इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

आप परमेश्‍वर के निकट कैसे आ सकते हैं

आप परमेश्‍वर के निकट कैसे आ सकते हैं

अध्याय १६

आप परमेश्‍वर के निकट कैसे आ सकते हैं

१. अनेक धर्मों में क्या समानताएँ स्पष्ट हैं?

किसी पूर्वी देश की यात्रा कर रही एक पर्यटक एक बौद्ध मंदिर में धार्मिक अनुष्ठानों को देखकर हैरान हो गयी। हालाँकि प्रतिमाएँ मरियम या मसीह की नहीं थीं, परन्तु अनेक अनुष्ठान स्वदेश में उसके गिरजे के अनुष्ठानों से मिलते-जुलते थे। उदाहरण के लिए, उसने जप माला का प्रयोग और प्रार्थनाओं का गायन नोट किया। अन्य लोगों ने भी ऐसी तुलनाएँ की हैं। पूरब हो या पश्‍चिम, जिन तरीक़ों से भक्‍तजन परमेश्‍वर के या अपनी उपासना के पात्रों के निकट आने की कोशिश करते हैं वे उल्लेखनीय रूप से समान हैं।

२. प्रार्थना का वर्णन कैसे किया गया है, और अनेक लोग क्यों प्रार्थना करते हैं?

अनेक लोग ख़ासकर परमेश्‍वर से प्रार्थना करने के द्वारा उसके निकट आने की कोशिश करते हैं। प्रार्थना का वर्णन इस प्रकार किया गया है, “पावन या पवित्र—परमेश्‍वर, ईश्‍वरों, लोकोत्तर क्षेत्र, या अलौकिक शक्‍तियों—के साथ मनुष्य द्वारा संचार का एक कृत्य।” (द न्यू एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका) लेकिन, प्रार्थना में परमेश्‍वर के पास जाते समय कुछ लोग सिर्फ़ इसी बारे में सोचते हैं कि उन्हें क्या लाभ होगा। उदाहरण के लिए, एक पुरुष ने एक बार किसी यहोवा के साक्षी से पूछा: “यदि आप मेरे लिए प्रार्थना करेंगे, तो क्या मेरे घर की, काम की, और स्वास्थ्य की समस्याएँ सुलझ जाएँगी?” प्रत्यक्षतः उस पुरुष ने वैसा ही सोचा, लेकिन अनेक लोग प्रार्थना करते हैं और पाते हैं कि उनकी समस्याएँ नहीं जातीं। सो हम शायद पूछें, ‘हमें परमेश्‍वर के निकट क्यों आना चाहिए?’

परमेश्‍वर के निकट क्यों आएँ

३. हमारी प्रार्थनाएँ किसको निर्देशित होनी चाहिए, और क्यों?

प्रार्थना एक खोखला अनुष्ठान नहीं है, न ही यह कुछ प्राप्त करने का मात्र एक साधन है। परमेश्‍वर के पास जाने का एक प्रमुख कारण है उसके साथ एक निकट सम्बन्ध रखना। इसलिए हमारी प्रार्थनाएँ यहोवा परमेश्‍वर को निर्देशित होनी चाहिए। भजनहार दाऊद ने कहा, “जितने यहोवा को पुकारते हैं . . . उन सभों के वह निकट रहता है।” (भजन १४५:१८) यहोवा हमें उसके साथ एक शान्तिपूर्ण सम्बन्ध में आने का निमंत्रण देता है। (यशायाह १:१८) जो इस निमंत्रण के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाते हैं वे भजनहार के साथ सहमत हैं जिसने कहा: “परन्तु परमेश्‍वर के समीप रहना, यही मेरे लिये भला है।” क्यों? क्योंकि जो यहोवा परमेश्‍वर के निकट आते हैं वे सच्ची ख़ुशी और मन की शान्ति का आनन्द लेंगे।—भजन ७३:२८.

