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दो राजाओं की दुश्‍मनी 20वीं सदी में भी जारी रहती है

दो राजाओं की दुश्‍मनी 20वीं सदी में भी जारी रहती है

पंद्रहवाँ अध्याय

दो राजाओं की दुश्‍मनी 20वीं सदी में भी जारी रहती है

1. एक इतिहासकार के मुताबिक 19वीं सदी के यूरोप में सबसे आगे कौन थे?

इतिहासकार नॉर्मन डेविस लिखते हैं: “उन्‍नीसवीं सदी में पूरा यूरोप जिस तरह के महाशक्‍तिशाली बदलाव के साथ ऊपर उठा वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। सारे यूरोप में हर तरफ तकनीकी या उद्योग में जितनी तरक्की हुई और धन-दौलत जितनी बढ़ गयी वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। इतना ही नहीं समाज और लोगों में यहाँ तक कि दूसरे महाद्वीपों के मुकाबले यूरोप में इस ‘शक्‍तिशाली सदी’ ने मानो नयी जान फूँक दी। यूरोप की इस ज़बरदस्त और ताकतवर सदी में सबसे आगे थे ब्रिटेन . . . . और बाद में जर्मनी।”

“बुराई करने में लगेंगे”

2. उन्‍नीसवीं सदी के खत्म होने तक, ‘उत्तर के राजा’ और ‘दक्खिन के राजा’ की जगह किसने ले ली थी?

2 उन्‍नीसवीं सदी खत्म होने तक, जर्मन साम्राज्य ने ‘उत्तर देश के राजा’ की जगह ले ली थी और ब्रिटेन ने ‘दक्खिन देश के राजा’ की। (दानिय्येल 11:14, 15) उत्तर और दक्खिन के राजाओं की जगह लेनेवाले इन नए राजाओं के बारे में यहोवा का स्वर्गदूत आगे बताता है, “तब उन दोनों राजाओं के मन बुराई करने में लगेंगे, यहां तक कि वे एक ही मेज़ पर बैठे हुए आपस में झूठ बोलेंगे।” वह आगे कहता है: “परन्तु इस से कुछ बन न पड़ेगा; क्योंकि इन सब बातों का अन्त नियत ही समय में होनेवाला है।”—दानिय्येल 11:27.

3, 4. (क) जर्मन राइख या साम्राज्य का पहला सम्राट कौन बना, और कौन-सा गुट बनाया गया? (ख) कैसर विलहेल्म II ने कैसी नीति अपनायी?

3 जनवरी 18, 1871 को विलहेल्म I जर्मन राइख या साम्राज्य का पहला सम्राट बना। उसने ऑटो वॉन बिसमार्क को अपना चांसलर बनाया। बिसमार्क चाहता था कि यह नया साम्राज्य तरक्की करे इसलिए उसकी कोशिश रही कि दूसरे देशों के साथ युद्ध करने के बजाय शांति बनाए रखी जाए। इसलिए उसने अपने पड़ोसी देश ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली के साथ मिलकर त्रिगुट या ट्रिपल एलायंस बनाया। लेकिन उत्तर के इस नए राजा के मनसूबे दक्खिन के राजा के मनसूबों के आड़े आने लगे। आइए देखें कैसे।

4 सन्‌ 1888 में विलहेल्म I और उसके वारिस फ्रेड्रिक III के मरने के बाद, 29 साल का विलहेल्म II सम्राट बनकर जर्मन साम्राज्य की राजगद्दी पर बैठा। विलहेल्म II, या कैसर विलहेल्म ने बिसमार्क को इस्तीफा देने पर मजबूर किया और उसके बाद ऐसी नीति अपनायी कि पूरी दुनिया पर जर्मनी का दबदबा बढ़े। एक इतिहासकार ने कहा, “विलहेल्म II के राज में, . . . [जर्मनी] घमंडी और आक्रमणकारी साम्राज्य बन गया।”

5. कैसे ये दो राजा “एक ही मेज़ पर बैठे” और उन्होंने आपस में क्या बोला?

