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अन्त के दिनों में सच्चे उपासकों को पहचानना

अन्त के दिनों में सच्चे उपासकों को पहचानना

सत्रहवाँ अध्याय

अन्त के दिनों में सच्चे उपासकों को पहचानना

1. दानिय्येल के 7वें अध्याय के मुताबिक, इस 20वीं सदी की शुरूआत में निहत्थे लोगों के एक छोटे-से झुंड के साथ क्या-क्या हुआ?

एक महा-विश्‍वशक्‍ति, निहत्थे और मासूम लोगों के एक छोटे-से झुंड को कुचलने के लिए उन पर टूट पड़ी। लेकिन वे सही-सलामत बच निकले। यही नहीं, इन लोगों को मानो नया जीवन मिला और वे आबाद और खुशहाल हो गए। यह सब उनके अपने बलबूते पर नहीं हुआ बल्कि उनके परमेश्‍वर यहोवा की तरफ से हुआ जो उनसे बेहद प्यार करता है। यह सब 20वीं सदी की शुरूआत में हुआ था और इन घटनाओं के बारे में दानिय्येल की किताब के 7वें अध्याय में भविष्यवाणी की गयी थी। लेकिन, यह छोटा झुंड किन लोगों का था? दानिय्येल की किताब का यही 7वां अध्याय इन लोगों को “परमप्रधान” परमेश्‍वर यहोवा के “पवित्र लोग” कहता है। इसमें यह भी बताया गया है कि यही लोग मसीह के राज्य में उसके साथी राजा बनकर राज करेंगे!—दानिय्येल 7:13, 14, 18, 21, 22, 25-27.

2. (क) यहोवा अपने अभिषिक्‍त सेवकों के बारे में कैसा महसूस करता है? (ख) आज के ऐसे बुरे वक्‍त में क्या करना बुद्धिमानी की बात होगी?

2 दानिय्येल के 11वें अध्याय में हम देख चुके हैं कि ये वफादार लोग इस ज़मीन पर अपने आध्यात्मिक देश में निडर बसे हुए हैं। जब उत्तर का राजा, परमेश्‍वर के इन्हीं सेवकों के आध्यात्मिक देश पर हमला करने की कोशिश करता है तभी उसका हमेशा के लिए नाश हो जाता है। (दानिय्येल 11:45. यहेजकेल 38:18-23 से तुलना कीजिए।) जी हाँ, ये वफादार अभिषिक्‍त जन यहोवा की आँखों के तारे हैं जिनकी वह दिलो-जान से हिफाज़त करता है। भजन 105:14, 15 कहता है: “[यहोवा] राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता था, कि मेरे अभिषिक्‍तों को मत छुओ, और न मेरे नबियों की हानि करो!” तो फिर, क्या आपको नहीं लगता कि अंत के ऐसे बुरे वक्‍त में, लगातार बढ़ती “बड़ी भीड़” के लोगों के लिए यह बुद्धिमानी की बात होगी कि वे परमेश्‍वर के ऐसे अज़ीज़ों के ज़्यादा-से-ज़्यादा करीब रहें, जिनकी परमेश्‍वर इस कदर हिफाज़त करता है? (प्रकाशितवाक्य 7:9; जकर्याह 8:23) यीशु मसीह ने भी यह हिदायत दी थी कि भेड़-समान लोगों को यही करना चाहिए यानी उसके अभिषिक्‍त भाइयों के काम में उनका हाथ बँटाकर उनका साथ देना चाहिए।—मत्ती 25:31-46; गलतियों 3:29.

3. (क) यीशु के अभिषिक्‍त चेलों को ढूँढ़ना और उनके साथ संगति करना क्यों इतना आसान नहीं है? (ख) दानिय्येल की किताब का 12वां अध्याय इस मामले में हमारी कैसे मदद कर सकता है?

3 लेकिन परमेश्‍वर का दुश्‍मन शैतान, इन अभिषिक्‍त जनों के खिलाफ अपनी पूरी ताकत लगाकर लड़ रहा है। वह लोगों को गुमराह करना चाहता है ताकि वे न तो परमेश्‍वर के इन पवित्र जनों को पहचान पाएँ न ही उनके साथ मिलकर यहोवा की सेवा कर पाएँ। ऐसा करने के लिए शैतान ने हर तरफ झूठा धर्म फैला रखा है और पूरी दुनिया को झूठे मसीहियों से भर दिया है। इसलिए कई लोग झूठे धर्म के चंगुल में फंस चुके हैं और कई ऐसे भी हैं जो इतने सारे धर्म देखकर निराश हो जाते हैं और सोचते हैं कि पता नहीं इस दुनिया में सच्चा धर्म माननेवाले हैं भी या नहीं। (मत्ती 7:15, 21-23; प्रकाशितवाक्य 12:9, 17) और जो लोग अभिषिक्‍तों के ‘छोटे झुण्ड’ को पहचानकर उनके साथ यहोवा की सेवा करते हैं, उनके विश्‍वास को भी यह दुनिया लगातार कमज़ोर करने की कोशिश करती रहती है। (लूका 12:32) इसलिए उन्हें भी अपने विश्‍वास को मज़बूत बनाए रखने के लिए हर वक्‍त लड़ना पड़ता है। आपके बारे में क्या? क्या आपको “परमप्रधान के पवित्र लोग” मिल गए हैं? क्या आप उनके साथ संगति कर रहे हैं? क्या आप उन ठोस सबूतों के बारे में जानते हैं जिससे आप यह साबित कर सकें कि यही परमेश्‍वर के चुने हुए लोग हैं? अगर ऐसा है तो ये सबूत आपके विश्‍वास को बहुत मज़बूत बना सकते हैं। इनकी मदद से आप उन लोगों की आँखों से भी परदा हटा सकते हैं जिन्हें इस दुनिया के ढेरों धर्मों ने अंधा बना रखा है। दानिय्येल की किताब का 12वां अध्याय ऐसे ही ढेरों सबूत पेश करता है जिनका ज्ञान लेने से आपको ज़िंदगी मिल सकती है।

बड़ा प्रधान खड़ा होता है

4. (क) दानिय्येल 12:1 की भविष्यवाणी में मीकाएल के बारे में कौन-सी दो खास बातें कही गयी थीं? (ख) दानिय्येल की किताब में, जब किसी राजा के ‘उठने’ के बारे में कहा गया है तो उसका क्या मतलब है?

4 दानिय्येल 12:1 में लिखा है: “उसी समय मीकाएल नाम बड़ा प्रधान, जो तेरे जाति-भाइयों का पक्ष करने को खड़ा रहता है, वह उठेगा।” जैसा हम पहले देख चुके हैं, यीशु ही मीकाएल है। ज़मीन पर आने से पहले और स्वर्ग जाने के बाद उसे इसी नाम से पुकारा गया है और वह स्वर्ग में परमेश्‍वर के लोगों का प्रधान या राजा है। मीकाएल भविष्य में जो करनेवाला था, उसके बारे में दानिय्येल 12:1 में दो खास बातें बतायी गयी हैं: पहली कि एक खास समय-अवधि या दौर होगा जिसके दौरान मीकाएल “खड़ा रहता है।” दूसरी कि इसी समय-अवधि के दौरान एक खास घटना होगी जब वह “उठेगा।” दानिय्येल 12:1 में उसके ‘खड़े रहने’ की बात पढ़ने से हमें याद आता है कि दानिय्येल की किताब में और भी कई जगहों पर ऐसे ही शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। कई जगहों पर एक राजा के ‘उठने’ के बारे में कहा गया है जिसका मतलब है कि वह राजा बना या उसने हुकूमत हासिल की। तो आइए अब यह जानें कि वह समय कौन-सा है जब मीकाएल “[दानिय्येल के] जाति-भाइयों का पक्ष करने को खड़ा रहता है।”—दानिय्येल 11:2-4, 7, 20, 21.

