इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

हम क्यों बूढ़े होते और मरते हैं?

हम क्यों बूढ़े होते और मरते हैं?

अध्याय ६

हम क्यों बूढ़े होते और मरते हैं?

१. वैज्ञानिक मानव जीवन के बारे में क्या समझाने में असमर्थ रहे हैं?

वैज्ञानिक नहीं जानते कि मनुष्य क्यों बूढ़े होते और मरते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि हमारी कोशिकाओं को नवीकृत होते रहना चाहिए और हमें सर्वदा जीवित रहना चाहिए। पुस्तक ह्‍योजून सोशीकीगाकू (प्रामाणिक ऊतक-विज्ञान) कहती है: “यह एक बड़ा रहस्य है कि कैसे कोशिकाओं का बुढ़ाना एक व्यक्‍ति के बुढ़ाने और मृत्यु से सम्बन्धित है।” अनेक वैज्ञानिक मानते हैं कि जीवन की एक “स्वाभाविक, सहज” सीमा है। क्या आप सोचते हैं कि वे सही हैं?

२. क्योंकि जीवन इतना क्षणभंगुर है कुछ लोगों ने क्या किया है?

मनुष्य हमेशा लम्बी उम्र के लिए लालायित रहे हैं और उन्होंने अमरता प्राप्त करने की भी कोशिश की है। सामान्य युग पूर्व चौथी शताब्दी से, ऐसी दवाओं ने चीन के कुलीन लोगों का ध्यान आकर्षित किया जो कहा जाता है कि अमरता संभव करने के उद्देश्‍य से बनायी गयी थीं। बाद के कुछ चीनी सम्राटों ने ये पारे से बनाए गए तथाकथिक अमृत इस्तेमाल किए—और मर गए! पृथ्वी के सभी भागों में लोग विश्‍वास करते हैं कि मृत्यु उनके अस्तित्व का अन्त नहीं है। बौद्ध, हिन्दू, मुसलमान और अन्य, सभी के पास मृत्यु के बाद जीवन की उज्जवल आशाएँ हैं। मसीहीजगत में, अनेक लोग मरणोत्तर स्वर्ग-सुख का सपना देखते हैं।

३. (क) मनुष्य अनन्त जीवन की लालसा क्यों करते हैं? (ख) मृत्यु के बारे में कौन-से प्रश्‍नों के उत्तर पाने की ज़रूरत है?

मृत्यु के बाद सुख की धारणाएँ अनन्त जीवन की लालसा को प्रतिबिम्बित करती हैं। जो अनन्तता का विचार परमेश्‍वर ने हमारे अन्दर डाला है उसके बारे में बाइबल कहती है, “उसने उनके मनों में अनन्तता का ज्ञान भी उत्पन्‍न किया है।” (सभोपदेशक ३:११, NHT) उसने प्रथम मनुष्यों को पृथ्वी पर सर्वदा जीवित रहने की प्रत्याशा के साथ सृजा था। (उत्पत्ति २:१६, १७) तो, मनुष्य क्यों मरते हैं? मृत्यु संसार में कैसे आयी? परमेश्‍वर का ज्ञान इन प्रश्‍नों पर प्रकाश डालता है।—भजन ११९:१०५.

एक अनर्थकारी षड्यन्त्र

४. यीशु ने मानव मृत्यु के लिए ज़िम्मेदार अपराधी की पहचान कैसे करायी?

अपराधी अपने अपराध के सबूत छिपाने की कोशिश करता है। यह उसके बारे में भी सच है जो उस अपराध का ज़िम्मेदार है जिसके फलस्वरूप अरबों लोगों की मृत्यु हुई है। उसने बातों को ऐसे छलयोजित किया है कि मानव मृत्यु को रहस्य में छिपा दे। यीशु मसीह ने इस अपराधी की पहचान करायी जब उसने उसे मारने की कोशिश कर रहे लोगों से कहा: “तुम अपने पिता शैतान से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरम्भ से हत्यारा है, और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उस में है ही नहीं।”—यूहन्‍ना ८:३१, ४०, ४४.

५. (क) जो शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस बन गया उसका उद्‌गम क्या था? (ख) “शैतान” और “इब्‌लीस” शब्दों का क्या अर्थ है?

