इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

आपको किसका अधिकार स्वीकार करना चाहिए?

आपको किसका अधिकार स्वीकार करना चाहिए?

अध्याय १४

आपको किसका अधिकार स्वीकार करना चाहिए?

१, २. क्या अधिकार के सभी रूप हानिकर हैं? समझाइए।

“अधिकार” अनेक लोगों के लिए एक अप्रिय शब्द है। यह स्वाभाविक है, क्योंकि अधिकार का अकसर दुष्प्रयोग किया जाता है—कार्यस्थल पर, परिवार में, और सरकारों द्वारा। बाइबल यथार्थता से कहती है: “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।” (सभोपदेशक ८:९) जी हाँ, अनेक लोगों ने अत्याचारी और स्वार्थी ढंग से व्यवहार करने के द्वारा दूसरों पर अधिकार जमाया है।

लेकिन सभी अधिकार हानिकर नहीं है। उदाहरण के लिए, यह कहा जा सकता है कि हमारा शरीर हमारे ऊपर अधिकार रखता है। यह हमें साँस लेने, खाने, पीने, और सोने की “आज्ञा” देता है। क्या यह दमनकारी है? जी नहीं। इन माँगों को पूरा करना हमारे भले के लिए है। जबकि हमारी शारीरिक ज़रूरतों के प्रति अधीनता शायद बिना सोची हुई हो, अधिकार के अन्य रूप भी हैं जो हमारी ऐच्छिक अधीनता की माँग करते हैं। कुछ उदाहरणों पर विचार कीजिए।

सर्वोच्च अधिकार

३. यहोवा को न्यायपूर्ण रीति से “सर्वसत्ताधारी प्रभु” क्यों कहा गया है?

नया संसार अनुवाद (अंग्रेज़ी) बाइबल में ३०० से भी ज़्यादा बार यहोवा को “सर्वसत्ताधारी प्रभु” कहा गया है। सर्वसत्ताधारी वह होता है जिसके पास सर्वोच्च अधिकार होता है। क्या बात यहोवा को इस पदवी का हक़ देती है? प्रकाशितवाक्य ४:११ उत्तर देता है:. “हे हमारे प्रभु [“यहोवा,” NW], और परमेश्‍वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।”

४. यहोवा अपने अधिकार को कैसे प्रयोग करने का चुनाव करता है?

हमारा सृष्टिकर्ता होने के नाते, यहोवा के पास अपनी इच्छा के अनुसार अपना अधिकार प्रयोग करने का हक़ है। यह डरावना प्रतीत हो सकता है, ख़ासकर जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि परमेश्‍वर के पास “विशाल सामर्थ्य” है। उसे “सर्वशक्‍तिमान्‌ ईश्‍वर” कहा गया है—वह पद जो इब्रानी में अत्यन्त बल का विचार देता है। (यशायाह ४०:२६, NHT; उत्पत्ति १७:१) फिर भी, यहोवा अपना बल परोपकारी रीति से दिखाता है, क्योंकि प्रेम उसका प्रमुख गुण है।—१ यूहन्‍ना ४:१६.

५. यहोवा के अधिकार के प्रति अधीनता दिखाना कठिन क्यों नहीं है?

हालाँकि यहोवा ने चेतावनी दी कि वह पश्‍चातापरहित कुकर्मियों को दण्ड देता, मूसा उसे मुख्यतः इस रूप में जानता था कि “यहोवा ही परमेश्‍वर है, वह विश्‍वासयोग्य ईश्‍वर है; और जो उस से प्रेम रखते और उसकी आज्ञाएं मानते हैं उनके साथ वह . . . अपनी वाचा पालता, और उन पर करुणा करता रहता है।” (व्यवस्थाविवरण ७:९) ज़रा सोचिए! विश्‍व का सर्वोच्च अधिकारी हमें उसकी सेवा करने के लिए मजबूर नहीं करता। इसके बजाय, उसके प्रेम के कारण हम उसकी ओर खिंचते हैं। (रोमियों २:४; ५:८) यहोवा के अधिकार के प्रति अधीनता दिखाना सुखद भी है, क्योंकि उसके नियम हमेशा अन्ततः हमारे लाभ के लिए ही होते हैं।—भजन १९:७, ८.

