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परमेश्‍वर दुःख को अनुमति क्यों देता है?

परमेश्‍वर दुःख को अनुमति क्यों देता है?

अध्याय ८

परमेश्‍वर दुःख को अनुमति क्यों देता है?

१, २. मानव दुःख के प्रति अकसर लोग कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं?

जब विपत्तियाँ आ पड़ती हैं, और जान-माल को हानि पहुँचाती हैं, तो बहुत-से लोग यह नहीं समझ पाते कि ऐसी भयंकर बातें क्यों होती हैं। दूसरे अपराध और हिंसा के फैलाव, क्रूरता, और निर्दयता से व्याकुल हैं। आपने भी शायद सोचा हो, ‘परमेश्‍वर दुःख को अनुमति क्यों देता है?’

क्योंकि उन्हें इस प्रश्‍न का कोई संतोषप्रद उत्तर नहीं मिला है, अनेक लोगों का परमेश्‍वर पर से विश्‍वास उठ गया है। उन्हें लगता है कि उसे मानवजाति में दिलचस्पी नहीं है। दूसरे जो दुःख को जीवन की वास्तविकता मानकर स्वीकार करते हैं कटु हो जाते हैं और मानव समाज में सब बुराई के लिए परमेश्‍वर पर दोष लगाते हैं। यदि आपकी भी ऐसी भावनाएँ रही हैं, तो संभवतः आपको इस विषय पर बाइबल के कथनों में बहुत दिलचस्पी होगी।

दुःख परमेश्‍वर की ओर से नहीं है

३, ४. हम क्यों विश्‍वस्त हो सकते हैं कि बुराई और दुःख यहोवा की ओर से नहीं हैं?

बाइबल हमें आश्‍वस्त करती है कि जो दुःख हम अपने चारों ओर देखते हैं वह यहोवा परमेश्‍वर की ओर से नहीं है। उदाहरण के लिए, मसीही शिष्य याकूब ने लिखा: “जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्‍वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्‍वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है।” (याकूब १:१३) इस कारण, मानवजाति को पीड़ित कर रहे अनेकों कष्ट परमेश्‍वर की ओर से नहीं आ सकते। वह लोगों को स्वर्गीय जीवन के लिए योग्य बनाने के लिए उन पर परीक्षाएँ नहीं लाता, न ही वह लोगों को उन कुकर्मों के लिए पीड़ित करता है जो तथाकथित रूप से उन्होंने पिछले जन्म में किए थे।—रोमियों ६:७.

इसके अलावा, जबकि परमेश्‍वर के या मसीह के नाम पर अनेक भयंकर बातें हुई हैं, फिर भी बाइबल में ऐसा कुछ नहीं है जो यह दिखाए कि दोनों में से किसी ने भी कभी ऐसे कार्यों को स्वीकृति दी हो। परमेश्‍वर और मसीह को उन लोगों से कुछ लेना-देना नहीं है जो उनकी सेवा करने का दावा तो करते हैं परन्तु छल-कपट, लूट-मार, और अन्य अनेक ऐसे कार्य करते हैं जो मानव दुःख लाते हैं। असल में, “दुष्ट के चालचलन से यहोवा को घृणा आती है।” परमेश्‍वर “दुष्टों से दूर रहता है।”—नीतिवचन १५:९, २९.

५. यहोवा के कुछ गुण क्या हैं, और वह अपनी सृष्टि के बारे में कैसा महसूस करता है?

बाइबल यहोवा को “अत्यन्त करुणामय और दयालु” बताती है। (याकूब ५:११, NHT) यह घोषणा करती है कि “यहोवा न्याय से प्रीति रखता” है। (भजन ३७:२८; यशायाह ६१:८) वह प्रतिकारी नहीं है। वह करुणा के साथ अपनी सृष्टि की परवाह करता है और उन सब को वह देता है जो उनके हित के लिए सर्वोत्तम है। (प्रेरितों १४:१६, १७) यहोवा ने ऐसा पृथ्वी पर जीवन के आरंभ से किया है।

एक परिपूर्ण शुरूआत

६. कैसे कुछ कल्प-कथाएँ मानवजाति के आरंभिक इतिहास की ओर इशारा करती हैं?

