इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

र्स्वदा परमेश्‍वर की सेवा करना अपना लक्ष्य बनाइए

र्स्वदा परमेश्‍वर की सेवा करना अपना लक्ष्य बनाइए

अध्याय १८

र्स्वदा परमेश्‍वर की सेवा करना अपना लक्ष्य बनाइए

१, २. परमेश्‍वर के बारे में ज्ञान होने के अलावा और किस चीज़ की ज़रूरत है?

कल्पना कीजिए कि आप एक बन्द दरवाज़े के सामने खड़े हैं जो उस कमरे की ओर ले जाता है जिसमें बड़ा ख़ज़ाना है। मान लीजिए कि एक अधिकृत व्यक्‍ति ने आपको चाबी दी है और आपसे कहा है कि इन मूल्यवान वस्तुओं में से जो चाहे ले लीजिए। उस चाबी का आपको कोई लाभ नहीं जब तक कि आप उसे प्रयोग न करें। उसी तरह, यदि आपको ज्ञान से लाभ पहुँचना है तो आपको उसे प्रयोग करना चाहिए।

यह परमेश्‍वर के ज्ञान के बारे में ख़ासकर सच है। सचमुच, यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह के बारे में यथार्थ ज्ञान का अर्थ है अनन्त जीवन। (यूहन्‍ना १७:३) फिर भी, यह प्रत्याशा मात्र ज्ञान होने से पूरी नहीं हो सकती। जैसे आप एक बहुमोल चाबी का प्रयोग करते, वैसे ही आपको अपने जीवन में परमेश्‍वर का ज्ञान लागू करने की ज़रूरत है। यीशु ने कहा कि जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलते वे “राज्य में प्रवेश” करते। ऐसे व्यक्‍तियों को सर्वदा परमेश्‍वर की सेवा करने का विशेषाधिकार मिलता!—मत्ती ७:२१; १ यूहन्‍ना २:१७.

३. हमारे लिए परमेश्‍वर की क्या इच्छा है?

यह सीखने के बाद कि परमेश्‍वर की इच्छा क्या है, उस पर चलना अत्यावश्‍यक है। आपके विचार में आपके लिए परमेश्‍वर की इच्छा क्या है? उसका सारांश उपयुक्‍त रीति से इन शब्दों में किया जा सकता है: यीशु का अनुकरण कीजिए। पहला पतरस २:२१ हमें बताता है: “तुम इसी के लिये बुलाए भी गए हो क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।” तो, परमेश्‍वर की इच्छा पर चलने के लिए आपको यीशु के उदाहरण पर यथासंभव ध्यानपूर्वक चलना है। इस प्रकार आप परमेश्‍वर के ज्ञान को प्रयोग में लाते हैं।

यीशु ने परमेश्‍वर का ज्ञान कैसे प्रयोग किया

४. यीशु यहोवा के बारे इतना कुछ क्यों जानता है, और उसने इस ज्ञान का प्रयोग कैसे किया है?

परमेश्‍वर का अंतरंग ज्ञान यीशु मसीह के पास दूसरों से अधिक है। वह पृथ्वी पर आने से पहले युगों तक यहोवा परमेश्‍वर के साथ रहा और कार्य किया। (कुलुस्सियों १:१५, १६) और यीशु ने उस सारे ज्ञान का क्या किया? वह मात्र ज्ञान रखने से संतुष्ट नहीं था। यीशु उसके अनुसार जीया। इसी कारण वह संगी मनुष्यों के साथ अपने व्यवहार में इतना कृपालु, धीरजवन्त, और प्रेममय था। इस प्रकार यीशु अपने स्वर्गीय पिता का अनुकरण कर रहा था और यहोवा के मार्गों तथा व्यक्‍तित्व के बारे में अपने ज्ञान के सामंजस्य में कार्य कर रहा था।—यूहन्‍ना ८:२३, २८, २९, ३८; १ यूहन्‍ना ४:८.

५. यीशु ने बपतिस्मा क्यों लिया, और वह अपने बपतिस्मे के अर्थ के अनुरूप कैसे जीया?