६. अदन की वाटिका में अधिकार का वाद-विषय कैसे उठा, और परिणाम क्या हुआ?

हमारे प्रथम माता-पिता ने परमेश्‍वर की सर्वसत्ता को ठुकराया। वे इस बात का निर्णय स्वयं करना चाहते थे कि क्या भला है और क्या बुरा। (उत्पत्ति ३:४-६) परिणामस्वरूप, उन्हें उनके परादीस घर से निकाल दिया गया। उसके बाद यहोवा ने मनुष्यों को प्राधिकरण ढाँचे बनाने की अनुमति दी जो उन्हें अपरिपूर्ण, लेकिन व्यवस्थित समाज में रहने के लिए समर्थ करते। इनमें से कुछ अधिकार क्या हैं, और परमेश्‍वर किस हद तक हमसे इनके अधीन होने की अपेक्षा करता है?

‘प्रधान अधिकारी’

७. ‘प्रधान अधिकारी’ कौन हैं, और परमेश्‍वर के अधिकार के साथ उनके पद का क्या सम्बन्ध है?

प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हर एक व्यक्‍ति प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे; क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्‍वर की ओर से न हो।” ‘प्रधान अधिकारी’ कौन हैं? आगे की आयतों में पौलुस के शब्द दिखाते हैं कि वे मानव सरकारी अधिकार हैं। (रोमियों १३:१-७; तीतुस ३:१) यहोवा ने मनुष्य के सरकारी अधिकार नहीं बनाए, लेकिन वे उसकी अनुमति से अस्तित्व में हैं। सो पौलुस लिख सकता था: “जो अधिकार हैं, वे परमेश्‍वर के ठहराए हुए हैं।” यह ऐसे पार्थिव अधिकार के बारे में क्या सूचित करता है? कि यह परमेश्‍वर के अधिकार से गौण, या निम्न है। (यूहन्‍ना १९:१०, ११) इसलिए, जब मनुष्य के नियम और परमेश्‍वर के नियम के बीच टकराव होता है, तो मसीहियों को अपने बाइबल-प्रशिक्षित अंतःकरण द्वारा मार्गदर्शित होना चाहिए। उन्हें “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना” चाहिए।—प्रेरितों ५:२९.

८. आप प्रधान अधिकारियों से कैसे लाभ उठाते हैं, और आप उनके प्रति अपनी अधीनता कैसे दिखा सकते हैं?

लेकिन, अधिकतर समय सरकारी प्रधान अधिकारी ‘हमारी भलाई के लिये परमेश्‍वर के सेवक’ के रूप में कार्य करते हैं। (रोमियों १३:४) किन तरीक़ों से? प्रधान अधिकारियों द्वारा प्रदान की गयी अनेकों सेवाओं के बारे में सोचिए, जैसे डाक प्रेषण, पुलिस और अग्नि सुरक्षा, सफ़ाई प्रबन्ध, और शिक्षा। “इसलिये कर भी दो,” पौलुस ने लिखा, “क्योंकि वे परमेश्‍वर के [“जन,” NW] सेवक हैं, और सदा इसी काम में लगे रहते हैं।” (रोमियों १३:६) करों और किसी-भी अन्य कानूनी बाध्यता के सम्बन्ध में, हमें “अच्छी चाल चलना” चाहिए।—इब्रानियों १३:१८.

९, १०. (क) प्रधान अधिकारी परमेश्‍वर के प्रबन्ध के अनुरूप कैसे हैं? (ख) प्रधान अधिकारियों का विरोध करना क्यों ग़लत होगा?