४, ५. (क) परमेश्‍वर से प्रार्थना करना क्यों महत्त्वपूर्ण है? (ख) प्रार्थना के द्वारा हम परमेश्‍वर के साथ किस क़िस्म का सम्बन्ध बना सकते हैं?

परमेश्‍वर से मदद के लिए प्रार्थना क्यों करें यदि वह ‘हमारे मांगने से पहिले ही जानता है, कि हमारी क्या क्या आवश्‍यकता है’? (मत्ती ६:८; भजन १३९:४) प्रार्थना दिखाती है कि हमें परमेश्‍वर में विश्‍वास है और हम उसे ‘हर एक अच्छे वरदान और हर एक उत्तम दान’ का स्रोत समझते हैं। (याकूब १:१७; इब्रानियों ११:६) यहोवा हमारी प्रार्थनाओं से प्रसन्‍न होता है। (नीतिवचन १५:८) वह मूल्यांकन और स्तुति की हमारी अर्थपूर्ण अभिव्यक्‍तियों को सुनने से ख़ुश होता है, जैसे एक पिता अपने छोटे बच्चे के मुँह से आभार के निष्कपट शब्द सुनकर आनन्दित होता है। (भजन ११९:१०८) जहाँ पिता-बच्चे में अच्छा सम्बन्ध होता है, वहाँ स्नेही संचार होता है। वह बच्चा जिससे प्रेम किया जाता है अपने पिता से बात करना चाहता है। परमेश्‍वर के साथ हमारे सम्बन्ध के बारे में भी यही सच है। यहोवा के बारे में हम जो सीख रहे हैं यदि हम उसका और जो प्रेम उसने हमें दिखाया है उसका, सचमुच मूल्यांकन करते हैं तो हम में तीव्र इच्छा होगी कि हम प्रार्थना में उसे अपने आपको व्यक्‍त करें।—१ यूहन्‍ना ४:१६-१८.

परम प्रधान परमेश्‍वर के पास जाते समय, हमें आदरपूर्ण होना चाहिए, परन्तु हमारे द्वारा प्रयोग किए गए एक-एक शब्द के बारे में ज़रूरत से ज़्यादा चिन्तित होने की आवश्‍यकता नहीं। (इब्रानियों ४:१६) हम यहोवा के पास कभी-भी जा सकते हैं। और यह क्या ही विशेषाधिकार है कि हम प्रार्थना में परमेश्‍वर को ‘अपने मन की बातें खुलकर कह’ सकते हैं! (भजन ६२:८) यहोवा के लिए मूल्यांकन उसके साथ एक स्नेही सम्बन्ध की ओर ले जाता है, जिस तरह के सम्बन्ध का आनन्द विश्‍वासी पुरुष इब्राहीम ने परमेश्‍वर के मित्र के रूप में उठाया। (याकूब २:२३) लेकिन विश्‍व के सर्वसत्ताधारी प्रभु से प्रार्थना करते समय, हमें उसके पास जाने की उसकी माँगों को पूरा करना चाहिए।

परमेश्‍वर के निकट आने की माँगें

६, ७. जबकि हमारी प्रार्थनाएँ सुनने के लिए परमेश्‍वर पैसे की माँग नहीं करता, फिर भी जब हम प्रार्थना करते हैं तब वह हमसे क्या चाहता है?

क्या परमेश्‍वर के पास जाने के लिए पैसे की ज़रूरत है? अनेक लोग पादरियों को पैसा देते हैं कि उनके लिए प्रार्थना करें। कुछ लोग यह भी विश्‍वास करते हैं कि उनकी प्रार्थनाएँ उनके चंदे की मात्रा के हिसाब से सुनी जाएँगी। लेकिन, परमेश्‍वर का वचन नहीं कहता कि हमें प्रार्थना में यहोवा के पास जाने के लिए आर्थिक भेंट की ज़रूरत है। उसके आध्यात्मिक प्रबन्ध और प्रार्थना में उसके साथ सम्बन्ध की आशिषें बिना क़ीमत के उपलब्ध हैं।—यशायाह ५५:१, २.