हम सब दुःख-दर्द देखने और सहने के आदी हैं। इसलिए एक ऐसे समय की कल्पना करना शायद मुश्‍किल लगे जब दुःख नहीं होगा, लेकिन मानव इतिहास की शुरूआत में वैसा ही था। कुछ राष्ट्रों की कल्प-कथाएँ भी ऐसी ही सुखी शुरूआत की ओर इशारा करती हैं। यूनानी पौराणिकी में, ‘मनुष्य के पाँच युगों’ में से पहले को “स्वर्ण युग” कहा गया। उस में मनुष्य कठिन परिश्रम, पीड़ा, और बुढ़ापे के प्रकोप से मुक्‍त सुखी जीवन जीते थे। चीनी कहते हैं कि पौराणिक पीत सम्राट (ह्वान्‌-डी) के राज्य में लोग शान्ति से रहते थे, और मौसम तथा जंगली पशुओं के साथ भी मेल का आनन्द उठाते थे। फ़ारसी, मिस्री, तिब्बती, पेरूवासी, और मॆक्सिकोवासी, सभी के पास मानवजाति के इतिहास की शुरूआत में सुख और परिपूर्णता के समय के बारे में कल्प-कथाएँ हैं।

७. परमेश्‍वर ने पृथ्वी और मनुष्यजाति की सृष्टि क्यों की?

राष्ट्रों की पौराणिक कथाएँ मानव इतिहास के सबसे पुराने अभिलेख, बाइबल को मात्र दोहराती हैं। यह हमें बताती है कि परमेश्‍वर ने प्रथम मानव जोड़े, आदम और हव्वा को अदन की वाटिका नामक परादीस में रखा और उन्हें आज्ञा दी: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो।” (उत्पत्ति १:२८) हमारे प्रथम माता-पिता को परिपूर्णता का आनन्द प्राप्त था और उनके पास पूरी पृथ्वी को एक परादीस बनते देखने की प्रत्याशा थी, जो स्थायी शान्ति और सुख में जी रहे परिपूर्ण मानव परिवार से बसी होती। इस उद्देश्‍य से परमेश्‍वर ने पृथ्वी और मनुष्यजाति की सृष्टि की थी।—यशायाह ४५:१८.

एक दुर्भावपूर्ण चुनौती

८. आदम और हव्वा से किस आज्ञा को मानने की अपेक्षा की गयी थी, लेकिन क्या हुआ?

परमेश्‍वर के अनुग्रह में रहने के लिए आदम और हव्वा को ‘भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष’ का फल नहीं खाना था। (उत्पत्ति २:१६, १७) यदि उन्होंने यहोवा का नियम माना होता, तो मानव जीवन को बिगाड़ने के लिए कोई दुःख न होता। परमेश्‍वर की आज्ञा मानने के द्वारा उन्होंने यहोवा के प्रति अपने प्रेम और निष्ठा को दिखाया होता। (१ यूहन्‍ना ५:३) लेकिन जैसा हमने अध्याय ६ में सीखा, ऐसा नहीं हुआ। शैतान के आग्रह पर, हव्वा ने उस वृक्ष का फल खा लिया। बाद में, आदम ने भी वह वर्जित फल खाया।

९. शैतान ने यहोवा से सम्बन्धित कौन-सा वाद-विषय खड़ा किया?

जो हुआ क्या आप उसकी गंभीरता को समझते हैं? शैतान परम प्रधान के रूप में यहोवा के पद पर हमला कर रहा था। यह कहने के द्वारा कि “तुम निश्‍चय न मरोगे,” इब्‌लीस ने परमेश्‍वर के इन शब्दों का खण्डन किया, ‘तू अवश्‍य मर जाएगा।’ उसके बाद शैतान ने जो कहा उससे सूचित हुआ कि यहोवा आदम और हव्वा को परमेश्‍वर के तुल्य बनने की संभावना से अनजान रख रहा था, जिससे उन्हें भले और बुरे का निर्णय करने के लिए परमेश्‍वर की ज़रूरत नहीं होती। अतः शैतान की चुनौती ने विश्‍व सर्वसत्ताधारी के रूप में यहोवा के पद की न्यायपूर्णता और वैधता पर प्रश्‍न उठाया।—उत्पत्ति २:१७; ३:१-६.

