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मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्‍वर ने जो किया है

मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्‍वर ने जो किया है

अध्याय ७

मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्‍वर ने जो किया है

१, २. (क) एक रोमी सेनापति ने कैसे यह जाना कि परमेश्‍वर का पुत्र कौन है? (ख) यहोवा ने यीशु को क्यों मरने दिया?

लगभग २,००० वर्ष पहले, वसन्त की एक दोपहर को एक रोमी सेनापति ने तीन पुरुषों को धीमी, दर्दनाक मौत मरते देखा। उस सिपाही ने ख़ासकर उनमें से एक पर ध्यान दिया—यीशु मसीह। यीशु को एक काठ के स्तम्भ पर कीलों से ठोंका गया था। जैसे उसकी मृत्यु की घड़ी आयी तो दोपहर के आकाश पर अन्धेरा छा गया। जब वह मरा, तो पृथ्वी ज़ोर से हिली, और वह सिपाही बोल उठा: “सचमुच यह मनुष्य, परमेश्‍वर का पुत्र था।”—मरकुस १५:३९.

परमेश्‍वर का पुत्र! वह सिपाही सही था। उसने अभी-अभी पृथ्वी पर कभी घटनेवाली सबसे महत्त्वपूर्ण घटना देखी थी। पिछले अवसरों पर, स्वयं परमेश्‍वर ने यीशु को अपना प्रिय पुत्र कहा था। (मत्ती ३:१७; १७:५) यहोवा ने अपने पुत्र को क्यों मरने दिया था? क्योंकि मनुष्यजाति को पाप और मृत्यु से बचाने का यह परमेश्‍वर का माध्यम था।

एक ख़ास उद्देश्‍य के लिए चुना गया

३. यह क्यों उपयुक्‍त था कि मानवजाति के सम्बन्ध में एक ख़ास उद्देश्‍य के लिए परमेश्‍वर का एकलौता पुत्र चुना जाए?

जैसा कि हमने इस पुस्तक में पहले सीखा है, यीशु का एक मानवपूर्व अस्तित्व था। उसे परमेश्‍वर का ‘एकलौता पुत्र’ कहा गया है क्योंकि यहोवा ने उसे स्वयं सृजा था। उसके बाद अन्य सभी वस्तुओं को अस्तित्व में लाने के लिए परमेश्‍वर ने यीशु को प्रयोग किया। (यूहन्‍ना ३:१८; कुलुस्सियों १:१६) यीशु को ख़ासकर मनुष्यजाति पसन्द थी। (नीतिवचन ८:३०, ३१) इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं कि जब मानवजाति मृत्युदण्ड के अधीन आ गयी, तब यहोवा ने अपने एकलौते पुत्र को एक ख़ास उद्देश्‍य को पूरा करने के लिए चुना!

४, ५. यीशु के पृथ्वी पर आने से पहले बाइबल ने मसीहाई वंश के बारे में क्या प्रकट किया?

अदन की वाटिका में आदम, हव्वा, और शैतान पर न्यायिक दण्ड सुनाते हुए, परमेश्‍वर ने भावी बचवैये का उल्लेख एक “वंश” के रूप में किया। यह वंश, या संतान उन भयंकर बुराइयों को मिटाने के लिए आता जो शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस, उसी ‘पुराने सांप’ ने उत्पन्‍न की थीं। असल में, वह प्रतिज्ञात वंश शैतान को और उन सभी को जो उसके पीछे चलते हैं, चूर-चूर करता।—उत्पत्ति ३:१५; १ यूहन्‍ना ३:८; प्रकाशितवाक्य १२:९.

शताब्दियों के दौरान, परमेश्‍वर ने उस वंश के बारे में, जिसे मसीहा भी कहा जाता है, धीरे-धीरे अधिक जानकारी प्रकट की। जैसे पृष्ठ ३७ पर दी गयी तालिका में दिखाया गया है, बहुत-सी भविष्यवाणियों ने पृथ्वी पर उसके जीवन के अनेक पहलुओं के बारे में वर्णन किया। उदाहरण के लिए, परमेश्‍वर के उद्देश्‍य में अपनी भूमिका अदा करने के लिए उसे भयंकर दुर्व्यवहार सहना था।—यशायाह ५३:३-५.

मसीहा क्यों मरता

६. दानिय्येल ९:२४-२६ के अनुसार, मसीहा क्या पूरा करता, और कैसे?