कभी-कभी, प्रधान अधिकारी अपनी शक्‍ति का दुरुपयोग करते हैं। क्या यह हमें उनकी अधीनता में रहने की हमारी ज़िम्मेदारी से मुक्‍त करता है? जी नहीं, नहीं करता। यहोवा इन अधिकारियों के कुकर्म देखता है। (नीतिवचन १५:३) उसका मनुष्य के शासन को बरदाश्‍त करने का यह अर्थ नहीं कि वह इसके भ्रष्टाचार को नज़रअंदाज़ करता है; न ही वह हम से ऐसा करने की अपेक्षा करता है। सचमुच, परमेश्‍वर जल्द ही ‘इन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और इनका अन्त कर डालेगा,’ और इनके बदले अपनी धर्मी सरकार का शासन लाएगा। (दानिय्येल २:४४) लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, प्रधान अधिकारी बड़े काम आते हैं।

१० पौलुस ने समझाया: “जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्‍वर की विधि का साम्हना करता है।” (रोमियों १३:२) प्रधान अधिकारी इस प्रकार परमेश्‍वर की “विधि” हैं कि वे कुछ हद तक व्यवस्था बनाए रखते हैं, जिसके बिना अव्यवस्था और अराजकता का बोलबाला होता। उनका विरोध करना अशास्त्रीय और मूर्खता होगी। उदाहरण के लिए: कल्पना कीजिए कि आपका ऑपरेशन हुआ है और टाँके घाव का बचाव कर रहे हैं। जबकि टाँके शरीर के लिए बाहरी चीज़ हैं, वे सीमित समय के लिए काम आते हैं। समय से पहले उन्हें निकालना हानिकर हो सकता है। उसी प्रकार, मानव सरकारी अधिकार परमेश्‍वर के आरंभिक उद्देश्‍य का भाग नहीं थे। लेकिन, जब तक कि उसका राज्य पृथ्वी पर पूरी तरह शासन नहीं कर रहा है, मानव सरकारें समाज को एकसाथ थामे हुए हैं, अतः वह कार्य कर रही हैं जो वर्तमान समय के लिए परमेश्‍वर की इच्छा के अनुरूप है। इसलिए हमें प्रधान अधिकारियों की अधीनता में रहना चाहिए, जबकि हम परमेश्‍वर के नियम और अधिकार को प्राथमिकता देते हैं।

परिवार में अधिकार

११. मुखियापन के सिद्धान्त को आप कैसे समझाएँगे?

११ परिवार मानव समाज की मूल इकाई है। इसमें पति-पत्नी फलदायी संगति पा सकते हैं, और बच्चों को सुरक्षा दी जा सकती है और प्रौढ़ता के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है। (नीतिवचन ५:१५-२१; इफिसियों ६:१-४) ऐसे उत्तम प्रबन्ध को उस ढंग से व्यवस्थित किए जाने की ज़रूरत है जो परिवार के सदस्यों को शान्ति और मेलमिलाप से रहने में समर्थ करता है। यहोवा इसे मुखियापन के सिद्धान्त के द्वारा निष्पन्‍न करता है, जिसका सार १ कुरिन्थियों ११:३ के शब्दों में दिया गया है: “हर एक पुरुष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरुष है: और मसीह का सिर परमेश्‍वर है।”

१२, १३. परिवार का सिर कौन है, और मुखियापन चलाने के यीशु के ढंग से क्या सीखा जा सकता है?

१२ पति परिवार का सिर है। लेकिन, उसका भी एक सिर है—यीशु मसीह। पौलुस ने लिखा: “हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया।” (इफिसियों ५:२५) पति मसीह के प्रति अपनी अधीनता दिखाता है जब वह अपनी पत्नी के साथ उस ढंग से व्यवहार करता है जैसे यीशु ने कलीसिया के साथ हमेशा से किया है। (१ यूहन्‍ना २:६) यीशु को बड़ा अधिकार सौंपा गया है, लेकिन वह इसे परम सौम्यता, प्रेम, और कोमलता से प्रयोग करता है। (मत्ती २०:२५-२८) मनुष्य के रूप में, यीशु ने कभी अपने अधिकार के पद का दुरुपयोग नहीं किया। वह “नम्र और मन में दीन” था, और उसने अपने अनुयायियों को “दास” के बजाय “मित्र” कहा। “मैं तुम्हें विश्राम दूंगा,” उसने उनसे प्रतिज्ञा की, और उसने वैसा ही किया।—मत्ती ११:२८, २९; यूहन्‍ना १५:१५.