5 अगस्त 24, 1898 में रूस के सम्राट ज़ार निकोलस II ने नेदरलैंडस्‌ के दी हेग शहर में एक सभा बुलायी, जिसका मकसद था कि दुनिया के झगड़नेवाले देशों में सुलह करके शांति कायम की जाए। उस वक्‍त देशों के बीच डर और शक की वज़ह से पूरी दुनिया में खतरे के बादल मंडरा रहे थे। इसके बाद सन्‌ 1907 में एक बार फिर शांति कायम करने के लिए दी हेग में ऐसी अदालत बनायी गयी जो अलग-अलग देशों के आपसी झगड़े मिटाकर सुलह करवाने के लिए काम करती। इस अदालत का नाम था परमनॆंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन। कमाल की बात देखिए, जर्मन राइख और ग्रेट ब्रिटेन दोनों ही इस अदालत के सदस्य बनकर यह दिखावा कर रहे थे कि वे शांति चाहते हैं। इस अदालत के सदस्य बनकर वे मानो “एक ही मेज़ पर बैठे हुए” एक दूसरे के दोस्त होने का ढोंग कर रहे थे, लेकिन उनके ‘मन बुराई करने में लगे’ हुए थे। पाखंडी नेताओं की तरह, ‘एक ही मेज़ पर बैठे हुए आपस में झूठ बोलने’ के उनके सियासी हथकंडे से असली शांति कायम नहीं हुई। अपनी हुकूमत, व्यापार और फौजी ताकत को बढ़ाने के लिए उन्होंने जो भी मनसूबे बाँधे, उनमें से कोई भी कामयाब नहीं होता। ‘उनसे कुछ नहीं बन पाता,’ क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर की तरफ से इन दोनों राजाओं का “अन्त नियत ही समय में होनेवाला है।”

“पवित्र वाचा के विरुद्ध”

6, 7. (क) किस मायने में उत्तर का राजा अपने ‘देश लौट गया’? (ख) उत्तर के राजा की बढ़ती शक्‍ति के जवाब में दक्खिन के राजा ने क्या किया?

6 परमेश्‍वर का स्वर्गदूत आगे बताता है: “तब उत्तर देश का राजा बड़ी लूट [“बहुत सी धन दौलत,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] लिए हुए अपने देश को लौटेगा, और उसका मन पवित्र वाचा के विरुद्ध उभरेगा, और वह अपनी इच्छा पूरी करके अपने देश को लौट जाएगा।”—दानिय्येल 11:28.

7 कैसर विलहेल्म अपने “देश” लौट गया, यानी वह भी इस पृथ्वी पर वैसे ही काम करने लगा जैसा उससे पहले के उत्तर के राजाओं, सीरिया और रोम ने किया था। सारी दुनिया को अपनी हुकूमत के नीचे लाना उत्तर के पिछले राजाओं की खासियत रही थी। कैसर विलहेल्म भी सारी दुनिया में एक ऐसा बड़ा साम्राज्य खड़ा करना चाहता था जिस पर सिर्फ उसके जर्मन राइख की हुकूमत हो। ऐसा करने के लिए विलहेल्म II अफ्रीका और दूसरे देशों में उपनिवेश हथियाने की कोशिश में लग गया। वह चाहता था कि समुद्र पर ब्रिटेन की जगह उसका दबदबा हो इसलिए उसने अपनी नौसेना की शक्‍ति बढ़ानी शुरू कर दी। द न्यू इनसाइक्लोपीडिया कहती है, “दस-बारह साल के अंदर ही जर्मनी की नौसेना, चींटी से एक पहाड़ बन गई। पूरी दुनिया में अब ब्रिटेन को छोड़ कोई और उसकी नौसेना से टक्कर नहीं ले सकता था।” समुद्र पर अपना अधिकार बनाए रखने के लिए, अपनी नौसेना को और मज़बूत करने के सिवाय दक्खिन के राजा ब्रिटेन के पास कोई और चारा नहीं था। उसने भी फ्राँस और रूस के साथ त्रिदेशीय संधि की जिसे आंताँ कार्दियाल (या, आपसी समझदारी) कहा जाता है। इस तरह यूरोप दो शक्‍तिशाली सैनिक गुटों में बँट गया, एक तरफ जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, इटली का ट्रिपल एलायंस था तो दूसरी तरफ ब्रिटेन, फ्राँस और रूस का ट्रिपल आंताँ।

8. किस तरह जर्मन साम्राज्य के पास “बड़ी लूट” आ गयी?

