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वह पुस्तक जो परमेश्‍वर का ज्ञान प्रकट करती है

वह पुस्तक जो परमेश्‍वर का ज्ञान प्रकट करती है

अध्याय २

वह पुस्तक जो परमेश्‍वर का ज्ञान प्रकट करती है

१, २. हमें अपने सृष्टिकर्ता के मार्गदर्शन की ज़रूरत क्यों है?

यह बिलकुल तर्कसंगत है कि हमारा प्रेममय सृष्टिकर्ता मानवजाति के लिए निर्देशन और मार्गदर्शन की एक पुस्तक प्रदान करता। और क्या आप नहीं मानते कि मनुष्यों को मार्गदर्शन की ज़रूरत है?

एक भविष्यवक्‍ता और इतिहासकार ने २,५०० साल से भी पहले लिखा: “मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” (यिर्मयाह १०:२३) आज, इस कथन की सत्यता पहले से कहीं ज़्यादा प्रकट है। अतः, इतिहासकार विलियम एच. मॆकनील कहता है: “पृथ्वी पर मानव अनुभव में लगभग हमेशा ही समाज की स्थापित व्यवस्था के संकटों और बाधाओं का ताँता लगा रहा है।”

३, ४. (क) हमें बाइबल के अध्ययन के प्रति क्या मनोवृत्ति दिखानी चाहिए? (ख) हम बाइबल की जाँच को कैसे आगे बढ़ाएँगे?

बाइबल बुद्धिमत्तापूर्ण निर्देशन की हमारी हर ज़रूरत को पूरा करती है। यह सच है कि पहली बार बाइबल को जाँचने पर अनेक लोग अभिभूत हो जाते हैं। यह एक बड़ी पुस्तक है, और इसके कुछ भाग समझने में आसान नहीं हैं। लेकिन यदि आपको एक वसीयतनामा दिया जाता जिसमें यह बताया गया होता कि एक बड़ी विरासत को पाने के लिए आपको क्या करना है, तो क्या आप उसको ध्यान से पढ़ने के लिए समय नहीं निकालते? यदि आपको वसीयत के कुछ हिस्से समझने में मुश्‍किल लगते, तो संभवतः आप किसी ऐसे व्यक्‍ति की मदद लेते जो इन मामलों में अनुभवी है। क्यों न बाइबल के प्रति भी समान मनोवृत्ति दिखाएँ? (प्रेरितों १७:११) भौतिक विरासत से भी बढ़कर कुछ दाँव पर है। जैसे हमने पिछले अध्याय में सीखा, परमेश्‍वर का ज्ञान अनन्त जीवन की ओर ले जा सकता है।

आइए उस पुस्तक की जाँच करें जो परमेश्‍वर का ज्ञान प्रकट करती है। पहले हम बाइबल का संक्षिप्त विवरण देंगे। फिर हम उन कारणों की चर्चा करेंगे कि क्यों अनेक जानकार लोग विश्‍वास करते हैं कि यह परमेश्‍वर का उत्प्रेरित वचन है।

बाइबल में जो दिया गया है

५. (क) इब्रानी शास्त्र में क्या दिया गया है? (ख) यूनानी शास्त्र में क्या है?

बाइबल में दो भागों में विभाजित ६६ पुस्तकें हैं, जिन्हें अकसर पुराना नियम और नया नियम कहा जाता है। उनतालीस बाइबल पुस्तकें मुख्यतः इब्रानी में लिखी गयी थीं और २७ यूनानी में। इब्रानी शास्त्र में, जो कि उत्पत्ति से मलाकी तक है, सृष्टि का और मानव इतिहास के पहले ३,५०० सालों का वर्णन है। बाइबल के इस भाग की जाँच करते समय हम इस्राएलियों के साथ परमेश्‍वर के व्यवहार के बारे में सीखते हैं—सा.यु.पू. १६वीं शताब्दी में एक जाति के रूप में उनके जन्म से लेकर सा.यु.पू. ५वीं शताब्दी तक। * यूनानी शास्त्र, जिसमें मत्ती से लेकर प्रकाशितवाक्य तक की पुस्तकें हैं, सा.यु. प्रथम शताब्दी के दौरान यीशु मसीह और उसके शिष्यों की शिक्षाओं और गतिविधियों पर केंद्रित है।

६. हमें संपूर्ण बाइबल का अध्ययन क्यों करना चाहिए?