१३ यीशु का उदाहरण पतियों को सिखाता है कि मसीही मुखियापन कठोर प्रभुता का पद नहीं है। इसके बजाय, यह आदर और आत्मत्यागी प्रेम का पद है। यह साथी के साथ शारीरिक अथवा मौखिक रूप से दुर्व्यवहार करने को स्पष्टतया रद्द करता है। (इफिसियों ४:२९, ३१, ३२; ५:२८, २९; कुलुस्सियों ३:१९) यदि एक मसीही पुरुष अपनी पत्नी के साथ इस प्रकार दुर्व्यवहार करता, तो उसके अन्य भले काम व्यर्थ होते, और उसकी प्रार्थनाओं में रुकावट आती।—१ कुरिन्थियों १३:१-३; १ पतरस ३:७.

१४, १५. परमेश्‍वर का ज्ञान एक पत्नी को अपने पति के अधीन रहने में कैसे मदद देता है?

१४ जब एक पति मसीह के उदाहरण की नक़ल करता है, तो उसकी पत्नी के लिए इफिसियों ५:२२, २३ के शब्दों का पालन करना ज़्यादा आसान हो जाता है: “हे पत्नियो, अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के। क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है।” जैसे पति को मसीह की अधीनता में रहना है, वैसे ही पत्नी को अपने पति के अधीन रहना चाहिए। बाइबल यह भी स्पष्ट करती है कि गुणवान पत्नियाँ अपनी ईश्‍वरीय बुद्धि और परिश्रमिता के लिए सम्मान और प्रशंसा के योग्य हैं।—नीतिवचन ३१:१०-३१.

१५ अपने पति के प्रति एक मसीही पत्नी की अधीनता सापेक्षिक है। इसका अर्थ है कि यदि अमुक मामले में अधीनता दिखाने से ईश्‍वरीय नियम का उल्लंघन होगा तो मनुष्य से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन किया जाना है। तब भी, पत्नी की दृढ़ स्थिति “नम्रता और मन की दीनता” के साथ संतुलित होनी चाहिए। यह दिखना चाहिए कि परमेश्‍वर के ज्ञान ने उसे एक बेहतर पत्नी बनाया है। (१ पतरस ३:१-४) यही बात एक मसीही पुरुष पर भी लागू होती है जिसकी पत्नी अविश्‍वासी है। बाइबल सिद्धान्तों का पालन करने के कारण उसे एक बेहतर पति बनना चाहिए।

१६. जब यीशु युवा था तब उसके द्वारा रखे गए उदाहरण का बच्चे कैसे अनुकरण कर सकते हैं?

१६ इफिसियों ६:१ बच्चों की भूमिका की रूपरेखा देता है, वह कहता है: “प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है।” यीशु जैसे-जैसे बड़ा हुआ अपने माता-पिता के अधीन रहा, मसीही बच्चे उसके उदाहरण का अनुकरण करते हैं। एक आज्ञाकारी लड़के की तरह, वह “बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्‍वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया।”—लूका २:५१, ५२.