8 जर्मन साम्राज्य ट्रिपल एलायंस का सबसे ताकतवर सदस्य था। अपने दबदबे का इस्तेमाल करके उसने ऐसी नीतियाँ अपनायीं जिससे उसके पास “बड़ी लूट” या “बहुत सी धन दौलत” आ गयी। इतना ही नहीं, उत्तर के राजा जर्मनी के ट्रिपल एलायंस के सदस्य ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली, रोमन कैथोलिक देश थे इसलिए रोम का पोप भी उन पर खास तौर पर मेहरबान था। जबकि दक्खिन के राजा के ट्रिपल आंताँ में ज़्यादातर देश कैथोलिक नहीं थे इसलिए उन्हें पोप से मदद नहीं मिली।

9. उत्तर के राजा का मन “पवित्र वाचा के विरुद्ध” कैसे था?

9 जैसे स्वर्गदूत ने भविष्यवाणी में आगे कहा, उत्तर के राजा का “मन पवित्र वाचा के विरुद्ध उभरेगा।” यह कैसे हुआ? मार्च 1880 से ही वॉच टावर पत्रिका यह ऐलान कर रही थी कि ‘ठहराए हुए समय’ (NW) पर या “अन्य जातियों का समय” समाप्त होने पर परमेश्‍वर अपना राज्य कायम करेगा। इस दौरान यहोवा के लोग काफी समय से यह भी बता रहे थे कि सन्‌ 1914 में ‘अन्य जातियों का यह समय’ खत्म हो जाएगा। * (लूका 21:24) यहोवा ने राजा दाऊद के साथ ‘राज्य’ की जो वाचा बाँधी थी उसे पूरा किया। सन्‌ 1914 में यहोवा ने दाऊद के वंश, यीशु मसीह को स्वर्ग में अपने राज्य का राजा ठहराया। (2 शमूएल 7:12-16; लूका 22:28-30क) लेकिन उत्तर के राजा यानी जर्मनी के सम्राट का ‘मन राज्य की इस पवित्र वाचा के विरुद्ध था।’ उसने परमेश्‍वर के ठहराए हुए राजा यीशु मसीह की हुकूमत को स्वीकार करने के बजाय उसे तुच्छ जाना और दुनिया पर खुद हुकूमत करने की ‘अपनी इच्छा पूरी करने’ के लिए बड़ी-बड़ी तैयारियाँ करने में लगा रहा। लेकिन ऐसी तैयारी से वह मानो पहले विश्‍वयुद्ध के लिए बारूद इकट्ठा कर रहा था जिसमें आग लगाने के लिए बस एक चिंगारी काफी थी।

युद्ध में वह राजा “उदास” हो जाता है

10, 11. पहला विश्‍वयुद्ध कैसे शुरू हुआ और यह कैसे परमेश्‍वर के “नियत समय” पर हुआ?

10 उस स्वर्गदूत ने आगे बताया, “नियत समय पर वह [उत्तर का राजा] फिर दक्खिन देश की ओर जाएगा, परन्तु उस पिछली बार के समान इस बार उसका वश न चलेगा।” (दानिय्येल 11:29) सन्‌ 1914 में यह “नियत समय” आया जब परमेश्‍वर ने इस पृथ्वी पर अन्यजातियों की हुकूमत का समय समाप्त कर दिया और स्वर्ग में अपना राज्य कायम किया, क्योंकि इससे पहले अन्यजातियाँ पृथ्वी पर राज्य कर रही थीं और परमेश्‍वर के राज्य ने उनके मामलों में दखल नहीं दिया था। यही वह समय था जब उत्तर का राजा, दक्खिन के राजा से लड़ने गया। कैसे? उसी साल जून 28 के दिन, सारायेवो, बॉसनीया में सर्बिया के एक आंतकवादी ने ऑस्ट्रिया-हंगरी देश की राजगद्दी के वारिस आर्कड्यूक फ्रांसिस फर्डीनंड और उसकी पत्नी की हत्या कर दी। यही वह चिंगारी थी जिसने पहले विश्‍वयुद्ध की ज्वाला को भड़का दिया।

