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धर्म-परायण जीवन जीने से क्यों ख़ुशी मिलती है

धर्म-परायण जीवन जीने से क्यों ख़ुशी मिलती है

अध्याय १३

धर्म-परायण जीवन जीने से क्यों ख़ुशी मिलती है

१. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा का मार्ग ख़ुशी लाता है?

यहोवा “आनन्दित परमेश्‍वर” है, और वह चाहता है कि आप जीवन का आनन्द उठाएँ। (१ तीमुथियुस १:११, NW) उसके मार्ग पर चलने से, आप ख़ुद को लाभ पहुँचा सकते हैं और ऐसी प्रशान्ति का अनुभव कर सकते हैं जो सदा-बहती नदी के समान गहरी और स्थायी है। परमेश्‍वर के मार्ग पर चलना “समुद्र की लहरों के नाईं” एक व्यक्‍ति को निरन्तर धार्मिकता के कार्य करने के लिए भी प्रेरित करता है। यह सच्ची ख़ुशी लाता है।—यशायाह ४८:१७, १८.

२. जबकि मसीहियों के साथ कभी-कभी बुरा व्यवहार किया जाता है वे कैसे ख़ुश रह सकते हैं?

कुछ लोग शायद विरोध करें, ‘लोग कभी-कभी सही काम करने के कारण दुःख उठाते हैं।’ यह सच है, और यही यीशु के प्रेरितों के साथ हुआ। लेकिन, हालाँकि उन्हें सताया गया, वे आनन्दित हुए और “इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि यीशु ही मसीह है न रुके।” (प्रेरितों ५:४०-४२) हम इससे महत्त्वपूर्ण सीख ले सकते हैं। एक तो यह है कि हमारा धर्म-परायण जीवन जीना इस बात की गारंटी नही देता कि हमारे साथ हमेशा अच्छा व्यवहार किया जाएगा। प्रेरित पौलुस ने लिखा, “जितने मसीह यीशु में भक्‍ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।” (२ तीमुथियुस ३:१२) इसका कारण यह है कि शैतान और उसका संसार उनके विरोध में हैं जो धर्म-परायण रीति से जीते हैं। (यूहन्‍ना १५:१८, १९; १ पतरस ५:८) लेकिन असली ख़ुशी बाहरी बातों पर निर्भर नहीं है। इसके बजाय, यह उस विश्‍वास से आती है कि हम सही काम कर रहे हैं और इसलिए हम पर परमेश्‍वर का अनुमोदन है।—मत्ती ५:१०-१२; याकूब १:२, ३; १ पतरस ४:१३, १४.

३. यहोवा की उपासना से एक व्यक्‍ति के जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ना चाहिए?

ऐसे लोग भी हैं जो समझते हैं कि कभी-कभी भक्‍ति के कार्य करने के द्वारा वे परमेश्‍वर का अनुग्रह कमा सकते हैं, लेकिन अन्य समय उसे भूल सकते हैं। यहोवा परमेश्‍वर की सच्ची उपासना ऐसी नहीं है। यह एक व्यक्‍ति के आचरण को हर समय, दिन-प्रति-दिन, साल-ब-साल प्रभावित करती है। इसीलिए इसे “मार्ग” भी कहा गया है। (प्रेरितों १९:९; यशायाह ३०:२१) धर्म-परायण जीवन-शैली हमसे परमेश्‍वर के वचन के सामंजस्य में बोलने और कार्य करने की माँग करती है।

४. परमेश्‍वर के मार्गों के अनुसार जीने के लिए परिवर्तन करना क्यों लाभकारी है?

जब बाइबल के नए विद्यार्थी देखते हैं कि यहोवा को प्रसन्‍न करने के लिए उन्हें कुछ परिवर्तन करने की ज़रूरत है, तो वे शायद सोचें, ‘क्या धर्म-परायण जीवन जीना सचमुच लाभप्रद है?’ आप निश्‍चित हो सकते हैं कि ऐसा है। क्यों? क्योंकि “परमेश्‍वर प्रेम है,” और इस कारण उसके मार्ग हमारे लाभ के लिए ही हैं। (१ यूहन्‍ना ४:८) परमेश्‍वर बुद्धिमान भी है और जानता है कि हमारे लिए क्या सर्वोत्तम है। चूँकि यहोवा परमेश्‍वर सर्वशक्‍तिमान है, वह हमें बुरी आदत छोड़ने के द्वारा उसे प्रसन्‍न करने की हमारी इच्छा पूरी करने के लिए शक्‍ति देने में समर्थ है। (फिलिप्पियों ४:१३) आइए धर्म-परायण जीवन में अंतर्ग्रस्त कुछ सिद्धान्तों पर विचार करें और देखें कि कैसे उन पर अमल करने से ख़ुशी मिलती है।

ईमानदारी का परिणाम ख़ुशी है

५. झूठ बोलने और चोरी करने के बारे में बाइबल क्या कहती है?