दानिय्येल ९:२४-२६ में अभिलिखित भविष्यवाणी ने पूर्वबताया कि मसीहा—परमेश्‍वर का अभिषिक्‍त जन—एक महान उद्देश्‍य पूरा करता। वह हमेशा के लिए ‘अपराध समाप्त, पाप बन्द, अधर्म का प्रायश्‍चित्त, और धार्मिकता स्थापित’ (NHT) करने के लिए पृथ्वी पर आता। मसीहा विश्‍वासी मानवजाति से मृत्यु का दण्ड हटाता। लेकिन वह यह कैसे करता? यह भविष्यवाणी समझाती है कि वह “काटा” या मार डाला जाता।

७. यहूदी पशु बलि क्यों चढ़ाते थे, और इन्होंने किस बात का पूर्व संकेत किया?

प्राचीन इस्राएली ग़लती के लिए प्रायश्‍चित्त की धारणा से परिचित थे। मूसा के द्वारा परमेश्‍वर ने उन्हें जो व्यवस्था दी थी उसके अधीन अपनी उपासना में, वे नियमित रूप से पशु बलि चढ़ाते थे। इन बलिदानों ने इस्राएल के लोगों को इस बात की याद दिलायी कि मनुष्यों को अपने पापों के प्रायश्‍चित्त के लिए, अथवा उन्हें ढाँपने के लिए किसी चीज़ की ज़रूरत है। प्रेरित पौलुस ने उस सिद्धान्त का सार इस प्रकार दिया: “बिना लोहू बहाए क्षमा नहीं होती।” (इब्रानियों ९:२२) मसीही मूसा की व्यवस्था और उसकी माँगों के अधीन नहीं हैं, जैसे बलिदान की माँग। (रोमियों १०:४; कुलुस्सियों २:१६, १७) वे यह भी जानते हैं कि पशु बलि पापों की स्थायी और पूर्ण क्षमा नहीं प्रदान कर सकते। इसके बजाय, इन बलिरूपी चढ़ावों ने एक कहीं अधिक मूल्यवान बलिदान—मसीहा, या मसीह के बलिदान का पूर्व संकेत किया। (इब्रानियों १०:४, १०. गलतियों ३:२४ से तुलना कीजिए।) फिर भी, आप शायद पूछें, ‘क्या मसीहा का मरना वास्तव में आवश्‍यक था?’

८, ९. आदम और हव्वा ने कौन-सी बहुमूल्य चीज़ें खो दीं, और उनके कार्यों ने उनके वंशजों को कैसे प्रभावित किया?

जी हाँ, यदि मानवजाति को बचाया जाना था तो मसीहा को मरना ही था। कारण समझने के लिए हमें अदन की वाटिका को याद करना है और जो आदम और हव्वा ने परमेश्‍वर के विरुद्ध विद्रोह करने पर खोया उसकी विशालता को समझने की कोशिश करनी है। उनके सामने अनन्त जीवन रखा गया था! परमेश्‍वर की संतान होने के कारण, उन्हें उसके साथ सीधे सम्बन्ध का आनन्द भी प्राप्त था। लेकिन जब उन्होंने यहोवा के शासकत्व को अस्वीकार किया, तब उन्होंने वह सब खो दिया और मानवजाति पर पाप और मृत्यु ले आए।—रोमियों ५:१२.

यह ऐसा था मानो हमारे प्रथम माता-पिता ने बड़ा धन उड़ा दिया हो और अपने आपको कर्ज़ की खाई में गिरा दिया हो। आदम और हव्वा ने वह कर्ज़ आगे अपनी संतान को दिया। क्योंकि हम परिपूर्ण और पापरहित नहीं जन्मे थे, हम सभी पापमय और मरणशील हैं। जब हम बीमार पड़ते हैं या कोई ऐसी चोट पहुँचानेवाली बात कह देते हैं जिसे काश हम वापस ले सकते, तब हम अपने वंशागत कर्ज़—मानव अपरिपूर्णता—के प्रभावों का अनुभव कर रहे होते हैं। (रोमियों ७:२१-२५) हमारी एकमात्र आशा है जो आदम ने खोया उसे पुनःप्राप्त करना। लेकिन, हम परिपूर्ण मानव जीवन कमा नहीं सकते। चूँकि सभी अपरिपूर्ण मनुष्य पाप करते हैं, हम सभी मृत्यु कमाते हैं, न कि जीवन।—रोमियों ६:२३.

