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दुनिया पर किसका राज होगा?

दुनिया पर किसका राज होगा?

नौवाँ अध्याय

दुनिया पर किसका राज होगा?

1-3. बेलशस्सर के राज के पहले साल में दानिय्येल ने सपने में क्या दर्शन देखा?

आइए हम एक बार फिर से राजा बेलशस्सर के राज के पहले साल में चलें। इस वक्‍त दानिय्येल की उम्र 75 साल के आस-पास थी। बाबुल की बँधुआई में रहते हुए उसे कई साल बीत चुके थे फिर भी वह वफादारी के मार्ग पर अटल रहा। बेलशस्सर के राज के पहले साल में दानिय्येल भविष्यवक्‍ता ने “पलंग पर स्वप्न देखा।” इस सपने में उसने जो दर्शन देखा उसे देखकर वह बहुत बेचैन हो गया।—दानिय्येल 7:1, 15.

2 दानिय्येल ने जो देखा, उसके बारे में वह बताता है: “मैं ने रात को यह स्वप्न देखा कि महासागर पर चौमुखी आंधी चलने लगी। तब समुद्र में से चार बड़े बड़े जन्तु, जो एक दूसरे से भिन्‍न थे, निकल आए।” ये जन्तु वाकई अजीब और खौफनाक थे! पहला सिंह के समान था और उसके पंख थे, दूसरा जन्तु रीछ के समान था। उसके बाद चीते के समान एक और जन्तु निकला जिसके चार सिर थे और पीठ पर चार पंख थे! चौथा जन्तु खूंखार, भयानक और अत्यंत बलशाली था। उसके बड़े बड़े लोहे के दांत थे और उसके दस सींग भी थे। इस जन्तु के दस सींगों के बीच एक और “छोटा” सींग निकलता है। इस सींग में “मनुष्य की सी आंखें” थीं और “बड़ा बोल बोलनेवाला मुंह भी” था।—दानिय्येल 7:2-8.

3 अब दानिय्येल स्वर्ग का एक दर्शन देखता है। वह देखता है कि कोई अति प्राचीन, न्याय करने के लिए एक महिमावान और तेजोमय सिंहासन पर आकर विराजमान होता है। ‘हजारों हजार उसकी सेवा टहल कर रहे थे, और लाखों लाख उसके साम्हने हाज़िर थे।’ इस अदालत में वह अति प्राचीन इन चार जन्तुओं को कड़ी सज़ा सुनाता है। चौथे जन्तु को नाश कर दिया जाता है और बाकी जन्तुओं का अधिकार उनसे छीन लिया जाता है। दानिय्येल फिर देखता है कि ‘मनुष्य के सन्तान से’ किसी को ‘देश-देश और जाति-जाति के लोगों और भिन्‍न-भिन्‍न भाषा बोलनेवाले लोगों’ पर सदा तक राज्य करने का अधिकार दिया जा रहा है।—दानिय्येल 7:9-14.

4. (क) दर्शन की बातों का भेद समझने के लिए दानिय्येल किस के पास जाता है? (ख) भेद का अर्थ समझना हमारे लिए बेहद ज़रूरी क्यों है?

4 इस दर्शन को देखकर दानिय्येल कहता है, “मुझ दानिय्येल का मन विकल हो गया, और जो कुछ मैं ने देखा था उसके कारण मैं घबरा गया।” इसलिए दानिय्येल “सारी बातों का भेद” पूछने के लिए वहाँ हाज़िर एक स्वर्गदूत के पास जाता है। तब वह स्वर्गदूत उसे “उन बातों का अर्थ” बताता है। (दानिय्येल 7:15-28) उस भेद का अर्थ समझना हमारे लिए भी बेहद ज़रूरी है क्योंकि इस दर्शन में ऐसी घटनाओं के बारे में बताया गया है जो उस समय से लेकर हमारे समय तक घटनेवाली थीं। ये तब तक घटनेवाली थीं जब ‘मनुष्य के सन्तान से किसी को’ “देश-देश और जाति-जाति के लोग और भिन्‍न-भिन्‍न भाषा बोलनेवालों” पर राज्य करने का अधिकार दिया जाता है। परमेश्‍वर के वचन और उसकी पवित्र शक्‍ति की मदद से आज हम भी इस दर्शन का मतलब समझ सकते हैं। *

चार जन्तु समुद्र से निकलते हैं

5. उस समुद्र का क्या मतलब है जिस पर आँधी चल रही थी?

5 दानिय्येल ने कहा था: “तब समुद्र में से चार बड़े बड़े जन्तु . . . निकल आए।” (दानिय्येल 7:3) इस समुद्र का क्या मतलब है जिस पर आँधी चल रही थी? इस दर्शन के सदियों बाद प्रेरित यूहन्‍ना ने भी एक दर्शन देखा था जिसमें सात सिरवाला एक पशु “समुद्र” से निकलता है। इस दर्शन में समुद्र का मतलब है, ‘लोग, और भीड़ और जातियाँ, और भाषाएँ’ यानी दुनिया के वे करोड़ों इंसान जो परमेश्‍वर से दूर हैं। इसलिए दानिय्येल के दर्शन के समुद्र का मतलब है, सारी मानवजाति जो परमेश्‍वर से अलग हो गई है।—प्रकाशितवाक्य 13:1, 2; 17:15; यशायाह 57:20.

6. चार जन्तुओं का क्या अर्थ है?

6 परमेश्‍वर का स्वर्गदूत बताता है “उन चार बड़े बड़े जन्तुओं का अर्थ चार राज्य हैं, जो पृथ्वी पर उदय होंगे।” (दानिय्येल 7:17) ये चार जन्तु “चार राज्य” हैं यानी वे विश्‍वशक्‍तियाँ जो इस दुनिया पर राज्य करतीं। लेकिन कौन-सी विश्‍वशक्‍तियाँ?

7. (क) बाइबल के विद्वान चार जन्तुओं के दानिय्येल के दर्शन और नबूकदनेस्सर के बड़ी मूरत के सपने के बारे में क्या कहते हैं? (ख) उस बड़ी मूरत के अलग-अलग हिस्से किन धातुओं से बने थे और हरेक का क्या मतलब था?

7 बाइबल के विद्वान कहते हैं कि चार जन्तुओं के दानिय्येल के इस दर्शन में और नबूकदनेस्सर के बड़ी मूरत के सपने के बीच समानता है। मिसाल के तौर पर दी एक्सपॉसिटर्स बाइबल कमेंट्री में कहा गया है: “[दानिय्येल के] 7 और 2 अध्याय में समानता है।” द वाइक्लिफ बाइबल कमेंट्री में कहा गया है: “सभी विद्वान इस बात को मानते हैं कि [दानिय्येल के 7 अध्याय में] एक के बाद एक आनेवाली जिन अन्य-जाति विश्‍वशक्‍तियों के बारे में बताया गया है . . . वे वही हैं जिन के बारे में [दानिय्येल के] 2 अध्याय में बताया गया है।” नबूकदनेस्सर ने अपने सपने में एक बड़ी मूरत देखी थी जिसका सिर सोने का था, भुजाएं और छाती चाँदी की, पेट और जांघें पीतल कीं और टाँगें लोहे की थीं। सोने का सिर बाबुल का साम्राज्य था, चाँदी की छाती और भुजाएँ मादी-फारस का साम्राज्य था, पीतल का पेट और जांघें यूनान (ग्रीस) का साम्राज्य था और लोहे की टाँगें, रोम का साम्राज्य। * (दानिय्येल 2:32, 33) आइए अब देखें कि कैसे ये चार साम्राज्य वही चार जन्तु यानी राज्य हैं, जिन्हें दानिय्येल ने देखा था।

शेर की तरह खूँखार, उकाब की तरह तेज़

8. (क) दानिय्येल ने पहले जन्तु के बारे में क्या बताया? (ख) पहला जन्तु कौन-सी विश्‍वशक्‍ति था और इस विश्‍वशक्‍ति ने एक सिंह की तरह क्या किया?

8 पहले जन्तु के बारे में वह बताता है: “पहिला जन्तु सिंह के समान था और उसके पंख उकाब के से थे। और मेरे देखते देखते उसके पंखों के पर नोचे गए [“पंख उखाड़े गए,” NHT] और वह भूमि पर से उठाकर, मनुष्य की नाईं पांवों के बल खड़ा किया गया; और उसको मनुष्य का हृदय दिया गया।” (दानिय्येल 7:4) यह जन्तु विश्‍वशक्‍ति बाबुल साम्राज्य (सा.यु.पू. 607-539) था। यही बाबुल साम्राज्य, नबूकदनेस्सर के सपने की उस बड़ी मूरत का सोने का सिर भी था। फाड़ खानेवाले खूंखार, शिकारी “सिंह” की तरह बाबुल ने कई देशों पर चढ़ाई करके उन्हें निगल लिया, जिसमें परमेश्‍वर के लोगों का देश भी था। (यिर्मयाह 4:5-7; 50:17) इस “सिंह,” के तेज़ी से झपटनेवाले उकाब जैसे पंख थे जिसका मतलब था कि यह तेज़ गति से जीत हासिल करता चला जाएगा।—विलापगीत 4:19; हबक्कूक 1:6-8.

9. सिंह के समान दिखनेवाले जन्तु में क्या-क्या बदलाव आते हैं, और इनका क्या मतलब है?

9 बाद में इस सिंह के ‘पंखों को उखाड़ दिया गया।’ इसका मतलब है कि इस साम्राज्य की जीत हासिल करने की गति कम हो गई। इस सिंह को मनुष्यों की तरह पाँवों के बल पर खड़ा किया गया जिसका मतलब है कि अब वह बस इतनी ही तेज़ दौड़ सकता था जितना कि दो पैरोंवाला इंसान दौड़ सकता है। और ठीक ऐसा ही हुआ, राजा बेलशस्सर के दिनों तक बाबुल साम्राज्य जीत हासिल करने की अपनी तेज़ी खो बैठा था। “मनुष्य का हृदय” दिए जाने का मतलब है कि वह शेर-दिल नहीं रहा और इसलिए वह “वनपशुओं में सिंह” की तरह जंगल का राजा नहीं रहा। इसी तरह दूसरे देशों पर बाबुल साम्राज्य का दबदबा खत्म हो गया था और दुनिया पर उसका राज नहीं रहा। (2 शमूएल 17:10; मीका 5:8 से तुलना कीजिए।) एक बड़े जन्तु यानी एक और विश्‍वशक्‍ति ने इस सिंह यानी बाबुल को हरा दिया।

रीछ की तरह पेटू

10. “रीछ” का क्या अर्थ है?

