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उनका विश्‍वास आग में भी कायम रहा

उनका विश्‍वास आग में भी कायम रहा

पाँचवाँ अध्याय

उनका विश्‍वास आग में भी कायम रहा

1. कई लोग परमेश्‍वर और अपने देश के लिए भक्‍ति रखने के बारे में क्या कहते हैं?

आपको परमेश्‍वर को भक्‍ति देनी चाहिए या देश को? कई लोग कहेंगे, ‘मैं तो दोनों की एक ही तरह भक्‍ति करता हूँ। धर्म अलग चीज़ है, देश अलग चीज़। धर्म जो कहता है मैं वो करता हूँ और देश जो कहता है मैं वो भी करता हूँ।’

2. कैसे कहा जा सकता है कि प्राचीन बाबुल में राजा राजनीति और धर्म दोनों के काम करता था?

2 आज शायद धर्म और देशभक्‍ति दो अलग-अलग बातें लगें, लेकिन प्राचीन समय के बाबुल में ये दोनों एक दूसरे से इस कदर मिले हुए थे कि इनके बीच कोई फर्क था ही नहीं। जी हाँ, राजनीति और धर्म में फर्क करना नामुमकिन था। प्रोफेसर चार्ल्स एफ. फाइफर लिखते हैं, “प्राचीन बाबुल में राजा, लोगों पर राज भी करता था और उनका महापुरोहित भी था। वह उनके लिए बलिदान चढ़ाता था और उनके लिए धर्म के कायदे-कानून भी बनाता था।”

3. कैसे पता चलता है कि नबूकदनेस्सर धर्म-कर्म में बहुत विश्‍वास रखता था?

3 मिसाल के तौर पर राजा नबूकदनेस्सर को ही लीजिए। उसके नाम का मतलब था “हे नबो, युवराज की हिफाज़त कर!” बाबुल के लोग नबो को बुद्धि और कृषि का देवता मानते थे। खुद राजा नबूकदनेस्सर देवी-देवताओं का भक्‍त था। जैसा हमने पहले ज़िक्र किया था, उसने बाबुल के ढेरों देवी-देवताओं के लिए सुंदर-सुंदर मंदिर बनवाए थे। वह मरोदक देवता का बड़ा भक्‍त था और मानता था कि मरोदक ने ही उसे हर लड़ाई में जीत दिलाई है। * ऐसा भी लगता है कि युद्ध की तैयारी करने से पहले रण-नीति बनाने के लिए नबूकदनेस्सर शकुन विचारनेवालों और भविष्य बतानेवालों से बहुत सलाहें लिया करता था।—यहेजकेल 21:18-23.

4. बाबुल में धर्म-कर्म के माहौल के बारे में बताइए?

4 बाबुल में हर तरफ एक ऐसा माहौल फैला हुआ था जिसमें धर्म-कर्म का बहुत बोलबाला था। जी हाँ, इस नगर में 50 से भी ज़्यादा मंदिर थे, जिनमें ढेरों देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी। इनमें अनु (आकाश के देवता), एनलिल (पृथ्वी, वायु, आँधी के देवता) और इआ (पानी के देवता) की त्रिमूर्ति को पूजा जाता था। साथ ही सिन (चंद्र-देवता), शामाश (सूर्य-देवता), और इशतर (जनन-देवी) की त्रिमूर्ति को भी पूजा जाता था। जादू, टोहना और ज्योतिष-विद्या बाबुल के धर्म का खास हिस्सा थे।

5. ढेरों देवी-देवताओं की पूजा करनेवाले बाबुल के लोगों के बीच में यहूदी बँधुओं के लिए कौन-सी एक परीक्षा थी?

5 इतने सारे देवी-देवताओं की पूजा करनेवाले लोगों के बीच में यहूदी बँधुओं के लिए यहोवा की उपासना करना एक बड़ी परीक्षा थी। सैकड़ों साल पहले मूसा ने इस्राएल जाति को खबरदार करते हुए कहा था कि अगर वे अपने परमेश्‍वर यहोवा की बात न सुनें, और उसकी सारी आज्ञाओं और विधियों के पालने में चौकसी न करें तो इसका अंजाम बहुत बुरा होगा। मूसा ने उनसे कहा था: “यहोवा तुझ को उस राजा समेत, जिसको तू अपने ऊपर ठहराएगा, तेरी और तेरे पूर्वजों से अनजानी एक जाति के बीच पहुंचाएगा; और उनके मध्य में रहकर तू काठ और पत्थर के दूसरे देवताओं की उपासना और पूजा करेगा।”—व्यवस्थाविवरण 28:15, 36.

