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हमारे मृत प्रिय जनों को क्या होता है?

हमारे मृत प्रिय जनों को क्या होता है?

अध्याय ९

हमारे मृत प्रिय जनों को क्या होता है?

१. जब एक प्रिय जन की मृत्यु होती है तो लोग कैसा महसूस करते हैं?

“व्यक्‍ति दुःखी होता है जब एक प्रिय जन मरता है क्योंकि मृत्यु उस व्यक्‍ति का अभाव है जो समझ से परे गुमनामी में खो जाता है।” एक पुत्र ने यह कहा जब उसके पिता और कुछ ही समय बाद उसकी माता की मृत्यु हो गयी। उसकी पीड़ा और गहरे अभाव की भावना से उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि वह “भावात्मक रूप से डूब रहा” था। शायद आप भी समान रूप से दुःखी हुए हों। आपने शायद सोचा हो कि आपके प्रिय जन कहाँ हैं और क्या आप कभी उन्हें दुबारा देखेंगे।

२. मृत्यु के सम्बन्ध में कौन-से उलझानेवाले प्रश्‍न उठते हैं?

कुछ शोकग्रस्त माता-पिताओं को कहा गया है, “परमेश्‍वर अपने पास स्वर्ग में रखने के लिए सबसे सुन्दर फूल तोड़ लेता है।” क्या वास्तव में ऐसा है? क्या हमारे मृत प्रिय जन आत्मिक क्षेत्र में गए हैं? क्या यह वह है जिसे कुछ लोग निर्वाण कहते हैं, जिसका वर्णन सब पीड़ा और इच्छा से मुक्‍त एक आनन्दपूर्ण अवस्था के रूप में किया गया है? क्या जिनसे हम प्रेम करते हैं वे परादीस में अमर जीवन के द्वार से प्रवेश कर चुके हैं? या जैसे दूसरे दावा करते हैं, क्या मृत्यु उनके लिए अन्तहीन यातना में पतन है जिन्होंने परमेश्‍वर को अप्रसन्‍न किया है? क्या मृत जन हमारा जीवन प्रभावित कर सकते हैं? ऐसे प्रश्‍नों के सत्यपूर्ण उत्तर पाने के लिए हमें परमेश्‍वर के वचन, बाइबल को जाँचने की ज़रूरत है।

मनुष्यों में जो “आत्मा” है वह क्या है?

३. मृत जनों के बारे में सुक़रात और अफ़लातून का क्या विचार था, और आज यह लोगों को कैसे प्रभावित करता है?

प्राचीन यूनानी तत्वज्ञानी सुक़रात और अफ़लातून मानते थे कि पुरुष और स्त्री के अन्दर ज़रूर कुछ ऐसा होगा जो स्वाभाविक रूप से अमर है—एक आत्मा जो मृत्यु के समय बच जाती है और वास्तव में कभी नहीं मरती। पृथ्वी-भर में, आज करोड़ों लोग इस पर विश्‍वास करते हैं। यह विश्‍वास अकसर मृत जनों का उतना ही भय भी उत्पन्‍न करता है जितना कि उनके हित की चिन्ता। बाइबल हमें मृत जनों के बारे में बहुत भिन्‍न शिक्षा देती है।

४. (क) उत्पत्ति हमें प्राण के बारे में क्या बताती है? (ख) आदम को जीवित बनाने के लिए परमेश्‍वर ने उसमें क्या डाला?

जिस तरह बाइबल मनुष्य के बनाए जाने के बारे में बताती है वह बहुत-ही सरल है और किसी भी जटिल इंसानी तत्त्वज्ञान और अंध-विश्‍वास से मुक्‍त है। बाइबल की पहली ही किताब उत्पत्ति २:७ हमें बताती है: ‘यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्‍वास फूंक दिया; और आदम जीवता नेफेश * [इब्रानी भाषा में, “सांस लेनेवाला”] बन गया।’ ध्यान दीजिए कि मनुष्य को एक आत्मा नहीं दी गई थी, बल्कि एक पुतले में “जीवन का श्‍वास” फूंका गया था और तब वह पुरुष या जीवित प्राणी बन गया। ज़ाहिर है कि इसांन को जीवित और चेतन बनने के लिए अपने अंदर एक आत्मा की ज़रूरत नहीं थी। आदम का जीवन श्‍वास लेने का द्वारा क़ायम था। फिर भी, जब परमेश्‍वर ने आदम के अन्दर जीवन का श्‍वास डाला तब मनुष्य के फेफड़ों में मात्र वायु फूँकने से अधिक सम्मिलित था। बाइबल “जीवन-शक्‍ति” के बारे में बोलती है जो पार्थिव जीवित सृष्टि में सक्रिय है।—उत्पत्ति ७:२२, NW.