10 दानिय्येल आगे कहता है, “फिर मैं ने एक और जन्तु देखा जो रीछ के समान था, और एक पांजर के बल उठा हुआ था, और उसके मुंह में दांतों के बीच तीन पसुली थी, और लोग उस से कह रहे थे, उठकर बहुत मांस खा।” (दानिय्येल 7:5) इस “रीछ” का अर्थ है, विश्‍वशक्‍ति मादी-फारस साम्राज्य (सा.यु.पू. 539-331) यानी इसकी राजगद्दी पर बैठनेवाले राजा, दारा मादी और कुस्रू महान से लेकर इसके आखिरी राजा, दारा III तक। नबूकदनेस्सर के सपने की उस बड़ी मूरत की चाँदी की छाती और भुजाएँ भी यही मादी-फारस साम्राज्य था।

11. “रीछ” के एक पांजर के बल खड़े होने का और उसके मुँह में तीन पसलियाँ होने का क्या मतलब है?

11 यह “रीछ” एक “पांजर के बल उठा हुआ था।” वह अपने पंजे से हमला करने के लिए तैयार था। इसका मतलब शायद यह था कि वह दूसरे देशों पर हमला करने और उन्हें अपने अधीन करने की ताक में था ताकि वह इस दुनिया पर अपनी हुकूमत बरकरार रख सके। या इस तरह एक पंजे पर खड़े होने का मतलब शायद यह भी हो सकता है कि मादी और फारसी जातियों में से एक जाति दूसरी जाति से ज़्यादा प्रभुता पाती। दारा मादी को छोड़, इस साम्राज्य के बाकी सभी राजा फारसी जाति के थे, मादी जाति के नहीं। जो तीन पसलियाँ उसके मुँह में दाँतों के बीच थीं उनका मतलब वे तीन दिशाएँ हो सकती हैं, जिनमें इसने जीत हासिल की थी। इस मादी-फारस “रीछ” ने सा.यु.पू. 539 में उत्तर दिशा में जाकर बाबुल साम्राज्य पर जीत हासिल की। उसके बाद यह दूसरे देशों को जीतने के लिए पश्‍चिम दिशा में एशिया माइनर से होकर आगे थ्रेस तक गया। आखिर में इस “रीछ” ने दक्षिण दिशा में मिस्र पर हमला करके उसे जीत लिया। उन तीन पसलियों का मतलब, जीत हासिल करने की इस मादी-फारस “रीछ” की ज़ोरदार भूख भी हो सकता है क्योंकि बाइबल में कई बार, तीन गिनती को एक बात पर ज़ोर देने के लिए इस्तेमाल किया गया है।

12. जब “रीछ” से कहा गया “उठकर बहुत मांस खा” तब इसका नतीजा क्या हुआ?

12 इस “रीछ” से कहा गया था, “उठकर बहुत मांस खा” और ऐसा करने के लिए उसने कई देशों पर आक्रमण किया और उन्हें हड़प लिया। इसमें बाबुल साम्राज्य भी शामिल था जिसे जीतकर मादी-फारस साम्राज्य ने परमेश्‍वर यहोवा के लोगों की बहुत बड़ी सेवा की। उसने यह सेवा कैसे की? (पेज 149 पर “एक भला और उदार सम्राट” लेख देखिए।) मादी-फारस साम्राज्य के राजा कुस्रू महान ने बाबुल में रहनेवाले यहूदी बँधुओं को आज़ाद किया, दारा I (दारा महान) ने यहोवा का मंदिर बनाने में मदद की और अर्तक्षत्र I ने यरूशलेम की शहरपनाह को फिर से बनवाया। मादी-फारस विश्‍वशक्‍ति का साम्राज्य इतना बढ़ गया कि वह 127 प्रांतों पर राज्य करने लगा। बाइबल कहती है कि रानी ऐस्तर का पति क्षयर्ष (जरक्सीज़ I) “हिन्दुस्तान से लेकर कूश देश तक राज्य करता था।” (एस्तेर 1:1) लेकिन अब दूसरा जन्तु समुद्र से निकल रहा था।

पंखोंवाले चीते की तरह तेज़ और फुर्तीला!

13. (क) तीसरे जन्तु का अर्थ क्या है? (ख) इस तीसरे जन्तु की तेज़ी और उसके साम्राज्य की सीमा के बारे में क्या कहा जा सकता है?

13 तीसरा जन्तु “चीते के समान” था ‘जिसकी पीठ पर पक्षी के से चार पंख थे; और उस जन्तु के चार सिर थे; और उसको अधिकार दिया गया।’ (दानिय्येल 7:6) इस चार पंखवाले और चार सिरवाले “चीते” का अर्थ है, विश्‍वशक्‍ति यूनान (ग्रीस) का साम्राज्य, यानी इसकी राजगद्दी पर बैठनेवाले मकिदुनी और यूनानी राजा। नबूकदनेस्सर के सपने की उस बड़ी मूरत का पीतल का पेट और जांघें भी यही यूनानी साम्राज्य था। इसका पहला राजा सिकंदर महान था। चीते जैसी फुरती और तेज़ी के साथ सिकंदर, दक्षिण में मिस्र और पूर्व में एशिया माइनर से होकर भारत की पश्‍चिमी सीमा तक जीत हासिल करता चला गया। (हबक्कूक 1:8 से तुलना कीजिए।) उसके साम्राज्य की सीमा मादी-फारस “रीछ” के साम्राज्य से बड़ी थी क्योंकि इसमें मादी-फारस के साम्राज्य के अलावा मकिदुनिया और यूनान भी शामिल थे।—पेज 153 पर “एक नौजवान राजा दुनिया जीतता है” देखिए।

14. कब और कैसे ‘चीता’ चार-सिरवाला बन गया?

14 यह ‘चीता’ तब चार सिरवाला बना जब, सा.यु.पू. 323 में सिकंदर के मरने के कुछ सालों बाद उसके चार सेनापतियों ने यूनानी साम्राज्य को आपस में चार हिस्सों में बाँट लिया। हरेक सेनापति एक-एक हिस्से का राजा बन गया। सेनापति सेल्युकस मेसोपोटामिया और सीरिया (अराम) का राजा बन गया। सेनापति टॉल्मी ने मिस्र और इस्राएल देश को अपने अधीन कर लिया। सेनापति लिसिमाकस एशिया माइनर और थ्रेस का राजा बन गया और सेनापति कसांडर को मकिदुनिया और यूनान देश मिल गए। (पेज 162 पर “एक बड़ा साम्राज्य बँट जाता है” देखिए।) लेकिन इसके बाद एक और बड़ा खतरनाक जन्तु निकलता है।

एक भयंकर जन्तु जो सबसे भिन्‍न था

15. (क) चौथे जन्तु के बारे में बताइए। (ख) चौथा जन्तु कौन-सी विश्‍वशक्‍ति था और इसने किस तरह सब कुछ खा डाला और चूर-चूर किया?

15 दानिय्येल चौथे जन्तु के बारे में बताता है कि वह “भयंकर और डरावना और बहुत सामर्थी” था। वह आगे बताता है: “और उसके बड़े बड़े लोहे के दांत हैं; वह सब कुछ खा डालता है और चूर चूर करता है, और जो बच जाता है, उसे पैरों से रौंदता है। और वह सब पहिले जन्तुओं से भिन्‍न है; और उसके दस सींग हैं।” (दानिय्येल 7:7) यह डरावना जन्तु रोम का साम्राज्य था। इसने एक-एक करके यूनानी साम्राज्य के चारों हिस्सों को कब्ज़े में ले लिया। करीब सा.यु.पू. 30 तक रोम बाइबल में बताई गई विश्‍वशक्‍ति बन गया जिसका कई देशों पर अधिकार था और जिसकी एक बड़ी ज़बरदस्त सेना थी। अपनी इस फौज के बलबूते पर इस जन्तु ने अपने रास्ते में आनेवाले देशों को खा डाला और चूर-चूर कर दिया यानी उन्हें जीतता चला गया। इस तरह यह साम्राज्य ब्रिटेन से लेकर फारस की खाड़ी तक फैल गया, जिसमें यूरोप के ज़्यादातर भाग, भूमध्य सागर के चारों तरफ के देश और बाबुल और उसके आस-पास के देश भी शामिल थे।

16. चौथे जन्तु के बारे में स्वर्गदूत क्या बताता है?

16 इस “अति भयंकर” जन्तु का भेद अच्छी तरह से जानने के लिए दानिय्येल ने उस स्वर्गदूत की बात बड़े ध्यान से सुनी, जो उसे सब कुछ समझा रहा था। उस स्वर्गदूत ने कहा: “[इसके] उन दस सींगों का अर्थ यह है, कि उस राज्य में से दस राजा उठेंगे, और उनके बाद उन पहिलों से भिन्‍न एक और राजा उठेगा, जो तीन राजाओं को गिरा देगा।” (दानिय्येल 7:19, 20, 24) ये ‘दस सींग’ या ‘दस राजा’ क्या हैं?

17. चौथे जन्तु के ‘दस सींगों’ का क्या मतलब है?

17 रोम का शक्‍तिशाली साम्राज्य धीरे-धीरे बिखरकर कई राज्यों में बँट गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि रोम साम्राज्य की धन-दौलत और समृद्धि बढ़ने की वज़ह से इसमें राज करनेवाले ऐयाशी करने लगे और धीरे-धीरे इसकी सैनिक शक्‍ति कमज़ोर पड़ती चली गई। नतीजा यह हुआ कि इस विश्‍वशक्‍ति का साम्राज्य टूटने लगा और इसमें से कई राज्य पैदा हुए। बाइबल में कई बार, गिनती दस को किसी बात की संपूर्णता दिखाने के लिए इस्तेमाल किया गया है। तो इस चौथे जन्तु के ‘दस सींगों’ यानी ‘दस राजाओं’ का मतलब है, वे सारे के सारे राज्य जो रोम साम्राज्य के टूटने से पैदा हुए।—व्यवस्थाविवरण 4:13; लूका 15:8; 19:13, 16, 17 से तुलना कीजिए।

18. रोम के साम्राज्य के आखिरी सम्राट के राजगद्दी से हटने के बाद भी रोम ने कैसे सदियों तक यूरोपीय देशों पर अपना दबदबा बनाए रखा?