जी हाँ, इब्‌लीस विद्वेषी “हत्यारा” है। बाइबल प्रकट करती है कि वह एक वास्तविक व्यक्‍ति है, किसी के हृदय की मात्र दुष्टता नहीं। (मत्ती ४:१-११) हालाँकि उसे एक धर्मी स्वर्गदूत के रूप में सृजा गया था ‘वह सत्य पर स्थिर न रहा।’ यह कितना उपयुक्‍त है कि उसे शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस नाम दिया गया है! (प्रकाशितवाक्य १२:९) उसे “शैतान” या “विरोधी” कहा जाता है क्योंकि उसने यहोवा का प्रतिरोध और विरोध किया है। इस अपराधी को “इब्‌लीस” अर्थात्‌ “निन्दक” भी कहा जाता है, क्योंकि उसने निन्दात्मक रूप से परमेश्‍वर का विकृत रूप प्रस्तुत किया है।

६. शैतान ने परमेश्‍वर के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया?

किस बात ने शैतान को परमेश्‍वर के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया? लालच। उसने लालच के कारण वह उपासना चाही जो यहोवा को मनुष्यों से मिल रही थी। इब्‌लीस ने ऐसी उपासना पाने की अभिलाषा को दूर नहीं किया, जो उचित रूप से केवल सृष्टिकर्ता को जानी चाहिए। (यहेजकेल २८:१२-१९ से तुलना कीजिए।) इसके बजाय, उस स्वर्गदूत ने जो शैतान बन गया, इस लालची अभिलाषा को तब तक विकसित किया जब तक कि उसने गर्भवती होकर पाप को जन्म न दे दिया।—याकूब १:१४, १५.

७. (क) मानव मृत्यु का कारण क्या है? (ख) पाप क्या है?

हमने उस दोषी की पहचान कर ली है जिसका अपराध मनुष्यों की मृत्यु की ओर ले गया है। लेकिन मानव मृत्यु का मूल कारण क्या है? बाइबल कहती है: “मृत्यु का डंक पाप है।” (१ कुरिन्थियों १५:५६) और पाप क्या है? इस शब्द को समझने के लिए, आइए बाइबल की मौलिक भाषाओं में इसके अर्थ पर विचार करें। सामान्यतः “पाप करना” अनुवादित इब्रानी और यूनानी क्रियाओं का अर्थ एक निशाने से चूकने या एक लक्ष्य प्राप्त न कर पाने के अभिप्राय में “चूकना” है। हम सब किस निशाने से चूकते हैं? परमेश्‍वर के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता का निशाना। लेकिन, पाप संसार में कैसे आया?

वह षड्यन्त्र कैसे चलाया गया

८. शैतान ने मनुष्यों की उपासना पाने की कैसे कोशिश की?

शैतान ने ध्यानपूर्वक एक ऐसा षड्यन्त्र रचा जो उसके विचार से उसे सभी मनुष्यों पर राज्य करने और उनकी उपासना पाने की ओर ले जाता। उसने प्रथम मानव दम्पति, आदम और हव्वा को परमेश्‍वर के विरुद्ध पाप करने के लिए प्रेरित करने का फ़ैसला किया। यहोवा ने हमारे प्रथम माता-पिता को वह ज्ञान दिया था जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता। वे जानते थे कि उनका सृष्टिकर्ता भला है क्योंकि उसने उन्हें अदन की सुन्दर वाटिका में रखा था। आदम ने ख़ासकर तब अपने स्वर्गीय पिता की भलाई को महसूस किया जब परमेश्‍वर ने उसे एक सुन्दर और सहायक पत्नी दी। (उत्पत्ति १:२६, २९; २:७-९, १८-२३) प्रथम मानव जोड़े का सतत जीवन परमेश्‍वर के प्रति आज्ञाकारिता पर निर्भर था।

९. प्रथम मानव को परमेश्‍वर ने क्या आज्ञा दी, और यह क्यों उचित था?

परमेश्‍वर ने आदम को आज्ञा दी: “तू बाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्‍य मर जाएगा।” (उत्पत्ति २:१६, १७) सृष्टिकर्ता की हैसियत से, यहोवा परमेश्‍वर के पास यह अधिकार था कि नैतिक स्तर स्थापित करे और यह निर्धारित करे कि उसकी सृष्टि के लिए क्या भला है और क्या बुरा। उसकी आज्ञा उचित थी क्योंकि आदम और हव्वा को वाटिका के अन्य सभी वृक्षों से फल खाने की छूट थी। वे अहंकार से स्वयं अपने नैतिक स्तर बनाने के बजाय इस नियम को मानने के द्वारा यहोवा के न्यायसंगत शासकत्व के प्रति अपना मूल्यांकन दिखा सकते थे।

१०. (क) मनुष्यों को अपने पक्ष में खींचने के लिए शैतान ने उनके साथ कैसे संपर्क किया? (ख) शैतान ने यहोवा पर किन अभिप्रायों का दोष लगाया? (ग) परमेश्‍वर पर शैतान के आक्रमण के बारे में आप क्या सोचते हैं?