11 उत्तर के राजा जर्मनी का कैसर विलहेल्म मानो इसी मौके की तलाश में था। उसने ऑस्ट्रिया-हंगरी को उकसाया कि सर्बिया को इस हत्या का मुँह तोड़ जवाब दे। ऑस्ट्रिया-हंगरी ने जर्मनी की शह पाकर जुलाई 28, 1914 को सर्बिया से जंग का ऐलान कर दिया। लेकिन उधर रूस सर्बिया की मदद के लिए आया। इस पर जर्मनी ने रूस से लड़ाई की घोषणा कर दी। यह देखकर फ्राँस (जो ट्रिपल आंताँ का सदस्य था) रूस की मदद करने के लिए मैदान में कूद पड़ा। फिर जर्मनी ने फ्राँस के खिलाफ भी युद्ध का ऐलान कर दिया। फ्राँस की राजधानी, पैरिस पर जल्द-से-जल्द कब्ज़ा करने के लिए, जर्मन फौजें बेलजियम के रास्ते फ्राँस पहुँचना चाहती थीं। बेलजियम इस लड़ाई में किसी का पक्ष नहीं लेना चाहता था और ब्रिटेन ने इस मामले में उसकी मदद करने की गारंटी दी थी। बेलजियम के मना करने पर भी जब जर्मन फौजें उसके इलाके में घुस आयीं, तो ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया। जल्द ही और भी कई देश इस युद्ध में शामिल हो गए। इटली ने ट्रिपल एलायंस का सदस्य होने पर भी, पहले तो लड़ाई में किसी भी गुट का साथ नहीं दिया और बाद में ब्रिटेन की तरफ हो गया। लड़ाई के दौरान ब्रिटेन ने यह ऐलान कर दिया कि दक्खिन के राजा का प्राचीन देश यानी मिस्र अब उसकी हिफाज़त में है। दरअसल ब्रिटेन नहीं चाहता था कि उत्तर का राजा स्वेज़ नहर से आने-जाने का रास्ता रोककर मिस्र पर कब्ज़ा कर ले।

12. पहले विश्‍वयुद्ध में, किस तरह उत्तर के राजा के साथ ‘पिछली बार के समान नहीं’ हुआ?

12 द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया कहती है, “[ब्रिटेन, फ्राँस और रूस जैसे] बड़े-बड़े और शक्‍तिशाली राष्ट्र साथ मिलकर जर्मनी के खिलाफ लड़ रहे थे, फिर भी ऐसा लग रहा था कि जर्मनी बस जीतने ही वाला है।” इससे पहले, जब रोम साम्राज्य उत्तर के राजा की जगह पर था तब दक्खिन के राजा के खिलाफ उसने जो भी लड़ाई की उसमें उसी की जीत हुई थी। लेकिन, ‘पिछली बार के समान इस बार उसका वश न चला’ और इस बार उत्तर का राजा युद्ध हार गया। ऐसा क्यों हुआ, इसकी वज़ह बताते हुए स्वर्गदूत ने आगे कहा: “क्योंकि कित्तियों के जहाज़ उसके विरुद्ध आएंगे, और वह उदास होकर लौटेगा।” (दानिय्येल 11:30क) ये “कित्तियों के जहाज़” क्या थे?

13, 14. (क) उत्तर के राजा के विरुद्ध आनेवाले “कित्तियों के जहाज़” खास तौर पर क्या थे? (ख) जैसे-जैसे पहला विश्‍वयुद्ध बढ़ता गया, किस तरह कित्तियों के और भी जहाज़ आए?

13 दानिय्येल के दिनों में आज के साइप्रस द्वीप को कित्तिम कहा जाता था। पहले विश्‍वयुद्ध की शुरूआत में, साइप्रस ब्रिटेन का ही हिस्सा बन चुका था क्योंकि ब्रिटेन ने साइप्रस को अपने साम्राज्य में मिला लिया था। साथ ही इस बात पर भी गौर कीजिए कि द ज़ोनडरवान पिक्टोरियल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ द बाइबल के मुताबिक नाम कित्तिम में “सारे पश्‍चिम के, और खासकर पश्‍चिम के नौसेनावाले समुद्री देश शामिल हैं।” न्यू इंटरनेश्‍नल वर्शन बाइबल में “कित्तियों के जहाज़” का अनुवाद “पश्‍चिम के तटवर्ती देशों के जहाज़” किया गया है। इसलिए पहले विश्‍वयुद्ध में कित्तियों के जहाज़, खासकर ब्रिटेन के उन जंगी जहाज़ों के लश्‍कर थे जो यूरोप के पश्‍चिमी तट पर तैनात रहते थे।