कुछ लोग दावा करते हैं कि “पुराना नियम” यहूदियों के लिए है और “नया नियम” मसीहियों के लिए है। लेकिन २ तीमुथियुस ३:१६ के अनुसार, “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और . . . लाभदायक है।” (तिरछे टाइप हमारे।) इसलिए, शास्त्र के सही अध्ययन में संपूर्ण बाइबल सम्मिलित होनी चाहिए। असल में, बाइबल के दोनों भाग एक दूसरे के संपूरक हैं, और पूरी सुसंगति के साथ एक समावेशक मूल-विषय विकसित करते हैं।

७. बाइबल का मूल-विषय क्या है?

शायद आप सालों से धर्म-सभाओं में उपस्थित हुए हैं और बाइबल के कुछ हिस्सों का ऊँचे स्वर में पठन होते सुना है। या शायद आपने इसमें से कुछ उद्धरण स्वयं ही पढ़े हों। क्या आप जानते थे कि उत्पत्ति से लेकर प्रकाशितवाक्य तक बाइबल का एक मूल विचार है? जी हाँ, पूरी बाइबल में एक सुसंगत मूल-विषय है। वह मूल-विषय क्या है? वह है मानवजाति पर शासन करने के परमेश्‍वर के अधिकार का दोषनिवारण और उसके राज्य के माध्यम से उसके प्रेममय उद्देश्‍य की पूर्ति। बाद में हम देखेंगे कि परमेश्‍वर इस उद्देश्‍य को कैसे पूरा करेगा।

८. बाइबल परमेश्‍वर के व्यक्‍तित्व के बारे में क्या प्रकट करती है?

परमेश्‍वर का उद्देश्‍य बताने के साथ-साथ बाइबल उसके व्यक्‍तित्व को प्रकट करती है। उदाहरण के लिए, बाइबल से हम सीखते हैं कि परमेश्‍वर के पास भावनाएँ हैं और कि जो चुनाव हम करते हैं उनसे उसको फ़र्क पड़ता है। (भजन ७८:४०, ४१; नीतिवचन २७:११; यहेजकेल ३३:११) भजन १०३:८-१४ कहता है कि परमेश्‍वर “दयालु और अनुग्रहकारी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय” है। ‘यह स्मरण रखते हुए कि हम मिट्टी ही हैं’ और मृत्यु होने पर उसी में फिर मिल जाते हैं, वह हमारे साथ करुणा से व्यवहार करता है। (उत्पत्ति २:७; ३:१९) वह क्या ही अद्‌भुत गुण प्रदर्शित करता है! क्या आप इसी क़िस्म के परमेश्‍वर की उपासना नहीं करना चाहते?

९. बाइबल हमें परमेश्‍वर के स्तरों के बारे में स्पष्ट रूप से कैसे बताती है, और हम ऐसे ज्ञान से कैसे लाभ उठा सकते हैं?

बाइबल हमें परमेश्‍वर के स्तरों के बारे में स्पष्ट रूप से बताती है। ये कई बार नियमों के रूप में दिए गए हैं। लेकिन, अकसर ये व्यावहारिक उदाहरणों के द्वारा सिखाए गए सिद्धान्तों में प्रतिबिम्बित किए गए हैं। परमेश्‍वर ने प्राचीन इस्राएली इतिहास की कुछ घटनाओं को हमारे लाभ के लिए लिखवाया। ये निष्पक्ष वृत्तान्त दिखाते हैं कि जब लोग परमेश्‍वर के उद्देश्‍य के सामंजस्य में कार्य करते हैं तब क्या होता है, और जब वे अपने रास्ते जाते हैं तब उसका क्या दुःखद परिणाम होता है। (१ राजा ५:४; ११:४-६; २ इतिहास १५:८-१५) ऐसे सच्चे-जीवन वृत्तान्तों को पढ़ना निःसंदेह हमारे हृदय को छू लेगा। यदि हम अभिलिखित घटनाओं का मानसिक चित्र खींचने की कोशिश करें, तो हम यह देख सकते हैं कि उनमें सम्मिलित लोग भी हमारे ही जैसे हैं। अतः, हम अच्छे उदाहरणों से लाभ उठा सकते हैं और उन फन्दों से बच सकते हैं जिनमें कुकर्मी फँस गए। लेकिन, यह अति महत्त्वपूर्ण प्रश्‍न एक उत्तर की माँग करता है: हम कैसे निश्‍चित हो सकते हैं कि हम बाइबल से जो पढ़ते हैं वह वास्तव में ईश्‍वरप्रेरित है?