१० इब्‌लीस ने प्रथम मनुष्यों को परमेश्‍वर से दूर करने के लिए एक युक्‍ति की। उन्हें उसका पक्ष लेने को लुभाने के लिए, शैतान ने झूठ बोला। एक साँप को उसी तरह इस्तेमाल करते हुए जैसे एक पेटबोला एक कठपुतली को इस्तेमाल करता है, इब्‌लीस ने हव्वा से पूछा: “क्या सच है, कि परमेश्‍वर ने कहा, कि तुम इस बाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना?” जब हव्वा ने परमेश्‍वर की आज्ञा बतायी, तो शैतान ने घोषित किया: “तुम निश्‍चय न मरोगे।” फिर उसने यह कहकर यहोवा पर बुरे अभिप्रायों का दोष लगाया: “परमेश्‍वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्‍वर के तुल्य हो जाओगे।” (उत्पत्ति ३:१-५) इस प्रकार इब्‌लीस ने संकेत किया कि परमेश्‍वर उन्हें किसी अच्छी चीज़ से वंचित रख रहा था। सत्यपूर्ण, प्रेममय स्वर्गीय पिता, यहोवा पर कितना निन्दात्मक आक्रमण!

११. आदम और हव्वा शैतान के सहापराधी कैसे बन गए?

११ हव्वा ने उस वृक्ष को फिर से देखा, और उसका फल अब ख़ासकर वांछनीय प्रतीत हुआ। सो उसने वह फल लेकर खा लिया। बाद में, उसके पति ने परमेश्‍वर के प्रति अवज्ञा के इस पापमय कार्य में जानबूझकर उसका साथ दिया। (उत्पत्ति ३:६) हालाँकि हव्वा बहकावे में आ गयी थी, आदम और हव्वा दोनों ने मानवजाति पर शासन करने की शैतान की युक्‍ति का समर्थन किया। असल में, वे उसके सहापराधी बन गए।—रोमियों ६:१६; १ तीमुथियुस २:१४.

१२. परमेश्‍वर के विरुद्ध मानव विद्रोह का परिणाम क्या हुआ?

१२ आदम और हव्वा को अपने किए का फल भुगतना पड़ा। वे विशेष ज्ञान संपन्‍न, परमेश्‍वर के समान नहीं बने। इसके बजाय, वे लज्जित हुए और अपने आपको छिपा लिया। यहोवा ने आदम से लेखा लिया और उसको यह दण्ड सुनाया: “[तू] अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।” (उत्पत्ति ३:१९) “जिस दिन” हमारे प्रथम माता-पिता ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से खाया, उसी दिन परमेश्‍वर ने उन्हें मृत्युदण्ड सुनाया और वे उसके दृष्टिकोण से मर गए। फिर उन्हें परादीस से निकाल दिया गया और शारीरिक मृत्यु की ओर उनका पतन शुरू हुआ।

पाप और मृत्यु कैसे फैले

१३. पाप कैसे पूरी मानवजाति में फैल गया?

१३ मानव श्रद्धा पाने की अपनी युक्‍ति में शैतान प्रत्यक्षतः सफल हो गया था। फिर भी, वह अपने उपासकों को जीवित नहीं रख सका। जब पाप प्रथम मानव दम्पति में अपना असर करने लगा, तो वे अपनी संतान को परिपूर्णता देने में समर्थ नहीं रहे। एक शिला पर अंकित लेख की तरह, पाप हमारे प्रथम माता-पिता के जीनस्‌ में गहराई से अंकित था। अतः, वे सिर्फ़ अपरिपूर्ण संतान उत्पन्‍न कर सकते थे। चूँकि आदम और हव्वा के सभी बच्चे उनके पाप करने के बाद गर्भ में पड़े, उनकी संतान ने उत्तराधिकार में पाप और मृत्यु पायी।—भजन ५१:५; रोमियों ५:१२.

१४. (क) जो अपने पाप से इनकार करते हैं हम उनकी समानता किस के साथ कर सकते हैं? (ख) इस्राएलियों को उनकी पापमयता के बारे में कैसे अवगत कराया गया?