१०. मनुष्यों के सम्बन्ध में शैतान ने क्या संकेत किए?

१० शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस ने इस बात की ओर भी संकेत किया कि लोग केवल तब तक यहोवा के आज्ञाकारी रहेंगे जब तक कि परमेश्‍वर की आज्ञा मानने से उनको लाभ है। दूसरे शब्दों में, मानव खराई पर प्रश्‍न उठाया गया। शैतान ने आरोप लगाया कि स्वेच्छा से कोई भी मनुष्य परमेश्‍वर के प्रति निष्ठा नहीं रखेगा। शैतान का यह दुर्भावपूर्ण दावा अय्यूब के बारे में बाइबल वृत्तान्त में स्पष्ट रूप से प्रकट किया गया है। अय्यूब यहोवा का एक विश्‍वासी सेवक था जो सा.यु.पू. १६०० से पहले किसी समय एक बड़ी परीक्षा से गुज़रा। जब आप अय्यूब की पुस्तक के पहले दो अध्याय पढ़ते हैं, तब आप मानव दुःख के कारण की और परमेश्‍वर उसे क्यों अनुमति देता है इसकी अंतर्दृष्टि पा सकते हैं।

११. अय्यूब किस क़िस्म का मनुष्य था, लेकिन शैतान ने क्या आरोप लगाया?

११ “खरा और सीधा” मनुष्य, अय्यूब शैतान के हमले का निशाना बना। पहले, शैतान ने यह प्रश्‍न उठाकर अय्यूब पर बुरे अभिप्रायों का दोष लगाया, “क्या अय्यूब परमेश्‍वर का भय बिना लाभ के मानता है?” फिर, इब्‌लीस ने यह आरोप लगाने के द्वारा कि अय्यूब का बचाव करने और उसे आशिष देने के द्वारा यहोवा ने उसकी निष्ठा ख़रीद ली थी, चतुराई से परमेश्‍वर और अय्यूब दोनों को बदनाम किया। “परन्तु अब,” शैतान ने यहोवा को चुनौती दी, “अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा।”—अय्यूब १:८-११.

१२. (क) कौन-से प्रश्‍नों का उत्तर केवल तब ही मिल सकता था यदि परमेश्‍वर शैतान को अय्यूब की परीक्षा लेने की अनुमति देता? (ख) अय्यूब की परीक्षा का परिणाम क्या हुआ?

१२ वह सब अच्छी चीज़ें जो अय्यूब को परमेश्‍वर की ओर से मिलती थीं क्या सिर्फ़ उनके लिए वह यहोवा की सेवा कर रहा था? क्या परीक्षा के अधीन अय्यूब की खराई बनी रहती? और, क्या यहोवा को अपने सेवक पर इतना विश्‍वास था कि उसे परीक्षा से गुज़रने देता? इन प्रश्‍नों का उत्तर मिल सकता था यदि यहोवा शैतान को अय्यूब पर एक अति कठिन परीक्षा लाने की अनुमति देता। परमेश्‍वर द्वारा अनुमत परीक्षा के अधीन अय्यूब का विश्‍वासयोग्य मार्ग, जैसा अय्यूब की पुस्तक में बताया गया है, यहोवा की धार्मिकता और मनुष्य की खराई का पूर्ण दोषनिवारण साबित हुआ।—अय्यूब ४२:१, २, १२.

१३. जो अदन में और अय्यूब के साथ हुआ उसमें हम कैसे सम्मिलित हैं?

१३ लेकिन, जो अदन की वाटिका में और मनुष्य अय्यूब के साथ हुआ उसका और गहरा अर्थ है। शैतान द्वारा उठाए गए वाद-विषय पूरी मानवजाति को सम्मिलित करते हैं, जिसमें आज हम भी शामिल हैं। परमेश्‍वर के नाम को बदनाम किया गया, और उसकी सर्वसत्ता को चुनौती दी गयी। परमेश्‍वर की सृष्टि, मनुष्य के खरेपन पर प्रश्‍न उठाया गया। इन वाद-विषयों को निपटाया जाना था।

वाद-विषयों को कैसे निपटाया जाए

१४. दुर्भावपूर्ण चुनौती का सामना करने पर एक आरोपित व्यक्‍ति शायद क्या करे?