14 जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ता गया, ब्रिटेन की नौसेना की मदद करने के लिए कित्तियों के और भी जहाज़ आए। ये पश्‍चिम से आनेवाले अमरीका की नौसेना के जहाज़ थे। लेकिन, अमरीका इस युद्ध में कैसे शामिल हुआ? मई 7, 1915 को जर्मनी की पनडुब्बी U-20 ने, आयरलैंड के दक्षिणी तट के पास ब्रिटेन के एक यात्री जहाज़ लूसीतानिया को डुबो दिया जिसमें 128 अमरीकी भी थे। इसके बाद, जर्मनी अपनी पनडुब्बियों का सहारा लेकर अटलांटिक सागर में काफी आगे तक बढ़ आया। यह देखकर, अप्रैल 6, 1917 को अमरीका के राष्ट्रपति वुड्रो विलसन ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया। अमरीका के जंगी समुद्री जहाज़ों और फौजों से ज़्यादा शक्‍ति पाकर ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति के रूप में, दक्खिन का राजा अपनी पूरी ताकत के साथ अपने दुश्‍मन, उत्तर के राजा जर्मनी पर टूट पड़ा।

15. उत्तर का राजा कब “उदास” हो गया?

15 ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति के हमले से उत्तर का राजा, जर्मनी “उदास” हो गया और उसने आखिर में लाचार होकर सन्‌ 1918 के नवंबर में हार मान ली। जर्मनी का सम्राट विलहेल्म II भागकर नेदरलैंड्‌स्‌ चला गया और जर्मनी एक गणराज्य बन गया। लेकिन उत्तर के राजा का अभी अंत नहीं हुआ था।

वह राजा “अपनी इच्छा पूरी” करता है

16. भविष्यवाणी के मुताबिक उत्तर का राजा हारने पर क्या करेगा?

16 “वह [उत्तर का राजा] . . . लौटेगा, और पवित्र वाचा पर चिढ़कर अपनी इच्छा पूरी करेगा। वह लौटकर पवित्र वाचा के तोड़नेवालों की सुधि लेगा।” (दानिय्येल 11:30ख) जैसा स्वर्गदूत ने भविष्यवाणी में कहा वैसा ही हुआ।

17. किन हालात की वज़ह से अडॉल्फ हिटलर आगे बढ़ा?

17 सन्‌ 1918 में पहला विश्‍वयुद्ध खत्म होने के बाद, जीतनेवाले मित्र-राष्ट्रों ने सज़ा के तौर पर जर्मनी के सामने शांति-संधि में बहुत सख्त शर्तें रखीं और इन्हें मानने पर उसे मजबूर किया। उन्होंने जर्मनी से बहुत भारी हर्जाना लिया जिसकी वज़ह से जर्मनी की जनता की तंगहाली बहुत ज़्यादा बढ़ गयी। जर्मनी के लोगों को इस समझौते की शर्तें बहुत कठोर लगीं और उन्होंने बहुत बुरे वक्‍त का सामना किया। जब युद्ध के बाद सन्‌ 1929 में सबसे भयानक आर्थिक मंदी (ग्रेट डिप्रॆशन) फूट पड़ी तो करीब 60 लाख लोग बेरोज़गार हो गए। जर्मनी की गणतांत्रिक सरकार शुरू से ही कमज़ोर थी और बहुत जल्द वह हिटलर की नाज़ीवाद जैसी लोकतंत्र-विरोधी शक्‍तियों के सामने झुक गयी। इसीलिए 1930 के बाद के साल, अडॉल्फ हिटलर के लिए आगे बढ़ने का सबसे बढ़िया समय साबित हुए। सन्‌ 1933 के जनवरी में वह पहले तो चांसलर बना उसके अगले साल वह जर्मनी का नया राष्ट्रपति बना और उसके राज्य को नाज़ियों ने थर्ड राइख (तीसरे साम्राज्य) का नाम दिया। *

18. किस तरह हिटलर ने “अपनी इच्छा पूरी” की?

18 सत्ता में आते ही हिटलर ने, मसीह के अभिषिक्‍त भाइयों को सताकर “पवित्र वाचा” के खिलाफ लड़ाई की। (मत्ती 25:40) उसने “अपनी इच्छा पूरी” की और इन वफादार मसीहियों में से बहुतों के साथ जानवरों का सा सलूक किया और उन्हें बहुत बुरी तरह तड़पाया। इसके अलावा, हिटलर ने एक और तरीके से “अपनी इच्छा पूरी” की। अपनी धन-दौलत और हुकूमत बढ़ाने के लिए उसने जो भी राजनैतिक कदम उठाया उसमें उसे बेहद कामयाबी मिली। कुछ ही सालों के अंदर उसने जर्मनी को ऐसा शक्‍तिशाली राष्ट्र बना दिया कि दुनिया के ताकतवर देशों में उसकी गिनती होने लगी।

19. समर्थन पाने के लिए हिटलर ने किसके साथ दोस्ती की?