१०. आदम ने जो खोया उसे वापस ख़रीदने के लिए किस चीज़ की ज़रूरत थी?

१० फिर भी, क्या उस जीवन के बदले में कुछ दिया जा सकता था जो आदम खो बैठा? परमेश्‍वर का न्याय-स्तर संतुलन की माँग करता है, “प्राण की सन्ती प्राण।” (निर्गमन २१:२३) सो जो जीवन खोया था उसकी क़ीमत चुकाने के लिए एक जीवन दिया जाना था। किसी भी आम जीवन से काम नहीं चलता। भजन ४९:७, ८ अपरिपूर्ण मनुष्यों के बारे में कहता है: “उन में से कोई अपने भाई को किसी भांति छुड़ा नहीं सकता है; और न परमेश्‍वर को उसकी सन्ती प्रायश्‍चित्त में कुछ दे सकता है, (क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भारी है वह अन्त तक कभी न चुका सकेंगे)।” तो क्या स्थिति आशाहीन है? निश्‍चित ही नहीं।

११. (क) “छुड़ौती” शब्द इब्रानी में क्या अर्थ देता है? (ख) केवल कौन मानवजाति को छुड़ा सकता था, और क्यों?

११ इब्रानी भाषा में, “छुड़ौती” शब्द एक बन्धुए को छुड़ाने के लिए दी गयी रक़म का अर्थ देता है और तुल्यता को भी सूचित करता है। आदम ने जो खोया उसका तुल्य केवल वही मनुष्य चढ़ा सकता था जिसका परिपूर्ण मानव जीवन हो। आदम के बाद, पृथ्वी पर जन्मा एकमात्र परिपूर्ण मनुष्य यीशु मसीह था। अतः, बाइबल यीशु को “अन्तिम आदम” कहती है और हमें आश्‍वासन देती है कि मसीह ने “अपने आप को सब के छुटकारे के दाम में दे दिया।” (१ कुरिन्थियों १५:४५; १ तीमुथियुस २:५, ६) जबकि आदम ने अपनी संतान को मृत्यु दी, यीशु की बपौती है अनन्त जीवन। पहला कुरिन्थियों १५:२२ समझाता है: “जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे।” तो उपयुक्‍त रीति से, यीशु को “अनन्तकाल का पिता” कहा गया है।—यशायाह ९:६, ७.

छुड़ौती कैसे दी गयी

१२. यीशु कब मसीहा बना, और उसके बाद उसने कौन-सी जीवन-शैली अपनायी?

१२ सामान्य युग २९ की शरत्‌ में, यीशु अपने रिश्‍तेदार यूहन्‍ना के पास बपतिस्मा लेने और उस प्रकार परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने के लिए अपने आपको प्रस्तुत करने गया। उस अवसर पर यहोवा ने यीशु को पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त किया। अतः यीशु मसीहा, या मसीह, अर्थात्‌ परमेश्‍वर द्वारा अभिषिक्‍त जन बन गया। (मत्ती ३:१६, १७) तब यीशु ने अपनी साढ़े-तीन साल की सेवकाई शुरू की। परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करते हुए और विश्‍वासी अनुयायी इकट्ठे करते हुए, उसने अपने पूरे स्वदेश की यात्रा की। लेकिन, जैसे पूर्वबताया गया था, जल्द ही उसके प्रति विरोध बढ़ गया।—भजन ११८:२२; प्रेरितों ४:८-११.

१३. कौन-सी घटनाएँ एक खराई रखनेवाले के रूप में यीशु की मृत्यु की ओर ले गयीं?