यीशु के पास जो ज्ञान था उससे वह एक निर्णायक क़दम उठाने के लिए भी प्रेरित हुआ। वह गलील से यरदन नदी पर आया, जहाँ यूहन्‍ना ने उसे बपतिस्मा दिया। (मत्ती ३:१३-१५) यीशु के बपतिस्मे ने क्या चित्रित किया? यहूदी होने के कारण, वह परमेश्‍वर को समर्पित राष्ट्र में जन्मा। अतः, यीशु जन्म से ही समर्पित था। (निर्गमन १९:५, ६) बपतिस्मा लेने के द्वारा, वह उस समय जो उसके लिए ईश्‍वरीय इच्छा थी उस पर चलने के लिए अपने आपको यहोवा के सामने प्रस्तुत कर रहा था। (इब्रानियों १०:५, ७) और यीशु अपने बपतिस्मे के अर्थ के अनुरूप जीया। उसने अपने आपको यहोवा की सेवा में लगा दिया, और हर अवसर पर लोगों के साथ परमेश्‍वर का ज्ञान बाँटा। यीशु ने परमेश्‍वर की इच्छा पर चलने में आनन्द प्राप्त किया, और यहाँ तक कहा कि यह उसके लिए भोजन के समान था।—यूहन्‍ना ४:३४.

६. किस तरह यीशु ने अपना त्याग किया?

यीशु को इस बात का पूरी तरह एहसास था कि यहोवा की इच्छा पर चलना बहुत महँगा पड़ता—कि उसे अपनी जान भी देनी पड़ती। फिर भी, यीशु ने अपना त्याग किया, अतः अपनी निजी ज़रूरतों को दूसरे स्थान पर रखा। परमेश्‍वर की इच्छा पर चलना हमेशा पहले आया। इस सम्बन्ध में, हम यीशु के पूर्ण उदाहरण पर कैसे चल सकते हैं?

क़दम जो अनन्त जीवन की ओर ले जाते हैं

७. बपतिस्मे के योग्य होने के लिए एक व्यक्‍ति को कौन-से कुछ क़दम उठाने की ज़रूरत है?

यीशु के विपरीत, हम अपरिपूर्ण हैं और कुछ अन्य अनिवार्य क़दम उठाने के बाद ही बपतिस्मे के मीलपत्थर तक पहुँच सकते हैं। यह अपने हृदय में यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह के बारे में यथार्थ ज्ञान लेने के द्वारा शुरू होता है। ऐसा करना हमें विश्‍वास और परमेश्‍वर के लिए अपार प्रेम रखने को प्रेरित करता है। (मत्ती २२:३७-४०; रोमियों १०:१७; इब्रानियों ११:६) परमेश्‍वर के नियमों, सिद्धान्तों, और स्तरों का पालन करने से हमें प्रेरित होना चाहिए कि पश्‍चाताप करें, और अपने पिछले पापों के लिए धर्मी शोक व्यक्‍त करें। यह मन-फिराव की ओर ले जाता है, अर्थात्‌ लौट आना और ऐसे किसी भी ग़लत मार्ग को त्यागना जिस पर हम परमेश्‍वर का ज्ञान पाने से पहले चलते थे। (प्रेरितों ३:१९) स्वाभाविक है कि यदि हम धर्मी कार्य करने के बजाय अब भी गुप्त रूप से कोई पाप कर रहे हैं, तो हम वास्तव में नहीं लौटे हैं, न ही हमने परमेश्‍वर को मूर्ख बनाया है। यहोवा सभी कपट का पता लगा लेता है।—लूका १२:२, ३.

८. जब आप राज्य-प्रचार गतिविधि में हिस्सा लेने की इच्छा रखते हैं तब आपको क्या करना चाहिए?