१७. जिस तरह माता-पिता अधिकार का प्रयोग करते हैं उसका उनके बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

१७ जिस तरह माता-पिता अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं उसका प्रभाव इस बात पर हो सकता है कि उनके बच्चे अधिकार का आदर करेंगे या उसके विरुद्ध विद्रोह करेंगे। (नीतिवचन २२:६) सो माता-पिताओं का अपने आपसे यह पूछना उचित है, ‘क्या मैं अपने अधिकार को प्रेमपूर्वक प्रयोग करता हूँ या कठोरतापूर्वक? क्या मैं अनुज्ञात्मक हूँ?’ एक धर्म-परायण जनक से अपेक्षा की जाती है कि वह प्रेममय और विचारशील हो, साथ ही ईश्‍वरीय सिद्धान्तों का पालन करने में दृढ़ हो। उपयुक्‍त रीति से, पौलुस ने लिखा: “हे बच्चेवालो अपने बच्चों को रिस न दिलाओ [शब्दशः, ‘उनका क्रोध न भड़काओ’] परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो।”—इफिसियों ६:४; कुलुस्सियों ३:२१.

१८. जनकीय अनुशासन कैसे दिया जाना चाहिए?

१८ माता-पिताओं को अपने प्रशिक्षण देने के तरीक़ों की जाँच करनी चाहिए, ख़ासकर यदि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे आज्ञाकारी हों और इस प्रकार उन्हें आनन्दित करें। (नीतिवचन २३:२४, २५) बाइबल में, अनुशासन मुख्यतः उपदेश का एक रूप है। (नीतिवचन ४:१; ८:३३) यह प्रेम और नम्रता से जुड़ा हुआ है, क्रोध और क्रूरता से नहीं। अतः, मसीही माता-पिताओं को बुद्धि से काम करने और अपने बच्चों को अनुशासन देते समय अपने आपको क़ाबू में रखने की ज़रूरत है।—नीतिवचन १:७.

कलीसिया में अधिकार

१९. मसीही कलीसिया में अच्छी व्यवस्था के लिए परमेश्‍वर ने क्या प्रबन्ध किया है?

१९ चूँकि यहोवा व्यवस्था का परमेश्‍वर है, यह तर्कसंगत है कि वह अपने लोगों के लिए अधिकारिक और सुसंगठित अगुआई प्रदान करता। तदनुसार, उसने यीशु को मसीही कलीसिया का सिर नियुक्‍त किया है। (१ कुरिन्थियों १४:३३, ४०; इफिसियों १:२०-२३) मसीह की अदृश्‍य अगुआई में, परमेश्‍वर ने एक प्रबन्ध को अधिकृत किया है जिसके द्वारा हर कलीसिया में नियुक्‍त प्राचीन उत्सुकता, स्वेच्छा, और प्रेम के साथ झुण्ड की रखवाली करते हैं। (१ पतरस ५:२, ३) सहायक सेवक विभिन्‍न तरीक़ों से उनकी मदद करते हैं और कलीसिया में उपयोगी सेवा करते हैं।—फिलिप्पियों १:१.

२०. हमें नियुक्‍त मसीही प्राचीनों के प्रति अधीनता क्यों दिखानी चाहिए, और यह लाभकारी क्यों है?

२० मसीही प्राचीनों के सम्बन्ध में, पौलुस ने लिखा: “अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं।” (इब्रानियों १३:१७) बुद्धिमानी से, परमेश्‍वर ने मसीही ओवरसियरों को कलीसिया के लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों की देखरेख करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है। ये प्राचीन एक पादरी वर्ग नहीं बनाते। वे परमेश्‍वर के सेवक और दास हैं, और जैसे हमारे स्वामी, यीशु मसीह ने किया, वे संगी उपासकों की सेवा-टहल करते हैं। (यूहन्‍ना १०:१४, १५) यह जानना कि शास्त्रीय रूप से योग्य पुरुष हमारी प्रगति और आध्यात्मिक उन्‍नति में दिलचस्पी लेते हैं हमें प्रोत्साहित करता है कि सहयोग दें और अधीनता दिखाएँ।—१ कुरिन्थियों १६:१६.

२१. नियुक्‍त प्राचीन संगी मसीहियों को आध्यात्मिक रूप से मदद देने की कोशिश कैसे करते हैं?