5, 6. (क) किस समय के दौरान मीकाएल खड़ा रहता है? (ख) कब और कैसे मीकाएल “उठेगा” और उसका नतीजा क्या होगा?

5 यहाँ स्वर्गदूत जिस समय-अवधि के बारे में बता रहा था उसके बारे में बाइबल की दूसरी किताबों में भी भविष्यवाणी की गयी है। यीशु ने इस अवधि को अपनी “उपस्थिति” (यूनानी में, पारूसिया) कहा था जिसके दौरान वह स्वर्ग में राजा बनकर राज करता। (मत्ती 24:37-39, NW) इस समय-अवधि को ‘अन्तिम दिन’ और “अन्त समय” भी कहा गया है। (2 तीमुथियुस 3:1; दानिय्येल 12:4, 9) तो इसका मतलब है कि यह समय-अवधि सन्‌ 1914 से शुरू हुई और तभी से मीकाएल स्वर्ग में राजा बनकर खड़ा है।—यशायाह 11:10; प्रकाशितवाक्य 12:7-9 से तुलना कीजिए।

6 दूसरा सवाल है कि वह खास घटना कब होगी जब मीकाएल “उठेगा”? तब जब वह एक खास कार्यवाही करने के लिए उठता है। यह कार्यवाही यीशु भविष्य में करेगा। प्रकाशितवाक्य 19:11-16 की भविष्यवाणी के मुताबिक, महाशक्‍तिशाली मसीहाई राजा यीशु अपने शूरवीर स्वर्गदूतों की फौजों के आगे-आगे सवार होकर आएगा और परमेश्‍वर के दुश्‍मनों का सर्वनाश कर देगा। दानिय्येल 12:1 में आगे लिखा है: “तब ऐसे संकट का समय होगा, जैसा किसी जाति के उत्पन्‍न होने के समय से लेकर अब तक कभी न हुआ होगा।” परमेश्‍वर यहोवा का ठहराया हुआ, सज़ा देनेवाला प्रधान बनकर यीशु मसीह, आनेवाले “भारी क्लेश” के दौरान शैतान की इस दुष्ट दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर देगा।—मत्ती 24:21; यिर्मयाह 25:33; 2 थिस्सलुनीकियों 1:6-8; प्रकाशितवाक्य 7:14; 16:14, 16.

7. (क) आनेवाले ‘संकट के समय’ के दौरान, परमेश्‍वर के सभी वफादार लोग क्या भरोसा रख सकते हैं? (ख) यहोवा की पुस्तक क्या है, और उसमें हमारा नाम होना क्यों ज़रूरी है?

7 इस संकट की घड़ी में परमेश्‍वर पर भरोसा रखनेवाले उसके वफादार लोगों का क्या होगा? इस बारे में दानिय्येल को आगे बताया गया: “उस समय तेरे लोगों में से जितनों के नाम परमेश्‍वर की पुस्तक में लिखे हुए हैं, वे बच निकलेंगे।” (लूका 21:34-36 से तुलना कीजिए।) यह पुस्तक क्या है? थोड़े शब्दों में कहें तो यह पुस्तक यहोवा परमेश्‍वर की याददाश्‍त है। जो लोग उसकी इच्छा पर चलते हैं उन्हें यहोवा याद रखता है मानो उसने उनके नाम एक किताब में लिख लिए हों। (मलाकी 3:16; इब्रानियों 6:10) जिन लोगों के नाम जीवन की इस पुस्तक में लिखे हैं वे दुनिया के सबसे महफूज़, सबसे सुरक्षित लोग हैं क्योंकि ऐसे लोगों की हिफाज़त खुद यहोवा करता है। उन पर चाहे कैसी भी आफत क्यों न आए, वह दूर कर दी जाएगी। अगर आनेवाले उस ‘संकट के समय’ से पहले मौत भी उन्हें निगल जाए, तौभी वे यहोवा की अथाह याददाश्‍त में महफूज़ रहेंगे। और यीशु मसीह के एक हज़ार साल के राज्य में यहोवा उन्हें याद करेगा और दोबारा ज़िंदा कर देगा।—प्रेरितों 24:15; प्रकाशितवाक्य 20:4-6.

पवित्र लोग ‘जाग उठते हैं’

8. दानिय्येल 12:2 में कौन-सी खुशियों भरी आशा दी गई है?

8 जब लोग दोबारा ज़िंदगी पाएँगे तो कितना खुशियों भरा माहौल होगा। सचमुच, पुनरुत्थान की यही आशा हमारी भी कितनी हिम्मत बँधाती है, है ना? दानिय्येल 12:2 भी इसके बारे में बताता है: “जो भूमि के नीचे सोए रहेंगे उन में से बहुत से लोग जाग उठेंगे, कितने तो सदा के जीवन के लिये, और कितने अपनी नामधराई और सदा तक अत्यन्त घिनौने ठहरने के लिये।” (यशायाह 26:19 से तुलना कीजिए।) इन शब्दों से हमें यीशु मसीह का वह दिल छू लेनेवाला वादा याद आता है, जब उसने कहा था कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे। (यूहन्‍ना 5:28, 29) क्या यह सुनकर आप खुशी से झूम नहीं उठते! ज़रा कल्पना कीजिए, हमारे अपने, हमारे अज़ीज़ जिन्हें मौत ने हमसे छीन लिया है, दोबारा ज़िंदा होंगे और हमेशा-हमेशा तक ज़िंदा रहने का मौका पाएँगे! लेकिन, ध्यान दें कि दानिय्येल की किताब में बताया गया यह पुनरुत्थान खासकर दूसरे किस्म का पुनरुत्थान है—जो पहले ही हो चुका है। ऐसा कैसे हो सकता है?

9. (क) यह मानना सही क्यों है कि दानिय्येल 12:2 की पूर्ति अन्तिम दिनों के दौरान होगी? (ख) इस भविष्यवाणी में किस किस्म के पुनरुत्थान के बारे में बताया गया है, और यह हम कैसे जानते हैं?