6. बाबुल में रहना खास तौर पर दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल और अजर्याह के लिए एक परीक्षा क्यों था?

6 यहूदियों का यही अंजाम हुआ। बाबुल के ऐसे माहौल में यहोवा के वफादार बने रहना सचमुच उनके लिए बहुत मुश्‍किल रहा होगा। दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह के लिए खास तौर पर यह एक परीक्षा थी, क्योंकि इन चारों को शाही काम-काज सँभालने के लिए कसदियों के शास्त्र और भाषा की शिक्षा दी गई थी। (दानिय्येल 1:3-5) यह इसलिए भी एक परीक्षा थी क्योंकि इनके नामों को भी बदलकर बेलतशस्सर, शद्रक, मेशक, और अबेदनगो जैसे बाबुली नाम दिए गए थे ताकि उनका विश्‍वास कमज़ोर हो जाए और वे बाबुल के समाज में समा जाने का दबाव महसूस करें। * वफादार बने रहना इसलिए भी एक परीक्षा थी क्योंकि इन्हें ऊँचे ओहदों पर रखा गया था और अगर वे बाबुल के देवी-देवताओं की पूजा करने से मना करते तो आसानी से सबकी नज़रों में आ सकते थे और इनके इस काम को राजा के खिलाफ खुल्लम-खुल्ला बगावत समझा जाता।

एक सोने की मूरत खतरा पैदा करती है

7. (क) नबूकदनेस्सर ने जो मूरत खड़ी करवाई थी वह कैसी थी? (ख) इस मूरत को खड़ा कराने का मकसद क्या था?

7 नबूकदनेस्सर अपने पूरे साम्राज्य को एकता में बाँधना चाहता था इसलिए उसने दूरा के मैदान में सोने की एक बड़ी मूरत खड़ी कराई। इसकी ऊँचाई करीब 60 हाथ (90 फुट) और चौड़ाई करीब 6 हाथ (9 फुट) थी। * कुछ विद्वानों का यह कहना है कि यह मूरत एक सीधे खंभे की तरह थी, या फिर कटार के आकार की थी। इसके लिए एक ऊँचा चबूतरा बनाया गया था, जिसके ऊपर यह खंभा था और खंभे में सबसे ऊपर मनुष्य के आकार की मूर्ति थी। यह मूर्ति या तो खुद नबूकदनेस्सर की थी या नबो देवता की। चाहे जो भी हो, यह शानदार और विशाल मूरत बाबुल के साम्राज्य की निशानी थी और इसे खड़ा कराने का मकसद यह था कि सब लोग बाबुल साम्राज्य के इस प्रतीक को देख सकें और इसे श्रद्धा दे सकें।—दानिय्येल 3:1.

8. (क) मूरत के प्रतिष्ठान समारोह के लिए किस-किसको बुलाया गया था, और जमा होनेवालों को क्या करना था? (ख) मूरत को गिरकर दण्डवत्‌ न करनेवालों के लिए क्या सज़ा थी?

8 इसके बाद नबूकदनेस्सर ने इसके प्रतिष्ठान के लिए एक समारोह आयोजित किया। उसने अपने साम्राज्य के अधिपतियों, हाकिमों, गवर्नरों, जजों, खज़ांनचियों, न्यायियों, शास्त्रियों और प्रान्त-प्रान्त के सब अधिकारियों को बुलवा भेजा। और ढिंढोरियों से सबके सामने यह ऐलान करवाया: “हे देश-देश और जाति-जाति के लोगो, और भिन्‍न-भिन्‍न भाषा के बोलनेवालो, तुम को यह आज्ञा सुनाई जाती है कि, जिस समय तुम नरसिंगे, बांसुली, वीणा, सारंगी, सितार, शहनाई आदि सब प्रकार के बाजों का शब्द सुनो, तुम उसी समय गिरकर नबूकदनेस्सर राजा की खड़ी कराई हुई सोने की मूरत को दण्डवत्‌ करो। और जो कोई गिरकर दण्डवत्‌ न करेगा वह उसी घड़ी धधकते हुए भट्ठे के बीच में डाल दिया जाएगा।”—दानिय्येल 3:2-6.