18 सा.यु. 476 में रोम साम्राज्य के आखिरी सम्राट को रोम की राजगद्दी से हटा दिए जाने के बाद भी रोम, विश्‍वशक्‍ति बना रहा। वह कैसे? अब यह विश्‍वशक्‍ति रोम साम्राज्य नहीं था बल्कि इसने रोमन कैथोलिक धर्म संगठन का रूप ले लिया था। रोमन कैथोलिक धर्म संगठन के ‘पोप’ ने सदियों तक सारे यूरोपीय देशों पर अपना दबदबा बनाए रखा। पोप इन सभी यूरोपीय देशों के राजनैतिक और धार्मिक मामलों पर अधिकार रखते थे। वे यह अधिकार कैसे चलाते थे? सामंत-शाही के ज़रिए। यूरोप की सामंत-शाही में लॉर्ड या सामंत लोगों पर अधिपति होते थे, ये लॉर्ड या सामंत राजा को अपना अधिपति मानते थे और सारे राजा पोप को अपना अधिपति मानकर उसके अधीन रहते थे। इस तरह यूरोप में ऐसा साम्राज्य स्थापित हुआ जिसे “पवित्र रोमी साम्राज्य” कहा जाता है। रोम के पोप के अधीन यह साम्राज्य दुनिया पर अपना हुक्म चलाने लगा (सन्‌ 800 से लेकर करीब सन्‌ 1800 तक)। इस अवधि में वह युग भी शामिल है जिसे अंधकार युग (करीब सन्‌ 500 से लेकर सन्‌ 1000 तक) के नाम से जाना जाता है।

19. एक इतिहासकार के शब्दों से रोम और उसके पिछले साम्राज्यों के बीच की भिन्‍नता का पता कैसे चलता है?

19 चौथा जन्तु “पहिले जन्तुओं से भिन्‍न” था। रोम विश्‍वशक्‍ति भी पिछले “सब राज्यों से भिन्‍न” थी। (दानिय्येल 7:7, 19, 23) इतिहासकार एच. जी. वेल्स के शब्दों से इस भिन्‍नता का पता चलता है: “ये नई रोमी शक्‍ति . . . कई मामलों में उन बड़े साम्राज्यों से अलग थी जिनका उससे पहले इस पृथ्वी पर राज था। . . . पिछले साम्राज्यों की प्रजा के ज़्यादातर लोग हाम या शेम के वंशज थे। लेकिन रोम साम्राज्य की प्रजा के ज़्यादातर लोग येपेत के वंशज थे। . . . इसका साम्राज्य दुनिया के सभी यूनानी लोगों पर था। और . . . इतिहास में किसी भी साम्राज्य का रूप ऐसा नहीं था। . . . रोम साम्राज्य को योजनाबद्ध तरीके से नहीं बढ़ाया गया था, बल्कि यह साम्राज्य अपने आप में एक तरह का बदलाव या विकास था, इससे पहले किसी भी साम्राज्य में ऐसी शासन-व्यवस्था नहीं थी। रोम के लोगों ने बिलकुल नयी शासन-पद्धति की शुरूआत की थी।” लेकिन इस साम्राज्य यानी चौथे जन्तु में आगे और भी बदलाव होना था।

एक छोटा सींग निकलकर बड़ा हो जाता है

20. चौथे जन्तु के सिर से निकलनेवाले एक छोटे सींग के बारे में स्वर्गदूत क्या समझाता है?

20 दानिय्येल ने इस बदलाव के बारे में कहा, “मैं उन सींगों को ध्यान से देख रहा था तो क्या देखा कि उनके बीच एक और छोटा सा सींग निकला, और उसके बल से उन पहिले सींगों में से तीन उखाड़े गए।” (दानिय्येल 7:8) इसके बारे में स्वर्गदूत ने दानिय्येल को समझाया: “उनके बाद [यानी दस राजाओं के बाद] उन पहिलों से भिन्‍न एक और राजा उठेगा, जो तीन राजाओं को गिरा देगा।” (दानिय्येल 7:24) यह राजा कौन था, यह कब उठा, और उसने किन तीन राजाओं को गिराया?

21. कैसे कहा जा सकता है कि ब्रिटेन ही चौथे जन्तु के सींगों के बीच से निकलनेवाला छोटा सींग था और यह कैसे दूसरे सींगों से छोटा था?

21 इन सवालों का जवाब इन घटनाओं से मिलता है। सा.यु.पू. 55 में रोम का तानाशाह सेनापति, जूलियस सीज़र ब्रिटेन पर हमला करके उसमें घुस गया। लेकिन तब वह वहाँ पूरी तरह से एक रोमी उपनिवेश बस्ती नहीं बसा पाया। सा.यु. 43 में सम्राट क्लौडियस ने दक्षिण ब्रिटेन पर जीत हासिल कर ली। फिर सा.यु. 122 में सम्राट हेड्रियन ने ब्रिटेन में रोमी साम्राज्य की उत्तरी सीमा को बढ़ाया। इस उत्तरी सीमा पर हेड्रियन ने पूर्व में टाइन नदी से लेकर पश्‍चिम में सॉलवे नदमुख तक एक लंबी दीवार बनवाई। ब्रिटेन, रोम साम्राज्य का एक हिस्सा बन गया था और पाँचवी सदी तक रोम ने ब्रिटेन पर अपना अधिकार बनाए रखा। इसलिए ब्रिटेन ही छोटे सींग की तरह रोमी साम्राज्य से निकला था। यह कैसे दूसरे सींगों से छोटा था? एक इतिहासकार की बात पर ध्यान दीजिए: “सोलहवीं सदी में ब्रिटेन के पास कुछ खास शक्‍ति नहीं थी। नेदरलैंड के पास इसके मुकाबले में ज़्यादा धन था। इसकी आबादी फ्राँस से भी कम थी। इसकी सेनाएँ (नौसेना को मिलाकर) स्पेन से कमज़ोर थीं।” वाकई उस वक्‍त ब्रिटेन हर तरह से महत्वहीन और छोटा था। मगर बहुत जल्द इसमें एक बड़ा बदलाव आनेवाला था।

22. (क) इस ‘छोटे’ सींग ने चौथे जन्तु के किन तीन सींगों को गिराया? (ख) और इसके साथ ही ब्रिटेन क्या बन गया?

22 सन्‌ 1588 में, स्पेन के राजा फिलिप्प II ने ब्रिटेन के खिलाफ लड़ाकू समुद्री जहाज़ों का एक लशकर भेजा। इस लशकर में 130 जहाज़ थे और 24,000 नौसैनिक। यह नौसेना जब इंगलिश चैनल पहुँची तो ब्रिटेन की नौसेना ने उसे बुरी तरह हरा दिया, साथ ही इस लशकर के कई जहाज़ अटलांटिक महासागर में आनेवाले तेज़ तूफानों का भी शिकार हो गए। यह वाकई एक ऐतिहासिक घटना साबित हुई। एक इतिहासकार बताते हैं कि “इस लड़ाई के साथ ही अब, समुद्रों का बेताज बादशाह स्पेन नहीं रहा बल्कि ब्रिटेन बन गया।” 17वीं सदी तक नेदरलैंड ने पूरी दुनिया में सबसे बड़ा समुद्र-व्यापार कायम कर लिया था। मगर ब्रिटेन ने समुद्र पार, नेदरलैंड से ज़्यादा उपनिवेश बस्तियाँ बनाकर, समुद्र-व्यापार में उसे पछाड़ दिया। 18वीं सदी में उत्तरी अमरीका और भारत में ब्रिटेन और फ्राँस के बीच जमकर युद्ध हुआ जिसकी वज़ह से सन्‌ 1763 में इन दोनों देशों ने पैरिस में एक समझौता किया। एक लेखक, विलियम बी. विलकोक्स कहते हैं “इस समझौते के साथ ही, पूरी दुनिया पर यह ज़ाहिर हो गया कि अब से ब्रिटेन ही सारे यूरोपीय उपनिवेश देशों में सबसे शक्‍तिशाली है।” आखिर में सन्‌ 1815 में फ्राँस के राजा नेपोलियन को बुरी तरह हराने के बाद यह साबित हो गया कि ब्रिटेन ही सबसे बड़ी हुकूमत है। इसलिए जिन तीन सींगों या ‘तीन राजाओं’ को ब्रिटेन ने ‘गिराया’ वे थे, स्पेन, नेदरलैंड्‌स और फ्राँस। (दानिय्येल 7:24) ब्रिटेन एक ऐसी महाशक्‍ति बन गया जिसके अधीन ना सिर्फ सबसे ज़्यादा उपनिवेश बस्तियाँ थीं बल्कि यह व्यापार के एक बड़े साम्राज्य का मालिक भी था। जी हाँ, एक “छोटा” सींग वाकई बढ़कर एक विश्‍वशक्‍ति बन गया!

23. चौथा जन्तु या चौथा राज्य कैसे ‘समस्त पृथ्वी को खा गया’?

23 स्वर्गदूत ने दानिय्येल को यह बताया था कि वह चौथा जन्तु या चौथा राज्य “समस्त पृथ्वी को खा जाएगा।” (दानिय्येल 7:23, नयी हिन्दी बाइबल) यह बात सही साबित हुई। चौथा जन्तु या रोम से निकलनेवाला ब्रिटेन, एक बहुत बड़ा साम्राज्य बना, और यह ‘समस्त पृथ्वी को खा गया’ यानी इसकी हुकूमत लगभग सारी पृथ्वी पर फैल गई। एक वक्‍त तो ऐसा भी था जब ब्रिटेन इस पृथ्वी की एक चौथाई भूमि का मालिक था और दुनिया के हर चौथे आदमी पर उसका राज था।

24. ब्रिटेन साम्राज्य के भिन्‍न होने के बारे में एक इतिहासकार क्या कहते हैं?

24 जिस तरह रोम का साम्राज्य पिछली विश्‍वशक्‍तियों से अलग था उसी तरह ‘छोटा’ सींग ब्रिटेन बाकी सींगों से अलग था। यह ‘पहिले के राजाओं से भिन्‍न’ था। (दानिय्येल 7:24) ब्रिटेन के साम्राज्य के बारे में इतिहासकार एच. जी. वेल्स कहते हैं: “ब्रिटेन साम्राज्य से पहले इसकी तरह कोई साम्राज्य नहीं हुआ। इसमें सबसे पहला स्थान ब्रिटेन के संयुक्‍त राज्यों (इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, आयरलैंड, वेल्स) का था। . . . इसकी एक ऐसी अनोखी राजनैतिक व्यवस्था थी जिसमें गणतंत्र के साथ ही एक राजा भी था। . . . कोई भी . . . पूरी तरह ब्रिटेन साम्राज्य की सरहदों को नहीं समझ सका। इससे पहले जितने भी साम्राज्य हुए उनकी तुलना में जिस तरह इसका विकास हुआ और जिस तरह से यह बढ़ा और फैला वैसा पहले किसी भी साम्राज्य ने नहीं किया था।”

25. (क) छोटे सींग ने क्या रूप लिया और कैसे? (ख) छोटे सींग की ‘मनुष्य की सी आंखों’ और ‘बड़ा बोल बोलनेवाले मुंह’ का क्या मतलब है?