अब जबकि आप कुछ समय से परमेश्‍वर का ज्ञान ले रहे हैं, तो क्या यह उपयुक्‍त नहीं कि आध्यात्मिक बातों पर बहुत व्यक्‍तिगत रीति से विचार करें? संभवतः आप अपने रिश्‍तेदारों, मित्रों, और दूसरों को वो बातें बताने के लिए उत्सुक हैं जो आप सीख रहे हैं। असल में, आप शायद पहले से ही ऐसा कर रहे हैं, जैसे यीशु ने भी अनौपचारिक अवसरों पर दूसरों के साथ सुसमाचार बाँटा। (लूका १०:३८, ३९; यूहन्‍ना ४:६-१५) अब आप शायद अधिक करना चाहते हैं। मसीही प्राचीनों को यह निर्धारित करने के लिए आपके साथ बात करने में ख़ुशी होगी कि क्या आप यहोवा के साक्षियों की नियमित राज्य-प्रचार गतिविधि में कुछ हिस्सा लेने के लिए योग्य और समर्थ हैं। यदि ऐसा है, तो प्राचीन प्रबन्ध करेंगे कि आप एक साक्षी के साथ सेवकाई में जा सकें। यीशु के शिष्यों ने अपनी सेवकाई को एक व्यवस्थित रीति से करने के लिए उसके निर्देशनों का पालन किया। (मरकुस ६:७, ३०; लूका १०:१) जैसे-जैसे आप घर-घर जाकर और अन्य तरीक़ों से राज्य संदेश को फैलाने में भाग लेते हैं, आप उसी तरह की मदद का लाभ उठाएँगे।—प्रेरितों २०:२०, २१.

९. एक व्यक्‍ति परमेश्‍वर को समर्पण कैसे करता है, और समर्पण उस व्यक्‍ति के जीवन को कैसे प्रभावित करता है?

कलीसिया के क्षेत्र में सभी क़िस्म के लोगों को सुसमाचार का प्रचार करना धर्मी प्रवृत्ति के लोगों को ढूँढने का एक तरीक़ा है और उन उत्तम कामों में से एक है जो साबित करते हैं कि आप विश्‍वास रखते हैं। (प्रेरितों १०:३४, ३५; याकूब २:१७, १८, २६) मसीही सभाओं में नियमित उपस्थिति और प्रचार कार्य में अर्थपूर्ण हिस्सा लेना यह प्रदर्शित करने के भी तरीक़े हैं कि आप पश्‍चाताप करके लौट आए हैं और अब परमेश्‍वर के ज्ञान के अनुरूप जीने के लिए दृढ़-संकल्प हैं। अगला तर्कसंगत क़दम क्या है? वह है यहोवा परमेश्‍वर को समर्पण करना। इसका अर्थ है कि हार्दिक प्रार्थना में आप परमेश्‍वर से कहते हैं कि उसकी इच्छा पर चलने के लिए आप स्वेच्छा से और पूरे हृदय से अपना जीवन उसे दे रहे हैं। यह अपने आपको यहोवा के प्रति समर्पित करने और यीशु मसीह के सहज जूए को स्वीकार करने का तरीक़ा है।—मत्ती ११:२९, ३०.

बपतिस्मा—इसका आपके लिए क्या अर्थ है

१०. ख़ुद को यहोवा को समर्पित करने के बाद आपको बपतिस्मा क्यों लेना चाहिए?

१० यीशु के अनुसार, वे सभी जो उसके शिष्य बनते हैं उन्हें बपतिस्मा लेने की ज़रूरत है। (मत्ती २८:१९, २०) आपके द्वारा परमेश्‍वर को समर्पण करने के बाद यह क्यों ज़रूरी है? चूँकि आपने ख़ुद को यहोवा को समर्पित किया है, वह जानता है कि आप उससे प्रेम रखते हैं। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि आप इसके अलावा भी कुछ करना चाहेंगे जिससे कि दूसरे परमेश्‍वर के प्रति आपके प्रेम को जान सकें। बपतिस्मा आपको यहोवा परमेश्‍वर के प्रति अपने समर्पण को सार्वजनिक रूप से बताने का अवसर देता है।—रोमियों १०:९, १०.

११. बपतिस्मे का क्या अर्थ है?

