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परमेश्‍वर का राज्य शासन करता है

परमेश्‍वर का राज्य शासन करता है

अध्याय १०

परमेश्‍वर का राज्य शासन करता है

१, २. मानव सरकारें कैसे अयोग्य साबित हुई हैं?

शायद आपको एक ऐसा उपकरण ख़रीदने का अनुभव हो जो चला ही नहीं। मान लीजिए कि आपने मरम्मतवाले को बुलाया। उसने उपकरण को “ठीक” कर दिया, लेकिन थोड़ी ही देर बाद वह फिर टूट गया। वह कितना निराशाजनक था!

मानव सरकारों के साथ भी ऐसा ही है। मानवजाति ने हमेशा से एक ऐसी सरकार चाही है जो सुख-शान्ति निश्‍चित करती। फिर भी, समाज में टूट-फूट की मरम्मत करने के कड़े प्रयास वास्तव में सफल नहीं हुए हैं। ढेरों शान्ति संधियाँ की गयी हैं—और फिर तोड़ी गयी हैं। इसके अलावा, कौन-सी सरकार ग़रीबी, पक्षपात, अपराध, बीमारी, और पारिस्थितिक विनाश को मिटाने में समर्थ हुई है? मनुष्य के शासन की मरम्मत नहीं हो सकती। इस्राएल के बुद्धिमान राजा सुलैमान ने भी पूछा: “आदमी क्योंकर अपना चलना समझ सके?”—नीतिवचन २०:२४.

३. (क) यीशु के प्रचार का मूल-विषय क्या था? (ख) कुछ लोग परमेश्‍वर के राज्य का वर्णन कैसे करते हैं?

निराश मत होइए! एक टिकाऊ विश्‍व सरकार मात्र एक स्वप्न नहीं है। यह यीशु के प्रचार का मूल-विषय था। उसने इसे “परमेश्‍वर का राज्य” कहा, और उसने अपने अनुयायियों को इसके लिए प्रार्थना करना सिखाया। (लूका ११:२; २१:३१) निःसंदेह, धार्मिक दायरों में कभी-कभी परमेश्‍वर के राज्य का ज़िक्र होता है। असल में, करोड़ों लोग हर दिन इसके लिए प्रार्थना करते हैं जब वे प्रभु की प्रार्थना दोहराते हैं (जिसे हमारे पिता या आदर्श प्रार्थना भी कहा जाता है)। लेकिन यह पूछे जाने पर कि “परमेश्‍वर का राज्य क्या है?” लोग अलग-अलग ढंग से उत्तर देते हैं। कुछ कहते हैं, “यह आपके हृदय में है।” दूसरे उसे स्वर्ग कहते हैं। लेकिन जैसा हम देखेंगे, बाइबल स्पष्ट उत्तर देती है।

एक उद्देश्‍य सहित राज्य

४, ५. यहोवा ने अपनी सर्वसत्ता की एक नयी अभिव्यक्‍ति करने का चुनाव क्यों किया, और यह क्या निष्पन्‍न करेगा?

यहोवा परमेश्‍वर हमेशा से विश्‍व का राजा, या सर्वसत्ताधारी शासक रहा है। यह तथ्य कि उसने सभी वस्तुओं की सृष्टि की उसे उस उच्च पद पर उन्‍नत करता है। (१ इतिहास २९:११; भजन १०३:१९; प्रेरितों ४:२४) लेकिन जिस राज्य का यीशु ने प्रचार किया वह परमेश्‍वर की विश्‍व सर्वसत्ता के आगे गौण, या अप्रधान है। उस मसीहाई राज्य का एक निश्‍चित उद्देश्‍य है, लेकिन वह क्या है?