यहोवा “सत्यवादी ईश्‍वर” है। (भजन ३१:५) निःसंदेह, आप उसके उदाहरण पर चलने और एक सच्चे व्यक्‍ति के रूप में पहचाने जाने की इच्छा रखते हैं। ईमानदारी से आत्म-सम्मान और संतुष्टि की भावना मिलती है। लेकिन, क्योंकि इस पापमय संसार में बेईमानी इतनी फैली हुई है, मसीहियों को इस अनुस्मारक की ज़रूरत है: “हर एक अपने पड़ोसी से सच बोले . . . चोरी करनेवाला फिर चोरी न करे; बरन . . . परिश्रम करे; इसलिये कि जिसे प्रयोजन हो, उसे देने को उसके पास कुछ हो।” (इफिसियों ४:२५, २८) मसीही कर्मचारी पूरे दिन का काम ईमानदारी से करते हैं। जब तक कि उनका मालिक अनुमति न दे, वे उसकी कोई चीज़ नहीं लेते। चाहे काम पर, स्कूल में, या घर पर हो, यहोवा के उपासक को “सब बातों में अच्छी चाल चलना” चाहिए। (इब्रानियों १३:१८) वह व्यक्‍ति जो झूठ बोलने या चोरी करने को आदत बना लेता है परमेश्‍वर का अनुग्रह नहीं पा सकता।—व्यवस्थाविवरण ५:१९; प्रकाशितवाक्य २१:८.

६. एक धर्म-परायण व्यक्‍ति की ईमानदारी कैसे यहोवा को महिमा ला सकती है?

ईमानदार होने के फलस्वरूप अनेक आशिषें मिलती हैं। सलीना एक ज़रूरतमंद अफ्रीकी विधवा है जो यहोवा परमेश्‍वर और उसके धर्मी सिद्धान्तों से प्रेम करती है। एक दिन, उसे एक बैग मिला जिसमें एक बैंकबुक और ढेर सारा रुपया था। टॆलीफ़ोन-पुस्तिका का प्रयोग करके वह उसके मालिक को ढूँढ पायी—एक दुकानदार जिसे लूट लिया गया था। जब सलीना ने काफ़ी बीमार होने के बावजूद उससे भेंट की और उसे बैग की सारी चीज़ें लौटा दीं, तो वह पुरुष अपनी आँखों पर विश्‍वास नहीं कर सका। “ऐसी ईमानदारी का प्रतिफल मिलना ही चाहिए,” उसने कहा और सलीना को कुछ रुपये दिए। उससे भी महत्त्वपूर्ण, इस पुरुष ने सलीना के धर्म की प्रशंसा की। जी हाँ, ईमानदारी के काम बाइबल शिक्षा की शोभा बढ़ाते, यहोवा परमेश्‍वर को महिमा देते, और उसके ईमानदार उपासकों को ख़ुशी देते हैं।—तीतुस २:१०; १ पतरस २:१२.

उदारता से ख़ुशी मिलती है

७. जुआ खेलने में क्या बुराई है?

उदार होने में ख़ुशी है, जबकि लोभी व्यक्‍ति “परमेश्‍वर के राज्य के वारिस” नहीं होंगे। (१ कुरिन्थियों ६:१०) लोभ का एक आम रूप है जुआ खेलना, जो दूसरों के नुक़सान से पैसा बनाने की कोशिश है। यहोवा उनको अनुमोदन नहीं देता जो “नीच कमाई के लोभी” हैं। (१ तीमुथियुस ३:८) वहाँ भी जहाँ जुआ खेलना कानूनी है और एक व्यक्‍ति मज़े के लिए जुआ खेलता है, उसको इसकी लत पड़ सकती है और वह ऐसी आदत को बढ़ावा दे रहा होगा जिसने अनेक लोगों को बरबाद किया है। जुआ खेलना अकसर जुआरी के परिवार के लिए मुसीबत लाता है, जिनके पास शायद रोटी-कपड़ा जैसी ज़रूरतों के लिए भी मुश्‍किल से कुछ पैसा बचे।—१ तीमुथियुस ६:१०.