9 आइए पूरी बात पर गौर करें। जैसा हम देख चुके हैं, बारहवें अध्याय की पहली आयत न सिर्फ इस दुष्ट संसार के अंत के बारे में बताती है बल्कि ये अन्तिम दिनों की पूरी समय-अवधि पर लागू होती है। दरअसल, इस अध्याय में दी गयी ज़्यादातर भविष्यवाणियों की पूर्ति, आनेवाली नयी दुनिया में नहीं बल्कि अन्तिम दिनों के दौरान होती है। क्या इस दौरान कोई पुनरुत्थान हुआ है? प्रेरित पौलुस ने लिखा था कि ‘मसीह की उपस्थिति के दौरान जो उसके हैं’ उनका पुनरुत्थान होगा। लेकिन जिनका पुनरुत्थान स्वर्ग में जीवन पाने के लिए होता है वे “भ्रष्टहीन दशा” में जी उठते हैं। (1 कुरिन्थियों 15:23, 52, NW) इनमें से किसी का भी पुनरुत्थान “अपनी नामधराई और सदा तक अत्यन्त घिनौने ठहरने के लिये” नहीं होता, जैसा कि दानिय्येल 12:2 में बताया गया है। तो फिर, दानिय्येल 12:2 में बताया गया पुनरुत्थान क्या है? बाइबल में कई बार आध्यात्मिक रूप से दोबारा जी उठने या पुनरुत्थान पाने की बात भी कही गयी है। मिसाल के तौर पर, यहेजकेल और प्रकाशितवाक्य दोनों ही किताबों में ऐसी भविष्यवाणियाँ हैं जो आध्यात्मिक रूप से दोबारा जी उठने या पुनरुत्थान पाने पर लागू होती हैं।—यहेजकेल 37:1-14; प्रकाशितवाक्य 11:3, 7, 11.

10. (क) अन्त समय के दौरान, किस अर्थ में अभिषिक्‍त जनों का पुनरुत्थान हुआ है? (ख) आध्यात्मिक रूप से जगाए जाने के बावजूद, कैसे कुछ अभिषिक्‍त जनों की ‘नामधराई हुई और वे सदा तक अत्यन्त घिनौने ठहरे’?

10 इस अन्त समय के दौरान, क्या ऐसा समय आया है जब अभिषिक्‍त मसीही आध्यात्मिक रूप से बेजान और ठंडे हो चुके थे और उनमें दोबारा जान डाली गयी? जी हाँ! इतिहास इस बात का गवाह है कि सन्‌ 1918 में वफादार अभिषिक्‍त मसीहियों के बचे हुए थोड़े से लोगों पर इतना ज़बरदस्त आक्रमण किया गया कि दुनिया भर में चलाया जा रहा उनका प्रचार का काम लगभग ठप्प पड़ गया। उसके बाद सन्‌ 1919 में, जब सबको लगा कि ये अभिषिक्‍त जन हमेशा के लिए खत्म हो चुके हैं, तभी वे इस हालत से उबर आए और उनमें आध्यात्मिक रूप से दोबारा जान आ गयी। इसलिए, दानिय्येल 12:2 में बताई गई पुनरुत्थान की भविष्यवाणी इन वफादार मसीहियों के आध्यात्मिक पुनरुत्थान पर लागू होती है। वाकई, उस समय पर और उसके बाद, बहुत-से लोग आध्यात्मिक रूप से ‘जाग उठे।’ लेकिन दुःख की बात है कि सभी लोग इस तरह आध्यात्मिक रूप से हमेशा जागते नहीं रहे। कुछ लोगों ने जगाए जाने के बावजूद मसीहाई राजा यीशु को ठुकरा दिया और परमेश्‍वर की सेवा करना छोड़ दिया। इनके साथ ठीक वैसा ही हुआ जैसा दानिय्येल 12:2 में लिखा है, उनकी ‘नामधराई हुई और वे सदा तक के लिए अत्यन्त घिनौने ठहरे।’ (इब्रानियों 6:4-6) लेकिन, जो अभिषिक्‍त जन वफादार बने रहे उन्होंने आध्यात्मिक रूप से मिली इस नयी ज़िंदगी का पूरा-पूरा इस्तेमाल किया। वे मसीहाई राजा के सच्चे समर्थक बने रहे। जैसा भविष्यवाणी में बताया गया है, उनकी यह वफादारी उन्हें “सदा के जीवन” का इनाम दिलाएगी। ऐसे अभिषिक्‍त जनों को पहचानना मुश्‍किल नहीं है। मुसीबतों और विरोध का सामना करते हुए भी परमेश्‍वर की सेवा के लिए उनमें जो गज़ब का जोश रहता है वही उनकी पहचान है।

वे ‘तारों के समान चमकते’ हैं

11. आज “समझदार” लोग कौन हैं, और वे किस मायने में तारों के समान चमक रहे हैं?

11 दानिय्येल के 12वें अध्याय की अगली दो आयतें, ‘परमप्रधान के इन पवित्र लोगों’ को पहचानने में हमारी और भी मदद करती हैं। आयत 3 में स्वर्गदूत दानिय्येल को बताता है: “समझदार लोग आकाशमण्डल के तेज के समान, और जो बहुतों को धार्मिकता की ओर बढ़ाते हैं, वे सदा सर्वदा तारों के समान चमकेंगे।” (NHT) ये “समझदार” लोग आज कौन हैं? एक बार फिर, सबूत दिखाते हैं कि ये “परमप्रधान के पवित्र लोग” ही हैं। ऐसा क्यों कहा जा सकता है? इन वफादार अभिषिक्‍तों को छोड़ और किसने इस बात की समझ हासिल की है कि मीकाएल नाम बड़ा प्रधान सन्‌ 1914 से राजा बनकर खड़ा है? वे बाइबल की यह सच्चाई और ऐसी ही दूसरी सच्चाइयाँ लोगों को सिखा रहे हैं और उनके चाल-चलन से पता लगता है कि वे ही मसीह के सच्चे चेले हैं। इसी मायने में, आध्यात्मिक अंधकार से भरी इस दुनिया में भी वे ‘ज्योति बनकर चमक’ रहे हैं। (फिलिप्पियों 2:15, NHT; यूहन्‍ना 8:12) और इन्हीं के बारे में यीशु ने भविष्यवाणी की थी: “उस समय धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य की नाईं चमकेंगे।”—मत्ती 13:43.

12. (क) अन्त समय के दौरान, किस तरह अभिषिक्‍त जन ‘बहुतों को धार्मिकता की ओर बढ़ाने’ के काम में लगे हुए हैं? (ख) मसीह के हज़ार साल के राज्य के दौरान, किस तरह अभिषिक्‍त लोग बहुतों को धार्मिकता की ओर बढ़ाएँगे और ‘तारों के समान चमकेंगे’?