तो किस चीज़ की ज़रूरत है? सही हार्दिक मनोवृत्ति एक माँग है। (२ इतिहास ६:२९, ३०; नीतिवचन १५:११) अपने हृदय में हमें यहोवा परमेश्‍वर पर विश्‍वास रखना चाहिए कि वह ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ है और “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।” (भजन ६५:२; इब्रानियों ११:६) हमारा हृदय भी नम्र होना चाहिए। (२ राजा २२:१९; भजन ५१:१७) अपने एक दृष्टान्त में यीशु मसीह ने दिखाया कि परमेश्‍वर के पास जाते समय एक दीन हार्दिक मनोवृत्ति का नम्र महसूल लेनेवाला एक अहंकारी फरीसी से ज़्यादा धर्मी साबित हुआ। (लूका १८:१०-१४) जब हम प्रार्थना में परमेश्‍वर के पास जाते हैं, तो आइए याद रखें कि “सब मन के घमण्डियों से यहोवा घृणा करता है।”—नीतिवचन १६:५.

८. यदि हम चाहते हैं कि परमेश्‍वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दे, तो हमें अपने आपको किस चीज़ से शुद्ध करना है?

यदि हमारी इच्छा है कि परमेश्‍वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दे, तो हमें अपने आपको पापमय आचरण से शुद्ध करना है। जब शिष्य याकूब ने दूसरों को प्रोत्साहन दिया कि परमेश्‍वर के निकट आएँ, तो उसने यह भी कहा: “हे पापियो, अपने हाथ शुद्ध करो; और हे दुचित्ते लोगो अपने हृदय को पवित्र करो।” (याकूब ४:८) कुकर्मी भी यहोवा के साथ एक शान्तिपूर्ण सम्बन्ध में आ सकते हैं यदि वे पश्‍चाताप करें और अपनी पुरानी जीवन-शैली को छोड़ दें। (नीतिवचन २८:१३) यदि हम सिर्फ़ ढोंग करते हैं कि हमने अपना मार्ग शुद्ध कर लिया है तो यहोवा हमारी नहीं सुनेगा। परमेश्‍वर का वचन कहता है, “प्रभु [“यहोवा,” NW] की आंखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान उन की बिनती की ओर लगे रहते हैं, परन्तु प्रभु बुराई करनेवालों के विमुख रहता है।”—१ पतरस ३:१२.

९. हमें किसके द्वारा यहोवा के पास जाना चाहिए, और क्यों?

बाइबल बताती है: “निःसन्देह पृथ्वी पर कोई ऐसा धर्मी मनुष्य नहीं जो भलाई ही करे और जिस से पाप न हुआ हो।” (सभोपदेशक ७:२०) इसलिए आप शायद पूछें: ‘तो, हम यहोवा परमेश्‍वर के पास कैसे जा सकते हैं?’ बाइबल उत्तर देती है: “यदि कोई पाप करे, तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात्‌ धार्मिक यीशु मसीह।” (१ यूहन्‍ना २:१) हम पापी होते हुए भी यीशु मसीह के द्वारा, जो हमारी छुड़ौती के लिए मरा, हियाव के साथ परमेश्‍वर के पास जा सकते हैं। (मत्ती २०:२८) वह एकमात्र माध्यम है जिसके द्वारा हम यहोवा परमेश्‍वर के पास जा सकते हैं। (यूहन्‍ना १४:६) हमें यह नहीं समझना चाहिए कि यदि हम जानबूझकर पाप का अभ्यास करें तौभी यीशु के छुड़ौती बलिदान का मूल्य अपने आप ही हमारे सभी पापों को ढाँप लेगा। (इब्रानियों १०:२६) लेकिन, यदि हम बुराई से बचने की अपनी भरसक कोशिश कर रहे हैं और फिर भी कभी-कभी भूल कर बैठते हैं, तो हम पश्‍चाताप कर सकते हैं और परमेश्‍वर से क्षमा माँग सकते हैं। जब हम नम्र हृदय के साथ उसके पास जाते हैं, तो वह हमारी सुनेगा।—लूका ११:४.