25 लेकिन वह ‘छोटा’ सींग सिर्फ ब्रिटेन साम्राज्य ही नहीं था। इसमें अमरीका भी शामिल है। वह कैसे? एक वक्‍त पर अमरीका, ब्रिटेन साम्राज्य का ही हिस्सा था। सन्‌ 1783 में ब्रिटेन ने अपने 13 अमरीकी उपनिवेशों की आज़ादी को स्वीकार कर लिया था। बाद में अमरीका, ब्रिटेन का सबसे करीबी मित्र राष्ट्र बन गया। दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद संयुक्‍त राज्य अमरीका, दुनिया का सबसे शक्‍तिशाली राष्ट्र बना। आज तक इसके ब्रिटेन के साथ गहरे संबंध हैं। इस तरह छोटे सींग ने ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति जोड़ी का रूप ले लिया। इस ‘सींग में मनुष्यों की सी आंखें’ थीं। इसका मतलब है, यह विश्‍वशक्‍ति की जोड़ी दुनिया पर निगरानी रखती है और बहुत होशियार और तेज़ है! इस सींग के ‘बड़े बोल बोलनेवाले मुंह’ का मतलब है कि यह ‘झूठा भविष्यद्वक्‍ता’ है जो पूरी दुनिया पर अपना कानून झाड़ता है और दूसरे देशों पर अपनी नीतियाँ थोपता है।—दानिय्येल 7:8, 11, 20; प्रकाशितवाक्य 16:13; 19:20.

छोटा सींग परमेश्‍वर और उसके पवित्र लोगों के विरुद्ध

26. यह “सींग” यहोवा और उसके लोगों के विरुद्ध जो करता है, इस बारे में स्वर्गदूत ने क्या बताया?

26 दानिय्येल अपने दर्शन के बारे में आगे बताता है: “मैं ने देखा था कि वह सींग पवित्र लोगों के संग लड़ाई करके उन पर उस समय तक प्रबल भी हो गया।” (दानिय्येल 7:21) इस “सींग” के बारे में परमेश्‍वर का स्वर्गदूत कहता है: “वह परमप्रधान के विरुद्ध बातें कहेगा, और परमप्रधान के पवित्र लोगों को पीस डालेगा और समयों और व्यवस्था के बदल देने की आशा करेगा, वरन साढ़े तीन काल तक वे सब उसके वश में कर दिए जाएंगे।” (दानिय्येल 7:25) यह भविष्यवाणी कब और कैसे पूरी होती है?

27. (क) ‘पवित्र लोग’ कौन हैं जिन्हें पीस डालने के लिए “छोटा” सींग उन पर अत्याचार करता है? (ख) किस तरह छोटे सींग ने ‘समयों और व्यवस्था को बदलने’ की कोशिश की?

27 ‘छोटा सींग’ यानी ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति जिन “पवित्र लोगों” को पीस डालने के लिए उन पर ज़ुल्म करती है वे यहोवा की पवित्र शक्‍ति से अभिषिक्‍त लोग हैं। वे यीशु के चेले हैं जो इस पृथ्वी पर हैं। (रोमियों 1:7; 1 पतरस 2:9) सन्‌ 1914 से कई सालों पहले ही इन अभिषिक्‍त लोगों ने दुनिया को यह चेतावनी दी थी कि सन्‌ 1914 में “अन्य जातियों का समय” पूरा हो जाएगा। (लूका 21:24) इस चेतावनी के मुताबिक सन्‌ 1914 में विश्‍वयुद्ध शुरू हो गया, लेकिन फिर भी इस ‘छोटे’ सींग ने सबकुछ नज़रअंदाज़ करते हुए परमप्रधान के अभिषिक्‍त “पवित्र लोगों” पर ज़ुल्म किए। यहोवा के नाम की गवाही देनेवाले ये लोग पूरी दुनिया में उसके राज्य की खुशखबरी सुना रहे थे, क्योंकि यह यहोवा की माँग थी। (मत्ती 24:14) लेकिन ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति उनके इस प्रचार काम के खिलाफ थी और उसने उन्हें रोकने की कोशिश की। वह नहीं चाहती थी कि ये लोग परमेश्‍वर की इस माँग (या, “व्यवस्था”) को पूरा करें। इस तरह इस ‘छोटे’ सींग ने ‘समयों और व्यवस्था को बदल देने की’ कोशिश की।

28. “साढ़े तीन काल” कितने लंबे होते?

28 यहोवा के स्वर्गदूत ने कहा था कि “साढ़े तीन काल तक वे सब उसके वश में कर दिए जाएंगे।” ये “साढ़े तीन काल” कितने लंबे होते? जैसा हमने छठे अध्याय में देखा था, नबूकदनेस्सर के मानसिक रोग की अवधि “सात काल” थी, जो कि सात साल के बराबर था। इसलिए ये “साढ़े तीन काल” साढ़े तीन सालों के बराबर हैं। * (दानिय्येल 4:16, 25) दरअसल, हिन्दी बाइबल ईज़ी-टू-रीड वर्शन कहती है: “परमेश्‍वर के पवित्र लोग साढ़े तीन साल तक उस राजा की शक्‍ति के अधीन रहेंगे।” न्यू हिन्दी ट्रांस्लेशन (NHT) के फुटनोट में समझाया गया है: “साढ़े तीन वर्ष।” साढ़े तीन साल की इसी अवधि के बारे में प्रकाशितवाक्य 11:2-7 में बताया गया है जहाँ लिखा है कि परमेश्‍वर के गवाह टाट ओढ़े हुए 42 महीनों तक, यानी 1,260 दिनों तक प्रचार करेंगे, जिनके बीतने के बाद उन्हें मार डाला जाएगा। ये साढ़े तीन साल कब शुरू हुए और कब खत्म?

29. साढ़े तीन साल कैसे और कब शुरू हुए?

29 जवाब पाने के लिए आइए कुछ घटनाओं पर ध्यान दें। अभिषिक्‍त मसीहियों के लिए पहले विश्‍वयुद्ध का पूरा समय ही (सन्‌ 1914-1918) बड़ी परीक्षा का समय साबित हुआ। सन्‌ 1914 के आखिर तक ये मसीही जान चुके थे कि जल्द ही उन पर अत्याचार होने शुरू हो जाएँगे। दरअसल वर्ष 1915 के लिए जो बाइबल की आयत उन्होंने चुनी थी वह मत्ती 20:22 थी। इसमें यीशु का अपने चेलों से पूछा गया यह सवाल है: “जो [यातनाओं का] कटोरा मैं पीने पर हूं, क्या तुम पी सकते हो?” दिसंबर 1914 से उन साढ़े तीन सालों या 42 महीनों की शुरूआत हुई जब गवाह “टाट ओढ़े हुए” भविष्यवाणी करने लगे यानी परमेश्‍वर का संदेश सुनानेवाला छोटा-सा झुंड, परीक्षा और अत्याचारों के दौरान प्रचार करने लगा।

30. पहले विश्‍वयुद्ध के दौरान ‘छोटे सींग,’ ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति ने अभिषिक्‍त मसीहियों को पीस डालने के लिए उन पर क्या-क्या अत्याचार किए?

30 जैसे-जैसे विश्‍वयुद्ध तेज़ी पकड़ता गया, अभिषिक्‍त मसीहियों के खिलाफ विरोध और अत्याचार बढ़ने लगे। उनमें से कुछ को जेलों में डाल दिया गया। ब्रिटेन में फ्रैंक प्लैट और कनाडा में रॉबर्ट क्लैग जैसे यहोवा के सेवकों के साथ जेल में अधिकारियों ने वहशियों की तरह सलूक किया और उन्हें बेरहमी से तड़पाया। फरवरी 12, 1918 को कनाडा ने, जो ब्रिटेन साम्राज्य के अधीन था, स्टडीज़ इन द स्क्रिप्चर्स के सातवें खंड द फिनिश्‍ड मिस्ट्री और बाइबल स्टूडंट मंथली नामक चार पेजवाली मासिक पत्रिका को गैर-कानूनी करार दिया। अगले महीने अमरीका के न्याय मंत्रालय ने भी इस सातवें खंड को गैर-कानूनी घोषित कर दिया। इसका नतीजा क्या हुआ? यहोवा के सेवकों के घरों की तलाशी ली गई, उनकी किताबें ज़ब्त कर ली गईं और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया!

31. कब और कैसे “साढ़े तीन काल” की अवधि खत्म हुई?

31 जून 21, 1918 को ये अत्याचार अपने अंजाम पर पहुँच गए। उस दिन वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी के अध्यक्ष जे. एफ. रदरफर्ड के साथ-साथ कई ज़िम्मेदार सदस्यों पर झूठे इलज़ाम लगाकर उन्हें लंबी सज़ा के लिए जेल भेज दिया गया। ऐसा करने से ‘छोटे’ सींग ने प्रचार का काम करने की संस्था की व्यवस्था को नष्ट कर दिया। और इस तरह उसने “समयों और व्यवस्था” को बदलने की कोशिश की। (प्रकाशितवाक्य 11:7) इसलिए कहा जा सकता है कि जून 1918 में “साढ़े तीन काल” यानी साढ़े तीन सालों की अवधि खत्म हो गई।

32. हम कैसे कह सकते हैं कि ‘छोटा सींग’ “पवित्र लोगों” को खत्म नहीं कर सका?

32 मगर यह छोटा सींग अपने अत्याचारों से “पवित्र लोगों” को खत्म नहीं कर सका। ठीक जैसे प्रकाशितवाक्य की किताब में भविष्यवाणी की गई थी, कुछ वक्‍त बेजान पड़े रहने के बाद अभिषिक्‍त मसीही एक बार फिर उठ खड़े हुए और प्रचार के काम में जुट गए। (प्रकाशितवाक्य 11:11-13) यह कैसे हुआ? मार्च 26, 1919 को वॉच टावर सोसाइटी के अध्यक्ष और उनके साथियों को जेल से रिहा कर दिया गया, उन पर लगाए गए झूठे इलज़ामों से उन्हें बा-इज्ज़त बरी कर दिया गया। फौरन, पृथ्वी पर बचे अभिषिक्‍त मसीहियों ने प्रचार के काम को दोबारा ज़ोर-शोर से शुरू करने का इंतज़ाम किया। लेकिन उस ‘छोटे’ सींग का क्या होनेवाला था?

परमेश्‍वर की अदालत

33. (क) अति प्राचीन कौन है? (ख) परमेश्‍वर की अदालत में जो “पुस्तकें खोली गईं” वे क्या हैं?