८. यीशु ने उदारता का उत्तम उदाहरण कैसे रखा, और हम कैसे उदार हो सकते हैं?

अपनी प्रेममय उदारता के कारण, मसीहियों को दूसरों की, ख़ासकर ज़रूरतमंद संगी विश्‍वासियों की मदद करने में आनन्द मिलता है। (याकूब २:१५, १६) पृथ्वी पर आने से पहले यीशु ने मानवजाति के प्रति परमेश्‍वर की उदारता देखी। (प्रेरितों १४:१६, १७) स्वयं यीशु ने मानवजाति के लिए अपना समय, अपनी प्रतिभा, और यहाँ तक कि अपना जीवन भी दे दिया। अतः, वह यह कहने के लिए सक्षम था: “लेने से देना धन्य है।” (प्रेरितों २०:३५) यीशु ने उस कंगाल विधवा की भी प्रशंसा की जिसने उदारता से मंदिर के भण्डार में दो छोटे सिक्के डाले, क्योंकि उसने “अपनी सारी जीविका” दे दी। (मरकुस १२:४१-४४) कलीसिया और राज्य कार्य को भौतिक समर्थन देने में प्राचीन इस्राएली और प्रथम-शताब्दी मसीही आनन्दपूर्ण उदारता के उदाहरण प्रदान करते हैं। (१ इतिहास २९:९; २ कुरिन्थियों ९:११-१४) इन कार्यों के लिए भौतिक अंशदान देने के अलावा, वर्तमान-समय के मसीही ख़ुशी-ख़ुशी परमेश्‍वर को स्तुति देते हैं और अपना जीवन उसकी सेवा में लगाते हैं। (रोमियों १२:१; इब्रानियों १३:१५) वे सच्ची उपासना का समर्थन करने और राज्य के सुसमाचार प्रचार के विश्‍वव्यापी कार्य को बढ़ावा देने के लिए अपने धन सहित अपना समय, शक्‍ति, और अन्य साधन देते हैं, और इसके लिए यहोवा उनको आशिष देता है।—नीतिवचन ३:९, १०.

ख़ुशी को बढ़ानेवाली अन्य बातें

९. ज़रूरत से ज़्यादा शराब पीने में क्या बुराई है?

ख़ुश होने के लिए, मसीहियों को ‘अपनी विचार-शक्‍ति’ को भी ‘सुरक्षित’ रखना चाहिए। (नीतिवचन ५:१, २, NW) यह माँग करता है कि वे परमेश्‍वर का वचन और हितकर बाइबल साहित्य पढ़ें और उस पर मनन करें। लेकिन ऐसी बातें भी हैं जिनसे दूर रहना है। उदाहरण के लिए, ज़रूरत से ज़्यादा शराब पीने से व्यक्‍ति अपने सोच-विचार पर नियंत्रण खो सकता है। ऐसी स्थिति में, अनेक लोग अनैतिक व्यवहार में लग जाते हैं, हिंसा के कार्य करते हैं, और घातक दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। कोई आश्‍चर्य की बात नहीं कि बाइबल कहती है कि पियक्कड़ परमेश्‍वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे! (१ कुरिन्थियों ६:१०) “संयमी” रहने के लिए दृढ़-संकल्प, सच्चे मसीही पियक्कड़पन से दूर रहते हैं, और यह उनके बीच ख़ुशी को बढ़ाने में मदद करता है।—तीतुस २:२-६.

१०. (क) मसीही तम्बाकू का प्रयोग क्यों नहीं करते? (ख) लती आदतों को छोड़ने से क्या लाभ मिलते हैं?

१० एक स्वच्छ शरीर ख़ुशी में योग देता है। फिर भी, अनेक लोगों को हानिकर पदार्थों की लत पड़ जाती है। उदाहरण के लिए, तम्बाकू के प्रयोग पर विचार कीजिए। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट करता है कि धूम्रपान “हर साल ३० लाख लोगों की जान लेता है।” तात्कालिक विनिवर्तन लक्षणों के कारण तम्बाकू की लत छोड़ना मुश्‍किल हो सकता है। दूसरी ओर, ऐसे अनेक लोग जो पहले धूम्रपान करते थे यह पाते हैं कि अब उनका स्वास्थ्य बेहतर है और घरेलू ज़रूरतों के लिए उनके पास ज़्यादा पैसा है। जी हाँ, तम्बाकू की आदत या अन्य हानिकर पदार्थों की लत छोड़ना एक स्वच्छ शरीर, साफ़ अंतःकरण, और सच्ची ख़ुशी में योग देगा।—२ कुरिन्थियों ७:१.