परमेश्‍वर से बात करने के अवसर

१०. जब प्रार्थना की बात आती है तब हम यीशु की नक़ल कैसे कर सकते हैं, और व्यक्‍तिगत प्रार्थना करने के कुछ अवसर कौन-से होते हैं?

१० यीशु मसीह यहोवा के साथ अपने सम्बन्ध को बहुत क़ीमती मानता था। इसलिए, यीशु ने व्यक्‍तिगत प्रार्थना में परमेश्‍वर से बात करने के लिए समय अलग रखा। (मरकुस १:३५; लूका २२:४०-४६) अच्छा होगा कि हम यीशु के उदाहरण की नक़ल करें और नियमित रूप से परमेश्‍वर से प्रार्थना करें। (रोमियों १२:१२) प्रार्थना से दिन शुरू करना उपयुक्‍त है, और सोने से पहले हम दिन की गतिविधियों के लिए उचित रूप से यहोवा को धन्यवाद दे सकते हैं। दिन के दौरान, “हर अवसर पर” परमेश्‍वर के पास जाने का संकल्प कीजिए। (इफिसियों ६:१८, NW) हम यह जानते हुए कि यहोवा हमें सुन सकता है, चुपचाप अपने हृदय में भी प्रार्थना कर सकते हैं। व्यक्‍तिगत रूप से परमेश्‍वर से प्रार्थना करना हमें उसके साथ अपने सम्बन्ध को पक्का करने में भी मदद देता है, और प्रतिदिन यहोवा से प्रार्थना करना उसके और निकट आते जाने में हमारी मदद करता है।

११. (क) परिवारों को एकसाथ प्रार्थना क्यों करनी चाहिए? (ख) जब प्रार्थना के अन्त में आप “आमीन” कहते हैं तो उसका क्या अर्थ है?

११ यहोवा लोक-समूहों की ओर से की गयी प्रार्थनाओं को भी सुनता है। (१ राजा ८:२२-५३) हम परिवार के रूप में परमेश्‍वर के निकट आ सकते हैं, जिसमें परिवार का सिर अगुआई करता है। यह पारिवारिक बंधन को मज़बूत करता है, और यहोवा छोटे बच्चों के लिए वास्तविक बन जाता है जब वे अपने माता-पिता को नम्रतापूर्वक परमेश्‍वर से प्रार्थना करते हुए सुनते हैं। तब क्या जब कोई प्रार्थना में एक समूह का प्रतिनिधित्व कर रहा है, शायद यहोवा के साक्षियों की एक सभा में? यदि हम श्रोताओं में हैं, तो आइए ध्यानपूर्वक सुनें ताकि प्रार्थना के अन्त में हम पूरे हृदय से “आमीन” कह सकें, जिसका अर्थ है “ऐसा ही हो।”—१ कुरिन्थियों १४:१६.

प्रार्थनाएँ जिन्हें यहोवा सुनता है

१२. (क) परमेश्‍वर कुछ प्रार्थनाओं का उत्तर क्यों नहीं देता? (ख) प्रार्थना करते समय हमें सिर्फ़ निजी ज़रूरतों पर ही ध्यान क्यों नहीं लगाना चाहिए?