33 चार जन्तुओं का दर्शन देखने के बाद दानिय्येल स्वर्ग का दर्शन देखता है। वह देखता है कि एक अति प्राचीन अपने महिमावान और तेजोमय सिंहासन पर न्याय करने के लिए विराजमान होता है। यह अति प्राचीन यहोवा परमेश्‍वर है। (भजन 90:2) दानिय्येल देखता है कि परमेश्‍वर की इस अदालत में ‘पुस्तकें खोली जा रही हैं।’ (दानिय्येल 7:9, 10) ये पुस्तकें क्या हैं? ये इंसानों के पूरे इतिहास की यहोवा की अपनी जानकारी है। क्योंकि यहोवा अनादिकाल से है इसलिए उसके सामने इंसानों का पूरा इतिहास एक खुली किताब की तरह है। वह अच्छी तरह से यह जानता है कि सदियों के दौरान उन चार जन्तुओं यानी विश्‍व साम्राज्यों ने क्या-क्या किया था और अपनी इसी निजी जानकारी या इतिहास के आधार पर वह अपना फैसला सुनाता है।

34, 35. ‘छोटे’ सींग, बाकी सींगों और पिछले तीन जन्तुओं का क्या अंजाम होगा?

34 दानिय्येल, देखता है: “उस समय उस सींग का बड़ा बोल सुनकर मैं देखता रहा, और देखते देखते अन्त में देखा कि वह [चौथा] जन्तु घात किया गया, और उसका शरीर धधकती हुई आग से भस्म किया गया। और रहे हुए जन्तुओं का अधिकार ले लिया गया, परन्तु उनका प्राण कुछ समय के लिये बचाया गया।” (दानिय्येल 7:11, 12) इसके बारे में स्वर्गदूत, दानिय्येल को समझाता है: “तब न्यायी बैठेंगे, और उसकी [छोटे सींग की] प्रभुता छीनकर मिटाई और नाश की जाएगी; यहां तक कि उसका अन्त ही हो जाएगा।”—दानिय्येल 7:26.

35 इस जहान के महान न्यायाधीश, यहोवा परमेश्‍वर का फैसला यही है कि यह सींग जिसने उसके विरुद्ध बातें करके उसकी निंदा की है और जिसने उसके “पवित्र लोगों” पर अत्याचार किया है, उसकी प्रभुता छीन ली जाए। पहली सदी के मसीहियों पर ज़ुल्म करनेवाले चौथे जन्तु यानी रोमी साम्राज्य का जिस तरह नाश हुआ था, वही हाल इस सींग का भी होगा। साथ ही, उन बाकी सींगों या ‘राज्यों’ की भी हुकूमत ज़्यादा दिन तक नहीं चलेगी जो रोमी साम्राज्य के टूटने पर निकल आये। लेकिन पिछले तीन जन्तुओं का क्या होना था? भविष्यवाणी में कहा गया है, “उनका प्राण कुछ समय के लिये बचाया गया।” इन साम्राज्यों के बचे हुए राष्ट्र हमारे दिनों तक मौजूद हैं। प्राचीन बाबुल, आज का इराक है। फारस, आज का ईरान और यूनान आज का ग्रीस देश है। ये सभी, प्राचीन विश्‍वशक्‍तियों के बचे हुए राष्ट्र, आज संयुक्‍त राष्ट्र संघ के सदस्य हैं। मगर ये सभी राष्ट्र आखिरी विश्‍वशक्‍ति के साथ नाश किए जाएँगे। यह “सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के . . . बड़े दिन की लड़ाई” में होगा जब इंसानों की हर सरकार का नामो-निशान मिटा दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य 16:14, 16) लेकिन अगर सारी सरकारें नाश हो जाएँगी तो दुनिया पर कौन राज करेगा?

अनंतकाल तक रहनेवाला राज्य आनेवाला है!

36, 37. (क) “मनुष्य के सन्तान सा” कौन है और वह परमेश्‍वर के पास कब और क्यों आता है? (ख) सन्‌ 1914 में क्या शुरू हुआ?

36 दानिय्येल आगे बताता है, “मैं ने रात में स्वप्न में देखा, और देखो, मनुष्य के सन्तान [“मनुष्य के पुत्र,” NHT] सा कोई आकाश के बादलों समेत आ रहा था, और वह उस अति प्राचीन के पास पहुंचा, और उसको वे उसके समीप लाए।” (दानिय्येल 7:13) यह मनुष्य की सन्तान या पुत्र कौन है? जब यीशु मसीह इस ज़मीन पर था तब उसने खुद को “मनुष्य का पुत्र” कहा, जिससे यह पता चलता है कि वह मानवजाति का भाई-बँधु है। (मत्ती 16:13; 25:31) यीशु ने यहूदी महासभा को अपने बारे में बताया: “अब से तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्‍तिमान की दहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों पर आते देखोगे।” (मत्ती 26:64) तो फिर मनुष्य की सन्तान सा जो बादलों समेत यानी मनुष्यों की नज़रों से ओझल, यहोवा परमेश्‍वर के पास आता है, वह यीशु मसीह है। वही यीशु मसीह जिसे परमेश्‍वर ने मुर्दों में से जिलाकर स्वर्ग में ऊँचा स्थान दिया है। यह घटना कब घटी?

37 यहोवा परमेश्‍वर ने यीशु मसीह से एक राज्य की प्रतिज्ञा की थी, ठीक जैसे उसने राजा दाऊद से प्रतिज्ञा की थी। (2 शमूएल 7:11-16; लूका 22:28-30) यीशु, राजा दाऊद का वारिस था। इसलिए सन्‌ 1914 में गैर-यहूदियों या “अन्यजातियों का समय” खत्म होने पर राजा दाऊद का वारिस होने के नाते वह राज करने का अपना हक पाने के लिए यहोवा परमेश्‍वर के पास आता है। दानिय्येल इसीलिए आगे कहता है: “तब उसको ऐसी प्रभुता, महिमा और राज्य दिया गया, कि देश-देश और जाति-जाति के लोग और भिन्‍न-भिन्‍न भाषा बोलनेवाले सब उसके अधीन हों; उसकी प्रभुता सदा तक अटल, और उसका राज्य अविनाशी ठहरा।” (दानिय्येल 7:14) इस तरह सन्‌ 1914 में मसीह का राज स्वर्ग में शुरू हुआ। मगर और भी लोग थे जिन्हें राज करने का अधिकार दिया गया। ये लोग कौन हैं?

38, 39. दुनिया पर सदा सदा राज करने का अधिकार और किसे दिया जाता?

38 स्वर्गदूत बताता है: “परमप्रधान के पवित्र लोग राज्य को पाएंगे।” (दानिय्येल 7:18, 22, 27) पवित्र लोगों में सबसे मुख्य यीशु मसीह है। (प्रेरितों 3:14; 4:27, 30) बाकी “पवित्र लोग” जो मसीह के राज में संगी वारिस होंगे वे 1,44,000 मसीही हैं जिन्हें परमेश्‍वर ने अपनी पवित्र शक्‍ति से अभिषिक्‍त किया है। (रोमियों 1:7; 8:17; 2 थिस्सलुनीकियों 1:5; 1 पतरस 2:9) जब इनकी मौत होती है तब उन्हें स्वर्ग के लिए अविनाशी दशा में जिलाया जाता है जहाँ वे मसीह के साथ स्वर्गीय सिय्योन से राज करते हैं। (प्रकाशितवाक्य 2:10; 14:1; 20:6) यीशु मसीह और इन अभिषिक्‍त मसीहियों का राज पूरी दुनिया पर होगा।

39 इनके राज के बारे में परमेश्‍वर का स्वर्गदूत यह कहता है: ‘फिर परमेश्‍वर के पवित्र लोग उस राज्य का शासन चलायेंगे। धरती के सभी राज्यों के सभी लोगों पर उनका शासन होगा। यह राज्य सदा सदा अटल रहेगा, और अन्य सभी राज्यों के लोग उन्हें आदर देंगे और उनकी आज्ञा मानेंगे।’ (दानिय्येल 7:27, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यह राज्य इन लोगों पर आशीषें ही आशीषें बरसाएगा!

40. दानिय्येल के दर्शन की भविष्यवाणी पर ध्यान देने से हमें कैसे लाभ होगा?

40 जब दानिय्येल ने यह दर्शन देखा तब वह उसे पूरी तरह समझ नहीं सका क्योंकि इस दर्शन की भविष्यवाणी की पूर्ति उसके सामने नहीं हुई। इसलिए उसने कहा: “इस बात का वर्णन मैं अब कर चुका, परन्तु मुझ दानिय्येल के मन में बड़ी घबराहट बनी रही, और मैं भयभीत हो गया; और इस बात को मैं अपने मन में रखे रहा।” (दानिय्येल 7:28) लेकिन आज हम दानिय्येल के दर्शन की भविष्यवाणी की पूर्ति के बारे में जानते हैं इसलिए हम इसे अच्छी तरह समझ सकते हैं। इस भविष्यवाणी पर ध्यान देने से परमेश्‍वर पर हमारा भरोसा बढ़ेगा और साथ ही हमारा विश्‍वास मज़बूत होगा कि दुनिया पर यहोवा का ठहराया हुआ राजा, यीशु मसीह ही राज करेगा।

[फुटनोट]

^ पैरा. 4 दानिय्येल 7:1-14 में दिए गए दर्शन का अर्थ दानिय्येल 7:15-28 में पाया जाता है। इसलिए हम इस अध्याय में इन दोनों हिस्सों पर साथ-साथ चर्चा करेंगे ताकि यह दर्शन हमें अच्छी तरह समझ में आ जाए।

^ पैरा. 7 इस किताब का 4 अध्याय देखिए।

^ पैरा. 28 इस किताब का 6 अध्याय देखिए।

आपने क्या समझा?

• ‘समुद्र से निकलनेवाले चार बड़े जन्तुओं’ का क्या अर्थ है?

• ‘छोटे’ सींग का क्या अर्थ है?

• पहले विश्‍वयुद्ध के दौरान ‘छोटे सींग’ ने किस तरह “पवित्र लोगों” को पीस डालने के लिए उन पर अत्याचार किए?

• ‘छोटे’ सींग का, बाकी सींगों और जन्तुओं का क्या अंजाम होगा?

