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सवाल 1

जीवन की शुरूआत कैसे हुई?

जीवन की शुरूआत कैसे हुई?

क्या बचपन में कभी आपने अपने माता-पिता से यह पूछा था, “बच्चे कहाँ से आते हैं?” क्या यह सुनकर वे हैरान रह गए थे? उन्होंने क्या जवाब दिया? अगर आप बहुत छोटे थे और आपके माता-पिता शर्मीले स्वभाव के थे, तो शायद उन्होंने आपके सवाल को नज़रअंदाज़ कर दिया होगा या फिर हड़बड़ी में कुछ अजीब-सा जवाब दिया होगा। या कुछ मनगढ़ंत कहानी गढ़कर आपको सुना दी होगी, जो बाद में आपको पता चला कि झूठी थी। बेशक अगर हम चाहते हैं कि बच्चा एक परिपक्व इंसान बने और शादी के लिए सही तरीके से तैयार हो, तो उसे एक-न-एक दिन इस हैरतअंगेज़ प्रक्रिया के बारे में जानना ही होगा कि बच्चा गर्भ में कैसे आता है और कैसे बढ़ता है।

जिस तरह कई माता-पिता यह बताने से झिझकते हैं कि बच्चे कहाँ से आते हैं, वैसे ही लगता है कुछ वैज्ञानिक इससे भी ज़्यादा ज़रूरी एक सवाल पर चर्चा करने से हिचकिचाते हैं और वह है कि जीवन कैसे शुरू हुआ? अगर एक इंसान इस सवाल का सही जवाब जान ले, तो ज़िंदगी के बारे में उसके नज़रिए में ज़बरदस्त बदलाव आएगा। तो आइए जानें कि जीवन की शुरूआत कैसे हुई?

इंसान की एक निषेचित अंड कोशिका, जो अपने आकार से 800 गुना बड़ी दिखायी गयी है

कई वैज्ञानिक क्या दावा करते हैं? विकासवाद में यकीन करनेवाले कई वैज्ञानिक आपको बताएँगे कि जीवन की शुरूआत करोड़ों साल पहले किसी तालाब के किनारे या समुद्र की गहराइयों में हुई थी। उन्हें लगता है कि ऐसी ही किसी जगह में, रसायन अचानक बुलबुलों के आकार में इकट्ठे हुए, जटिल अणु बने और दुगने-तिगुने होने लगे। फिर उनसे एक “सरल” कोशिका बनी। तब एक या उससे ज़्यादा “सरल” कोशिकाओं से अचानक धरती पर जीवन की शुरूआत हुई।

वहीं दूसरे जाने-माने वैज्ञानिक जो विकासवाद को तो मानते हैं, मगर उनकी बातों से इत्तफाक नहीं रखते; उनका अनुमान है कि शुरूआती कोशिकाएँ या कम-से-कम उनके प्रमुख अंश अंतरिक्ष से धरती पर आए। वे ऐसा क्यों मानते हैं? क्योंकि सारी कोशिशों के बावजूद वैज्ञानिक अब तक यह साबित नहीं कर पाए कि जीवन निर्जीव अणुओं से शुरू हो सकता है। सन्‌ 2008 में जीव-विज्ञान के प्रोफेसर आलेक्ज़ांड्रा मेनेज़ ने इस दुविधा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पिछले 50 सालों में “न तो ऐसा देखा गया और न किसी प्रयोग से इस धारणा को साबित किया जा सका कि धरती पर जीवन अचानक अणुओं के मिश्रण से शुरू हुआ। वैज्ञानिक ज्ञान में इतनी उन्नति होने के बावजूद इस धारणा को साबित नहीं किया जा सका है।”1

सबूत क्या दिखाते हैं? बच्चे कहाँ से आते हैं, इसके बारे में सारी जानकारी लिखित रूप में दर्ज़ है और इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं। सभी इस बुनियादी नियम से वाकिफ हैं कि जीवन की उत्पत्ति हमेशा जीवन से होती है। लेकिन समय की धारा में अगर हम पीछे जाएँ, तो क्या मुमकिन है कि शुरूआत में यह नियम लागू न हुआ हो? क्या जीवन वाकई निर्जीव रसायनों से अचानक उत्पन्न हुआ? क्या ऐसा होने की कोई संभावना है?