११ लाक्षणिक रूप से बपतिस्मा बहुत अर्थपूर्ण है। जब आप पानी के नीचे डुबाए, या “दफ़नाए” जाते हैं, तो यह मानो ऐसा है कि आप अपनी पिछली जीवन-शैली के प्रति मर गए हैं। जब आप पानी से बाहर निकलते हैं, तो यह मानो ऐसा है कि आप एक नए जीवन के लिए प्रकट हो रहे हैं, अर्थात्‌ वह जीवन जो आपकी नहीं बल्कि परमेश्‍वर की इच्छा द्वारा नियंत्रित है। निःसंदेह, इसका यह अर्थ नहीं कि अब आप ग़लतियाँ नहीं करेंगे, क्योंकि हम सब अपरिपूर्ण हैं और इस कारण प्रतिदिन पाप करते हैं। लेकिन, यहोवा के समर्पित, बपतिस्मा-प्राप्त सेवक के रूप में आप उसके साथ एक ख़ास सम्बन्ध में आ गए होंगे। आपके पश्‍चाताप करने और नम्रता से बपतिस्मा लेने के कारण यहोवा यीशु के छुड़ौती बलिदान के आधार पर आपके पापों को क्षमा करने के लिए तैयार है। अतः बपतिस्मा परमेश्‍वर के सामने एक शुद्ध अंतःकरण की ओर ले जाता है।—१ पतरस ३:२१.

१२. (क) ‘पिता के नाम से’ (ख) ‘पुत्र के नाम से’ (ग) “पवित्रात्मा के नाम से” बपतिस्मा लेने का क्या अर्थ है?

१२ यीशु ने अपने अनुयायियों को आज्ञा दी कि नए शिष्यों को “पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से” बपतिस्मा दें। (मत्ती २८:१९) यीशु के कहने का क्या अर्थ था? ‘पिता के नाम से’ बपतिस्मा सूचित करता है कि जो व्यक्‍ति बपतिस्मा ले रहा है वह पूरे हृदय से यहोवा परमेश्‍वर को सृष्टिकर्ता और विश्‍व के न्यायपूर्ण सर्वसत्ताधारी के रूप में स्वीकार करता है। (भजन ३६:९; ८३:१८; सभोपदेशक १२:१) ‘पुत्र के नाम से’ बपतिस्मा लेने का अर्थ है कि वह व्यक्‍ति परमेश्‍वर द्वारा उद्धार के लिए प्रदान किए गए एकमात्र माध्यम के रूप में यीशु मसीह को और ख़ासकर उसके छुड़ौती बलिदान को स्वीकार करता है। (प्रेरितों ४:१२) “पवित्रात्मा के नाम से” बपतिस्मा सूचित करता है कि बपतिस्मा उम्मीदवार यहोवा की पवित्र आत्मा, या सक्रिय शक्‍ति को परमेश्‍वर के उस साधन के रूप में मानता है जो उसके उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए है और जो उसके सेवकों को उसके आत्मा-निर्देशित संगठन की संगति में उसकी धर्मी इच्छा पर चलने के लिए सामर्थ देने के लिए है।—उत्पत्ति १:२; भजन १०४:३०; यूहन्‍ना १४:२६; २ पतरस १:२१.

क्या आप बपतिस्मे के लिए तैयार हैं?

१३, १४. यहोवा परमेश्‍वर की सेवा करने का चुनाव करने से हमें क्यों नहीं डरना चाहिए?

१३ चूँकि बपतिस्मा इतना अर्थपूर्ण है और एक व्यक्‍ति के जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण मीलपत्थर है, तो क्या यह ऐसा क़दम है जिससे आपको डरना चाहिए? बिलकुल नहीं! जबकि बपतिस्मा लेने का निर्णय लापरवाही से नहीं किया जाना चाहिए, निःसंदेह आप इससे अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय नहीं कर सकते हैं।