12 दानिय्येल 12:3 हमें यह भी बताता है कि अन्तिम दिनों में ये अभिषिक्‍त मसीही किस काम में लगे होंगे। ये ‘बहुतों को धार्मिकता की ओर बढ़ा रहे’ होंगे। इन अभिषिक्‍त मसीहियों ने पहले, मसीह के संगी राजाओं, यानी 1,44,000 के बाकी सदस्यों को इकट्ठा करने का काम किया। (रोमियों 8:16, 17; प्रकाशितवाक्य 7:3, 4) और जब सन्‌ 1935 के आसपास यह काम लगभग खत्म होता दिखाई दिया तब वे ‘अन्य भेड़ों’ की एक “बड़ी भीड़” को इकट्ठा करने में लग गए। (यूहन्‍ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 7:9) ये बड़ी भीड़ के लोग भी यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास रखते हैं, इसलिए वे यहोवा के सामने शुद्ध ठहरते हैं। आज उनकी गिनती लाखों में पहुँच गयी है और उन्हें पूरी उम्मीद है कि वे इस दुष्ट संसार पर आनेवाले विनाश से बचेंगे। मसीह के हज़ार साल के राज्य के दौरान यीशु और उसके 1,44,000 संगी राजा, पृथ्वी पर उन लोगों तक छुड़ौती बलिदान का पूरा-पूरा फायदा पहुँचाएँगे जो परमेश्‍वर के आज्ञाकारी बने रहते हैं। इस तरह, मसीह के बलिदान पर विश्‍वास करनेवाले हर इंसान के अंदर से, आदम से मिले पाप का आखिरी कतरा तक पूरी तरह मिटा दिया जाएगा। (2 पतरस 3:13; प्रकाशितवाक्य 7:13, 14; 20:5, 6) उस वक्‍त, बड़े पैमाने पर सही मायनों में, अभिषिक्‍त ‘बहुतों को धार्मिकता की ओर बढ़ाएंगे’ और स्वर्ग में ‘तारों के समान चमकेंगे।’ क्या आपको एहसास है कि आपके पास कितनी अनमोल आशा है, ऐसी ज़मीन पर जीने की आशा जिस पर मसीह और उसके संगी राजाओं की सरकार स्वर्ग से राज करेगी? स्वर्ग में यीशु के साथ राज करनेवाले इन्हीं “पवित्र लोगों” के साथ कंधे से कंधा मिलाकर, आज परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार करना हमारे लिए कितने बड़े सम्मान की बात है!—मत्ती 24:14.

वे “पूछ-पाछ और ढूंढ़-ढांढ़” करते हैं

13. किस मायने में दानिय्येल की किताब मुहर लगाकर बन्द रखी गयी?

13 दानिय्येल 10:20 से इस स्वर्गदूत ने दानिय्येल के सामने भविष्यवाणियों का ऐलान करना शुरू किया था। अब वह अपनी बात खत्म करता है, लेकिन एक उम्मीद के साथ। वह कहता है: “हे दानिय्येल, तू इस पुस्तक पर मुहर करके इन वचनों को अन्त समय तक के लिए बन्द रख। और बहुत लोग पूछ-पाछ और ढूंढ़-ढांढ़ करेंगे, और इस से ज्ञान बढ़ भी जाएगा।” (दानिय्येल 12:4) दानिय्येल ने जो ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखा था उसमें से ज़्यादातर भविष्यवाणियों पर मुहर लगाकर उन्हें गुप्त रखा गया था ताकि कोई इंसान उन्हें समझ न पाए। खुद दानिय्येल ने भी बाद में कहा: “यह बात मैं सुनता तो था परन्तु कुछ न समझा।” (दानिय्येल 12:8) इसी मायने में, दानिय्येल की किताब सदियों तक मुहर लगाकर बन्द रखी गई। लेकिन आज हमारे ज़माने के बारे में क्या?

14. (क) “अन्त समय” के दौरान, किसने “पूछ-पाछ और ढूंढ़-ढांढ़” की है और कहाँ? (ख) कौन-से सबूत दिखाते हैं कि यहोवा ने इस “पूछ-पाछ और ढूंढ़-ढांढ़” पर आशीष दी है?

14 दानिय्येल की किताब में जिस “अन्त समय” की भविष्यवाणी की गई थी आज हम उसी समय में जी रहे हैं और हमारे पास दानिय्येल की किताब को समझने का सुनहरा मौका है। क्यों? क्योंकि जैसा बताया गया था हमारे ज़माने में ही बहुत से वफादार लोगों ने परमेश्‍वर के वचन में “पूछ-पाछ और ढूंढ़-ढांढ़” की है। क्या इसका कोई फायदा हुआ है? यहोवा की आशीष से बेशुमार सच्चा ज्ञान मिला है और उसके वफादार अभिषिक्‍त साक्षियों को बहुत सी गूढ़ बातों की भी समझ दी गयी है। मिसाल के तौर पर, वे समझ पाए हैं कि मनुष्य का पुत्र 1914 में राजा बना, वे यह भी समझ पाए हैं कि दानिय्येल की भविष्यवाणी में बताए गए पशु क्या हैं, और उन्होंने ‘उजाड़नेवाली घृणित वस्तु’ की पहचान बताकर लोगों को खबरदार किया है। (दानिय्येल 11:31) ऐसे सच्चे ज्ञान का अपार भंडार सिर्फ “परमप्रधान के पवित्र लोगों” के पास ही हो सकता है। यह उनकी पहचान का एक और सबूत है। लेकिन दानिय्येल को इसके अलावा भी सबूत दिए गए।

वे ‘छिन्‍न-भिन्‍न’ हो जाते हैं

15. एक स्वर्गदूत क्या सवाल पूछता है, और यह सवाल सुनकर हमें किसका ध्यान आता है?

15 याद कीजिए कि दानिय्येल ने स्वर्गदूत से यह संदेश “बड़ी नदी” हिद्देकेल या टिग्रिस के तट पर पाया था। (दानिय्येल 10:4, NHT) अब वह वहाँ दो और स्वर्गदूतों को देखता है और कहता है: “मुझ दानिय्येल ने दृष्टि करके क्या देखा कि और दो पुरुष खड़े हैं, एक तो नदी के इस तीर पर, और दूसरा नदी के उस तीर पर है। तब जो पुरुष सन का वस्त्र पहिने हुए नदी के जल के ऊपर था, उस से उन पुरुषों में से एक ने पूछा, इन आश्‍चर्य कर्मों का अन्त कब तक होगा?” (दानिय्येल 12:5, 6) स्वर्गदूत के इस सवाल से एक बार फिर हमें “परमप्रधान के पवित्र लोगों” का ध्यान आता है। सन्‌ 1914 में जब “अन्त समय” शुरू हुआ था तब से इन पवित्र लोगों को यह सवाल बुरी तरह सता रहा था कि परमेश्‍वर के वादे पूरे होने में अभी और कितना समय बाकी है। जो स्वर्गदूत सन का वस्त्र पहने दानिय्येल से पहले से बात कर रहा था, उसके जवाब से पता चलता है कि यह भविष्यवाणी भी इन्हीं पवित्र लोगों के बारे में थी।

16. स्वर्गदूत क्या भविष्यवाणी करता है, और वह इसके पूरा होने की गारंटी कैसे देता है?

16 दानिय्येल की किताब आगे बताती है: “तब मैंने सुना कि मलमल [सन] का वस्त्र पहने हुए उस पुरुष ने जो नदी के जल के ऊपर था, दायां और बायां दोनों हाथ स्वर्ग की ओर उठाकर सदा जीवित रहनेवाले की शपथ खाई और कहा कि यह दशा एक काल, कालों और आधे काल तक रहेगी और जैसे ही पवित्र प्रजा की शक्‍ति छिन्‍न-भिन्‍न की जाएगी, यह सब पूरा हो जाएगा।” (दानिय्येल 12:7, NHT) यह बात बहुत ही महत्वपूर्ण और गंभीर है। स्वर्गदूत अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर शपथ खाता है ताकि इस चौड़ी नदी के दोनों किनारों पर खड़े स्वर्गदूत उसे देख सकें। ऐसे हाथ उठाकर शपथ खाना इस बात की गारंटी था कि चाहे जो हो जाए यह भविष्यवाणी पूरी होकर ही रहेगी। लेकिन ये साढ़े तीन काल कब बीते? इसका जवाब पाना मुश्‍किल नहीं है।

17. (क) दानिय्येल 7:25, दानिय्येल 12:7 और प्रकाशितवाक्य 11:3, 7, 9 में दी गयी भविष्यवाणियाँ किन बातों में एक-दूसरे से मेल खाती हैं? (ख) ये साढ़े तीन काल कितना लंबा समय है?