19 हिटलर ने “पवित्र वाचा के तोड़नेवालों की सुधि” ली। ये कौन लोग थे जिन्होंने पवित्र वाचा को तोड़ा था? ये ईसाईजगत के धर्मगुरु थे, जिन्होंने यह दावा किया कि वे परमेश्‍वर के चुने हुए लोग हैं और परमेश्‍वर ने उनके साथ वाचा बाँधी है लेकिन बहुत समय पहले ही उन्होंने परमेश्‍वर के ठहराए हुए राजा यीशु मसीह की शिक्षाओं पर चलना छोड़ दिया और उसके सच्चे चेले नहीं रहे। हिटलर इन “पवित्र वाचा के तोड़नेवालों” का समर्थन पाने में कामयाब रहा। मिसाल के तौर पर उसने रोम के पोप के साथ एक धर्मसंधि की। और सन्‌ 1935 में हिटलर ने अपनी सरकार में चर्च मंत्रालय बनाया जिसका खास मकसद यह था कि सभी प्रोटेस्टेंट चर्चों पर उसकी सरकार की हुकूमत हो।

राजा अपने “सहायक” भेजता है

20. जिन ‘बांहों’ का उत्तर के राजा ने इस्तेमाल किया वे क्या थीं और उसने किसके खिलाफ इनका इस्तेमाल किया?

20 जैसा स्वर्गदूत ने भविष्यवाणी में बताया था वैसा ही हुआ। बहुत जल्द हिटलर लड़ाई करने निकल पड़ा: “तब उसके सहायक [बांहें, फुटनोट] खड़े होकर, दृढ़ पवित्र स्थान को अपवित्र करेंगे, और नित्य होमबलि को बन्द करेंगे।” (दानिय्येल 11:31क) ये “बांहें” उत्तर के राजा की वह फौजे थीं जिन्हें लेकर उसने दूसरे विश्‍वयुद्ध में दक्खिन के राजा से लड़ाई की। सितंबर 1, 1939 को नाज़ी ‘बांहें’ या फौजें पोलैंड पर हमला करके उसमें घुस गयीं। दो दिन बाद पोलैंड की मदद करने के लिए ब्रिटेन और फ्राँस ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया। इसी के साथ दूसरा विश्‍वयुद्ध शुरू हो गया। बहुत जल्द जर्मन सेनाओं ने पोलैंड को पूरी तरह जीत लिया। इसके बाद जर्मन फौजों ने डेनमार्क, नॉर्वे, नेदरलैंडस्‌, बेलजियम, लक्ज़मबर्ग और फ्राँस पर कब्ज़ा कर लिया। द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया कहती है “सन्‌ 1941 के आखिर तक नाज़ी जर्मनी पूरे [यूरोपीय] महाद्वीप पर छा गया था।”

21. दूसरे विश्‍वयुद्ध के समय उत्तर का राजा कैसे बाज़ी हार गया, और इसका क्या नतीजा निकला?

21 इससे पहले, जर्मनी और सोवियत संघ ने मित्रता, सहयोग और एक-दूसरे की सरहदों को पार न करने के समझौते पर दस्तखत किए थे। लेकिन जून 22, 1941 को हिटलर सोवियत सीमा में घुस गया। जब ऐसा हुआ तो सोवियत संघ जर्मनी के खिलाफ ब्रिटेन के पक्ष में आ गया। जर्मनी की सेनाएँ सोवियत संघ में बहुत अंदर तक घुस आयी थीं लेकिन सोवियत सेनाओं ने भी जमकर उनका मुकाबला किया। दरअसल, दिसंबर 6, 1941 को सोवियत संघ की सेनाओं ने जर्मन फौजों को मॉस्को में हरा दिया। दूसरे दिन यानी दिसंबर 7 को, जर्मनी के दोस्त, जापान ने अचानक हवाई द्वीपों के पर्ल हार्बर के अमरीकी नौसैनिक अड्डे पर ज़बरदस्त बमबारी की। जब हिटलर को यह मालूम पड़ा तो उसने अपने अफसरों से कहा: “अब हमें कोई नहीं हरा सकता।” इसके बाद, दिसंबर 11 को उसने तैश में आकर अमरीका के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। लेकिन उसने सोवियत संघ और अमरीका की ताकत का गलत अंदाज़ा लगाया था। एक तरफ तो, सोवियत सेनाएँ पूर्व से हमला करती आ रही थीं और दूसरी तरफ ब्रिटेन और अमरीका की सेनाएँ पश्‍चिम से बढ़ती चली आ रही थीं। फौरन पासा पलट गया और बाज़ी हिटलर के हाथ से निकल गई। जर्मन की सेनाएँ एक के बाद एक इलाके हारती चली गयीं। और आखिर में जब हिटलर ने आत्महत्या कर ली, तो मई 7, 1945 को जर्मनी ने मित्र-राष्ट्रों के सामने आत्म-समर्पण कर दिया।