क्या आप बाइबल पर भरोसा कर सकते हैं?

१०. (क) कुछ लोग क्यों महसूस करते हैं कि बाइबल दिनातीत हो गयी है? (ख) बाइबल के बारे में २ तीमुथियुस ३:१६, १७ हमें क्या बताता है?

१० शायद आपने नोट किया हो कि सलाह देनेवाली अनेक पुस्तकें मात्र कुछ ही सालों में दिनातीत हो जाती हैं। बाइबल के बारे में क्या? यह बहुत पुरानी है, और जब इसके अन्तिम शब्द लिखे गए थे तब से लगभग २,००० साल बीत चुके हैं। इसलिए कुछ लोग महसूस करते हैं कि यह हमारे आधुनिक युग पर लागू नहीं होती। लेकिन यदि बाइबल ईश्‍वरप्रेरित है, तो इसके बहुत पुराने होने के बावजूद इसकी सलाह को हमेशा दिनाप्त रहना चाहिए। शास्त्र को अभी भी ‘उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक होना चाहिए। ताकि परमेश्‍वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।’—२ तीमुथियुस ३:१६, १७.

११-१३. हम क्यों कह सकते हैं कि बाइबल हमारे समय के लिए व्यावहारिक है?

११ नज़दीकी जाँच प्रकट करती है कि बाइबल सिद्धान्त आज भी उतने ही लागू होते हैं जितने कि तब थे जब वे लिखे गए थे। उदाहरण के लिए, मानव स्वभाव के सम्बन्ध में बाइबल स्पष्ट समझ प्रतिबिम्बित करती है जो मानवजाति की हर पीढ़ी पर लागू होती है। इसे हम आसानी से यीशु के पहाड़ी उपदेश में देख सकते हैं, जो मत्ती की पुस्तक के ५ से ७ अध्याय में दिया गया है। इस उपदेश ने दिवंगत भारतीय नेता मोहनदास के. गांधी को इतना प्रभावित किया कि कहा जाता है कि उसने एक ब्रिटिश अधिकारी को कहा: “जब आपका और मेरा देश मसीह द्वारा इस पहाड़ी उपदेश में दी गयी शिक्षाओं को मानने लगेगा, तब हमने न केवल अपने देशों की बल्कि पूरे संसार की समस्याओं का हल कर लिया होगा।”

१२ कोई आश्‍चर्य नहीं कि लोग यीशु की शिक्षाओं से प्रभावित होते हैं! पहाड़ी उपदेश में, उसने हमें सच्चे सुख का मार्ग दिखाया। उसने समझाया कि झगड़े कैसे निपटाएँ। यीशु ने प्रार्थना करने के बारे में निर्देशन दिए। उसने भौतिक ज़रूरतों के प्रति सबसे बुद्धिमत्तापूर्ण मनोवृत्ति बतायी और दूसरों के साथ सही सम्बन्ध रखने के लिए सुनहरा नियम दिया। धार्मिक कपट का पता कैसे लगाएँ और एक सुरक्षित भविष्य कैसे पाएँ, इनके बारे में भी उसने इस उपदेश में बताया।

१३ पहाड़ी उपदेश में और बाइबल के बाक़ी के पृष्ठों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि हमें जीवन में अपनी व्यक्‍तिगत परिस्थितियों को सुधारने के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं। इसकी सलाह इतनी व्यावहारिक है कि एक शिक्षक यह कहने के लिए प्रेरित हुआ: “हालाँकि मैं हाई-स्कूल सलाहकार हूँ, मेरे पास बैचलर एवं मास्टर की डिग्रियाँ हैं और मैंने मानसिक स्वास्थ्य और मनोविज्ञान पर बहुत पुस्तकें पढ़ी हैं, फिर भी मैंने पाया कि एक सफल विवाह बनाने, किशोर अपचार को रोकने और मित्र बनाने तथा उन्हें बनाए रखने जैसी बातों पर बाइबल की सलाह उन बातों से कहीं श्रेष्ठ है जो मैंने पढ़ी या कॉलेज में सीखी थीं।” व्यावहारिक और दिनाप्त होने के साथ-साथ, बाइबल भरोसे-योग्य है।

यथार्थ और विश्‍वसनीय

१४. क्या दिखाता है कि बाइबल वैज्ञानिक रूप से यथार्थ है?