१४ लेकिन, आज अनेक लोग नहीं मानते कि वे पापी हैं। संसार के कुछ भागों में वंशागत पाप की धारणा सामान्यतः अज्ञात है। लेकिन यह इस बात का कोई सबूत नहीं कि पाप अस्तित्व में नहीं है। एक लड़का जिसका मुँह गन्दा है शायद यह दावा करे कि वह साफ़ है, और केवल आइना देखने पर ही उस बात पर विश्‍वास करे। प्राचीन इस्राएली एक ऐसे ही लड़के के समान थे जब उन्होंने परमेश्‍वर की व्यवस्था उसके भविष्यवक्‍ता मूसा के द्वारा प्राप्त की। व्यवस्था ने स्पष्ट किया कि पाप अस्तित्व में था। “बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहिचानता,” प्रेरित पौलुस समझाता है। (रोमियों ७:७-१२) आइना देखते हुए लड़के के समान, अपने आपको देखने के लिए व्यवस्था का प्रयोग करने के द्वारा, इस्राएली देख सकते थे कि वे यहोवा की दृष्टि में अशुद्ध थे।

१५. परमेश्‍वर के वचन के आइने में देखने से क्या प्रकट होता है?

१५ परमेश्‍वर के वचन के आइने में देखने और उसके स्तरों को नोट करने से हम देख सकते हैं कि हम अपरिपूर्ण हैं। (याकूब १:२३-२५) उदाहरण के लिए, जैसा मत्ती २२:३७-४० में अभिलिखित है, परमेश्‍वर से और अपने पड़ोसी से प्रेम करने के बारे में यीशु मसीह ने अपने शिष्यों से जो कहा उस पर विचार कीजिए। इन क्षेत्रों में मनुष्य कितनी ही बार निशाने से चूक जाते हैं! परमेश्‍वर के प्रति या अपने पड़ोसियों के प्रति प्रेम दिखाने में असफल होने पर अनेक लोगों के अंतःकरण में कचोट भी नहीं होती।—लूका १०:२९-३७.

शैतान की चालों से सावधान रहिए!

१६. शैतान की युक्‍तियों का शिकार बनने से बचने के लिए हम क्या कर सकते हैं, और यह मुश्‍किल क्यों है?

१६ शैतान हमसे जानबूझकर पाप करवाने की कोशिश में रहता है। (१ यूहन्‍ना ३:८) उसकी युक्‍तियों का शिकार होने से बचने का क्या कोई रास्ता है? जी हाँ, लेकिन यह माँग करता है कि हम ज्ञानकृत पाप की ओर झुकावों से लड़ें। यह आसान नहीं है क्योंकि पाप करने की हमारी सहज प्रवृत्ति बहुत प्रबल है। (इफिसियों २:३) पौलुस को कड़ा संघर्ष करना पड़ा। क्यों? क्योंकि उसमें पाप का वास था। यदि हम परमेश्‍वर का अनुमोदन चाहते हैं, तो हमें भी अपने अन्दर की पापमय प्रवृत्तियों से लड़ने की ज़रूरत है।—रोमियों ७:१४-२४; २ कुरिन्थियों ५:१०.

१७. क्या बात हमारी पापमय प्रवृत्तियों के विरुद्ध लड़ाई को और मुश्‍किल बना देती है?

१७ चूँकि शैतान हमें परमेश्‍वर के नियमों को तोड़ने के लिए बहकाने के अवसरों की निरन्तर ताक में रहता है, पाप के विरुद्ध हमारी लड़ाई आसान नहीं है। (१ पतरस ५:८) संगी मसीहियों के लिए चिन्ता दिखाते हुए, पौलुस ने कहा: “मैं डरता हूं कि जैसे सांप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सीधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएं।” (२ कुरिन्थियों ११:३) शैतान आज भी समान चालें चलता है। वह यहोवा की भलाई और परमेश्‍वर की आज्ञाओं का पालन करने के लाभों के बारे में संदेह के बीज बोने की कोशिश करता है। इब्‌लीस हमारी वंशागत पापमय प्रवृत्तियों का लाभ उठाने की कोशिश करता है और चाहता है कि हम अहंकार, लालच, घृणा और पक्षपात का मार्ग अपनाएँ।

१८. शैतान पाप को बढ़ावा देने के लिए संसार का प्रयोग कैसे करता है?