17 गौर करने लायक बात है कि इस भविष्यवाणी से एकदम मेल खानेवाली दो और भविष्यवाणियाँ भी इसी बारे में हैं। एक, दानिय्येल के 7:25 में है जिसके बारे में हमने इस किताब के 9 अध्याय में चर्चा की थी। दूसरी प्रकाशितवाक्य 11:3, 7, 9 में पाई जाती है। गौर कीजिए कि ये दोनों भविष्यवाणियाँ कैसे एक-दूसरे से मेल खाती हैं। जैसे ये दोनों ही अन्त के समय में पूरी होती हैं। दोनों ही भविष्यवाणियाँ परमेश्‍वर के पवित्र सेवकों के बारे में बताती हैं कि उन्हें सताया जाएगा और इसकी वज़ह से थोड़े वक्‍त के लिए उनका प्रचार काम रुक जाएगा। दोनों ही भविष्यवाणियाँ दिखाती हैं कि परमेश्‍वर के सेवकों में दोबारा जान आ जाएगी और वे फिर से अपने काम में लग जाएँगे और इस तरह उनके सतानेवालों की हार होगी। दोनों ही भविष्यवाणियों में बताया है कि कितने समय तक इन पवित्र लोगों को ये दुःख-तकलीफें उठानी पड़ेंगी। दानिय्येल (7:25 और 12:7, NHT) की दोनों ही भविष्यवाणियाँ ‘एक काल, कालों और आधे काल’ का ज़िक्र करती हैं। आम तौर पर विद्वानों की राय है कि यहाँ कुल मिलाकर साढ़े तीन कालों की बात की गयी है। और प्रकाशितवाक्य में इन साढ़े तीन कालों को 42 महीने या 1,260 दिन के बराबर बताया गया है। (प्रकाशितवाक्य 11:2, 3) इससे यह साबित हो जाता है कि दानिय्येल में जिन साढ़े तीन कालों का ज़िक्र किया गया है, वे साढ़े तीन साल हैं जिनका एक साल 360 दिनों का है। लेकिन, सवाल यह उठता है कि ये साढ़े तीन काल या 1,260 दिन कब शुरू हुए?

18. (क) दानिय्येल 12:7 के मुताबिक, 1,260 दिनों के आखिर में क्या होता? (ख) कब “पवित्र प्रजा की शक्‍ति” को आखिरकार छिन्‍न-भिन्‍न कर दिया गया और यह कैसे हुआ? (ग) ये 1,260 दिन कब शुरू हुए, और किस तरह अभिषिक्‍त लोगों ने उस वक्‍त ‘टाट ओढ़े हुए’ भविष्यवाणी की?

18 दानिय्येल की भविष्यवाणी साफ बताती है कि ये 1,260 दिन कब खत्म होते हैं—जब “पवित्र प्रजा की शक्‍ति छिन्‍न-भिन्‍न की जाएगी, यह सब पूरा हो जाएगा।” सन्‌ 1918 के बीच में, वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी के अध्यक्ष जे. एफ. रदरफर्ड और बाकी खास-खास सदस्यों पर झूठे इलज़ाम लगाए गए, उन्हें लंबे समय की सज़ा सुनाई गई और जेल भेज दिया गया। इस वक्‍त, परमेश्‍वर के पवित्र लोगों ने वाकई अपने प्रचार के काम को और अपनी शक्‍ति को ‘छिन्‍न-भिन्‍न’ होते देखा। सन्‌ 1918 के बीच से, पीछे साढ़े तीन साल गिनने से हम सन्‌ 1914 के आखिर में पहुँचते हैं। उस वक्‍त अभिषिक्‍त जनों का छोटा-सा झुंड जान चुका था कि जल्द ही उन्हें बहुत बुरी तरह से सताया जाएगा और इसके लिए वे खुद को मज़बूत करने में लगे हुए थे। पहला विश्‍व युद्ध शुरू हो चुका था और उनके काम के खिलाफ विरोध बढ़ता जा रहा था। दरअसल सन्‌ 1915 के लिए उन्होंने अपने सालाना पाठ के लिए मसीह का वह सवाल चुना जो उसने अपने चेलों से पूछा था: “जो [यातनाओं का] कटोरा मैं पीने पर हूं, क्या तुम पी सकते हो?” (मत्ती 20:22) तो फिर, सन्‌ 1914 के आखिर से, ये 1,260 दिन शुरू हो गए। अभिषिक्‍त जनों के लिए यह शोक करने का समय था, जैसा प्रकाशितवाक्य 11:3 में बताया गया था, मानो उन्हें टाट ओढ़े हुए परीक्षाओं और तकलीफों के बावजूद भविष्यवाणी करनी थी। विरोधियों के ज़ुल्म बद से बदतर होते चले गए। कई अभिषिक्‍त जनों को कैद कर दिया गया, बहुतों पर भीड़ ने हमला किया और कुछ को बड़ी बेरहमी से तड़पाया गया। उसके बाद सन्‌ 1916 में संस्था के अध्यक्ष सी. टी. रसल की मौत होने से बहुत-से अभिषिक्‍त जन निराश होकर सोचने लगे कि न जाने आगे क्या होगा। संकट के इस समय के आखिर में, इन पवित्र लोगों का दुनिया-भर में प्रचार करनेवाला यह संगठन मिट जाने की कगार पर था। यह ऐसा था मानो इन पवित्र जनों को मार डाला गया। लेकिन, इसके बाद क्या होना था?

19. प्रकाशितवाक्य 11 अध्याय की भविष्यवाणी कैसे हमें विश्‍वास दिलाती है कि अभिषिक्‍त जन हमेशा के लिए खामोश नहीं किए जाएँगे?

19 प्रकाशितवाक्य 11:3, 9, 11 में इससे मिलती-जुलती भविष्यवाणी में बताया गया है कि जब “दो गवाहों” को मार दिया जाता है तब वे थोड़े-से वक्‍त के लिए, यानी साढ़े तीन दिन के लिए ऐसे ही पड़े रहते हैं। लेकिन, बाद में उनके शरीरों में जान आ जाती है। इसी तरह, दानिय्येल के 12वें अध्याय की भविष्यवाणी दिखाती है कि पवित्र लोग हमेशा के लिए खामोश नहीं हो जाएँगे बल्कि उन्हें भविष्य में और ज़्यादा काम करना होगा।

वे ‘निर्मल, उजले और स्वच्छ’ किए जाते हैं

20. दानिय्येल 12:10 के मुताबिक, अभिषिक्‍तों को दुःख उठाने के बाद कौन-सी आशीषें मिलनेवाली थीं?