जैसा अध्याय ६ में समझाया गया है, प्रथम मानव जोड़े ने परमेश्‍वर के अधिकार के विरुद्ध विद्रोह किया। उठाए गए वाद-विषयों के कारण, यहोवा ने अपनी सर्वसत्ता की एक नयी अभिव्यक्‍ति करने का चुनाव किया। परमेश्‍वर ने एक “वंश” उत्पन्‍न करने का अपना उद्देश्‍य घोषित किया जो सर्प, अर्थात्‌ शैतान को कुचल डालता और मानवजाति के वंशागत पाप के प्रभाव दूर करता। मुख्य “वंश” यीशु मसीह है, और “परमेश्‍वर का राज्य” वह साधन है जो शैतान को पूरी तरह हरा देगा। इस राज्य के माध्यम से यीशु मसीह पृथ्वी पर शासकत्व को यहोवा के नाम में पुनःस्थापित करेगा और सदा के लिए परमेश्‍वर की न्यायपूर्ण सर्वसत्ता को दोषनिवारित करेगा।—उत्पत्ति ३:१५; भजन २:२-९.

६, ७. (क) राज्य कहाँ है, और राजा तथा उसके संगी शासक कौन हैं? (ख) राज्य की प्रजा कौन हैं?

दुष्ट फरीसियों को सम्बोधित यीशु के शब्दों के हिन्दी बाइबल अनुवाद के अनुसार, उसने कहा: “परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे बीच में है।” (लूका १७:२१) क्या यीशु के कहने का यह अर्थ था कि राज्य उन भ्रष्ट लोगों के दुष्ट हृदयों में था? जी नहीं। यीशु ने जो स्वयं उनके बीच में था, अपना उल्लेख भावी राजा के रूप में किया। एक व्यक्‍ति के हृदय में कोई चीज़ होने से कहीं भिन्‍न, परमेश्‍वर का राज्य एक वास्तविक, क्रियाशील सरकार है जिसमें एक शासक और प्रजा है। यह एक स्वर्गीय सरकार है, क्योंकि इसे ‘स्वर्ग का राज्य’ और “परमेश्‍वर का राज्य” दोनों ही कहा गया है। (मत्ती १३:११; लूका ८:१०) दर्शन में, भविष्यवक्‍ता दानिय्येल ने इसके शासक को देखा जो “मनुष्य के सन्तान सा” था। उसे सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के सामने लाया गया और स्थायी “प्रभुता, महिमा और राज्य दिया गया, कि देश-देश और जाति-जाति के लोग और भिन्‍न-भिन्‍न भाषा बोलनेवाले सब उसके अधीन हों।” (दानिय्येल ७:१३, १४) यह राजा कौन है? बाइबल यीशु मसीह को “मनुष्य का पुत्र” कहती है। (मत्ती १२:४०; लूका १७:२६) जी हाँ, यहोवा ने अपने पुत्र, यीशु मसीह को राजा होने के लिए नियुक्‍त किया।

यीशु अकेले ही शासन नहीं करता। उसके साथ १,४४,००० जन हैं जो उसके संगी राजा और याजक होने के लिए “पृथ्वी पर से मोल लिए गए” हैं। (प्रकाशितवाक्य ५:९, १०; १४:१, ३; लूका २२:२८-३०) परमेश्‍वर के राज्य की प्रजा मनुष्यों का एक विश्‍वव्यापी परिवार होगा जो मसीह के नेतृत्व के प्रति अधीनता दिखाते हैं। (भजन ७२:७, ८) लेकिन, हम कैसे निश्‍चित हो सकते हैं कि राज्य वास्तव में परमेश्‍वर की सर्वसत्ता को दोषनिवारित करेगा और हमारी पृथ्वी पर परादीसीय परिस्थितियाँ पुनःस्थापित करेगा?

परमेश्‍वर के राज्य की वास्तविकता

८, ९. (क) हम परमेश्‍वर की राज्य प्रतिज्ञाओं की विश्‍वसनीयता को कैसे सचित्रित कर सकते हैं? (ख) हम राज्य की वास्तविकता के बारे में क्यों निश्‍चित हो सकते हैं?