१४ जबकि बाइबल विज्ञान की पाठ्यपुस्तक नहीं है, यह वैज्ञानिक रूप से यथार्थ है। उदाहरण के लिए, उस समय जब अधिकांश लोग विश्‍वास करते थे कि पृथ्वी चपटी है, भविष्यवक्‍ता यशायाह ने उसका उल्लेख एक “घेरे” (इब्रानी, कुघ, जो ‘गोले’ का विचार देता है) के रूप में किया। (यशायाह ४०:२२) एक गोल पृथ्वी के विचार को यशायाह के दिनों के हज़ारों साल बाद तक विस्तृत रूप से स्वीकार नहीं किया गया था। इसके अतिरिक्‍त, अय्यूब २६:७—३,००० साल से भी पहले लिखा गया—बताता है कि परमेश्‍वर “बिना टेक पृथ्वी को लटकाए रखता है।” एक बाइबल विद्वान कहता है: “अय्यूब खगोल-विज्ञान द्वारा प्रदर्शित यह सत्य कैसे जानता था कि पृथ्वी शून्य अन्तरिक्ष में बिना किसी सहारे के लटकी हुई है, एक ऐसी पहेली है जिसे वे आसानी से नहीं बूझ सकते जो पवित्र शास्त्र की उत्प्रेरणा को अस्वीकार करते हैं।”

१५. बाइबल की विवरण शैली से उस पर विश्‍वास कैसे मज़बूत होता है?

१५ बाइबल की विवरण शैली भी इस सदियों पुरानी पुस्तक में हमारा विश्‍वास मज़बूत करती है। कल्प-कथाओं के विपरीत, बाइबल में दी गयी घटनाएँ सुनिश्‍चित लोगों और तिथियों से जुड़ी हुई हैं। (१ राजा १४:२५; यशायाह ३६:१; लूका ३:१, २) और जबकि प्राचीन इतिहासकारों ने लगभग हमेशा अपने शासकों की विजय बढ़ा-चढ़ाकर बतायीं और उनकी पराजय तथा ग़लतियों को छुपाया, बाइबल लेखक निष्पक्ष और ईमानदार थे—यहाँ तक कि अपने गंभीर पापों के बारे में भी।—गिनती २०:७-१३; २ शमूएल १२:७-१४; २४:१०.

भविष्यवाणी की पुस्तक

१६. इसका सबसे ठोस प्रमाण क्या है कि बाइबल ईश्‍वरप्रेरित है?

१६ पूरित भविष्यवाणी इस बात का निर्णायक प्रमाण देती है कि बाइबल ईश्‍वरप्रेरित है। बाइबल में अनेक भविष्यवाणियाँ हैं जो पूर्ण रूप से पूरी हुई हैं। स्पष्टतया, तुच्छ मानव इसका ज़िम्मेदार नहीं हो सकता। तो, इन भविष्यवाणियों के पीछे क्या है? बाइबल स्वयं कहती है कि “कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्‍त जन पवित्र आत्मा [या परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति] के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे।” (२ पतरस १:२१) कुछ उदाहरणों पर विचार कीजिए।

१७. किन भविष्यवाणियों ने बाबुल के पतन को पूर्वबताया, और ये कैसे पूरी हुईं?

१७ बाबुल का पतन। यशायाह और यिर्मयाह दोनों ने ही पूर्वबताया था कि बाबुल का पतन मादियों और फ़ारसियों के द्वारा होगा। अनोखी बात यह है कि इस घटना के बारे में यशायाह की भविष्यवाणी बाबुल की पराजय से लगभग २०० साल पहले लिखी गयी थी! भविष्यवाणी के निम्नलिखित पहलू अब ऐतिहासिक अभिलेख हैं: फरात नदी के जल को एक कृत्रिम झील की दिशा में बहाने के द्वारा उसका सुखाया जाना (यशायाह ४४:२७; यिर्मयाह ५०:३८); बाबुल की नदी के फाटकों पर लापरवाही के कारण सुरक्षा की कमी (यशायाह ४५:१); और कुस्रू नामक शासक द्वारा विजय।—यशायाह ४४:२८.

१८. ‘यूनान के राजा’ के उत्थान और पतन में बाइबल भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?