20 जैसा पहले बताया गया है, दानिय्येल इन बातों को लिखता तो था लेकिन समझ नहीं पा रहा था। फिर भी वह सोचता है कि क्या पवित्र लोगों को सतानेवाले उन्हें सचमुच खत्म कर देंगे, इसलिए वह पूछता है: “इन बातों का अन्तफल क्या होगा?” तब स्वर्गदूत उसे जवाब देता है: “हे दानिय्येल चला जा; क्योंकि ये बातें अन्तसमय के लिये बन्द हैं और इन पर मुहर दी हुई है। बहुत लोग तो अपने अपने को निर्मल और उजले करेंगे, और स्वच्छ हो जाएंगे; परन्तु दुष्ट लोग दुष्टता ही करते रहेंगे; और दुष्टों में से कोई ये बातें न समझेगा; परन्तु जो बुद्धिमान हैं वे ही समझेंगे।” (दानिय्येल 12:8-10) स्वर्गदूत के जवाब में पवित्र लोगों के लिए पक्की आशा थी! साढ़े तीन साल तक दुःख उठाने से वे खत्म नहीं होते बल्कि इसके बाद उन्हें उजला किया जाता और वे यहोवा परमेश्‍वर के सामने शुद्ध ठहराए जाने की आशीष पाते। (मलाकी 3:1-3) आध्यात्मिक बातों की उनकी गहरी समझ उन्हें परमेश्‍वर की नज़रों में शुद्ध बनाए रखती। लेकिन दुष्टों के साथ ऐसा नहीं होता, वे आध्यात्मिक ज्ञान को ठुकरा देते और अपने कान बंद कर लेते। यह सब कब होना था?

21. (क) दानिय्येल 12:11 में बताए गए दिनों के शुरू होने से पहले कौन-सी कुछ घटनाएँ होनी थीं? (ख) “नित्य होमबलि” क्या थी और इसे कब उठा लिया गया? (पेज 298 पर बक्स देखिए।)

21 दानिय्येल को बताया गया था, “जब से नित्य होमबलि उठाई जाएगी, और वह घिनौनी वस्तु जो उजाड़ करा देती है, स्थापित की जाएगी, तब से बारह सौ नब्बे दिन बीतेंगे।” (दानिय्येल 12:11) इन 1,290 दिनों के शुरू होने से पहले कुछ घटनाएँ होनी थीं। एक तो यह कि “नित्य होमबलि” * उठाई या बंद की जाती। यहाँ स्वर्गदूत किस होमबलि की बात कर रहा था? वह पशुओं की बलि की बात नहीं कर रहा था जो पृथ्वी पर यरूशलेम के मंदिर में चढ़ाई जाती थी। क्योंकि जो मंदिर यरूशलेम में था वह तो यहोवा के महान आत्मिक मंदिर का सिर्फ एक “नमूना” भर था। जब सा.यु. 29 में यीशु मसीह का अभिषेक करके उसे इस मंदिर का महायाजक बनाया गया, तब से इस मंदिर की सेवाएँ शुरू हुईं। लेकिन शुद्ध उपासना के लिए यहोवा के इस इंतज़ाम, यानी इस आत्मिक मंदिर में पापों के प्राश्‍यचित्त के लिए हर दिन जानवरों के बलिदान चढ़ाए जाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि ‘मसीह बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक ही बार बलिदान हो चुका है।’ (इब्रानियों 9:24-28) फिर भी, सभी सच्चे मसीही इस आत्मिक मंदिर में बलिदान ज़रूर चढ़ाते हैं। यह बलिदान क्या है इसके बारे में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हम उसके द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात्‌ उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्‍वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें।” (इब्रानियों 13:15) तो फिर, दानिय्येल की भविष्यवाणी में बताई गई पहली घटना सन्‌ 1918 के बीच में घटी, जब “नित्य होमबलि” उठायी गयी यानी प्रचार का काम लगभग ठप्प पड़ गया था।

22. (क) उजाड़नेवाली “घृणित वस्तु” क्या है, और यह कब स्थापित की गई? (ख) दानिय्येल 12:11 में बताए गए 1,290 दिन कब शुरू हुए, और कब खत्म हुए?

22 दूसरी घटना के बारे में क्या, यानी उस ‘घृणित वस्तु को स्थापित’ या खड़ा करना जो “उजाड़ करा देती है”? दानिय्येल 11:31 की चर्चा करते वक्‍त हमने देखा था कि यह घृणित वस्तु पहले लीग ऑफ नेशन्स्‌ यानी राष्ट्र संघ थी जो बाद में संयुक्‍त राष्ट्र संघ के रूप में दोबारा प्रकट हुई। ये दोनों ही घृणित हैं क्योंकि जब इन्हें स्थापित किया गया था तब इनकी तारीफ में ये ढिंढोरा पीटा गया कि सिर्फ ये संस्थाएँ ही इस ज़मीन पर शांति लाएँगी। इस तरह, इन संस्थाओं ने बहुतों के दिल में वह जगह हासिल कर ली जो सिर्फ परमेश्‍वर के राज्य को मिलनी चाहिए। इसीलिए ये परमेश्‍वर की नज़रों में घृणित हैं! जब सन्‌ 1919 के जनवरी में, लीग ऑफ नेशन्स्‌ को स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया था, तब इसके साथ ही दानिय्येल 12:11 में बताई गई दोनों घटनाएँ पूरी हो गयीं। तभी से ये 1,290 दिन शुरू हुए। और अगर सन्‌ 1919 के जनवरी के आखिर से ये 1,290 दिन गिने जाएँ तो हम सन्‌ 1922 के सितंबर महीने तक आते हैं जब यह समय खत्म हुआ।

23. दानिय्येल अध्याय 12 में बताए गए 1,290 दिनों के दौरान परमेश्‍वर के लोग कैसे शुद्धता के मार्ग पर काफी आगे बढ़ चुके थे?

23 क्या इस समय के दौरान, परमेश्‍वर के इन पवित्र जनों ने अपने आपको निर्मल और उजला किया? क्या वे परमेश्‍वर की नज़रों में स्वच्छ हो गए? बेशक, उन्होंने ऐसा ही किया! मार्च 1919 को वॉच टावर संस्था के अध्यक्ष और उनके सहयोगियों को जेल से रिहा कर दिया गया। बाद में, उन्हें सारे झूठे इल्ज़ामों से बरी कर दिया गया। यह देखकर कि उन्हें अभी बहुत काम करना है, वे बिना समय बर्बाद किए काम में लग गए और सितंबर 1919 के लिए एक अधिवेशन का इंतज़ाम किया। उसी साल द वॉच टावर पत्रिका के साथ एक और पत्रिका निकाली गई जिसका नाम गोल्डन ऐज था अब इसे अवेक! कहा जाता है। इसने शुरू से ही द वॉचटावर के साथ-साथ दुनिया की भ्रष्टता का निडरता से परदाफाश किया है और परमेश्‍वर के लोगों की मदद की है ताकि वे अपने आपको शुद्ध बनाए रखें। भविष्यवाणी में बताए गए 1,290 दिनों के खत्म होते-होते, ये पवित्र लोग परमेश्‍वर की नज़रों में काफी हद तक निर्मल और उजले बन चुके थे। जब यह समय खत्म होनेवाला ही था, ठीक उसी वक्‍त सितंबर 1922 में उन्होंने सीडर पॉइंट, ओहायो, अमरीका में एक अधिवेशन रखा, जो हमारे ज़माने में परमेश्‍वर के लोगों के इतिहास में बहुत बड़ी अहमियत रखता है। इस अधिवेशन की वज़ह से प्रचार के काम में ज़बरदस्त तेज़ी आयी। लेकिन अभी-भी बहुत सुधार करने की ज़रूरत थी। यह सुधार अगले ठहराए हुए समय में पूरा होना था।

पवित्र लोगों के लिए आनंद

24, 25. (क) दानिय्येल 12:12 में किस समय के बारे में भविष्यवाणी की गई है, और यह कब शुरू हुआ और कब खत्म? (ख) भविष्यवाणी में बताए 1,335 दिनों की शुरूआत में बचे हुए अभिषिक्‍त लोगों की आध्यात्मिक हालत कैसी थी?