१४ दृष्टान्त के रूप में, सोचिए कि आप एक प्रेममय जनक हैं, आपका एक सुखी परिवार है और उसमें कई बच्चे हैं। अब आपका एक पड़ोसी आप के ऊपर एक ख़राब जनक होने का दोष लगाता है और इस झूठ को फैलाता है। तब क्या यदि वह पड़ोसी कहता है कि आपके बच्चे आपसे प्रेम नहीं करते, कि वे आपके साथ रहते हैं क्योंकि वे उससे बेहतर स्थिति के बारे में नहीं जानते, और कि यदि कोई उनको रास्ता दिखा दे तो वे चले जाएँगे। आप शायद कहें, ‘बिलकुल ग़लत!’ जी हाँ, लेकिन आप साबित कैसे करेंगे? कुछ माता-पिता शायद क्रोध में आकर प्रतिक्रिया दिखाएँ। ऐसा हिंसक जवाब ज़्यादा समस्याएँ उत्पन्‍न करने के साथ-साथ उस झूठ का भी समर्थन करेगा। ऐसी समस्या से निपटने का एक संतोषप्रद तरीक़ा होगा अपने दोष लगानेवाले को उसका दावा साबित करने का अवसर दिया जाए और अपने बच्चों को यह दिखाने का अवसर दिया जाए कि वे आपसे सचमुच प्रेम करते हैं।

१५. यहोवा ने शैतान की चुनौती से कैसे निपटने का चुनाव किया?

१५ यहोवा प्रेममय जनक के समान है। आदम और हव्वा की तुलना बच्चों से की जा सकती है, और शैतान झूठे पड़ोसी की भूमिका में ठीक बैठता है। बुद्धिमानी से परमेश्‍वर ने शैतान, आदम और हव्वा को तुरन्त नाश नहीं किया बल्कि इन कुकर्मियों को कुछ समय के लिए जीते रहने की अनुमति दी। इसने हमारे प्रथम माता-पिता को मानव परिवार शुरू करने का अवसर दिया, और इब्‌लीस को यह साबित करने का मौक़ा दिया है कि उसका दावा सही था या नहीं, ताकि वाद-विषय निपटाए जा सकें। लेकिन, शुरूआत से ही परमेश्‍वर जानता था कि कुछ मनुष्य उसके प्रति निष्ठा रखेंगे और इस प्रकार शैतान को झूठा साबित करेंगे। हम कितने कृतज्ञ हैं कि यहोवा ने उन लोगों को आशिष और मदद देना जारी रखा है जो उससे प्रेम करते हैं!—२ इतिहास १६:९; नीतिवचन १५:३.

क्या साबित हुआ है?

१६. संसार शैतान के वश में कैसे आ गया है?

१६ लगभग सारे मानव इतिहास के दौरान, शैतान के पास मानवजाति पर प्रभुता करने की अपनी युक्‍तियाँ चलाने की पूरी छूट रही है। अन्य बातों के साथ-साथ, उसने राजनैतिक शक्‍तियों पर प्रभाव डाला है और ऐसे धर्मों को बढ़ावा दिया है जो उपासना को यहोवा की ओर निर्दिष्ट करने के बजाय चालाकी से उसकी ओर निर्दिष्ट करते हैं। अतः इब्‌लीस ‘इस संसार का ईश्‍वर’ बन गया है, और उसे “इस जगत का सरदार” कहा गया है। (२ कुरिन्थियों ४:४; यूहन्‍ना १२:३१) सचमुच, “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (१ यूहन्‍ना ५:१९) क्या इसका यह अर्थ है कि शैतान ने अपना दावा साबित कर दिया है कि वह पूरी मानवजाति को यहोवा परमेश्‍वर से दूर कर सकता है? निश्‍चित ही नहीं! जबकि यहोवा ने शैतान को अस्तित्व में रहने की अनुमति दी है, साथ ही साथ उसने अपने उद्देश्‍य की पूर्ति में कार्य जारी रखा है। तो, बाइबल परमेश्‍वर द्वारा दुष्टता की अनुमति के सम्बन्ध में क्या प्रकट करती है?

१७. दुष्टता और दुःख के कारण के सम्बन्ध में हमें मन में क्या रखना चाहिए?