• दानिय्येल के ‘चार बड़े जन्तुओं’ के दर्शन पर ध्यान देने से आपको क्या लाभ हुआ?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 149-152 पर बक्स/तसवीर]

एक भला और उदार सम्राट

सा.यु.पू. पाँचवी सदी के एक यूनानी लेखक ने उसे उदार और आदर्श सम्राट बताया। बाइबल में उसे परमेश्‍वर का “अभिषिक्‍त” और “पूर्व” से आनेवाला “उकाब” कहा गया है। (यशायाह 45:1; 46:11) यह सम्राट था, फारस का राजा कुस्रू (साइरस) महान।

कुस्रू सा.यु.पू. 560/559 में अपने पिता कैमबीसिस I की जगह फारस के अनशान, प्रांत का राजा बना। उस वक्‍त अनशान प्रांत, मादी राज्य की हुकूमत के अधीन था। मादी राज्य का राजा, अस्तीजिस था। लेकिन कुस्रू ने अस्तीजिस के खिलाफ बगावत कर दी और उसे हरा दिया क्योंकि अस्तीजिस की सेना ने अस्तीजिस के साथ विश्‍वासघात करके कुस्रू का साथ दिया। तब से मादी लोग कुस्रू के वफादार बन गए। उसके बाद मादी और फारसी लोग एक हो गए और उनकी सेनाओं ने कुस्रू के लिए साथ मिलकर युद्ध किए। इस तरह मादी-फारस का साम्राज्य शुरू हुआ जिसने अपनी सीमा ऐजियन समुद्र से लेकर सिन्धु नदी तक बढ़ा ली।—नक्शा देखिए।

मादी और फारस की फौजों को लेकर कुस्रू सबसे पहले मादी राज्य के एक अशांत इलाके पर काबू करने के लिए बढ़ा। यह इलाका मादी राज्य के पश्‍चिम में था जहाँ लीडिया का राजा क्रोएसस लगातार घुसपैठ करके अपनी सीमाएँ बढ़ा रहा था। कुस्रू ने लीडिया साम्राज्य के पूर्व की सीमा में यानी एशिया माइनर में जाकर क्रोएसस को हरा दिया और उसकी राजधानी सारदीस पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद कुस्रू ने आयोनिया प्रांत के सारे नगरों पर कब्ज़ा कर लिया और इस तरह सारा एशिया माइनर मादी-फारस साम्राज्य का हिस्सा बन गया। अब वह बाबुल साम्राज्य और उसके राजा नबोनाइडस के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया था।

इसके बाद कुस्रू ने विश्‍वशक्‍ति बाबुल से लोहा लेने की तैयारी की। और इसी के साथ बाइबल में बताई गई एक अद्‌भुत भविष्यवाणी पूरी होनेवाली थी। यशायाह भविष्यवक्‍ता ने यह भविष्यवाणी करीब दो सौ साल पहले ही कर दी थी। इसके ज़रिए यहोवा परमेश्‍वर ने यह बता दिया था कि कुस्रू ही वह राजा होगा जो विश्‍वशक्‍ति बाबुल को गिराएगा और यहूदियों को उसकी गुलामी से आज़ाद करवाएगा। क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर, राजा कुस्रू के ज़रिए यह काम करवाता है इसलिए यहोवा उसे अपना “अभिषिक्‍त” कहता है।—यशायाह 44:26-28.

जब कुस्रू सा.यु.पू. 539 में बाबुल से युद्ध करने आया तब उसे पहाड़ जैसी बाधा का सामना करना पड़ा। बाबुल को जीतना आसान नहीं था। बाबुल की बड़ी-बड़ी मज़बूत शहरपनाहें थीं और बाबुल इन दीवारों के साथ-साथ चारों तरफ से एक बड़ी गहरी खाई से घिरा हुआ था जिसमें महानद फरात का गहरा पानी था। और जहाँ से फरात नदी बाबुल के अंदर से होकर बहती थी, वहाँ उसके किनारे-किनारे की मज़बूत ऊँची दीवारों में पीतल के बड़े-बड़े बेड़े लगे हुए थे। यह सब देखकर तो लगता था कि बाबुल में घुसना नामुमकिन है। तो फिर कुस्रू, बाबुल को कैसे जीत पाता?

इससे करीब सौ साल पहले एक और भविष्यवाणी में यहोवा ने कहा था: “उसके [बाबुल के] जलाशयों पर सूखा पड़ेगा, और वे सूख जाएंगे!” (यिर्मयाह 50:38) यह भविष्यवाणी एकदम सही साबित हुई क्योंकि कुस्रू ने बाबुल के उत्तर में कई किलोमीटर दूर फरात नदी के पानी का कटाव करके उसके रुख को मोड़ दिया। इससे बाबुल की शहरपनाह के चारों तरफ बनी गहरी खाई का पानी सूखकर बहुत कम हो गया और पूरी की पूरी फौज बड़ी आसानी से उस खाई में से होकर पीतल के बड़े-बड़े फाटकों तक पहुँच गयी। वहाँ पहुँचकर उन्होंने फाटकों को खुला पाया जिससे उन्हें बाबुल के अंदर घुसने में ज़रा भी परेशानी नहीं हुई। बस एक ही रात में “पूर्व” के राजा कुस्रू ने “उकाब” की तरह झपटकर बाबुल पर कब्ज़ा कर लिया!

बाबुल के बँधुए यहूदियों के लिए कुस्रू की जीत आज़ादी का पैगाम थी। अब वे 70 साल के बाद बाबुल की गुलामी से आज़ादी पा सकते थे और अपने उजड़े वतन को बसाने वापस लौट सकते थे। वे खुशी से उछलने लगे होंगे जब कुस्रू ने पूरे राज्य में यह ऐलान करवाया कि वे वापस यरूशलेम जाएँ और यहोवा के मंदिर को दोबारा बनाएँ! कुस्रू ने उन्हें मंदिर के सोने-चाँदी के वे पवित्र पात्र भी लौटा दिए जिन्हें नबूकदनेस्सर लूटकर बाबुल ले आया था। उसने उन्हें मंदिर के लिए लबानोन से लकड़ी लाने और निर्माण का सारा खर्च राजा के खज़ाने से लेने की भी इजाज़त दे दी।—एज्रा 1:1-11; 6:3-5.

वैसे भी कुस्रू भला और उदार राजा था। वह अपनी प्रजा का हित चाहता था और उसने जिन-जिन प्रदेशों पर जीत हासिल की वहाँ के लोगों को खुश रखना चाहता था। इसकी वज़ह शायद उसके धर्म की शिक्षाएँ थीं। कुस्रू फारस के नबी ज़रथुष्ट्र की शिक्षाओं को मानता था और अहुर माज़दा नाम के ईश्‍वर की पूजा करता था, जिसे सब अच्छी वस्तुओं का प्रतिनिधि माना जाता है। अपनी एक किताब ज़रथुष्ट्र धर्म परंपरा (अंग्रेज़ी) में फरहंग मेहर यह लिखते हैं: “ज़रथुष्ट्र नबी ने ईश्‍वर को भलाई और सदाचार का आदर्श बताया। उसने बताया कि अहुर माज़दा बदला लेनेवाला ईश्‍वर नहीं बल्कि न्याय-प्रिय है। इसलिए उससे डरना नहीं चाहिए बल्कि उससे प्यार करना चाहिए।” इसलिए भले और न्यायी ईश्‍वर में विश्‍वास करने की वज़ह से ही शायद कुस्रू ऊँचे आदर्श रखता था और अपनी प्रजा के साथ उदारता और न्याय से पेश आता था।

कुस्रू को बाबुल का मौसम बरदाश्‍त नहीं हुआ। वहाँ की सड़ी गरमी उससे सही नहीं गई। हालाँकि बाबुल को मादी-फारस साम्राज्य का एक खास नगर माना जाता था और वह उस वक्‍त का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र था फिर भी कुस्रू सिर्फ सर्दियों में ही बाबुल को राजधानी की तरह इस्तेमाल करता था। दरअसल बाबुल को जीतने के बाद कुस्रू अपनी गर्मियों की राजधानी अहमता (इकबाताना) में आकर रहने लगा जो करीब 1,900 मीटर की ऊँचाई पर एलवान्डा पर्वत की तलहटी में थी। वहाँ की सर्दियाँ और उसके बाद हलकी गर्मी का मौसम उसे बहुत पसंद था। कुस्रू ने अहमता के दक्षिणपूर्व में करीब 650 किलोमीटर दूर (पर्सेपोलिस के पास) अपनी पुरानी राजधानी, पैसरगेड में एक खूबसूरत महल भी बनवाया था। जब वह एकांत चाहता था तब वह वहाँ चला जाता था।

आज कुस्रू को एक बहादुर और उदार सम्राट के नाम से याद किया जाता है। उसने 30 साल तक राज किया और सा.यु.पू. 530 में युद्ध की तैयारी में जब वह अपनी फौज के साथ था तब उसकी मौत हो गई। उसके बाद उसका बेटा कैमबीसिस II फारस साम्राज्य की राजगद्दी पर बैठा।

आपने क्या समझा?

• फारस के राजा कुस्रू को यहोवा का “अभिषिक्‍त” क्यों कहा गया है?

• कुस्रू ने यहोवा के लोगों के लिए क्या भलाई का काम किया?

• कुस्रू ने जिन प्रदेशों पर जीत हासिल की वहाँ के लोगों के लिए वह कैसा राजा साबित हुआ?

[नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

मादी-फारस साम्राज्य

मकिदुनिया

मेम्फिस

मिस्र

इथियोपिया

यरूशलेम

बाबुल

अहमता (इकबाताना)

शूशन (सूसा)

पर्सेपोलिस

भारत

[तसवीर]

पैसरगेड में कुस्रू का मकबरा

[तसवीर]

पैसरगेड से मिली नक्काशी जिसमें कुस्रू को दिखाया गया है

[पेज 153-161 पर बक्स/तसवीर]

एक नौजवान राजा दुनिया जीतता है

आज से करीब 2,300 साल पहले सुनहरे बालोंवाला करीब 20 साल का एक नौजवान भूमध्यसागर के तट पर खड़ा था। वह अपने सामने करीब एक किलोमीटर दूर एक शहर को देख रहा था। यह शहर एक द्वीप पर बसा हुआ था। इस नौजवान सेनाध्यक्ष को उस शहर में दाखिल नहीं होने दिया गया। इसलिए गुस्से में उसने संकल्प किया कि वह इस नगर को जीतकर ही रहेगा। वह किस तरह हमला करेगा? वह उस द्वीप तक जाने का रास्ता बनाएगा और लड़ने के लिए अपनी फौजों को तैयार करेगा। बाँध बनने का काम शुरू हो चुका था।

लेकिन तभी फारस साम्राज्य के महान राजा का संदेश आया जिससे यह नौजवान सेनाध्यक्ष रुक गया। फारस के राजा ने शांति के लिए बहुत बड़ी पेशकश सामने रखी: 10,000 किक्कार सोना (आज के हिसाब से करीब दो अरब डालर), राजा की बेटी का हाथ, फारस के सारे दक्षिणी हिस्से पर अधिकार। और यह सब सिर्फ राजा के परिवार की छुड़ौती के लिए जिसे इस सेनाध्यक्ष ने अपना बंदी बना रखा था।

इस पेशकश को स्वीकार करने या ठुकराने का फैसला करनेवाला यह नौजवान सेनापति था मकिदुनिया का राजा सिकंदर III. क्या उसे यह सब लेना चाहिए? उलरिख विलेन कहते हैं कि उसका फैसला “उस समय के संसार के भविष्य का फैसला था।” “इसके बाद जो भी हुआ उसका असर मध्ययुग तक और आज हमारे समय में भी पूर्व और पश्‍चिम में देखा जा सकता है।” लेकिन सिकंदर का जवाब जानने से पहले आइए यह जानें कि आखिर किस वज़ह से यह घड़ी सामने आयी।