२१ कभी-कभी, भेड़ें भटक सकती हैं अथवा उन्हें हानिकर सांसारिक तत्वों से ख़तरा हो सकता है। मुख्य चरवाहे की अगुआई में, अधीनस्थ चरवाहों के रूप में प्राचीन उन लोगों की ज़रूरतों के प्रति सतर्क हैं जो उनकी देखरेख में हैं, और कर्मठता से उन्हें व्यक्‍तिगत ध्यान देते हैं। (१ पतरस ५:४) वे कलीसिया के सदस्यों से भेंट करते हैं और प्रोत्साहन देते हैं। यह जानते हुए कि इब्‌लीस परमेश्‍वर के लोगों की शान्ति भंग करने की कोशिश करता है, प्राचीन समस्याओं से निपटने में जो बुद्धि ऊपर से आती है उसका प्रयोग करते हैं। (याकूब ३:१७, १८) वे विश्‍वास की एकता और अभिन्‍नता को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, जिसके लिए स्वयं यीशु ने प्रार्थना की।—यूहन्‍ना १७:२०-२२; १ कुरिन्थियों १:१०.

२२. कुकर्म के मामलों में प्राचीन क्या सहायता प्रदान करते हैं?

२२ तब क्या यदि एक मसीही कोई बुराई सहता है अथवा कोई पाप करने के कारण निरुत्साहित हो जाता है? बाइबल की शामक सलाह और उस व्यक्‍ति के लिए की गयी प्राचीनों की हार्दिक प्रार्थनाएँ उसे आध्यात्मिक स्वास्थ्य पुनःप्राप्त करने में मदद दे सकती हैं। (याकूब ५:१३-१५) पवित्र आत्मा से नियुक्‍त, इन पुरुषों के पास उनको अनुशासन और ताड़ना देने का अधिकार भी है जो कुकर्म के मार्ग पर चलते हैं या कलीसिया की आध्यात्मिक और नैतिक स्वच्छता को ख़तरे में डालते हैं। (प्रेरितों २०:२८; तीतुस १:९; २:१५) कलीसिया को स्वच्छ रखने के लिए, शायद यह ज़रूरी हो कि व्यक्‍तियों को गंभीर कुकर्म रिपोर्ट करना पड़े। (लैव्यव्यवस्था ५:१) यदि एक मसीही जिसने घोर पाप किया है शास्त्रीय अनुशासन और ताड़ना स्वीकार करता है और सच्चे पश्‍चाताप का प्रमाण देता है, तो उसकी मदद की जाएगी। निःसंदेह, उन्हें बहिष्कृत किया जाता है जो निरन्तर और बिना पश्‍चाताप किए परमेश्‍वर के नियम का उल्लंघन करते हैं।—१ कुरिन्थियों ५:९-१३.

२३. कलीसिया की भलाई के लिए मसीही ओवरसियर क्या प्रदान करते हैं?

२३ बाइबल ने पूर्वबताया कि राजा के रूप में यीशु मसीह के अधीन, आध्यात्मिक रूप से प्रौढ़ पुरुषों को परमेश्‍वर के लोगों के लिए सांत्वना, सुरक्षा, और विश्रान्ति प्रदान करने के लिए नियुक्‍त किया जाता। (यशायाह ३२:१, २) वे आध्यात्मिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए सुसमाचारकों, रखवालों, और शिक्षकों के रूप में अगुआई करते। (इफिसियों ४:११, १२, १६) हालाँकि हो सकता है कि मसीही ओवरसियर कभी-कभी संगी विश्‍वासियों को ताड़ना, डाँट, और प्रबोधन दें, परमेश्‍वर के वचन पर आधारित प्राचीनों की लाभकारी शिक्षा पर अमल करना सभी को जीवन के मार्ग पर चलने में मदद देता है।—नीतिवचन ३:११, १२; ६:२३; तीतुस २:१.