24 यहोवा का स्वर्गदूत पवित्र लोगों के बारे में अपनी भविष्यवाणी को यह कहकर खत्म करता है: “क्या ही धन्य है वह, जो धीरज धरकर तेरह सौ पैंतीस दिन के अन्त तक भी पहुंचे।” (दानिय्येल 12:12) यह 1,335 दिन का समय कब शुरू होता है और कब खत्म, इसके बारे में स्वर्गदूत कोई सुराग नहीं देता। हमारे ज़माने में परमेश्‍वर के लोगों के इतिहास को देखकर यह पता चलता है कि 1,335 दिनों का यह समय, इससे पहले भविष्यवाणी में बताए गए 1,290 दिनों के तुरंत बाद ही शुरू हुआ। इस हिसाब से यह सन्‌ 1922 के सितंबर से शुरू होकर सन्‌ 1926 के मई महीने तक चला। इस समय के खत्म होते-होते क्या पवित्र लोगों के लिए खुशहाली और आनंद का समय आया? बेशक आया, खासकर आध्यत्मिक मायनों में।

25 जहाँ तक आध्यात्मिक रूप से तरक्की करने की बात है, तो सन्‌ 1922 के अधिवेशन के बाद भी (जो पेज 302 पर दिखाया गया है), परमेश्‍वर के कुछ पवित्र लोग बीते दिनों की याद को लेकर ही जी रहे थे। वे सभी सभाओं में अभी तक सिर्फ बाइबल का और सी. टी. रसल की किताब स्टडीज़ इन द स्क्रिप्चर्स्‌ के खंडों का ही अध्ययन कर रहे थे। उस वक्‍त बहुत-से लोगों का यह मानना था कि सन्‌ 1925 में पुनरुत्थान शुरू हो जाएगा और यह ज़मीन एक सुंदर बगीचे में बदलना शुरू हो जाएगी। इस तरह, बहुत-से लोग सिर्फ इसलिए यहोवा की सेवा कर रहे थे क्योंकि 1925 पास आ रहा था। और कुछ अभिषिक्‍तों ने तो गुरूर में आकर प्रचार करने से साफ इनकार कर दिया। बेशक, ऐसे हालात को खुशहाली और आनंद का समय तो नहीं कहा जा सकता।

26. जैसे-जैसे 1,335 दिन बीते, अभिषिक्‍तों की आध्यात्मिक हालत कैसे सुधरी?

26 लेकिन जैसे-जैसे 1,335 दिन बीतते गए, इन अभिषिक्‍तों की आध्यात्मिक हालत धीरे-धीरे सुधरने लगी। प्रचार के काम पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाने लगा और ऐसे इंतज़ाम किए गए ताकि हरेक भाई-बहन प्रचार के काम में लगातार हिस्सा ले सके। सभाओं में हर हफ्ते द वॉच टावर का अध्ययन करने का इंतज़ाम किया गया। द वॉच टावर के मार्च 1, 1925 के अंक में एक यादगार लेख आया जिसका शीर्षक था “एक जाति का जन्म।” इस लेख में परमेश्‍वर के लोगों को बहुत अच्छी तरह समझाया गया कि सन्‌ 1914-19 के बीच जो घटनाएँ घटीं, वे क्यों घटीं और उनका क्या महत्त्व था। सन्‌ 1925 आकर चला गया और कोई खास घटना नहीं घटी। इसके बाद से परमेश्‍वर के पवित्र लोग उसकी सेवा में जुट गए, अब वे इसलिए सेवा नहीं कर रहे थे कि किसी खास तारीख को कुछ होनेवाला है। बल्कि अब उनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा मकसद था, परमेश्‍वर यहोवा के नाम का प्रचार करके उसे पवित्र करना। परमेश्‍वर के नाम के पवित्र किए जाने की इस सबसे अहम सच्चाई पर अब जितना ज़ोर दिया जाने लगा पहले कभी नहीं दिया गया था। इसलिए, जनवरी 1, 1926 की वॉच टावर में लेख आया जिसका नाम था, “कौन यहोवा का आदर करेगा?” इसके बाद मई, 1926 के अधिवेशन में किताब डिलिवरॆन्स्‌ (छुटकारा) निकाली गई। (पेज 302 देखिए।) यह उन किताबों में से पहली किताब थी जो स्टडीज़ इन द स्क्रिप्चर्स्‌ की जगह लेनेवाली थीं। अब पवित्र जन बीते दिनों की यादों को लेकर नहीं जी रहे थे। अब वे विश्‍वास से भर चुके थे और भविष्य में और भी ज़्यादा काम करने के लिए कमर बाँधकर तैयार थे। इस तरह, ठीक जैसे भविष्यवाणी में बताया गया था, 1,335 दिनों के खत्म होते-होते पवित्र जन बहुत आनंदित और खुशहाल हो गए।

27. दानिय्येल की किताब के 12वें अध्याय पर एक नज़र डालने से, कैसे हमें साफ पता लगता है कि यहोवा के सच्चे अभिषिक्‍त जन कौन हैं?

27 लेकिन इस संकट के समय के दौरान यानी इन 1,335 दिनों के आखिर तक हर किसी ने धीरज नहीं धरा था। इसीलिए उस स्वर्गदूत ने ‘धीरज धरने’ पर इतना ज़ोर दिया था। परमेश्‍वर के जिन सच्चे अभिषिक्‍त जनों ने धीरज धरा और परमेश्‍वर की बाट जोहते रहे उन्हें इसके लिए बहुत आशीषें मिलीं। उनको क्या-क्या आशीषें मिलीं यह हमें दानिय्येल के 12वें अध्याय पर एक नज़र डालने से साफ समझ में आता है। जैसा भविष्यवाणी में बताया गया था, अभिषिक्‍त जनों में आध्यात्मिक रूप से दोबारा जान डाली गयी या उनका पुनरुत्थान किया गया। सिर्फ उन्हीं को परमेश्‍वर के वचन की गहरी समझ पाने की आशीष मिली। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की मदद से वे इसमें “पूछ-पाछ और ढूंढ़-ढांढ़” कर सके और ऐसे भेद समझा सके जिन पर सदियों से मुहर लगी हुई थी। यहोवा ने उन्हें शुद्ध करके इतना निखार दिया कि वे आध्यात्मिक मायनों में तारों की तरह पूरी दुनिया में चमकने लगे। उन्होंने अपनी चमक से बहुतों को धार्मिकता की ओर बढ़ाया ताकि उनके साथ-साथ और लोग भी परमेश्‍वर यहोवा के सामने धर्मी ठहरें।

28, 29. अब जब “अन्त समय” खत्म होने पर है, तो हमारा क्या संकल्प होना चाहिए?