१४ बपतिस्मा यहोवा परमेश्‍वर की सेवा करने के आपके चुनाव का प्रमाण देता है। उन लोगों के बारे में सोचिए जिनसे आप परिचित हैं। एक-न-एक तरीक़े से, क्या वे सभी किसी स्वामी की सेवा नहीं कर रहे? कुछ लोग धन की सेवा करते हैं। (मत्ती ६:२४) दूसरे कर्मठता से अपने पेशे में जुटे रहते हैं या अपनी ही अभिलाषाओं की पूर्ति को अपने जीवन में परम बनाने के द्वारा अपनी सेवा करते हैं। और अन्य लोग झूठे ईश्‍वरों की सेवा करते हैं। लेकिन आपने सच्चे परमेश्‍वर, यहोवा की सेवा करने का चुनाव किया है। कोई भी दूसरा व्यक्‍ति इतनी कृपा, करुणा, और प्रेम नहीं दिखाता। परमेश्‍वर मनुष्यों को ऐसा उद्देश्‍यपूर्ण कार्य देकर सम्मानित करता है जो उन्हें उद्धार की ओर निर्देशित करता है। वह अपने सेवकों को अनन्त जीवन का प्रतिफल देता है। निश्‍चित ही, यीशु के उदाहरण पर चलना और यहोवा को अपना जीवन देना डरने की बात नहीं है। वास्तव में, यह एकमात्र मार्ग है जो परमेश्‍वर को प्रसन्‍न करता है और पूर्ण रूप से तर्कसंगत है।—१ राजा १८:२१.

१५. बपतिस्मे के लिए कुछ सामान्य बाधाएँ क्या हैं?

१५ फिर भी, बपतिस्मा ऐसा क़दम नहीं है जिसे दबाव के कारण लिया जाना चाहिए। यह यहोवा और आपके बीच एक व्यक्‍तिगत मामला है। (गलतियों ६:४) जैसे-जैसे आपने आध्यात्मिक प्रगति की है, आपने शायद सोचा हो: “अब मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रोक है”? (प्रेरितों ८:३५, ३६) आप शायद अपने आपसे पूछें, ‘क्या पारिवारिक विरोध मेरे लिए बाधा है? क्या मैं अभी-भी किसी अशास्त्रीय स्थिति या पापमय अभ्यास में उलझा हुआ हूँ? क्या यह हो सकता है कि मैं समुदाय में नापसन्द किए जाने से डरता हूँ?’ ये कुछ तत्व हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए, लेकिन उन्हें यथार्थता से आँकिए।

१६. यहोवा की सेवा करने से आप कैसे लाभ पाएँगे?

१६ यहोवा की सेवा करने के लाभों पर विचार किए बिना उसकी क़ीमत आँकना यथार्थता नहीं है। उदाहरण के लिए, पारिवारिक विरोध के बारे में विचार कीजिए। यीशु ने प्रतिज्ञा की कि यदि उसके शिष्य उसके पीछे चलने के कारण अपने रिश्‍तेदारों को खो भी दें, तो वे ज़्यादा बड़ा आध्यात्मिक परिवार पाएँगे। (मरकुस १०:२९, ३०) ये संगी विश्‍वासी आपको भाईचारे का प्रेम दिखाएँगे, सताहट सहने में आपकी मदद करेंगे, और जीवन के मार्ग पर आपका साथ देंगे। (१ पतरस ५:९) ख़ासकर कलीसिया के प्राचीन आपको सफलतापूर्वक समस्याओं से निपटने और अन्य चुनौतियों का सामना करने में मदद दे सकते हैं। (याकूब ५:१४-१६) इस संसार में नापसन्द किए जाने के बारे में, अपने आपसे यह पूछना अच्छा होगा, ‘विश्‍व के सृष्टिकर्ता का अनुमोदन होने, और मेरे चुने हुए जीवन-मार्ग से उसे आनन्दित करने की तुलना संभवतः किस चीज़ के साथ की जा सकती है?’—नीतिवचन २७:११.

अपने समर्पण और बपतिस्मे के अनुरूप जीना

१७. आपको बपतिस्मे को अन्त नहीं बल्कि एक शुरूआत क्यों समझना चाहिए?