१८ हमारे विरुद्ध शैतान की एक युक्‍ति है संसार, जो उसके वश में है। (१ यूहन्‍ना ५:१९) यदि हम सावधान नहीं हैं तो हमारे चारों ओर संसार के भ्रष्ट और बेईमान लोग हम पर ऐसा पापमय मार्ग अपनाने का दबाव डालेंगे जो परमेश्‍वर के नैतिक स्तरों का उल्लंघन करता है। (१ पतरस ४:३-५) अनेक लोग परमेश्‍वर के नियमों को नज़रअंदाज़ करते हैं और अपने अंतःकरण की आवाज़ सुनने से भी इनकार करते हैं, जिससे कि वह अंततः कठोर पड़ जाता है। (रोमियों २:१४, १५; १ तीमुथियुस ४:१, २) कुछ लोग धीरे-धीरे वह मार्ग अपना लेते हैं जो पहले उनके अपरिपूर्ण अंतःकरण ने भी उन्हें नहीं लेने दिया था।—रोमियों १:२४-३२; इफिसियों ४:१७-१९.

१९. एक नैतिक जीवन जीना ही काफ़ी क्यों नहीं है?

१९ एक नैतिक जीवन जीना इस संसार में एक उपलब्धि है। लेकिन, हमारे सृष्टिकर्ता को प्रसन्‍न करना और भी बातों की माँग करता है। हमें परमेश्‍वर में भी विश्‍वास होना चाहिए और उसके प्रति ज़िम्मेदारी महसूस करनी चाहिए। (इब्रानियों ११:६) “जो कोई भलाई करना जानता है और नहीं करता, उसके लिये यह पाप है,” शिष्य याकूब ने लिखा। (याकूब ४:१७) जी हाँ, जानबूझकर परमेश्‍वर और उसकी आज्ञाओं को नज़रअंदाज़ करना अपने आप में एक क़िस्म का पाप है।

२०. जो सही है उसे करने से आपको रोकने की कोशिश शैतान कैसे कर सकता है, लेकिन क्या बात आपको ऐसे दबावों का विरोध करने में मदद देगी?

२० अति संभव है कि आपके बाइबल अध्ययन के द्वारा आपकी परमेश्‍वर के ज्ञान की खोज के प्रति शैतान विरोध भड़काए। निष्कपटता से यह आशा की जाती है कि आप ऐसे दबावों में आकर जो सही है उसका अभ्यास करना नहीं छोड़ेंगे। (यूहन्‍ना १६:२) जबकि अनेक शासकों ने यीशु की सेवकाई के दौरान उस पर विश्‍वास किया, उन्होंने उसका अंगीकार नहीं किया क्योंकि उन्हें अपने समुदाय में ठुकराए जाने का डर था। (यूहन्‍ना १२:४२, ४३) शैतान बेरहमी से उसको धमकाने की कोशिश करता है जो परमेश्‍वर के ज्ञान की खोज करता है। लेकिन, आपको हमेशा उन आश्‍चर्यजनक कामों को याद रखना चाहिए जो यहोवा ने किए हैं और उनका मूल्यांकन करना चाहिए। आप शायद विरोधियों को भी वही मूल्यांकन विकसित करने में मदद दे पाएँ।

२१. हम संसार को और स्वयं अपनी पापमय प्रवृत्तियों को कैसे जीत सकते हैं?

२१ जब तक हम अपरिपूर्ण हैं, हम पाप करेंगे। (१ यूहन्‍ना १:८) फिर भी, इस लड़ाई को लड़ने के लिए हमारे पास मदद है। जी हाँ, उस दुष्ट, शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस के विरुद्ध हमारी लड़ाई में जयवन्त होना संभव है। (रोमियों ५:२१) पृथ्वी पर अपनी सेवकाई के अन्त में, यीशु ने अपने अनुयायियों को इन शब्दों से प्रोत्साहित किया: “संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।” (यूहन्‍ना १६:३३) अपरिपूर्ण मनुष्यों के लिए भी परमेश्‍वर की मदद से संसार को जीतना संभव है। जो शैतान का विरोध करते हैं और ‘परमेश्‍वर के आधीन होते हैं’ उन पर शैतान की कोई पकड़ नहीं। (याकूब ४:७; १ यूहन्‍ना ५:१८) जैसे हम देखेंगे, परमेश्‍वर ने पाप और मृत्यु की बन्धुआई से छुटकारा पाने का मार्ग निकाला है।

अपने ज्ञान को जाँचिए

शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस कौन है?

मनुष्य क्यों बूढ़े होते और मरते हैं?

पाप क्या है?

शैतान लोगों को परमेश्‍वर के विरुद्ध ज्ञानकृत पाप में कैसे खींचता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 54 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]