सवाल 4
क्या सारे प्राणियों का पूर्वज एक ही है?
डार्विन ने सोचा कि शायद धरती के सारे प्राणियों का पूर्वज एक ही है। इसे समझाने के लिए उसने जीवन के क्रम-विकास की तुलना एक विशाल पेड़ से की। बाद में, दूसरे मानने लगे कि इस “जीवन के पेड़” की शुरूआत सबसे पहले पेड़ के तने यानी सरल कोशिकाओं से हुई। इस तने से मुख्य शाखाएँ यानी नए जीव-जंतु बने। फिर शाखाओं से छोटी-छोटी डालियाँ यानी पेड़-पौधों और जानवरों के कुल बने। उन डालियों से टहनियाँ यानी आज जीवित सारे पेड़-पौधों और जानवरों की प्रजातियाँ बनीं। क्या असल में यही हुआ था?
कई वैज्ञानिक क्या दावा करते हैं? कई वैज्ञानिक सिखाते हैं कि जीवाश्मों या फॉसिल (प्राणियों की हड्डियों के अवशेष) से यह सिद्धांत साबित होता है कि जीवन एक ही पूर्वज से आया है। वे यह भी दावा करते हैं कि सभी जीवित प्राणी एक ही तरह की “कंप्यूटर भाषा” यानी डी.एन.ए. का इस्तेमाल करते हैं, इसलिए यह सच है कि सारे प्राणियों का विकास एक ही पूर्वज से हुआ है।
बाइबल क्या कहती है? उत्पत्ति में दिया ब्यौरा बताता है कि पेड़-पौधे, समुद्री जीव, धरती के जानवर और पक्षी “एक एक की जाति के अनुसार” बनाए गए। (उत्पत्ति 1:12, 20-25) इस ब्यौरे से पता चलता है कि अलग-अलग जातियों के बीच काफी फर्क है, साथ ही हर “जाति” में भी विभिन्नता की गुंजाइश है। अगर बाइबल में दिया सृष्टि का ब्यौरा सही है, तो जीवाश्मों से यह साबित होना चाहिए कि नए प्रकार के जीव-जंतु एक ही वक्त पर पूरी तरह बनाए गए।
सबूत क्या दिखाते हैं? सबूत किसे सही साबित करते हैं, सृष्टि के ब्यौरे को या डार्विन के सिद्धांत को? पिछले 150 सालों में हुई खोज से क्या पता चलता है?
डार्विन का पेड़ औंधे मुँह
हाल के सालों में वैज्ञानिकों ने दर्जनों अलग-अलग एक-कोशिकीय जीवों, पौधों और जानवरों के आनुवंशिक कोड की तुलना की और उन्होंने सोचा कि इससे वे डार्विन के बताए “जीवन के पेड़” की व्याख्या को सही साबित कर पाएँगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
उनकी खोज से क्या पता चला? सन् 1999 में जीव-विज्ञानी मैल्कम एस. गॉर्डन ने लिखा: “ऐसा लगता है कि जीवन की शुरूआत के कई स्रोत हैं। एक ही जड़ से सबकी शुरूआत नहीं हुई।” क्या डार्विन के बताए “जीवन के पेड़” को सच साबित करने का कोई सबूत है? गॉर्डन ने आगे लिखा: “जैसे पहले समझा जाता था कि सभी जीव-जंतु एक ही पूर्वज से आए हैं, लगता है वह सिद्धांत आज की समझ के मुताबिक वनस्पति और प्राणी जगत (किंगडम) पर लागू नहीं होता। यह सिद्धांत शायद कुछ संघ (फाइला) पर लागू हो, मगर सभी पर नहीं और न ही यह संघ के तहत सारे वर्गों (क्लास) पर लागू होता है।”29 a
30 उसी लेख में विकासवाद के एक और समर्थक जीव-विज्ञानी माइकल रोज़ की यह बात लिखी थी: “हम सभी जानते हैं कि जीवन के पेड़ की व्याख्या को बड़ी इज़्ज़त के साथ दफनाया जा चुका है। लेकिन यह बात कई लोगों के गले नहीं उतरती कि जीव-विज्ञान की बुनियाद जिस आधार पर पड़ी है, उसे बदलने की ज़रूरत है।”31 b
हाल की खोजें भी डार्विन के इस सिद्धांत के खिलाफ हैं। उदाहरण के लिए 2009 में न्यू साइंटिस्ट पत्रिका के एक लेख में विकासवाद को माननेवाले वैज्ञानिक एरिक बापटिस्ट की यह बात लिखी थी: “हमारे पास जीवन के पेड़ की व्याख्या को सच साबित करने का कोई प्रमाण नहीं।”जीवाश्मों से क्या साबित होता है?