वैवाहिक सुख

११. कानूनी और स्थायी आदरणीय विवाह होने के लिए किस बात की ज़रूरत है?

११ जो पति-पत्नी के रूप में एकसाथ रह रहे हैं उन्हें यह निश्‍चित करना चाहिए कि उनका विवाह कानूनी रूप से पंजीकृत है। (मरकुस १२:१७) उन्हें वैवाहिक बंधन को एक गंभीर ज़िम्मेदारी के रूप में भी देखने की ज़रूरत है। यह सच है कि ऐसी स्थितियों में अलगाव ज़रूरी बन सकता है जब जानबूझकर समर्थन देने से इनकार, अत्यधिक दुर्व्यवहार, या आध्यात्मिकता को पूर्ण रूप से ख़तरा होता है। (१ तीमुथियुस ५:८; गलतियों ५:१९-२१) लेकिन १ कुरिन्थियों ७:१०-१७ में दिए प्रेरित पौलुस के शब्द विवाह-साथियों को एकसाथ रहने का प्रोत्साहन देते हैं। निःसंदेह, सच्ची ख़ुशी के लिए उन्हें एक दूसरे के प्रति वफ़ादार रहने की ज़रूरत है। पौलुस ने लिखा: “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, तथा विवाह-बिछौना निष्कलंक रहे, क्योंकि परमेश्‍वर व्यभिचारियों और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।” (इब्रानियों १३:४, NHT) पद “विवाह-बिछौना” एक दूसरे के साथ कानूनी रूप से विवाहित पुरुष और स्त्री के बीच मैथुन को सूचित करता है। किसी भी अन्य लैंगिक सम्बन्ध को “सब में आदर की बात” नहीं कहा जा सकता, जैसे एक से ज़्यादा पत्नी से विवाह। इसके अतिरिक्‍त, बाइबल विवाहपूर्व मैथुन और समलिंगकामुकता की निन्दा करती है।—रोमियों १:२६, २७; १ कुरिन्थियों ६:१८.

१२. व्यभिचार के कुछ बुरे फल क्या हैं?

१२ व्यभिचार से कुछ क्षण का शारीरिक सुख मिल सकता है, लेकिन इससे सच्ची ख़ुशी नहीं मिलती। यह परमेश्‍वर को अप्रसन्‍न करता है और व्यक्‍ति के अंतःकरण पर निशान छोड़ सकता है। (१ थिस्सलुनीकियों ४:३-५) नाजायज़ यौन सम्बन्ध के दुःखद परिणाम शायद एड्‌स और लैंगिक रूप से फैलनेवाली अन्य बीमारियाँ हों। एक चिकित्सीय रिपोर्ट कहती है, “यह अनुमान लगाया गया है कि संसार-भर में २५ करोड़ से ज़्यादा लोग हर साल सूज़ाक से संक्रमित होते हैं, और लगभग ५ करोड़ सिफ़िलिस से।” अनचाहे गर्भ की भी समस्या है। ‘अंतरराष्ट्रीय योजनाबद्ध जनकता संघ’ रिपोर्ट देता है कि संसार-भर में १५ से १९ साल के बीच की १.५ करोड़ से भी ज़्यादा लड़कियाँ हर साल गर्भवती होती हैं, और उनमें से एक-तिहाई गर्भपात करवाती हैं। एक अध्ययन ने दिखाया कि एक अफ्रीकी देश में किशोरियों के बीच हुई कुल मृत्यु में से ७२ प्रतिशत गर्भपात सम्बन्धी जटिलताओं के फलस्वरूप होती हैं। कुछ व्यभिचारी बीमारी और गर्भधारण से शायद बच जाएँ लेकिन भावात्मक क्षति से नहीं बच सकते। अनेक जन अपना आत्म-सम्मान खो देते हैं और अपने आपसे घृणा भी करने लगते हैं।

१३. परस्त्रीगमन से कौन-सी अतिरिक्‍त समस्याएँ उत्पन्‍न होती हैं, और जो व्यभिचारी और परस्त्रीगामी बने रहते हैं उनके सामने क्या रखा है?