एक विजेता पैदा होता है

सिकंदर का जन्म सा.यु.पू. 356 में मकिदुनिया के पेल्ला में हुआ था। राजा फिलिप्प II, उसका पिता था और उसकी माँ का नाम ओलिम्पियास था। उसकी माँ ने सिखाया था कि मकिदुनिया के राजा हरकुलिस के वंशज हैं, जो यूनानी ईश्‍वर ज़ीयस का बेटा है। उसकी माँ कहती थी कि सिकंदर का पूर्वज एकीलीस था जो होमर की कविता लियाद में बताया गया वीर था। उसके माँ-बाप ने उसमें जीतने और राजाओं जैसी शान रखने की ऐसी भावना भर दी थी कि अब उसका मन किसी और बात में नहीं लगता था। जब एक बार पूछा गया कि क्या सिकंदर ऑलम्पिक खेलों की एक दौड़ में हिस्सा लेगा तो उसने कहा हाँ, अगर उसमें दौड़नेवाले सिर्फ राजा हों। वह चाहता था कि अपने पिता से भी ज़्यादा नाम कमाए और जीत के बल पर मशहूर हो।

जब वह 13 साल का था तब उसे यूनानी तत्वज्ञानी अरिस्टॉटल ने पढ़ाया और तत्वज्ञान, औषधि, और विज्ञान की शिक्षा दी। अरिस्टॉटल के तत्वज्ञान का सिकंदर पर कितना असर पड़ा, इस बारे में विद्वान अलग-अलग राय रखते हैं। 20वीं सदी के तत्वज्ञानी बरट्रेंड रसल ने कहा “यह कहा जा सकता है कि अरिस्टॉटल और सिकंदर कई बातों में आपस में सहमत नहीं थे।” “अरिस्टॉटल की राजनीति के हिसाब से शहरों की अपनी-अपनी सरकार या राजा होने चाहिए थे।” लेकिन छोटे-छोटे शहरों में अलग-अलग सरकारों का विचार ही इस महत्त्वाकांक्षी राजकुमार को पसंद नहीं आया होगा जो एक बड़ा साम्राज्य खड़ा करना चाहता था। सिकंदर को अरिस्टॉटल की यह बात भी पसंद नहीं थी कि गैर-यूनानियों को गुलाम बनाकर रखा जाए। वह तो ऐसे साम्राज्य का सपना देख रहा था जिसमें हारे हुए देश विजेता राजा के साथ मिलकर काम करते हैं।

लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि अरिस्टॉटल ने सिकंदर में पढ़ने और सीखने की गहरी इच्छा पैदा की थी। सिकंदर बहुत पढ़ाकू था और उसे होमर की किताब पढ़ना बेहद पसंद था। यह दावा किया जाता है कि उसे लियाद कविता की सभी 15,693 पंक्‍तियाँ रटी हुई थीं।

लेकिन सा.यु.पू. 340 में 16 साल की उम्र में ही उसकी पढ़ाई बीच में रुक गई क्योंकि उसे वापस पेल्ला जाना पड़ा ताकि वह अपने पिता की गैर-हाज़िरी में मकिदुनिया पर राज कर सके। और इस युवराज ने बहुत जल्द युद्ध में अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया। उसका पिता यह देखकर बहुत खुश हुआ कि उसके बेटे ने थ्रेस की बागी जाति मीडी के लोगों को काबू में कर लिया और उस शहर पर तूफान बनकर धावा बोल दिया और उसे कब्ज़े में कर लिया। उसने उस शहर का नाम अपने नाम पर अलेक्ज़ेंड्रोपोलीस रखा।

दुनिया जीतने के लिए निकलना

सा.यु.पू. 336 में अपने पिता फिलिप्प II के कत्ल के बाद 20 साल के सिकंदर को मकिदुनिया की गद्दी पर बैठना पड़ा। सिकंदर सा.यु.पू. 334 के बसंत के मौसम में एशिया के हेलेस्पोन्ट (अब डारडेनेलस) आया, यहीं से उसने अपनी जीत का सिलसिला शुरू किया। उसके पास 30,000 पैदल सैनिक और 5,000 घुड़सवार थे। लेकिन उसकी यह सेना बहुत निपुण थी। इस सेना के साथ इंजीनियर, सर्वेक्षण करनेवाले, आर्किटेक्ट्‌स, वैज्ञानिक और इतिहासकार रहते थे।

एशिया माइनर (अब तुर्की) के उत्तरपश्‍चिमी किनारे पर ग्रेनिकस नदी के पास सिकंदर ने फारस के साथ अपनी पहली लड़ाई जीती। सर्दियों में उसने एशिया माइनर का पश्‍चिमी भाग जीत लिया। इसके बाद पतझड़ के समय एशिया माइनर के दक्षिणपूर्व में इसस में फारस के खिलाफ दूसरी लड़ाई हुई। फारस का महान राजा दारा III करीब पाँच लाख की सेना लेकर सिकंदर से लड़ने आया। दारा को हद से ज़्यादा भरोसा था कि वह यह लड़ाई ज़रूर जीतेगा इसलिए वह अपने साथ अपनी माँ, पत्नी और बाकी परिवारवालों को भी लेकर आया था ताकि ये लोग उसकी वीरता का नज़ारा अपनी आँखों से देख सकें। लेकिन मकिदुनिया की फौजों की फुरती और ज़बरदस्त लड़ाई के लिए फारस की सेना तैयार नहीं थी। सिकंदर की फौजों ने फारस की सेना को बुरी तरह मारा और दारा, सिकंदर की सेना के सामने अपने परिवार को छोड़कर भाग गया।

फारस की सेना का पीछा करने के बजाय सिकंदर भूमध्यसागर के तट से होता हुआ दक्षिण में गया और उन पानी के जहाज़ों पर कब्ज़ा कर लिया जिन्हें फारस की शक्‍तिशाली सेना इस्तेमाल करती थी। लेकिन टायर (सोर) के गढ़-वाले द्वीप ने सिकंदर को घुसने से रोका। इसे जीतने का इरादा करके सिकंदर ने इसे सात महीने तक घेर कर रखा। इसी घेराव के दौरान दारा का वह शांति संदेश आया था जिसके बारे में पहले बताया गया है। यह पेशकश इतनी बड़ी थी कि सिकंदर के सबसे भरोसेमंद सलाहकार पारमेनियो ने यह कहा: ‘अगर मैं सिकंदर होता तो हाँ कह देता।’ लेकिन नौजवान सिकंदर ने उसे धिक्कारते हुए जवाब दिया: ‘अगर मैं पारमेनियो होता तो मैं भी हाँ कह देता।’ उसने सोर के साथ कोई भी समझौता नहीं किया और सा.यु.पू. 332 में उसने समुद्र की उस घमंडी महारानी पर कब्ज़ा करके उसे उजाड़ दिया।

यरूशलेम ने सिकंदर के सामने समर्पण कर दिया इसलिए उसने उसे छोड़ दिया और दक्षिण में गाज़ा पर कब्ज़ा करने के लिए बढ़ चला। मिस्री तो खुद ही फारस के राज से परेशान थे इसलिए उन्होंने सिकंदर का खुशी से स्वागत किया। मेम्फिस में सिकंदर ने मिस्र के बैल देवता एपिस को बलिदान चढ़ाकर पुरोहितों और पंडितों को खुश कर दिया। वहाँ उसने सिकन्दरिया नाम का नगर भी बनाया जो शिक्षा के मामले में एथेन्स की बराबरी करता था और आज भी इस नाम से जाना जाता है।

इसके बाद सिकंदर इस्राएल देश के सारे इलाके से होता हुआ टिग्रिस नदी की तरफ बढ़ा। सा.यु.पू. 331 में तीसरी बार उसकी लड़ाई फारस की फौजों के साथ हुई। इस बार पुराने नीनवे के खण्डरों के पास गौगमेला में। इस लड़ाई में सिकंदर की 47,000 की सेना ने फारस की 2,50,000 की पहले से बढ़िया सेना को हरा दिया। दारा भाग निकला लेकिन बाद में उसके अपने ही लोगों ने उसे मार डाला।

इस जीत से नया जोश पाकर सिकंदर दक्षिण की तरफ बढ़ा और फारस की सर्दियों की राजधानी बाबुल को अपने कब्ज़े में ले लिया। उसने शूशन और पर्सेपोलिस, राजधानियों को भी जीत लिया उसने फारस का अपार धन भी लूटा और जरक्सीज़ का खूबसूरत महल जलाकर फूँक दिया। इसके बाद राजधानी अहमता भी उसके कब्ज़े में आ गई। इसके बाद चीते की तरह तेज़ इस विजेता ने फारस के बाकी राज्यों पर भी कब्ज़ा कर लिया, वह सिन्धु नदी तक पहुँच गया जो आज के पाकिस्तान में है।

सिन्धु पार करके वह फारस के प्रांत तक्षिला में आया वहाँ उसका सामना भारत के एक ज़बरदस्त सम्राट पोरस से हुआ। उसके खिलाफ उसने चार लड़ाइयाँ लड़ीं, जिनमें से चौथी सा.यु.पू. 326, जून में लड़ी गई। पोरस की फौज में 35,000 सैनिक और 200 हाथी थे। इन हाथियों को देखकर मकिदुनिया के घोड़े डरकर बौखला गए। घमासान युद्ध हुआ और बहुत खून बहा, लेकिन आखिर में सिकंदर की सेना जीत गई। पोरस ने आत्मसमर्पण कर दिया और सिकंदर से मित्रता कर ली।

एशिया में आए हुए मकिदुनिया की फौजों को आठ साल बीत चुके थे और सैनिकों को घर की याद सताने लगी थी। पोरस के साथ लड़ाई में सैनिकों की कमर टूट चुकी थी इसलिए वे अपने वतन लौटना चाहते थे। हालाँकि सिकंदर को यह मंज़ूर नहीं था लेकिन उसने सैनिकों की बात मान ली। यूनान सचमुच विश्‍वशक्‍ति बन चुका था। जीते हुए देशों में यूनानी उपनिवेश बसाए गए और यूनानी भाषा और संस्कृति पूरी दुनिया में फैल गई।

सैनिक के लिबास में छिपा इंसान

इतने सालों तक जीत हासिल करने में मकिदुनिया की फौजों को बाँधकर रखने में सिकंदर की शख्सियत का बहुत बड़ा हाथ था। अकसर युद्ध के बाद वह ज़ख्मी सैनिकों के खेमे में उनसे मिलने जाता था उनका हाल पूछता था, उनकी बहादुरी के लिए उन्हें शाबाशी देता था, जीत की खुशी में उन्हें ईनाम देता था। जो लड़ाई में मारे जाते थे सिकंदर उन्हें बड़ी इज़्ज़त के साथ दफनाता था। मारे गए सैनिकों के माँ-बाप और बच्चों के कर माफ कर दिए जाते थे और उन्हें दूसरे कई कामों से भी छूट दी जाती थी। जंग के बाद मनोरंजन करने के लिए सिकंदर खेलों और प्रतियोगिताओं का भी आयोजन करवाता था। एक वक्‍त उसने उन सैनिकों को अपनी नई नवेली दुल्हनों के साथ मकिदुनिया में सर्दियाँ बिताने के लिए छुट्टी दे दी जिनकी नई-नई शादी हुई थी। इन सब कामों की वज़ह से उसके लोग उसे बहुत प्यार करते थे और उसे चाहते थे।