कई वैज्ञानिक कहते हैं, जीवाश्मों से साबित होता है कि जीवन की उत्पत्ति एक ही पूर्वज से हुई है। मिसाल के लिए, उनका तर्क है कि जीवाश्मों की खोजों से पता चलता है कि पानी में रहनेवाले जीव मछली से एम्फीबिया (धरती और जल दोनों में रहनेवाले जीव) बने। उसी तरह रेप्टीलिया (रेंगनेवाले जीव) से मैमल (स्तनधारी जीव) बने। लेकिन हकीकत क्या है?
विकासवाद के समर्थक जीवाश्म-विज्ञानी डेविड एम. रौप कहते हैं, “इसका सबूत मिलने के बजाय कि जीवन का विकास धीरे-धीरे हुआ, डार्विन के समय के और आज के भूविज्ञानी पाते हैं कि जीवाश्म के रिकॉर्ड में बहुत गड़बड़ी है; यानी प्रजातियाँ अचानक एक क्रम में नज़र आती हैं, सालों तक उनमें कोई बदलाव नहीं होता या अगर होता भी है तो न के बराबर और फिर एक दिन वे अचानक लुप्त हो जाती हैं।”32
हकीकत देखी जाए तो ज़्यादातर जीवाश्मों की जाँच से पता चलता है कि एक लंबा अरसा बीतने पर भी अलग-अलग प्रकार के जंतुओं में कोई बदलाव नहीं आया। किसी भी जीवाश्म से यह साबित नहीं होता कि एक प्रकार के जानवर से दूसरे प्रकार के जानवर का विकास हुआ। सारे जीवाश्म यही दिखाते हैं कि अलग-अलग प्रकार के जीव-जंतुओं के शरीर की बनावट एक-दूसरे से अलग है और उनकी नयी खासियतें भी अचानक नज़र आती हैं। उदाहरण के लिए, चमगादड़ों में ध्वनि तरंग और गूँज के सहारे अपना रास्ता ढूँढ़ने की क्षमता होती है। उनकी यह खासियत किसी भी प्राचीन जीव-जंतु में साफ नज़र नहीं आती, ऐसे में हम जीवन के क्रम-विकास में किस जानवर को उनका पूर्वज कहेंगे?
सच्चाई यह है कि प्राणी जगत में जो मुख्य वर्ग हैं, उन वर्गों के ज़्यादातर जानवर कम समय में अचानक उत्पन्न हुए हैं। उस समय के दौरान जीवाश्म रिकॉर्ड में नए और तरह-तरह के प्राणी इतने अचानक नज़र आते हैं कि जीवाश्म विज्ञानी उस काल को “केम्ब्रियन विस्फोट” कहते हैं। यह केम्ब्रियन काल (कल्प) कब शुरू हुआ?
चलिए मान लेते हैं कि खोजकर्ताओं के अनुमान सही हैं। तो उस बिनाह पर (1) धरती के इतिहास को समझने के लिए एक फुटबाल मैदान के जितनी लंबी समय-रेखा लीजिए। (2) अगर आप मैदान को आठ भागों में बाँटें, तो जीवाश्म विज्ञानियों के मुताबिक सात भाग पार करने के बाद ही आप केम्ब्रियन काल में पहुँचेंगे। केम्ब्रियन काल के इस छोटे-से दौर में प्राणी जगत के मुख्य वर्गों के जीवाश्म मिलते हैं। इन प्राणियों का विकास कितनी तेज़ी से हुआ? केम्ब्रियन काल में आपके एक कदम बढ़ाते ही अचानक ये अलग-अलग जीव-जंतु नज़र आने लगते हैं!