खोजकर्ताओं ने जाना है कि एक कोशिका के ज़िंदा रहने के लिए कम-से-कम तीन तरह के जटिल अणुओं का साथ काम करना ज़रूरी है। वे हैं, डी.एन.ए. (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल), आर.एन.ए. (राइबोन्यूक्लिक अम्ल) और प्रोटीन। आज कुछ वैज्ञानिक शायद ज़ोर देकर कहें कि एक पूर्ण जीवित कोशिका अपने आप ही निर्जीव रसायन के मिश्रण से शुरू हुई। लेकिन क्या यह मुमकिन है कि आर.एन.ए. या प्रोटीन अचानक ही उत्पन्न हुए हों? *

स्टैन्ली मिलर, 1953

सन्‌ 1953 में एक प्रयोग पहली बार किया गया, जिसके आधार पर कई वैज्ञानिकों को लगता है कि जीवन अपने आप शुरू हो सकता है। उस साल स्टैन्ली एल. मिलर ने गैसों का एक ऐसा मिश्रण तैयार किया, जो माना जाता है कि शुरूआत में धरती के वायुमंडल में था। उन्होंने उस मिश्रण में विघुत प्रवाह किया जिससे वे कुछ अमीनो अम्ल पैदा कर पाए। प्रोटीन का निर्माण ऐसे ही अमीनो अम्ल से होता है। ये अमीनो अम्ल एक उल्का पिंड में भी मिले हैं। क्या इन खोजों का मतलब है कि जीवन की शुरूआत के लिए जिन पदार्थों की ज़रूरत है, वे सब-के-सब आसानी से अचानक पैदा हो सकते हैं?

न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र के प्रोफेसर रह चुके रॉबर्ट शापिरो कहते हैं, “कुछ लेखकों ने बस मान लिया है कि जीवन के निर्माण के लिए जितने अणुओं की ज़रूरत है, वे सब बड़ी आसानी से उसी तरह बनाए जा सकते हैं, जैसे मिलर ने अपने प्रयोग में अमीनो अम्ल बनाए थे और जो उल्का पिंडों में मौजूद थे। लेकिन यह सच नहीं है।”2 *

अब ज़रा आर.एन.ए. पर गौर कीजिए। यह अणु छोटे अणुओं से बना है, जिन्हें न्यूक्लिओटाइड कहा जाता है। न्यूक्लिओटाइड, अमीनो अम्ल से थोड़ा और जटिल अणु है। शापिरो कहते हैं, “यह कभी नहीं बताया गया कि विघुत प्रवाह के प्रयोगों और उल्का पिंडों के अध्ययनों में किसी भी तरह के न्यूक्लिओटाइड पाए गए हैं।”3 वे आगे कहते हैं कि आर.एन.ए. जिसमें विभाजित होने की क्षमता होती है वह रसायनों के मिश्रण से अपने आप तैयार हो जाए इसकी संभावना “इतनी कम है कि अगर विश्व के किसी हिस्से में ऐसा एक बार भी हो, तो यह एक अनहोनी घटना ही होगी।”4

आर.एन.ए. (1) बिना प्रोटीन (2) के नहीं बन सकता, लेकिन प्रोटीन बनाने के लिए आर.एन.ए. की ज़रूरत होती है। जब एक भी अपने आप नहीं बन सकता, तो दोनों के एक-साथ बनने की कितनी गुंजाइश है? भाग 2 में राइबोज़ोम्स (3) पर चर्चा की जाएगी।

प्रोटीन अणुओं के बारे में क्या कहा जा सकता है? ये अलग-अलग तरह के होते हैं, जो तकरीबन 50 से लेकर हज़ारों अमीनो अम्ल से बनते हैं और एक सटीक क्रम में संगठित होते हैं। एक “सरल” कोशिका में हज़ारों तरह के प्रोटीन होते हैं। एक आम क्रियाशील प्रोटीन में 200 अमीनो अम्ल होते हैं। धरती पर ऐसा एक प्रोटीन अपने आप बन जाए जिसमें सिर्फ 100 अमीनो अम्ल हों, इसकी संभावना लाखों-करोड़ों में एक है।

अगर प्रयोगशाला में जटिल अणुओं को बनाने के लिए एक कुशल वैज्ञानिक की ज़रूरत होती है, तो क्या कोशिका में पाए जानेवाले उससे भी जटिल अणु अपने आप बन सकते हैं?

विकासवाद की शिक्षा का समर्थन करनेवाले एक खोजकर्ता ह्‌यूबर्ट पी. यॉकी तो एक कदम और आगे हैं। वे कहते हैं: “यह नामुमकिन है कि जीवन की शुरूआत ‘पहले प्रोटीनों’ से हुई।”5 प्रोटीन के निर्माण के लिए आर.एन.ए. की ज़रूरत होती है, जबकि आर.एन.ए. भी बिना प्रोटीन के नहीं बन सकता। लेकिन अगर मान लिया जाए कि हर संभावना के खिलाफ प्रोटीन और आर.एन.ए. अणु दोनों एक ही जगह पर एक ही समय में उत्पन्न हो गए हों, तो? क्या यह मुमकिन है कि दोनों किसी तरह मिल जाएँ और ऐसे जीवन का निर्माण करें जिसमें विभाजन करने और खुद को कायम रखने की क्षमता हो? नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन्स एस्ट्रोबायोलोजी इंस्टिट्यूट की सदस्य डॉ. कैरल क्लीलैंड * कहती हैं, “ऐसा अपने आप हो जाए, इसकी संभावना न के बराबर है (फिर चाहे प्रोटीन और आर.एन.ए. का मिश्रण मौजूद ही क्यों न हो)। . . . लेकिन लगता है कि ज़्यादातर खोजकर्ता यह मानते हैं कि अगर वे यह साबित कर दें कि शुरूआती वायुमंडल में प्रोटीन और आर.एन.ए. अपने आप उत्पन्न हो गए, तो दोनों किसी-न-किसी तरह मिलकर काम करने ही लगेंगे।” जीवन के लिए ज़रूरी अणुओं के अपने आप पैदा होने के जो सिद्धांत हाल में पेश किए गए हैं, उनके बारे में डॉ. कैरल कहती हैं: “यह कैसे हुआ इस बारे में एक भी वैज्ञानिक तसल्ली देनेवाली कहानी नहीं बता पाया है।”6