कल्पना कीजिए कि आग ने आपके घर को बरबाद कर दिया है। अब एक मित्र जिसके पास घर बनाने के साधन हैं आपके घर को फिर से बनाने और आपके परिवार के लिए भोजन प्रदान करने में मदद करने का वचन देता है। यदि उस मित्र ने हमेशा आपसे सच बोला है तो क्या आप उसकी बात पर विश्‍वास नहीं करते? मान लीजिए कि अगले दिन आप काम से घर लौटते और पाते कि मजदूरों ने आग के कारण हुए मलबे को साफ़ करना शुरू कर दिया है और आपके परिवार के लिए भोजन लाया जा चुका है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आप पूरी तरह विश्‍वस्त हो जाते कि समय के साथ-साथ न सिर्फ़ घर ठीक हो जाएगा बल्कि पहले से बेहतर हो जाएगा।

उसी प्रकार, यहोवा हमें राज्य की वास्तविकता का आश्‍वासन देता है। जैसे बाइबल की इब्रानियों नामक पुस्तक में दिखाया गया है, व्यवस्था के अनेक पहलुओं ने राज्य प्रबन्ध का पूर्व संकेत किया। (इब्रानियों १०:१) परमेश्‍वर के राज्य की पूर्व-झलकियाँ पार्थिव इस्राएल राज्य में भी देखने में आयीं। वह कोई साधारण सरकार नहीं थी, क्योंकि उसके शासक “यहोवा के सिंहासन” पर बैठते थे। (१ इतिहास २९:२३) इसके अलावा, यह पूर्वबताया गया था: “जब तक शीलो न आए तब तक न तो यहूदा से राजदण्ड छूटेगा, न उसके वंश से व्यवस्था देनेवाला अलग होगा; और राज्य राज्य के लोग उसके अधीन हो जाएंगे।” (उत्पत्ति ४९:१०) * जी हाँ, परमेश्‍वर की सरकार के स्थायी राजा, यीशु को यहूदा के इस राजकीय वंश में जन्म लेना था।—लूका १:३२, ३३.

१०. (क) परमेश्‍वर के मसीहाई राज्य की बुनियाद कब डाली गयी? (ख) यीशु के भावी सह-शासक पृथ्वी पर कौन-से महत्त्वपूर्ण कार्य का नेतृत्व कर रहे होते?

१० परमेश्‍वर के मसीहाई राज्य की बुनियाद यीशु के प्रेरितों के चुनाव के समय डाली गयी। (इफिसियों २:१९, २०; प्रकाशितवाक्य २१:१४) ये उन १,४४,००० में से पहले थे जो यीशु मसीह के साथ संगी राजाओं के रूप में स्वर्ग में राज्य करते। पृथ्वी पर रहते समय, ये भावी सह-शासक यीशु की इस आज्ञा के सामंजस्य में एक गवाही अभियान का नेतृत्व करते: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो।”—मत्ती २८:१९.

११. आज राज्य-प्रचार कार्य कैसे किया जा रहा है, और यह क्या निष्पन्‍न कर रहा है?

११ शिष्य बनाने की आज्ञा का पालन इस समय अपूर्व पैमाने पर किया जा रहा है। यहोवा के साक्षी पूरी पृथ्वी पर राज्य के सुसमाचार की घोषणा कर रहे हैं, जो यीशु के इन भविष्यसूचक शब्दों के सामंजस्य में है: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती २४:१४) राज्य-प्रचार कार्य के एक पहलू के रूप में, एक विशाल शैक्षिक कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जो परमेश्‍वर के राज्य के नियमों और सिद्धान्तों के अधीन होते हैं वे अभी से ऐसी शान्ति और एकता का अनुभव कर रहे हैं जो मानव सरकारें नहीं प्राप्त कर सकतीं। यह सब इस बात का स्पष्ट प्रमाण देता है कि परमेश्‍वर का राज्य एक वास्तविकता है!

१२. (क) राज्य उद्‌घोषकों को यहोवा के साक्षी कहना क्यों उपयुक्‍त है? (ख) परमेश्‍वर का राज्य मानवी सरकारों से कैसे भिन्‍न है?