इनके इस तरह अचानक उत्पन्न होने की वजह से विकासवाद को माननेवाले कुछ खोजकर्ताओं के मन में डार्विन के सिद्धांत पर सवाल उठा है। मिसाल के लिए, सन् 2008 में विकासवाद के समर्थक 33
जीव-विज्ञानी स्टूअर्ट न्यूमेन ने एक साक्षात्कार में कहा कि नए-नए प्रकार के जीव-जंतु अचानक कैसे उत्पन्न हो गए, इसे समझाने के लिए अब विकासवाद के नए सिद्धांत की ज़रूरत है। उन्होंने कहा: “विकास के दौरान प्राणियों में आए बड़े-बड़े परिवर्तनों को जब समझाने की बात आती है तो डार्विन का सिद्धांत बिलकुल फीका पड़ जाता है। मेरे हिसाब से जीवन के क्रम-विकास को समझाने के लिए हमें कई सिद्धांतों की ज़रूरत होगी, जिनमें से एक होगा डार्विन का सिद्धांत और उसकी भी अहमियत कुछ खास नहीं होगी।”“सबूत” में खामी
उन जीवाश्मों के बारे में क्या जिनके आधार पर कहा जाता है कि मछली से एम्फीबिया बने और रेप्टीलिया से मैमल? क्या जीवाश्मों से ठोस प्रमाण मिलते हैं कि इनका विकास क्रम में हुआ है? नज़दीकी जाँच करने पर इनमें कई खामियाँ साफ नज़र आती हैं।
पहली खामी, रेप्टीलिया से स्तनधारी जीवों के विकास के बारे में किताबों में जो तसवीरें दी जाती हैं, उनका सही आकार नहीं दिखाया जाता। क्रम में दिए जीव-जंतुओं के जीवाश्म का आकार एक-समान दिखाया जाता है, लेकिन हकीकत में कुछ का छोटा है, तो कुछ का बड़ा।
दूसरी खामी तो और भी बड़ी है। इस बात का कोई प्रमाण नहीं कि वे जीव-जंतु आपस में किसी तरह मेल खाते हैं। जीवाश्म के नमूने जिस क्रम में रखे गए हैं, खोजकर्ता कहते हैं कि उनके बीच का समय लाखों साल हो सकता है। कई जीवाश्मों के अंतराल के बारे में जीव-विज्ञानी हेनरी जी कहते हैं: “जीवाश्मों के बीच का अंतराल इतना बड़ा है कि कौन किसका पूर्वज या वंशज है, इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता।”34 c
जीव-विज्ञानी मैल्कम एस. गॉर्डन कहते हैं कि हमें मछली और एम्फीबिया समूह के बहुत कम जीवाश्म मिले हैं और “वे भी उस दौर के इन दोनों समूहों के हज़ारों प्रकारों में से कुछ जीव-जंतुओं के ही हैं।” वे आगे कहते हैं: “यह पता करने का कोई तरीका नहीं कि क्या उन जीव-जंतुओं से 35 d
दूसरी तरह के जीव-जंतुओं का विकास हुआ या उनका आपस में किसी तरह का कोई रिश्ता था भी या नहीं।”“फिल्म” की असली कहानी
सन् 2004 में नैशनल जियोग्राफिक पत्रिका में छपे एक लेख में बताया गया कि जीवाश्म रिकॉर्ड मानो “विकासवाद की एक ऐसी फिल्म की तरह है, जिसकी हर 1,000 तसवीरों में से 999 तसवीरें काट-छाँट के दौरान गुम हो गयीं।”36 गौर कीजिए कि इस मिसाल से क्या समझ में आता है।
कल्पना कीजिए कि आपको किसी फिल्म की 1,00,000 में से 100 तसवीरें मिली हैं। क्या उन 100 तसवीरों के बूते आप फिल्म की सही-सही कहानी बता सकते हैं? शायद आपने पहले से ही अपने मन में फिल्म की कहानी तय कर ली हो और उन 100 तसवीरों में से 5 तसवीरें आपकी सोच के मुताबिक हों। लेकिन अगर बाकी 95 तसवीरें कुछ और ही कहानी बयान करती हों, तब आप क्या कहेंगे? क्या यह दावा करना सही होगा कि 5 तसवीरें आपकी कहानी के मुताबिक हैं, इसलिए वही सही है? क्या हो सकता है कि आपने अपनी कहानी को सही करार देने के लिए उन 5 तसवीरों को अपनी मरज़ी के हिसाब से क्रम में रखा हो? क्या बेहतर यह नहीं होगा कि आप बाकी की 95 तसवीरों पर भी गौर करें ताकि आप सही कहानी का पता लगा सकें?