१२ कुछ लोग शायद यह महसूस करें कि परमेश्‍वर उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं देता जबकि वे मसीह के द्वारा उससे प्रार्थना करते हैं। लेकिन, प्रेरित यूहन्‍ना ने कहा: “यदि हम [परमेश्‍वर की] इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं, तो वह हमारी सुनता है।” (१ यूहन्‍ना ५:१४) तो फिर, हमें परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार माँगने की ज़रूरत है। चूँकि वह हमारे आध्यात्मिक हित में दिलचस्पी रखता है, हमारी आध्यात्मिकता को प्रभावित करनेवाली कोई भी बात प्रार्थना के लिए उपयुक्‍त विषय है। हमें भौतिक ज़रूरतों पर पूरी तरह से ध्यान लगाने के प्रलोभन का विरोध करना चाहिए। उदाहरण के लिए, जबकि बीमारी से लड़ने के लिए अंतर्दृष्टि और सहनशक्‍ति के लिए प्रार्थना करना उचित है, हमें स्वास्थ्य के बारे में इतनी चिन्ता नहीं करनी चाहिए कि आध्यात्मिक हित धुँधले हो जाएँ। (भजन ४१:१-३) इस बात से अवगत होने पर कि वह अपने स्वास्थ्य के बारे में ज़रूरत से ज़्यादा चिन्तित थी, एक मसीही स्त्री ने अपनी बीमारी के प्रति सही दृष्टिकोण रखने के लिए यहोवा से मदद माँगी। फलस्वरूप, उसकी स्वास्थ्य समस्याएँ काफ़ी छोटी चिन्ता बन गयीं और उसे लगा कि उसे “असीम सामर्थ” दी गयी है। (२ कुरिन्थियों ४:७) दूसरों के लिए आध्यात्मिक मदद होने की उसकी इच्छा तीव्र हो गयी, और वह पूर्ण-समय की राज्य उद्‌घोषक बन गयी।

१३. जैसा मत्ती ६:९-१३ में सूचित है, कौन-से कुछ उपयुक्‍त विषय हैं जो हम अपनी प्रार्थनाओं में शामिल कर सकते हैं?

१३ हम अपनी प्रार्थनाओं में क्या शामिल कर सकते हैं कि यहोवा उन्हें सुनने पर प्रसन्‍न होगा? यीशु मसीह ने अपने शिष्यों को सिखाया कि प्रार्थना कैसे करें। मत्ती ६:९-१३ में अभिलिखित आदर्श प्रार्थना में उसने उन विषयों का नमूना दिया जिनके बारे में हम उचित रीति से प्रार्थना कर सकते हैं। हमारी प्रार्थनाओं में मुख्य महत्त्व की बात क्या होनी चाहिए? यहोवा परमेश्‍वर का नाम और राज्य पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। अपनी भौतिक ज़रूरतों के बारे में माँगना उपयुक्‍त है। अपने पापों की क्षमा और परीक्षाओं से और उस दुष्ट, शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस से बचाव के लिए माँगना भी महत्त्वपूर्ण है। यीशु नहीं चाहता था कि हम इस प्रार्थना को जपते रहें या बार-बार इसे दोहराते रहें, अर्थात्‌ इसके अर्थ पर विचार किए बिना ही इसका पाठ करते रहें। (मत्ती ६:७) वह किस क़िस्म का सम्बन्ध होगा यदि बच्चा जब भी अपने पिता से बात करे तो वही शब्द प्रयोग करे?

१४. निवेदनों के अलावा, हमें कैसी प्रार्थनाएँ करनी चाहिए?

१४ निवेदनों और हार्दिक बिनतियों के अलावा, हमें स्तुति और धन्यवाद की प्रार्थनाएँ करनी चाहिए। (भजन ३४:१; ९२:१; १ थिस्सलुनीकियों ५:१८) हम दूसरों के लिए भी प्रार्थना कर सकते हैं। हमारे पीड़ित या उत्पीड़ित आध्यात्मिक भाई-बहनों के बारे में प्रार्थनाएँ उन में हमारी दिलचस्पी दिखाती हैं, और यहोवा हमें ऐसी चिन्ता व्यक्‍त करते हुए सुनकर प्रसन्‍न होता है। (लूका २२:३२; यूहन्‍ना १७:२०; १ थिस्सलुनीकियों ५:२५) असल में, प्रेरित पौलुस ने लिखा: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्‍वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्‍वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।”—फिलिप्पियों ४:६, ७.