22. किस तरह उत्तर के राजा ने ‘पवित्र स्थान को अपवित्र किया, और नित्य होमबलि को बन्द किया’?

22 स्वर्गदूत ने कहा था: “[नाज़ी बाहें या फौजें] दृढ़ पवित्र स्थान को अपवित्र करेंगे, और नित्य होमबलि को बन्द करेंगे।” प्राचीन यहूदा देश में ‘पवित्र स्थान,’ यरूशलेम के मंदिर का ही एक हिस्सा था। लेकिन जब यहूदियों ने यीशु को ठुकरा दिया, तब यहोवा ने उन्हें और उनके मंदिर दोनों को ठुकरा दिया। (मत्ती 23:37–24:2) पहली सदी से, यहोवा ने एक महान आत्मिक मंदिर कायम किया है जिसका परमपवित्र हिस्सा स्वर्ग में है और जिसका आँगन यह ज़मीन है। इस आँगन में, मंदिर के महायाजक यीशु के अभिषिक्‍त भाई सेवा करते हैं। सन्‌ 1935 से ज़मीन पर बचे हुए अभिषिक्‍तों के साथ मिलकर एक “बड़ी भीड़” परमेश्‍वर की उपासना कर रही है और कहा गया है कि यह ‘भीड़’ भी ‘परमेश्‍वर के मंदिर’ में उसकी सेवा करती है। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 15; 11:1, 2; इब्रानियों 9:11, 12, 24) उत्तर के राजा, हिटलर के ‘थर्ड राइख’ ने परमेश्‍वर के मंदिर के आँगन को तब अपवित्र किया जब उसने अपने इलाकों में अभिषिक्‍तों के साथ-साथ बड़ी भीड़ के लोगों को बेरहमी से सताया। ये ज़ुल्म इस हद तक पहुँच गए कि “नित्य होमबलि” यानी खुलेआम सब लोगों के सामने यहोवा के नाम की स्तुति और प्रचार करना बंद हो गया था। (इब्रानियों 13:15) लेकिन इन भयानक तकलीफों को झेलने के बावजूद वफादार अभिषिक्‍त मसीही और ‘अन्य भेड़ों’ के लोग, दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान प्रचार करते रहे।—यूहन्‍ना 10:16, NW.

“घृणित वस्तु” स्थापित की जाती है

23. पहली सदी में “घृणित वस्तु” कौन साबित हुआ?

23 जब दूसरा विश्‍वयुद्ध खत्म होने पर था, तब ठीक एक ऐसी घटना घटी जिसके बारे में परमेश्‍वर के स्वर्गदूत ने भविष्यवाणी की थी। उसने बताया था, “उजाड़ने वाली घृणित वस्तु स्थापित की जाएगी।” (दानिय्येल 11:31ख, NHT) जब यीशु जीवित था, तब उसने भी “घृणित वस्तु” के बारे में बताया था। पहली सदी में, रोम की सेनाएँ यह घृणित वस्तु साबित हुईं जो सा.यु. 66 में यरूशलेम में यहूदियों के विद्रोह को कुचलने आयी थीं। *मत्ती 24:15; दानिय्येल 9:27.

24, 25. (क) इस ज़माने की “घृणित वस्तु” क्या है? (ख) कब और कैसे “घृणित वस्तु” को “स्थापित” किया गया?