जीवाश्म रिकॉर्ड के आधार पर अपनी बात कहनेवाले विकासवादियों पर यह मिसाल कैसे लागू होती है? 95 तसवीरें, यानी ज़्यादातर जीवाश्म यही दिखाते हैं कि जीव-जंतुओं की प्रजातियों में समय के गुज़रते कुछ खास बदलाव नहीं हुआ। मगर कई सालों तक वैज्ञानिकों ने यह सच्चाई कबूल नहीं की। आखिर वे इस सच्चाई से नज़र क्यों चुराते हैं? लेखक रिचर्ड मॉरिस कहते हैं: “लगता है कि जीवाश्म वैज्ञानिक पुराने समय से चली आ रही इस धारणा को पकड़े रहे कि जीव-जंतुओं का धीरे-धीरे विकास हुआ और इसीलिए उन्होंने सबूतों को देखकर भी 37
अनदेखा कर दिया। वे विकासवाद की मानी हुई धारणा को सही करार देने के लिए जीवाश्मों के सबूतों को अपनी मरज़ी से समझा रहे थे।”“कई जीवाश्मों को एक क्रम में रखकर यह दावा करना कि एक का विकास दूसरे से हुआ, यह ऐसा वैज्ञानिक सिद्धांत नहीं जिसे परखा जा सके। यह सिर्फ एक दावा है और उसकी अहमियत बच्चों की कहानी के बराबर ही है, जो दिलचस्प, यहाँ तक कि सबक देनेवाली हो सकती है, लेकिन उसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।”—इन सर्च ऑफ डीप टाइम—बियोंड द फॉसिल रिकॉर्ड टू ए न्यू हिस्टरी ऑफ लाइफ, लेखक हेनरी जी, पेज 116-117
आज के विकासवादियों के बारे में क्या कहा जा सकता है? क्या हो सकता है कि वे आज भी जीवाश्मों को जिस क्रम में रखते हैं, वह ज़्यादातर जीवाश्म और आनुवंशिक सबूतों पर आधारित न हो? कहीं वे विकासवाद की धारणाएँ सही साबित करने के लिए तो ऐसा नहीं करते? e
आप क्या सोचते हैं? सबूत आपको किस नतीजे पर ले जाते हैं? अब तक चर्चा की गयी सच्चाइयों पर गौर कीजिए।
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धरती पर पहला जीवन “सरल” नहीं था।
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कोशिका के अलग-अलग अंशों का भी खुद-ब-खुद उत्पन्न हो जाना नामुमकिन है।
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इंसानों ने अभी तक जानकारी जमा करके रखने के लिए जितनी भी चीज़ें या प्रोग्राम बनाए हैं, उन सबसे जटिल है डी.एन.ए. का “कंप्यूटर प्रोग्राम,” जो कोशिका के सारे काम निर्देशित करता है और इससे यही साबित होता है कि इसे बनानेवाले की बुद्धि बेजोड़ है।
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आनुवंशिक खोज दिखाती है कि जीवन एक पूर्वज से नहीं आया। साथ ही हमने देखा कि जानवरों का बड़ा समूह जीवाश्म रिकॉर्ड में अचानक नज़र आता है।
इन सबूतों के मद्देनज़र, क्या यह मानना सही नहीं होगा कि सारे सबूत बाइबल में दिए जीवन की शुरूआत के ब्यौरे से मेल खाते हैं? लेकिन कई लोग दावा करते हैं कि विज्ञान बाइबल में दिए सृष्टि के ब्यौरे की कई बातों को गलत बताता है। क्या यह सच है? बाइबल असल में क्या बताती है?
a जीव-विज्ञान में संघ (एकवचन, फाइलम) ऐसे कई जानवरों के समूह को दर्शाता है, जिनके शरीर की संरचना एक जैसी होती है। प्राणियों और वनस्पति को अलग-अलग वर्गों में विभाजित करने की एक पद्धति है और इसे सात श्रेणियों में किया जाता है। पहली श्रेणी सबसे बड़ी होती है, जिसे जीव जगत (किंगडम) कहा जाता है। उसके तहत होते हैं, फाइलम, वर्ग (क्लास), गण (ऑर्डर), कुल (फेमिली), वंश (जीनस) और जाति (स्पीशीस)। उदाहरण के लिए घोड़े का वर्गीकरण इस तरह किया जाता है: जगत है एनिमेलिया; फाइलम है कॉर्डेटा; वर्ग है मैमेलिया; गण है पेरिसोडेक्टिला; कुल है ईक्विडी; वंश है ईक्वस और जाति है कैबेलस।
b यह गौर करने लायक है कि न तो न्यू साइंटिस्ट पत्रिका का वह लेख, न ही बापटिस्ट और रोज़, विकासवाद के सिद्धांत को गलत साबित करना चाहते हैं। वे सिर्फ यह बताना चाहते हैं कि डार्विन ने विकासवाद के सिद्धांत को समझाने के लिए जो मुख्य आधार लिया यानी जीवन के पेड़ की व्याख्या, उसका अभी तक कोई सबूत नहीं मिला है। ऐसे वैज्ञानिक विकासवाद को साबित करने के लिए आज भी नए-नए तरीके ढूँढ़ रहे हैं।
c हेनरी जी यह नहीं कहना चाहते कि विकासवाद का सिद्धांत गलत है। यहाँ उनकी कही बात यह दिखाने के लिए दी गयी है कि जीवाश्म रिकॉर्ड से हमें पूरी जानकारी नहीं मिल सकती।
d मैल्कम एस. गॉर्डन विकासवाद के समर्थक हैं।
e उदाहरण के लिए बक्स “ इंसान का क्रम-विकास कितना सच कितना झूठ?” देखिए।