५, ६. (क) “जीवन-शक्‍ति” क्या है? (ख) जब भजन १४६:४ में उल्लिखित “श्‍वास” देह को सजीव रखना छोड़ देता है तब क्या होता है?

“जीवन-शक्‍ति” क्या है? यह जीवनदायी तत्त्व है जो परमेश्‍वर ने आदम की निर्जीव देह में डाला। तब यह शक्‍ति श्‍वसन प्रक्रिया द्वारा क़ायम रखी गयी। लेकिन भजन १४६:४ (NW) में उल्लिखित “श्‍वास” क्या है? वह आयत मरनेवाले के बारे में बोलती है: “उसका श्‍वास निकल जाता है, वह फिर से अपनी भूमि में चला जाता है; उसी दिन उसकी योजनाएँ नष्ट हो जाती हैं।” जब बाइबल लेखकों ने इस ढंग से “श्‍वास” शब्द का प्रयोग किया, तब उनके मन में देहमुक्‍त आत्मा का विचार नहीं था जो देह के मरने के बाद भी जीना जारी रखती है।

मृत्यु के समय मनुष्यों से जो “श्‍वास” चला जाता है यह वह जीवन-शक्‍ति है जिसका उद्‌गम हमारे सृष्टिकर्ता से हुआ। (भजन ३६:९; प्रेरितों १७:२८) इस जीवन-शक्‍ति में उस जीव की कोई भी विशेषता नहीं होती जिसको वह सजीव करती है, जैसे बिजली उस उपकरण के गुण नहीं अपना लेती जिसको वह बिजली देती है। जब कोई मरता है, तो श्‍वास (जीवन-शक्‍ति) शरीर की कोशिकाओं को सजीव रखना छोड़ देता है, काफ़ी कुछ वैसे ही जैसे बिजली बन्द करने पर बत्ती बुझ जाती है। जब जीवन-शक्‍ति मानव देह को क़ायम रखना बन्द कर देती है, तब मनुष्य पूरी तरह मर जाता है।—भजन १०४:२९; सभोपदेशक १२:१, ७.

‘तू मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा’

७. यदि आदम परमेश्‍वर की अवज्ञा करता तो उसे क्या होता?

यहोवा ने स्पष्ट रूप से समझाया कि पापी आदम के लिए मृत्यु का क्या अर्थ होता। परमेश्‍वर ने कहा: “[तू] अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।” (उत्पत्ति ३:१९) आदम फिर से कहाँ जाता? भूमि में, मिट्टी में जिससे वह सृजा गया था। मृत्यु होने पर आदम अस्तित्व में नहीं रहता!

८. किस प्रकार मनुष्य पशुओं से बढ़कर नहीं हैं?

इस सम्बन्ध में, मानव मृत्यु पशुओं की मृत्यु से भिन्‍न नहीं है। वे भी नेफेश हैं, और वही “श्‍वास”, या जीवन-शक्‍ति उनको भी सक्रिय करती है। (उत्पत्ति १:२४) सभोपदेशक ३:१९, २० में बुद्धिमान पुरुष सुलैमान हमें बताता है: “जैसे एक मरता वैसे ही दूसरा भी मरता है। सभों की स्वांस एक सी है, और [मृत्यु में] मनुष्य पशु से कुछ बढ़कर नहीं; . . . सब मिट्टी से बने हैं, और सब मिट्टी में फिर मिल जाते हैं।” मनुष्य पशुओं से इस सम्बन्ध में बढ़कर था कि वह परमेश्‍वर के स्वरूप में सृजा गया था, जो यहोवा के गुणों को प्रतिबिम्बित करता था। (उत्पत्ति १:२६, २७) फिर भी, मृत्यु होने पर मनुष्य और पशु एकसमान फिर से मिट्टी में मिल जाते हैं।

९. मृत जनों की क्या अवस्था है, और वे कहाँ जाते हैं?