बैक्टीरिया की शहज़ादी रुखसाना के साथ उसकी शादी के बारे में यूनानी लेखक प्लूटार्क लिखते हैं: “यह बात सच है कि उसे मुहब्बत हो गई थी, लेकिन ऐसा करने में उसका एक मकसद भी पूरा होता था। क्योंकि जिन लोगों को उसने जीता था वे यह देखकर दिल से उसकी इज़्ज़त करने लगे कि उसने उन्हीं की जाति की लड़की को अपनी पत्नी बनाया है। उन्होंने देखा कि वह बाकी पुरुषों की तरह कामुक नहीं है बल्कि उसने अपने प्रेम के आवेश को तब तक काबू में रखा जब तक कि उसने रुखसाना को इज़्ज़त के साथ कानूनी तौर पर अपनी पत्नी न बना लिया।”

सिकंदर दूसरे लोगों के शादी के बंधंन की भी इज़्ज़त करता था। हालाँकि राजा दारा की पत्नी उसकी कैद में थी लेकिन उसने इस बात का हमेशा ख्याल रखा कि उससे इज़्ज़त से पेश आया जाए। इसी तरह एक बार जब उसे पता चला कि मकिदुनिया के कुछ सैनिकों ने अजनबियों की पत्नियों के साथ कुकर्म किया है तो उसने यह हुक्म दिया कि अगर वे कसूरवार निकलें तो उन्हें कत्ल कर दिया जाए।

अपनी माँ ओलम्पिया की तरह सिकंदर भी धार्मिक इंसान था। वह युद्ध से पहले और बाद में बलिदान चढ़ाता था शुभ-अशुभ मुहूर्त निकलवाता था। उसने लिबिया में अमोन की भविष्यवाणी को भी जानना चाहा। बाबुल में वह बलिदान के मामले में कसदियों की रस्मों को मानता था और खासकर बाबुल के देवता बेल (मरदुक) को बलिदान चढ़ाते वक्‍त।

सिकंदर खाने के मामले में तो संयम रखता था लेकिन वह बहुत ज़्यादा शराब पीने लगा। वह हर प्याले पर देर तक कुछ न कुछ कहता रहता था और अपने कामों की बड़ाई मारता था। एक सबसे घृणित काम जो सिकंदर के हाथों हुआ वह था उसके हाथों उसके दोस्त क्लीटस का कत्ल। उसने शराब के नशे में धुत होकर उसे मार डाला। लेकिन इसके बाद उसे खुद पर इतना गुस्सा आया कि वह तीन दिन तक अपने बिस्तर पर पड़ा रहा और न खाना खाया, न पानी पिया। बड़ी मुश्‍किल से उसके दोस्तों ने उसे कुछ खाने के लिए राज़ी किया।

लेकिन समय के बीतने के साथ-साथ उसके बड़े नाम की वज़ह से उसमें कुछ बुराइयाँ भी आ गईं। वह झूठी चुगलियों पर ध्यान देने लगा और बहुत सख्त सज़ाएँ देने लगा। मिसाल के तौर पर एक बार उसे किसी ने कह दिया कि फिलोटस ने उसे मारने की कोशिश की थी, तो उसने उसके साथ उसके पिता पारमेनियो को भी कत्ल करवा दिया जो कभी उसका सबसे ज़्यादा भरोसेमंद सलाहकार था।

सिकंदर की हार

बाबुल लौटने के कुछ ही समय बाद सिकंदर को मलेरिया हो गया और इसने उसकी जान लेकर ही छोड़ी। जून 13, सा.यु.पू. 323 में करीब 32 साल 8 महीने जीने के बाद सिकंदर अपने सबसे ताकतवर दुश्‍मन मौत से हार गया।

यह मानो वैसा ही हुआ जैसा भारत के कुछ विद्वानों ने कहा था: “हे राजा सिकंदर, हर मनुष्य केवल उतनी ही भूमि का अधिकारी होता है जितनी उसके पाँवों तले आती है; और तुझमें और दूसरे इंसानों में कोई भिन्‍नता नहीं, केवल इसे छोड़ कि तू ऐसे-ऐसे कार्य करता है और इतना निष्ठुर है, तू अपने देश को छोड़कर दुनिया भर में दर-दर भटक रहा है, न तो तुझे खुद चैन है ना ही तू दूसरों को चैन से रहने देता है। लेकिन शीघ्र ही तू मृत्यु को प्राप्त होगा और तुझे गाड़ने के लिए केवल उतनी ही भूमि की आवश्‍यकता पड़ेगी जितनी किसी अन्य व्यक्‍ति को पड़ती है।”

आपने क्या समझा?

• सिकंदर महान कहाँ का था और किस परिवार से था?

• मकिदुनिया की राजगद्दी सँभालने के बाद ही सिकंदर किस काम के लिए निकल पड़ा?

• सिकंदर की कुछ जीतों के बारे में बताइए।

• सिकंदर की शख्सियत के बारे में क्या कहा जा सकता है?

[नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

सिकंदर के जीते हुए इलाके

मकिदुनिया

मिस्र

बाबुल

सिन्धु नदी

[तसवीर]

सिकंदर

[तसवीर]

अरिस्टॉटल और उसका विद्यार्थी सिकंदर

[पूरे पेज पर तसवीर]

[तसवीर]

कहा जाता है कि इस पदक में सिकंदर की तस्वीर है

[पेज 162,163 पर बक्स/तसवीर]

एक बड़ा साम्राज्य बँट जाता है

सिकंदर महान के साम्राज्य के बारे में बाइबल में पहले से भविष्यवाणी की गई थी कि उसका साम्राज्य टूटकर बँट जाएगा लेकिन ‘उसके वंश को नहीं मिलेगा।’ (दानिय्येल 11:3, 4) और ऐसा ही हुआ। सा.यु.पू. 323 में, सिकंदर के अचानक मरने के 14 साल बाद, उसके बेटे सिकंदर IV और नाजायज़ बेटे हिराकलीस दोनों को कत्ल कर दिया गया।

सा.यु.पू. 301 तक, सिकंदर के चार सेनापतियों ने उसके बड़े साम्राज्य को आपस में चार हिस्सों में बाँट लिया। सेनापति कसांडर ने मकिदुनिया और ग्रीस को ले लिया। सेनापति लिसिमाकस ने एशिया माइनर और थ्रेस को ले लिया। सेनापति सेल्युकस I निकेटोर ने मेसोपोटामिया और सीरिया को ले लिया। और सेनापति टॉल्मी लेगस या टॉल्मी I ने मिस्र और इस्राएल के देश को ले लिया। इस तरह सिकंदर के बड़े यूनान साम्राज्य से चार छोटे राज्य पैदा हुए।

इन चारों राज्यों में से सेनापति कसांडर का राज्य सबसे कम समय तक रहा। कसांडर के राजा बनने के कुछ ही समय बाद वह मर गया और उसका कोई बेटा भी नहीं बचा। इसलिए सा.यु.पू. 285 में सेनापति लिसिमाकस ने कसांडर के राज्य को अपने राज्य में मिला लिया। इसके चार साल बाद लिसिमाकस, सेल्युकस I निकेटोर के साथ लड़ाई में हार गया और लिसिमाकस का हिस्सा सेल्युकस के पास आ गया। इस तरह सेल्युकस एशिया के बड़े भाग का अधिकारी बन गया। सीरिया में होनेवाले सेल्युकसवंशियों का वह पहला राजा बना। उसने सीरिया में अन्ताकिया शहर को बसाकर उसे अपनी नई राजधानी बना लिया। लेकिन सा.यु.पू. 281 में सेल्युकस की हत्या कर दी गई, लेकिन उसका राजवंश सा.यु.पू. 64 तक चलता रहा। इसी साल रोम के सेनापति पॉम्पी ने सीरिया को रोम के प्रांतों में शामिल कर लिया।

सिकंदर के साम्राज्य के चार हिस्सों में से सेनापति टॉल्मी का राज्य सबसे ज़्यादा दिनों तक रहा। सा.यु.पू. 305 में टॉल्मी I ने राजा की पदवी ले ली और वह मकिदुनिया का पहला राजा या मिस्र का फिरौन बना। उसने सिकन्दरिया को अपनी राजधानी बनाया और बहुत जल्द शहर को बढ़ाने के काम में लग गया। उसने जो इमारतें बनवाईं उसमें से एक बेहतरीन इमारत सिकन्दरिया की लाइब्रेरी है। इस काम की निगरानी के लिए टॉल्मी यूनान के एक मशहूर एथेनी विशेषज्ञ डिमित्रियॉस फालेरुस को ले आया। कहा जाता है कि पहली सदी तक इस लाइब्रेरी में करीब दस लाख चर्मपत्र या खर्रे आ चुके थे। टॉल्मी का वंश सा.यु.पू. 30 तक मिस्र में राज करता रहा, इसके बाद इसी साल में रोम ने इस पर कब्ज़ा कर लिया। और इस तरह यूनान के बाद रोम विश्‍वशक्‍ति बन गया।

आपने क्या समझा?

• सिकंदर का बड़ा साम्राज्य किस तरह बँट गया?

• सेल्युकस वंशियों का राज सीरिया में कब तक रहा?

• टॉल्मी के वंशजों का राज मिस्र में कब तक रहा?

[नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

सिकंदर के साम्राज्य का बँटना

कसांडर

लिसिमाकस

टॉल्मी I

सेल्युकस I

[तसवीरें]

टॉल्मी I

सेल्युकस I

[पेज 139 पर रेखाचित्र/तसवीर]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

दानिय्येल की भविष्यवाणी में बताई गई विश्‍वशक्‍तियाँ

लम्बी चौड़ी मूर्ति (दानिय्येल 2:31-45)

समुद्र में से निकलनेवाले चार जन्तु (दानिय्येल 7:3-8, 17, 25)

बाबुल सा.यु.पू. 607 से

मादी-फारस सा.यु.पू. 539 से

यूनान (ग्रीस) सा.यु.पू. 331 से

रोम सा.यु.पू. 30 से

ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍व शक्‍ति सन्‌ 1763 से

अंत के दिनों में अलग-अलग राष्ट्रों में विभाजित दुनिया

[पेज 128 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]

[पेज 147 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]