१३ हालाँकि परस्त्रीगमन क्षमा किया जा सकता है, यह निर्दोष साथी के लिए तलाक़ लेने का वैध शास्त्रीय आधार है। (मत्ती ५:३२. होशे ३:१-५ से तुलना कीजिए।) जब ऐसी अनैतिकता के फलस्वरूप विवाह टूट जाता है, तो यह निर्दोष साथी पर और बच्चों पर गहरे भावात्मक निशान छोड़ सकता है। मानव परिवार के लाभ के लिए, परमेश्‍वर का वचन बताता है कि उसका प्रतिकूल न्याय पश्‍चातापरहित व्यभिचारियों और परस्त्रीगामियों पर आएगा। इसके अलावा, यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि जो लैंगिक अनैतिकता का अभ्यास करते हैं वे “परमेश्‍वर के राज्य के वारिस न होंगे।”—गलतियों ५:१९, २१.

“संसार के नहीं”

१४. (क) मूर्तिपूजा के कुछ प्रकार क्या हैं जिनसे धर्म-परायण व्यक्‍ति दूर रहता है? (ख) यूहन्‍ना १७:१४ और यशायाह २:४ में क्या मार्गदर्शन दिया गया है?

१४ जो यहोवा को प्रसन्‍न करने की और राज्य आशिषों का आनन्द उठाने की इच्छा रखते हैं वे किसी भी प्रकार की मूर्तिपूजा से दूर रहते हैं। बाइबल दिखाती है कि प्रतिमाएँ बनाना और उनकी उपासना करना ग़लत है, जिसमें मसीह, या यीशु की माता, मरियम की प्रतिमा भी सम्मिलित है। (निर्गमन २०:४, ५; १ यूहन्‍ना ५:२१) सो, सच्चे मसीही मूर्तियों, क्रूस, और प्रतिमाओं को नहीं पूजते। वे ज़्यादा धूर्त प्रकार की मूर्तिपूजा से भी दूर रहते हैं, जैसे झण्डे के प्रति भक्‍ति के कृत्य और ऐसे गीतों का गायन जो राष्ट्रों को महिमावान करते हैं। ऐसे कृत्य करने के लिए दबाव डाले जाने पर वे शैतान को कहे यीशु के शब्दों को याद करते हैं: “तू प्रभु [“यहोवा,” NW] अपने परमेश्‍वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।” (मत्ती ४:८-१०) यीशु ने कहा कि उसके अनुयायी “संसार के नहीं।” (यूहन्‍ना १७:१४) इसका अर्थ है राजनैतिक मामलों में तटस्थ होना और यशायाह २:४ के सामंजस्य में शान्तिपूर्वक रहना, जो कहता है: “वह [यहोवा परमेश्‍वर] जाति जाति का न्याय करेगा, और देश देश के लोगों के झगड़ों को मिटाएगा; और वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।”

१५. बड़ा बाबुल क्या है, और उसमें से निकलने के लिए अनेक नए बाइबल विद्यार्थी क्या करते हैं?

१५ “संसार के नहीं” होने का यह अर्थ भी है कि ‘बड़े बाबुल,’ अर्थात्‌ झूठे धर्म के विश्‍व साम्राज्य से सभी संपर्क तोड़ना। अशुद्ध उपासना प्राचीन बाबुल से फैली जब तक कि उसने पृथ्वी-भर में लोगों पर हानिकर आध्यात्मिक प्रभुत्व न कर लिया। “बड़ा बाबुल” उन सभी धर्मों को शामिल करता है जिनके सिद्धान्त और अभ्यास परमेश्‍वर के ज्ञान के सामंजस्य में नहीं हैं। (प्रकाशितवाक्य १७:१, ५, १५) यहोवा का कोई भी विश्‍वासी उपासक अलग-अलग धर्मों के साथ उपासना में हिस्सा लेने के द्वारा या बड़े बाबुल के किसी भी भाग के साथ आध्यात्मिक संगति करने के द्वारा अंतर्धर्म की गतिविधियों में भाग नहीं लेगा। (गिनती २५:१-९; २ कुरिन्थियों ६:१४) परिणामस्वरूप, अनेक नए बाइबल विद्यार्थी उस धार्मिक संगठन को जिसका वे भाग हैं, एक त्यागपत्र भेजते हैं। यह उन्हें सच्चे परमेश्‍वर के और निकट लाया है, जैसे प्रतिज्ञा की गयी है: “प्रभु [“यहोवा,” NW] कहता है, कि उन के बीच में से निकलो और अलग रहो; और अशुद्ध वस्तु को मत छूओ, तो मैं तुम्हें ग्रहण करूंगा।” (२ कुरिन्थियों ६:१७; प्रकाशितवाक्य १८:४, ५) क्या हमारे स्वर्गीय पिता द्वारा ऐसी स्वीकृति की आप तीव्र इच्छा नहीं करते?