प्रार्थना में लगे रहिए

१५. यदि ऐसा प्रतीत हो कि हमारी प्रार्थनाएँ अनसुनी रह जाती हैं तो हमें क्या याद रखना चाहिए?

१५ जबकि आप परमेश्‍वर के बारे में ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं, आपको शायद लगे कि कभी-कभी आपकी प्रार्थनाएँ अनसुनी रह जाती हैं। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि यह किसी ख़ास प्रार्थना का उत्तर देने का शायद परमेश्‍वर का समय न हो। (सभोपदेशक ३:१-९) यहोवा एक स्थिति को शायद कुछ समय के लिए रहने की अनुमति दे, लेकिन वह प्रार्थनाओं का उत्तर देता है और ऐसा करने का सर्वोत्तम समय जानता है।—२ कुरिन्थियों १२:७-९.

१६. हमें प्रार्थना में क्यों लगे रहना चाहिए, और ऐसा करना परमेश्‍वर के साथ हमारे सम्बन्ध को कैसे प्रभावित कर सकता है?

१६ हमारा प्रार्थना में लगे रहना यह प्रकट करता है कि जो कुछ हम परमेश्‍वर से कह रहे हैं उसमें हमारी हार्दिक दिलचस्पी है। (लूका १८:१-८) उदाहरण के लिए, हम यहोवा से शायद किसी कमज़ोरी पर जीत पाने के लिए मदद माँगें। प्रार्थना में लगे रहने और अपने निवेदनों के सामंजस्य में कार्य करने के द्वारा हम अपनी निष्कपटता दिखाते हैं। हमें अपने निवेदनों में सुस्पष्ट और ईमानदार होना चाहिए। जब हम किसी परीक्षा का सामना कर रहे हैं तो तीव्रता से प्रार्थना करना ख़ासकर महत्त्वपूर्ण है। (मत्ती ६:१३) जब हम अपने पापमय आवेगों पर क़ाबू पाने की कोशिश करने के साथ-साथ प्रार्थना करना जारी रखते हैं, तब हम देखेंगे कि यहोवा कैसे हमारी मदद करता है। यह हमारे विश्‍वास को बढ़ाएगा और उसके साथ हमारे सम्बन्ध को मज़बूत करेगा।—१ कुरिन्थियों १०:१३; फिलिप्पियों ४:१३.

१७. परमेश्‍वर की सेवा करने में प्रार्थनापूर्ण मनोवृत्ति से हम कैसे लाभ उठाएँगे?

१७ यहोवा परमेश्‍वर की पवित्र सेवा करने में प्रार्थनापूर्ण मनोवृत्ति विकसित करने के द्वारा हम यह समझ पाएँगे कि हम अपनी शक्‍ति से उसकी सेवा नहीं करते। उसकी सेवा करने के लिए यहोवा हमें शक्‍ति देता है। (१ कुरिन्थियों ४:७) यह स्वीकार करना हमें नम्र होने में मदद देगा और उसके साथ हमारे सम्बन्ध को अर्थपूर्ण बनाएगा। (१ पतरस ५:५, ६) जी हाँ, हमारे पास प्रार्थना में लगे रहने के लिए ठोस कारण हैं। हमारी सच्ची प्रार्थनाएँ और इस बात का मूल्यवान ज्ञान कि हमारे प्रेममय स्वर्गीय पिता के निकट कैसे आएँ, हमारे जीवन को सचमुच सुखी बनाएँगे।

यहोवा के साथ संचार एकतरफ़ा नहीं

१८. हम परमेश्‍वर की कैसे सुन सकते हैं?