१२ यहोवा ने इस्राएलियों को कहा: “तुम मेरे साक्षी हो और मेरे दास हो, जिन्हें मैं ने . . . चुना है।” (यशायाह ४३:१०-१२) “विश्‍वासयोग्य साक्षी,” यीशु ने जोश के साथ राज्य के सुसमाचार की घोषणा की। (प्रकाशितवाक्य १:५; मत्ती ४:१७) सो यह उपयुक्‍त है कि वर्तमान समय के राज्य उद्‌घोषक ईश्‍वरीय रूप से निर्धारित नाम यहोवा के साक्षी धारण करें। लेकिन साक्षी दूसरों के साथ परमेश्‍वर के राज्य के बारे में बात करने के लिए इतना समय और मेहनत क्यों लगाते हैं? वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि राज्य मानवजाति की एकमात्र आशा है। मानव सरकारें आज नहीं तो कल टूट ही जाती हैं, लेकिन परमेश्‍वर का राज्य कभी नहीं टूटेगा। यशायाह ९:६, ७ उसके शासक, यीशु को “शान्ति का राजकुमार” कहता है और आगे बताता है: “उसकी प्रभुता सर्वदा बढ़ती रहेगी, और उसकी शान्ति का अन्त न होगा।” परमेश्‍वर का राज्य मनुष्य की सरकारों के समान नहीं है—आज आए कल गए। वास्तव में, दानिय्येल २:४४ कहता है: “स्वर्ग का परमेश्‍वर, एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा। . . . वह सदा स्थिर रहेगा।”

१३. (क) कौन-सी कुछ समस्याओं को परमेश्‍वर का राज्य सफलतापूर्वक सुलझाएगा? (ख) हम क्यों निश्‍चित हो सकते हैं कि परमेश्‍वर की प्रतिज्ञाएँ पूरी होंगी?

१३ कौन-सा मानव राजा युद्ध, अपराध, बीमारी, भुखमरी, और गृहहीनता का अन्त कर सकता है? इसके अतिरिक्‍त, कौन-सा पार्थिव शासक मरे हुओं का पुनरुत्थान कर सकता है? परमेश्‍वर का राज्य और उसका राजा इन विषयों को सम्बोधित करेंगे। उस उपकरण के समान जो ठीक से नहीं चलता और जिसे बार-बार मरम्मत की ज़रूरत पड़ती है, वह राज्य त्रुटिपूर्ण साबित नहीं होगा। इसके बजाय, परमेश्‍वर का राज्य सफल होगा, क्योंकि यहोवा प्रतिज्ञा करता है: “मेरा वचन . . . जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।” (यशायाह ५५:११) परमेश्‍वर का उद्देश्‍य असफल नहीं होगा, लेकिन राज्य शासन को कब शुरू होना था?

राज्य शासन—कब?

१४. राज्य के सम्बन्ध में यीशु के शिष्यों को क्या ग़लतफ़हमियाँ थीं, लेकिन यीशु अपने शासकत्व के बारे में क्या जानता था?

१४ “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल को राज्य फेर देगा?” यीशु के शिष्यों द्वारा पूछे गए इस प्रश्‍न ने प्रकट किया कि अब तक उन्हें परमेश्‍वर के राज्य का उद्देश्‍य और उसके शासन शुरू होने का नियत समय नहीं मालूम था। इस विषय में अटकलबाज़ी न करने के लिए उन्हें चेतावनी देते हुए, यीशु ने कहा: “उन समयों या कालों को जानना, जिन को पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं।” यीशु जानता था कि पृथ्वी पर उसका शासकत्व भविष्य के लिए रखा गया था, अर्थात्‌ उसके पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के लम्बे अरसे बाद के लिए। (प्रेरितों १:६-११; लूका १९:११, १२, १५) शास्त्र ने यह पूर्वबताया था। वह कैसे?

१५. भजन ११०:१ यीशु के शासकत्व के समय पर कैसे प्रकाश डालता है?