१३ यीशु ने साहसपूर्वक धार्मिक अगुवों के पाखण्ड का परदाफ़ाश किया, और उन्होंने उसे मरवाने की कोशिश की। अन्ततः उन्होंने एक भद्दा षड्यन्त्र रचा जिसमें विश्‍वासघात, अनुचित गिरत्नतारी, ग़ैर-कानूनी मुक़द्दमा, और राजद्रोह का झूठा आरोप सम्मिलित था। यीशु को मारा गया, उस पर थूका गया, उसकी निन्दा की गयी, और उसे ऐसे कोड़े से मारा गया जो उसका माँस फाड़ने के लिए बनाया गया था। तब रोमी हाकिम पुन्तियुस पीलातुस ने उसे यातना स्तम्भ पर मृत्यु का दण्ड सुनाया। उसे एक काठ के खम्भे पर कीलों से ठोंका गया और सीधा लटकाया गया। हर साँस मर्मभेदक थी, और उसे मरने में घंटों लगे। उस पूरी कठिन-परीक्षा के दौरान, यीशु ने परमेश्‍वर के प्रति पूर्ण खराई बनाए रखी।

१४. परमेश्‍वर ने अपने पुत्र को क्यों पीड़ा सहने और मरने दिया?

१४ अतः, निसान १४, सा.यु. ३३ में यीशु ने “बहुतों की छुड़ौती के लिये” अपना जीवन दिया। (मरकुस १०:४५; १ तीमुथियुस २:५, ६) स्वर्ग से, यहोवा अपने प्रिय पुत्र को पीड़ा सहते और मरते देख सकता था। परमेश्‍वर ने इतनी भयंकर बात क्यों होने दी? उसने ऐसा होने दिया क्योंकि वह मनुष्यजाति से प्रेम करता था। यीशु ने कहा: “परमेश्‍वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्‍वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्‍ना ३:१६) यीशु की मृत्यु हमें यह भी सिखाती है कि यहोवा पूर्ण न्याय का परमेश्‍वर है। (व्यवस्थाविवरण ३२:४) कुछ लोग शायद यह सोचें कि परमेश्‍वर ने अपने न्याय के सिद्धान्तों को, जो प्राण की सन्ती प्राण की माँग करते हैं, छोड़ क्यों नहीं दिया और आदम के पापमय मार्ग की क़ीमत को नज़रअंदाज़ क्यों नहीं कर दिया। कारण यह है कि यहोवा हमेशा अपने नियमों का पालन करता है और उन्हें क़ायम रखता है, चाहे उसे ही भारी क़ीमत क्यों न चुकानी पड़े।

१५. चूँकि यीशु के अस्तित्व को स्थायी रूप से समाप्त होने देना अन्यायपूर्ण होता, यहोवा ने क्या किया?

१५ यहोवा के न्याय की यह भी माँग थी कि यीशु की मृत्यु का परिणाम सुखद हो। आख़िरकार, क्या विश्‍वासी यीशु को सर्वदा मृत्यु में सोने देना न्यायपूर्ण होता? निश्‍चित ही नहीं! इब्रानी शास्त्र ने भविष्यवाणी की थी कि परमेश्‍वर का निष्ठावान जन क़ब्र में पड़ा नहीं रहेगा। (भजन १६:९; प्रेरितों १३:३५) वह तीन दिन के कुछ भाग मृत्यु में सोया, और तब यहोवा परमेश्‍वर ने उसे एक सामर्थी आत्मिक प्राणी के रूप में पुनरुत्थित कर लिया।—१ पतरस ३:१८.

१६. स्वर्ग वापस जाने पर यीशु ने क्या किया?

१६ अपनी मृत्यु पर, यीशु ने अपना मानव जीवन हमेशा के लिए सौंप दिया। स्वर्गीय जीवन के लिए जिलाए जाने पर, वह जीवन-दायी आत्मा बन गया। इसके अलावा, जब यीशु विश्‍व के सबसे पवित्र स्थान में चढ़ा, तब वह अपने प्रिय पिता के साथ फिर से मिल गया और उसने अपने परिपूर्ण मानव जीवन का मूल्य औपचारिक रूप से पिता को प्रस्तुत किया। (इब्रानियों ९:२३-२८) तब उस बहुमूल्य जीवन का मूल्य आज्ञाकारी मानवजाति के लिए लागू किया जा सकता था। इसका आपके लिए क्या अर्थ है?

मसीह की छुड़ौती और आप

१७. मसीह के छुड़ौती बलिदान के आधार पर हम कैसे क्षमा का लाभ उठा सकते हैं?