१७ यह याद रखना महत्त्वपूर्ण है कि बपतिस्मा आपकी आध्यात्मिक प्रगति का अन्त नहीं है। यह एक नियुक्‍त सेवक और एक यहोवा के साक्षी के रूप में परमेश्‍वर के प्रति जीवन-भर की सेवा की शुरूआत को चिन्हित करता है। हालाँकि बपतिस्मा अनिवार्यतः महत्त्वपूर्ण है, यह उद्धार की गारंटी नहीं है। यीशु ने यह नहीं कहा: ‘जो बपतिस्मा प्राप्त करेगा, उसका उद्धार होगा।’ इसके बजाय, उसने कहा: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।” (मत्ती २४:१३) इसलिए, यह अत्यावश्‍यक है कि आप परमेश्‍वर के राज्य को अपने जीवन में परम महत्त्व देने के द्वारा पहले उसकी खोज करें।—मत्ती ६:२५-३४.

१८. बपतिस्मे के बाद, कौन-से कुछ लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न किया जा सकता है?

१८ यहोवा के प्रति अपनी सेवा में बने रहने के लिए आप अपने लिए आध्यात्मिक लक्ष्य रखना चाहेंगे। एक उपयुक्‍त लक्ष्य है परमेश्‍वर के वचन के नियमित व्यक्‍तिगत अध्ययन के द्वारा उसके बारे में अपना ज्ञान बढ़ाना। प्रतिदिन बाइबल पठन की योजना बनाइए। (भजन १:१, २) नियमित रूप से मसीही सभाओं में उपस्थित होइए, क्योंकि वहाँ जो संगति मिलती है वह आपको आध्यात्मिक शक्‍ति देने में मदद करेगी। अपनी ओर से, क्यों न कलीसिया सभाओं में टिप्पणी देना अपना लक्ष्य बनाएँ और इस प्रकार यहोवा की स्तुति करें और दूसरों को प्रोत्साहित करने की कोशिश करें? (रोमियों १:११, १२) दूसरा लक्ष्य हो सकता है अपनी प्रार्थनाओं का दरजा बेहतर बनाना।—लूका ११:२-४.

१९. पवित्र आत्मा आपको कौन-से गुण प्रदर्शित करने में मदद दे सकती है?

१९ यदि आपको अपने बपतिस्मे के अर्थ के अनुरूप जीना है, तो आपको निरन्तर ध्यान देने की ज़रूरत है कि आप क्या करते हैं, और परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा को अपने अन्दर प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम जैसे गुण उत्पन्‍न करने देना है। (गलतियों ५:२२, २३; २ पतरस ३:११) याद रखिए, यहोवा उन सभों को अपनी पवित्र आत्मा देता है जो इसके लिए प्रार्थना करते हैं और उसके विश्‍वासी सेवकों के रूप में उसकी आज्ञापालन करते हैं। (लूका ११:१३; प्रेरितों ५:३२) सो परमेश्‍वर से उसकी आत्मा के लिए प्रार्थना कीजिए और ऐसे गुण प्रदर्शित करने के लिए उसकी मदद माँगिए जो उसे प्रसन्‍न करते हैं। जैसे-जैसे आप परमेश्‍वर की आत्मा के प्रभाव के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाते हैं, वैसे-वैसे ये गुण आपकी बोली और आचरण में ज़्यादा दिखेंगे। निःसंदेह, मसीही कलीसिया में हर व्यक्‍ति “नए मनुष्यत्व” को विकसित करने का प्रयास कर रहा है ताकि मसीह के समान और ज़्यादा बन सके। (कुलुस्सियों ३:९-१४) हम में से हरेक जन ऐसा करते समय अलग-अलग चुनौतियों का सामना करता है क्योंकि हम आध्यात्मिक प्रगति के भिन्‍न चरणों में हैं। चूँकि आप अपरिपूर्ण हैं, आपको मसीह-समान व्यक्‍तित्व धारण करने के लिए कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत है। लेकिन इस सम्बन्ध में कभी निराश मत होइए, क्योंकि परमेश्‍वर की मदद से ऐसा सम्भव है।

२०. सेवकाई में आप यीशु का किन तरीक़ों से अनुकरण कर सकते हैं?