9. मूरत के सामने दंडवत्‌ करने के इस समारोह का मकसद क्या था?

9 कुछ विद्वानों का मानना है कि नबूकदनेस्सर ने इसलिए इस समारोह का आयोजन किया था, क्योंकि वह सारे यहूदियों को यहोवा की सच्ची उपासना छोड़ने के लिए मजबूर करना चाहता था। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि उसने इस खास मौके पर सिर्फ सरकारी मुलाज़िमों को बुलाया था। इसलिए सिर्फ वही यहूदी इस मौके पर हाज़िर होते जो शाही नौकरियों पर थे। तो ऐसा लगता है कि मूरत के सामने दंडवत्‌ करने के इस समारोह का मकसद यह था कि नबूकदनेस्सर के साम्राज्य के सारे अधिकारी साथ मिलकर अपनी देशभक्‍ति और एकता दिखा सकें। विद्वान जॉन, एफ. वालवोर्ड कहते हैं: “पूरे साम्राज्य के अधिकारियों को एकसाथ एक जगह पर इकट्ठा करके एक तरफ तो नबूकदनेस्सर अपने साम्राज्य की ताकत का प्रदर्शन करना चाहता था मगर दूसरी तरफ वहाँ हाज़िर होने का मतलब यह भी मानना था कि बाबुल के देवी-देवताओं ने ही सभी युद्धों में उन्हें जीत दिलाई है।”

यहोवा के वफादार झुकने से इनकार कर देते हैं

10. नबूकदनेस्सर का हुक्म मानने में गैर-यहूदियों को कोई एतराज़ क्यों नहीं होता?

10 वहाँ जमा हुए गैर-यहूदी लोगों के अपने-अपने देवी-देवता थे लेकिन फिर भी उन्हें नबूकदनेस्सर की खड़ी कराई मूरत को दंडवत करने में रत्ती भर एतराज़ नहीं होता। इसके बारे में एक बाइबल विद्वान कहते हैं: “वे सब मूर्तिपूजक थे और इसीलिए उन्हें अपने देवताओं के अलावा दूसरे देवी-देवताओं की पूजा करने से कोई फर्क नहीं पड़ता।” उन्होंने आगे कहा: “उनका ऐसा करना उनके इस विश्‍वास के मुताबिक था कि संसार में कई देवी-देवता हैं . . . और इसलिए दूसरे देश के देवी-देवताओं की पूजा करने में कोई बुराई नहीं है।”

11. शद्रक, मेशक, और अबेदनगो मूरत के आगे क्यों नहीं झुके?

11 लेकिन यहूदी लोग ऐसा नहीं मानते थे, क्योंकि उन्हें यहोवा परमेश्‍वर ने यह आज्ञा दी थी: “तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, वा पृथ्वी पर, वा पृथ्वी के जल में है। तू उनको दण्डवत्‌ न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा जलन रखने वाला ईश्‍वर हूं, और जो मुझ से बैर रखते हैं, उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को भी पितरों का दण्ड दिया करता हूं।” (निर्गमन 20:4, 5) इसलिए जब अलग-अलग साज़ बजने लगे और जमा हुए सब लोग मूरत को दंडवत्‌ करने के लिए उसके सामने गिर पड़े, उस वक्‍त ये तीन यहूदी यानी शद्रक, मेशक, और अबेदनगो खड़े ही रहे।—दानिय्येल 3:7.

12. कुछ कसदियों ने इन तीन यहूदियों पर क्या इलज़ाम लगाया और क्यों?

12 इन तीन यहूदी अधिकारियों को मूरत के सामने दंडवत्‌ ना करता देख कुछ कसदी उन पर झुँझला उठे। वे उनसे कोई सफाई या वज़ह नहीं सुनना चाहते थे, इसके बजाय वे फौरन राजा के पास गए और उन “यहूदियों की चुगली खाई।” * वे चाहते थे कि इन यहूदियों को देशद्रोही और बागी होने की सज़ा मिले। इसलिए उन चुगलखोरों ने राजा से कहा: “देख, शद्रक, मेशक, और अबेदनगो नाम कुछ यहूदी पुरुष है, जिन्हें तू ने बाबुल के प्रान्त के कार्य के ऊपर नियुक्‍त किया है। उन पुरुषों ने, हे राजा, तेरी आज्ञा की कुछ चिन्ता नहीं की; वे तेरे देवता की उपासना नहीं करते, और जो सोने की मूरत तू ने खड़ी कराई है, उसको दण्डवत्‌ नहीं करते।”—दानिय्येल 3:8-12.