१७ उन तीन तरीक़ों पर विचार कीजिए जिनसे मसीह का छुड़ौती बलिदान आपको अभी-भी लाभ पहुँचाता है। पहला, इससे पापों की क्षमा मिलती है। यीशु के बहाए गए लहू में विश्‍वास करने से हमें ‘छुड़ौती के द्वारा छुटकारा,’ जी हाँ, ‘हमारे अपराधों की क्षमा’ मिली है। (इफिसियों १:७, NW) सो यदि हमने गंभीर पाप किया है तो भी हम यीशु के नाम से परमेश्‍वर से क्षमा माँग सकते हैं। यदि हम सचमुच पश्‍चातापी हैं, तो यहोवा हम पर अपने पुत्र के छुड़ौती बलिदान का मूल्य लागू करता है। परमेश्‍वर हमें क्षमा करता है, पाप करने के द्वारा हम अपने ऊपर जो मृत्युदण्ड लाते हैं उसे देने के बजाय वह हमें अच्छे अंतःकरण की आशिष देता है।—प्रेरितों ३:१९; १ पतरस ३:२१.

१८. यीशु का बलिदान किस प्रकार हमें आशा प्रदान करता है?

१८ दूसरा, मसीह का छुड़ौती बलिदान हमारी भविष्य की आशा का आधार प्रदान करता है। दर्शन में, प्रेरित यूहन्‍ना ने देखा कि “एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था” इस रीति-व्यवस्था के आनेवाले विनाशक अन्त से बचकर निकलेगी। वे क्यों बचेंगे जब परमेश्‍वर इतने सारे अन्य लोगों का नाश करता है? एक स्वर्गदूत ने यूहन्‍ना को बताया कि उस बड़ी भीड़ ने “अपने अपने वस्त्र मेम्ने [यीशु मसीह] के लोहू में धोकर श्‍वेत किए हैं।” (प्रकाशितवाक्य ७:९, १४) जब तक हम यीशु मसीह के बहाए गए लहू में विश्‍वास करते हैं और ईश्‍वरीय माँगों के सामंजस्य में जीते हैं, तब तक हम परमेश्‍वर की दृष्टि में स्वच्छ रहेंगे और हमारे पास अनन्त जीवन की आशा होगी।

१९. मसीह का बलिदान कैसे साबित करता है कि वह और उसका पिता आपसे प्रेम करते हैं?

१९ तीसरा, छुड़ौती बलिदान यहोवा के प्रेम का चरम प्रमाण है। मसीह की मृत्यु ने विश्‍व के इतिहास में प्रेम के दो सर्वश्रेष्ठ कृत्य प्रस्तुत किए: (१) हमारे वास्ते मरने के लिए अपने पुत्र को भेजने में परमेश्‍वर का प्रेम; (२) छुड़ौती के रूप में स्वेच्छापूर्वक अपने आपको प्रस्तुत करने में यीशु का प्रेम। (यूहन्‍ना १५:१३; रोमियों ५:८) यदि हम सचमुच विश्‍वास रखते हैं, तो यह प्रेम हम में से हरेक व्यक्‍ति पर लागू होता है। प्रेरित पौलुस ने कहा: “परमेश्‍वर के पुत्र . . . ने मुझ से प्रेम किया, और मेरे लिये अपने आप को दे दिया।”—गलतियों २:२०; इब्रानियों २:९; १ यूहन्‍ना ४:९, १०.

२०. हमें यीशु के छुड़ौती बलिदान में क्यों विश्‍वास रखना चाहिए?

२० इसलिए, आइए यीशु के छुड़ौती बलिदान में विश्‍वास रखने के द्वारा हम परमेश्‍वर और मसीह के द्वारा प्रदर्शित किए गए प्रेम के लिए अपनी कृतज्ञता दिखाएँ। ऐसा करना अनन्त जीवन की ओर ले जाता है। (यूहन्‍ना ३:३६) फिर भी, हमारा उद्धार पृथ्वी पर यीशु के जीवन और मृत्यु का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण नहीं है। जी नहीं, उसकी मुख्य चिन्ता एक और भी बड़ा, सार्विक वाद-विषय था। जैसा हम अगले अध्याय में देखेंगे, इस वाद-विषय का सम्बन्ध हम सब के साथ है क्योंकि वह दिखाता है कि क्यों परमेश्‍वर ने इस संसार में दुष्टता और दुःख को इतने लम्बे समय तक रहने की अनुमति दी है।

अपने ज्ञान को जाँचिए

मानवजाति को बचाने के लिए यीशु को क्यों मरना पड़ा?

छुड़ौती कैसे दी गयी?

आप छुड़ौती से किन तरीक़ों से लाभ उठाते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 67 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]