२० आपके आध्यात्मिक लक्ष्यों में यीशु के आनन्दपूर्ण उदाहरण का ज़्यादा ध्यानपूर्वक अनुकरण करना शामिल होना चाहिए। (इब्रानियों १२:१-३) उसे सेवकाई से प्रेम था। यदि आपके पास राज्य-प्रचार गतिविधि में हिस्सा लेने का विशेषाधिकार है, तो उसे मात्र नित्यक्रम मत बनने दीजिए। दूसरों को परमेश्‍वर के राज्य के बारे में सिखाने में संतुष्टि पाने की कोशिश कीजिए, जैसे यीशु ने पायी। एक शिक्षक के रूप में बेहतर बनने में आपकी मदद करने के लिए कलीसिया जो उपदेश प्रदान करती है उसको प्रयोग कीजिए। और आश्‍वस्त रहिए कि यहोवा आपकी सेवकाई को पूरा करने के लिए आपको शक्‍ति दे सकता है।—१ कुरिन्थियों ९:१९-२३.

२१. (क) हम कैसे जानते हैं कि यहोवा विश्‍वासी बपतिस्मा-प्राप्त व्यक्‍तियों को मूल्यवान समझता है? (ख) क्या बात दिखाती है कि इस दुष्ट रीति-व्यवस्था पर परमेश्‍वर के न्यायदण्ड आने से हमारी उत्तरजीविता के लिए बपतिस्मा महत्त्वपूर्ण है?

२१ एक समर्पित, बपतिस्मा-प्राप्त व्यक्‍ति जो सचमुच यीशु के पीछे चलने का प्रयास कर रहा है परमेश्‍वर के लिए ख़ास है। यहोवा सभी अरबों मानव हृदय जाँचता है और जानता है कि ऐसे व्यक्‍ति कितने असाधारण हैं। वह उन्हें मूल्यवान, “मनभावनी वस्तुएं” समझता है। (हाग्गै २:७) बाइबल भविष्यवाणियाँ दिखाती हैं कि परमेश्‍वर ऐसे लोगों को इस दुष्ट रीति-व्यवस्था पर जल्द आनेवाले उसके न्यायदण्ड से बचकर निकलने के लिए चिन्हित समझता है। (यहेजकेल ९:१-६; मलाकी ३:१६, १८) क्या आप “अनन्त जीवन के लिए सही रीति से प्रवृत्त” हैं? (प्रेरितों १३:४८, NW) क्या यह आपकी सच्ची अभिलाषा है कि परमेश्‍वर की सेवा करनेवाले व्यक्‍ति के रूप में चिन्हित हों? समर्पण और बपतिस्मा उस चिन्ह का भाग हैं, और वे उत्तरजीविता के लिए ज़रूरी हैं।

२२. “बड़ी भीड़” किन प्रत्याशाओं की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर सकती है?

२२ विश्‍वव्यापी जलप्रलय के बाद, नूह और उसका परिवार एक स्वच्छ की गयी पृथ्वी पर जहाज़ में से बाहर निकले। उसी प्रकार आज भी, एक “बड़ी भीड़” के पास जो परमेश्‍वर के ज्ञान को अपने जीवन में लागू करती है और यहोवा का अनुमोदन प्राप्त करती है, इस दुष्ट रीति-व्यवस्था के अन्त से बचकर निकलने की और स्थायी रूप से स्वच्छ की गयी पृथ्वी पर अनन्त जीवन का आनन्द उठाने की प्रत्याशा है। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १४) वह जीवन कैसा होगा?

अपने ज्ञान को जाँचिए

यहोवा के बारे में आपके ज्ञान को वह कैसे चाहता है कि आप प्रयोग करें?

कुछ क़दम क्या हैं जो बपतिस्मे की ओर ले जाते हैं?

बपतिस्मा क्यों अन्त नहीं बल्कि एक शुरूआत है?

हम अपने समर्पण और बपतिस्मे के अनुरूप कैसे जी सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 172 पर तसवीरें]

क्या आपने प्रार्थना में परमेश्‍वर को समर्पण किया है?

[पेज 174 पर तसवीरें]

कौन-सी बात आपको बपतिस्मा लेने से रोकती है?