१८ ‘यूनान के राजा’ का उत्थान और पतन। एक दर्शन में, दानिय्येल ने एक बकरा देखा जिसने एक मेढ़े को मारकर उसके दोनों सींगों को तोड़ दिया। फिर, बकरे का बड़ा सींग टूट गया, और उसकी जगह चार सींग निकल आए। (दानिय्येल ८:१-८) दानिय्येल को समझाया गया: “जो दो सींगवाला मेढ़ा तू ने देखा है, उसका अर्थ मादियों और फ़ारसियों के राज्य [के राजा, फुटनोट] से है। और वह रोंआर बकरा यूनान का राज्य [का राजा, फुटनोट] है; और उसकी आंखों के बीच जो बड़ा सींग निकला, वह पहिला राजा ठहरा। और वह सींग जो टूट गया और उसकी सन्ती जो चार सींग निकले, इसका अर्थ यह है कि उस जाति से चार राज्य उदय होंगे, परन्तु उनका बल उस पहिले का सा न होगा।” (दानिय्येल ८:२०-२२) इस भविष्यवाणी के अनुरूप, लगभग दो शताब्दियों बाद, ‘यूनान के राजा,’ सिकन्दर महान ने दो सींगवाले मादी-फ़ारसी साम्राज्य को गिरा दिया। सिकन्दर की मृत्यु सा.यु.पू. ३२३ में हुई, और उसके चार सेनापतियों ने अन्ततः उसका स्थान लिया। लेकिन, इनमें से कोई भी उत्तरवर्ती राज्य सिकन्दर के साम्राज्य की शक्‍ति की बराबरी में नहीं था।

१९. कौन-सी भविष्यवाणियाँ यीशु मसीह में पूरी हुईं?

१९ यीशु मसीह का जीवन। इब्रानी शास्त्र में बीसियों भविष्यवाणियाँ हैं जो यीशु के जन्म, सेवकाई, मृत्यु और पुनरुत्थान में पूरी हुईं। उदाहरण के लिए, ७०० साल से भी पहले से मीका ने पूर्वबताया था कि मसीहा, या मसीह बेतलेहेम में पैदा होगा। (मीका ५:२; लूका २:४-७) मीका के समकालिक यशायाह ने पूर्वबताया कि मसीहा को मारा जाएगा और उस पर थूका जाएगा। (यशायाह ५०:६; मत्ती २६:६७) पाँच सौ साल पहले से जकर्याह ने भविष्यवाणी की थी कि मसीहा को चाँदी के ३० सिक्कों के लिए पकड़वाया जाएगा। (जकर्याह ११:१२; मत्ती २६:१५) एक हज़ार साल से भी पहले से दाऊद ने यीशु अर्थात्‌ मसीहा की मृत्यु से सम्बन्धित परिस्थितियों को पूर्वबताया था। (भजन २२:७, ८, १८; मत्ती २७:३५, ३९-४३) और लगभग पाँच शताब्दियों पहले से दानिय्येल की भविष्यवाणी ने मसीहा के प्रकट होने का समय साथ ही उसकी सेवकाई की अवधि और उसकी मृत्यु का समय बताया था। (दानिय्येल ९:२४-२७) यह यीशु मसीह में पूरी हुई भविष्यवाणियों का मात्र एक नमूना है। बाद में उसके बारे में और ज़्यादा पढ़ना आपके लिए फलदायी होगा।

२०. पूरित भविष्यवाणी के बारे में बाइबल के पक्के रिकार्ड से हमें क्या विश्‍वास होना चाहिए?

२० अनेक अन्य दीर्घकालिक बाइबल भविष्यवाणियाँ पूरी हो चुकी हैं। ‘लेकिन,’ आप शायद पूछें, ‘इससे मेरे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?’ यदि कोई सालों से आपसे सच बोलता आया है, तो क्या जब वह आपको कोई नयी बात बताता है, तब आप अचानक ही उस पर संदेह करेंगे? जी नहीं! परमेश्‍वर ने पूरी बाइबल में सच बोला है। क्या इससे आपका भरोसा बाइबल की प्रतिज्ञाओं में नहीं बढ़ना चाहिए, जैसे कि आनेवाले पार्थिव परादीस के विषय में इसकी भविष्यवाणियाँ? सचमुच, हमारा विश्‍वास यीशु के प्रथम-शताब्दी शिष्य पौलुस की तरह हो सकता है, जिसने लिखा कि ‘परमेश्‍वर झूठ नहीं बोल सकता।’ (तीतुस १:२) इसके अतिरिक्‍त, जब हम शास्त्र को पढ़ते हैं और उसकी सलाह पर अमल करते हैं, तब हम उस बुद्धि से काम कर रहे हैं जो मनुष्य अपने आप नहीं पा सकते, क्योंकि बाइबल वह पुस्तक है जो परमेश्‍वर का ज्ञान प्रकट करती है जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है।