24 लेकिन इस ज़माने में किस “घृणित वस्तु” को “स्थापित” किया गया है? यह इसलिए घृणित है क्योंकि यह इंसानों द्वारा बनायी गयी है लेकिन ऐसा स्वांग भरती है जैसे इसे परमेश्‍वर ने ठहराया है। यह वस्तु लीग ऑफ नेशन्स्‌ या राष्ट्र संघ थी जो अब युनाइटेड नेशन्स्‌ या संयुक्‍त राष्ट्र संघ बन चुकी है। लीग ऑफ नेशन्स्‌ वही किरमिजी रंग का पशु है, जिसे विश्‍व-शांति कायम करने के लिए बनाया गया था लेकिन दूसरा विश्‍वयुद्ध शुरू होने पर यह खत्म हो गया या अथाह कुंड में चला गया। (प्रकाशितवाक्य 17:8) लेकिन इस “पशु” को “अथाह कुंड” से फिर निकलना था। और ऐसा ही हुआ। अक्‍तूबर 24, 1945 को यह संयुक्‍त राष्ट्र संघ बनकर फिर निकल आया। इसके 50 सदस्य देशों में भूतपूर्व सोवियत संघ भी शामिल था। इस तरह ठीक जैसा स्वर्गदूत ने कहा था, संयुक्‍त राष्ट्र संघ यानी “घृणित वस्तु” स्थापित की गयी।

25 इस अध्याय में हमने देखा कि दोनों ही विश्‍वयुद्धों में, जर्मनी उत्तर के राजा की जगह पर था और दक्खिन के राजा, ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति का सबसे बड़ा दुश्‍मन था। लेकिन जर्मनी के बाद उत्तर के राजा की जगह कौन लेनेवाला था?

[फुटनोट]

^ पैरा. 9 इस किताब का 6 अध्याय देखिए।

^ पैरा. 17 पवित्र रोमी साम्राज्य पहला राइख था और जर्मन साम्राज्य दूसरा।

^ पैरा. 23 इस किताब का 11 अध्याय देखिए।

आपने क्या समझा?

• उन्‍नीसवीं सदी के खत्म होने तक उत्तर के राजा की और दक्खिन के राजा की जगह किसने ले ली थी?

• पहले विश्‍वयुद्ध के दौरान किस तरह उत्तर के राजा के लिए नतीजा, ‘पिछली बार के समान नहीं’ निकला?

• पहले विश्‍वयुद्ध के बाद, कैसे हिटलर ने जर्मनी को इतना शक्‍तिशाली राष्ट्र बनाया कि दुनिया के ताकतवर देशों में उसकी गिनती होने लगी?

• दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान, उत्तर के राजा और दक्खिन के राजा के बीच संघर्ष का क्या नतीजा निकला?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 268 पर चार्ट/तसवीरें]

दानिय्येल 11:27-31 के राजा

उत्तर दक्खिन

का राजा का राजा

दानिय्येल 11:27-30क जर्मन साम्राज्य ब्रिटेन, उसके बाद

(पहला विश्‍वयुद्ध) ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति

दानिय्येल 11:30ख, 31 हिटलर का ब्रिटेन-अमरीकी

थर्ड राइख विश्‍वशक्‍ति

(दूसरा विश्‍वयुद्ध)

[तसवीर]

राष्ट्रपति वुड्रो विलसन किंग जॉर्ज V के साथ

[तसवीर]

कई मसीहियों को यातना शिविरों में सताया गया

[तसवीर]

ईसाईजगत के पादरियों ने हिटलर का साथ दिया

[तसवीर]

वह गाड़ी जिसमें आर्कड्यूक फर्डीनंड की हत्या की गई

[तसवीर]

पहले विश्‍वयुद्ध में जर्मन सैनिक

[पेज 257 पर तसवीर]

सन्‌ 1945, याल्टा में ब्रिटेन के प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल, अमरीकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट और सोवियत प्रमुख जोसेफ स्टैलिन जर्मनी पर कब्ज़ा करने, पोलैंड में नई सरकार बनाने और संयुक्‍त राष्ट्र की स्थापना के लिए बैठक बुलाने की योजना पर सहमत हुए

[पेज 258 पर तसवीरें]

1. आर्कड्यूक फर्डीनंड 2. जर्मन नौसेना 3. ब्रिटेन की नौसेना 4. लूसीतानिया 5. युद्ध के लिए अमरीकी घोषणा-पत्र

[पेज 263 पर तसवीरें]

युद्ध में जर्मनी का साथ देनेवाले जापान ने जब पर्ल हार्बर पर बमबारी की, तब अडॉल्फ हिटलर को अपनी जीत का पूरा यकीन हो गया था