जब एक बेजान रोबोट को बनाने और उसमें प्रोग्राम डालने के लिए किसी बुद्धिमान व्यक्‍ति की ज़रूरत होती है, तो क्या एक जीवित कोशिका अपने आप बन सकती है? और फिर इंसान के बारे में आप क्या कहेंगे?

यह जानकारी क्यों मायने रखती है? जो खोजकर्ता यह मानते हैं कि जीवन अपने आप शुरू हो गया, ज़रा उनकी परेशानी के बारे में सोचिए। उन्होंने कुछ अमीनो अम्ल खोज निकाले, जो जीवित कोशिकाओं में भी पाए जाते हैं। अपनी प्रयोगशालाओं में उन्होंने काफी बातों का बारीकी से ध्यान रखते हुए प्रयोग किए, जिनमें वे दूसरे और भी जटिल अणु बना पाए हैं। वे उम्मीद करते हैं कि एक-न-एक दिन वे उन सभी चीज़ों का निर्माण कर लेंगे जो एक “सरल” कोशिका को बनाने के लिए ज़रूरी होती हैं। इन खोजकर्ताओं की तुलना हम एक ऐसे वैज्ञानिक से कर सकते हैं, जो प्रकृति में पाए जानेवाले तत्वों को इस्पात, प्लास्टिक, सिलिकोन और तार में तबदील करता है और फिर उनसे एक रोबोट बनाता है। फिर वह रोबोट में इस तरह के प्रोग्राम डालता है ताकि वह अपने जैसे और रोबोट बना सके। ऐसा करके वह वैज्ञानिक क्या साबित करेगा? यही कि एक बुद्धिमान प्राणी एक बहुत ही बेहतरीन मशीन का निर्माण कर सकता है।

उसी तरह मान लीजिए अगर वैज्ञानिक कोशिका का निर्माण कर भी लेते हैं, तो यह वाकई लाजवाब बात होगी। लेकिन क्या इससे वे यह साबित कर पाएँगे कि कोशिका अपने आप बन गयी? या फिर वे इसके बिलकुल विपरीत बात साबित कर रहे होंगे?

आप क्या सोचते हैं? आज तक मिले सारे वैज्ञानिक सबूत यही दिखाते हैं कि जीवन पहले से मौजूद जीवन से ही आ सकता है। तो यह मानने के लिए कि एक “सरल” कोशिका अपने आप निर्जीव रसायनों से बन गयी, एक इंसान को बगैर किसी सबूत के विश्वास करना होगा।

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, क्या आप आँख मूँदकर विश्वास करने के लिए तैयार हैं? जवाब देने से पहले ज़रा करीबी से कोशिका के निर्माण पर गौर कीजिए, तब आप समझ पाएँगे कि जीवन की शुरूआत के बारे में वैज्ञानिक जो सिद्धांत बताते हैं क्या वे वाकई सही हैं या उन कहानियों की तरह हैं जो माता-पिता अपने बच्चों को बहलाने के लिए सुनाते हैं।

^ पैरा. 8 क्या डी.एन.ए. अपने आप पैदा हो सकता है, इसकी चर्चा भाग 3 में की जाएगी जिसका विषय है, “निर्देश कहाँ से आते हैं?

^ पैरा. 10 प्रोफेसर शापिरो यह नहीं मानते कि जीवन की सृष्टि की गयी है। वे विश्वास करते हैं कि जीवन अपने आप किसी तरह शुरू हुआ, जिसे अभी तक ठीक-ठीक नहीं समझा जा सका। कहा जाता है कि सन्‌ 2009 में इंग्लैंड के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपनी प्रयोगशाला में कुछ न्यूक्लिओटाइड बनाए। लेकिन प्रोफेसर शापिरो कहते हैं कि “यकीनन मेरे हिसाब से” उनके प्रयोग “आर.एन.ए. की दुनिया की ओर नहीं ले जा सकते।”

^ पैरा. 13 डॉ. क्लीलैंड सृष्टि की रचना में विश्वास नहीं करतीं। वे मानती हैं कि जीवन की उत्पत्ति किसी तरह अपने आप हुई है, जिसे अभी तक पूरी तरह नहीं समझा जा सका है।