अधिकार के प्रति यहोवा का दृष्टिकोण स्वीकार कीजिए

२४. किस वाद-विषय पर प्रतिदिन हमारी परीक्षा होती है?

२४ प्रथम पुरुष और स्त्री की परीक्षा अधिकार के प्रति अधीनता के वाद-विषय पर की गयी थी। इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं कि वैसी ही परीक्षा हमारे सामने प्रतिदिन आती है। शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस ने मानवजाति के बीच विद्रोह की आत्मा को बढ़ावा दिया है। (इफिसियों २:२) स्वतंत्रता के मार्ग को प्रलोभक ढंग से अधीनता के मार्ग से उत्तम दिखाया जाता है।

२५. संसार की विद्रोही आत्मा को ठुकराने और उस अधिकार के प्रति अधीनता दिखाने के क्या लाभ हैं जिसे परमेश्‍वर प्रयोग करता है अथवा अनुमति देता है?

२५ लेकिन, हमें संसार की विद्रोही आत्मा को ठुकराना चाहिए। ऐसा करने से हम पाएँगे कि ईश्‍वरीय अधीनता का बड़ा प्रतिफल मिलता है। उदाहरण के लिए, हम ऐसी चिन्ताओं और कुण्ठाओं से दूर रहेंगे जो उन लोगों के लिए सामान्य हैं जो प्रधान अधिकारियों के साथ समस्या को बुलावा देते हैं। हम वह तनाव कम करेंगे जो अनेक परिवारों में व्याप्त है। और हम अपने मसीही संगी विश्‍वासियों की स्नेही, प्रेममय संगति के लाभों का आनन्द लेंगे। सबसे बढ़कर, हमारी ईश्‍वरीय अधीनता सर्वोच्च अधिकारी, यहोवा के साथ एक अच्छे सम्बन्ध में परिणित होगी।

अपने ज्ञान को जाँचिए

यहोवा अपने अधिकार का प्रयोग कैसे करता है?

‘प्रधान अधिकारी’ कौन हैं, और हम उनकी अधीनता में कैसे रहते हैं?

मुखियापन का सिद्धान्त परिवार के हर सदस्य पर क्या ज़िम्मेदारी लाता है?

हम मसीही कलीसिया में कैसे अधीनता दिखा सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 134 पर बक्स]

आज्ञाकारी हैं, विद्रोही नहीं

अपने सार्वजनिक प्रचार कार्य के द्वारा, यहोवा के साक्षी सच्ची शान्ति और सुरक्षा के लिए मानवजाति की एकमात्र आशा के रूप में परमेश्‍वर के राज्य की ओर संकेत करते हैं। लेकिन परमेश्‍वर के राज्य के ये जोशीले उद्‌घोषक किसी भी हालत उन सरकारों के विद्रोही नहीं हैं जिनके अधीन वे रहते हैं। इसके विपरीत, साक्षी सबसे आदरपूर्ण और विधि-पालक नागरिकों में से हैं। “यदि सभी धार्मिक संप्रदाय यहोवा के साक्षियों के जैसे होते,” एक अफ्रीकी देश में एक अधिकारी ने कहा, “तो कोई हत्या, चोरी, अपचार, क़ैदी और अणु बम नहीं होते। दरवाज़े हमेशा बन्द नहीं रखे जाते।”

इस बात को स्वीकार करते हुए, अनेक देशों में अधिकारियों ने साक्षियों के प्रचार कार्य को बिना किसी बाधा के बढ़ने दिया है। दूसरे देशों में, जब अधिकारियों को एहसास हुआ कि यहोवा के साक्षी भलाई का प्रभाव हैं, तो रोक या प्रतिबन्ध हटा दिए गए हैं। यह वैसा ही है जैसा प्रेरित पौलुस ने प्रधान अधिकारियों की आज्ञा मानने के बारे में लिखा: “अच्छा काम कर और उस की ओर से तेरी सराहना होगी।”—रोमियों १३:१, ३.