सुलैमान ने आगे समझाया कि मृत्यु का क्या अर्थ है, उसने कहा: “जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते।” जी हाँ, मरे हुए बिलकुल भी नहीं जानते। इसको ध्यान में रखते हुए, सुलैमान ने आग्रह किया: “जो काम तुझे मिले उसे अपनी शक्‍ति भर करना, क्योंकि अधोलोक में जहां तू जानेवाला है, न काम न युक्‍ति न ज्ञान और न बुद्धि है।” (सभोपदेशक ९:५, १०) मृत जन कहाँ जाते हैं? अधोलोक में (इब्रानी, शीओल), अर्थात्‌ मानवजाति की सामान्य क़ब्र। हमारे मृत प्रिय जन किसी भी बात के बारे में सचेत नहीं हैं। वे दुःख नहीं उठा रहे हैं, और वे किसी भी तरह हमें प्रभावित नहीं कर सकते।

१०. हम क्यों कह सकते हैं कि मृत्यु को समापक होना ज़रूरी नहीं?

१० क्या यह ज़रूरी है कि हम सभी और हमारे प्रिय जन मात्र कुछ ही साल जीएँ और फिर हमेशा के लिए अस्तित्वहीन हो जाएँ? बाइबल के अनुसार नहीं। आदम के विद्रोह के समय, यहोवा परमेश्‍वर ने मानव पाप के भयंकर परिणामों को पलटने के लिए तुरन्त प्रबन्ध किए। मृत्यु मानवजाति के लिए परमेश्‍वर के उद्देश्‍य का भाग नहीं थी। (यहेजकेल ३३:११; २ पतरस ३:९) अतः, मृत्यु को हमारे लिए या हमारे प्रिय जनों के लिए समापक होना ज़रूरी नहीं।

“सो गया है”

११. यीशु ने अपने मृत मित्र लाजर की अवस्था का वर्णन कैसे किया?

११ यह यहोवा का उद्देश्‍य है कि हमें और हमारे मृत प्रिय जनों को आदमीय मृत्यु से बचाए। इसलिए, परमेश्‍वर का वचन मृत जनों का उल्लेख सोए हुए व्यक्‍तियों के रूप में करता है। उदाहरण के लिए, यह जानने पर कि उसका मित्र लाजर मर गया था, यीशु मसीह ने अपने शिष्यों से कहा: “हमारा मित्र लाजर सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूं।” चूँकि शिष्यों को इस कथन का अर्थ तुरन्त नहीं समझ आया, यीशु ने साफ़-साफ़ कहा: “लाजर मर गया है।” (यूहन्‍ना ११:११, १४) तब यीशु बैतनिय्याह नगर गया, जहाँ लाजर की बहनें मरथा और मरियम अपने भाई की मृत्यु का शोक मना रही थीं। जब यीशु ने मरथा को कहा, “तेरा भाई जी उठेगा,” तब उसने मानव परिवार पर मृत्यु के प्रभावों को पलटने के परमेश्‍वर के उद्देश्‍य पर अपना विश्‍वास व्यक्‍त किया। उसने कहा: “मैं जानती हूं, कि अन्तिम दिन में पुनरुत्थान के समय वह जी उठेगा।”—यूहन्‍ना ११:२३, २४.

१२. मृत जनों के सम्बन्ध में शोकित मरथा को क्या आशा थी?

१२ मृत्यु के बाद एक अमर प्राण के कहीं और जीते रहने के बारे में मरथा ने कुछ नहीं कहा। वह यह विश्‍वास नहीं करती थी कि लाजर अपने अस्तित्व को जारी रखने के लिए किसी आत्मिक क्षेत्र में जा चुका था। मरथा को मृतकों में से पुनरुत्थान की अद्‌भुत आशा में विश्‍वास था। उसने यह नहीं समझा कि एक अमर प्राण लाजर के शरीर से निकल गया था, बल्कि यह समझा कि उसका मृत भाई अस्तित्वहीन हो गया था। समाधान होता उसके भाई का पुनरुत्थान।

१३. यीशु के पास कौन-सी परमेश्‍वर-प्रदत्त शक्‍ति है, और उसने यह शक्‍ति कैसे प्रदर्शित की?