13, 14. शद्रक, मेशक, और अबेदनगो के बारे में चुगली सुनकर नबूकदनेस्सर ने क्या किया?

13 नबूकदनेस्सर यह देखकर कितना परेशान और बेचैन हो उठा होगा कि इन तीन यहूदियों ने उसका हुक्म नहीं माना! लेकिन यह तो साबित हो चुका था कि शद्रक, मेशक, अबेदनगो को बाबुल साम्राज्य का वफादार बनाने की उसकी सारी कोशिशें नाकाम रहीं। क्या उसने उन्हें कसदियों के शास्त्र और भाषा की शिक्षा नहीं दिलवाई थी? उसने तो उनके नाम तक बदल दिए थे! लेकिन अगर नबूकदनेस्सर ने यह समझा था कि तीन साल तक उनके दिमाग में कसदियों की तालीम भरने से वे यहूदी अपने परमेश्‍वर की उपासना करना भूल जाएँगे या उन्हें बाबुली नाम देने से वे बाबुली बन जाएँगे, तो यह उसकी एक बड़ी भूल थी। शद्रक, मेशक और अबेदनगो, यहोवा के वफादार बने रहे!

14 राजा नबूकदनेस्सर का गुस्सा भड़क उठा। उसी वक्‍त उसने शद्रक, मेशक और अबेदनगो को बुलवाया और उनसे पूछा: “हे शद्रक, मेशक और अबेदनगो, तुम लोग जो मेरे देवता की उपासना नहीं करते, और मेरी खड़ी कराई हुई सोने की मूरत को दण्डवत्‌ नहीं करते, सो क्या तुम जान बूझकर ऐसा करते हो?” बेशक, नबूकदनेस्सर यह मान नहीं पा रहा था कि वाकई ऐसा भी हो सकता है। उसने शायद सोचा हो, ‘ऐसा कैसे हो सकता है कि ऐसे बुद्धिमान नौजवान राजा के इतने बड़े हुक्म को मानने से इनकार कर दें और वह भी यह जानते हुए कि इसे ना मानने का अंजाम कितना भयंकर होगा?’—दानिय्येल 3:13, 14.

15, 16. नबूकदनेस्सर उन तीन यहूदियों को क्या मौका देता है?

15 नबूकदनेस्सर इन तीनों यहूदियों को एक और मौका देने के लिए तैयार था। उसने कहा: “यदि तुम अभी तैयार हो, कि जब नरसिंगे, बांसुली, वीणा, सारंगी, सितार, शहनाई आदि सब प्रकार के बाजों का शब्द सुनो, और उसी क्षण गिरकर मेरी बनवाई हुई मूरत को दण्डवत्‌ करो, तो बचोगे: और यदि तुम दण्डवत्‌ न करो तो इसी घड़ी धधकते हुए भट्ठे के बीच में डाले जाओगे; फिर ऐसा कौन देवता है, जो तुम को मेरे हाथ से छुड़ा सके?”—दानिय्येल 3:15.

16 इससे साफ पता चलता है कि नबूकदनेस्सर ने उस मूरत के सपने से (जिसके बारे में दानिय्येल के 2 अध्याय में लिखा है) यहोवा परमेश्‍वर की महानता के बारे में जो सबक सीखा था उसे वह भूल चुका था। अब तक शायद वह भूल चुका था कि खुद उसी ने दानिय्येल के सामने यह कबूल किया था: “तुम लोगों का परमेश्‍वर, सब ईश्‍वरों का ईश्‍वर, राजाओं का राजा . . . है।” (दानिय्येल 2:47) अब तो वह, खुद यहोवा ही को ललकारकर यह कह रहा था कि यहोवा भी इन तीन नौजवानों को उसके हाथों से नहीं छुड़ा सकता।

17. शद्रक, मेशक, और अबेदनगो ने राजा को क्या जवाब दिया?