वार्षिक त्योहारों को जाँचना

१६. सच्चे मसीही बड़ा दिन क्यों नहीं मनाते?

१६ एक धर्म-परायण जीवन हमें सांसारिक उत्सव मनाने से मुक्‍त करता है, जिन्हें मनाना अकसर बोझिल होता है। उदाहरण के लिए, बाइबल नहीं बताती कि यीशु का जन्म ठीक किस दिन हुआ। शायद कुछ लोग कहें, ‘मैं ने सोचा यीशु २५ दिसम्बर को पैदा हुआ था!’ यह संभव नहीं है क्योंकि वह ३३ १/२ साल की उम्र में सा.यु. ३३ के वसन्त में मरा। इसके अतिरिक्‍त, उसके जन्म के समय, चरवाहे ‘रात को मैदान में रहकर अपने झुण्ड का पहरा दे रहे थे।’ (लूका २:८) इस्राएल देश में, देर दिसम्बर ठंडा, बारिशों का मौसम है जिस दौरान भेड़ों को सर्दी के मौसम से बचाने के लिए रात के समय भेड़शाला में रखा जाता। असल में, रोमवासियों ने २५ दिसम्बर को अपने सूर्य देवता के जन्मदिन के रूप में अलग रखा था। यीशु के पृथ्वी पर रहने के शताब्दियों बाद, धर्मत्यागी मसीहियों ने इस तिथि को मसीह के जन्मोत्सव के लिए अपना लिया। परिणामस्वरूप, सच्चे मसीही बड़ा दिन (क्रिसमस) अथवा झूठे धार्मिक विश्‍वासों पर आधारित कोई अन्य त्योहार नहीं मनाते। क्योंकि वे यहोवा को अनन्य भक्‍ति देते हैं, वे ऐसे त्योहार भी नहीं मनाते जिनमें पापमय मनुष्यों या राष्ट्रों को पूजा जाता है।

१७. धर्म-परायण लोग जन्मदिन क्यों नहीं मनाते, और मसीही बच्चे वैसे भी ख़ुश क्यों हैं?

१७ बाइबल विशिष्ट रूप से केवल दो जन्मोत्सवों का उल्लेख करती है, दोनों उन लोगों से सम्बन्धित हैं जो परमेश्‍वर की सेवा नहीं करते थे। (उत्पत्ति ४०:२०-२२; मत्ती १४:६-११) जब शास्त्र परिपूर्ण मनुष्य यीशु मसीह की जन्म तिथि नहीं बताता, तो हम अपरिपूर्ण मनुष्यों के जन्मदिन पर ख़ास ध्यान क्यों दें? (सभोपदेशक ७:१) निःसंदेह, धर्म-परायण माता-पिता अपने बच्चों को प्रेम दिखाने के लिए एक ख़ास दिन की प्रतीक्षा नहीं करते। एक १३-वर्षीय मसीही लड़की ने कहा: “मेरा परिवार और मैं ख़ूब मज़ा करते हैं। . . . मुझे अपने माता-पिता से बहुत लगाव है, और जब दूसरे बच्चे पूछते हैं कि मैं त्योहार क्यों नहीं मनाती, तो मैं उनसे कहती हूँ कि मेरे लिए हर दिन एक त्योहार है।” १७ साल के एक मसीही युवा ने कहा: “हमारे घर में पूरे साल उपहार दिए जाते हैं।” जब उपहार सहज भाव से दिए जाते हैं तब ज़्यादा ख़ुशी मिलती है।

१८. यीशु ने अपने अनुयायियों को कौन-सा एक वार्षिक समारोह मनाने की आज्ञा दी, और यह हमें किस बात की याद दिलाता है?