१३ यीशु मसीह को यहोवा परमेश्‍वर ने मानवजाति को छुड़ाने की शक्‍ति दी है। (होशे १३:१४) अतः, मरथा के कथन के जवाब में यीशु ने कहा: “पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूं जो कोई मुझ पर विश्‍वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा।” (यूहन्‍ना ११:२५) इस सम्बन्ध में यीशु ने अपनी परमेश्‍वर-प्रदत्त शक्‍ति को प्रदर्शित किया जब वह लाजर की क़ब्र पर गया, जिसे मरे चार दिन हो गए थे, और उसे फिर से जीवित किया। (यूहन्‍ना ११:३८-४४) उन लोगों के आनन्द की कल्पना कीजिए जिन्होंने यह पुनरुत्थान या यीशु मसीह द्वारा किए गए अन्य पुनरुत्थान देखे!—मरकुस ५:३५-४२; लूका ७:१२-१६.

१४. पुनरुत्थान और एक अमर प्राण का विचार क्यों असंगत हैं?

१४ इस बात पर विचार करने के लिए ज़रा ठहरिए: यदि मृत्यु होने पर एक अमर प्राण जीवित बचता तो किसी को भी पुनरुत्थित करने या दुबारा जीवित करने की ज़रूरत नहीं होती। असल में, लाजर जैसे व्यक्‍ति को पृथ्वी पर अपरिपूर्ण जीवन के लिए पुनरुत्थित करना कोई कृपा नहीं होती यदि वह एक शानदार स्वर्गीय प्रतिफल पा चुका था। वास्तव में, बाइबल “अमर प्राण” अभिव्यक्‍ति कभी-भी प्रयोग नहीं करती। इसके बजाय, शास्त्र कहता है कि पाप करनेवाला मानव प्राण मरता है। (यहेजकेल १८:४, २०) सो बाइबल मृत्यु के असली समाधान के रूप में पुनरुत्थान के प्रबन्ध की ओर संकेत करती है।

‘जितने स्मारक क़ब्रों में हैं’

१५. (क) “पुनरुत्थान” शब्द का क्या अर्थ है? (ख) व्यक्‍तियों का पुनरुत्थान यहोवा परमेश्‍वर के लिए कोई समस्या क्यों नहीं खड़ी करेगा?

१५ “पुनरुत्थान” के लिए यीशु के शिष्यों ने जो शब्द प्रयोग किया उसका आक्षरिक अर्थ है “उठना” या “खड़ा होना।” यह मृत्यु की निर्जीव अवस्था से उठना है—मानो, मानवजाति की सामान्य क़ब्र से निकल खड़ा होना। यहोवा परमेश्‍वर एक व्यक्‍ति को आसानी से पुनरुत्थित कर सकता है। क्यों? क्योंकि यहोवा जीवन का आरंभक है। आज, मनुष्य पुरुषों और स्त्रियों की आवाज़ें और प्रतिबिम्ब वीडियो पर रिकॉर्ड कर सकते हैं और उन व्यक्‍तियों के मरने के बाद ये टेप फिर से चला सकते हैं। तो, निश्‍चित ही हमारा सर्वशक्‍तिमान सृष्टिकर्ता किसी भी व्यक्‍ति के विवरण रिकॉर्ड कर सकता है और उसी व्यक्‍ति को नव-निर्मित शरीर देकर पुनरुत्थित कर सकता है।

१६. (क) उन सभी के बारे में जो स्मारक क़ब्रों में हैं यीशु ने क्या प्रतिज्ञा की? (ख) क्या बात निर्धारित करेगी कि एक व्यक्‍ति का पुनरुत्थान कैसा साबित होता है?

१६ यीशु मसीह ने कहा: “वह समय आता है, कि जितने क़ब्रों [“स्मारक क़ब्रों,” NW] में हैं, उसका [यीशु का] शब्द सुनकर निकलेंगे। जिन्हों ने भलाई की है वे जीवन के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्हों ने बुराई की है वे दंड के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे।” (यूहन्‍ना ५:२८, २९) वे सभी जो यहोवा के स्मरण में हैं पुनरुत्थित किए जाएँगे और उसके मार्गों में शिक्षित किए जाएँगे। उनके लिए जो परमेश्‍वर के ज्ञान के सामंजस्य में कार्य करते हैं, यह जीवन का पुनरुत्थान साबित होगा। लेकिन, जो परमेश्‍वर की शिक्षाओं और शासकत्व को अस्वीकार करते हैं उनके लिए यह दंडात्मक न्याय का पुनरुत्थान साबित होगा।

१७. किसका पुनरुत्थान होगा?