१५ भविष्यसूचक रूप से यीशु को “प्रभु” सम्बोधित करते हुए राजा दाऊद ने कहा: “मेरे प्रभु से यहोवा की वाणी यह है, कि तू मेरे दहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणों की चौकी न कर दूं।” (भजन ११०:१. प्रेरितों २:३४-३६ से तुलना कीजिए।) यह भविष्यवाणी सूचित करती है कि यीशु का शासकत्व उसके स्वर्गारोहण के तुरन्त बाद नहीं शुरू होता। इसके बजाय, वह परमेश्‍वर के दहिने हाथ बैठकर प्रतीक्षा करता। (इब्रानियों १०:१२, १३) यह प्रतीक्षा कब तक चलती? उसका शासकत्व कब शुरू होता? उत्तर पाने में बाइबल हमारी मदद करती है।

१६. सामान्य युग पूर्व ६०७ में क्या हुआ, और यह परमेश्‍वर के राज्य से कैसे सम्बन्धित था?

१६ पूरी पृथ्वी पर वह एकमात्र शहर जिसमें यहोवा ने अपना नाम रखा था यरूशलेम था। (१ राजा ११:३६) वह परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य के प्रतिरूप परमेश्‍वर-अनुमोदित पार्थिव राज्य की राजधानी भी था। इसलिए, सा.यु.पू. ६०७ में बाबुलियों द्वारा यरूशलेम का विनाश अति महत्त्वपूर्ण था। इस घटना ने पृथ्वी पर अपने लोगों के ऊपर परमेश्‍वर के प्रत्यक्ष शासन के एक लम्बे अवरोध की शुरूआत को चिन्हित किया। लगभग छः शताब्दियों बाद, यीशु ने संकेत दिया कि अवरुद्ध शासन की यह अवधि अब तक चल रही थी, क्योंकि उसने कहा: “जब तक अन्य जातियों का समय पूरा न हो, तब तक यरूशलेम अन्य जातियों से रौंदा जाएगा।”—लूका २१:२४.

१७. (क) “अन्य जातियों का समय” क्या है, और उसे कितने अरसे तक चलना था? (ख) “अन्य जातियों का समय” कब आरंभ और समाप्त हुआ?

१७ ‘अन्य जातियों के समय’ के दौरान सांसारिक सरकारों को परमेश्‍वर द्वारा अनुमोदित शासकत्व में अवरोध डालने दिया जाता। वह अवधि सा.यु.पू. ६०७ में यरूशलेम के विनाश से शुरू हुई, और दानिय्येल ने संकेत दिया कि वह “सात समय” (NW) तक चलती। (दानिय्येल ४:२३-२५) वह कितना लम्बा अरसा है? बाइबल दिखाती है कि साढ़े-तीन “समय” १,२६० दिनों के बराबर हैं। (प्रकाशितवाक्य १२:६, १४) उस अवधि का दुगुना, या सात समय, २,५२० दिन होते। लेकिन उस अल्पकालिक अवधि के अन्त में कुछ उल्लेखनीय घटना नहीं हुई। लेकिन, दानिय्येल की भविष्यवाणी पर “दिन पीछे एक वर्ष” लागू करने और सा.यु.पू. ६०७ से २,५२० साल गिनने के द्वारा हम सा.यु. १९१४ पर पहुँचते हैं।—गिनती १४:३४; यहेजकेल ४:६.

१८. राज्य शक्‍ति पाने के बाद शीघ्र ही यीशु ने क्या किया, और इसने पृथ्वी को कैसे प्रभावित किया?