28 “परमप्रधान के पवित्र लोगों” को पहचानने के लिए भविष्यवाणी में दिए गए इतने सारे सबूत मिल जाने के बाद भी, क्या कोई यह बहाना बना सकता है कि वह इन पवित्र जनों को पहचान नहीं पाया और इसलिए उनके साथ रहकर उनके काम में हाथ नहीं बँटा सका? हरगिज़ नहीं। इसलिए देर न कीजिए, इन बचे हुए अभिषिक्‍तों की गिनती धीरे-धीरे कम हो रही है। आज बड़ी भीड़ के जो लोग इन अभिषिक्‍तों का साथ दे रहे हैं, उन्हें भविष्य में बेशुमार आशीषें मिलेंगी। इसलिए, आइए हम सभी बाट जोहते रहें और इस बात का यकीन रखें कि यहोवा के वादे ज़रूर पूरे होंगे। (हबक्कूक 2:3) आज हमारे ज़माने में बड़े प्रधान मीकाएल को, परमेश्‍वर के लोगों का पक्ष लेने के लिए खड़े हुए कई दशक बीत चुके हैं। और बहुत जल्द वह घड़ी आनेवाली है जब वह ‘उठेगा,’ और परमेश्‍वर का ठहराया हुआ सज़ा देनेवाला प्रधान बनकर, इस दुष्ट दुनिया की हर बुराई का नामो-निशान मिटा देगा। जब वह ऐसा करने को उठेगा, तब हमारा क्या अंजाम होगा?

29 यह इस बात पर निर्भर करता है कि आज, इस वक्‍त हम यहोवा के वफादार रहकर अपना जीवन जीने का चुनाव करते हैं या नहीं। वक्‍त बहुत थोड़ा रह गया है, यह “अन्त समय” खत्म होने पर है। इस नाज़ुक घड़ी में यहोवा के वफादार बने रहने का संकल्प करें और अपने इस इरादे को और मज़बूत करने के लिए, आइए हम दानिय्येल की किताब की आखिरी आयत पर ध्यान दें। अगले अध्याय में इस आयत की चर्चा से हमें यह जानने में मदद मिलेगी कि पहले, परमेश्‍वर की नज़रों में दानिय्येल का क्या स्थान था और भविष्य में उसका क्या स्थान होगा।

[फुटनोट]

^ पैरा. 21 यूनानी सेप्टुआजेंट में सिर्फ “बलिदान” अनुवाद किया गया है।

आपने क्या समझा?

किस समय के दौरान मीकाएल “खड़ा रहता” है और वह कब और कैसे “उठेगा”?

दानिय्येल 12:2 में किस किस्म के पुनरुत्थान के बारे में बताया गया है?

नीचे लिखी समय-अवधियाँ कब शुरू हुईं और कब खत्म:

दानिय्येल 12:7 में बताए गए साढ़े तीन काल?

दानिय्येल 12:11 में बताए गए 1,290 दिन?

दानिय्येल 12:12 में बताए गए 1,335 दिन?

दानिय्येल की किताब के 12वें अध्याय पर ध्यान देने से हमें यहोवा के सच्चे उपासकों को पहचानने में कैसे मदद मिलती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 298 पर बक्स]

नित्य होमबलि का उठाया जाना

दानिय्येल की किताब में “नित्य होमबलि” का ज़िक्र पाँच बार हुआ है। यह वह बलिदान है जो यहोवा परमेश्‍वर के सेवक, सब लोगों के सामने उसके नाम का प्रचार करके उसकी स्तुति में चढ़ाते हैं। यही उनके “होठों का फल” है जो वे दिन-रात चढ़ाते हैं। (इब्रानियों 13:15) इसके उठाए जाने या बंद किए जाने के बारे में दानिय्येल 8:11, 11:31, और 12:11 में भविष्यवाणी की गई है।

दोनों ही विश्‍वयुद्धों में, ‘उत्तर देश के राजा’ और ‘दक्खिन देश के राजा’ के इलाकों में यहोवा के लोगों को बुरी तरह सताया गया था। (दानिय्येल 11:14, 15) “नित्य होमबलि” का उठाया जाना पहले विश्‍वयुद्ध के आखिर में हुआ, जब सन्‌ 1918 के बीच में प्रचार का काम रोक दिया गया था। (दानिय्येल 12:7) इसी तरह दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान, “नित्य होमबलि” को ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति ने 2,300 दिनों के लिए “बन्द कर दिया” था। (दानिय्येल 8:11-14. इस किताब का अध्याय 10 देखिए।) नात्ज़ी ‘बांहों’ या फौजों ने भी इसे कुछ समय के लिए उठा लिया या बंद कर दिया था जिसके बारे में बाइबल में कोई निश्‍चित समय नहीं बताया गया है।—दानिय्येल 11:31. इस किताब का अध्याय 15 देखिए।

[पेज 301 पर चार्ट/तसवीरें]

दानिय्येल की किताब में बतायी गयीं समय-अवधियाँ

सात काल (2,520 साल): अक्‍तूबर सा.यु.पू. 607 से

दानिय्येल 4:16, 25 अक्‍तूबर सन्‌ 1914

(मसीहा का राज स्थापित होता है।

इस किताब का अध्याय 6 देखिए।)

साढ़े तीन काल दिसंबर 1914 से जून 1918

(1,260 दिन): (अभिषिक्‍त मसीहियों को सताया जाता है।

दानिय्येल 7:25; 12:7 इस किताब का अध्याय 9 देखिए।)

2,300 सांझ और जून 1 या 15, 1938 से

सवेरे: अक्‍तूबर 8 या 22, 1944

दानिय्येल 8:14 (“बड़ी भीड़” प्रकट होती है, बढ़ती है।

इस किताब का अध्याय 10 देखिए।)

70सप्ताह (490 साल): सा.यु.पू. 455 से सा.यु. 36

दानिय्येल 9:24-27 (मसीहा का आना और

ज़मीन पर उसका प्रचार काम।

इस किताब का अध्याय 11 देखिए।)

1,290 दिन: जनवरी 1919 से

दानिय्येल 12:11 सितंबर 1922

(अभिषिक्‍त मसीही जाग उठते हैं और

आध्यात्मिक कामों में बढ़ते जाते हैं।)

1,335 दिन: सितंबर 1922 से मई 1926

दानिय्येल 12:12 (अभिषिक्‍त मसीही आनंदित

और खुशहाल हो जाते हैं।)

[पेज 287 पर तसवीरें]

यहोवा के ज़िम्मेदार सेवकों पर झूठे इल्ज़ाम लगाकर उन्हें अमरीका के जॉर्जिया राज्य के एटलांटा जेल में भेज दिया गया। बाएँ से दाएँ: (बैठे हैं) ए. एच. मैकमिलन, जे. एफ. रदरफर्ड, डब्ल्यू. ई. वैन एम्बर्ग; (खड़े हैं) जी. एच. फिशर, आर. जे. मार्टिन, जी. डेचेका, एफ. एच. रॉबिनसन और सी. जे. वुडवर्थ

[पेज 299 पर तसवीरें]

सन्‌ 1919 (ऊपर) और सन्‌ 1922 (नीचे) सीडर पॉइंट, ओहायो, अमरीका के अधिवेशन परमेश्‍वर के लोगों के लिए यादगार अधिवेशन हैं

[पेज 302 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]