17 लेकिन शद्रक, मेशक, और अबेदनगो को एक और मौके की ज़रूरत नहीं थी। उन्होंने उसी वक्‍त नबूकदनेस्सर को यह जवाब दिया: “हे नबूकदनेस्सर, इस विषय में तुझे उत्तर देने का हमें कुछ प्रयोजन नहीं जान पड़ता। हमारा परमेश्‍वर, जिसकी हम उपासना करते हैं वह हम को उस धधकते हुए भट्ठे की आग से बचाने की शक्‍ति रखता है; वरन हे राजा, वह हमें तेरे हाथ से भी छुड़ा सकता है। परन्तु, यदि नहीं, तो हे राजा तुझे मालूम हो, कि हम लोग तेरे देवता की उपासना नहीं करेंगे, और न तेरी खड़ी कराई हुई सोने की मूरत को दण्डवत्‌ करेंगे।”—दानिय्येल 3:16-18.

आग के धधकते भट्ठे में!

18, 19. जब उन तीन यहूदियों को आग के धधकते भट्ठे में फेंका गया तब क्या हुआ?

18 यह सुनकर नबूकदनेस्सर का खून खौल उठा और उसने भट्ठे को सातगुना और ज़्यादा धधकाने का हुक्म दिया। फिर उसने “अपनी सेना के कई एक बलवान्‌ पुरुषों को” यह हुक्म दिया कि शद्रक, मेशक, और अबेदनगो को बाँधकर “धधकते हुए भट्ठे में डाल” दें। राजा के हुक्म के मुताबिक उन्होंने उन तीन यहूदियों को कपड़ों समेत बाँधकर आग के भट्ठे में फेंक दिया। कपड़ों समेत शायद इसलिए क्योंकि इनसे वे फौरन जल मरते। पर नबूकदनेस्सर के बलवान्‌ पुरुष खुद ही आग की लपटों से जलकर भस्म हो गए।—दानिय्येल 3:19-22.

19 मगर चमत्कार देखिए, शद्रक, मेशक, और अबेदनगो को आग के धधकते हुए भट्ठे में फेंका तो गया था लेकिन उन पर आँच तक नहीं आई। यह देखकर नबूकदनेस्सर के तो होश ही उड़ गए होंगे! क्या धधकते भट्ठे में उन्हें बाँधकर नहीं फेंका गया था? लेकिन वे अब भी ज़िंदा थे। यहाँ तक कि वे भट्ठे में खुले घूम रहे थे! इसके अलावा नबूकदनेस्सर ने कुछ और नज़ारा भी देखा। उसने अपने मंत्रियों से पूछा, “क्या हम ने उस आग के बीच तीन ही पुरुष बन्धे हुए नहीं डलवाए?” उन्हों ने राजा को उत्तर दिया, “हां राजा, सच बात तो है।” नबूकदनेस्सर घबराकर चिल्लाया, “अब मैं देखता हूं कि चार पुरुष आग के बीच खुले हुए टहल रहे हैं, और उनको कुछ भी हानि नहीं पहुंची; और चौथे पुरुष का स्वरूप ईश्‍वर के पुत्र के सदृश्‍य है।”—दानिय्येल 3:23-25.

20, 21. (क) जब शद्रक, मेशक, अबेदनगो आग से बाहर निकले तब नबूकदनेस्सर ने क्या पाया? (ख) नबूकदनेस्सर को क्या मानना पड़ा?

20 तब नबूकदनेस्सर उस भट्ठे के द्वार के पास गया और पुकारते हुए उसने कहा “हे शद्रक, मेशक और अबेदनगो, हे परमप्रधान परमेश्‍वर के दासो, निकलकर यहां आओ!” तब ये तीनों यहूदी आग में से बाहर निकल आए। तब नबूकदनेस्सर के साथ-साथ जितने भी लोग वहाँ मौजूद थे जिनमें अधिपति, हाकिम, गवर्नर, और बड़े-बड़े अधिकारी भी थे वे सब के सब इस चमत्कार को देखकर दंग रह गए। ऐसा लग रहा था मानो इन तीनों यहूदी जवानों को आग में डाला ही न गया हो! उनमें से जलने की ज़रा भी बू नहीं आ रही थी, यहाँ तक कि उनका एक भी बाल नहीं झुलसा था।—दानिय्येल 3:26, 27.