१८ यदि हम चाहते हैं कि परमेश्‍वर हमारी प्रार्थनाएँ सुने, तो हमें उसकी बात सुनने की ज़रूरत है। (जकर्याह ७:१३) वह अब अपने संदेश ईश्‍वरीय रूप से उत्प्रेरित भविष्यवक्‍ताओं के द्वारा नहीं भेजता और निश्‍चित ही प्रेतात्मवादी साधन नहीं प्रयोग करता। (व्यवस्थाविवरण १८:१०-१२) लेकिन हम परमेश्‍वर के वचन, बाइबल का अध्ययन करने के द्वारा उसकी सुन सकते हैं। (रोमियों १५:४; २ तीमुथियुस ३:१६, १७) जिस तरह हमें उस भौतिक भोजन के लिए स्वाद विकसित करने की ज़रूरत हो सकती है जो हमारे लिए अच्छा है, उसी तरह हमसे आग्रह किया गया है कि ‘वचन के शुद्ध दूध के लिए लालसा विकसित करें।’ परमेश्‍वर के वचन को प्रतिदिन पढ़ने के द्वारा आध्यात्मिक भोजन के लिए स्वाद विकसित कीजिए।—१ पतरस २:२, ३, NW; प्रेरितों १७:११.

१९. आप बाइबल से जो पढ़ते हैं उस पर मनन करने का क्या लाभ है?

१९ आप बाइबल से जो पढ़ते हैं उस पर मनन कीजिए। (भजन १:१-३; ७७:११, १२) इसका अर्थ है विषय पर चिन्तन करना। आप इसकी तुलना भोजन को पचाने से कर सकते हैं। जो आप पढ़ रहे हैं उसको उन बातों के साथ जोड़ने के द्वारा जिन्हें आप पहले से ही जानते हैं, आप आध्यात्मिक भोजन को पचा सकते हैं। विचार कीजिए कि वह जानकारी कैसे आपके जीवन को प्रभावित करती है, या मनन कीजिए कि वह यहोवा के गुणों और व्यवहार के बारे में क्या प्रकट करती है। अतः व्यक्‍तिगत अध्ययन के द्वारा आप वह आध्यात्मिक भोजन ले सकते हैं जो यहोवा प्रदान करता है। यह आपको परमेश्‍वर के और निकट लाएगा और दिन-प्रति-दिन की समस्याओं से निपटने में आपकी मदद करेगा।

२०. मसीही सभाओं में उपस्थित होना परमेश्‍वर के निकट आने में कैसे हमारी मदद करता है?

२० मसीही सभाओं में परमेश्‍वर के वचन की चर्चा सुनने के द्वारा भी आप उसके निकट आ सकते हैं, जैसे इस्राएली भी जब परमेश्‍वर की व्यवस्था का सार्वजनिक पठन सुनने के लिए इकट्ठा होते थे तब ध्यानपूर्वक सुनते थे। उस समय के उपदेशक व्यवस्था का पठन करके उसका अर्थ समझाते थे, इस प्रकार अपने श्रोताओं को पाठ समझने में और जो उन्होंने सुना उस पर अमल करने के लिए प्रेरित होने में मदद करते थे। इस कारण बड़ा आनन्द होता था। (नहेमायाह ८:८, १२) सो यहोवा के साक्षियों की सभाओं में उपस्थित होना अपनी आदत बनाइए। (इब्रानियों १०:२४, २५) यह आपको परमेश्‍वर का ज्ञान समझने में और फिर उसे अपने जीवन में लागू करने में मदद देगा और आपके लिए ख़ुशी लाएगा। विश्‍वव्यापी मसीही भाईचारे का भाग होना यहोवा के निकट रहने में आपकी मदद करेगा। और जैसा हम देखेंगे, आप परमेश्‍वर के लोगों के बीच सच्ची सुरक्षा पा सकते हैं।

अपने ज्ञान को जाँचिए

आपको यहोवा के निकट क्यों आना चाहिए?

परमेश्‍वर के निकट आने की कुछ माँगें क्या हैं?

आप अपनी प्रार्थनाओं में क्या शामिल कर सकते हैं?

आपको प्रार्थना में क्यों लगे रहना चाहिए?

आप आज यहोवा की कैसे सुन सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 157 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]