१८ जो धर्म-परायण जीवन जीते हैं उनके लिए हर साल एक ऐसा दिन होता है जिसे ख़ासकर मनाया जाना चाहिए। यह प्रभु का संध्या भोज है, जिसे अकसर मसीह की मृत्यु का स्मारक कहा जाता है। इसके बारे में, यीशु ने अपने अनुयायियों को आज्ञा दी: “मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” (लूका २२:१९, २०; १ कुरिन्थियों ११:२३-२५) जब यीशु ने सा.यु. ३३ में निसान १४ की रात को यह भोज स्थापित किया, तब उसने अखमीरी रोटी और लाल दाखमधु का प्रयोग किया, जिसने उसकी पापरहित मानव देह को और उसके परिपूर्ण लहू को चित्रित किया। (मत्ती २६:२६-२९) इन प्रतीकों में परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त मसीही भाग लेते हैं। वे नयी वाचा और राज्य वाचा में लिए गए हैं, और उनके पास स्वर्गीय आशा है। (लूका १२:३२; २२:२०, २८-३०; रोमियों ८:१६, १७; प्रकाशितवाक्य १४:१-५) फिर भी, प्राचीन यहूदी कैलॆन्डर पर निसान १४ से जो दिन मिलता है उस शाम उपस्थित सभी लोग लाभ उठाते हैं। उन्हें पाप-प्रायश्‍चित्त करनेवाले छुड़ौती बलिदान में यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह के द्वारा दिखाए गए प्रेम की याद दिलायी जाती है, जो उनके लिए अनन्त जीवन संभव बनाता है जिन पर ईश्‍वरीय अनुग्रह है।—मत्ती २०:२८; यूहन्‍ना ३:१६.

रोज़गार और मनोरंजन

१९. जीविका कमाने के लिए मसीही कौन-सी चुनौती का सामना करते हैं?

१९ अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सच्चे मसीही कड़ी मेहनत करने को बाध्य हैं। इसे पूरा करना परिवार के सिर को संतुष्टि की भावना देता है। (१ थिस्सलुनीकियों ४:११, १२) निःसंदेह, यदि एक मसीही का रोज़गार बाइबल के विरोध में होता, तो यह उसे ख़ुशी से वंचित करता। फिर भी, कभी-कभी एक मसीही के लिए ऐसा रोज़गार ढूँढना मुश्‍किल होता है जो बाइबल के स्तरों के सामंजस्य में हो। उदाहरण के लिए, कुछ कर्मचारियों से माँग की जाती है कि ग्राहकों को ठगें। दूसरी ओर, अनेक मालिक एक ईमानदार कार्यकर्ता के अंतःकरण के वास्ते छूट देंगे, क्योंकि वे एक भरोसेमंद कर्मचारी को नहीं खोना चाहते। लेकिन, जैसी भी स्थिति हो, आप निश्‍चित हो सकते हैं कि परमेश्‍वर ऐसा रोज़गार ढूँढने में आपके प्रयासों पर आशिष देगा, जिससे आपका अंतःकरण साफ़ रहता है।—२ कुरिन्थियों ४:२.

२०. मनोरंजन का चुनाव करने में हमें क्यों चयनात्मक होना चाहिए?

२० चूँकि परमेश्‍वर चाहता है कि उसके सेवक ख़ुश रहें, हमें कड़ी मेहनत को मनोरंजन और आराम की स्फूर्तिदायक अवधियों के साथ संतुलित करने की ज़रूरत है। (मरकुस ६:३१; सभोपदेशक ३:१२, १३) शैतान का संसार भक्‍तिहीन मनोरंजन को बढ़ावा देता है। लेकिन परमेश्‍वर को प्रसन्‍न करने के लिए, जो पुस्तकें हम पढ़ते हैं, जो रेडियो कार्यक्रम और संगीत हम सुनते हैं, जो संगीत-समारोह, फ़िल्म, नाटक, दूरदर्शन कार्यक्रम, और वीडियो हम देखते हैं, उनके बारे में हमें चयनात्मक होने की ज़रूरत है। यदि अतीत में हम जो मनोरंजन चुनते थे वह व्यवस्थाविवरण १८:१०-१२, भजन ११:५, और इफिसियों ५:३-५ जैसे शास्त्रवचनों में दी गयी चेतावनी के विरोध में है, तो हम यहोवा को प्रसन्‍न करेंगे और ज़्यादा ख़ुश रहेंगे यदि हम समंजन करते हैं।

जीवन और लहू के लिए आदर

२१. जीवन के लिए आदर से गर्भपात के प्रति, साथ ही साथ हमारी आदतों और आचरण के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर कैसा प्रभाव पड़ना चाहिए?