21 आखिरकार नबूकदनेस्सर को यह मानना ही पड़ा कि सिर्फ यहोवा ही परमप्रधान परमेश्‍वर है। इसलिए उसने कहा: “धन्य है शद्रक, मेशक, और अबेदनगो का परमेश्‍वर, जिस ने अपना दूत भेजकर अपने इन दासों को इसलिये बचाया, क्योंकि इन्हों ने राजा की आज्ञा न मानकर, उसी पर भरोसा रखा, और यह सोचकर अपना शरीर भी अर्पण किया, कि हम अपने परमेश्‍वर को छोड़, किसी देवता की उपासना वा दण्डवत्‌ न करेंगे।” इसके बाद राजा ने यह सख्त आदेश दिया: “अब मैं यह आज्ञा देता हूं कि देश-देश और जाति-जाति के लोगों, और भिन्‍न-भिन्‍न भाषा बोलनेवालों में से जो कोई शद्रक, मेशक और अबेदनगो के परमेश्‍वर की कुछ निन्दा करेगा, वह टुकड़े टुकड़े किया जाएगा, और उसका घर घूरा बनाया जाएगा; क्योंकि ऐसा कोई और देवता नहीं जो इस रीति से बचा सके।” इसके बाद ‘राजा ने बाबुल के प्रान्त में शद्रक, मेशक, अबेदनगो का पद और ऊंचा किया।’—दानिय्येल 3:28-30.

आज का आग का भट्ठा

22. किस तरह आज यहोवा के सेवक भी वैसे ही माहौल में जीते हैं जैसा शद्रक, मेशक, और अबेदनगो के समय में था?

22 आज यहोवा के सेवक भी वैसे ही माहौल में जीते हैं जैसा शद्रक, मेशक, और अबेदनगो के समय में था। यह सच है कि आज परमेश्‍वर के लोग किसी परदेस में बँधुए तो नहीं हैं लेकिन वे इस संसार में एक तरह के “परदेसी” हैं क्योंकि यीशु मसीह ने कहा था वे इस “संसार के नहीं” हैं। (यूहन्‍ना 17:14) वे इसलिए “परदेसी” हैं क्योंकि वे बाइबल के खिलाफ जानेवाले इस संसार के रिवाज़ों, नज़रिए और तौर-तरीकों को नहीं अपनाते। पौलुस ने लिखा था कि मसीहियों को “इस संसार के सदृश” नहीं बनना चाहिए।—रोमियों 12:2.

23. ये तीन यहूदी नौजवान किस तरह अटल बने रहे और आज मसीही उनकी इस मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

23 ये तीन यहूदी नौजवान बाबुल के लोगों के सदृश बनकर उसके समाज में समाना नहीं चाहते थे। यहाँ तक कि तीन साल की कसदियों के शास्त्रों और भाषा की शिक्षा भी उन्हें नहीं बदल पाई। यह सवाल ही नहीं उठता था कि दुनिया की कोई भी ताकत उनकी वफादारी और भक्‍ति को खरीद सके। वे यहोवा की उपासना के लिए अपनी जान की बाज़ी भी लगा सकते थे। आज मसीहियों को भी इन्हीं की तरह यहोवा में अटल विश्‍वास के साथ वफादार रहना चाहिए। उन्हें शर्म महसूस करने की ज़रूरत नहीं कि वे दुनिया से अलग नज़र आते हैं। जी हाँ “संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।” (1 यूहन्‍ना 2:17) इसलिए इस मिटनेवाली दुनिया के रंग में रंगने का कोई फायदा नहीं है, ऐसा करना मूर्खता और नादानी है।

24. उन तीन यहूदियों की तरह आज मसीही भी मूर्ति-पूजा के मामले में क्या रुख अपनाते हैं?

24 मूर्ति-पूजा के कई रूप हैं और आज मसीहियों को हर तरह की मूर्ति-पूजा से खबरदार रहना चाहिए। * (1 यूहन्‍ना 5:21) शद्रक, मेशक, और अबेदनगो आदर के साथ मूरत के सामने खड़े तो रहे मगर उन्हें मालूम था कि उसे झुककर दंडवत्‌ करना उसकी पूजा करने के बराबर था और ऐसा करनेवालों पर यहोवा का कोप भड़कता। (व्यवस्थाविवरण 5:8-10) जॉन एफ. वालवोर्ड लिखते हैं: “ऐसा करना देश के झंडे को सलामी देने के बराबर था, हालाँकि यह देश के लिए किया गया था लेकिन इसमें धर्म के शामिल होने की वज़ह से यह एक तरह की पूजा थी।” और आज मसीही किसी भी हाल में ऐसी पूजा नहीं करते।

25. शद्रक, मेशक, और अबेदनगो के किस्से से आपने क्या सबक सीखा?

