन हाल ही में उन्होंने अपनी इस सोच को बदला है। उन जगहों का काम शायद यह तय करना है कि जीन कैसे और किस हद तक इस्तेमाल किए जाएँगे। अगर वैज्ञानिक डी.एन.ए. और उसकी प्रति बनानेवाली और कमियाँ सुधारनेवाली उन मशीनों का पूरा नमूना किसी तरह बना भी लें, तब भी क्या वे एक असली डी.एन.ए. की तरह उस नमूने को चलाकर दिखा पाएँगे?

मशहूर वैज्ञानिक रिचर्ड फाइनमन ने अपनी मौत से कुछ समय पहले ब्लैकबोर्ड पर यह लिखा: “मैं जिसका निर्माण नहीं कर सकता, उसे समझ भी नहीं सकता।”25 उसकी यह नम्रता वाकई काबिले-तारीफ है और खासकर डी.एन.ए. के मामले में उसकी बात सोलह आने सच है। वैज्ञानिक न तो डी.एन.ए. का, न उसकी प्रति बनानेवाली या दूसरों तक जानकारी पहुँचानेवाली मशीनों का निर्माण कर सकते हैं और न ही उनके काम को पूरी तरह समझ सकते हैं। लेकिन कुछ लोग दावा करते हैं कि हमें मालूम है कि सब कुछ अपने आप वजूद में आ गया। इस लेख में दिए सबूतों पर गौर करने के बाद, क्या आप उनके इस दावे पर यकीन करेंगे?

कुछ विद्वान इन सबूतों के मद्देनज़र एक अलग नतीजे पर पहुँचते हैं। उदाहरण के लिए डी.एन.ए. की द्वि-कुण्डलीनी बनावट की खोज में मदद करनेवाले एक वैज्ञानिक फ्राँसिस क्रिक का कहना है कि इस अणु की संरचना और काम इतना सटीक है कि यह अपने आप वजूद में आ ही नहीं सकता। उनके मुताबिक दूसरे ग्रहों पर रहनेवाले बुद्धिमान प्राणियों ने शायद डी.एन.ए. को धरती पर भेजा होगा ताकि यहाँ जीवन की शुरूआत हो सके।26

पचास सालों से नास्तिकवाद को बढ़ावा देनेवाले जाने-माने तत्वज्ञानी एन्टनी फ्लू की सोच में हाल ही में एक ज़बरदस्त बदलाव आया। इक्यासी साल की उम्र में वे यह विश्‍वास ज़ाहिर करने लगे कि जीवन की सृष्टि के पीछे ज़रूर किसी बुद्धिमान हस्ती का हाथ है। अचानक यह बदलाव क्यों? डी.एन.ए. के अध्ययन की वजह से। जब उनसे पूछा गया कि अगर वैज्ञानिक उनसे सहमत न हों तो? कहा जाता है कि उनका जवाब था: “उनका ऐसा करना ठीक नहीं होगा। मैंने यही सीखा और सारी ज़िंदगी इसी सिद्धांत पर चला . . . कि सबूतों के आधार पर ही किसी बात का विश्‍वास करना चाहिए, फिर चाहे सबूत जिसका साथ दें।”27

आप क्या सोचते हैं? सबूत किसका साथ दे रहे हैं? कल्पना कीजिए कि किसी कारखाने के एक खास हिस्से में आपको एक कमरा दिखायी देता है, जहाँ कंप्यूटर रखा है। कंप्यूटर में ऐसा विशेष जटिल प्रोग्राम है, जो उस कारखाने के सारे काम को नियंत्रित करता है। इतना ही नहीं, वह प्रोग्राम कारखाने की हर मशीन को बनाने और उसे सही-सलामत रखने के लिए लगातार निर्देश भेजता है। साथ ही वह अपनी प्रतियाँ भी बनाता जाता है और उनकी कमियाँ सुधारता है। इससे आप किस नतीजे पर पहुँचते हैं? इस नतीजे पर कि वह कंप्यूटर और उसका प्रोग्राम अपने आप ही बन गया, या इस पर कि उसे ज़रूर किसी बुद्धिमान व्यक्‍ति ने बनाया होगा? सबूत शीशे की तरह साफ है।

a किताब मॉलिक्यूलर बायोलोजी ऑफ द सैल इसे एक दूसरे तरीके से समझाती है। उसमें लिखा है, इन लंबी रस्सियों को एक कोशिका के नाभिक में रखना ऐसा होगा मानो 40 किलोमीटर लंबे बारीक धागे को एक टेनिस गेंद के अंदर इस तरतीब से लपेटना कि खींचने पर धागे का हर हिस्सा आसानी से हाथ में आ जाए।

b हर कोशिका में जीनोम की दो प्रतियाँ होती हैं, यानी कुल मिलाकर 46 गुणसूत्र होते हैं।