१७ दुष्टता और दुःख यहोवा की ओर से नहीं आते। चूँकि शैतान इस संसार का शासक है और इस रीति-व्यवस्था का ईश्‍वर है, वह और उसका समर्थन करनेवाले मानव समाज की वर्तमान स्थिति के, और मानवजाति ने जितनी मुसीबतें सही हैं उसके, ज़िम्मेदार हैं। कोई भी यह कहने में सही नहीं होगा कि ऐसे कष्ट का कारण परमेश्‍वर है।—रोमियों ९:१४.

१८. यहोवा द्वारा दुष्टता और दुःख की अनुमति ने परमेश्‍वर से स्वतंत्रता के विचार के सम्बन्ध में क्या साबित किया है?

१८ यहोवा द्वारा दुष्टता और दुःख की अनुमति ने यह साबित कर दिया है कि परमेश्‍वर से स्वतंत्रता एक बेहतर संसार नहीं लाया है। यह अविवाद्य है कि इतिहास एक के बाद एक संकट द्वारा चिन्हित रहा है। इसका कारण यह है कि मनुष्यों ने अपने स्वतंत्र मार्ग पर चलने का चुनाव किया है और परमेश्‍वर के वचन एवं इच्छा के लिए कोई सच्चा सम्मान नहीं दिखाया है। जब यहोवा के प्राचीन लोग और उनके अगुवे अविश्‍वासी होकर “अपने अपने मार्ग” पर चले और उसके वचन को ठुकराया, तो परिणाम अनर्थकारी थे। अपने भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह के द्वारा परमेश्‍वर ने उन से कहा: “बुद्धिमान मनुष्य लज्जित कर दिए गए हैं, वे हताश हो गए और पकड़े गए हैं; देखो, उन्होंने यहोवा के वचन को त्याग दिया है, और उनमें कैसी बुद्धि है?” (यिर्मयाह ८:५, ६, ९, NHT) यहोवा के स्तरों पर चलने में असफल होने के कारण, सामान्य रूप से मानवजाति एक अशान्त सागर में हचकोले खाती हुई बिन पतवार की नय्या के समान हो गयी है।

१९. इस बात का क्या प्रमाण है कि शैतान सभी मनुष्यों को परमेश्‍वर के विरुद्ध नहीं कर सकता?

१९ परमेश्‍वर द्वारा दुष्टता और दुःख की अनुमति ने यह भी साबित किया है कि शैतान पूरी मानवजाति को यहोवा से दूर करने में समर्थ नहीं हुआ है। इतिहास दिखाता है कि हमेशा ऐसे व्यक्‍ति रहे हैं जो परमेश्‍वर के प्रति वफ़ादार रहे हैं चाहे उन पर कैसी-भी परीक्षाएँ या विपत्तियाँ क्यों न लायी गयी हों। शताब्दियों के दौरान, यहोवा का सामर्थ्य उसके सेवकों के लिए प्रदर्शित हुआ है, और उसका नाम पूरी पृथ्वी पर घोषित किया गया है। (निर्गमन ९:१६; १ शमूएल १२:२२) इब्रानियों अध्याय ११ हमें एक के बाद एक अनेक विश्‍वासी जनों के बारे में बताता है, जिसमें हाबील, हनोक, नूह, इब्राहीम, और मूसा सम्मिलित हैं। इब्रानियों १२:१ उन्हें ‘गवाहों का बड़ा बादल’ कहता है। वे यहोवा पर अटल विश्‍वास के उदाहरण थे। आधुनिक समय में भी, अनेक लोगों ने परमेश्‍वर के प्रति अटूट खराई रखते हुए अपनी जान दी है। अपने विश्‍वास और प्रेम के द्वारा, ऐसे व्यक्‍ति निर्णायक रूप से साबित करते हैं कि शैतान सभी मनुष्यों को परमेश्‍वर के विरुद्ध नहीं कर सकता।

२०. यहोवा द्वारा दुष्टता और दुःख को जारी रहने की अनुमति ने परमेश्‍वर और मानवजाति के सम्बन्ध में क्या साबित किया है?