परमेश्‍वर के ज्ञान के लिए ‘लालसा विकसित कीजिए’

२१. यदि बाइबल से सीखी कुछ बातें आपको अभिभूत करनेवाली प्रतीत होती हैं तो आपको क्या करना चाहिए?

२१ जब आप बाइबल का अध्ययन करते हैं, तो आप संभवतः ऐसी बातें सीखेंगे जो आपको पहले सिखायी गयी बातों से भिन्‍न हैं। आप शायद यह भी पाएँ कि आपकी पसन्द के कुछ धार्मिक रिवाज़ परमेश्‍वर को प्रसन्‍न नहीं करते। आप सीखेंगे कि सही और ग़लत के बारे में परमेश्‍वर के स्तर हैं जो इस अनुज्ञात्मक संसार में प्रचलित स्तरों से ऊँचे हैं। यह शुरू-शुरू में अभिभूत करनेवाला प्रतीत हो सकता है। लेकिन धीरज धरिए! परमेश्‍वर का ज्ञान पाने के लिए ध्यानपूर्वक शास्त्र की जाँच कीजिए। इस संभावना को स्वीकार करने के लिए तैयार रहिए कि बाइबल की सलाह आपके सोच-विचार और कार्यों में समंजन की माँग कर सकती है।

२२. आप बाइबल का अध्ययन क्यों कर रहे हैं, और यह समझने में आप दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं?

२२ शुभचिंतक मित्र और रिश्‍तेदार शायद आपके बाइबल अध्ययन का विरोध करें, लेकिन यीशु ने कहा: “जो कोई मनुष्यों के साम्हने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के साम्हने मान लूंगा। पर जो कोई मनुष्यों के साम्हने मेरा इन्कार करेगा उस से मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के साम्हने इन्कार करूंगा।” (मत्ती १०:३२, ३३) कुछ लोगों को शायद यह डर हो कि आप किसी पंथ के चक्कर में पड़ जाएँगे या हठधर्मी बन जाएँगे। लेकिन, असल में आप परमेश्‍वर और उसके सत्य का यथार्थ ज्ञान पाने की मात्र कोशिश कर रहे हैं। (१ तीमुथियुस २:३, ४) दूसरों को यह समझने में मदद करने के लिए, जब आप उनसे उन बातों के बारे में बात करते हैं जो आप सीख रहे हैं तो समझदारी से काम लीजिए, बहसबाजी मत कीजिए। (फिलिप्पियों ४:५) याद रखिए कि अनेक लोग ‘वचन बिना ही जीते जाते हैं’ जब वे इस बात का प्रमाण देखते हैं कि बाइबल ज्ञान वास्तव में लोगों को लाभ पहुँचाता है।—१ पतरस ३:१, २, NHT.

२३. आप परमेश्‍वर के ज्ञान के लिए कैसे ‘लालसा विकसित कर’ सकते हैं?

२३ बाइबल हमसे आग्रह करती है: “नवजात शिशुओं की तरह, वचन के शुद्ध दूध की लालसा विकसित करो।” (१ पतरस २:२, NW) एक शिशु अपनी माँ से मिले पोषण पर निर्भर होता है और हठ करता है कि उसकी यह ज़रूरत पूरी की जाए। उसी प्रकार, हम परमेश्‍वर से मिले ज्ञान पर निर्भर हैं। अपने अध्ययन को जारी रखने के द्वारा उसके वचन के लिए ‘लालसा विकसित कीजिए।’ सचमुच, प्रतिदिन बाइबल पढ़ना अपना लक्ष्य बनाइए। (भजन १:१-३) यह आपके लिए बड़ी आशिषें लाएगा, क्योंकि भजन १९:११ परमेश्‍वर के नियमों के बारे में कहता है: “उनके पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है।”

[फुटनोट]

^ पैरा. 5 सा.यु.पू. का अर्थ है “सामान्य युग पूर्व,” जो कि ई.पू. (“ईसा पूर्व”) से अधिक यथार्थ है। सा.यु. “सामान्य युग” को सूचित करता है, जिसे अकसर ई.सन्‌ (A.D.) कहा जाता है, जो anno Domini के लिए प्रयोग होता है अर्थात्‌ “हमारे प्रभु के वर्ष में।”

अपने ज्ञान को जाँचिए

किन तरीक़ों से बाइबल अन्य पुस्तकों से भिन्‍न है?