२१ सच्ची ख़ुशी पाने के लिए, हमें मानव जीवन को पवित्र समझने की ज़रूरत है जैसे यहोवा भी समझता है। उसका वचन हमें हत्या करने के लिए मना करता है। (मत्ती १९:१६-१८) असल में, इस्राएल को दी गयी परमेश्‍वर की व्यवस्था दिखाती है कि वह अजन्मे बच्चे को मूल्यवान जीवन समझता है—ऐसी चीज़ नहीं जिसे नाश किया जाना है। (निर्गमन २१:२२, २३) जहाँ तक जीवन का सम्बन्ध है, हमें तम्बाकू का प्रयोग करने, नशीले पदार्थों या शराब से अपने शरीर का दुष्प्रयोग करने, या जानबूझकर ख़तरे मोल लेने के द्वारा इसे सस्ता नहीं समझना चाहिए। न तो हमें कोई जीवन-घातक कार्य करना चाहिए और न ही सुरक्षा उपायों को नज़रअंदाज़ करना चाहिए, जिसका परिणाम रक्‍त-दोष हो सकता है।—व्यवस्थाविवरण २२:८.

२२. (क) लहू और उसके प्रयोग के बारे में ईश्‍वरीय दृष्टिकोण क्या है? (ख) केवल किसका लहू वास्तव में जीवन-रक्षक है?

२२ यहोवा ने नूह और उसके परिवार को कहा कि लहू प्राण, या जीवन को चित्रित करता है। इसलिए, परमेश्‍वर ने उन्हें कैसा भी लहू खाने के लिए मना किया। (उत्पत्ति ९:३, ४) चूँकि हम उनके वंशज हैं, वह नियम हम सब पर बाध्यकारी रूप से लागू होता है। यहोवा ने इस्राएलियों को कहा कि लहू को भूमि पर गिरा दिया जाना था और मनुष्य के अपने कामों के लिए प्रयोग नहीं किया जाना था। (व्यवस्थाविवरण १२:१५, १६) और लहू के सम्बन्ध में परमेश्‍वर का नियम दोहराया गया जब प्रथम-शताब्दी मसीहियों को निर्देशन दिया गया: “लोहू से . . . परे रहो।” (प्रेरितों १५:२८, २९) जीवन की पवित्रता के प्रति आदर के कारण धर्म-परायण लोग रक्‍ताधान नहीं स्वीकार करते, चाहे दूसरे यह आग्रह भी क्यों न करें कि ऐसी प्रक्रिया जीवन-रक्षक होगी। यहोवा के साक्षियों को स्वीकार्य अनेक चिकित्सीय विकल्प अति प्रभावकारी साबित हुए हैं और व्यक्‍ति को रक्‍ताधान के जोख़िमों में नहीं डालते। मसीही जानते हैं कि केवल यीशु का बहाया गया लहू ही वास्तव में जीवन-रक्षक है। उसमें विश्‍वास रखने से क्षमा और अनन्त जीवन की प्रत्याशा मिलती है।—इफिसियों १:७.

२३. धर्म-परायण जीवन-शैली के कुछ प्रतिफल क्या हैं?

२३ स्पष्टतया, धर्म-परायण जीवन जीना प्रयास की माँग करता है। इसके कारण परिवार के सदस्य या जान-पहचानवाले उपहास कर सकते हैं। (मत्ती १०:३२-३९; १ पतरस ४:४) लेकिन ऐसा जीवन जीने के प्रतिफल उसके कारण आयी किसी भी परीक्षा से कहीं ज़्यादा हैं। यह एक साफ़ अंतःकरण देता है और यहोवा के संगी उपासकों के साथ हितकर संगति प्रदान करता है। (मत्ती १९:२७, २९) इसके अलावा, परमेश्‍वर के धर्मी नए संसार में सर्वदा जीवित रहने की भी कल्पना कीजिए। (यशायाह ६५:१७, १८) और बाइबल सलाह को मानने और इस प्रकार यहोवा के हृदय को आनन्दित करने में कितना आनन्द है! (नीतिवचन २७:११) इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं कि धर्म-परायण जीवन जीने से ख़ुशी मिलती है!—भजन १२८:१, २.

अपने ज्ञान को जाँचिए

इसके कुछ कारण क्या हैं कि धर्म-परायण जीवन जीने से क्यों ख़ुशी मिलती है?

धर्म-परायण जीवन किन परिवर्तनों की माँग कर सकता है?

आप धर्म-परायण जीवन क्यों जीना चाहते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 124, 125 पर तसवीर]

विश्राम की अवधियों के साथ संतुलित आध्यात्मिक गतिविधियाँ उनकी ख़ुशी में योग देती हैं जो धर्म-परायण जीवन जीते हैं