२० आख़िर में, यहोवा द्वारा दुष्टता और दुःख को जारी रहने की अनुमति ने यह प्रमाण दिया है कि मानवजाति के अनन्त आशिष और सुख के लिए केवल यहोवा, सृष्टिकर्ता के पास मानवजाति पर शासन करने की योग्यता और अधिकार है। शताब्दियों से मानवजाति ने अनेक प्रकार की सरकारें बनाकर देखी हैं। लेकिन परिणाम क्या हुआ है? आज राष्ट्रों के सामने जो जटिल समस्याएँ और संकट हैं वे इस बात का प्रचुर प्रमाण हैं कि जैसा बाइबल बताती है, सचमुच “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।” (सभोपदेशक ८:९) केवल यहोवा हमारे बचाव के लिए आ सकता है और अपना आरंभिक उद्देश्‍य पूरा कर सकता है। वह यह कैसे करेगा, और कब?

२१. शैतान के साथ क्या किया जाएगा, और इसे पूरा करने के लिए किसे प्रयोग किया जाएगा?

२१ आदम और हव्वा के शैतान की युक्‍ति में फँसने के तुरन्त बाद, परमेश्‍वर ने उद्धार के माध्यम के सम्बन्ध में अपना उद्देश्‍य घोषित किया। शैतान के सम्बन्ध में यहोवा ने यह घोषणा की: “मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्‍न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।” (उत्पत्ति ३:१५) उस घोषणा ने यह गारंटी दी कि इब्‌लीस को सर्वदा अपने कुकर्म करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। मसीहाई राज्य के राजा के रूप में प्रतिज्ञात वंश, अर्थात्‌ यीशु मसीह ‘शैतान का सिर कुचल’ डालेगा। जी हाँ, “शीघ्र” ही, यीशु विद्रोही शैतान को रौंद डालेगा!—रोमियों १६:२०.

आप क्या करेंगे?

२२. (क) आपको किन प्रश्‍नों का सामना करना है? (ख) जबकि शैतान अपना गुस्सा उन पर उतारता है जो परमेश्‍वर के प्रति वफ़ादार हैं, वे किस बारे में निश्‍चित हो सकते हैं?

२२ सम्मिलित वाद-विषयों को जानते हुए, आप किसकी ओर खड़े होंगे? क्या आप अपने कार्यों से साबित करेंगे कि आप यहोवा के एक निष्ठावान समर्थक हैं? चूँकि शैतान जानता है कि उसका समय थोड़ा है, वह उन पर अपना गुस्सा उतारने की भरसक कोशिश करेगा जो परमेश्‍वर के प्रति खराई रखना चाहते हैं। (प्रकाशितवाक्य १२:१२) लेकिन आप मदद के लिए परमेश्‍वर की ओर देख सकते हैं क्योंकि ‘प्रभु [“यहोवा,” NW] भक्‍तों को परीक्षा में से निकाल लेना जानता है।’ (२ पतरस २:९) वह आपके सहन से बाहर परीक्षा में आपको नहीं पड़ने देगा, और वह निकास भी करेगा ताकि आप परीक्षाओं को सह सकें।—१ कुरिन्थियों १०:१३.

२३. विश्‍वास के साथ हम किस बात की उत्सुकता से प्रत्याशा कर सकते हैं?

२३ विश्‍वास के साथ, आइए उस समय की उत्सुकता से प्रत्याशा करें जब राजा यीशु मसीह शैतान और उसके सभी समर्थकों के विरुद्ध कार्यवाही करेगा। (प्रकाशितवाक्य २०:१-३) यीशु ऐसे सभी लोगों को मिटा देगा जो उन पीड़ाओं और अशान्ति की ज़िम्मेदारी के सहभागी हैं जो मानवजाति ने सही हैं। उस समय तक, एक ख़ासकर पीड़ादायी दुःख है हमारे प्रिय जनों को मृत्यु में खोना। यह जानने के लिए कि उनको क्या होता है अगला अध्याय पढ़िए।

अपने ज्ञान को जाँचिए

हम कैसे जानते हैं कि मानव दुःख यहोवा से नहीं आता?

अदन में शैतान ने कौन-से वाद-विषय खड़े किए और जो अय्यूब के समय में स्पष्ट किए गए?

परमेश्‍वर द्वारा दुःख की अनुमति ने क्या साबित किया है?

[अध्ययन के लिए सवाल]