१७ स्वाभाविक है कि जो यहोवा के सेवकों के रूप में धर्मी मार्ग पर चले हैं उनका पुनरुत्थान होगा। असल में, पुनरुत्थान की आशा ने अनेकों को मृत्यु का सामना करने की शक्‍ति दी, हिंसक सताहट की परिस्थितियों में भी। वे जानते थे कि परमेश्‍वर उन्हें फिर से जीवित कर सकता था। (मत्ती १०:२८) लेकिन करोड़ों लोग यह दिखाए बिना ही मर गए हैं कि वे परमेश्‍वर के धर्मी स्तरों पर चलते या नहीं। उनका भी पुनरुत्थान होगा। इस सम्बन्ध में यहोवा के उद्देश्‍य के बारे में विश्‍वस्त, प्रेरित पौलुस ने कहा: “[मैं] परमेश्‍वर से आशा रखता हूं . . . कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।”—प्रेरितों २४:१५.

१८. (क) प्रेरित यूहन्‍ना ने पुनरुत्थान का कौन-सा दर्शन पाया? (ख) “आग की झील” में किसे नाश किया जाता है, और यह “झील” किसे चित्रित करती है?

१८ प्रेरित यूहन्‍ना ने परमेश्‍वर के सिंहासन के सामने खड़े हुए पुनरुत्थित जनों का एक रोमांचक दर्शन पाया। फिर यूहन्‍ना ने लिखा: “समुद्र ने उन मरे हुओं को जो उस में थे दे दिया, और मृत्यु और अधोलोक ने उन मरे हुओं को जो उन में थे दे दिया; और उन में से हर एक के कामों के अनुसार उन का न्याय किया गया। और मृत्यु और अधोलोक भी आग की झील में डाले गए; यह आग की झील तो दूसरी मृत्यु है।” (प्रकाशितवाक्य २०:१२-१४) ज़रा सोचिए! उन सभी मरे हुओं के पास अधोलोक (यूनानी, हेडीस्‌), या शीओल, अर्थात्‌ मानवजाति की सामान्य क़ब्र से मुक्‍ति की प्रत्याशा है जो परमेश्‍वर के स्मरण में हैं। (भजन १६:९; प्रेरितों २:३१) उनके पास अपने कार्यों के द्वारा यह प्रदर्शित करने का अवसर होगा कि वे परमेश्‍वर की सेवा करेंगे या नहीं। तब “मृत्यु और अधोलोक” को “आग की झील” में डाल दिया जाएगा, जो पूर्ण विनाश को चित्रित करती है, “गेहन्‍ना” शब्द भी यही चित्रित करता है। (लूका १२:५, NW) मानवजाति की सामान्य क़ब्र को भी खाली कर दिया गया होगा और पुनरुत्थान पूरा होने पर वह अस्तित्व में नहीं रहेगी। बाइबल से यह सीखना कितना सांत्वनादायक है कि परमेश्‍वर किसी को यातना नहीं देता!—यिर्मयाह ७:३०, ३१.

कहाँ जाने के लिए पुनरुत्थान?

१९. मानवजाति में से कुछ लोग स्वर्ग के लिए क्यों पुनरुत्थित किए जाएँगे, और परमेश्‍वर उन्हें किस क़िस्म की देह देगा?

१९ एक सीमित संख्या में पुरुषों और स्त्रियों का पुनरुत्थान स्वर्ग में जीवन के लिए होगा। यीशु के साथ राजाओं और याजकों की हैसियत से, वे उस मृत्यु के सभी प्रभावों को मिटाने में भाग लेंगे जो मानवजाति ने प्रथम पुरुष, आदम से उत्तराधिकार में पायी है। (रोमियों ५:१२; प्रकाशितवाक्य ५:९, १०) परमेश्‍वर कितने लोगों को मसीह के साथ राज्य करने के लिए स्वर्ग ले जाएगा? बाइबल के अनुसार, मात्र १,४४,००० को। (प्रकाशितवाक्य ७:४; १४:१) यहोवा इन सभी पुनरुत्थित जनों को आत्मिक देह देगा ताकि वे स्वर्ग में रह सकें।—१ कुरिन्थियों १५:३५, ३८, ४२-४५; १ पतरस ३:१८.