आप बाइबल पर क्यों भरोसा कर सकते हैं?

क्या बात आपको यह साबित करती है कि बाइबल परमेश्‍वर का उत्प्रेरित वचन है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 14 पर बक्स]

अपनी बाइबल से परिचित होइए

ज़रूरी नहीं कि बाइबल से परिचित होना मुश्‍किल हो। बाइबल पुस्तकों के क्रम और स्थान को सीखने के लिए उसकी विषय-सूची को प्रयोग कीजिए।

ढूँढने में आसानी के लिए बाइबल की पुस्तकों में अध्याय और आयतें हैं। अध्याय विभाजन १३वीं शताब्दी में किया गया था, और प्रत्यक्षतः १६वीं शताब्दी के एक फ्रांसीसी मुद्रक ने यूनानी शास्त्र को वर्तमान-समय की आयतों में विभाजित किया। वर्ष १५५३ में प्रकाशित एक फ्रांसीसी संस्करण वह पहली पूर्ण बाइबल थी जिसमें अध्याय और आयत संख्या दोनों थे।

जब इस पुस्तक में शास्त्रवचनों को उद्धृत किया जाता है, तब पहली संख्या अध्याय का संकेत करती है और अगली संख्या आयत को सूचित करती है। उदाहरण के लिए, उद्धरण “नीतिवचन २:५” का अर्थ है नीतिवचन की पुस्तक, अध्याय २, आयत ५. उद्धृत शास्त्रवचनों को खोलने के द्वारा आप जल्द ही बाइबल पाठों को ढूँढना आसान पाएँगे।

बाइबल से परिचित होने का सर्वोत्तम तरीक़ा है इसे प्रतिदिन पढ़ना। पहले-पहल, यह शायद चुनौतीपूर्ण लगे। लेकिन यदि आप अध्याय की लम्बाई के अनुसार, हर दिन तीन से पाँच अध्याय पढ़ें, तो आप एक साल में पूरी बाइबल पढ़ लेंगे। क्यों न आज ही शुरू करें?

[पेज 19 पर बक्स]

बाइबल—एक अनोखी पुस्तक

• बाइबल ‘परमेश्‍वर की प्रेरणा से रची गयी है।’ (२ तीमुथियुस ३:१६) हालाँकि मनुष्यों ने इसके शब्द लिखे, परमेश्‍वर ने उनके विचारों को निर्देशित किया, इस कारण बाइबल वास्तव में “परमेश्‍वर का वचन” है।—१ थिस्सलुनीकियों २:१३.

• बाइबल को १६ शताब्दियों से अधिक अवधि में, अलग-अलग पृष्ठभूमि के लगभग ४० लोगों ने लिखा था। फिर भी, पूरी बाइबल शुरू से लेकर आख़िर तक सुसंगत है।

• बाइबल किसी भी अन्य पुस्तक से ज़्यादा विवाद झेलने के बाद भी टिकी हुई है। मध्य युग के दौरान, लोगों को बस शास्त्र की एक प्रति रखने के लिए ही सूली पर जला दिया जाता था।

• बाइबल संसार में सबसे अधिक बिकनेवाली पुस्तक है। इसके सभी अथवा कुछ भागों का अनुवाद २,००० से ज़्यादा भाषाओं में किया गया है। अरबों प्रतियाँ छापी गयी हैं, और पृथ्वी पर शायद ही कोई जगह हो जहाँ एक प्रति न मिले।

बाइबल का सबसे पुराना भाग सा.यु.पू. १६वीं शताब्दी का है। यह हिन्दू ऋग्वेद (लगभग सा.यु.पू. १३०० में), या बौद्ध त्रिपिटक (सा.यु.पू. पाँचवीं शताब्दी), या इस्लामी कुरान (सा.यु. सातवीं शताब्दी), साथ ही शिन्टो निहोन्गी  (सा.यु. ७२०) से पहले का है।

[पेज 20 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]