25 शद्रक, मेशक और अबेदनगो उन सभी लोगों के लिए बेहतरीन मिसाले हैं जो यह अटल इरादा रखते हैं कि यहोवा परमेश्‍वर को छोड़ और किसी को भक्‍ति नहीं देंगे। जब प्रेरित पौलुस विश्‍वास दिखानेवाले बहुत से लोगों की मिसाल दे रहा था तब उसने इन तीन यहूदियों के बारे में कहा कि इन्होंने विश्‍वास ही से “आग की ज्वाला को ठंडा किया।” (इब्रानियों 11:33, 34) आज ऐसा ही विश्‍वास दिखानेवाले हर इंसान को यहोवा ज़रूर आशीष देगा। इन तीन यहूदियों को तो आग के भट्ठे से बचा लिया गया था लेकिन जो कोई यहोवा का वफादार बने रहने के लिए अपनी जान तक गँवा देता है, हम पूरे यकीन के साथ कह सकते हैं कि यहोवा ज़रूर उसे फिर से जिलाएगा और हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी का इनाम देगा। और अगर हमारी जान खतरे में हो तौभी वह हमारी हिफाज़त कर सकता है। इसलिए हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि चाहे जिलाकर या बचाकर, दोनों ही तरीकों से यहोवा “अपने भक्‍तों के प्राणों की रक्षा करता, और उन्हें दुष्टों के हाथ से बचाता है।”—भजन 97:10.

[फुटनोट]

^ पैरा. 3 कुछ विद्वान मानते हैं कि बाबुल का बनानेवाला मरोदक, निम्रोद ही था जिसकी मौत के बाद लोग उसे देवता मानकर पूजने लगे थे। लेकिन इस बात को पूरे यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता।

^ पैरा. 6 “बेलतशस्सर” का मतलब है “राजा की रक्षा कर।” “शद्रक” का मतलब है “आकू का हुक्म।” आकू एक सूमेरी चंद्र-देवता था। “मेशक” भी शायद एक सूमेरी देवता था, और “अबेदनगो” का मतलब था, “नगो [या नबो] का सेवक।”

^ पैरा. 7 मूरत के इतने बड़े आकार की वज़ह से कुछ विद्वान मानते हैं कि यह लकड़ी से बनी थी जिस पर सोना मढ़ा गया था।

^ पैरा. 12 जिन अरामी शब्दों का ‘चुगली खाना’ अनुवाद किया गया है उसका मतलब है किसी आदमी का ‘माँस खाना’—मानो उसकी चुगली खाकर उसे कच्चा चबा जाना।

^ पैरा. 24 मिसाल के तौर पर बाइबल पेटूपन और लालच को भी मूर्ति-पूजा बताती है।—फिलिप्पियों 3:18, 19; कुलुस्सियों 3:5.

आपने क्या समझा?

• नबूकदनेस्सर की खड़ी कराई मूरत के आगे झुकने से शद्रक, मेशक, और अबेदनगो ने क्यों इनकार किया?

• इन तीन यहूदियों के अटल फैसले को देखकर नबूकदनेस्सर ने क्या किया?

• यहोवा ने इन तीन यहूदियों के विश्‍वास का क्या इनाम दिया?

• शद्रक, मेशक, और अबेदनगो के किस्से से आपने क्या सीखा?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 68 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]

[पेज 70 पर तसवीरें]

1. बाबुल का सीढ़ीदार मंदिर-टीला (ज़िग्गुरत)

2. मरोदक का मंदिर

3. काँसे की पटिया जिस पर मरोदक (बाएँ) और नबो को (दाएँ) दैत्यनागों पर खड़े हुए दिखाया गया है

4. अपने निर्माण काम के लिए मशहूर, नबूकदनेस्सर का चित्र

[पेज 76 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]

[पेज 78 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]