२०. पुनरुत्थित व्यक्‍तियों सहित आज्ञाकारी मानवजाति क्या अनुभव करेगी?

२० जो लोग मरे हैं उनमें से अधिकांश जन परादीस पृथ्वी पर पुनरुत्थित किए जाएँगे। (भजन ३७:११, २९; मत्ती ६:१०) कुछ लोगों को स्वर्ग के लिए पुनरुत्थित करने का आंशिक कारण है पृथ्वी के लिए परमेश्‍वर का उद्देश्‍य पूरा करना। स्वर्ग में यीशु मसीह और १,४४,००० क्रमिक रूप से आज्ञाकारी मानवजाति को परिपूर्णता की ओर लाएँगे जो हमारे मौलिक माता-पिता ने गँवा दी। इसमें पुनरुत्थित जन भी शामिल होंगे, जैसा यीशु ने सूचित किया था जब उसने अपने बग़ल में लटकाए गए मरणासन्‍न पुरुष से कहा: “तू मेरे साथ परादीस में होगा।”—लूका २३:४२, ४३, NW.

२१. भविष्यवक्‍ता यशायाह और प्रेरित यूहन्‍ना के अनुसार मृत्यु को क्या होगा?

२१ परादीस पृथ्वी पर से मृत्यु को हटा दिया जाएगा, जो आज इतनी व्यर्थता उत्पन्‍न करती है। (रोमियों ८:१९-२१) भविष्यवक्‍ता यशायाह ने घोषित किया कि यहोवा परमेश्‍वर “मृत्यु को सदा के लिये नाश करेगा।” (यशायाह २५:८) प्रेरित यूहन्‍ना को उस समय का दर्शन दिया गया था जब आज्ञाकारी मानवजाति पीड़ा और मृत्यु से स्वतंत्रता अनुभव करेगी। जी हाँ, “परमेश्‍वर आप उनके साथ रहेगा; . . . और वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी; और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।”—प्रकाशितवाक्य २१:१-४.

२२. पुनरुत्थान के बारे में ज्ञान आपको कैसे प्रभावित करता है?

२२ बाइबल की स्पष्ट शिक्षाएँ इस गड़बड़ी को दूर कर देती हैं कि मृत जनों को क्या होता है। शास्त्र साफ़-साफ़ बताता है कि मृत्यु “अन्तिम बैरी” है जो नाश किया जाएगा। (१ कुरिन्थियों १५:२६) पुनरुत्थान की आशा के बारे में ज्ञान से हम कितनी शक्‍ति और सांत्वना पा सकते हैं! और हम कितने ख़ुश हो सकते हैं कि हमारे मृत प्रिय जन जो परमेश्‍वर के स्मरण में हैं, उन सभी अच्छी वस्तुओं का आनन्द उठाने के लिए मृत्यु की नींद से जागेंगे, जो परमेश्‍वर ने उससे प्रेम करनेवालों के लिए रखी हैं! (भजन १४५:१६) ऐसी आशिषें परमेश्‍वर के राज्य के द्वारा मिलेंगी। लेकिन उसका शासन कब शुरू होना था? आइए देखें।

[फुटनोट]

^ पैरा. 4 बाइबल में इब्रानी शब्द नेफेश ७०० बार आता है। इस शब्द का मतलब एक साये जैसी आत्मा हरगिज़ नहीं है बल्कि यह दिखनेवाली भौतिक वस्तु को सूचित करता है।

अपने ज्ञान को जाँचिए

मनुष्यों में जो आत्मा है वह क्या है?

आप मृत जनों की अवस्था का वर्णन कैसे करेंगे?

किसका पुनरुत्थान होगा?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 85 पर तसवीर]

जैसे यीशु ने लाजर को क़ब्र से बुलाया, वैसे ही करोड़ों लोगों का पुनरुत्थान होगा

[पेज 86 पर तसवीर]

आनन्द व्याप्त होगा जब ‘परमेश्‍वर मृत्यु को सदा के लिये नाश करेगा’