१८ क्या यीशु ने उस समय स्वर्ग में राज्य करना शुरू किया? हाँ कहने के शास्त्रीय कारणों की चर्चा अगले अध्याय में की जाएगी। निःसंदेह, यीशु के शासन की शुरूआत पृथ्वी पर तात्कालिक शान्ति द्वारा चिन्हित नहीं होती। प्रकाशितवाक्य १२:७-१२ दिखाता है कि राज्य प्राप्त करने के तुरन्त बाद यीशु शैतान और उसके पिशाच स्वर्गदूतों को स्वर्ग से निकाल फेंकता। इसका अर्थ पृथ्वी के लिए हाय होता, लेकिन यह पढ़ना आनन्दप्रद है कि इब्‌लीस के पास “थोड़ा ही समय और बाकी है।” जल्द ही हम आनन्द मना सकेंगे, सिर्फ़ इसलिए नहीं कि परमेश्‍वर का राज्य शासन करता है बल्कि इसलिए भी कि वह पृथ्वी के लिए और आज्ञाकारी मानवजाति के लिए आशिषें लाएगा। (भजन ७२:७, ८) हम कैसे जानते हैं कि यह जल्द होगा?

[फुटनोट]

^ पैरा. 9 शीलो नाम का अर्थ है “वह जिसका यह है; वह जो इसका हक़दार है।” समय आने पर, यह स्पष्ट हो गया कि “यहूदा के गोत्र का वह सिंह” यीशु मसीह ही “शीलो” था। (प्रकाशितवाक्य ५:५) कुछ यहूदी भावानुवादों ने “शीलो” शब्द के बदले में “मसीहा” या “राजा मसीहा” डाल दिया।

अपने ज्ञान को जाँचिए

परमेश्‍वर का राज्य क्या है, और वह कहाँ से शासन करता है?

राज्य में कौन शासन करता है, और उसकी प्रजा कौन हैं?

यहोवा ने हमें कैसे आश्‍वस्त किया है कि उसका राज्य एक वास्तविकता है?

“अन्य जातियों का समय” कब आरंभ और समाप्त हुआ?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 94 पर बक्स]

परमेश्‍वर के राज्य से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ

• यहोवा एक “वंश” उत्पन्‍न करने का अपना उद्देश्‍य घोषित करता है जो सर्प, शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस का सिर कुचलता।—उत्पत्ति ३:१५.

• सामान्य युग पूर्व १९४३ में, यहोवा संकेत देता है कि यह “वंश” इब्राहीम का मानव वंशज होगा।—उत्पत्ति १२:१-३, ७; २२:१८.

• सामान्य युग पूर्व १५१३ में इस्राएल को दी गयी व्यवस्था वाचा “आनेवाली अच्छी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब” प्रदान करती है।—निर्गमन २४:६-८; इब्रानियों १०:१.

• पार्थिव इस्राएल राज्य सा.यु.पू. १११७ में शुरू होता है, और बाद में दाऊद के वंश में जारी रहता है।—१ शमूएल ११:१५; २ शमूएल ७:८, १६.

• यरूशलेम का विनाश सा.यु.पू. ६०७ में होता है, और “अन्य जातियों का समय” आरंभ होता है।—२ राजा २५:८-१०, २५, २६; लूका २१:२४.

• सामान्य युग २९ में, राजा-नियुक्‍त के रूप में यीशु को अभिषिक्‍त किया जाता है और वह अपनी पार्थिव सेवकाई शुरू करता है।—मत्ती ३:१६, १७; ४:१७; २१:९-११.

• सामान्य युग ३३ में, यीशु स्वर्ग जाता है, वहाँ अपने शासन के शुरू होने तक परमेश्‍वर के दहिने हाथ बैठकर प्रतीक्षा करने के लिए।—प्रेरितों ५:३०, ३१; इब्रानियों १०:१२, १३.

• यीशु को सा.यु. १९१४ में स्वर्गीय राज्य में सत्तारूढ़ किया जाता है, जब “अन्य जातियों का समय” समाप्त होता है।—प्रकाशितवाक्य ११:१५.

• शैतान और उसके पिशाचों को पृथ्वी के प्रतिवेश में फेंक दिया जाता है और मानवजाति के लिए अधिक हाय लाते हैं।—प्रकाशितवाक्य १२:९-१२.

• यीशु परमेश्‍वर के राज्य के सुसमाचार के विश्‍वव्यापी प्रचार का निरीक्षण करता है।—मत्ती २४:१४; २८:१९, २०.